desiaks
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एकाएक जगमोहन के मस्तिष्क में चमकती बिजलियां थम गईं। सब कुछ शांत नजर आने लगा। उसके मस्तिष्क ने देखा कि वो जगह बेहद शांत है। हरे-भरे पेड़ों से भरी जगह। वहां चट्टानें भी थीं, जमीन भी थी। कुछ दूर छोटी-सी बस्ती बनी नजर आ रही थी। वहां छांव भी थी, धूप भी थी। हवा में नमी थी। उसके कान पानी की छपाक-छपाक सुन रहे थे। फिर उसने समुद्र की लहरों को देखा जो किनारे पर आतीं और वहां आपस में टकराकर आवाज करतीं और झाग बनाती लुप्त हो जातीं। ये समुद्र के किनारे कोई जगह थी, परंतु शोर-शराबे से दूर। वहां के नजारे जगमोहन का मस्तिष्क देख रहा था कि तभी धूप में एक चट्टान पर पड़ा उसे कोई दिखा वो औंधे मुंह पड़ा हुआ था। जगमोहन को लगा जैसे वो उसके पास जा पहुंचा हो। वो कोई युवती थी। गुलाबी सूट पहने थी। दुपट्टा उसके गले में फंसा था। उसके सिर के बाल कंधे तक लम्बे थे, जो कि इस वक्त अस्त-व्यस्त थे। | जगमोहन को लगा कि जैसे वो उसे पहले भी कहीं देख चुका था वो औंधी पड़ी बेहोश जैसी लग रही थी।
जगमोहन को लगा जैसे वो उसके बेहद करीब पहुंच गया हो। उसका कंधा पकड़कर उसे हिला रहा हो। परंतु उसके हिलाने का युवती पर कोई असर नहीं हुआ तो उसने युवती को सीधा किया। उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही वो चौंका। वो नगीना थी जो कि इस वक्त गहरी बेहोशी में थी।
अगले ही पल जगमोहन का मस्तिष्क शांत होता चला गया। दिमाग में उठा तूफान–बिजलियां थम गई थीं।
जगमोहन गहरी-गहरी सांसें लेने लगा। उसने आंखें खोलीं। सिर पर रखे दोनों हाथ हटा लिए। देवराज चौहान की निगाह एकटक जगमोहन पर थीं।
“जगमोहन।” देवराज चौहान बोला—“क्या हुआ तुम्हें तुम...।”
“नगीना भाभी।” जगमोहन के होंठों से निकला।
क्या मतलब?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।
मुझे पूर्वाभास हुआ है। नगीना भाभी खतरे में है। हमें जल्दी-से नगीना भाभी के पास पहुंचना होगा।” जगमोहन तेज स्वर में बोला।
“लेकिन तुमने क्या देखा था।”
रास्ते में बताऊंगा।” जगमोहन कहता हुआ बाहर की तरफ दौड़ा।
देवराज चौहान भी उसके पीछे चल पड़ा।
“जब तुम्हें कुछ हुआ था तो मैंने तुम्हें पुकारा।” देवराज चौहान उसके पीछे बढ़ता कह उठा–“तब तुमने मुझे चुप रहने को कहा, लेकिन उस वक्त तुम्हारे होंठों से निकली आवाज तुम्हारी आवाज नहीं थी।”
“चुप रहो, मुझे पहले नगीना भाभी को बचाना है। मुझे लगता है जथूरा ने अपना कालचक्र छोड़ दिया है।”
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जगमोहन को लगा जैसे वो उसके बेहद करीब पहुंच गया हो। उसका कंधा पकड़कर उसे हिला रहा हो। परंतु उसके हिलाने का युवती पर कोई असर नहीं हुआ तो उसने युवती को सीधा किया। उसके चेहरे पर नजर पड़ते ही वो चौंका। वो नगीना थी जो कि इस वक्त गहरी बेहोशी में थी।
अगले ही पल जगमोहन का मस्तिष्क शांत होता चला गया। दिमाग में उठा तूफान–बिजलियां थम गई थीं।
जगमोहन गहरी-गहरी सांसें लेने लगा। उसने आंखें खोलीं। सिर पर रखे दोनों हाथ हटा लिए। देवराज चौहान की निगाह एकटक जगमोहन पर थीं।
“जगमोहन।” देवराज चौहान बोला—“क्या हुआ तुम्हें तुम...।”
“नगीना भाभी।” जगमोहन के होंठों से निकला।
क्या मतलब?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।
मुझे पूर्वाभास हुआ है। नगीना भाभी खतरे में है। हमें जल्दी-से नगीना भाभी के पास पहुंचना होगा।” जगमोहन तेज स्वर में बोला।
“लेकिन तुमने क्या देखा था।”
रास्ते में बताऊंगा।” जगमोहन कहता हुआ बाहर की तरफ दौड़ा।
देवराज चौहान भी उसके पीछे चल पड़ा।
“जब तुम्हें कुछ हुआ था तो मैंने तुम्हें पुकारा।” देवराज चौहान उसके पीछे बढ़ता कह उठा–“तब तुमने मुझे चुप रहने को कहा, लेकिन उस वक्त तुम्हारे होंठों से निकली आवाज तुम्हारी आवाज नहीं थी।”
“चुप रहो, मुझे पहले नगीना भाभी को बचाना है। मुझे लगता है जथूरा ने अपना कालचक्र छोड़ दिया है।”
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