XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - Page 27 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

तृभी नानिया उसकी बांहों के घेरे में फंसी घूम गई। दोनों की नजरें मिलीं। नानिया ने सोहनलाल के होंठों को चूमा।

मेरे लिए ये सब नया है।”

“नया?” ।

वो देखो, चादर का हाल। खून के दो-तीन धब्बे हैं वहां। तुम्हें इसी से समझना चाहिए कि रात जो हुआ, मेरे साथ पहली बार हुआ।”

सोहनलाल मुस्करा पड़ा। “मैं भाग्यशाली निकला जो तुम मुझे मिलीं।” सोहनलाल ने कहा।

शायद। लेकिन मैं तो कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी। पचास बरस से ।”

“अब मैं आ गया हूँ नानिया।”

तुम चले जाओगे।”

“तुम्हें कालचक्र से बाहर निकालूंगा।” सोहनलाल ने उसका गाल थपथपाया।

उसके बाद चले जाओगे।” सोहनलाल ने नानिया को गहरी निगाहों से देखा।

नानिया की आंखों में पानी चमकता दिखाई दिया।

“तुम मत जाना सोहनलाल।” नानिया का स्वर् भीग गया।

जाना तो मुझे है ही। यहां रुक नहीं सकता।”

मैं-मैं तुम्हारे बिना कैसे रह पाऊंगी। हर वक्त तुम मुझे याद आओगे।” आंसू गालों पर आ लुढ़के।।

सोहनलाल ने उंगली से उसके गालों पर आ पहुंचे आंसुओं को साफ किया।

“जानती हो नानिया, मैंने अभी तक शादी नहीं की।”

“नहीं की?”

नहीं। लेकिन अब कर सकता हूँ।” सोहनलाल मुस्करा पड़ा।

“तुम किसी से शादी कर रहे हो सोहनलाल?”

। किससे?”

अगर वो तैयार हो जाए तो।”

वो तैयार क्यों न होगी?” नानिया ने भीगे स्वर में कहा। सोहनलाल कुछ पल नानिया को देखता रहा फिर प्यार से कह उठा।

जानती हो नानिया। बीती रात तुम्हारे लिए ही नहीं, मेरे लिए भी महत्त्वपूर्ण थी।”

“तुम्हारे लिए कैसे?”

रात पहली बार मुझे लगा कि मेरे पास कोई सम्पूर्ण औरत मौजूद है। मैंने रात तुम्हें भोगा नहीं, प्यार किया तुमसे।”

नानिया की निगाह सोहनलाल के चेहरे पर फिरती रही।

“मुझसे शादी करोगी?”

मैं?” नानिया का स्वर कांप उठा।

हां तुम मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। क्या तुम्हें मंजूर

नानिया की आंखों से आंसू बह उठे। चेहरा खुशी से भर उठा।

“सच सोहनलाल। हम हम शादी करेंगे?”

“जरूर करेंगे। लेकिन यहां नहीं। ये पूर्वजन्म की दुनिया है। यहां से वापस जाना है मुझे, तुम्हें भी अपने साथ ले जाऊंगा आगे की दुनिया में। वहां मेरा घर है। उस घर में हम शादी करके रहेंगे नानिया।” सोहनलाल मुस्करा रहा था।

सोहनलाल ।” नानिया सोहनलाल से लिपट गई। सोहनलाल उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा।

वो दुनिया कैसी है सोहनलाल?”

बहुत अच्छी। वहां हर कोई आजाद है और अपनी मर्जी कर सकता है। तुम्हें वहां पहुंचकर अच्छा लगेगा।”

चलो, हम आज ही, उस दुनिया में चल देते हैं। नानिया बोली।

सोहनलाल ने नानिया को अपने से अलग किया और कह उठा।
ये आसान नहीं।”

क्यों?

मेरे साथ रहोगी तो धीरे-धीरे समझ जाओगी। सब कुछ अभी जानने की चेष्टा मत करो।”

ओह। लेकिन तुम कालचक्र में कैसे आ फंसे?” नानिया ने पूछा।

“जथूरा की वजह से।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“जथूरा नहीं चाहता था कि हम पूर्वजन्म में पहुंचे।” ।

हम कौन?”

“बहुत सारे लोग हैं। धीरे-धीरे तुम उनके बारे में जान जाओगी। जिसे तुम मेरा सेवक कहती हो, वो मेरा दोस्त है। हम दोनों कालचक्र में फंस चुके हैं तो बाकी लोग भी सुरक्षित न होंगे। उनके सामने भी समस्याएं आ रही होंगी। एक बात बताओ नानिया।”

क्या?”

कालचक्र से बाहर कैसे निकला जा सकता है, अगर मैं अपनी दुनिया में जाना चाहूं तो?”

शायद ये बहुत कठिन काम है।” नानिया गम्भीर हो उठी।

क्यों?”

ये कालचक्र का भीतरी हिस्सा है, जहां हम मौजूद हैं। कालचक्र की ऊपरी परत मौजूद होती तो शायद बाहर निकलने की चेष्टा की जा सकती थीं। परंतु यहां से बाहर नहीं निकला जा सकता।” ।

“कल चिमटा जाति का सरदार कह रहा था कि वो एक रास्ते को जानता है, वो बाहर जाता है।”

अगर उसकी बात सच है तो कम-से-कम वो रास्ता, तुम्हारी दुनिया में नहीं जाता होगा। मेरे खयाल में ऐसा कोई रास्ता है तो वो जथूरा की जमीन पर जाकर ही खुलेगा।” नानिया ने कहा।

“जथूरा की जमीन?”

हां। क्योंकि ये कालचक्र जथूरा का है इस वक्त। पहले कभी सोबरा का हुआ करता था। सोबरा ने जथूरा को तबाह करने के लिए कालचक्र उस पर फेंका कि सतर्क जथूरा ने कालचक्र को अपने काबू में कर लिया। अब ये कालचक्र जथूरा के इशारों पर ही काम करता है। ऐसी स्थिति में कोई कालचक्र से बाहर निकलेगा तो, वो अवश्य जथूरा की जमीन पर ही पहुंचेगा। जथूरा भला क्यों चाहेगा कि उसके कालचक्र से बाहर निकलने वाला इंसान, किसी और जमीन पर पहुंचे।”
 
“ये कालचक्र है क्या?” सोहनलाल ने कहा।

कालचक्र के बारे में मैं ज्यादा नहीं जानती, परंतु ये पता है कि कालचक्र मुसीबतों का बेड़ा है। जिसे कालचक्र घेर ले तो उसका बच पाना आसान नहीं रहता। सारी जिंदगी कालचक्र से आई मुसीबतों से मुकाबला करता है।” नानिया ने गहरी सांस ली–“मैं तो कहूंगी कि कोई दुश्मन भी कालचक्र की छाया में न आए।”

सोहनलाल गम्भीर-सा सोचने लगा।

“तुम कहां खो गए?”

सोच रहा हूं कि हम कालचक्र से कैसे निकलेंगे।”

मुझे विश्वास है कि हम निकल जाएंगे।”

“कैसे?

“ये तो मैं नहीं जानती। परंतु उस किताब में लिखी सोबरा की बात गलत नहीं हो सकती कि धुआं उड़ाने वाला आएगा और मुझे कालचक्र से आजाद कराएगा। साथ में उसका साथी भी होगा।” ।

*और क्या-क्या लिखा था उस किताब में?”

बहुत कुछ परंतु वो बातें मुझे समझ नहीं आईं। या यूं कह लो कि उन्हें समझने की चेष्टा नहीं की मैंने। जब-जब किताब को खोला तो अपने काम की बात पढ़ी और किताब बंद कर दी।” नानिया ने कहा।

“मुझे जगमोहन के पास जाना होगा।” सोहनलाल बोला।

क्यों?”

रात तुमने किताब उस तक पहुंचा दी थी। मुझे जानना है कि उसने किताब में क्या-क्या पढ़ा।”

“जल्दी मत करो। उसे किताब पढ़ लेने दो। रात के चंद घंटों में उसने किताब नहीं पढ़ी होगी।”

लेकिन मैं उसके पास जाना चाहता...।” ।

“जरूर चलेंगे। मैं भी चलेंगी। लेकिन पहले चिमटा जाति की तरफ से संदेश आने दो।”

“संदेश?”

किताब में कोई खास बात हुई तो तुम्हारा दोस्त अवश्य तुम्हारे लिए कोई संदेश भेजेगा। अभी इंतजार करो।” कहने के साथ ही नानिया कमरे के कोने में पहुंचीं और वहां लटकता रस्सा खींचा तो कमरे के बाहर कहीं घंटा बजा।।

सोहनलाल सोचों में था।

तभी दरवाजे पर लटका पर्दा हटाकर, एक युवती ने भीतर प्रवेश किया।

हुक्म रानी साहिबा।”

हमारे लिए कहवा ले आओ।”

“जी ।”

*और मंत्रीजी से मालूम करें कि रात चिमटा जाति के सब सेवकों को आजाद कर दिया था। वो किताब भी क्या वहां भिजवा दी थी?”

अभी मालूम करती हूं।” युवती ने कहा और पलटकर बाहर निकल गई।

नानिया ने मुस्कराकर सोहनलाल से कहा।

हम आज के दिन की शुरुआत गुलाब जल से नहाने से शुरू करेंगे। उसके बाद कुछ खाएंगे। उसके बाद तुम्हें नगरी दिखाने ले चलूंगीं । तुम खुद को नगरी का मालिक समझना। मालिक हो भी तुम, क्योंकि तुम मेरे मालिक बन गए हो। हर कोई तुम्हें सलाम करेगा। ये सब तुम्हें जरूर अच्छा लगेगा। तुम खुद को शानदार महसूस करेंगे।”

“जो आराम तुम्हें यहां है, वैसा आराम तुम्हें मेरी दुनिया में नहीं मिलेगा।” सोहनलाल मुस्करा पड़ा।

“मैं समझी नहीं ।”

वहां नौकर-दासियां नहीं होंगे। हर काम तुम्हें खुद ही करना पड़ेगा।”

वो मेरा घर होगा।” नानिया मुस्कराई।

हां।" तो अपने घर में मैं अपना काम क्यों नहीं करूंगी। ये सब तो कालचक्र के ठाठ-बाट हैं। सोबरा ने किसी को रानी बना दिया तो किसी को नौकरानी। यहां कोई भी अपना असली जीवन नहीं जी रह्म। ये तो शीशे में दिखने वाली छाया जैसा नकली जीवन है। जब तक हम कालचक्र में रहेंगे। ये ही जीवन जिएंगे।”

“तुम कालचक्र से मुक्त क्यों होना चाहती हो। यहां हर चीज़ की सुविधा है तुम्हें ।” ।

“मुझे अपने बचपन की याद आती है। जब मैं पांच साल की थी और मुझे कालचक्र में डाल दिया गया। कितना अच्छा लगता था तब। पेड़ों पर झूला डालकर मैं अपनी सहेलियों के साथ झूला झूला करती थी। पेड़ों पर पत्थर मारकर पके आमों को गिराती और उन्हें खाती थी। बहुत मजा आता था। वो मैं कभी नहीं भूल सकती।” नानिया उदास भी हो उठी–“अब वो जीवन तो वापस नहीं आ सकता, परंतु आजादी पा लेना चहाती हूं, कालचक्र से निकलकर ।”

“जरूर।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा “मैं तुम्हें कालचक्र से बाहर निकालने की चेष्टा करूंगा।”

तभी उसी युवती ने भीतर प्रवेश किया। हाथ में पकड़ी चांदी की ट्रे में दो चांदी के प्याले थे।

रानी साहिबा, कहवा?”

सोहनलाल और नानिया ने कहवे का एक-एक गिलास उठा लिया।

मंत्रीजी कहते हैं कि रात आपने जैसे कहा उन्होंने वैसे ही काम कर दिया है।” युवती बोली।

“ठीक हैं—जाओ तुम।” युवती बाहर निकल गई।

सोहनलाल कुर्सी पर जा बैठा और कहवे का घूट भरा। नानिया भी बैठ गई।

नगरी घूमना जरूरी नहीं है।” सोहनलाल ने कहा “मैं जगमोहन के पास जाना चाहता हूं।”

“अगर तुम जरूरी समझते हो तो ऐसा ही करेंगे।”

ये जरूरी है नानिया। हमें कालचक्र से बाहर निकलने का रास्ता तैयार करना है।” ।

“ठीक है। हम चिमटा जाति के पास चलेंगे। जगमोहन से मिलेंगे। उस किताब में लिखा है कि तुम्हें खुश रखने पर ही, मैं कालचक्र से निकल पाऊंगी। इसलिए तुम्हारी हर बात मैं मानूंगी।” नानिया बोली ।।

चिमटा जाति की बस्ती में चहल-पहल जारी थी।

रोज की तरह ही, सारे काम हो रहे थे।

परंतु जिस झोंपड़े में जगमोहन को रखा गया था, वहां के जैसे सारे काम रुके हुए थे। जगमोहन सोबरा की लिखी किताब पढ़ने में व्यस्त था। इसके अलावा जैसे उसे कोई होश ही नहीं था। अब किताब के कुछ आखिरी पन्ने ही बाकी बचे थे। दो पहरेदार झोंपड़ी के उसी कमरे में थे। दिन निकलते ही रात के पहरेदार चले गए थे और उनकी जगह नए पहरेदार आ गए थे। परंतु जगमोहन को तो जैसे आसपास की सुध ही नहीं थी।
 
कोमा उन पहरेदारों की वजह से रात-भर कुढ़ते-कुढ़ते सो गई थी।

सुबह जब आंख खुली तो तब भी जगमोहन को किताब पढ़ते ही पाया।

तुम इंसान हों या जानवर!” कोमा गुस्से से कह उठी।

जगमोहन ने किताब से नजर हटाकर उसे देखा।

क्या हुआ?” जगमोहन बोला।

कुछ नहीं हुआ, तभी तो तुम्हें जानवर कह रही हूं।” गुस्से में ही थी कोमा–“मैं रात भर तुम्हें पाने के लिए तड़प रही थी और एक बार भी इन पहरेदारों को दूर भगाने की चेष्टा नहीं की।”

“वो जरूरी काम नहीं था।”

किताब पढ़ना जरूरी है।” कोमा चिल्लाई।

“शायद हां ये तो अच्छा हुआ कि मैंने किताब पढ़ ली।”

“क्यों ऐसा क्या लिखा है इसमें?” ।

लिखा है कि जो आदमी चिमटा जाति की बस्ती में रहेगा, उसे औरत को भोगना मना है।”

“ऐसा लिखा है?”

हां। अगर मैंने तुम्हें भोग लिया होता तो हमारे लिए कालचक्र से बाहर जाने का रास्ता कभी न खुलता।”

“तुम झूठे हो।”

“सच कह रहा हूं।” जगमोहन गम्भीर था—“तुम पढ़ सकती हो तो, पढ़ लेना।”

“तुम तो ऐसे कह रहे हो कि जैसे कालचक्र से बाहर निकलने का रास्ता तुम्हें मालूम हो गया हो।”

जगमोहन ने कुछ न कहा और पुनः किताब पढ़ने लगा। तभी सरदार ने भीतर प्रवेश किया।

क्या बात है।” वो बोला-“तुम्हारे चिल्लाने की आवाज मैंने सुनी है।”

* “कह तो ऐसे रहे हो कि जैसे तुम्हें पता ही न हो कि मुझे गुस्सा किस बात का है।” कोमा कह उठी।

जग्गू तुम्हें प्यार नहीं करना चाहता तो...।”

जग्गू को तो मैं सीधा कर देती, परंतु तुमने रात-भर से ये जो दो झंडे खड़े कर रखे हैं, इनका क्या करूं?”

“ये मैंने इसी वास्ते खड़े किए कि सब ठीक रहे।”

क्या मतलब?”

“सोबरा ने इस बस्ती का सरदार बनाते वक्त मुझे कहा था कि अगर बाहरी दुनिया से आने वाला व्यक्ति तुम्हारी बस्ती में सम्भोग करेगा तो हालात बदल जाएंगे। फिर तुम कालचक्र से कभी बाहर निकल पाओगे।” सरदार बोला।

जगमोहन ने नजरें उठाकर सरदार को देखते हुए कहा। इस किताब में भी ऐसा ही कुछ लिखा है।”

फिर तो अच्छा हुआ कि जो तुमने सम्भोग नहीं किया।” कोमा एकाएक कुछ शांत-सी दिखने लगी।

मैं तो समझी थी कि जग्गू ये बात झूठ कह रहा है।” वो बोली।

किताब से कोई फायदा हुआ?” सरदार ने पूछा।

हां।”

“कालचक्र से बाहर निकलने का रास्ता पता चल गया?”

कुछ—कुछ ।”

“ओह—कैसे—हम्...।”

“जल्दी मत करो। कुछ पन्ने बचे हैं। वो मुझे पढ़ लेने दो। लेकिन इतना जान लो कि रास्ता पता होने के बाद भी निकलना आसान नहीं।”

“वों क्यों?

वक्त आएगा तो पता चल जाएगा।” जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कोमा से कहा-“तुम नहा-धो लो।”

“गंदी हुई नहीं तो नहाने-धोने में क्या मजा जाएगा।” कोमा ने तीखे स्वर में कहा।

जगमोहन मुस्कराया।
 
वक्त आएगा तो पता चल जाएगा।” जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कोमा से कहा-“तुम नहा-धो लो।”

“गंदी हुई नहीं तो नहाने-धोने में क्या मजा जाएगा।” कोमा ने तीखे स्वर में कहा।

जगमोहन मुस्कराया।

कम-से-कम मुझे चाट तो सकता था।” कोमा उठते हुए बोली-“पर तू तो सामने बैठा ढोलकी बजाता रहा।”

“तुम्हें कहा तो था कि मैं तुम्हें कोई बढ़िया मर्द दे देता...।” सरदार ने कहना चाहा।।

जो करूंगी, जग्गू के साथ करूंगी। मुझे ये ही अच्छा लगता है।” कहकर कोमा बाहर निकल गई।

सरदार मुस्करा पड़ा।

“सरदार।” जगमोहन बोला–“मेरे दोस्त सोहनलाल और नानिया को यहां बुला लो। किसी को भेजो उन्हें बुलाने के लिए।

अभी अपने बंदे दौड़ा देता हूं।” सरदार ने कहा और पलटकर बाहर चला गया। OO

जगमोहन पूरी किताब पढ़ चुका था।

उसके बाद वो पास की नदी पर जाकर नहाया। कोमा उसके साथ थी और नहाने के दौरान, वो भी पानी में उतरकर उसके पास आ गई थी। जगमोहन पर नजर रखने वाले दो पहरेदार नदी किनारे ही खड़े रहे। ।

“सुनो।” कोमा पास पहुंचकर जग्गू की बांह थामते कह उठी “तुम यहां से भागना चाहते हो?”

क्यों?" जगमोहन ने उसे देखा।

“मैंने कहा है भागना चाहते हो तो, मेरे पास रास्ता है। ये पहरेदार हमें नहीं पकड़ सकेंगे। नदी के उस पार एक ऐसा रास्ता है मैं जानती हूं, जहां से हम जल्दी ही रानी साहिबा की नगरी में पहुंच जाएंगे।” कोमा का स्वर धीमा था। ।

“लेकिन मैं नहीं भागना चाहता।” ।

बेवकूफ हो तुम। सरदार ने तुम्हें बंदी बना रखा है, वो तुम्हारे पर पहरेदारी...।”

जगमोहन मुस्करा पड़ा।

तुम्हें लगता है कि मैं बंदी हूं, लेकिन मैं तो यहां अपनी मर्जी से रह रहा हूं। जब चाहूंगा, निकल जाऊंगा।”

बहुत बहादुर हो?” कोमा ने आंखें नचाईं। पता नहीं।

“ठीक है, तुम मुझे यहां से निकलकर दिखाओ। मैं भी तो देखें कि जग्गू कितना बहादुर है।”

। “सरदार हमारा दुश्मन नहीं दोस्त है।”

वो दुश्मन है। रानी साहिबा के सिपाहियों के साथ हमेशा, इसके आदमी झगड़ते हैं।”

“अब झगड़ा नहीं होगा। वो वक्त निकल चुका है।” जगमोहन बोला।

तुम मुझे पागल लगते हो कभी-कभी ।”

जगमोहन नहाने में व्यस्त हो गया।

कोमा पानी में उसके करीब आ गई। उसके अंग जगमोहन के शरीर को छूने लगे।

जगमोहन ने कोमा को देखा। कोमा ‘आह' भरकर मुस्कराई।

“पीछे हट जाओ।”

“हम सम्भोग तो नहीं कर रहे। यूं ही मजे ले रहे हैं।” कोमा ने। कहा-“इस पर तुम्हें क्या ऐतराज है।”

“सम्भोग क्रिया की शुरुआत यहीं से होती है। मेरे से दूर रहो।” कोमा का चेहरा नाराजगी से भर उठा।

तभी किनारे पर खड़े दोनों में से एक पहरेदार बोला ।

 
तभी किनारे पर खड़े दोनों में से एक पहरेदार बोला ।

ऐ तुम बाहर आ जाओ।”

क्यों?कोमा ने तीखे स्वर में कहा।

“सरदार का आदेश है कि तुम्हें, जग्गू के ज्यादा करीब न जाने दिया जाए।”

“ये क्या बात हुई। मैं क्या सरदार की नौकर हूं। मैं रानी साहिबा की सेविका हूं। नहीं बाहर आती, जाओ।”

मैंने कहा न कि सरदार हमारा दुश्मन नहीं है। वो हमें दूर रखकर हमारा भला करना चाहता है।” जगमोहन कह उठा।

“इससे मेरा भला नहीं होता जग्गू। मेरा भला तो सम्भोग से होगा।” ।

“और फिर हममें से कोई भी कालचक्र से बाहर नहीं निकल सकेगा।”

कोमा गहरी सांस लेकर रह गई। जगमोहन नहाने में व्यस्त हो गया। कोमा उदास सी नदी से बाहर निकलकर, किनारे पर आ खड़ी हुई।

। नहाने के बाद जगमोहन ने वो ही कपड़े पहने, जो उतार रखे थे। कोमा हसरत भरी नजरों से जगमोहन के शरीर को देखती रही। उसके बाद वो चारों बस्ती में पहुंचे तो जगमोहन को एक पेड़ के नीचे बैठाकर खाने को दिया गया। खाने में अजीब-सी चपाती और बे-स्वाद सी चटनी जैसी कोई चीज थीं। परंतु इस स्थान पर ये सब खाना उसे अच्छा लगा।

खाने से फारिग हुआ तो सरदार उसके पास आ बैठा।

जगमोहन अपने कामों में व्यस्त, बस्ती के आते-आते लोगों पर नजरें दौड़ाने लगा। फिर बोला।

तुमने सोहनलाल और नानिया को बुलाने के लिए किसी को भेजा?” ।

“चार आदमी भेज दिए हैं। वो वहां पहुंचने वाले होंगे अब तो।” सरदार ने कहा।

जगमोहन ने सिर हिलाया। किताब तो तुमने पूरी पढ़ ली?” सरदार कह उठा।

“हाँ।” जगमोहन ने उसे देखा।

क्या लिखा है उसमें?” । जगमोहन कुछ नहीं बोला। कालचक्र से बाहर निकलने वाले रास्ते का पता चला।”

रास्ता वहीं से है, जहां कल शाम तुम मुझे ले गए थे।”

वो गोटियों पर?

” वहीं।”

एक गोटी कम क्यों है, उसका रहस्य पता चला?” सरदार ने सिर आगे करके पूछा।

हां।” “क्यों कम है गोटी?”
 
जो कम है वो मिल जाएगी।

” कैसे?”

जगमोहन चुप रहा।

“तुम मुझे कुछ बता नहीं रहे?” सरदार ने कहा।

मेरे सामने कोई समस्या है। उसका समाधान ढूंढ़ने की चेष्टा कर रहा हूं।”

कैसी समस्या?” सरदार ने कहा-“कुछ मुझे भी तो बताओ।” |

जगमोहन ने सरदार को देखा फिर बोला।

“गोटी, जो कम है, वो खाने में फिट करने पर, वहां की कोई दीवार रास्ते से हट जाएगी। उस जगह से बाहर निकलते ही हम कालचक्र से बाहर, जथूरा की जमीन पर पहुंच जाएंगे।”

“तो समस्या कहां है?"

समस्या ये है कि किताब में लिखा है, रास्ता बनने के पश्चात, जो भी सबसे पहले बाहर निकलेगा, वो मारा जाएगा।”

नहीं।” सरदार के होंठों से निकला। ये सच है।”

“ओह। तुमने ठीक से किताब पढ़ी थी?” जगमोहन ने हां में सिर हिला दिया। सरदार चिंतित दिखने लगा।

अब सवाल ये उठता है कि कौन अपनी जान गंवाना चाहेगा।” जगमोहन बोला।

“मैं तो अपने किसी आदमी की जान खतरे में नहीं डालूंगा। किसी को धोखे में रखकर आगे नहीं भेजूंगा।”

मैं भी नहीं चाहूंगा कि ऐसा हो।”
ये तो सच में समस्या वाली बात हो गई।” सरदार चिंतित हो उठा।

दोनों कुछ देर खामोश रहे।

तुम्हीं कुछ सोचो कि क्या हो सकता है। कैसे हम बाहर निकलेंगे?”

वो हीं तो सोच रहा हूं।”

मैं बस्ती के लोगों से इस बारे में बात करूंगा। शायद कोई हिम्मती दूसरों की खातिर जान गंवाना पसंद कर ले।”

“ये बेवकूफी होगी।”

होगी तो सही। तुम कोई और रास्ता निकाल लो तो किसी-न-किसी की तो जान बचेगी ही।” ।

“अभी तो मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।” जगमोहन बोला–“पहले हम वो रास्ता खोलेंगे। उसके बाद ही कुछ सोचेंगे।”

“ठीक है, चलो। पहले वो रास्ता खोल...।” ।

“रास्ता खोलने में नानिया की जरूरत पड़ेगी। उसे आ लेने दो।”

रानी साहिबा की जरूरत पड़ेगी, भला उसकी क्या जरूरत है रास्ता खोलने में?”

“देख लेना।” जगमोहन ने कहा-“मैं रात-भर का जगा हुआ हूं। जब सोहनलाल और नानिया आएं तो मुझे नींद से जगा देना।”

सो रहे हो?”

हों। जरूरी है। कोमा को मुझसे दूर ही रखना। कहीं वो पास आकर, मेरी नींद खराब न कर दें।”

सरदार ने सिर हिला दिया।
 
हों। जरूरी है। कोमा को मुझसे दूर ही रखना। कहीं वो पास आकर, मेरी नींद खराब न कर दें।”

सरदार ने सिर हिला दिया।
….
सोहनलाल और नानिया बस्ती में पहुंचे तो दोपहर का एक बज रहा था।
जगमोहन को उठाया गया।

सोहनलाल के चेहरे पर उभरी चमक को देखकर जगमोहन मुस्कराया।

तुझे क्या हो गया है?” जगमोहन ने पूछा।

मुझे? मुझे क्या होना है।” सोहनलाल भी मुस्करा पड़ा।

कल तक तो तेरा चेहरा बुझा-बुझा सा था, लेकिन आज तो तेरे चेहरे के नजारे ही कुछ और हैं।” कहते हुए जगमोहन ने नानिया को देखा–

“तुम भी कुछ अलग सी दिख रही हो आज।”

मुझे नानिया से प्यार हो गया है।” सोहनलाल ने बेहिचक कहा। जगमोहन के होंठ सिकुड़े।

सोहनलाल को प्यार?”

क्यों क्या सोहनलाल को प्यार नहीं हो सकता?”

अटपटा-सा लग रहा है सुनकर ।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।।

हम शादी करेंगे, तुम्हारी दुनिया में जाकर।” नानिया ने कहा।

जगमोहन ने सोहनलाल को देखा तो सोहनलाल ने ‘हाँ' में सिर हिलाया।

“ये अच्छी बात है। जगमोहन ने कहा

“परंतु हमारी दुनिया में पहुंचोगे कैसे? कालचक्र से कैसे बाहर निकलोगे?”

“क्या तुम्हें रास्ता नहीं मिला।” नानिया बोली–“सरदार ने नहीं बताया?”

बताया भी, दिखाया भी। वो अजीब-सा रास्ता है।”

“वो किताब पढ़ी तुमने?” सोहनलाल ने पूछा।

“हो।” जगमोहन की निगाह नानिया के हाथ में फंसी मोटी-सी अंगूठी पर जा टिकी—“किताब पढ़ी। सारी पढ़ ली। रास्ता हमें मिल जाएगा, परंतु पहले जो बाहर निकलेगा, वो जान गंवा बैठेगा।”

“क्या मतलब?” ।

“मतलब भी समझ में आ जाएगा।” फिर जगमोहन ने नानिया से कहा-“वो अंगूठी मुझे दे दो।”

नानिया ने अपने हाथ में पड़ी अंगूठी को देखा फिर कह उठी।

ये अंगूठी मैं किसी को नहीं दूंगी। सोबरा ने कहा था कि ये अंगूठी मैं अपने से अलग न करूं।”

अब अंगूठी को अलग करने का वक्त आ गया है।” तुमसे किसने कहा?”

किताब में लिखा है।”

लेकिन तुम इसका करोगे क्या?”

साथ रहना और देख लेना।” । नानिया ने सोहनलाल को देखा।

सोहनलाल के सिर हिलाने पर नानिया ने अंगूठी निकालकर जगमोहन को थमा दी।

“तुमने।” सोहनलाल बोला—“किताब में क्या पढ़ा?”

जगमोहन ने सब कुछ बताया।
 
सरदार का दिखाया रास्ता भी बताया और गोटियों के बारे में भी बताया।

फिर बताया कि किताब में लिखे मुताबिक, उस जगह पर जो गोटी कम है, उसकी जगह नानिया की उंगली में फंसी अंगूठी रखी जाएगी तो वो दरवाजा खुल जाएगा। ।

“ओह, इतनी-सी बात” नानिया के होंठों से निकला “ये बात किताब में मुझे क्यों न समझ आई?”

“तुमने किताब पूरी पढ़ी?”

कभी नहीं। पढ़ने की चेष्टा की, लेकिन हमेशा कोई-न-कोई अड़चन आ जाती और मुझे पढ़ने से रुक जाना पड़ता।”

“सरदार से हमेशा तुम्हारी अनबन रही। तुम सरदार का बताया रास्ता भी कभी नहीं देख सकी।”

“लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि रास्ता खुलने के बाद कौन सबसे पहले बाहर निकलकर अपनी जान गंवाएगा?” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा—“इस बात पर विचार करना बहुत जरूरी है।”

“इसकी परवाह मत करो सोहनलाल ।” नानिया बोली।

क्यों?”

“मेरे पास हजारों सैनिक हैं। मैं किसी को भी पहले उस रास्ते से बाहर जाने को कह दूंगी।”

धोखे से।”

“हां, तो क्या फर्क पड़ता है।” नानिया मुस्करा पड़ी।

ये नहीं होगा।” जगमोहन बोला-“हम् धोखे से ये काम नहीं करवाएंगे। कोई खुशी से आगे आए तो, जुदा बात है।”

तुम्हें एतराज क्यों?”

“ये जान जाने का मामला है। सच में अंजान रखकर, धोखा देकर किसी को इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।”

“जगमोहन ठीक कहता है।” सोहनलाल ने सिर हिलाया।

तुम दोनों की ही ये मर्जी है तो मैं दोबारा कुछ नहीं कहूंगी।” नानिया ने कहा।

“मेरे खयाल में हमें पहले रास्ता खोलना चाहिए, कालचक्र से बाहर निकलने का ।” सोहनलाल ने कहा। ।

“हां, अभी चलते हैं। रास्ता खोलने के बाद सोचेंगे कि क्या करना है।” जगमोहन बोला और सामने से जाती एक औरत से कहा-“सरदार को यहां भेजों। उससे बात करनी है।”

वो औरत चली गई।

सोहनलाल सोचों में डूबा पास ही टहलने लगा।

“तुम।” नानिया पास आकर धीमे से जगमोहन से बोली-“बहुत ख़राब हो ।”

“क्यों?”

एक ही रात में कोमा की ऐसी हालत कर दी कि वो अभी तक उठ नहीं सकी।”

जगमोहन ने नानिया को घूरा।।

“तुम्हारा दिमाग खराब है।” जगमोहन ने भिन्नाकर कहा।

क्या मतलब?” नानिया अचकचाई।

“मैंने उसे छुआ भी नहीं ।”

ये कैसे हो सकता है।” नानिया के होंठों से निकला।

ये ही हुआ है। तुम्हारे दिमाग में इन बातों के अलावा कुछ और नहीं आता क्या?”

वो वो कुंआरी है, मैने उसे...।”

“चुप रहो।” नानिया अजीब सी निगाहों से जगमोहन को देखने लगी।

तुम सोहनलाल से शादी करने की सोचे बैठी हो?” जगमोहन ने पूछा।

“हो ।” ।
तो तब तुम मेरी भाभी बन जाओगी। रिश्ते का खयाल करों और मेरे से ऐसी बेकार की बातें मत करो।”

“ये बेकार की बातें हैं।” नानिया कह उठी।।

सवाल मत करो। जो मैं कह रहा हूं वह याद रखो। रिश्ते की कद्र करो।”

ठीक है। तुम्हारी ये इच्छा है तो मैं ये ही करूंगी।” नानिया ने सिर हिला दिया।

तभी सरदार और साथ में कोमा भी वहां आ पहुंची।

क्या बात है?” सरदार ने पूछा।

हमने गोटियों वाली जगह पर जाना है। जहां कल गए थे।” जगमोहन ने कहा।

तो रास्ता खोलना है, ठीक है चलो।”

“हम सब चलेंगे। साथ में पांच-सात लोगों को ले लेना। हमने सिर्फ रास्ता खोलना है। बाहर नहीं निकलना ।”

कभी तो बाहर निकलना ही पड़ेगा ।” सरदार बोला। जरूर निकलेंगे।”

“मैं अभी आया।” कहकर सरदार चला गया।

नानिया कोमा को एक तरफ ले गई और धीमे से बातें करने लगी।

जगमोहन मुंह फेर लिया। वो जानता था कि इनमें क्या बातें हो रही हैं और सोचने लगा कि औरतों की जिंदगी कुछ बातों के गिर्द ही घूमती रहती है। दूर तक शायद वो कभी सोच हीं नहीं पातीं। कोशिश ही नहीं करतीं।।

दिन के तीन बजे, जगमोहन, सोहनलाल, नानिया, सरदार और बस्ती के दो अन्य लोग उसी गोटियों वाले उबड़-खाबड़ कमरे में थे। एक आदमी ने मशाल थाम रखी थी, जिससे वहां रोशनी थी।

दीवार पर वो ही गेम बनी हुई थी और उस पर धागे में फंसी गोटियां लटक रही थीं।

कितनी अजीब जगह है ये।” सोहनलाल कह उठा। “ये जगह हमें कालचक्र से बाहर ले जाएगी।” कहकर जगमोहन आगे बढ़ा और उसी दीवार के सामने जा खड़ा हुआ, जहां गोटियां लटक रही थीं और गेम बनी हुई थी।

नानिया ने सोहनलाल का हाथ थामकर धीमे स्वर में पूछा।

ये क्या करेगा?
 
” देखती रहो।” जगमोहन गोटियों को गेम के छेदों में फंसाने लगा। तभी कोमा जगमोहन के पास आ पहुंची।

ये तुम क्या कर रहे हो जग्गू?” ।

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

कहीं कुछ बुरा न हो जाए।” कोमा पुनः कह उठी।

मैं वो ही कर रहा हूं, जो किताब में लिखा है।” जगमोहन बोला।

“किताब में लिखा गलत भी हो सकता है।” कोमा चिंता में थी।

पता नहीं। लेकिन मुझे लगता है कि किताब में सही लिखा है।” जगमोहन का स्वर गम्भीर था।

“मुझे तुम्हारी चिंता है।”

जगमोहन कुछ नहीं बोला।

सारी गोटियों को छेदों में फंसाने के बाद एक जगह खाली रह गई। । जगमोहन ने हाथ में पकड़ी, नानिया की उंगली वाली रिंग उस, एक खाली जगह में रख दी। कुछ भी नहीं हुआ।

सब सामान्य रहा। सदार पास में आ गया। तुमने किताब में ध्यान से पढ़ा था?” सरदार बोला।

हो ।”

तो फिर कुछ हुआ क्यों नहीं। कालचक्र से बाहर निकलने का रास्ता नहीं बन पाया अभी तक ।” । |

जगमोहन की निगाह पुनः दीवार में फंसी गोटियों की तरफ उठी।

तभी जगमोहन ने उस खाने में रखी रिंग में हल्का-सा कम्पन होते पाया। उसकी आंखें सिकुड़ीं। ।

“कुछ होने वाला है।” जगमोहन कह उठा–“वो रिंग उस खाने के भीतर चली गई है।”

तुम पीछे हट जाओ।” सोहनलाल कह उठा। जगमोहन पीछे हटा तो कोमा भी पीछे हट गई। सबकी निगाह दीवार पर बने उस खेल के बोर्ड पर थी। एकाएक फर्श में कम्पन-सा उभरा।

ये जगह बर्बाद होने वाली है।” सरदार हड़बड़ाकर ऊंचे स्वर में कह उठा।

“तुम बाहर चले जाओ।” जगमोहन कह उठा।

तुम सब?” हम यहीं रहेंगे।”

तो मैं बाहर क्यों जाऊं।” सरदार कह उठा। तभी एक तरफ की दीवार बे-आवाज-सी धीमे-धीमे एक तरफ सकने लगी।

“ओह।” कोमा के होंठों से निकला–“ये क्या हो रहा है।”

सबकी निगाह उस दीवार पर टिक चुकी थी। वो बेहद मध्यम गति से सरक रही थी। जितनी सरकी, उसके पीछे हरा-भरा बाग और आसमान नजर आने लगा था।
सबके चेहरे खुशी से खिलते जा रहे थे।

“ओह।” नानिंया खुशी से चिल्ला उठी–“सोहनलाल हमें कालचक्र से बाहर जाने का रास्ता मिल गया।"

सरदार की आंखों में भी तीव्र चमक लहरा रही थी।

कोमा ने जगमोहन का हाथ, आवेश और उत्साह में पकड़ लिया था।

वो दीवार अब तक आधी सरक चुकी थी। उसके पीछे का दृश्य अब पूरी तरह स्पष्ट हो गया था।

वहां हरा-भरा बाग था। फलों के पेड़ लगे नजर आ रहे थे। तेज हवा चलने की वजह से पेड़ झूमते हुए लग रहे थे। आसमान में काले-सफेद बादलों के टुकड़े तैर रहे थे। बाग के एक तरफ दूर तक जाता रास्ता दिखाई दे रहा था। । परंतु हैरत की बात थी कि वहां की हवा, इस तरफ भीतर नहीं आ रही थी।

वो दीवार पूरी सरककर ठहर चुकी थी। सब हैरानी और अविश्वास-भरी निगाहों से उस तरफ देख रहे थे।
जगमोहन के चेहरे पर राहत के भाव थे।

जग्गू। तुमने तो कमाल कर दिया।” कोमा खुशी से कह उठी।

“मैंने कुछ नहीं किया।”

झूठ बोलते हो। तुमने ही तो किया है, तभी तो...।”

ये सारा कमाल किताब ने किया है। उसमें लिखा था कि मैं ऐसा-ऐसा करू, वो ही कर दिया मैंने।”

सोहनलाल और नानिया एक-दूसरे का हाथ पकड़े जगमोहन के पास आ गए।

“हमने कालचक्र से बाहर निकलने का रास्ता पा लिया जगमोहन्।” सोहनलाल बोला। ।

“हां, परंतु अभी हम बाहर नहीं निकल सकते।” जगमोहन ने होंठ सिकोड़कर कहा-“किताब में ये बात स्पष्ट तौर पर लिखी है कि सबसे पहले जो बाहर निकलेगा, वो मौत को गले लगा लेगा।”

“तो क्या किया जाए?" जगमोहन बाहर की तरफ देखता रहा। तभी सोहनलाल ने नीचे से पत्थर उठाया और उस तरफ फेंका।

पत्थर बाहर को गया और उस जमीन पर जा गिरा। सब कुछ शांत रहा।

सब ठीक लगता है।” सोहनलाल बोला।

बच्चों जैसी बातें मत करो।” जगमोहन ने कहा-“किताब में गलत लिखा नहीं हो सकता।” ।
 
सोहनलाल ।” नानिया कह उठी–“जगमोहन की बात मानो। उसने किताब को पूरा पढ़ा है।”

मैं कहां उसकी बात को इंकार कर रहा हूं।”

“अब क्या किया जाए?” सरदार जगमोहन के पास आकर बोला।

जगमोहन ने सरदार को देखा फिर बोला।

“तुम एक पुतला तैयार करो ।”

“पुतला?”

“हीं। उसमें घास-फूस भरकर, उसे इंसान के जैसा बना दो।” जगमोहन ने कहा।

“उससे क्या होगा?”

“पता नहीं क्या होगा। मैं तो सिर्फ बेकार कोशिश करने की सोच रहा हूं।”

“मैरे खयाल में पुतले से कोई फायदा नहीं होगा।” सरदार बोला।

“क्यों?”

क्योंकि वो चलकर बाहर नहीं जा सकता। तुम क्या करोगे, क्या उसे बाहर को फेंकोगे?” ।

“यही सोच रहा था कि ऐसा करने पर जो मुसीबत आनी हो पुतले पर आए।” जगमोहन ने कहा।

“ये तो बचकानी बात है।”

कुछ न करने से तो कुछ करना बेहतर है।” जगमोहन मुस्कराया।

बेकार का काम करने से बेहतर है कि आराम कर लिया जाए। जल्दी मत करो। हमें आराम से सोचना चाहिए।” सरदार ने कहा।

“ठीक है। वापस बस्ती में चलते हैं। लेकिन तुम पुतला जरूर बनाना। जो मेरे दिमाग में आया है, वो कर लेने दो।”

“ठीक है, पुतला बन जाएगा।”

जगमोहन ने नानिया और सोहनलाल को देखा। तभी उसे ध्यान आया कि कोमा ने उसका हाथ थाम रखा है।

चलो, वापस बस्ती में चलते हैं।” जगमोहन ने कहा-“वहां कुछ सोचेंगे।” कोमा के हाथ में फंसा अपना हाथ छुड़ा लिया।

सब उस रास्ते को पार करके बाहर निकले और बस्ती की तरफ चल पड़े। सोहनलाल नानिया के पास से हटकर जगमोहन के पास आकर बोला।।

*आखिर कोई तो सुरक्षित रास्ता होगा ही।” ।

होना तो चाहिए।” जगमोहन ने सिर हिलाया-“परंतु उस रास्ते के बारे में किताब में कुछ नहीं लिखा।”

हमें ही सोचना पड़ेगा।” जगमोहन ने सिर हिला दिया।

जग्गू।” साथ चलती कोमा कह उठी–“मैं तुम्हें परेशान नहीं देख सकती।”

“क्यों?”

तुम मुझे अच्छे लगते हो। मैं तुम्हें खुश देखना चाहती हूं।”

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा। नानिया भी पास आ पहुंची। वो बोली। “अब हम क्या करेंगे सोहनलाल?” देखेंगे कि...।” ।

“ओह।” एकाएक कोमा ठिठकी और कह उठी–“मेरे हाथ में कुछ था, वो तो मैं वहीं भूल आई।”

जगमोहन रुका। बाकी सब भी रुक गए।

कोई बात नहीं।” जगमोहन ने कहा-“दोबारा जब आएंगे तो तब ले लेना।”

“मैं अभी लाऊंगी। बहुत जल्दी आ जाऊंगी।” कहकर कोमा पलटकर भाग खड़ी हुई।

सब वहीं खड़े रह गए।

कोमा कहां गई है?” सरदार ने पूछा।

“अपनी कोई चीज उस कमरे में भूल गई है। वो लेने गई है।” सोहनलाल ने कहा।

“लेकिन उसके पास तो कुछ भी नहीं था।” सरदार कह उठा–“वो खाली हाथ थी।”

कुछ होगा। तुमने ध्यान नहीं दिया होगा।” ।

आ जाएगी।” नानिया बोली-“वो सामने तो वो जगह है।”

एकाएक जगमोहन बुरी तरह चौंका।।

“ओह।” उसने उस तरफ देखा, जहां कोमा गई थी। अब वो नजर नहीं आ रही थी।

क्या हुआ?” सोहनलाल ने जगमोहन को देखा।

वो, वो पागल, हम सबके लिए, अपनी जान गंवाने गई है।” जगमोहन चीखा।

“तुम्हारा मतलब कि वो कालचक्र से बाहर निकलने गई है।” सोहनलाल के होंठों से निकला।

जगमोहन तेजी से उस तरफ दौड़ पड़ा, जिधर कोमा गई थी। बाकी सब भी जगमोहन के पीछे दौड़े।

कोमा वापस उस कमरे में पहुंच गई थी, जहां कालचक्र से बाहर निकलने का रास्ता था। चंद पल वो खड़ी उस रास्ते के पार हवा में हिलते पेड़ों को देखती रही फिर आगे बढ़ने लगी। उसके चेहरे पर गम्भीरता थी। दृढ़ता थी। वो फैसला ले चुकी थी कि जग्गू की इस परेशानी को दूर करना है उसने।

तभी उसके कानों में जगमोहन की आवाज़ पड़ी।

कोमा। रुक जाओ कोमा।”

आगे बढ़ती कोमा मुस्कराकर बुदबुदा उठी। ‘तो जग्गू समझ गया कि मेरे इरादे क्या हैं। तभी तो दौड़ा आया।।

कोमा उस जगह पर जा पहुंची, जहां से दीवार हटी थी। दो कदम का फासला था और उसने कालचक्र से बाहर होना था। तभी हांफता हुआ जगमोहन वहां पहुंचा।

रुक जाओ कोमा।” जगमोहन तेज स्वर में बोला “ऐसा मत करो। कोई और रास्ता निकल आएगा।” ।

कोमा ने एक बार भी पलटकर पीछे नहीं देखा और आगे बढ़ गई।

। “कोमा।” जगमोहन चीखा।

परंतु तब तक कोमा कालचक्र से बाहर निकलकर उस बाग के हिस्से में जा पहुंची थी।

जगमोहन ठगा-सा खड़ा उसे देखता रह गया।

वहां बहती तेज हवा में कोमा के बाल उड़ते स्पष्ट महसूस हो रहे थे। जगमोहन अवाकु-सा उसे देखता रहा।

उसी पल बाकी सब भी वहां आ पहुंचे और कोमा को कालचक्र से बाहर देखकर ठगे से रह गए।

ये...ये तो बाहर निकल गई।” सरदार के होंठों से निकला। कोमा को कुछ नहीं हुआ।” नानिया बोली-“सुरक्षित है वो।


तभी कोमा ने पलटकर उन सबको देखा। अगले ही पल उसके होंठ हिलते देखे।

वो कुछ कह रहीं थी। परंतु उसकी आवाज इथर किसी को सुनाई न दे रहीं थी। फिर अगला पल कयामत का था जैसे।
उस तरफ, ऊपर से कहीं, बड़ा-सा पत्थर गिरा कोमा पर। कोमा उस पत्थर के तले पिसती चली गई।

न-हींऽ...ऽ...ऽ...।” नानिया चीख उठी।

जगमोहन जड़ रह गया था। सोहनलाल ने आंखें बंद कर ली थीं। सरदार हक्का-बक्का खड़ा था।

“वो-वो मर गई।” सरदार के होंठों से निकला।
हमारा काम आसान कर गई।” जगमोहन ने फीके स्वर में कहा। कोमा की मौत का उसे बहुत दुख था।

अब वो सब आजाद थे। कालचक्र से बाहर आ चुके थे।
 
Back
Top