desiaks
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देवराज चौहान लक्ष्मण दास की तरफ आ गया। मोना चौधरी महाजन की तरफ बढ़ गई थी।
हैरत की बात थी कि कोई भी बस्ती वाला लक्ष्मण दास या सपन चड्ढा की तरफ नहीं आया था। वो सब चीखते हुए इधर-उधर दौड़कर बता रहे थे कि कमला रानी को मार दिया गया
और वो अपनी झोंपड़ियों की तरफ भाग रहे थे।
तभी जमीन कांपी।।
लगा जैसे समुद्र में टिकी टापू की जमीन ने अपना नियंत्रण खो दिया हो। वो पानी में आजाद होकर, जहाज की तरह इधर-उधर डोलने लगी हो। मध्यम गति से टापू की जमीन डोल रही थी। हिल रही थीं। वो कभी दाएं होती तो कभी बाएं, तो कभी सामान्य-सी होकर स्थिर हो जाती। बेहद अजीब सन्न कर देने वाला नजारा था।
लोग भाग रहे थे। चीख-पुकार, शोर मचा हुआ था।
देवराज चौहान लक्ष्मण दास के पास आकर, शोर में ऊंचे स्वर में कह उठा।
“तुमने तो कमाल कर दिया लक्ष्मण दास । कमला रानी और मखानी को मार दिया।”
सोचा, तुम कई बार मेरे काम आए हो, एक बार मैं भी तुम्हारे काम आ जाऊं।” लक्ष्मण दास ने उत्साह-भरे स्वर में कहा।
मैंने तो तुम्हारे काम आने की कीमत ली...।”
कोई बात नहीं तुम भी मुझे कीमत दे देना।” लक्ष्मण दास हंसा।
देवराज चौहान मुस्कराया।
वैसे, मैंने कुछ नहीं किया, ये सब मोमो जिन्न का किया-धरा
*
“वो कैसे?"
मोमो जिन्न ने मुझमें और सपन में हिम्मत डाल दी, जिसकी वजह से हम ये सब कर सके। अब हमें किसी भी बात का डर नहीं लग रहा। पहले मेरे में इतनी हिम्मत नहीं थी।” लक्ष्मण दास के हाथ में अभी भी खून सना खंजर था।
देवराज चौहान की नजरें हर तरफ जा रहीं थीं।
चूंकि मशालें थामे लोग वहां से भागते जा रहे थे, इसलिए अंधेरा-सा होने लगा था। सिर्फ उन्हीं मशालों की रोशनी वहां फैल रही थी, जो पेड़ों पर या अन्य जगहों पर लगी थीं।
देवराज चौहान् ।” लक्ष्मण दास बोला।।
“हो ।”
ये टापू अचानक बेकाबू-सा हो गया है। लगता है जैसे समुद्र में जमीन का बड़ा-सा टुकड़ा डोल रहा हो।”
“हां, ऐसा ही हो रहा है।”
हम कैसे बचेंगे। हम नहीं जानते कि हम कहां पर हैं।”
तभी नगीना पास आ पहुंची।
ये अचानक ही टापू को क्या हो गया है?” नगीना ने हड़बड़ाए स्वर में कहा।
“मैं नहीं जानता कि ये क्या हो रहा है।” देवराज चौहान ने कहा।
“आज रात में कालचक्र सिमट जाएगा। पोतेबाबा ने यही कहा था। कहीं ये सिमटने की वजह से ही तो नहीं हो रहा।”
। । “कुछ भी हो सकता है। मैं स्वयं इन बातों से अंजान हूं नगीना ।” देवराज चौहान के स्वर में चिंता थीं।
तभी मोना चौधरी, पारसनाथ, महाजन, बांके और रुस्तम और सपन चड्ढा पास आ पहुंचे।
“क्यों लक्ष्मण मजा आया न?” सपन चड्ढा हंसकर कह उठा।
बहुत, आखिर हमने मार दिया उन्हें ।” मोमो जिन्न् कहां है?”
पता नहीं। अभी आ जाएगा। वो हमें अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाएगा।”
मोना चौधरी देवराज चौहान से कह उठी।
ये टापू समुद्र में समा जाएगा। तभी ये डोल रहा है।”
“मुझे भी ऐसा ही लगता है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये जगह कालचक्र का ही हिस्सा है और कालचक्र ने सुबह होने तक सिमट जाना है। तब इस टापू का भी नामोनिशान नहीं रहेगा।” ।
ये बात तुम्हें किसने बताई?”
“पोतेबाबा ने ।”
“ओह। लेकिन अब हमारा क्या होगा?” मोना चौधरी बोली-“मेरे खयाल में हम गहरे समुद्र में हैं।”
इस बारे में तो पोतेबाबा या पेशीराम ही बताएंगे।”
उसी पल सब जोरों से लड़खड़ाए। टापू की जमीन टेढ़ी हुई थी।
अगले ही पल जमीन सामान्य हालत में आ गई। सबने खुद को संभाला।
हैरत की बात थी कि कोई भी बस्ती वाला लक्ष्मण दास या सपन चड्ढा की तरफ नहीं आया था। वो सब चीखते हुए इधर-उधर दौड़कर बता रहे थे कि कमला रानी को मार दिया गया
और वो अपनी झोंपड़ियों की तरफ भाग रहे थे।
तभी जमीन कांपी।।
लगा जैसे समुद्र में टिकी टापू की जमीन ने अपना नियंत्रण खो दिया हो। वो पानी में आजाद होकर, जहाज की तरह इधर-उधर डोलने लगी हो। मध्यम गति से टापू की जमीन डोल रही थी। हिल रही थीं। वो कभी दाएं होती तो कभी बाएं, तो कभी सामान्य-सी होकर स्थिर हो जाती। बेहद अजीब सन्न कर देने वाला नजारा था।
लोग भाग रहे थे। चीख-पुकार, शोर मचा हुआ था।
देवराज चौहान लक्ष्मण दास के पास आकर, शोर में ऊंचे स्वर में कह उठा।
“तुमने तो कमाल कर दिया लक्ष्मण दास । कमला रानी और मखानी को मार दिया।”
सोचा, तुम कई बार मेरे काम आए हो, एक बार मैं भी तुम्हारे काम आ जाऊं।” लक्ष्मण दास ने उत्साह-भरे स्वर में कहा।
मैंने तो तुम्हारे काम आने की कीमत ली...।”
कोई बात नहीं तुम भी मुझे कीमत दे देना।” लक्ष्मण दास हंसा।
देवराज चौहान मुस्कराया।
वैसे, मैंने कुछ नहीं किया, ये सब मोमो जिन्न का किया-धरा
*
“वो कैसे?"
मोमो जिन्न ने मुझमें और सपन में हिम्मत डाल दी, जिसकी वजह से हम ये सब कर सके। अब हमें किसी भी बात का डर नहीं लग रहा। पहले मेरे में इतनी हिम्मत नहीं थी।” लक्ष्मण दास के हाथ में अभी भी खून सना खंजर था।
देवराज चौहान की नजरें हर तरफ जा रहीं थीं।
चूंकि मशालें थामे लोग वहां से भागते जा रहे थे, इसलिए अंधेरा-सा होने लगा था। सिर्फ उन्हीं मशालों की रोशनी वहां फैल रही थी, जो पेड़ों पर या अन्य जगहों पर लगी थीं।
देवराज चौहान् ।” लक्ष्मण दास बोला।।
“हो ।”
ये टापू अचानक बेकाबू-सा हो गया है। लगता है जैसे समुद्र में जमीन का बड़ा-सा टुकड़ा डोल रहा हो।”
“हां, ऐसा ही हो रहा है।”
हम कैसे बचेंगे। हम नहीं जानते कि हम कहां पर हैं।”
तभी नगीना पास आ पहुंची।
ये अचानक ही टापू को क्या हो गया है?” नगीना ने हड़बड़ाए स्वर में कहा।
“मैं नहीं जानता कि ये क्या हो रहा है।” देवराज चौहान ने कहा।
“आज रात में कालचक्र सिमट जाएगा। पोतेबाबा ने यही कहा था। कहीं ये सिमटने की वजह से ही तो नहीं हो रहा।”
। । “कुछ भी हो सकता है। मैं स्वयं इन बातों से अंजान हूं नगीना ।” देवराज चौहान के स्वर में चिंता थीं।
तभी मोना चौधरी, पारसनाथ, महाजन, बांके और रुस्तम और सपन चड्ढा पास आ पहुंचे।
“क्यों लक्ष्मण मजा आया न?” सपन चड्ढा हंसकर कह उठा।
बहुत, आखिर हमने मार दिया उन्हें ।” मोमो जिन्न् कहां है?”
पता नहीं। अभी आ जाएगा। वो हमें अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाएगा।”
मोना चौधरी देवराज चौहान से कह उठी।
ये टापू समुद्र में समा जाएगा। तभी ये डोल रहा है।”
“मुझे भी ऐसा ही लगता है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये जगह कालचक्र का ही हिस्सा है और कालचक्र ने सुबह होने तक सिमट जाना है। तब इस टापू का भी नामोनिशान नहीं रहेगा।” ।
ये बात तुम्हें किसने बताई?”
“पोतेबाबा ने ।”
“ओह। लेकिन अब हमारा क्या होगा?” मोना चौधरी बोली-“मेरे खयाल में हम गहरे समुद्र में हैं।”
इस बारे में तो पोतेबाबा या पेशीराम ही बताएंगे।”
उसी पल सब जोरों से लड़खड़ाए। टापू की जमीन टेढ़ी हुई थी।
अगले ही पल जमीन सामान्य हालत में आ गई। सबने खुद को संभाला।