XXX Kahani मेरा सुहाना सफर-कुछ पुरानी यादें - Page 4 - SexBaba
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XXX Kahani मेरा सुहाना सफर-कुछ पुरानी यादें

बसन्ती सोते सोते सेक्स करती थी
मैंने अपना पायजामा खोला और खड़े लंड को उसकी चूत पर टिका दिया.तभी देखा कि उसने भी झट से अपनी टांगें पूरी खोल कर फैला दी जिस वजह से मुझ को लंड को उसकी चूत में डालने में कोई दिक्कत आई.
मैं लंड डाल कर धीरे धीरे धक्के मारने लगा, मेरा हिलना बस ना के बराबर था, धीरे से लंड अंदर और फिर धीरे से बाहर.कोई 10 मिनट बाद उसका शरीर एकदम अकड़ा और वह पानी छोड़ बैठी.मैं भी चुपके से उस के ऊपर से उतरा और उसके ऊपर पहले धोती और चादर ठीक कर दी और आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया और जल्दी ही मैं सो गया.
सवेरे उठा तो बसंती चाय ले कर खड़ी थी और मेरे पायज़ामे की तरफ घूर रही थी. जब मैंने पायज़ामा देखा तो वो तम्बू बना हुआ था और मेरा लौड़ा एकदम अकड़ा खड़ा था, बिना शर्म किये वो मेरे लंड को घूर रही थी.
मैंने झट से चादर को अपने खड़े लंड पर डाल दिया और उसके हाथ से चाय ले ली और उसकी तरफ देखा तो वो मंत्रमुग्ध हुई चादर में छिपे मेरे लंड को ही देख रही थी.मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो ऐसे क्यों कर रही थी. फिर सोचा शायद उस को रात का चुदना याद है और वो आगे बात करना चाहती है.लेकिन वो बिना कुछ कहे खाली कप लेकर चली गई.

दिन में हम कॉटेज चले गये, सोचा था कि ज़रा आलखन कर लेंगे. हम बैठे ही थे कि दरवाज़ा खटका और खोला तो देखा कि वहाँ चंदा खड़ी थी और अंदर आने को उतावली हो रही थी.अंदर आते ही उसने मेरा लंड पकड़ लिया पायजामे के ऊपर से ही उसका हाथ लगते ही लंड जी तो खड़े हो लगे फड़फड़ाने.
लंड का यह हाल देख कर चंदा ने झट से अपनी साड़ी उतार दी और जल्दी से पेटीकोट भी निकाल दिया और मुझको लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ बैठी.वो ऊपर से ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगी और मुझको मम्मों को दबाने के लिए उकसाने लगी.मैं भी मौके की गर्मी में बह गया और चंदा के सुन्दर शरीर को प्यार से चोदने लगा.
10-15 मिन्ट में वो दो बार छूट गई और छूटते वक्त उसने ऊपर से मुझको कस कर जकड़ लिया अपनी बाँहों में. तब वो नीचे आ गई और मुझको ऊपर से चोदने के लिए उकसाने लगी लेकिन मैं भी इस पोज़ से उकता गया था और उसको घोड़ी बना कर चोदने लगा. और फिर बहुत सारे धक्के मारने के बाद मैंने अपनी पिचकारी उसकी चूत के आखरी हिस्से तक ले जाकर छोड़ दी.मुझको पक्का यकीन था कि मेरा वीर्य उसके गर्भाशय में ज़रूर गिरा होगा.ऐसा लगा कि चंदा पूरी तरह से निहाल गई.
मैं उठा और एक शरबत का गिलास बना कर उसको पकड़ा दिया और वो शरबत पीकर फिर से चुदवाने के लिए तैयार हो गई और जैसे कि मेरी आदत है, मैं उसको इंकार नहीं कर सका और उसको फिर एक बार चोद दिया.वो जल्दी से कपड़े पहन कर वहाँ से चली गई.
मैं तो उस समय वाली चुदाई को भूल गया लेकिन बुखार के ठीक होने के बाद आई बिन्दू ने बताया कि वो चंदा तो बहुत खुश होकर गई उस दिन… कह रही थी वो ज़रूर गर्भवती हो गई होगी.
उस रात मैं बसंती को चोदने के मूड में नहीं था. इसलिए मैं उसके कमरे में आने से पहले ही सो गया लेकिन रात को मेरी नींद खुली तो देखा कि बसंती मेरे साथ ही सोई है, उसका एक हाथ मेरे खड़े लंड पर था और दूसरे से वो अपनी चूत को रगड़ रही थी.उसकी आँखें बंद थी, पेटीकोट भी ऊपर उसके पेट पर आया हुआ था और उसकी पतली लेकिन एकदम मुलायम जाँघें हिल रही थीं.
जब उसने महसूस किया कि मेरा लंड बिल्कुल खड़ा है तो वो मेरे ऊपर बैठ गई और मेरे लंड को चूत में डाल दिया. मैं भी सोने का बहाना करता रहा और चुपचाप लेटा रहा, बसंती ही सारी मेहनत करती रही.लेकिन हैरानगी इस बात की थी कि वो अभी भी आँखें बंद कर के यह सारा काम कर रही थी. उसकी चूत से बहुत पानी निकल रहा था और वो पूरी तरह से बेखबर मेरी चुदाई में मस्त थी.जब वो पूरी तरह से चुदाई में थक गई तो वो अपने आप उतर गई मेरे ऊपर से और जा कर अपने बिस्तर पर सो गई.
अगले दिन बिन्दू काम पर आ गई और नई लड़की को देख कर भड़क गई.मैंने उसको शांत किया और कहा- आज रात में तुमको एक तमाशा देखने को मिलेगा.
रात में बिन्दू बहुत कमज़ोरी महसूस कर रही थी इसलिए उसकी यौन के लिए कोई उत्सकता नहीं थी. बिन्दू चटाई बिछा कर उस पर लेट गई और थोड़ी देर बाद बसंती आई और दूसरी चटाई बिछा कर उस पर लेट गई और मेरी तरफ देखने लगी.
मुझ को लगा कि वो मुझे कुछ कहना चाहती है शायद लेकिन मैं चुपचाप लेटा रहा और फिर न जाने कब मेरी नींद लग गई.थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया कि कोई मेरे साथ आकर लेट गया है. मैंने हाथ लगा कर देखा तो वही बसंती ही थी.मैंने नाईट लाइट में देखा वो धोती ब्लाउज उतार कर एकदम नंगी थी. आते ही उसने मेरा लंड खड़ा कर लिया और फिर मेरे ऊपर चढ़ गई और खुद ही अंदर डाल कर धक्के भी मारने लगी और बिन्दू बेचारी सोई रही. उसको पता ही नहीं चला कि बसंती मुझ को चोद रही थी और वो भी आँखें बंद करके.
 
मुझको यह समझ नहीं आ रहा था कि बसंती यह चुदाई का काम सोये हुए कर रही थी या फिर सोने का नाटक कर रही थी.मैं आज बसंती को झकझोड़ कर जगाना चाहता था लेकिन फिर सोचा कि कल बिन्दू को यह सब दिखा कर पता लगाएंगे कि वो ऐसा क्यों कर रही है.बसंती अपना दो बार छूटा कर कपड़े पहन कर अपनी चटाई पर सो गई.
सुबह उठा तो देखा, सिर्फ बसंती सोई है और बिन्दू बाहर जा चुकी है.थोड़ी देर बाद वो मेरी चाय लेकर आ गई.मैंने उससे हाल पूछा तो वो बोली- अब ठीक है.फिर मैंने बसंती की तरफ इशारा किया और बताया- कल रात इस लड़की ने मुझको चोद डाला. साली बहुत तेज़ लगती है. तुम इसको जगाओ और बाहर जाने को कहो.
बिन्दू ने बसंती को जगाया और उसे लेकर बाहर चली गई.बाद में जब वो आई तो मैंने उसको सारी बात बताई.वो भी हैरान थी.फिर हम दोनों ने फैसला किया कि रात को उसको पकड़ेंगे.
रात को बिन्दू मेरा दूध का गिलास लेकर आई और आँख से इशारा किया बसंती आ रही है.तब बिन्दू अपनी चटाई बिछाने लगी, कुछ देर बाद बसंती भी आ गई और बिन्दू उससे बातें करने लगी. मैं भी दूध पीकर सोने का बहाना करने लगा.दोनों लड़कियाँ भी अपने बिस्तरों पर लेट गई, थोड़ी देर बाद वो दोनों भी गहरी नींद में सो गई.मैं और बिन्दू जाग रहे थे लेकिन आँखें बंद थी. तभी मैंने महसूस किया कि बसंती अपने बिस्तर से उठी है और मेरे बेड के निकट आई है.
वो गौर से मेरे चादर से ढके लंड को देखती रही और साथ में मुड़ कर बिन्दू को भी देख रही थी.कुछ क्षण बाद वो अपने बिस्तर पर वापस लौट गई और सोई बिन्दू को देखने लगी. फिर धीरे से उसने अपना एक हाथ बिन्दू की चादर में डाल दिया और धोती के ऊपर उसकी चूत में फेरने लगी.बिन्दू ने एक आँख खोल कर मुझको देखा, मैंने आंख मार कर उसको इशारा किया कि ‘करने दो वो जो कर रही है.’बिन्दू भी बगैर हिले डुले लेटी रही.
आँख बंद किये ही बसंती ने बिन्दू की चादर और फिर धोती ऊपर उठा दी और अब आँख खोल कर उस की बालों भरी चूत देखने लगी और फिर उसने अपना मुंह बिन्दू की चूत पर लगा दिया.बिन्दू अब आँख खोल कर इस चुसाई का आनन्द लेने लगी.पहले बसंती धीरे से चूस रही थी और फिर उसने चुसाई की स्पीड तेज़ कर दी. ऐसा करते हुए उसके चूतड़ हवा में लहरा रहे थे और उस का पेटीकोट चूतड़ के ऊपर आ गया था.
वो चुसाई का काम इतना मग्न होकर रही थी कि उसको पता ही नहीं चला कब मैं अपने बिस्तर से उठा और उसकी गांड के ऊपर अपना खड़ा लंड टिका दिया.फिर मैंने धीरे से लंड उसकी चूत पर रख कर एक ज़ोर का धक्का मारा कि मेरा लंड झट से उसकी चूत की गहराइयों में चला गया और उसकी गीली और बेहद गर्म चूत का आनन्द लेने लगा.नीचे हम दोनों के बीच लेटी बसंती ने बिन्दू की चुदाई की स्पीड बढ़ा दी.उधर बिन्दू भी पूरे जोश में थी और खूब आनन्द ले रही थी उसकी चूत की चुसाई का.
सबसे पहले बिन्दू सबसे नीचे एकदम अकड़ कर झड़ गई और फिर बसंती भी थोड़ी देर में झड़ गई.रह गया मैं… तो मैंने भी ज़ोर ज़ोर से पीछे से धक्के मार कर कर बसंती की चूत में अपना फव्वारा छोड़ दिया.तीनों अलग अलग होकर लेट गए.
बिन्दू ने बसंती से पूछा- यह तुम क्या कर रही थी बसंती?वो एकदम हैरानी से बोली- मैं क्या कर रही थी? बताओ तो?‘अरे तुम हम दोनों के साथ चुदाई कर रही थी न? तुमको नहीं पता क्या?’‘नहीं, जब मैं सो जाती हूँ तब मुझ को कुछ याद नहीं रहता कि मैं क्या कर रहीं हूँ!’
‘ऐसे कैसे हो सकता है? तुमने पहले मेरी चूत की चुसाई की और फिर छोटे मालिक ने तुमको पीछे से चोदा, क्या तुमको नहीं पता?’‘नहीं बिल्कुल नहीं पता!’वह रोने वाली हो गई थी और बड़ी मासूमियत से हम दोनों को देख रही थी.फिर उसने अपने नंगे शरीर को देखा और बड़ी दर्दभरी आवाज़ में बोली- मुझको कुछ याद नहीं कि मैंने क्या किया था आप दोनों के साथ!
हम दोनों हैरान थे कि यह कैसे हो सकता है? लेकिन बसंती नहीं मान रही थी, वो बार बार यही कह रही थी कि उसको कुछ भी नहीं याद कि उसने क्या किया था.हम दोनों सोच में पड़ गए.बसंती का व्यव्हार काफी चौंकाने वाला था.
थोड़ी देर बाद हम तीनों सो गए, सवेरे उठे तो बसंती कमरे में नहीं थी.बाद में पता चला वो बड़ी मालकिन को बता कर नौकरी छोड़ गई थी.

कहानी जारी रहेगी.

 
बिन्दू को गर्भ रह गया


बसंती के जाने का दुःख किसी को नहीं हुआ क्यूंकि वो कुछ दिनों में सिर्फ मेरे साथ ही सम्बन्ध बना पाई थी. कई बार मैं सोचता था कि बसंती का व्यवहार अजीब ज़रूर था लेकिन इतना भी अजीब नहीं कि संभव न हो सके.ऐसे किस्से तो सुनने में आते रहते थे कि अमुक को रात में चलने की आदत है या फिर बहुत अमीर होने के बावजूद भी चोरी की लत किसी किसी में पाई जाती थी.
अब मैं और बिन्दू रात भर चुदाई करते रहते थे. मेरी भरसक कोशिश होती थी कि मैं अपना वीर्य बाहर ही छुटाऊँ लेकिन फिर भी कभी अंदर थोड़ा बहुत छूट ही जाता था.शायद इसी का परिणाम हुआ कि एक दिन बिन्दू जब मेरे कमरे में सवेरे चाय देने आई तो बहुत घबराई हुई थी.मेरे पूछने पर उसने बताया कि उसकी माहवारी इस महीने नहीं आई और उसको पक्का यकीन है कि वो गर्भवती हो गई है. उसके मुख पर चिंता के रेखाएं छाई हुई थीं, मैं भी काफी फ़िक्रमंद हो गया यह सुन कर.सारा दिन हमारा इसी सोच में डूबा कि अब क्या करें.
लेकिन अगले दिन बिन्दू आई तो वो मुस्करा रही थी.मैंने पूछा- क्या माहवारी वाली खबर गलत है?बिन्दू बोली- नहीं जी, एकदम सही है. लेकिन कल रात मेरा पति घर वापस आ गया था, उसने भी चोद दिया और अब यह बच्चा मेरे पति का ही होगा न?‘बहुत शुक्र है भगवान का… जो ऐसा हो गया, नहीं तो बड़ी मुसीबत आ जाती. लेकिन मेरा क्या होगा बिन्दू?’बिन्दू बोली- आप फ़िक्र न करें छोटे मालिक, कोई न कोई इंतज़ाम मैं कर दूंगी आपका… अच्छा अब मैं चलती हूँ.
यह कह कर बिन्दू तो चली गई लेकिन मेरा मन उचट गया. तभी खबर आई कि मेरा रिजल्ट निकल गया है और मैं अच्छे नंबरों से पास हो गया हूँ.यह सुन कर मम्मी पापा बहुत खुश हुए और वो मेरे शहर जाने की तैयारी करने लगे ताकि बड़े कॉलेज में दाखला ले सकूँ.मुझको कॉलेज में दाखला लेने और शहर में जाने की कोई खास ख़ुशी नहीं हो रही थी. यहाँ चुदाई का अच्छा साधन बन गया था और मुझ को आशंका थी कि शहर में मुझको गाँव जैसा आनन्द नहीं मिल पायेगा.
शहर जाने में अभी कुछ दिन बाकी थे, मैं घूमते हुए अपनी कॉटेज में चला गया. शरबत का एक ठंडा गिलास बना कर पी ही रहा था कि दरवाज़ा खटका.खोला तो देखा कि सामने छाया खड़ी थी और उसके साथ एक और औरत भी थी.मैं छाया को देख कर खुश हो गया लेकिन उसके साथ खड़ी औरत को देख कर कुछ हिचकिचाहट सी होने लगी.

छाया बोली- छोटे मालिक, सुना आप परीक्षा में पास हो गए, सोचा बधाई दे आऊँ. इनसे मिलो, यह निर्मला है. बेचारी का पति भी बाहर गया हुआ है. मैंने सोचा कि छोटे मालिक से मिलवा देती हूँ शायद इसका भी कुछ काम हो जाए.मैं एकदम सकपका गया और मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था.
छाया बोली- छोटे मालिक, इसकी भी मदद कर दो, ज़िंदगी सुधर जायेगी इस बेचारी की.मैं बोला- कैसी मदद कर दूँ छाया इसकी?‘वही जैसी आपने हमारी मदद की!’‘अरे मैं बदनाम हो जाऊँगा अगर गाँव वालों को पता चला तो? और फिर इसका पति भी नहीं है यहाँ. कैसे होगा यह सब?’
छाया ने कुछ सोचते हुए कहा- ऐसा करते हैं मालिक, आप इसको आज चोद दो तो इस का भी मन और शरीर ठीक हो जायेगा.मैंने कहा- इससे पूछ लो क्या यह इस काम के लिए राज़ी है?छाया ने निर्मला से पूछा- छोटे मालिक के सामने बताओ तुम क्या क्या चाहती हो? क्या इनसे चुदवाना है या नहीं? फिर अगर तुम को बच्चा ठहर जाता है तो छोटे मालिक जिमेवार नहीं होंगे. समझी न?निर्मला ने हाँ में सर हिला दिया.
छाया ने फिर कहा- ऐसे नहीं, मुंह से बताओ छोटे मालिक को कि तुम क्या चाहती हो?तब निर्मला बोली- मैं तैयार हूँ छोटे मालिक.उसका मुंह शर्म से लाल हो गया.यह सुन कर छाया निर्मला को लेकर अन्दर कमरे में चली गई और वहीं वो उसके कपड़े उतारने लगी.अब मैंने उस औरत को गौर से देखा, उसकी आयु होगी 20-21 और वो रंग की साफ़ थी और जिस्म भरा हुआ, उसके उरोज काफी गोल और उभरे हुए लग रहे थे.सबसे सुन्दर उसके मोटे और गोल चूतड़ थे जिनमें से काम वासना की एक महक आ रही थी.
मुझे लगा कि निर्मला कि उसका पूरा शरीर सिर्फ चुदाई के लिए बना था. गोल गदाज़ चूतड़ों के ऊपर उस की चूत बहुत उभरी हुई दिख रही थी. उसका सेक्सी बदन देख कर मेरा दिल उसको फ़ौरन चोदने के लिए तयार हो गया.
मैंने छाया से कहा- ऐसे नहीं छाया, तुम भी आओ मैदान में, तभी बात बनेगी.छाया बोली- मैं कैसे आ सकती हूँ. मैं तो अपने पति को भी पास नहीं आने देती आजकल!‘तो फिर रहने दो…’‘नहीं नहीं छोटे मालिक, निर्मला का तो कल्याण कर दो. मुझको कष्ट होगा, 5वाँ महीना चल रहा है.’‘देखो छाया अगर तुम आती हो तो ठीक, नहीं तो निर्मला को भी नहीं?’‘देखेंगे, पहले निर्मला को तो चुदाई सुख दीजिये फिर मैं भी आ जाऊँगी.’
यह कह कर छाया ने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए. मेरे लंड को देख कर निर्मला के मुंह से ‘उई माँ’ निकल गया क्यूंकि मेरा लंड एकदम खड़ा था और 7 इंच का और लंड चूत के अंदर जाने के लिए बेताब था.
 
छाया ने निर्मला के होटों को चूमा और फिर उसके मम्मों को चूसने लगी. यह देख कर मुझ से रहा नहीं गया, मैंने उसके मोटे स्तनों को चूसना शुरू कर दिया, चूचियाँ सख्त हो गई थीं, उनको मुंह में लेकर चूसा और फिर एक हाथ उसकी चूत में डाल दिया.चूत एकदम गीली हो रही थी.छाया झुक कर निर्मला के गोल चूतड़ों को चाट रही थी.
छाया ने निर्मला को पलंग पर लिटा दिया और मैं भी झट से उसकी फैली हुई टांगों के बीच चला गया और लंड को निशाने पर बैठा कर ज़ोर का धक्का दिया और लंड पूरा का पूरा चूत में चला गया गया.निर्मला के मुंह से एक हल्की सिसकारी निकली और उसकी बाँहों ने मेरे को घेर लिया और अपनी छाती से चिपका लिया. कभी धीरे और कभी तेज़ धक्कों से शुरू हो गई हमारी यौन जंग…
शीघ्र ही निर्मला की चूत से पानी छूट गया और मैं तब भी अपने धक्कों में लगा रहा.कुछ समय बाद ही निर्मला का दूसरी बार भी छूटा और वो टांगें पसार कर लेट गई.
मैंने छाया की तरफ देखा, उसका मुंह शारीरिक गर्मी से लाल हो रहा था और उसका दायां हाथ धोती के अंदर था.मैंने छाया को पलंग पर खींच लिया और उसको घोड़ी बना कर उसको पीछे से पेल दिया लेकिन मैं बड़े ध्यान से उसको चोदने लगा. बड़े धीरे धक्के मार रहा था और पूरा लंड अंदर नहीं डाल रहा था.उसकी चूत भी पनिया गई थी.और इस तरह प्यार से मैं छाया को भी चोद दिया.एक बार उसके झड़ जाने के बाद में उसके ऊपर से उतर गया.
तब तक निर्मला अपनी ऊँगली से अपनी भगनसा को मसल रही थी और बड़े ध्यान से छाया की चुदाई को देख रही थी. जैसे ही मैं छाया के ऊपर से हटा, निर्मला ने अपनी टांगें फ़ैला दी और मुझको अपने ऊपर आने के लिए खींचने लगी, झट से मैं छाया की चूत को छोड़ कर निर्मला पर चढ़ गया..
थोड़े धक्के मारने के बाद मैंने उसको भी घोड़ी बनने के लिए कहा और वो झट से घोड़ी बन गई.तब मैंने उसको फुल स्पीड से चोदना शुरू किया. उसके मुंह से कुछ अजीब सी आवाज़ आ रही थी जैसे कह रही हो ‘फाड़ दो मुझको… और ज़ोर से चोदो राजा.’जैसे वो बोल रही थी वैसे ही मेरा जोश और बढ़ रहा था और मैं पूरी ताकत के साथ उसको चोदने में लग गया. उसके अंदर बहुत दिनों का यौन इच्छा का दबा हुआ सारा जोश जैसे एक साथ बाहर निकलने के लिए उतावला हो रहा हो.
अबकी बार जब निर्मला छूटी तो उसके चूतड़ उछलने लगे.मैंने चुदाई रोक कर बिन्दू की तरफ देखा तो वो भी हैरान थी कि निर्मला इतनी ज्यादा गर्म हो गई थी और तभी मुझको महसूस हुआ कि पानी का फव्वारा निर्मल की चूत से निकल रहा है और मेरे लंड समेत मेरा पेट तक को भिगो दिया.फिर अपने आप ही मेरा भी छूट गया और वो उसकी चूत की गहराई तक अंदर गया.
थोड़ी देर बाद हम तीनों संयत हुए.मैंने छाया से कहा- आज से बिन्दू भी नहीं आयेगी क्योंकि उसका घरवाला वापस आ गया है.छाया बोली- अच्छा तो फिर आप निर्मला को चोद लिया करना रोज़!‘कैसे होगा यह सब? यह हमारे घर काम नहीं करती ना?’‘तो आप इसको कॉटेज में बुला लिया करो ना, क्यों ऐसा नहीं कर सकते क्या?’‘कर सकता हूँ लेकिन किसी ने देख लिया तो? फिर रोज़ रोज़ मुझको गर्मी में यहाँ आना पड़ेगा.’‘बोलो फिर क्या करें? क्यों निर्मला मालिक के घर काम करोगी?’
निर्मला बोली- कर लिया करूंगी. दिन को काम कर के रात को घर आ जाया करूंगी, क्यों ठीक है?‘नहीं, रात भी रुकना पड़ेगा तुझको!’‘मेरी सास है न, वो शायद न माने, कोशिश करती हूँ.’फिर वो दोनों चली गई और मैं वहीं सो गया.
अगले दिन छाया निर्मला को लेकर मम्मी से मिलने आई. थोड़ी देर बाद वो दोनों मम्मी के साथ मेरे कमरे में आईं. मम्मी ने आते ही कहा- सतीश, छाया इस निर्मला को ले कर आई है तुम्हारे काम के लिए! बोलो ठीक है यह?मैंने कहा- मम्मी, आप जो फैसला कर लो, वही ठीक है.
मम्मी ने छाया को कहा- छाया, तुम निर्मला को सतीश का काम समझा देना. वैसे ही यह तो जल्दी शहर जाने वाला है, उसके बाद मैं देखूंगी इसको कहाँ रखें.

कहानी जारी रहेगी.

 
color=#800000]निर्मला की चूत चुदाई[/color]

अगले दिन छाया निर्मला को लेकर मम्मी से मिलने आई. थोड़ी देर बाद वो दोनों मम्मी के साथ मेरे कमरे में आईं. मम्मी ने आते ही कहा- सतीश, छाया इस निर्मला को ले कर आई है तुम्हारे काम के लिए! बोलो ठीक है यह?मैंने कहा- मम्मी, आप जो फैसला कर लो, वही ठीक है.
मम्मी ने छाया को कहा- छाया, तुम निर्मला को सतीश का काम समझा देना. वैसे ही यह तो जल्दी शहर जाने वाला है, उसके बाद मैं देखूंगी इसको कहाँ रखें.
निर्मला भी काफी सुघड़ औरत थी, सबसे अच्छी चीज़ जो उसकी मुझको लगी थी वो उसकी मीठी और प्यारी आवाज़ थी. जब छाया ने उसको काम समझा दिया तो वो उसको लेकर मेरे पास आई और बोली- यह छोटे मालिक का कमरा है, इसको साफ़ सुथरा रखना अब तेरा काम है निर्मला! छोटे मालिक के हर काम को ध्यान से और मन लगा कर करना. जैसा वो कहें, वैसा ही करना, छोटे मालिक तेरा पूरा ख्याल करेंगे.
मैंने पूछा- क्यों छाया क्या यह रात रहेगी यहाँ?‘हाँ छोटे मालिक, मैंने इसकी सास से बात कर ली है और वो मान गई है. यह अब दिन रात आप की सेवा करेगी छोटे मालिक!’‘क्यों निर्मला? करेगी न हर प्रकार की सेवा?’यह कहते हुए छाया ने मुझको आँख मारी, मैं भी मुस्कुरा दिया.
‘और सुन निर्मला तू रात में अपना बिस्तर यहाँ ही बिछाया करेगी और छोटे मालिक का पूरा ध्यान रखेगी. ठीक है न?’‘अच्छा छोटे मालिक, मैं अब चलती हूँ!’मैं बोला- रुक छाया.मैं अपनी अलमारी की तरफ गया और कुछ रूपए निकाल कर ले आया, 100 रूपए मैंने छाया को दिए और 100 ही निर्मला को दे दिए. दोनों बहुत खुश हो गईं और जाने से पहले मैंने छाया के होंट चूम लिए और उससे कहा- देख छाया तुझको जब भी किसी किस्म की मदद की ज़रूरत हो तो बिना हिचक के आ जाना मेरे पास. तुमने मुझको बहुत कुछ सिखाया है.

और फिर मैंने उसको बाँहों में भींच कर ज़ोरदार चुम्मी दी और उसके चूतड़ों को हाथ से रगड़ा.मैंने निर्मला को मेरे लिए चाय लाने के लिए कहा.
बिंदु का जाना और निर्मला का आना बस एक साथ ही हुआ. निर्मला की धोती कुछ मैली और पुरानी लग रही थी. तो मैं मम्मी के कमरे से उसके पुराने कपड़ो की अलमारी से 3-4 धोतियाँ उठा लाया और निर्मला को दे दी.वो और भी खुश हो गई और कुछ शरमाई और फिर आगे बढ़ कर उसने मेरे होंट चूम लिए और वहाँ से भाग गई.
मेरे कॉलेज का फैसला यह हुआ कि लखनऊ के सबसे बढ़िया कॉलेज में मेरा दाखला होगा और वहाँ मैं हॉस्टल में नहीं रहूँगा बल्कि अपनी कोठी में रहूंगा और मेरी देखभाल के लिए वहाँ खानसामा तो रहेगा ही, साथ में किसी नौकरानी का भी इंतज़ाम कर दिया जाएगा जो मेरा काम देखा करेगी जैसे यहाँ देखती है.
10 दिनों बाद मुझको लखनऊ जाना था तो मैं पूरी तरह चुदाई में लीन हो गया और निर्मला ने इसमें मेरा पूरा साथ दिया.
रात को चुदाई के बाद मैंने निर्मला से उसके पति के बारे में पूछना शुरू कर दिया. उसने बताया कि उसका पति भी बड़ा ही चोदू था, वो अक्सर रात में 3-4 बार चोदता था और उसको चुदाई के कई ढंग आते थे. जैसे वह चूत को तो चोदता था ही, वह मेरी गांड में भी लंड से चुदाई करता था.
‘अच्छा तो तुमको गांड चुदाई अच्छी लगी क्या?’‘नहीं छोटे मालिक, मुझको चूत की चुदाई ही अच्छी लगती है लेकिन मेरे पति को गांड चुदाई की भी आदत पड़ चुकी थी तो वो हफ्ते दस दिन में एक बार गांड भी मार लिया करता था मेरी!’‘अच्छा यह तो बड़ा ही गन्दा काम है निर्मला! तू कैसे बर्दाश्त करती थी उसकी यह गन्दी हरकत?’
‘नहीं छोटे मालिक गांड चुदाई कई मर्दों को बहुत अच्छी लगती है क्योंकि चोद चोद कर औरतों की चूत तो ढीली पड़ जाती है और अगर कहीं 3-4 बच्चे हो जाएँ तो चूत बिल्कुल ढीली पड़ जाती है और मर्द लोगों को चुदाई का मज़ा नहीं आता.‘तुझको दर्द तो हुआ होगा बहुत?’‘हाँ पहली बार तो हुआ था लेकिन मेरा आदमी तेल लगा कर मुझको चोदता था तो इतना दर्द नहीं होता था.’‘पर तुझको मज़ा तो नहीं आता होगा?’‘नहीं मुझको मज़ा नहीं आता था और बाद में पति के सो जाने पर मुझको ऊँगली करनी पड़ती थी. वैसे गाँव की कई औरतों ने मुझको बताया है उनके आदमी भी गांड मारते हैं उनकी.’
‘अच्छा यह बता तेरे पति की चुदाई से तेरा बच्चा क्यों नहीं हुआ?’‘मेरे पति के वीर्य बड़ा ही पतला था और बहुत जल्दी ही वो झड़ जाता था.’‘कितने साल हो गए तेरी शादी को?’वो बोली- 3 साल हो जायेंगे अगले महीने!वो उदास हो कर बोली.
‘इस बीच किसी और मर्द से नहीं चुदवाया क्या?’वो शर्मा गई और बोली- नहीं छोटे मालिक!यह कहते हुए मुझको लगा कि वो झूठ बोल रही है, मैंने कहा- मुझको लगता है तुम काफी चुदी हुई हो. सच बताना क्या किसी और से भी चुदवाया है कभी? मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूँगा.

 
वो काफी देर चुप रही लेकिन मैं उसके चेहरे के भाव पढ़ कर यह अंदाजा लगा रहा था कि सच बोलने से घबरा रही है.‘निर्मला सच बता दो, मैं बिल्कुल किसी को नहीं बताऊँगा. कौन था वो जिससे चुदवाती रही थी तुम?’
निर्मला बोली- मेरे पड़ोस का लड़का था. हमारा गुसलखाना नहीं है तो हम या तो नदी पर नहाती हैं या फिर घर के बाहर छप्पर में कपड़ा बाँध कर नहा लेती हैं. एक दिन मैं नहा रही थी तो मुझको चुदवाने की गर्मी सताने लगी तो मैं बिना सोचे चूत में ऊँगली डाल कर अपनी तसल्ली कर रही थी कि मुझको ऐसा लगा कि कोई मुझको देख रहा है? मैं चौकन्नी हो गई और उठ कर देखा तो पड़ोस का लड़का छुप छुप कर मुझको नहाते हुए देख रहा था.
‘फिर क्या हुआ?’ मैं बोला.‘वो भी गर्मी में आकर मुठ मार रहा था… मुझको देख कर भाग गया. उसका लंड देख कर मेरा दिल मचल गया लेकिन मैं अपनी तरफ से पहल नहीं करना चाहती थी.’यह कहते हुए निर्मला फिर गर्म हो गई और मेरे लंड के साथ खेलने लगी, मैं भी अपना हाथ उसकी चूत पर फेर रहा था.
उसकी चूत काफी गीली हो गई थी, मैं लेट गया और उसको अपने ऊपर आने के लिए कहा, वो झट से मेरे ऊपर आ गई और मेरा लंड अपनी चूत में डाल कर मुझको ऊपर से धक्के मारने लगी.मैं भी उसके मम्मों के साथ खेल रहा था, मेरी एक ऊँगली उसकी भगनसा को धीरे से मसल रही थी और फिर जल्दी ही निर्मला एकदम पूरे जोश में आ गई और मुझको काफी ज़ोर से चोदने लगी. उसकी कमर बड़ी तेज़ी से ऊपर नीचे हो रही थी, उसकी आँखें बंद थी और चुदाई का पूरा आनन्द ले रहे थी.
थोड़ी देर में ही वो ‘ओह्ह ओह्ह…’ करती हुई झड़ गई और मेरे ऊपर लेट गई. मैं उसकी मोटी गांड में एक ऊँगली डाल कर गोल गोल घुमाने लगा.ऐसा करने से ही उसकी गांड अपने आप हिलने लगी और मेरी ऊँगली को लगा कि उसकी गांड खुल और बंद हो रही है.दिल तो किया कि मैं भी इसकी गांड में लंड डाल दूँ लेकिन मन में बैठी घृणा ने मुझको ऐसा करने से रोक दिया.
जब वो बिस्तर पर फिर लेटी तो मैंने पूछा- फिर क्या हुआ उस लड़के के साथ?वो बोली- वो लड़का डर के मारे मेरे पास ही नहीं आता था.एक दिन मैं जंगल-पानी करके आ रही थी, वह लड़का मिल गया और बोला- भौजी बुरा तो नहीं माना न?‘नहीं रे, बुरा क्या मानना है?’ मैं बोली.‘तो भौजी हो जाए किसी दिन?’‘क्या हो जाए?’‘अरे वही जो भैया करते थे तुम्हारे साथ!’
धत्त… ऐसा भी कभी होता है? पिद्दी भर का लौण्डा और यह बात?’‘पिद्दी कहाँ, तुमने मेरा लंड देख लिया था न, पूरा मर्दाना है.’‘चल दिखा खोल कर?’‘क्या कह रही हो भौजी? यहाँ दिखाऊँ क्या?’‘नहीं, इधर ईख के खेत में आ जा!’
ईख के खेत में मैंने उसका लंड देखा, होगा 5 इंच का.लेकिन मेरे ऊपर तो कामवासना का भूत सवार था, मैंने उसका लंड पकड़ लिया और उसको लिटा दिया और मैं उसके ऊपर चढ़ बैठी और ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगी ऊपर से और वो 2 मिन्ट में ही झड़ गया.लेकिन उसका लंड अभी भी अकड़ा रहा और मैं फिर उसको चोदने लगी और दूसरी बार वो 10 मिन्ट तक डटा रहा और मेरा एक बार उसके साथ ही छूट गया.
मैं चुप बैठा रहा.निर्मला ने पूछा- छोटे मालिक, कहीं आप बुरा तो नहीं मान गए?

कहानी जारी रहेगी.
 
नदी में दुल्हन को नंगी नहाते देखा

निर्मला गैर मर्दों से अपनी चूत चुदाई के किस्से सुनाती रही, मैं चुप बैठा रहा.निर्मला ने पूछा- छोटे मालिक, कहीं आप बुरा तो नहीं मान गए?‘नहीं नहीं… बुरा कैसा! अच्छा किया अपनी तसल्ली कर ली तुमने! सच बताना उस लड़के के इलावा किसी और से तो नहीं करवाया तुमने?’
‘नहीं नहीं छोटे मालिक, बिल्कुल नहीं!’‘और किसी औरत या लड़की के साथ तो नहीं किया कभी?’‘यह आप क्या पूछ रहे हैं छोटे मालिक?’‘नहीं मैंने सुना है तुम औरतें आपस में भी खूब लग जाती हो एक दूसरी के साथ!’
वो चुप रही और उसकी यह चुप्पी से मुझको लगा कि आपसी सम्बन्ध भी थे इसके दूसरी औरतों के साथ.‘नदी में कहाँ नहाती हो तुम सब?’‘वही जो घाट है न उस पर ही नहाती हैं सब, लेकिन आदमियों और लड़कों का उस तरफ आना मना है.’‘अच्छा? कोई जगह तो होगी जहाँ से कुछ देखा जा सके?’
वो हिचकते हुए बोली- है तो सही, आप देखना चाहते हैं क्या?‘अगर तुम दिखाओ तो इनाम मिलेगा.’वो बोली- कल देखने आ सकते हो?‘हाँ, क्यों नहीं.’‘अच्छा तो मैं आपको ले जाऊँगी.’
फिर हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में सो गये.

सुबह होने से पहले मैंने निर्मला को फिर चोदा और उसके गोल और मोटे चूतड़ जो एक मोटे गद्दे के समान थे, मुझको बहुत ही सेक्सी लगते थे और मैं उनको बार बार छूना चाहता था.
नाश्ता करने के बाद मैं और निर्मला दोनों नदी की ओर चल पड़े. नदी के निकट आते ही निर्मला मुझसे आगे चलने लगी और मैं उसके पीछे थोड़ी दूर पर चलने लगा.फिर उसने मुझको इशारा किया और हम एक घनी झड़ी की ओर मुड़ गए.काँटों से बचते हुए हम एक जगह पहुँचे जहाँ हम बिल्कुल छिप गए थे लेकिन नदी की तरफ़ हम साफ़ देख सकते थे.
निर्मला अपने साथ एक चादर लाई थी और हमने वो बिछा ली और हम दोनों आलखन से बैठ गए. फिर मैंने जगह का जायज़ा लिया और देखा कि वो तो पूरी तरह से ढकी छुपी थी और हमको कोई देख भी नहीं सकता था.
नदी पर अभी इक्का दुक्का औरतें ही नहा रहीं थीं लेकिन उनमें कोई देखने लायक नहीं थी. तो थोड़ी फुर्सत थी तो मैंने निर्मला को चूमना शुरू कर दिया, उसके ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर उसके गोल उरोजों के साथ खेलना शुरू कर दिया.
फिर एक हाथ उसकी धोती के अंदर डाल दिया और उसकी बालों भरी चूत को मसलने लगा, वो धीरे धीरे गरम होने लगी, उसने मेरी पैंट से मेरे लंड को निकाल लिया, वो उसका हाथ लगते ही एकदम अकड़ गया.वो उसको हाथ से हिलाने लगी, तब तक उसकी चूत भी गर्म हो कर पनिया गई थी.
निर्मला बोली- बैठ कर ही कर लेते हैं.वो कैसे?उसने अपनी टांगें पसार दी और धोती को ऊपर कर दिया और मुझको टाँगों के बीच मैं बैठने के लिए कहने लगी. मैं लंड को निकाल कर टांगों के बीच बैठ गया और तब वो अपने हाथ से मेरा लौड़ा अपनी चूत के मुंह पर रख कर मुझको धक्का मारने के लिए बोलने लगी.
एक ही धक्के में लौड़ा पूरा अंदर चला गया और मैंने अपने हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए और ज़ोर से धक्के मारने लगा. वो भी जवाबी धक्के मारती रही.उधर हमने नदी की तरफ देखा तो एक जवान नई दुल्हन नहाने के लिए कपड़े बदल रही थी.गाँव के हिसाब से वो काफी जवान और सुन्दर लग रही थी.उसने ब्लाउज उतार दिया बिना किसी शर्म झिझक के उसके छोटे लेकिन कठोर उरोज बाहर आ गए थे.इधर मैं और निर्मला एक दूसरे से अपने अंगों से जुड़े थे, लेकिन हमारी नज़रें तो नदी किनारे उस नई दुल्हनिया पर अटकी थीं.
उसने सिर्फ ब्लाउज ही उतारा और पेटीकोट के साथ ही नहाने लगी. वो सारे शरीर पर साबुन लगा रही थी और खास तौर पर अपनी चूत पर तो वो 5 मिन्ट साबुन रगड़ती रही. और फिर वो नदी के अंदर चली गई और तैरती हुई थोड़ी दूर चली गई.पानी से गीला उसका बदन चमक रहा था, जब वो नदी की सतह से ऊपर आती थी तो उसके गोल उरोज धूप में चमकते थे. ऐसा लगता था कि सोने की परी नदी में तैर रही हो.
यह सब देख कर मेरे लंड पूरे जोश में आ गया और मैंने अपने हाथ निर्मला की गांड के नीचे रखे और फ़ुल स्पीड से धक्के मारने लगा.‘ओह्ह्ह ओह्ह…’ करती हुई निर्मला तो झड़ गई लेकिन मैं अभी भी जोश में था, आँखें उस अर्धनग्न स्त्री पर थी जो मुक्त पंछी की तरह नदी में तैर रही थी और जिसका पेटिकोट भी उसके शरीर के साथ चिपक गया था और उस गीले कपड़े में से उसकी गोल जांघें और चूतड़ साफ़ दिख रहे थे, हल्की झलक उसकी काली झांटों की भी मिल रही थी.
मैं बेतहाशा निर्मला को चूमने लगा और उसके चूतड़ जो मेरे हाथों में थे तेज़ी से आगे पीछे करने लगा.और फिर मैंने निर्मला को घोड़ी बना दिया और उसको पीछे से तेज़ तेज़ चोदने लगा.लेकिन मेरी नज़र उस नहाती हुई औरत पर ही थी.
जब निर्मला एक बार और छूटी तो मैं भी उसको छोड़ कर वहाँ बैठ गया, तभी वो औरत जिधर हम बैठे थे उधर आने लगी. उसके हाथ में पेटीकोट और ब्लाउज था.मैंने घबरा के निर्मला को देखा, वो मस्त बैठी थी. मेरा डर समझते हुए उसने अपने होंटों पर ऊँगली रख कर कहा कि चुप रहूँ.मैं हैरानी से उस आती हुई औरत को देखने लगा जो हमारी झाड़ी के निकट आ गई लेकिन 10 फ़ीट पहले रुक गई और इधर उधर देखने के बाद उसने अपना गीला पेटीकोट उतार दिया और धुला हुआ पहनने लगी.
उसी समय उसकी चूत के पूरे दर्शन हो गए. काले चमकीले बालों से घिरी चूत को उसने गीले पेटीकोट से पौंछा.ऐसा करते समय उसकी चूत के अंदर की लाली भी दिख गई, मैं निहाल हो गया.
वो जल्दी से पेटीकोट बदल कर वापस नदी किनारे चली गई लेकिन मेरे लंड का बुरा हाल कर गई.मेरी हालत देख कर निर्मला को तरस आया और उसने अपने मुंह से मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया. उसके ऐसा करते ही मेरा फव्वारा छूटा और निर्मला ने सारा रस अपने मुंह में ले लिया.हम थक कर वहीं पसर गए.
मुझको याद आया कि यह नज़ारा मैंने पहले भी देखा था, नैना के साथ जब हमने छाया को नहाते हुए देखा था.बिलकुल वही दृश्य था लेकिन छाया तब बहुत ही सेक्सी लग रही थी क्यूंकि वो चुदाई का आनन्द काफी समय ले चुकी थी और यह लड़की तो नई नई शादी का आनन्द ले रही थी.
अब नदी किनारे कोई सुन्दर औरत नहीं थी जिसको देखने के लिए हम रुकते तो जल्दी ही वहाँ से चल दिए और कॉटेज में आ गए. जहाँ हमने लेमन पी फिर वहीं लेट गए.मैंने निर्मल को कहा कि वो घर जाये, मैं बाद में आता हूँ.वहीं यह सोचने लगा कि लखनऊ में मुझको चूत कहाँ से मिलेगी. उसका इंतज़ाम तो करना पड़ेगा. मैं चाहता था कि अभी तक मेरे पास गाँव की लड़की की तरह ही होनी चाहिए वरना वहाँ चुदाई का प्रबंध नहीं हो पायेगा.
मैंने सोचा कि यह काम तो छाया ही कर सकती है तो मैंने निर्मला को छाया को बुलाने का काम सौंपा और वो शाम को मुझको कॉटेज में मिली.तब मैंने उसको सारी बात बताई और कहा कि मेरे मतलब की कोई गाँव वाली लड़की लखनऊ के लिए ढूंढ दे.उसने वायदा किया कि वो जल्दी ही मेरी मर्ज़ी की लड़की ढूंढ देगी.यह कह कर वो चली गई.

कहानी जारी रहेगी.

 
छाया एक नई लड़की को लाई

जैसे जैसे मेरे लखनऊ जाने के दिन निकट आ रहे थे मेरे हाथ पैर फूलने लगे और इसका मुख्य कारण था कि मेरा वहाँ की चुदाई का प्रबंध नहीं हो पा रहा था.एक दिन शाम को घर लौटा तो देखा कि हवेली में बड़ी चहल पहल हो रही थी.निर्मला को बुला कर पूछा- यह क्या हो रहा है हवेली में?वो बोली- छोटे मालिक, वो लखनऊ से आपके रिश्तेदार आये हैं और मालकिन ने हुक्म दिया है कि आप जैसे बाहर से लौटें, आपको बैठक में भेज दिया जाए.
मैं सोचने लगा कि ऐसा कौन आया होगा लखनऊ से?फिर हाथ मुंह धोकर मैं बैठक में गया तो वहाँ एक बुज़र्ग आदमी और उसके साथ उसकी जवान पत्नी और दो जवान लड़कियाँ बैठी थी.
मुझे देखते ही मम्मी ने आगे बड़ कर मेरे को उन सबसे मिलवाया.मम्मी ने बताया कि वो बुजुर्ग मेरे दूर के ताऊ थे और उनके साथ उनकी पत्नी और उनकी दो बेटियाँ थी जो लखनऊ में ही पढ़ रहीं थी. ताऊजी भी लखनऊ में रहते थे.

मम्मी के इशारे पर मैंने ताऊजी और ताई जी के चरण स्पर्श किये और वहीं खाली कुर्सी पर बैठ गया.तब मैंने ध्यान से उन सबको देखा, ताऊजी हट्टे कट्टे लग रहे थे और ताई भी उनसे उम्र में काफी छोटी लग रही थी. ऐसा नहीं लग रहा था कि वो दोनों बेटियों की माँ हो, दोनों ही अच्छी दिख रहीं थी.
मैं चुपचाप बैठा रहा.तभी ताऊ जी ने पूछा- कौन से कॉलेज में दाखिला लिया है बेटा तुमने?मेरे बोलने से पहले ही मम्मी ने बता दिया.दोनों लड़कियाँ एकदम चहक उठीं- अरे हम भी उसी कॉलेज में पढ़ती हैं. चलो अच्छा हुआ कि सतीश का साथ हो जाया करेगा वहाँ.मैं भी थोड़ा मुस्करा दिया.
थोड़ी देर बाद वह परिवार वापस लखनऊ चला गया और लड़कियाँ ज़ोर देकर कह गई कि लखनऊ में आऊँ तो उन मैं उनसे ज़रूर मिलूँ. दोनों के साथ सम्बन्ध बनाने का विचार नहीं आया हालाँकि लड़कियाँ अच्छी लगी.
शाम हो गई और मैं घूमने निकल गया. घूमते हुए मैं अपनी कॉटेज की तरफ निकल गया, चौकीदार ने दरवाज़ा खोल दिया और वहाँ मैं एक लेमन की बोतल, जो आइस बॉक्स में ठंडी हो रही थी, निकाल कर पीने लगा.
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, खोला तो देखा कि वहाँ चन्दा खड़ी थी.मैं घबरा गया कि यह क्या कर रही है यहाँ.
वो अंदर आ गई और बोली- छोटे मालिक मेरा तो काम नहीं बना.मैं बोला- तुम्हारा कौन सा काम?‘वही गर्भवती होने का!’‘ओह्ह, तो फिर मैं क्या कर सकता हूँ?’‘एक बार और चोदो न?’ वो गिड़गड़ाते हुए बोली.
‘नहीं नहीं चंदा, ऐसे थोड़े होता है. मैं कल आऊँगा निर्मला के साथ, तब तुम आ जाना.’‘किस वक़त छोटे मालिक?’‘नाश्ता करके आ जायेंगे दोनों… ठीक है? तुम्हारी माहवारी कब हुई थी इस महीने?’‘वो तो हो चुके हैं 10 दिन!’‘तो फिर ठीक है. कोशिश कर देखो शायद काम बन जाए?’
मैं दरवाज़े पर उसको ले गया और बाहर कर दिया. मेरा मन बहुत घबरा रहा था कि यह क्या हो रहा है? इस तरह गाँव की सारी औरतें आने लगी तो मैं बदनाम हो जाऊँगा.कॉटेज को ताला लगा कर मैं वापस चल दिया.
रास्ते में मुझको छाया अपनी सहेली के साथ दिख गई. मैंने उसको आवाज़ दी और वो आ गई, उसकी सहेली दूर खड़ी रही और हम बातें करने लगे.मैंने उसको चंदा की बात बताई, वो भी बहुत नाराज़ हुई, कहने लगी- कल मैं उसको खुद ले कर आऊँगी. आप उसको एक बार और चोद दो छोटे मालिक, शायद उसका भाग्य भी चमक जाए.‘चलो, कल देखेंगे.’
‘छोटे मालिक इस लड़की को ध्यान से देखो, कैसी है?’‘यह कौन है?’‘इसका नाम गंगा है और इस का पति इसको छोड़ गया, बम्बई में उसने दूसरी शादी कर ली है. बेचारी बड़ी मजबूर है. मैंने इससे बात कर ली है और यह तुम्हारे लिए लखनऊ काम करने के लिए तयार है.’‘अच्छा कल सुबह तुम इसको और उस साली चंदा को ले आना, कॉटेज में बात कर लेंगे. अच्छा मैं चलता हूँ.’
यह कह कर मैं घर वापस आ गया.रात को निर्मला से चुदाई हो नहीं सकी क्यूंकि उसकी माहवारी शुरू हो चुकी थी.
अगले दिन मैं नाश्ता करके कॉटेज में पहुँच गया. वहाँ सिवाए चौकीदार के और कोई नहीं था. तो उसको मैंने छुट्टी दे दी.थोड़ी देर बाद चंदा और गंगा के साथ छाया आ गई.छाया मुझ को दूसरे कमरे में ले गई और बोली- छोटे मालिक आप पहले चंदा से निबट लो, फिर मैं आपकी गंगा से बात करवा देती हूँ.
वो बाहर गई और चंदा को लेकर आ गई, चंदा बोली- यह गंगा यहाँ क्या कर रही है? कहीं यह हमारा भांडा न फोड़ दे?‘नहीं चंदा बहन, वो हमारे साथ है. तुम अपना काम करवाओ.’‘नहीं. तुम ऐसा करो कि गंगा को भी यहीं बुला लो और हम दोनों के साथ छोटे मालिक कर देंगे.’
मैं बोला- ऐसा नहीं हो सकता है, मैं गंगा को बिल्कुल नहीं जानता तो उसको कैसे चोद सकता हूँ.छाया बोली- गंगा की जिम्मेवारी मैं लेती हूँ, आप दोनों चुदाई शुरू करो, गंगा और मैं बाद में बात कर लेंगे छोटे मालिक से.
यह कह कर छाया तो बाहर चली गई और जब मैंने मुड़ कर देखा तो चंदा धोती उतार चुकी थी और ब्लाउज उतार रही थी.इस बार मुझको चंदा को देख कर कोई ख़ुशी नहीं हो रही थी.वो जल्दी से आई, उसने मेरे लंड को मुंह में ले लिया और वो कुछ ही देर में पूरा खड़ा हो गया.

 
मैं बिस्तर पर लेट गया और उसको इशारे से अपने ऊपर आने को कहा.वह जल्दी से आई और मेरे लौड़े के ऊपर बैठ गई, लंड को चूत में डाल दिया.उसकी चूत एकदम गीली और भट्टी के समान तप रही थी, वो मुझ को चूम भी रही थी और एक ऊँगली से अपनी चूत भी रगड़ रही थी. पांच मिनट की चुदाई के बाद वो छूट गई और नीचे लेट गई.
लेकिन मैंने उसको घोड़ी बना कर चोदना शुरू किया.एक हाथ से उसके गोल गोल उरोजों को मसल रहा था और दूसरी और उसके मोटे चूतड़ों को हल्के हल्के हाथ से मार रहा था. शायद हाथ की मार से उसको बहुत आनन्द आ रहा होगा क्यूंकि वो फिर झड़ गई.
अब मैंने अपनी धक्कों की स्पीड बहुत तेज़ कर दी और उसकी कमर को पकड़ कर मैं उसको फुल स्पीड से धक्के मार रहा था.तभी मैंने महसूस किया कि मेरा फव्वारा भी छूटने वाला है, मैंने लौड़ा पूरा निकाल कर फिर ज़ोर से धक्का मारा और उसको चंदा की बच्चेदानी के अंदर डाल कर मैंने अपना फव्वारा छोड़ दिया.जब गर्म पानी चंदा की बच्चेदानी में गया तो उसने गांड एकदम ऊपर कर दी और वैसे ही गांड ऊपर करके लेट गई. उसकी कोशिश थी कि वीर्य की एक बूँद भी नीचे न गिरे.मैं उसको वैसे ही छोड़ कर बाहर आ गया जहाँ छाया और गंगा बैठी थी.
छाया को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन गंगा की आँखें फटी की फटी रह गई. मेरे 7 इंच के लंड को देख कर शायद वो एकदम हैरान रह गई. मेरा लंड अभी भी हवा में लहरा रहा था.मैं छाया से बोला- एक लेमन मेरे लिए खोल दो और तुम सब को भी पिला दो.और सोफे पर लुढ़क गया.
छाया और गंगा लेमन पीती हुई मेरे पास आ गई. छाया मेरे लंड को तौलिये से साफ़ करने लगी और गंगा को मेरे पसीने को सुखाने के लिए इशारा किया.
तभी चंदा कपड़े पहन कर वहाँ आई और छाया ने उसको समझाया- देख चंदा, छोटे मालिक कुछ दिनों में शहर चले जाएंगे. यह तेरी आखरी चुदाई है. इसके बाद तू अपने आप कुछ कर, वो तेरी मर्ज़ी है. अब तू जा, मैं और गंगा बाद में आती हैं.
उसके जाने के बाद छाया मेरे लंड के साथ खेलने लगी और उसके इशारे पर गंगा भी मेरे अंडकोष को हाथों में लेकर मसलने लगी.गंगा को ध्यान से देखा तो वो एक बहुत सीधी साधी लड़की लगी, दिखने में वो काफी साधारण लग रही थी.गौर से देखा तो उसका चेहरा काफी दर्द लिए हुए था. जिसका पति उसको छोड़ गया हो, उसके मन और तन की क्या झलक दिख सकती है सिवाए कि वो दोनों ही उदासी से भरे होंगे.
उसको देखकर मेरे मन में यह इच्छा जागृत हुई कि इस बेसहारा लड़की की मदद ज़रूर करनी चाहये. मैंने उससे पूछा- कब तेरी शादी हुई थी?वो बोली- 4 साल हो गए और सिर्फ एक साल मेरे साथ रह कर मेरा पति मुंबई चला गया और फिर लौट कर ही नहीं आया. 6 महीने पहले उसका एक साथी वापस आया और उसने बताया कि उसने वहाँ दूसरी शादी कर ली है और उसके 2 बच्चे भी हैं.यह कहते हुए उसकी आँखों में पानी भर आया.
छाया ने उसको चुप कराया और फिर वो उसके कपड़े उतारने लगी.
उस का ब्लाउज उतारते ही मेरा लंड एकदम खड़ा हो गया. जब उसकी धोती और पेटीकोट उतरा तो वो एक कुंवारी लड़की की तरह लग रही थी, ऐसा मुझ को लगा.उसकी चूत पर बहुत ही घने बालों का छाता बना हुआ था और उसके चूतड़ भी छोटे लेकिन गोल थे. उस मम्मे भी किसी कुंवारी लड़की की तरह ही थे, छोटे और गोल और सॉलिड थे.जीवन में पहली बार एक कुंवारी लड़की की तरह दिखने वाली लड़की को देखा था. इससे पहले मेरे निकट आई सारी औरतें भरे जिस्म वाली थीं जिन के उरोज और नितम्ब काफी बड़े और गोल होते थे, वो काफी चुदी और मौज मस्ती कर चुकी औरतें थीं.
छाया बोली- छोटे मालिक कैसी है यह गंगा?मैं बोला- यह तुम सबसे अलग लगती है, यह ऐसे लगती है जैसे कुंवारी हो अभी!छाया बोली- सही कहा आपने, बेचारी बहुत ही कम चुदी है यह!‘फिर तो चुदाई का अलग ही मज़ा आएगा. क्यों गंगा, तुम तैयार हो क्या?’वो शर्मा गई और हाँ में सर हिला दिया.
‘छाया कुछ नई तरह चुदाई करते हैं आज. तुम बताओ कैसे करें नए तरह से?’
छाया कुछ सोचते हुए बोली- ऐसा करते है कि गंगा को दुल्हन की तरह से सजाते हैं और फिर आप इसका घूँघट उठा कर सुहागरात वाला सारा कार्यक्रम करना.‘वाह छाया, क्या आईडिया है लेकिन आज तो संभव नहीं हो सकता. उसके लिए तैयारी करनी पड़ेगी. आज क्या करें यह बताओ?’
वो चुप रही तब मैं बोला- छाया, आज हम तीनों चुदाई करते हैं, पहले गंगा को चोदते हैं हम दोनों फिर तुझको चोदते हैं हम दोनों.क्यों कैसी रही यह?
‘मैं कैसे कर सकती हूँ छोटे मालिक? मेरा 5वाँ महीना चल रहा है. मुझको खतरा है, आप गंगा के साथ करो न, बेचारी दो साल से नहीं चुदी है इस की चूत.’गंगा बोली- खतरा तो है, अगर छोटे मालिक तुम को पूरे जोश से चोदेंगे तो! वो तुझको बहुत धीरे और प्यार से चोदेंगे. क्यों छोटे मालिक?‘हाँ बिल्कुल!’ मैं बोला.

कहानी जारी रहेगी.

 
लखनऊ जाने की तैयारी

मैं बोला- छाया, आज हम तीनों चुदाई करते हैं, पहले गंगा को चोदते हैं हम दोनों फिर तुझको चोदते हैं हम दोनों.क्यों कैसी रही यह?
‘मैं कैसे कर सकती हूँ छोटे मालिक? मेरा 5वाँ महीना चल रहा है. मुझको खतरा है, आप गंगा के साथ करो न, बेचारी दो साल से नहीं
चुदी है इस की चूत.’गंगा बोली- खतरा तो है, अगर छोटे मालिक तुम को पूरे जोश से चोदेंगे तो! वो तुझको बहुत धीरे और प्यार से चोदेंगे. क्यों छोटे
मालिक?‘हाँ बिल्कुल!’ मैं बोला.

छाया ने भी अपनी धोती और ब्लाउज उतार दिया और वो मेरी एक तरफ लेट गई. दूसरी तरफ गंगा लेटी थी. छाया मेरी पुरानी चुदाई
सहेली थी सो उसको अच्छी तरह देखने की बहुत इच्छा थी.गर्भवती होने के बाद उसमें क्या बदलाव आया है, यह देखना चाहता था मैं! उसके मम्मों को ध्यान से देखा तो वो पहले से काफी मोटे
लगे, निप्पल भी बड़े हो गए थे, हाथ लगाने से ही पता चल रहा था कि वो काफी भारी हो गए हैं और उनका आकार भी पहले से काफी
बड़ा हो गया था.
मैंने कहा- छाया, तुम्हारे मम्मे तो बहुत बड़े हो गए हैं, और थोड़े भारी भी हो गए हैं ये दोनों.छाया हँसती हुई बोली- हाँ छोटे मालिक, नए मेहमान के स्वागत में ये दूध से भर रहे हैं धीरे धीरे. नया मेहमान तो आते ही दूध मांगेगा
न.‘अच्छा ऐसा होता है क्या? तो वह दूध कैसे पियेगा?’छाया और गंगा दोनों हंस पड़ी.छाया बोली- छोटे मालिक, यह चूची वो मुंह में डाल लेगा और इससे उसको दूध मिलेगा.‘लेकिन मैंने तो इनको बहुत चूसा है तब तो दूध नहीं निकला?’‘तब मैं गर्भवती नहीं थी न इस लिए कुछ नहीं निकला ना!’
गंगा मेरे खड़े लंड के साथ अभी भी खेल रही थी. मैंने एक हाथ उस की चूत में डाला तो देखा कि वो पानी से भरी हुई थी और कुछ
कतरे पानी के उसकी चूत से निकला कर बिस्तर की चादर पर गिर रहे थे, उसकी भगनासा को हाथ लगाया तो वो भी एकदम सख्त हो
रही थी.एक गहरा चुम्बन उसके होटों पर करने के बाद मैं उसके ऊपर चढ़ गया, उसकी पतली टांगों को फैला कर उनके बीच लंड का निशाना
ठीक लाल दिख रही चूत का बनाया और सिर्फ लंड का सर अंदर डाला.चूत एकदम टाइट लगी मुझे, मैं लंड के सर को धीरे धीरे आगे करने लगा. गंगा की आँखें बंद थी और उसके होंट फड़फड़ा रहे थे जैसे
कि बहुत प्यासे को पानी मिला हो!
आधा लण्ड जब अंदर चला गया तब लंड को ज़ोर का धक्का मारा तो वह पूरा जड़ समेत अंदर समा गया.‘उफ़्फ़’ इतनी टाइट चूत मेरे लंड ने पहले कभी नहीं देखी थी. सो वो अंदर जाकर आलखन करने लगा. फिर मैंने धीरे धीरे लंड के धक्के
मारने शुरू कर दिए.उधर छाया भी गंगा की चूत में ऊँगली से उस की भगनासा को रगड़ रही थी.
गंगा के मुंह से अचानक ही ज़ोर से ‘आआअहा… ओह्ह्ह्ह…’ की आवाज़ निकली और वो पूरी तरह से झड़ गई और उसने पूरे ज़ोर से मुझ
को अपनी बाँहों और जांघों में जकड़ लिया.उसका शरीर रुक रुक कर कम्पकंपा रहा था.जब उसने आँखें खोली तो मेरा सर नीचे करके मेरे होटों पर एक जलता हुआ चुम्बन दे दिया और उसने अपनी टांगों को फिर चौड़ा कर
दिया और अब चूतड़ उठा कर मेरे लंड को अपने अंदर आने का निमंत्रण देने लगी.
अब मैंने अपनी आदत के अनुसार उसकी पहले धीरे और बाद में स्पीड से चुदाई शुरू कर दी. कुछ धक्के धीरे और फिर फुल स्पीड के
धक्के जैसा कि मुझको नैना ने सिखाया था.जब वो फिर ‘आहा ओह्ह्ह’ करने लगी तो मैंने फुल स्पीड धक्के मार कर उसे छूटा दिया और मैं गंगा से हट कर अब छाया की तरफ
आ गया.
छाया हमारी चुदाई से काफी गर्म हो चुकी थी, मैंने उसके उन्नत मम्मो को एक बाद एक चूसना शुरू कर दिया, एक उंगली उसकी चूत
में उसकी भगनासा को रगड़ रही और दूसरी मैंने उसकी गांड में डाल दी.
जब मैं उसके ऊपर आने लगा तो उसने मुझको रोक दिया और कहा- बगल से कर लो, ऊपर से ठीक नहीं बच्चे के लिए.मैंने पीछे से उसकी चूत में ज्यादा नहीं, 2-3 इंच तक लंड डाल दिया और बहुत ही धीरे से धक्के मारने लगा.मेरी उंगली जो उसकी भगनासा पर थी, उसको छाया अपने जांघों में दबाने लगी और कोई 5 मिनट की चुदाई के बाद उसका हल्का सा
झड़ गया.मैंने उससे पूछा- क्या तेरा पति भी ऐसे ही तुझको चोदता है?‘बिल्कुल नहीं! उसको तो मैं अपने पास भी नहीं आने देती छोटे मालिक! अक्सर वो शराब पिए होता है, कहीं गलती से ज़ोर का धक्का
लग गया तो नुकसान हो जाएगा बच्चे को.’‘अच्छा करती हो!’
‘और तुम कहो गंगा, मेरे साथ चलोगी लखनऊ?’‘ज़रूर चलूंगी छोटे मालिक!’मैंने छाया से कहा- कल ले आना गंगा को और मम्मी से मिलवा देना. और अगर उन्होंने हाँ कर दी तो कल से काम शुरू कर देना
गंगा तुम… ठीक है?‘ठंडा पीना है क्या?’दोनों बोलीं- नहीं छोटे मालिक, हम चलती हैं.
मैंने उठ कर पहले छाया को एक ज़ोरदार प्यार की जफ़्फ़ी डाली और उसके होटों को भी चूमा और फिर गंगा को भी ऐसा ही किया.दोनों
ख़ुशी ख़ुशी चली गई.
थोड़ी देर बाद मैं भी वहाँ से घर आ गया, वहाँ मम्मी मेरा इंतज़ार कर रही थी और हम दोनों ने मिल कर मेरा सूटकेस तैयार कर दिया.यह फैसला हुआ था कि मैं अपनी लखनऊ वाली कोठी, जो कभी कभी इस्तेमाल होती थी, में जाकर रहूँगा. वहाँ एक चौकीदार अपने
परिवार के साथ नौकरों की कोठरी में रहता था, उसको फ़ोन पर सब बता दिया था और उसने सारी कोठी की सफाई वगैरा करवा दी थी.मम्मी पापा दोनों मुझको छोड़ने के लिए जाने वाले थे.

कहानी जारी रहेगी.

 
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