desiaks
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“अब उन इच्छाओं को क्या हुआ?”
“वो निकाल ली गईं।”
कुछ खाना पसंद करोगे?” सपन चड्ढा एकाएक कह उठा।
तमीज से बात करो। जिन्न कभी भी कुछ नहीं खाते। तुम दोनों बहुत बदतमीज हो गए हो।” मोमो जिन्न ने गुस्से से कहा।
अभी तो तू हमें यार-यार कह रहा था।”
तब मैं भटक गया था। लेकिन अब ठीक है।”
तू तो ठीक है, लेकिन हमारा क्या होगा?”
“हमें यहां से चलना होगा।”
कहाँ?” ।
महाकाली की पहाड़ी की तरफ।”
“महाकाली—ये कौन है?”
जादूगरनी है। बहुत ताकतवर है।”
तो ह...हमें वहां क्यों ले जा रहे हैं?”
“मैं नहीं जानता। मुझे जथूरा के सेवकों की तरफ से हुक्म मिला है, उधर जाने का ।” ।
“लक्ष्मण! ये तो हमें जादूगरनी की पहाड़ी की तरफ ले जा रहा है। हम बुरे मरेंगे।”
ये कब हमारा पीछा छोड़ेगा?” लक्ष्मण दास ने मोमों जिन्न से कहा।
“जथूरा के सेवकों ने तुम्हें महाकाली पहाड़ी की तरफ जाने को कहा है?”
हो ।”
तो तुम जाओ, हमें क्यों ले...।” ।
“तुम दोनों मेरे गुलाम हो। तुम्हें भी मेरे साथ चलना होगा, वरना भटक जाओगे।”
अब सोबरा के पास नहीं जाना तुम्हें?”
“सोबरा के पास मेरा क्या काम ।” मोमो जिन्न ने कठोर स्वर मैं कहा।
अभी तो तुम वहां की तरफ जा रहे थे।”
तब इंसानी इच्छाओं ने मुझे भटका दिया था। लेकिन अब मैं ठीक हो चुका हूं।”
तू तो बात-बात पर रंग बदलता है।”
खबरदार, ठीक से बात करो। मैं जिन्न हूं। तुम दोनों का मालिक।”
लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा की नजरें मिलीं।
सुना तूने।” ये तो जलेबी-बड़ी खाई सब भूल गया।” “यारी की बड़ी-बड़ी कसमें खाता था, वो भी भूल गया।”
कहता था जिन्न कभी झूठ नहीं बोलता। लेकिन ये तो मुझे सच बोलता दिखता हीं नहीं ।”
“तुम दोनों को शिष्टता सिखानी होगी।” मोमो जिन्न बोला।
“तेरे किए-थरे पर हीं तो बात कर रहे हैं कि...।”
वो बीती बातें हैं, नई बातें करो।” मोमो जिन्न ऊंचे स्वर में बोला—“उठो यहां से, हमें महाकाली की पहाड़ी की...।”
वहां हमारा क्या काम। वो तो जादूगरनी है। हमें मार देगी।”
काम वहां जाकर पता चलेगा। बाकी का आदेश बाद में मिलेगा।” ।
तुझमें जब इंसानी इच्छाएं आ गई थीं तो हमने तेरा कितना साथ दिया। अगर तब जथूरा के सेवकों को पता चल जाता तो वो तुम्हारी
जान ले लेते। तब हमने तुम्हें बचाया।” लक्ष्मण दास ने कहा।
हमने तेरे को ख़ाने को भी दिया तब ।”
खामोश रहो। जिन्न से खाने-पीने की बातें मत करो। वो मेरा बुरा वक्त था। अब तुम लोग मुझसे शिष्टता से पेश आओ। मैं जथूरा
का सेवक हूं। ये बात हमेशा ध्यान रखो।” ।
क्या मुसीबत है?”
मुझे भूख लगी है।” लक्ष्मण दास कह उठा।
तुम इंसानों की यही समस्या है कि बात-बात पर खाने को कहते हो।”
भूख लगती है तो कहेंगे नहीं क्या ।” ।
“अब चलो यहां से, रास्ते में फल के पेड़ मिलेंगे तो खा लेना।” मोमो जिन्न हुक्म देने वाले स्वर में बोला।।
“वो निकाल ली गईं।”
कुछ खाना पसंद करोगे?” सपन चड्ढा एकाएक कह उठा।
तमीज से बात करो। जिन्न कभी भी कुछ नहीं खाते। तुम दोनों बहुत बदतमीज हो गए हो।” मोमो जिन्न ने गुस्से से कहा।
अभी तो तू हमें यार-यार कह रहा था।”
तब मैं भटक गया था। लेकिन अब ठीक है।”
तू तो ठीक है, लेकिन हमारा क्या होगा?”
“हमें यहां से चलना होगा।”
कहाँ?” ।
महाकाली की पहाड़ी की तरफ।”
“महाकाली—ये कौन है?”
जादूगरनी है। बहुत ताकतवर है।”
तो ह...हमें वहां क्यों ले जा रहे हैं?”
“मैं नहीं जानता। मुझे जथूरा के सेवकों की तरफ से हुक्म मिला है, उधर जाने का ।” ।
“लक्ष्मण! ये तो हमें जादूगरनी की पहाड़ी की तरफ ले जा रहा है। हम बुरे मरेंगे।”
ये कब हमारा पीछा छोड़ेगा?” लक्ष्मण दास ने मोमों जिन्न से कहा।
“जथूरा के सेवकों ने तुम्हें महाकाली पहाड़ी की तरफ जाने को कहा है?”
हो ।”
तो तुम जाओ, हमें क्यों ले...।” ।
“तुम दोनों मेरे गुलाम हो। तुम्हें भी मेरे साथ चलना होगा, वरना भटक जाओगे।”
अब सोबरा के पास नहीं जाना तुम्हें?”
“सोबरा के पास मेरा क्या काम ।” मोमो जिन्न ने कठोर स्वर मैं कहा।
अभी तो तुम वहां की तरफ जा रहे थे।”
तब इंसानी इच्छाओं ने मुझे भटका दिया था। लेकिन अब मैं ठीक हो चुका हूं।”
तू तो बात-बात पर रंग बदलता है।”
खबरदार, ठीक से बात करो। मैं जिन्न हूं। तुम दोनों का मालिक।”
लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा की नजरें मिलीं।
सुना तूने।” ये तो जलेबी-बड़ी खाई सब भूल गया।” “यारी की बड़ी-बड़ी कसमें खाता था, वो भी भूल गया।”
कहता था जिन्न कभी झूठ नहीं बोलता। लेकिन ये तो मुझे सच बोलता दिखता हीं नहीं ।”
“तुम दोनों को शिष्टता सिखानी होगी।” मोमो जिन्न बोला।
“तेरे किए-थरे पर हीं तो बात कर रहे हैं कि...।”
वो बीती बातें हैं, नई बातें करो।” मोमो जिन्न ऊंचे स्वर में बोला—“उठो यहां से, हमें महाकाली की पहाड़ी की...।”
वहां हमारा क्या काम। वो तो जादूगरनी है। हमें मार देगी।”
काम वहां जाकर पता चलेगा। बाकी का आदेश बाद में मिलेगा।” ।
तुझमें जब इंसानी इच्छाएं आ गई थीं तो हमने तेरा कितना साथ दिया। अगर तब जथूरा के सेवकों को पता चल जाता तो वो तुम्हारी
जान ले लेते। तब हमने तुम्हें बचाया।” लक्ष्मण दास ने कहा।
हमने तेरे को ख़ाने को भी दिया तब ।”
खामोश रहो। जिन्न से खाने-पीने की बातें मत करो। वो मेरा बुरा वक्त था। अब तुम लोग मुझसे शिष्टता से पेश आओ। मैं जथूरा
का सेवक हूं। ये बात हमेशा ध्यान रखो।” ।
क्या मुसीबत है?”
मुझे भूख लगी है।” लक्ष्मण दास कह उठा।
तुम इंसानों की यही समस्या है कि बात-बात पर खाने को कहते हो।”
भूख लगती है तो कहेंगे नहीं क्या ।” ।
“अब चलो यहां से, रास्ते में फल के पेड़ मिलेंगे तो खा लेना।” मोमो जिन्न हुक्म देने वाले स्वर में बोला।।