desiaks
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गंगा और पारो
मम्मी मेरा इंतज़ार कर रही थी और हम दोनों ने मिल कर मेरा सूटकेस तैयार कर दिया.यह फैसला हुआ था कि मैं अपनी लखनऊ वाली कोठी, जो कभी कभी इस्तेमाल होती थी, में जाकर रहूँगा. वहाँ एक चौकीदार अपने परिवार के साथ नौकरों की कोठरी में रहता था, उसको फ़ोन पर सब बता दिया था और उसने सारी कोठी की सफाई वगैरा करवा दी थी.मम्मी पापा दोनों मुझको छोड़ने के लिए जाने वाले थे.
और फिर अच्छे मुहूर्त में हम सब लखनऊ के लिए रवाना हो गए. मम्मी पापा के अलावा गंगा भी साथ ही चल रही थी.वहाँ पहुंचे तो ड्राइवर हमारी नई कार को सीधे कोठी के मुख्या द्वार की तरफ ले गया. हमारा चौकीदार अपने परिवार के साथ हमारा स्वागत करने के लिए खड़ा था.वहाँ चौकीदार लखन लाल ने हमारा स्वागत किया और फिर हम अंदर आ गए. कोठी का हाल कमरा काफी बड़ा था जिस पर नए फैशन का सोफासेट पड़ा था और सजावट भी काफी अच्छी थी.और फिर हमने अपना कमरा देखा जो बहुत आलखनदेह लग रहा था.
तभी मम्मी गंगा को समझाने लगी- सतीश का सारा सामान सूटकेस से निकाल कर इन दो अलमारियों में सजा दे.फिर सबको समझा कर शाम के समय मम्मी पापा घर वापस चले गए.हमारे गाँव से लखनऊ केवल चार घंटे का सफर था.
मैं गंगा की कोठरी देखने गया जो कोठी के एकदम पीछे थी.मैंने गंगा से कहा- कल सारी जगह देखने के बाद फैसला करेंगे. आज की रात तू मेरे कमरे में ही सोयेगी.
रसोई में खाना बनाने वाली एक अधेड़ उम्र की औरत थी जो विधवा थी, देखने में काफी सेक्सी लगती थी.
गंगा और मेरी यह पहली रात थी एक कमरे में, मैंने खाना अपने कमरे में मंगवा लिया और खाना खत्म करने के बाद जब गंगा आई. तो मैंने उसको कहा- गंगा, उस दिन मैं तुझ को अच्छी तरह देख नहीं पाया, आज तू अपना जलवा दिखा.वो बोली- अच्छा छोटे मालिक.
और गंगा ने धीरे धीरे कपड़े उतारने शुरू कर दिये, पहले गुलाबी रंग की धोती उतारी, फिर ब्लाउज उतार दिया और आखिर में उसने पेटीकोट भी उतार दिया.जैसा कि पहले लिख चुका हूँ, गंगा एक छरहरी और कुंवारी दिखने वाली लड़की लग रही थी, उसके मम्मे भी छोटे लेकिन सॉलिड लग रहे थे, उसका पेट भी अन्दर को था लेकिन चूतड़ छोटे लेकिन गोल लग रहे थे.
वो नग्न होकर मेरे पास धीरे धीरे आ गई और मैं भी पूरा नग्न होकर उसके सामने खड़ा हो गया. मेरा लंड अकड़ा हुआ खड़ा था और उसकी बालों से भरी चूत को सलामी दे रहा था.मैंने आगे बढ़ कर उस को अपनी बाहों में भर लिया और फिर उसको उठा कर सारा कमरा घूम लिया.
उसको लिटा दिया और उसकी टांगों में बैठ कर धीरे से लंड उसकी टाइट चूत में डाल दिया. उसकी चूत एकदम गीली और पूरी तरह से तप रही थी.मैं उसके मम्मों को चूसने लगा और हल्के हल्के धक्के भी मारता रहा, वो भी नीचे से धक्के मार रही थी.
थोड़ी देर बाद ऐसा लगा कि गंगा की चूत से बहुत पानी बह रहा है. चुदाई रोक कर देखा तो हैरान हो गया कि उसकी चूत में से पानी का छोटा सा फव्वारा निकल रहा है, उसको सूंघ कर देखा तो वो पेशाब नहीं था लेकिन चूत का रस था.यह देख कर मैं फिर पूरे जोश के साथ उसको चोदने लगा और थोड़ी देर में गंगा फिर झड़ गई, बुरी तरह कांपती हुई वो मेरे से सांप के तरह लिपट गई.गंगा का शरीर दुबला था लेकिन यौन आकर्षण भी बहुत था उसमें!
उस रात हम दोनों ने कई बार चुदाई की और गंगा ने जब तौबा की तभी उसको छोड़ा. फिर हम एक दूसरे के आलिंगन में ही सो गये.
सुबह जब आँख खुली तो गंगा जा चुकी थी और थोड़ी देर बाद वो मेरी चाय ले कर आ गई.चाय देने के बाद वो खड़ी रही.मैंने पूछा- कुछ कहना है गंगा?वो हिचकते हुए बोली- छोटी मालिक, वो जो रसोईदारिन है, पूछ रही थी कि मैं आपके कमरे में क्यों सोई थी कल रात?‘अच्छा… वो क्यों पूछ रही थी?’‘मुझ को ऐसा लगता है कि उसको हम दोनों पर शक हो गया है!’‘अच्छा, अभी तो मैं कॉलेज जा रहा हूँ लेकिन वहाँ से वापस आकर उससे बात करूंगा!’
शाम को जब मैं कॉलेज से लौटा तो गंगा मेरे लिए चाय और कुछ नमकीन ले आई. चाय पीने के बाद मैंने रसोइयिन को बुलाया.जब वो आई तो मैंने उसको अच्छी तरह से देखा, 30-35 की उम्र और भरे जिस्म वाली औरत थी, देखने में कॅाफ़ी आकर्षक थी, उसके स्तन और नितम्ब दोनों ही काफी बड़े थे, चेहरा भी आकर्षक था और काफी सेक्सी लग रही थी.
मैंने पूछा- आंटी जी, आपका नाम क्या है?वो बोली- छोटे मालिक, मेरा नाम परबतिया है लेकिन सब मुझको पारो के नाम से बुलाते हैं.‘आप कब से यहाँ काम कर रही हो?’वो बोली- कल ही चौकीदार लखन लाल बुला कर ले आया था और कहा था कि छोटे मालिक का खाना वगैरह बनाना है और कोठी की साफ़ सफाई करनी है और दिन रात का काम है.‘ठीक है, कितनी तनख्वाह का बोला था उसने?’‘उसने कहा था कि शुरू में 50 रुपए महीना देंगे और फिर बढ़ा देंगे.’‘अच्छा, आप इसी शहर की हो या फिर किसी गाँव की हो?’‘छोटे मालिक, मैं आपके गाँव के पास ही एक गाँव की हूँ. लखनलाल के भाई ने मुझको बताया था तो मैं यहाँ आ गई.’
मैंने लखन लाल को कहा कि इन दोनों को जो कोठरी पसंद हो दे देना और चारपाई इत्यादि का भी इंतज़ाम कर देना.लखनलाल को गेट पर भेज कर मैं अंदर आ गया और पारो को भी कहा कि साथ आये.
फिर मैंने पारो को कहा- ऐसा है आंटी, मैं रात को बहुत डर जाता हूँ तो मेरे साथ मेरे कमरे में कोई न कोई ज़रूर सोता है. इसीलिए गंगा मेरे साथ सोती है और वहाँ गाँव में भी मेरे काम वाली नौकरानी मेरे ही कमरे में सोती थी. अगर आप सोना चाहो तो आप भी सो सकती हो! क्यों?
पहले वो हिचकिचाई फिर कहने लगी- ठीक है छोटे मालिक, मैं भी अकेले में घबराऊँगी सो आप दोनों के साथ सो जाय करूँगी.‘चलो तय हो गया कि तुम दोनों रात को इसी कमरे में सोया करोगी. आज रात खाने में क्या बना रही हो?’‘जो आप बोलो?’‘अच्छा तो मटन ले आना आधा सेर, वही बना लेना. देखते हैं कैसा बनाती हो?’
मम्मी मेरा इंतज़ार कर रही थी और हम दोनों ने मिल कर मेरा सूटकेस तैयार कर दिया.यह फैसला हुआ था कि मैं अपनी लखनऊ वाली कोठी, जो कभी कभी इस्तेमाल होती थी, में जाकर रहूँगा. वहाँ एक चौकीदार अपने परिवार के साथ नौकरों की कोठरी में रहता था, उसको फ़ोन पर सब बता दिया था और उसने सारी कोठी की सफाई वगैरा करवा दी थी.मम्मी पापा दोनों मुझको छोड़ने के लिए जाने वाले थे.
और फिर अच्छे मुहूर्त में हम सब लखनऊ के लिए रवाना हो गए. मम्मी पापा के अलावा गंगा भी साथ ही चल रही थी.वहाँ पहुंचे तो ड्राइवर हमारी नई कार को सीधे कोठी के मुख्या द्वार की तरफ ले गया. हमारा चौकीदार अपने परिवार के साथ हमारा स्वागत करने के लिए खड़ा था.वहाँ चौकीदार लखन लाल ने हमारा स्वागत किया और फिर हम अंदर आ गए. कोठी का हाल कमरा काफी बड़ा था जिस पर नए फैशन का सोफासेट पड़ा था और सजावट भी काफी अच्छी थी.और फिर हमने अपना कमरा देखा जो बहुत आलखनदेह लग रहा था.
तभी मम्मी गंगा को समझाने लगी- सतीश का सारा सामान सूटकेस से निकाल कर इन दो अलमारियों में सजा दे.फिर सबको समझा कर शाम के समय मम्मी पापा घर वापस चले गए.हमारे गाँव से लखनऊ केवल चार घंटे का सफर था.
मैं गंगा की कोठरी देखने गया जो कोठी के एकदम पीछे थी.मैंने गंगा से कहा- कल सारी जगह देखने के बाद फैसला करेंगे. आज की रात तू मेरे कमरे में ही सोयेगी.
रसोई में खाना बनाने वाली एक अधेड़ उम्र की औरत थी जो विधवा थी, देखने में काफी सेक्सी लगती थी.
गंगा और मेरी यह पहली रात थी एक कमरे में, मैंने खाना अपने कमरे में मंगवा लिया और खाना खत्म करने के बाद जब गंगा आई. तो मैंने उसको कहा- गंगा, उस दिन मैं तुझ को अच्छी तरह देख नहीं पाया, आज तू अपना जलवा दिखा.वो बोली- अच्छा छोटे मालिक.
और गंगा ने धीरे धीरे कपड़े उतारने शुरू कर दिये, पहले गुलाबी रंग की धोती उतारी, फिर ब्लाउज उतार दिया और आखिर में उसने पेटीकोट भी उतार दिया.जैसा कि पहले लिख चुका हूँ, गंगा एक छरहरी और कुंवारी दिखने वाली लड़की लग रही थी, उसके मम्मे भी छोटे लेकिन सॉलिड लग रहे थे, उसका पेट भी अन्दर को था लेकिन चूतड़ छोटे लेकिन गोल लग रहे थे.
वो नग्न होकर मेरे पास धीरे धीरे आ गई और मैं भी पूरा नग्न होकर उसके सामने खड़ा हो गया. मेरा लंड अकड़ा हुआ खड़ा था और उसकी बालों से भरी चूत को सलामी दे रहा था.मैंने आगे बढ़ कर उस को अपनी बाहों में भर लिया और फिर उसको उठा कर सारा कमरा घूम लिया.
उसको लिटा दिया और उसकी टांगों में बैठ कर धीरे से लंड उसकी टाइट चूत में डाल दिया. उसकी चूत एकदम गीली और पूरी तरह से तप रही थी.मैं उसके मम्मों को चूसने लगा और हल्के हल्के धक्के भी मारता रहा, वो भी नीचे से धक्के मार रही थी.
थोड़ी देर बाद ऐसा लगा कि गंगा की चूत से बहुत पानी बह रहा है. चुदाई रोक कर देखा तो हैरान हो गया कि उसकी चूत में से पानी का छोटा सा फव्वारा निकल रहा है, उसको सूंघ कर देखा तो वो पेशाब नहीं था लेकिन चूत का रस था.यह देख कर मैं फिर पूरे जोश के साथ उसको चोदने लगा और थोड़ी देर में गंगा फिर झड़ गई, बुरी तरह कांपती हुई वो मेरे से सांप के तरह लिपट गई.गंगा का शरीर दुबला था लेकिन यौन आकर्षण भी बहुत था उसमें!
उस रात हम दोनों ने कई बार चुदाई की और गंगा ने जब तौबा की तभी उसको छोड़ा. फिर हम एक दूसरे के आलिंगन में ही सो गये.
सुबह जब आँख खुली तो गंगा जा चुकी थी और थोड़ी देर बाद वो मेरी चाय ले कर आ गई.चाय देने के बाद वो खड़ी रही.मैंने पूछा- कुछ कहना है गंगा?वो हिचकते हुए बोली- छोटी मालिक, वो जो रसोईदारिन है, पूछ रही थी कि मैं आपके कमरे में क्यों सोई थी कल रात?‘अच्छा… वो क्यों पूछ रही थी?’‘मुझ को ऐसा लगता है कि उसको हम दोनों पर शक हो गया है!’‘अच्छा, अभी तो मैं कॉलेज जा रहा हूँ लेकिन वहाँ से वापस आकर उससे बात करूंगा!’
शाम को जब मैं कॉलेज से लौटा तो गंगा मेरे लिए चाय और कुछ नमकीन ले आई. चाय पीने के बाद मैंने रसोइयिन को बुलाया.जब वो आई तो मैंने उसको अच्छी तरह से देखा, 30-35 की उम्र और भरे जिस्म वाली औरत थी, देखने में कॅाफ़ी आकर्षक थी, उसके स्तन और नितम्ब दोनों ही काफी बड़े थे, चेहरा भी आकर्षक था और काफी सेक्सी लग रही थी.
मैंने पूछा- आंटी जी, आपका नाम क्या है?वो बोली- छोटे मालिक, मेरा नाम परबतिया है लेकिन सब मुझको पारो के नाम से बुलाते हैं.‘आप कब से यहाँ काम कर रही हो?’वो बोली- कल ही चौकीदार लखन लाल बुला कर ले आया था और कहा था कि छोटे मालिक का खाना वगैरह बनाना है और कोठी की साफ़ सफाई करनी है और दिन रात का काम है.‘ठीक है, कितनी तनख्वाह का बोला था उसने?’‘उसने कहा था कि शुरू में 50 रुपए महीना देंगे और फिर बढ़ा देंगे.’‘अच्छा, आप इसी शहर की हो या फिर किसी गाँव की हो?’‘छोटे मालिक, मैं आपके गाँव के पास ही एक गाँव की हूँ. लखनलाल के भाई ने मुझको बताया था तो मैं यहाँ आ गई.’
मैंने लखन लाल को कहा कि इन दोनों को जो कोठरी पसंद हो दे देना और चारपाई इत्यादि का भी इंतज़ाम कर देना.लखनलाल को गेट पर भेज कर मैं अंदर आ गया और पारो को भी कहा कि साथ आये.
फिर मैंने पारो को कहा- ऐसा है आंटी, मैं रात को बहुत डर जाता हूँ तो मेरे साथ मेरे कमरे में कोई न कोई ज़रूर सोता है. इसीलिए गंगा मेरे साथ सोती है और वहाँ गाँव में भी मेरे काम वाली नौकरानी मेरे ही कमरे में सोती थी. अगर आप सोना चाहो तो आप भी सो सकती हो! क्यों?
पहले वो हिचकिचाई फिर कहने लगी- ठीक है छोटे मालिक, मैं भी अकेले में घबराऊँगी सो आप दोनों के साथ सो जाय करूँगी.‘चलो तय हो गया कि तुम दोनों रात को इसी कमरे में सोया करोगी. आज रात खाने में क्या बना रही हो?’‘जो आप बोलो?’‘अच्छा तो मटन ले आना आधा सेर, वही बना लेना. देखते हैं कैसा बनाती हो?’