XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - Page 28 - SexBaba
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XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

नानिया खुश थी। सरदार खुश था। बस्ती वाले खुश थे। जगमोहन भी खुश ही था, परंतु कोमा की मौत का ध्यान उसे बार-बार आ रहा था। नानिया को खुश पाकर, सोहनलाल खुश था। सरदार जगमोहन के पास पहुंचा और आभार भरे स्वर में कह उठा।

“तुम्हारी वजह से हम कालचक्र से मुक्ति पा सके।”

सबकी ही कोशिश थी।” जगमोहन ने कहा-“इसका सेहरा कोमा के सिर पर जाता है।”

“वो शायद तुम्हें सच्चा प्यार करती थी। तुम्हारी खातिर उसने अपनी जान दे दी।”
जगमोहन कुछ नहीं बोला।

अब हम अपनी बस्ती में जाएंगे, जहां कालचक्र में फंसने से पहले रहा करते थे।” सरदार बोला। “तुम इस जगह को जानते हो?”

क्यों नहीं जानूंगा। यहीं पर तो बचपन बिताया था।”

तो ये क्या जगह है?”

जथूरा की जमीन है ये।”

“ओह। तो पूर्वजन्म में प्रवेश कर लिया है मैंने।”

“क्या कहा?”

कुछ नहीं।” जगमोहन हर तरफ नजरें घुमाता कह उठा-“जथूरा का भाई सोबरा कहां रहता है?”

पूर्व की तरफ। जथूरा और सोबरा में जमती नहीं। झगड़ा है।”

क्यों?”

पुरानी बातें हैं। अब ठीक से याद नहीं। लेकिन इतना ध्यान है कि जथूरा के पिता गिरधारीलाल के पास खास ताकतें थीं। जिन्हें उन्होंने कैद करके अपने पास रखा था। परंतु गिरधारीलाल की मौत के पश्चात जथूरा ने ताकतों पर अपना कब्जा जमा लिया। जबकि सोबरा का कहना था कि पिता की चीजें दोनों भाइयों में बराबर-बराबर बंटनी चाहिए।”

सोबरा ठीक कहता है।”

लेकिन जथूरा ने उसकी एक न सुनी। सुनने में आता है कि उन्हीं ताकतों के दम पर जथूरा हादसों का देवता बन गया। उसने और ताकतें भी इकट्ठी कर लीं। सोबरा भी कम नहीं रहा। परंतु जथूरा उससे काफी आगे निकल गया।”

“दोनों में सच्चा कौन है?”

“शायद सोबरा।” सरदार ने कहा। पोतेबाबा के बारे में सुना है?”

“पोतेबाबा जथूरा का सबसे खास सेवक है। जथूरा अगर किसी पर भरोसा करता है तो वो पोतेबाबा ही है।” ।

जगमोहन के चेहरे पर सोच के भाव दौड़ने लगे थे। “तुम मेरे साथ मेरी बस्ती में चल सकते हो।” सरदार बोला।

नहीं। मुझे जथूरा या सोबरा में से किसी एक के पास जाना है। तुम कहो, किसके पास जाना चाहिए?”

“मैं इस बारे में अपनी राय नहीं दे सकता।” सरदार ने इनकार में सिर हिलाया।

क्यों?”

“मुझे दोनों ही पसंद नहीं। क्या तुम मेरे साथ चलोगे?"

नहीं।” बाकी भी नहीं जाएंगे?”

उनसे तुम पूछ सकते हो।” सरदार सोहनलाल और नानिंया की तरफ बढ़ गया।

आखिरकार सरदार अपने लोगों के साथ वहां से चला गया। सोहनलाल और नानिया जगमोहन के पास पहुंचे।

जगमोहन, हम पूर्वजन्म में आ पहुंचे हैं।” सोहनलाल ने कहा।

तो यहां के खतरों का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।” जगमोहन मुस्करा पड़ा।

सोहनलाल ने गहरी सांस ली। पूर्वजन्म की क्या बातें हैं?” नानिया ने पूछा।

कभी हम भी इन्हीं जगहों पर पैदा हुए थे।” सोहनलाल ने कहा।

“फिर?”

बताऊंगा सब कुछ।” सोहनलाल ने कहा-“ये वक्त इन बातों का नहीं हैं।” उसने जगमोहन को देखा_*अब क्या करना है?”

“मैं उलझन में हूं।” जगमोहन ने कहा-“उस तरफ का रास्ता जथूरा की तरफ जाता है और उधर का, सोबरा की तरफ। समझ में नहीं आता कि किस तरफ जाऊं। कहां की तरफ जाना हमारे हित में होगा।”

“जथुरा की तरफ तो बिल्कुल मत जाओ।” नानिया बोलीं।

“क्यों?”

वो अच्छा नहीं है।”

“और सोबरा अच्छा है?” नानिया के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे। वो कह उठी।

सोबरा भी ज्यादा अच्छा नहीं है। लेकिन जथूरा से तो अच्छा ही है।”

जगमोहन ने फौरन कुछ नहीं कहा।

सोहनलाल मैं कितनी खुश हूं कि कालचक्र से आजाद हो गई।” नानिया बहुत खुश थी—“तुम फल खाओगे?”

“हां।” ।

“मैं अभी लाती हूं।” कहने के साथ ही नानिया फल वाले वृक्ष की तरफ भागती चली गई।

सोहनलाल और जगमोहन की नजरें मिलीं।

“मैं देवराज चौहान के बारे में सोच रहा हूं।” जगमोहन बोला—“वो कहां होगा?”

“देवराज चौहान ही नहीं, वो सब ।” सोहनलाल बोला–“नगीना, बांके रुस्तम, मोना चौधरी, पारसनाथ, महाजन् । हम दोनों पूर्वजन्म में प्रवेश कर आए हैं तो वो लोग भी पूर्वजन्म से दूर नहीं होंगे।”

जगमोहन कुछ कहने लगा कि तभी उसके कानों में फुसफुसाहट पड़ी।

जग्गू।” ।

“तुम?” जगमोहन के होंठों से निकला। सोहनलाल की नजरें जगमोहन पर टिक गईं।

मैं वो ही हूं जो तुमसे कुएं में मिला था। तुमसे बात की थी।” आवाज पुनः कानों में पड़ी। (ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़े ‘जथूरा’।)

“पहचान चुका हूं तुम्हें ।” जगमोहन बोला-“अब हम कालचक्र में नहीं हैं। तम अपने बारे में बताओ।”

“अवश्य। बहुत जल्द मैं तुम्हारे सामने आऊंगा। परंतु इस वक्त मैं तुम्हारी समस्या का समाधान करना चाहता हूं।”

“कैसी समस्या?”

तभी नानिया दोनों हाथों में फल थामे पास आ पहुंची। “लो सोहनलाल, फल खाओं।”
सोहनलाल ने एक फल उठा लिया।

नानिया ने फल जगमोहन की तरफ बढ़ाए तो जगमोहन ने भी एक फल उठा लिया।

तुम उलझन में हो कि जथूरा की तरफ जाओं या सोबरा की तफ।”

हो ।”

तुम्हें सोबरा की तरफ जाना चाहिए। तभी संतुलन कायम रहेगा।”

“कैसा संतुलन?” ।

इस बात का जवाब तो तुम्हें वक्त आने पर पता चलेगा।”

“तुम मेरी किसी बात का स्पष्ट जवाब नहीं दे रहे।” जगमोहन बोला–“ये बताओ कि तुम किसकी तरफ हो?” ।

मैं सोबरा की तरफ से आया हूं।”
 

“तभी मुझे सोबरा की तरफ जाने को कह रहे हो।” नानिया सोहनलाल को देखकर अजीब स्वर में बोली। “ये किससे बात कर रहा है। कोई दिखता तो नहीं ।”

चुप रहो ।” सोहनलाल शांत स्वर में कह उठा।

मैं सिर्फ संतुलन कायम रखने की चेष्टा कर रहा हूं। देवा, मिन्नो और बाकी सब भी इस जमीन पर पहुंचने वाले हैं। मैं उनसे बात करने की स्थिति में नहीं हूं, परंतु तुमसे बात कर पा रहा हूं, इसलिए तुम्हें रास्ता सुझाकर संतुलन कायम रखने को कह रहा हूं।

आने वाले वक्त में जो होने वाला है, वो तुम नहीं देख पा रहे, परंतु मैं देख रहा हूं।”

कुछ मुझे भी बताओ।”

“अभी नहीं। परंतु बहुत जल्द मैं तुम्हारे सामने आऊंगा। तब सब बातें होंगी। ये जथूरा की जमीन है। ज्यादा नहीं रुक सकता मैं यहां। मुझे खतरा है। तुम सोबरा के पास पहुंचने का प्रयत्न करो।”

देवराज चौहान किस स्थिति में है?" जगमोहन ने पूछा।

“देवा-मिन्नो, पूरी तरह तो नहीं, परंतु कुछ हद तक जथूरा की पहुंच के भीतर हैं और तेजी से इसी तरफ आ रहे हैं। उनके इस धरती पर पांव रखते ही, जथूरा पूरी तरह हरकत में आ जाएगा। मैं उससे पहले ही तुम्हें इस धरती से निकाल देना चाहता हूं, ताकि संतुलन कायम रहे। तुम भी वक्त बर्बाद मत... ।”

“मैं समझ नहीं पा रहा कि तुम किस संतुलन की बात कर रहे...।” “ये बात हम बाद में करेंगे—जग्गू तुम...।”

देवराज चौहान इस धरती पर आ रहा है तो मैं यहीं रहना चाहूंगा, उससे मिलना...।”

“देवा से जल्दी मुलाकात होगी तुम्हारी। परंतु इस तरह नहीं। तुम्हें मुझ पर भरोसा है तो मेरी बात मानो और फौरन पूर्व दिशा की तरफ चल दो। जहां सोबरा की जमीन है। अब मैं जाता हूं। तुम यहीं वक्त बर्बाद मत करना।”

इसके बाद कोई आवाज नहीं आई।
सोहनलाल और नानिया की नजरें उस पर थीं।

क्या बात हुई?” सोहनलाल ने पूछा।

जगमोहन ने बता दिया।

तो अब हमें क्या करना चाहिए?”

मैं नहीं जानता वो कौन है जो हमें सोबरा के पास पहुंचने को कह रहा है, जबकि देवराज चौहान इसी जमीन पर पहुंचने वाला है। वो संतुलन कायम रखने को कह रहा है, परंतु बता नहीं रहा कि किस तरह का संतुलन चाहता है वो।”

“तुमने क्या फैसला किया कि हमें किस तरफ जाना चाहिए?” सोहनलाल गम्भीर था।

“हमारे लिए सोबरा हो या जथूरा दोनों ही अंजान हैं। परंतु जथूरा के बारे में काफी कुछ सुन रखा है। वो हादसों का देवता है और हमारी उस दुनिया में हादसे तैयार करके भेजता है। उन हादसों को मैं देख चुका हूं। वे बेहद खतरनाक होते हैं।” (विस्तार से जानने के लिए पढ़िए अनिल मोहन का राजा पॉकेट बुक्स से पूर्व प्रकाशित उपन्यास–“जथूरा' ।)

मेरे खयाल में हमें सोबरा को भी देखना चाहिए कि वो कैसा है।” ।

“सोबरा जथूरा का दुश्मन है। वो किसी मौके पर हमारे काम आ सकता है।” सोहनलाल ने कहा।

“परंतु देवराज चौहान इस धरती पर पहुंचने वाला है।” जगमोहन ने उलझन-भरे स्वर में कहा।

उसे अपना काम करने दो। उसके सामने अपने हालात होंगे, जिनका मुकाबला उसे करना ही पड़ेगा। वो बच्चा नहीं है। हमें अपने हालातों के बारे में सोच-विचार करना चाहिए। अपना रास्ता चुनना चाहिए हमें।”

“हम सोबरा की तरफ ही जाएंगे।” जगमोहून सोच-भरे स्वर में कह उठा।

तभी नानिया कह उठी।

देवराज चौहान कौन है? वों हम सबका बड़ा है।” सोहनलाल ने कहा।

“बड़ा है? क्यों वो पेड़ जितना बड़ा...।”

“वो बड़ा भाई है। उसे अच्छे-बुरे हालातों का ज्यादा अनुभव है।” सोहनलाल बोला।

“अब समझी।” नानिया ने सिर हिलाया-“वैसे सोबरा के पास जाने की सोचकर ठीक किया।”

तुम जानती हो कि सोबरा कहां रहता हैं?” जगमोहन ने पूछा। “क्यों नहीं, मैं यहां के बारे में सब जानती हूं, यहीं की तो हूँ

तो चलो, हमें सोबरा के पास पहुंचना है।” नानिया ने सोहनलाल का हाथ पकड़ा और कह उठी।

“आओ, सोबरा की तरफ चलते हैं।” वो तीनों चल पड़े।

कितना लम्बा रास्ता है?” जगमोहन ने पूछा।

रास्ता तो लम्बा है।” नानिया बोली-“वक्त तो काफी लगेगा पहुंचने में। सोहनलाल ।”

“हों।”

मैं तुम्हारी दुनिया में कब पहुंचेंगी?

” पता नहीं ।”

ये क्या बात हुई। मैं जल्द से जल्द वहां पहुंचकर तुमसे शादी कर लेना चाहती हूं।”

“जल्दी क्या है। हो जाएगी।”

मुझे जल्दी है।” सोहनलाल ने प्यार से नानिया को देखा और मुस्करा दिया। दो कदम पीछे आते जगमोहन ने मुंह बनाया और बड़बड़ा उठा।
उल्लू का पट्टा।'
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कांच की मछली जैसी पनडुब्बी समुद्र में गोली की रफ्तार से सक रही थी। कब का दिन निकल चुका था। समुद्र का नजारा बेहद मजेदार दिख रहा था उन्हें। छोटी-बड़ी मछलियां, व्हेल मछली के अलावा तरह-तरह के समुद्री जीवों के पास से पनडुब्बी निकल रही थी। समुद्र के नीचे का नजारा, इस तरह से उन्होंने पहली बार देखा था। दो बार पनडुब्बी व्हेल मछली से टकरा चुकी थी। परंतु पनडुब्बी का कुछ नहीं बिगड़ा था।

“ये कांच की पनडुब्बी नहीं है।” देवराज चौहान बोला—“कांच जैसी किसी पारदर्शी धातु की पनडुब्बी है।”

“मैं भी यही सोच रहा हूं।” पारसनाथ बोला-“देखने में कांच जैसी लगती है, परंतु पनडुब्बी के बाहरी हिस्से में लचक है। जब ये पहली बार व्हेल से टकराई तो मैंने देखा था, पनडुब्बी का बाहरी हिस्सा थोड़ा-सा दब गया था जो कि बाद में ठीक हो गया।”

“इसी से सोचा जा सकता है कि जथूरा के पास अजूबे की तरह कई चीजें हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

*शायद।”

वो वैज्ञानिक भी है और तंत्र-मंत्र की ताकतें भी उसके पास हैं। पता नहीं वो कैसा है। वो कालचक्र जैसी शक्तियों भी रखता है और इस तरह की अजूबी पनडुब्बी भी रखता है। मेरे खयाल में उसके पास और भी बहुत कुछ होगा, हमें हैरान करने के लिए।”

“लेकिन हम उसके पास क्यों जा रहे हैं। आखिर हमारी मंजिल क्या है?” पारसनाथ ने पूछा।

“हमने जब-जब भी पूर्वजन्म का सफर किया है, हमें मालूम नहीं होता कि हम ऐसा क्यों कर रहे हैं। परंतु पूर्वजन्म की जमीन पर पहुंचकर हमें हमारी मंजिल नजर आने लगती है, जिसकी वजह से पूर्वजन्म में आ पहुंचते हैं।”

ओह।” । परंतु एक बात इस बार खतरे से भरी है।”

वो क्या?”

“जथूरा के पास जादुई ताकतें भी हैं और वैज्ञानिक शक्तियां भी। वो हादसों का देवता है। पेशीराम इस बात को स्पष्ट कह चुका है। कि जथूरा की ताकत का मुकाबला नहीं किया जा सकता। हम उसका मुकाबला नहीं कर सकते।” देवराज चौहान बोला।

दो कदम दूर बैठी मोना चौधरी कह उठी। पेशीराम ने ये बात मुझसे भी कही थी।”

तब हमें गम्भीरता से सोचना चाहिए कि हम जथूरा से कैसे टकरा सकेंगे?” महाजन कह उठा।

“पेशीराम ने जो कहा, वो अपनी जगह है। हम लोग ये क्यों सोचें कि उससे नहीं टकरा सकते। हम अपनी कोशिश जारी रखेंगे।” देवराज चौहान ने कहा-“कोशिश करने पर पहाड़ को भी सरकाया जा सकता है।”

“तुम चिंता मत करो। अंम जथूरा को ‘वड' दयो।”

पक्का बाप। आपुन टांगें पकड़ेगा उसकी और तुम उसकी गर्दन काटेला।”

“तंम भी चिंतो मत करो, उसो की टांगो भी अंम ही पकड़ लयों।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा।

“तुम बोत बहादुर होईला बाप ।”

अंम हौवे ।” *आपुन को तो पैले ई मालूम होईला।” रुस्तम राव ने गहरी सांस लेकर सिर हिलाया—“सब कुछ तुम ही करेला तो देवराज चौहान क्या करेला। कुछ उसके वास्ते भी छोड़ेला बाप ।”

छोरे। देवराज चौहानो को आराम करने दयो, बोत भाग दौड़ कर लयो उसो ने।” ।

“बहुत चिंता हो रही है तुम्हें बांके।” देवराज चौहान मुस्कराकर कह उठा।।

“क्यों न होवे। थारे दम परो ही तो अंम उछल-कूद करो हो। तंम म्हारी पॉवरो हौवे ।” ।

“जथूरो की, पूर्वजन्म की जमीन पर हमें भारी खतरे से सामना करना पड़ सकता है।” देवराज चौहान ने कहा।

अंम खतरों को ‘वड' दयो।”

शायद इतना आसान न हो।”

तंम सबो कुछो म्हारे पे छोड़ दयो।”

तुम तो तोप होईला बाप ।”

“ठीको बोल्लो, देवराज चौहानो की छायो में अंम तोप होईला ।”

सपन चड्ढा और लक्ष्मण दास की नजरें मिलीं।

सपन यार, ये कहां फंस गए।” लक्ष्मण दास मुंह लटकाकर बोला।

“मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा।”

ये कौन-से पूर्वजन्म जा रहे हैं हम।”

“हमारा कोई पूर्वजन्म नहीं है। इन सबका है।”

तो हम इनके बीच क्यों आ फंसे?”

“ये साले कमीने मोमो जिन्न ने हमें फंसाया है।”

पता नहीं ये हरामी क्यों हमें साथ रखे हुए है। साला हमें मरवा के ही छोड़ेगा।”

पूर्वजन्म पड़ता कहां पर है। आखिर कोई तो जगह होगी।”

मुझे क्या पता जो तेरे को बता दूं। मोमो जिन्न को मैं नहीं छोडूंगा। मौका मिलने दे।” ।

तभी अपने पीछे सांसें लेने की आवाज सुनाई पड़ी। दोनों ने फौरन पीछे देखा।

पीछे मोमो जिन्न बैठा उनकी बातें सुन रहा था। वो दांत फाड़कर कह उठा।

मुझे मारने की योजना बना रहे हो। लेकिन याद रखो मुझे सिर्फ जथूरा या सोबरा मार सकता है।”
क्यों?"

जिन्न को बड़ी ताकतें ही मार सकती हैं। जिन्न इंसान तो होता नहीं ।”

लेकिन हम तुम्हें मारने की नहीं सोच रहे।” लक्ष्मण दास कह उठा–“हम तो आपस में बात कर रहे थे कि मोमो जिन्न कितना अच्छा है। हमें यार कहता है। हमारा कितना ध्यान रखता है, क्यों सपन।”

मुझे क्या पता।”

“यार हाँ कह दे।” लक्ष्मण दास ने सकपकाकर कहा।

“मैं तुम दोनों की बातें पीछे बैठा सुन रहा था। तुम लोगों के मधुर वचन मेरे कानों में पड़ रहे थे।” मोमो जिन्न ने कहा।

लक्ष्मण दास बैठे-बैठे पीछे घूम गया और बोला।।

“यार मोमो जिन्न आखिर तुम हमारा करना क्या चाहते हो। साफ-साफ क्यों नहीं बताते हमें ।”

जथूरा के सेवकों ने मेरी ड्यूटी तुम दोनों पर लगाई है।”

तो?"

मुझे तुम दोनों को साथ में रखना है। अगर उन्हें पता चल गया कि तुम दोनो का कोई काम नहीं रहा तो, वो मुझे वापस बुला लेंगे और वापस जाने पर जब मेरा निरीक्षण होगा तो उन्हें पता चल जाएगा, मेरी इच्छाएं वापस आ गई हैं तो वो मुझे मार देंगे।”

तो इसलिए तुम हमें पास में रखे हुए हो।”

हों।" ।

ये बात उन्हें पता नहीं चल सकती कि अब हम दोनों का कोई काम नहीं बचा।” सपन चड्ढा भी उसकी तरफ पलट गया।

चल सकती है। एक बार पता चल गई थी, परंतु मैंने कह दिया कि तुम दोनों से कभी भी कोई काम पड़ सकता है।”

“इस तरह तुम अपने को कब तक बचाते रहोगे?”

हम जथूरा की जमीन पर पहुंचने ही वाले हैं।” मोमो जिन्न ने कहा-“वहां पहुंचते ही मैं तुम दोनों के साथ सोबरा की जमीन पर जा पहुंचूंगा और सोबरा मुझे अपने पास पनाह दे देगा।”

तो हमारा क्या होगा?”

सोबरा तुम दोनों को वापस भेज देगा, तुम्हारी दुनिया में।”

पक्का ?"

तुम दोनों मेरे यार हो। मुझ पर शक मत करो। मेरी बात मानो। मैं सच कहता हूं। जिन्न झूठ नहीं बोलता।”

लक्ष्मण दास सपन चड्ढा को देखकर कह उठा। “ये कहता है, जिन्न झूठ नहीं बोलता।”

मुझे क्या पता।” सपन चड्ढा ने मुंह फुलाकर कहा।

“ये मुझसे ज्यादा नाराज रहता है।” मोमो जिन्न् कह उठा।

इसकी शक्ल ही ऐसी है। तुम इसकी परवाह मत किया करो। एक बात तो बताओ।”

“क्या?”

तुमने मुझे कहा था कि तुम्हें हुक्म मिला है, इन लोगों को, जथूरा के पास ले चलने का ।”

तो?”

जथूरा तो चाहता ही नहीं था कि ये लोग उसकी जमीन पर पहुंचे।”

“जथूरा महान है। उसकी सोच का मुकाबला कोई नहीं कर सकता। कोई सोच भी नहीं सकता कि वो क्या खेल खेलने जा रहा है। उस जैसा दूसरा कोई नहीं।” मोमो जिन्न ने भक्ति वाले अंदाज में कहा, जैसे प्रवचन सुना रहा हो।

“ये क्या जवाब हुआ।” ।

तभी मोमो जिन्न ने गर्दन एक तरफ कर ली। आंखें बंद कर लीं, कुछ इस तरह कि उसे कुछ कहा जा रहा हो और वो सुन-समझ रहा हो। वो दोनों समझ गए कि जथूरा के सेवक उसे कुछ कह रहे हैं। कुछ पल मोमो जिन्न सिर हिलाता रहा।

फिर उसने सिर सीधा किया और आंखें खोलते हुए कह उठा। “बोलो, जथूरा महान है।”

“ये तुम्हें अचानक क्या हो गया?” ।

“जथूरा के सेवळू की तरफ से शिकायत आई है कि देर से उन्हें सिग्नल नहीं मिला कि मेरा काम ठीक चल रहा है। तुम दोनों ने भी याद नहीं दिलाया कि जथूरा की सेवा में हाजिरी लगानी है, बोलो, जथूरा महान है।”

जथूरा महान है।” दोनों कह उठे।

“सच में।” मोमो जिन्न मुस्कराकर बोला—“तुम दोनों मेरे सच्चे यार हो।”

मैं तुम्हें पसंद नहीं करता।” सपन चड्ढा कह उठा।

“मैं जानता है। इससे मुझे कोई फर्क भी नहीं पड़ता।” फिर मोमो जिन्न खड़ा होता ऊंचे स्वर में बोला “मैं मोमो जिन्न सबको इस बात की सूचना देता हूं कि हम जथूरा की जमीन पर आ पहुंचे हैं। जथूरा के सेवकों ने मुझे कहा कि ये बात सबको बता दें। इस बात को सब याद रखो कि यहां जथूरा की हुकूमत चलती है। जो जथूरा महान है' बोलेगा, वो खुश रहेगा।”

“कमीना।” सपन चड्ढा बड़बड़ा उठा–“जथूरा को महान कह रहा है और बाहर निकलते ही सोबरा की तरफ दौड़ लगा देगा।”

चुप कर ।” उसकी बड़बड़ाहट सुनकर लक्ष्मण दास धीमे स्वर में कह उठा।

क्या बातें हो रही हैं?" सामने खड़े मोमो जिन्न ने पूछा।

हम आपस में तय कर रहे थे कि जथूरा महान है, ये बात हम दिन में दस बार कहेंगे।” लक्ष्मण दास बोला।

तो खुश रहोगे।” मोमो जिन्न मुस्कराया।

तभी बांकेलाल राठौर कह उठा।

मोमो जिन्नो। म्हारे स्वागत की तैयारियां तो खूब होंगी?”

जथूरा की जमीन पर स्वागत नहीं होता। कोई अपना वक्त बर्बाद नहीं करता इन कामों के लिए। वहां सिर्फ काम होता है और सबको बराबर-बराबर समझा जाता है। तुम्हारी दुनिया की तरह नहीं कि बड़ा आए तो उसके स्वागत के लिए, बाकी अपना काम छोड़ दें।” ।

“थारो मतलब कि जथूरो की जमीनो पर, बड़ो की इज्जतो न हौवे ।” ।

“काम छोड़ के इज्जत करना मना है। किसी के पास वक्त ही नहीं है। सब अपने कामों में व्यस्त हैं। हजारों लोग हर वक्त जथूरा के हादसों को तैयार करने में व्यस्त रहते हैं। वो ऐसी गोलियां खाकर काम करते हैं जिससे कि उन्हें नींद न आए। ये तुम्हारी तरह की आलसी दुनिया नहीं है। जथूरा यूं ही महान नहीं है। उसकी महानता, उसके कामों में झलकती है।”

“देख तो साला कैसे भाषण दे रहा है।” लक्ष्मण दास धीमे से बोला।।

*और वहां पहुंचते ही सोंवरा की तरफ दौड़ पड़ेगा।”

“इसकी जुबान का कोई भरोसा नहीं। कहता है जिन्न् झूठ नहीं बोलते, परंतु ये तो महाझूठा है।”

थारो जथूरो को अंम समझायो कि स्वागत बोत जरूरो हौवे ।”

तभी पनडुब्बी को हल्के-हल्के झटके लगने लगे। सबकी निगाह बाहर की तरफ उठ गई।

पनडुब्बी गहरे पानी से ऊपर उठ आई थी। परंतु अभी भी वो पानी में थी। बराबर पनडुब्बी में कम्पन हो रहा था, फिर एकाएक ही पनडुब्बी आगे को झुकने लगी और पीछे से ऊपर को उठने लगी।

ये क्या होईला बाप?” रुस्तम राव कह उठा।

घबराने की जरूरत नहीं।” मोमो जिन्न कह उठा_“पनडुब्बी तट पर लग रही है कुछ ही देर में हम बाहर...।”

लेकिन ये टेड़ी क्यों हो रही है?” महाजन कह उठा।

पनडुब्बी में प्रवेश और बाहरी रास्ता पीछे से है।” मोमो जिन्न् ने कहा-“पिछला हिस्सा वैसे ही पानी से बाहर आ जाएगा, जैसा कि तुम लोगों के भीतर प्रवेश करते वक्त, बाहर था। वहां से हम बाहर निकलेंगे।”

पनडुब्यो की पूंछों में बोत कुछ हौवे ।”

सब अपने को संभाले रहे। अभी सब ठीक हो जाएगा।” मोमो जिन्न की आवाज सुनाई दी।

फिर शीघ्र ही सब ठीक हो गया।

आगे से झुकी और पीछे को उठी, पनडुब्बी एक जगह ठहर गई। उसकी पारदर्शी बॉडी से बाहर के तट का बहुत बड़ा हिस्सा स्पष्ट नजर आ रहा था।

सफर ठहर गया था।

“चलो बाहर निकलो।” मोमो जिन्न पनडुब्बी के पीछे वाले हिस्से की तरफ बढ़ता कह उठा।
 
समुद्र के किनारे रेत ही रेत नजर आ रही थीं। वीरान तट था। दूर नारियल के पेड़ खड़े हवा के संग गोते लगा रहे थे। वहां के जंगल जैसी जगह की शुरुआत का आभास हो रहा था।

सबसे पहले मोमो जिन्न कांच की मछली की खुली पूंछ (मुंह) से बाहर निकला और कूदकर रेत भरी जमीन पर आ पहुंचा। बरबस ही उसका हाथ पेट पर पहुंच गया।

“भूख लग रही है। जब मेरे में इंसानी इच्छाएं नहीं थीं तो मैं काम में कितना व्यस्त रहता था। खाने-पीने की जरूरत ही नहीं रहती थी ।” मोमो जिन्न आसपास देखता बड़बड़ा उठा।

उसके बाद एक-एक करके सब बाहर निकल आए।

उसके बाद पनडुब्बी का मुंह बंद हुआ और वो वापस पानी में प्रवेश करके गुम हो गई।

मोमो जिन्न लक्ष्मण और सपन के पास जाकर कह उठा। “कितना अच्छा मौसम है यहां।”

“होगा।” सपन चड्ढा ने कटू स्वर में कहा।

यहां पर खाने को जलेबी मिल जाती तो कितना अच्छा रहता।” मोमो जिन्न ने धीमे स्वर में कहा।

सपन चड्ढा ने चिढ़कर कहा।

तुम्हें हर वक्त खाने की पड़ीं रहती है।”

धीरे बोल यार। जथूरा के सेवक सुन लेंगे।” मोमो जिन्न घबराकर बोला।

अब क्या करना है?” लक्ष्मण दास ने पूछा।

हम सोबरा की जमीन की तरफ चलेंगे।” मोमो जिन्न ने कहा।

“चलेंगे?

और क्या?”

लेकिन तुम तो हमें पलों में कहीं भी पहुंचा देते हो, जहां हमें जाना होता है।” लक्ष्मण दास ने कहा।

ऐसा करना अब ठीक नहीं ।”

क्यों?”

हम जथूरा की जमीन पर आ पहुंचे हैं।” मोमो जिन्न ने गम्भीर स्वर में कहा—“यहां मैं अपनी ताकतें इस्तेमाल करूंगा तो उसी पल जथूरा के सेवकों को स्क्रीन पर, मेरी हरकतें नजर आने लगेंगी। वो चैक करेंगे कि मैं किधर जा रहा हूं तो उन्हें पता चल जाएगा कि मैं सोबरा की जमीन की तरफ जा रहा हूं तो बाधा डालकर मुझे रोक देंगे। उसके बाद मेरे मस्तिष्क को अपनी इच्छा के अनुसार चलाएंगे और मुझे अपने पास बुला लेंगे। तब मशीन द्वारा मेरा निरीक्षण करेंगे कि मेरे में गड़बड़ कहां है और फौरन ही मशीन से एक पर्चा बाहर आ जाएगा, जिस पर लिखा होगा कि मेरे में इंसानी इच्छाएं आ गई हैं।”

“तुम्हारा मतलब कि पैदल चलने के अलावा हमारे पास कोई और रास्ता नहीं?” ।

“हां। हमें खामोशी से पैदल ही चलना होगा। तब वो सोचेंगे कि मैं उनके पास आ रहा हूं। इस तरह रास्ता कट जाएगा।”
“ठीक है जैसा तुम ठीक समझो।” ।

और ये बाकी लोग?” सपन चड्ढा ने मोमो जिन्न से पूछा।

“हमें अपनी चिंता करनी चाहिए। मेरा काम इन लोगों को जथूरा की जमीन पर लाना था। वो ला दिया ।” मोमो जिन्न बोला।

जाने से पहले इन्हें तो कुछ कहेंगे ही।”

वो मैं संभाल लूंगा।” मोमो जिन्न ने कहा और पलटकर सबसे बोला—“तुम लोग यहीं रुको। मैं लक्ष्मण और सपन को उन पेड़ों के पीछे ले जाऊं। ये कहते हैं कि पेट में गड़बड़ हो रही है।”

“तुम साथ में क्यों जाईला बाप। पेट में गड़बड़ तो इनके होईला ।”

“ये अकेलें जाने से डर रहे हैं।” मोमो जिन्न ने कहा और उन्हें लेकर दूर नजर आ रहे पेड़ों की तरफ चल दिया।

“वहां सोबरा कहीं हमें डंडे मारकर भगा तो नहीं देगा?” सपन चड्ढा ने कहा।

मेरे साथ वो अच्छा सलूक करेगा। क्योंकि उसे मुफ्त में जिन्न मिल रहा है। अब तुम दोनों बोलो।”

“क्या?” “जथूरा महान है।”

जथूरा महान है।” दोनों कह उठे।

वो सच में महान है।” मोमो जिन्न कह उठा“उसकी महानता का कोई अंत नहीं।”

सपन चड्ढा और लक्ष्मण दास की नजरें मिलीं।

“पागल है साला। जथूरा के गाने गा रहा हैं और सोबरा के पास जाकर बचना चाहता है।” सपन चड्ढा बोला। ।

“चुप कर। इसके साथ लगा रहने में ही हमारा भला है। हम इस पूरी जगह से अंजान हैं।”

बांकेलाल राठौर रुस्तम राव के पास आकर कह उठा।

छोरे, यो मोमो जिन्न म्हारे को गड़बड़ों लागे हो।”

क्यों बाप?”
 
हर वक्तो इन दोनों के साथ ही चिपको हो। ईब देख, पेट में दर्दो उन दोनों के हौवो, और खुदो साथ चल दयो ।”

“आपुन को क्या पता होएला बाप कि भीतरी लफड़ा क्या होईला।”

“गड़बड़ी तो हौवे ही कुछो ।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा।

देवराज चौहान की नजरें हर तरफ घूम रही थीं। परंतु दूर-दूर तक सुनसानी थी। कोई भी नहीं दिख रहा था। तभी मोना चौधरी पास आकर बोलीं । “तुम्हें कुछ अजीब नहीं लग रहा देवराज चौहान?”

कैसा अजीब?” देवराज चौहान ने मोना चौधरी को देखा।

यही कि हमें यहां लाकर पटक दिया और यहां कोई भी नहीं है। हमें ये भी नहीं पता कि हमें कहां जाना है।”

मोमो जिन्न हमारे साथ है।” मोना चौधरी की निगाह मोमो जिन्न की तरफ उठी जो लक्ष्मण-सपन के साथ पेड़ों की तरफ जा रहा था।

फिर भी जथूरा के लोगों को यहां अवश्य होना चाहिए था।” मोना चौधरी ने कहा।

“इतना ही बहुत है कि पूर्वजन्म तक पहुंचने का सफर आसानी से कट गया।” देवराज चौहान ने कहा।

हम अपनी इच्छा से पूर्वजन्म में नहीं आए, बल्कि हमें घेरकर पूर्वजन्म में पहुंचाया गया है।”

देवराज चौहान ने मोना चौधरी को देखा। नगीना भी पास आ पहुंची थी।

पहले हम सबको कालचक्र ने उस वीरान टापू पर पहुंचाया। फिर हमें वहां के अजीब हालातों में फंसाया गया। उसके बाद मजबूरन हमें पनडुब्बी में आना पड़ा और फिर हम यहां पहुंच गए।” मोना चौधरी ने कहा।

“ये ठीक कहती है।” नगीना कह उठी—“जथूरा हमें पूर्वजन्म में लाना चाहता था।” ।

“परंतु वो तो हमें पूर्वजन्म में आने से रोकना चाहता था।” देवराज चौहान बोला।

अवश्य ऐसा था।” नगीना बोली-“लेकिन मुझे लगता है कि बाद में उसने अपना इरादा बदल दिया था।”

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे। तभी महाजन पास आता कह उठा।। “अब हम क्या करें—किंधर जाना है हमें?"

देवराज चौहान की निगाह कमला रानी और मखानी की तरफ उठी। वो सबसे हटकर रेत में अलग बैठे हुए थे। फिर उसने मोमो जिन्न को देखा। परंतु वो नजर नहीं आया। लक्ष्मण-सपन के साथ पेड़ों के पीछे पहुंचकर वो नजरों से गुम हो गया था। पारसनाथ भी करीब आ गया था। ।

“यहां पर किसी का न होना हमें परेशान कर रहा है।” पारसनाथ बोला।

“शायद वे लोग आ रहे हो।” देवराज चौहान ने हर तरफ नजरें घुमाईं।

“उन्हें आना होता तो वे अब तक आ चुके होते ।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

मैं भी यहीं कहने वाली थी ।” नगीना कह उठी।

देखते हैं। मोमो जिन्न को वापस आ लेने दो।” देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा।

बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव कमला रानी और मखानी के पास पहुंचे।

का बात हौवे। जब से सफरो शुरु हौवो, तंम दोनों चुपो हौवे?” कमला रानी और मखानी ने उन्हें देखा, परंतु खामोश रहे।
कुछो तो बोल्लो हो ।” बांकेलाल राठौर ने पुनः कहा।

वे फिर भी चुप रहे।
सांप सुंघेला इन्हें बाप।”

म्हारे को अजगरो सुंघो लागे हो।”

दोनों उसके पास से हट गए।
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“शौहरी।” मखानी धीमें स्वर में बोला।

बोल।”

“जब से हमने सफर शुरू किया पनडुब्बी का, तब से तुमने हमें चुप रहने को क्यों कहा?" *

“मुझे गड़बड़ का अंदेशा हो रहा है।” शौहरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।

“कैसी गड़बड़?”

“मोमो जिन्न की तरफ से मुझे परेशानी आ रही है। उसकी तरफ से संकेत ठीक नहीं मिल रहें। जो भी जथूरा के हक में काम करता है, एक ही काम पर होने की वजह से, हमें संकेत मिलते रहते हैं कि काम ठीक चल रहा है। परंतु मोमो जिन्न की तरफ से मिलने वाले संकेत बीच-बीच में टूटते जा रहे हैं।”

“क्या वो जथुरा के खिलाफ चल रहा है?”

लगता तो ऐसा ही है। तभी लक्ष्मण और सपन ने तुम दोनों पर हमला किया। जान ले ली तुम दोनों की। तुम्हें नए शरीर में आना पड़ा।” ।

ये बात तो है। तू कहे तो मैं मोमो जिन्न से बात करूं।”

“मोमो जिन्न् तेरे हाथ के नीचे नहीं आने वाला। वो ताकतवर है। परंतु लगता है जैसे कि नई गड़बड़ हो गई हैं।”

नई गड़बड़? वो कैसे?”

“अब मुझे मोमो जिन्न की तरफ से कोई संकेत नहीं मिल रहे।”

इसका क्या मतलब हुआ?”

“वो यहां से काफी दूर चला गया लगता है।”

वो तो उन दोनों के साथ पेड़ों की तरफ गया है। मखानी ने उस तरफ देखा।

“मेरे खयाल में मोमो जिन्न उन दोनों के साथ वहां से भी दूर चला गया है।” शौहरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।

“ये तो बुरा हुआ। मैं लक्ष्मण और सपन को सबक सिखाना चाहता था।” मखानी बोला।

शौहरी की तरफ से कोई आवाज नहीं आई।

“तुम चुप क्यों हो गए?”

संकेतों को चैक कर रहा था। परंतु कोई फायदा नहीं। मोमो जिन्न की तरफ से कोई संकेत नहीं है।”

तो अब हम क्या करें?”

कुछ देर बाद बताऊंगा।” मखानी ने कमला रानी को देखा, वो उसे ही देख रही थी।

क्या बात हुई शौहरी से।” मखानी ने सब बता दिया।

“मुझे तो लगता है कि हम नई मुसीबत में पहुंच गए हैं।” कमला रानी गहरी सांस लेकर कह उठी।

वो कैसे?” ।

हम् पूर्वजन्म में आ पहुंचे हैं। इन सब लोगों का पूर्वजन्म। भौरी ने बताया कि हम अपनी दुनिया से दूर निकल आए हैं।”
ये जगह कहां पर है?”

मुझे क्या मालूम?” कमला रानी ने आस-पास नजरें दौड़ाईं।

भौरी से पूछा।”

“जब भी भौरी से बात करती हूँ तो व्यस्त होने को कह देती है। जबसे हम जथूरा की जमीन पर पहुंचे हैं, वो बहुत व्यस्त हो गई

। “छोड़ इन बातों को।” मखानी मुस्कराया—“वैसे ये जगह अच्छी
लगती है।”

“अभी देखी कहां है ये जगह। समुद्र और वो दूर पेड़ ही देखे

तू साथ है तो मुझे हर जगह अच्छी लगेगी।” मखानी मुस्करा पड़ा।

मुस्करा मत ।” कमला रानी ने मुंह बनाया।

क्यों?

जब भी तू मुस्कराकर मेरे से बात करता है तो उसके बाद चुम्मी मांगता है।”

“तेरे को पहले ही पता चल गया।”

क्या?"

“मैं तो चुम्मी मांगने वाला था।” कमला रानी ने मखानी को घूरा।

मखानी दाँत फाड़कर कह उठा।
सिर्फ एक ।”

नहीं।” कमला रानी ने इनकार में सिर हिलाया।

एक बार ।”

एक बार भी नहीं मैं...।” तभी मखानी ने झपट्टा मारा और कमला रानी की चुम्मी ले
ली ।।
 
कमला रानी ने धक्का दिया तो मखानी दो कदम दूर जा लुढ़का।

चुम्मी तो ले ही ली। तेरे में यही बुराई है कि जब तेरी जरूरत पड़ती है तू मना कर देती है।” मखानी बोला।

गलती तेरी है।

मेरी?”

तू मांगता क्यों है। सीधे-सीधे ले लिया कर। औरत मांगने पर नहीं देती। शर्म आती है। चुपचाप पास आ और ले लिया कर।”
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मोमो जिन्न, लक्ष्मण और सपन को गए जब देर होने लगी तो नगीना बोली।

“उन्हें अब तक आ जाना चाहिए था।” ।

“मैं देखकर आता हूं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान पेड़ों की तरफ बढ़ गया।

“अंम भी थारे साथ चल्लो हो। गड़बड़ो हौवे तो थारे को म्हारी जरूरत पड़ जावो ।”

बांकेलाल राठौर भी देवराज चौहान के साथ चल पड़ा।

मेरे ख़याल में वो तीनों वहां नहीं मिलेंगे।” मोना चौधरी कह उठी–“वहां होते तो अब तक उन्हें आ जाना चाहिए था।”

“क्या कहना चाहती हो?" पारसनाथ बोला।

अब तक वो खिसक चुके होंगे।”

मुझे नहीं लगता।” महाजन ने कहा—“आखिर वो ऐसा क्यों करेंगे।”

ये तो वो ही जाने ।” मोंना चौधरी कह उठी।।

नगीना और बांके पास में खामोश खड़े रहे।

कमला रानी और मखानी कई कदम दूर इस तरह बैठे थे कि जैसे उन्हें किसी बात से कोई मतलब ही न हो।

“मखानी ।” कमला रानी बोली-“हम बेकार हो गए। कुछ भी नहीं कर पा रहे।”

हम जिनके शरीरों में घुसे हुए हैं, वे कमजोर हैं। हमारे लिए जग्गू-मिन्नो के बहरूप बढ़िया थे।”

“मैंने तो सोचा था कि पूर्वजन्म में आकर मजा रहेगा। लेकिन यहां तो दिल लगाने को कुछ भी नहीं है।”

मैं हूं तो।”

तू सिर्फ चुम्मी ही लेता है।”

“मैं तो आगे भी बढ़ना चाहता हूं, परंतु तू ही लाल बत्ती दिखा देती है।”

“तेरे को कभी भी अक्ल नहीं आएगी।” कमला रानी ने मुंह बनाया।

“क्यों?”

“औरत जब लाल बत्ती दिखाए तो उसे हरी समझा कर। औरत कभी भी हरी बत्ती नहीं दिखाएगी मर्द को ।”

“ऐसा क्यों?” ।

यही तो औरत की फितरत है। औरत की न में हां छिपी होती है, वरना वो न शब्द का भी इस्तेमाल न करे।”

ये तो तूने नई बात बताई। आऊ क्या?”

फिर पूछने लगा। तू कभी भी...।”

“कमला रानी।” तभी कमला रानी के कानों में भौरी की आवाज गूंजी।

“भौरी तू।” कमला रानी के होंठ हिले–“तूने तो मेरे से बात करना ही बंद कर दिया।”

“जथूरा की जमीन पर पहुंचते ही मैं अचानक व्यस्त हो गई थी।”

“अब फुर्सत मिल गई?”

“थोड़ी-बहुत। अब तेरे और मखानी के काम का वक्त आ गया

| “हमें कमजोर शरीर मिले हुए हैं। झगड़े वाला काम नहीं कर सकते हम।”

झगड़ा नहीं करना है।”

तो बोल।”

देवा और भंवर सिंह, मोमो जिन्न, लक्ष्मण, सपन को देखने उधर गए हैं कि वो देर क्यों लगा रहे हैं।”

हमें उससे क्या?”

सच बात तो ये है कि वो तीनों सोबरा की जमीन पर जाने के लिए निकल पड़े हैं।”

सोबरा की जमीन पर...

मोमो जिन्न जाएगा।

लेकिन क्यों?”

तू इस चक्कर में न पड़। अपने काम की बात सुन।”

बोल भौरी।”

“तूने इन सबको जथूरा की नगरी में लाना है।”
 
“जथूरा की नगरी, मैं तो जानती नहीं कि वो किधर है।” कमला रानी के होंठों से निकला।

मखानी कमला रानी को देख रहा था।

मैं हूँ न, तेरे को रास्ता बताने वाली।”

‘ समझ गई।” ।

इनमें से कोई नहीं जानता कि किधर जाना है। तेरे को इन्हें जथूरा की नगरी तक ले जाना है। रास्ते के बारे में तू निश्चिंत रह, वो तेरे को मैं बताती रहूंगी ।” भौरी का शांत स्वर कानों में पड़ा।

“ये काम तो हो जाएगा।” कमला रानी बोली–“ये बता कि हमारा ठिकाना कहां है। यहां तो हमें कोई नजर नहीं आता।” ।

“तू मेरे साथ रहेगी, परंतु अभी नहीं। अभी कई काम पड़े हैं। करने को।”

“मुझे और मखानी को एक साथ रहने का वक्त कब मिलेगा?”

जल्दी मिलेगा। तुम दोनों इन सबको लेकर जथूरा की नगरी पहुंचो।” ।

“वो कितनी दूर है?”

“पास ही है। कुछ ही देर में तुम लोग वहां पहुंच सकते हो।” इसके बाद भौरी की आवाज नहीं आई। कमला रानी ने मखानी को सब कुछ बताया।

तो मोमो जिन्न गड़बड़ कर गया। वो पहले से ही गलत चल रहा था। उसके कहने पर ही लक्ष्मण और सपन ने हमारी जानें लीं ।” ।

“वो तो है।” कमला रानी कह उठी–“अभी तो वो तीनों जथूरा की जमीन पर ही होंगे। जथूरा उन्हें पकड़ क्यों नहीं लेता।”

क्या पता जथूरा उन्हें पकड़ने के फेर में हो ।”

ये हो सकता है।”

अब हमें इन सब पर ध्यान देना चाहिए। हमें काम मिल गया है। सबको जथूरा की नगरी में ले जाना है।”

मोमो जिन्न, लक्ष्मण दास और सपन चडूढा उन्हें नहीं मिले।

वे सब हैरान-परेशान थे कि आखिर वे इस तरह गायब क्यों हो गए। तब कमला रानी और मखानी अपनी दाल गलाने पास आ पहुंचे।

मैं जानता था, वे तीनों भाग जाएंगे।” मखानी कह उठा।

क्यों?" नगीना ने उन्हें देखा।

क्योंकि मोमो जिन्न ने जथूरा से विद्रोह कर दिया है। जथूरा के खिलाफ चल रहा है वो। हम दोनों को लक्ष्मण और सपन ने उसी के कहने पर मारा था। इस बात का उसे जथूरा को जवाब तो देना ही पड़ेगा।” मखानी ने भोलेपन से कहा।

तंम पैले ही सब कुछ जानो हो ।”

“हां।”

“तो म्हारे को कोणो न बतायो हो?”

“तुमने पूछा ही नहीं।”

“तंम टेढ़ा चल्ने हो। अंम भूलो नेई कि तंमने म्हारे को, मारना चाहते हो। अंम पैले तंम दोनों को वडो हो।” कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर आगे बढ़ा तो देवराज चौहान बोल पड़ा।
“रुक जाओं बांके ।” ।
 
“तंम टेढ़ा चल्ने हो। अंम भूलो नेई कि तंमने म्हारे को, मारना चाहते हो। अंम पैले तंम दोनों को वडो हो।” कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर आगे बढ़ा तो देवराज चौहान बोल पड़ा।
“रुक जाओं बांके ।” ।

“यो दोनों हरामों हौवे–म्हारे को मारणों को पूरों तैयारी कर लयों हो ।”

इस वक्त ये हमारे काम आ सकते हैं।”

“का काम आवे यो फुसड़े दोनों ।”

देवराज चौहान ने दोनों से कहा।
तुममें से कोई यहां के रास्ते जानता है?”

“नहीं।” मखानी ने इनकार में सिर हिलाया।

मैं जानती हूं।” कमला रानी बोली। मखानी ने कमला रानी को देखा और सिर हिलाकर कह उठा। ये जानतीं है। मैं बताना भूल गया था।”

“जथूरा कहां मिलेगा?” देवराज चौहान ने पूछा।

“अपनी नगरी में। मैं तुम सबको वहां ले जा सकती हूं।” कमला रानी ने कहा।

“तुम्हें कैसे पता कि हम वहां जाना चाहते हैं।”

“तो और कहां जाओगे। जथूरा की इस जमीन पर यूं ही तो घूमते नहीं रहोगे। नगरी में जाओगे ही।”

“तुम इतनी आसानी से हमें नगरी तक ले जाने के लिए कैसे तैयार हो गईं?” मोना चौधरी बोली।

“मत जाओ।”

“तुम मेरे सवाल का जवाब नहीं दे रहीं, ये कहकर बात को टाल रही हो।”

“मैंने ठीक ही तो कहा है कि यहाँ तक पहुंच गए हो तो तुम्हें जथूरा की नगरी तक जाना ही होगा। और तो कोई जगह ही नहीं है कि तुम लोग जा सको।” कमला रानी ने सरल स्वर में कहा “सोबरा की तरफ जाना चाहते हो तो जुदा बात है।”

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हम जथूरा के पास ही जाना चाहते हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

सोबरा के पास जाने में क्या बुराई है।” मोना चौधरी ने देवराज चौहान को देखा।

“तुम जा सकती हो।”

तुम क्यों जथूरा के पास ही जाना चाहते हो?”

मुझे लगता है कि जथूरा ने हमसे चालाकी खेली है।” देवराज चौहान ने सोच-भरे स्वर में कहा “वो ये ही दर्शाता रहा कि हमें पूर्वजन्म में आने से रोकना चाहता है, जबकि वो हमें यहां बुलाना चाहता था।”

नेई बाप ।” रुस्तम राव के होंठों से निकला। पारसनाथ और महाजन की नजरें मिलीं।

 
“ये बात तो शायद मैं भी स्वीकार करती हूं।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मुझे जथूरा से जानना है कि वो चाहता क्या है। क्यों उसने हमें चक्कर में डालकर, यहां तक लाने की कोशिश की।”

“ऐसा कुछ था तो जथूरा सीधे-सीधे कहकर भी हमें बुला सकता था।” नगीना बोलीं।।

वो ऐसा नहीं कह सकता था नगीना।”

क्यों?” ।

“क्या हम उसके बुलावे पर पूर्वजन्म में जाना पसंद करते? शायद कभी नहीं करते।” ।

“तो इसलिए उसने हमें चक्कर में डालकर यहां तक पहुंचा दिया?" नगीना ने सिर हिलाया।

“शायद, यह बात हो सकती है, परंतु पक्का कुछ नहीं है। असल बात तो जथूरा ही बताएगा।”

तो अब हम जथूरा के पास चलें?”

जरूर ।” देवराज चौहान ने कमला रानी और मखानी को देखा–“क्या हम चलें?” ।

“क्यों नहीं। आओ।” कहकर कमला रानी आगे-आगे एक दिशा
की तरफ चल पड़ी।।

सब उसके पीछे चल पड़े। मखानी रुस्तम राव के पास पहुंचा और कह उठा।

मैं लक्ष्मण दास और सपन को नहीं छोडूंगा।”

“काये को?”

उन्होंने हमें मार दिया था उस रात ।” ।

तुम दोनों भी तो उस रात हम सबको मारने जा रहे थे।” पीछे आता महाजन् कह उठा।

तुमसे किसने बात की।” मखानी ने माथे पर बल डालकर कहा।

“बात कर ली तो तेरा क्या घिस गया ।” महाजन मुस्कराया।

मैं बात नहीं करता।” कहकर मखानी आगे जाती कमला रानी के पास पहुंच गया।

“मखानी।” कमला रानी धीमे स्वर में बोली-“ये सब तो आसानी से हमारे साथ चल पड़े। ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।”

फंसे पड़े हैं कि इस अंजान-वीरान जगह पर, कहां जाए। अपनी जरूरत को हमारे साथ चले हैं।” ।

“जथूरा की नगरी देखने की मेरी बहुत इच्छा हो रही है कि वो कैसी होगी।” ।

“मैं तो कुछ और ही सोच रहा हूं।”

क्या मखानी।” ।

यहीं कि हम दोनों को एकांत कब मिलेगा। कब हम प्यार करेंगे।” मखानी ने गहरी सांस लेकर कहा।

“मेरे खयाल में हमें जथूरा की नगरी में अवश्य एक कमरा मिल जाएगा।”

कमरा न भी मिले। किसे परवाह है, पेड़ की छाया और तने की ओट मिल जाए, हम अपना काम चला लेंगे।”

“शरारतें तूने छोड़ी नहीं मखानी।”
 
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