XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - Page 31 - SexBaba
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XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

“अब उन इच्छाओं को क्या हुआ?”

“वो निकाल ली गईं।”

कुछ खाना पसंद करोगे?” सपन चड्ढा एकाएक कह उठा।

तमीज से बात करो। जिन्न कभी भी कुछ नहीं खाते। तुम दोनों बहुत बदतमीज हो गए हो।” मोमो जिन्न ने गुस्से से कहा।

अभी तो तू हमें यार-यार कह रहा था।”

तब मैं भटक गया था। लेकिन अब ठीक है।”

तू तो ठीक है, लेकिन हमारा क्या होगा?”

“हमें यहां से चलना होगा।”

कहाँ?” ।

महाकाली की पहाड़ी की तरफ।”

“महाकाली—ये कौन है?”

जादूगरनी है। बहुत ताकतवर है।”

तो ह...हमें वहां क्यों ले जा रहे हैं?”

“मैं नहीं जानता। मुझे जथूरा के सेवकों की तरफ से हुक्म मिला है, उधर जाने का ।” ।

“लक्ष्मण! ये तो हमें जादूगरनी की पहाड़ी की तरफ ले जा रहा है। हम बुरे मरेंगे।”

ये कब हमारा पीछा छोड़ेगा?” लक्ष्मण दास ने मोमों जिन्न से कहा।

“जथूरा के सेवकों ने तुम्हें महाकाली पहाड़ी की तरफ जाने को कहा है?”

हो ।”

तो तुम जाओ, हमें क्यों ले...।” ।

“तुम दोनों मेरे गुलाम हो। तुम्हें भी मेरे साथ चलना होगा, वरना भटक जाओगे।”

अब सोबरा के पास नहीं जाना तुम्हें?”

“सोबरा के पास मेरा क्या काम ।” मोमो जिन्न ने कठोर स्वर मैं कहा।

अभी तो तुम वहां की तरफ जा रहे थे।”

तब इंसानी इच्छाओं ने मुझे भटका दिया था। लेकिन अब मैं ठीक हो चुका हूं।”

तू तो बात-बात पर रंग बदलता है।”

खबरदार, ठीक से बात करो। मैं जिन्न हूं। तुम दोनों का मालिक।”

लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा की नजरें मिलीं।
सुना तूने।” ये तो जलेबी-बड़ी खाई सब भूल गया।” “यारी की बड़ी-बड़ी कसमें खाता था, वो भी भूल गया।”
कहता था जिन्न कभी झूठ नहीं बोलता। लेकिन ये तो मुझे सच बोलता दिखता हीं नहीं ।”

“तुम दोनों को शिष्टता सिखानी होगी।” मोमो जिन्न बोला।

“तेरे किए-थरे पर हीं तो बात कर रहे हैं कि...।”

वो बीती बातें हैं, नई बातें करो।” मोमो जिन्न ऊंचे स्वर में बोला—“उठो यहां से, हमें महाकाली की पहाड़ी की...।”

वहां हमारा क्या काम। वो तो जादूगरनी है। हमें मार देगी।”

काम वहां जाकर पता चलेगा। बाकी का आदेश बाद में मिलेगा।” ।

तुझमें जब इंसानी इच्छाएं आ गई थीं तो हमने तेरा कितना साथ दिया। अगर तब जथूरा के सेवकों को पता चल जाता तो वो तुम्हारी
जान ले लेते। तब हमने तुम्हें बचाया।” लक्ष्मण दास ने कहा।

हमने तेरे को ख़ाने को भी दिया तब ।”

खामोश रहो। जिन्न से खाने-पीने की बातें मत करो। वो मेरा बुरा वक्त था। अब तुम लोग मुझसे शिष्टता से पेश आओ। मैं जथूरा
का सेवक हूं। ये बात हमेशा ध्यान रखो।” ।

क्या मुसीबत है?”

मुझे भूख लगी है।” लक्ष्मण दास कह उठा।

तुम इंसानों की यही समस्या है कि बात-बात पर खाने को कहते हो।”

भूख लगती है तो कहेंगे नहीं क्या ।” ।

“अब चलो यहां से, रास्ते में फल के पेड़ मिलेंगे तो खा लेना।” मोमो जिन्न हुक्म देने वाले स्वर में बोला।।
 
लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा उठ खड़े हुए। “चल सपन् ।”

वों जादूगरनी...।”

“बोलो, जथूरा महान है।” मोमो जिन्न कह उठा।

लेकिन...।”

बोलो।” मोमो जिन्न कठोर स्वर में कह उठा।

जथूरा महान है।” दोनों एक साथ कह उठे।

याद रखो, जो बात कहूं वो एक ही बार में मान लिया करो, वरना कपड़े उतरवाकर, नंगा करके घुमाऊंगा।”

‘हरामी कहीं का।' सपन चड्ढा बड़बड़ा उठा।

क्या कहा?” मोमो जिन्न ने हुंकार भरी।

“जथूरा महान है।”

“हां, ऐसे ही बोला करो। जथूरा के अच्छे सेवक बनो। तरक्की करोगे।”

नगरी की चारदीवारी दिखने लगी थीं।।

कमला रानी।” भौरी का स्वर् कानों में पड़ा-“ये ही है जथूरा की नगरी।”

यहां तो बड़े-बड़े महल बने दिखाई दे रहे हैं।”

“हां। ये तो एक नगरी है ऐसी कई नगरियां हैं जथूरा की, जहां उसके काम होते हैं।”

वो कैसी जगह है?” मखानी ने कमला रानी से पूछा। जथूरा की नगरी है, वहीं पर हमें जाना है।” सब तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे। सूर्य पश्चिम की तरफ खिसक चुका था।

छोरे । यो तो बोत शानदारों जगहो लागे हो ।” बांकेलाल राठौर कह उठा।

येई जथूरा की नगरी होईला बाप ।”

तंम पैले इधर आयो हो?”

नेई बाप ।”

फिर थारो कैसो पतो हौवे कि यो जथूरा की नगरी होवे।”

*आपुन का दिल कहेला बाप ।”

ये कौन-सी जगह है?” नगीना ने चलते हुए ऊंचे स्वर में पूछा।

“जथूरा की नगरी है ये। हमें यहीं जाना हैं।” मखानी ने कहा।

सब पसीने से भीगे हुए थे। एक पल के लिए भी वो रुके नहीं थे।
पारसनाथ मोना चौधरी से बोला। “यहां हमारे लिए खतरा हो सकता है।”
“सम्भव है।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली-“जथूरा ने कभी नहीं चाहा कि हम यहां तक आएं।”
तो अब क्या करना चाहिए हमें?”

“वहां जथूरा की हुकूमत है। हमारी एक नहीं चलने वाली।” महाजन ने कहा।
उसकी बातें सुन रही नगीना कह उठी।

जथूरा ही तो हमें यहां तक लाया है। फिर उससे डर कैसा।”

जथूरा लाया है हमें यहां?” महाजन ने नगीना को देखा।

ह्म। मोमो जिन्न उसका गुलाम है। वो पनडुब्बी जथूरा की थी। हम खुद तो नहीं आ पहुंचे थे पनडुब्बी में।”

“जथूरा से डरने की जरूरत नहीं है।” दो कदम आगे चलता देवराज चौहान कह उठा।

हमारे वहां पहुंचते ही वो हमें कैद कर सकता है।”

“नाहक ही चिंता मत करो। हम इस वक्त जथूरा के अधिकार में ही हैं, परंतु अब तक उसने कुछ नहीं किया हमारा ।” देवराज चौहान ने कहा-“कमला रानी और मखानी हमारे मार्गदर्शक बने हुए हैं। ये दोनों जथूरा के कालचक्र के हिस्से हैं। यानी कि जो कुछ भी हो रहा है, जथूरा की मर्जी से हो रहा है।”

यकीन है तुम्हें?”

बहुत हद तक।” कुछ देर बाद ही वो सब नगरी की दीवार के पास जा पहुंचे। भौरी कमला रानी के कानों में, रास्ते के बारे में बताती जा रही थी।

कमला रानी और मखानी एक दीवार के पास जाकर रुके। वहां दो पहरेदार मौजूद थे और छोटा-सा दरवाजा था, जो कि बंद था। पहरेदारों ने बिना कुछ पूछे, उन्हें देखते ही दरवाजा खोल दिया।
 
“आप लोग भीतर जा सकते हैं।” एक पहरेदार बोला।

म्हारे को तो लागे हो कि जथूरो म्हारी खूब इज्ज़त करो हो ।”

*ज्यादा इज्जत भी ठीक नेई होईला बाप ।”

काये को?”

*औकात की पोल खुलेला तब ।”

छोरे, म्हारी औकातो पूरो फिट हौवो। म्हारी कोई पोलो न हौवे ।” सब उस छोटे-से दरवाजे से, झुकते हुए भीतर प्रवेश कर गए। सामने ही नगरी की शाम मौजूद थी। लोग सड़कों पर आ-जा रहे थे।

कहीं घोड़ागाड़ी, कहीं बैलगाड़ी, ठेलागाड़ी। हर कोई काम में व्यस्त था।

लाल वर्दी में सैनिक आते-जाते दिखाई दे रहे थे।

पूरो शहर बसा रखो हो जथूरो ने।” । सबने ठिठककर हर तरफ नजरें घुमाईं।

देवराज चौहान कमला रानी और मखानी के पास जाकर बोला। “हमने कहां जाना है?”

“उधर, वो जो लाल महल दिखाई दे रहा है।” कमला रानी ने कहा।

वहां जथूरा है?”

पता नहीं, लेकिन तुम लोगों को वहीं ले आने को कहा गया है।

” किसने कहा है?”

“भौरी ने।” कमला रानी के होंठों से निकला।

“भौरी कौन...?”

“ज्यादा सवाल मत पूछो। हमारे पीछे चले आओ।” कमला रानी और मखानीं आगे बढ़ गए। बाकी उसके पीछे थे। नगीना पास आकर कह उठी।
क्या हम इनके पीछे चलकर ठीक कर रहे हैं?”

“अब ठीक गलत का सवाल नहीं रहा। हम जथूरा की नगरी में आ पहुंचे हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

क्या उसका कुछ याद आया जो अपनी आजादी के लिए तड़प रहा है।”

नहीं। मैं नहीं समझ पाया कि वो कौन हैं।” अब वो सड़क के किनारे-किनारे आगे बढ़ने लगे थे। उसी पल मोना चौधरी चलते-चलते पास आई और बोली। “क्या पता हम खतरे में फंसने जा रहे हैं।”

मुझे ऐसा नहीं लगता।” देवराज चौहान ने कहा-“जथूरा हमारा बुरा चाहता तो हमारे लिए अपने सैनिक भेज चुका होता।”

लेकिन जथूरा ने अभी तक अपना दोस्ताना भी तो नहीं दिखाया।”

“हमारे सामने इंतजार करने और देखने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।”

“जगमोहन यहां आ गया होगा?” नगीना ने पूछा।

“जल्दी ही हमें सब कुछ पता चल जाएगा। मुझे लगता है जथूरा ने हमें पूर्वजन्म में बुलाया है।”

“लेकिन वो तो हमें पूर्वजन्म में आने से रोक रहा था। मोना चौधरी कह उठी।

देवराज चौहान ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

“कमला रानी ।” साथ चलता मखानी कह उठा–“हम महल में जाते ही एकांत ढूंढेंगे।”

क्यों?

“प्यार जो करना है। मैंने बहुत सब्र कर लिया।”

“शौहरी से पूछ इस बारे में।”

“उससे थोड़े न प्यार करना है, जो उससे पूछु ।”

“एकांत तो वो ही दिलवाएगा।” “तू भौरी से बात कर इस बारे में।”
वो बहुत व्यस्त हैं। इधर-उधर की बात तो सुनने को भी राजी नहीं ।”

मखानी ने धीमे से शौहरी को पुकारा।।

“क्या है?” शौहरी की फुसफुसाहट कानों में पड़ी।

मुझे और कमला रानी को एकांत चाहिए।”

तेरे को कोई दूसरी बात नहीं सूझती?” शौहरी ने डांट-भरे स्वर में कहा। ।

“दूसरी बात तो तब सूझे जब ये बात पूरी हों। जब भी करता हूं, तू टाल देता है।”

अभी बात मत कर।”

क्यों? यहां बहुत बुरा हुआ पड़ा है। मैंने तो अब जाना, यहां आकर ।”

क्या हुआ हैं?”

जथूरा नगरी में नहीं है, वो कहीं पर कैद है।”

अच्छा, तेरे को पहले क्यों नहीं पता थी ये बात?”

“मैं कालचक्र से वास्ता रखता हूं। नगरी में मेरा आना-जाना ही कहां होता है। अब आया तो पता चला।”

जथूरा को किसने कैद किया?”

शौहरी की आवाज नहीं आई।

“जवाब दे।” मखानी बोला।

महल में पहुंचकर जवाब मिल जाएगा।”

तू क्यों नहीं बताता?” ।

मैं व्यस्त हूं। मुझे जाना होगा।”

इतनी बातें कर रहा है तो, इस मामूली-सी बात का जवाब नहीं दे सकता।”

कोई और बात कर।” ।

“मेरे पास ये ही बात है कि मैंने कमला रानी से प्यार करना है। बहुत मन कर रहा है कि प्यार करूं ।”

शौहरी की तरफ से आवाज नहीं आई। “शौहरी ।” कोई जवाब नहीं ।

साला। मेरे काम की बात सुनते ही खिसक गया।”

क्या हुआ?” कमला रानी ने पूछा।

मेरी बात की कोई परवाह ही नहीं कर रहा।” मखानी मुंह बनाकर कह उठा।।

कमला रानी मुस्करा पड़ी।
 
“तू भी दांत फाड़ती है।”

“मैं तो सोच रही हूं कि जब जवानी में तेरे को औरत नहीं मिलतीं होगी, तब तेरा कैसा हाल होता होगा।”

तब की बात और थी।”

*और क्यों?" ।

तब मैं हाथ से काम चला लेता था।” मखानी ने गहरी सांस लीं।

तो अब भी...।”

अब पुराना खिलाड़ी हो गया हूं। अब हाथों वाली बात खत्म। अब तो औरत के बिना काम नहीं संवरता।”

एक बात कहूं तेरे से?”

बोल ।”

। दुनिया में ये काम सबसे बेकार का होता है। बिल्कुल फुर्सत का।”

ये तू कहती है।”

क्यों, मैं क्यों नहीं कह सकती।”

एक नम्बर की हरामी है तू। तेरे मुंह से ये बात जंचती नहीं।” मखानी ने चिढ़कर कहा-“तेरे को ये सब नहीं पसंद तो ठीक है, मैं कोई दूसरी ढूंढ़ लूंगा।”

“मेरे बिना तेरा मन लग जाएगा?”

क्यों नहीं, मुझे तो औरत चाहिए, तू नहीं तो दूसरी तीसरी सही।”

मतलबी है तू।” ।

“कुछ भी कह लें। मैं परवाह नहीं करता। यहां सूखा पड़ा हूं और सबको बातें सूझ रही हैं।”

वे सब लाल महल के करीब आ पहुंचे थे।

इसे यहां बड़ा महल कहा जाता है।” कमला रानी सबको सुनाती कह उठी।

यहां कोई हम पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा?” नगीना ने पूछा।

जथूरा की नगरी में कोई, किसी पर ध्यान नहीं देता, यहां कामों को महत्त्व दिया जाता है।” कमला रानी बोली।

“हमारे स्वागत के लिए भी कोई नहीं है।” महाजन बोला—“क्या जथूरा को पता है कि हुम आ रहे हैं।”

। “सबको, सब कुछ पता है। महल के भीतर आप सबका इंतजार हो रहा है।”

*अजीब बात है।” कमला रानी और मखानी महल की सीढ़ियां चढ़ने लगे। बाकी सब उनके पीछे थे।

अगल-बगल से लाल वर्दी में जथूरा के सेवक आ जा रहे थे, परंतु उनसे जैसे किसी को कोई मतलब ही नहीं था। सब अपने कामों में व्यस्त थे।
महल के भीतर पहुंचे थे।

सजावट से भरपूर महल था वो। सबकी नजरें घूमने लगीं महल में।

“मेरे पीछे आते रहो।” कमला रानी बोली-“हमें महल के बीच वाले हॉल में पहुंचना है।”

कमला रानी और मखानी के पीछे वे सब एक राहदारी में आगे बढ़ते चले गए।

महल का वैभव देखते ही बनता था।

म्हारे को समझ न आवे कि जथूरो इतनों बड़ो महल का, का करो हो?”

“आराम करेला वो।”

कित्ता भी आराम करो हो, पर ये महल तो बोत बड़ो हौवे। जथूरा का साइज भी बोत बड़ो हौवो?”

“वो छोटा होईला।”

“म्हारे को महलो जंचो हो।”

मखानी कमला रानी के कान में बोला।
यहां हमारा काम बन जाएगा।” वो खुश था।

“काम-कैसा काम मखानी?”

वो ही एकांत वाला, इतना बड़ा महल है, हमें प्यार करने की जगह मिल जाएगी।”

देखते हैं ।” कमला रानी की नजरें महल में दौड़ रही थीं।

“एक चुम्मी दे दे।”

नहीं। बिल्कुल नहीं ।” कमला रानी ने सख्त विरोध भरे स्वर में कहा। |

मखानी ने फुर्ती से कमला रानी की चुम्मी ली और मुस्कराकर
बोला। मैं भूल गया था कि औरत से कोई चीज मांगते नहीं। ले लेते हैं।”

अब तू समझदार हो गया है।” कमला रानी बोली।

मखानी कुछ कहने लगा कि पीछे से बांकेलाल राठौर् पास आया। तन्ने म्हारे सामने इसकी इज्जतो लूटने की कोशिश करो हो।”
 
क्या बकवास करता है।” मखानी मुंह बनाकर कह उठा।।

अंम झूठो बोल्लो का?” बांकेलाल राठौर ने उसकी गर्दन थाम ली।

ये क्या कर रहे हो।” कमला रानी कह उठीं।

थारी इज्जतो पर हाथ डालो यो ।”

मेरे से पूछ कर ही किया है।”

“थारी रजामंदी हौवे?”

“हां ।” ।

बांकेलाल राठौर ने मखानी की गर्दन छोड़ दी।

का जमाना आ गयो हो। औरत खुदो बोल्लो कि म्हारी इज्जतो लूटो।”

बाप, उनका टांका फिट होईला है।”

“ठीको, पर म्हारे सामणो तो यो सबो न करो हो। म्हारे को गुरदासपुरो वाली याद आ जायो हों। वो म्हारे से कितनो प्यार करो हो। लस्सी में मक्खनो का गोला डाल के दिया हो, परो।”

“पर क्या बाप?” ।

वो दूसरों से ब्याह कर लयो हो। म्हारे से शादी करने को, उसका बापो न मानो हो।”

कमला रानी और मखानी ने राहदारी से लगते एक दरवाजे के भीतर प्रवेश किया तो पीछे आते सब भीतर आ पहुंचे और ठिठक गए। ये बहुत बड़ा हॉल था। बैठने और आराम करने का पूरा इंतजाम था। लाइटें रोशन थीं। वहां की साज-सज्जा देखते ही बनती थी। फर्श पर कालीन, छत पर चार फानूस लटक रहे थे। दीवारों पर तरह-तरह की पेंटिंग्स थीं। हर चीज बहुत ही सोच-समझकर लगाई और रखी गई थी।

कमला रानी ऊंचे स्वर में कह उठी।
आप सब यहां आराम करो। उधर नहाने का तालाब है। उस रास्ते पर। जब तक आप लोग नहा-धोकर ताजे होंगे तब तक आपके खाने-पीने का सामान आ जाएगा।”

“मैं किसी से बात करना चाहता हूं।” देवराज चौहान बोला।

“खाने के बाद, बात भी हो जाएगी ।” ।

“मैं जथूरा से मिलना चाहती हूं।” मोना चौधरी ने कहा।

सब हो जाएगा। परंतु कुछ देर आपको इंतजार करना होगा।” कमला रानी बोली।

| फिर कोई आराम करने लगा तो कोई नहाने चल दिया।

परंतु हर कोई जैसे उतावला था, किसी से बात करने के लिए।
……………………………….
पोतेबाबा एक कमरे में टहल रहा था। चेहरे पर सोंच और गम्भीरता के भाव नजर आ रहे थे।
तभी कदमों की आहटें कानों में पड़ीं। पोतेबाबा ठिठककर दरवाजे की तरफ देखने लगा।
तवेरा ने भीतर प्रवेश किया। पोतेबाबा का सिर हिला उसे देखकर।
आपने बुलाया पोतेबाबा?” ।

“हां, मेरी बच्ची। बैठ जाओ।”

तवेरा आगे बढ़ी और कुर्सी पर जा बैठी। वो सफेद लिबास पहने थी, जिस पर सुनहरी रंग की किनारी लगी हुई थी। चुनरी भी ऐसी ही थी। इस लिबास में वो और भी खूबसूरत लग रही थी।

“मेरी बच्ची।” पोतेबाबा ने उसके करीब ही ठिठककर कह्म–“गरुड़ के बारे में मैं तुम्हें समझा चुका हूं कि वो यहाँ की बातें सोबरा को बताता है। उसके पास यंत्र है, जिससे वो सोबरा से बात करता है।”

“आप मुझे सारी बात बता चुके हैं।” तवेरा ने गम्भीर स्वर में कहा—“आपने मुझसे कहा कि गरुड़ को गलत बातें बताकर उसे भटकाना है। ताकि वो सोबरा को गलत ख़बरें दे सके।”

“ठीक समझीं तुम।” पोतेबाबा बोला—“गरुड़ तुमसे ब्याह करने के सपने देख रहा है। उसकी सोचों के पीछे सोबरा की चाल है। सोबरा गरुड़ के द्वारा जथूरा की हर चीज का मालिक बन जाना चाहता है।”

गरुड़ कब से सोबरा के साथ हैं?”

इसका जवाब मेरे पास नहीं है।” पोतेबाबा ने कहा-“गरुड़ बहुत चालाक है, क्योंकि मुझे कभी भी उस पर जरा भी शक नहीं हुआ। परंतु उसकी चालाकी ज्यादा देर नहीं चल सकती थी। बात कभी तो खुलनी ही थी।”

तवेरा की निगाह पोतेबाबा पर रही। सोचों में डूबा पोतेबाबा कह रहा था।

गरुड़ तुम्हारे करीब आना चाहता है। तुम भी उसके पास आने का नाटक करो और उसे गलत खबर देकर सोबरा को भटका दों।”

तवेरा ने सहमति से सिर हिलाया। फिर बोली।
मैं ऐसा ही करूंगी। देवा-मिन्नो कब तक...।” ।

“वो महल में आ चुके हैं। कुछ ही देर में हम उनसे मिलने जा रहे हैं।” पोतेबाबा ने तवेरा को देखा।
 
मैं उनके साथ जाऊंगी पोतेबाबा।”

“जैसा तुम्हारा मन चाहे मेरी बच्ची ।”

“मैं गरुड़ को भी अपने साथ ही ले जाऊंगी।” तवेरा ने कहा। पोतेबाबा ने तवेरा को देखा।

लेकिन ये जरूरी है कि गरुड़ को हर वक्त बहकाते रहना।” पोतेबाबा ने सिर हिलाया-“वो साथ रहेगा, तो ताजा हालातों की जानकारी सोबरा को देता रहेगा। मेरे खयाल में उसे इस मौके से दूर रखना ही ठीक होगा।”

। तवेरा के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी।।

मुझ पर भरोसा रखें। मैं गरुड़ को संभाल लेंगी। परंतु मैं ये जानना चाहती हूं कि आप गरुड़ को कैद क्यों नहीं कर लेते।” ।

गरुड़ को कैद करने का मतलब है, सोबरा को सतर्क करना। जबकि इस वक्त जरूरी काम है, जथूरा को महाकाली की कैद से आजाद कराना। गरुड़ को तो हम कभी भी सजा दे सकते हैं। सोबरा को सब कुछ ठीक लगेगा तो वो लापरवाह रहेगा। जो कि हमारे लिए फायदे वाली बात होगी।”

“सोबरा सावधान हो चुका होगा। उसे खबर मिल चुकी होगी कि देवा-मिन्नो नगरी में पहुंच गए हैं। उसने महाकाली को और भी कस दिया होगा कि जथूरा पर सख्ती कर दे।”

पोतेबाबा कुछ कहने लगा कि तभी रातुला और गरुड़ दरवाजे पर आ पहुंचे।
पोतेबाबा और तवेरा ने उन्हें देखा। गरुड़ उसी पल कह उठा।
पता चला कि देवा और मिन्नों आ गए हैं?”

हां।” पोतेबाबा ने शांत स्वर में कहा“लेकिन तुम दोनों इकट्ठे कैसे आ गए?”

“पोतेबाबा।” रातुला मुस्कराकर बोला-“मैं इधर ही आ रहा था कि गरुड़ भी इधर आता मिल गया।”

“चलो।” पोतेबाबा बोला—“हम देवा और मिन्नों के पास जाने ही वाले थे।”

फिर चारों एक साथ राहदारी में आगे बढ़ गए।

चलते-चलते तवेरा दो कदम पीछे हो गई तो गरुड़ भी चाल धीमी करके, उसके साथ चलने लगा।
“मैं तुम्हारे पास दिन में आया था।” गरुड़ बेहद मीठे स्वर में बोला।

तवेरा मुस्कराई। उसे देखा, दुपट्टा ठीक किया।
मैं व्यस्त थी तब। कोई काम था?”

“सच बात तो ये है कि मैं सिर्फ तुम्हें देखने आया था।” गरुड़ बोला।

“मुझे देखने?” मुस्कराई तवेरा।।

हां” गरुड़ ने चलते-चलते गहरी सांस ली–“तुम्हें देखे देर हो जाए तो मन बेचैन हो उठता है।”

खूब ।” तवेरा होले से हंसी-“तुम मजाक भी करते हो।”

“ये मजाक नहीं, सच है तवेरा। तुम मुझे अच्छी लगती हो।” गरुड़ ने फौरन कहा।

तवेरा कुछ नहीं बोली। मुस्कराती रही । चलती रही।

मैं तुम्हारे पिता की तरफ से चिंतित हूं कि वो कैद में...।”

“मैं चिंतित नहीं हूं अपने पिता की कैद को लेकर ।” तवेरा ने लापरवाही से कहा।

“ये तुम क्या कह रही हो, सब ही चिंतित हैं जथूरा की कैद को लेकर। तुम भी तो...” ।

वो सब दिखावा है।”

“क्या मतलब?”

पिता की कैद के बाद मुझे आजादी मिल गई है।” तवेरा ने कहा-“अगर वो वापस आ गए तो मेरी आजादी छिन जाएगी।”

गरुड पल-भर के लिए हड़बड़ाया फिर् कह उठा।

“वो तुम्हारे पिता हैं तवेरा।”

*अवश्य हैं, लेकिन अब मैं पिता की सब नगरियों की मालकिन बन गई हूं। पिता के पास होते हुए ये सम्भव नहीं था।” तवेरा का स्वर धीमा और होंठों पर मुस्कान थी—“परंतु दूसरों को दिखाने के लिए चिंतित होना पड़ता है।” ।

“तुम्हारी बातों से तो मैं परेशान हो उठा हूं।”

“क्यों?”

कुछ कहते नहीं बन पा रहा। तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए तवेरा।” गरुड़ कुछ उलझन में था।

“अब मैं अपनी सोचों को हकीकत का जामा पहनाने के लिए स्वतंत्र हूं।” तवेरा ने गहरी सांस लेकर कहा-“अब मैं ब्याह करूंगी, शानदार जिंदगी बिताऊंगी और...।”

किससे ब्याह करोगी?”

“मिल जाएगा मेरा राजकुमार ।” तवेरा ने ठंडी आह भरी।

देवा-मिन्नो आ चुके हैं, वो...।”

वो महाकाली का मुकाबला नहीं कर सकते।” तवेरा बोली “वो साधारण इंसान हैं और महाकाली तंत्र-मंत्र की ज्ञाता। महाकाली के सामने देवा-मिन्नो की बिसात ही क्या।”
 
गरुड़ बहुत बातें करना चाहता था, परंतु तब तक उस हॉल में जा पहुंचे, जहां वे सब मौजूद थे।

पोतेबाबा ।” देवराज चौहान ने पोतेबाबा को भीतर प्रवेश करते देखा तो उसके होंठों से निकला।

पहचान लिया तुमने देवा।” पोतेबाबा मुस्कराया।

मन्ने भी थारे को पैचान लियो। तन्ने म्हारे को बोत जोरों से फेंको हो, बंगलो में।”

पोतेबाबा की मुस्कराती निगाह बारी-बारी सब पर गई।
“तुम लोगों को यहां देखकर मुझे सुख महसूस हुआ।” पोतेबाबा बोला।

तभी मखानी जल्दी-से आगे बढ़ा और पोतेबाबा से कह उठा।
तुमने मुझे पहचाना—मैं मखानी हूं।”

कालचक्र से आए हो तुम।” ।

नहीं, मुझे शौहरी लाया है यहां ।”

एक ही बात है।” पोतेबाबा बोला—“मुझसे क्या चाहते हो?”

एक कमरा।”

“कमरा?”

हां।” मखानी ने हाथ से इशारा किया तो कमला रानी पास आ पहुंची–“मुझे और कमला रानी को चाहिए।”

“क्यों?”

“प्यार करना है हमने। क्यों कमला रानी?” कमला रानी ने सहमति में सिर हिलाया।

तो ये बात है।” पोतेबाबा बोला—“काम खत्म हो गया तुम्हारा, जो फुर्सत की बात कर रहे हो।”

काम, बो तो खत्म हो गया। देवा-मिन्नो, सबको यहां ले आए।”

शौहरी से पूछा कि काम खत्म हो गया?”

“नहीं पूछा।” ।

उससे पूछो, फिर मुझसे बात करो।”

“शौहरी ।” उसी पल मखानी ने पुकारा।।

क्या है?” कानों में शौहरी की फुसफुसाहट पड़ी।

“मेरा और कमला रानी का काम पूरा हो गया न?”

नहीं। अभी बहुत कुछ बाकी है। तुम पोतेबाबा से कमरे की मांग क्यों कर रहे हो?”

मुझे कमरा चाहिए।” मखानी ने पांव पटके–“कमला रानी से प्यार करना है मैंने ।”

अभी नहीं।”

“तो कब?” ।

काम के बाद ।”

मेरे से अब और नहीं सहा जाता है। मैं...।”

*अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुम्हें छोड़कर चला जाऊंगा।”

शौहरी की आवाज कानों में पड़ी—“तब तुम मर जाओगे।”

“ये ज्यादती है।”

अभी जो कहता हूं, वो ही करो। बाकी बातों का मौका भी मिलेगा।”

“कब मिलेगा। जब मैं मर जाऊंगा।”

“अब तुम मर नहीं सकते। क्योंकि कालचक्र ने तुम्हें स्वीकार कर लिया है।”
\
मखानी ने मुंह लटकाकर कमला रानी को देखा।

क्या हुआ मखानी?” कमला रानी ने प्यार से पूछा।

शौहरी इनकार करता है। कहता है अभी काम बाकी है।”

“दिल छोटा मत...।”

दिल? मेरा तो सब कुछ छोटा हो गया है। मैंने सोचा कि यहां हमें प्यार करने का मौका मिलेगा, परंतु...।”

तभी कमला रानी मखानी के कान के पास मुंह ले जाकर कुछ बोली। | उसी पल मखानी का लटका चेहरा खुशी से खिल उठा। वो बोला।

सच?” कसम से।” उसके बाद मखानी की नाराजगी जैसे हवा में धुल गई। पोतेबाबा ने मुस्कराती नजर वहां से हटाई और सबको देखा।

“तुम कह रहे थे कि हमें यहां देखकर तुम्हें सुख मिला।” देवराज चौहान बोला।

हां।” पोतेबाबा बराबर मुस्करा रहा था।

लेकिन तुम तो हमें यहां आने से रोकना चाहते थे।” देवराज चौहान ने कहा।

मेरा ऐसा इरादा कभी नहीं रहा।” पोतेबाबा मुस्कराता रहा। देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं।।

यो झूटो बोल्ने हो। तंम ही म्हारे को रोको हो, पूर्वजन्म में आने के वास्तो।”

पोतेबाबा मुस्कराता रहा।

“ये सच कह रहे हैं?” मोना चौधरी कह उठी।

हाँ मिन्नो, ये ठीक कह रहे हैं कि मैंने इन्हें रोका, परंतु वो रोकना, झूठ था। सच तो ये था कि मैं तुम सबको यहां लाना चाहता था। परंतु मेरे कहने से तुम लोग पूर्वजन्म में आने को कभी भी तैयार नहीं होते या हो जाते?”

पोतेबाबा की प्रश्न-भरी निगाह सब पर जाने लगी। चंद पल शांति रही फिर महाजन बोला। “शायद हम तैयार नहीं होते। तुम ठीक कहते हो।”

मेरा भी यही खयाल था, तभी मैंने कुछ ऐसी चालें चलीं कि तुम सबको पूर्वजन्म में लाया जा सका। मुंह से मैं जग्गू को ये कहता रहा कि जथूरा तुम लोगों को पूर्वजन्म में प्रवेश नहीं करने देना चाहता, जबकि बिना कहे मेरे काम ऐसे रहे कि तुम लोग पूर्वजन्म में आ सको। जैसे कि जग्गू को जथूरा के तैयार किए हादसों का पूर्वाभास होने लगा। वो आभास कैसे हुआ, मैने ही तो कराया।”

“तुमने बाप?”

हां त्रिवेणीं। जग्गू को पूर्वाभास हो, वो शक्ति मैंने ही तो उसके भीतर डाली।”

तन्ने?”

“सब कुछ मैं ही तो कर रहा था। धीरे-धीरे तुम लोगों को पूर्वजन्म की तरफ धकेले जा रहा था। कुछ खास हादसों का पूर्वाभास होने पर ही, तुम लोग जथूरा की जमीन पर कदम रख सकते थे। वो खास हादसों का पूर्वाभास मैंने जग्गू को कराया। साथ ही मैं जानता था कि जब तुम लोग जानोगे कि जथूरा तुम लोगों को पूर्वजन्म में आने से रोकना चाहता है तो तुम लोगों के इरादे पक्के होंगे, उतना ही पूर्वजन्म में जाने के। मैंने तुम सबको उलझाए रखा कि कि ठीक से सोचकर किसी भी नतीजे पर न पहुंच सको। तुम लोगों की भी गलती नहीं थी, हालात ऐसे बने कि तुम लोग उलझते चले गए। बाकी जो कसर बची, वो मेरे भेजे, कालचक्र ने पूरी कर दी।” ।

“तुमने मेरे में और देवराज चौहान में झगड़ा कराने की चेष्टा की?” मोना चौधरी बोली।

हां ।”

तब हममें से कोई दूसरे को मार देता तो?”

ये सम्भव ही नहीं था ।”

क्यों?”

वक्त रहते मैंने जग्गू को इस बात का एहसास करा दिया था और वो वक्त पर पहुंच गया था।”

ऐसा किया ही क्यों तुमने?”

“तुम लोगों को करीब लाने के लिए। तुम एक हुए तो तभी बातचीत आगे बढ़ी। मैंने ठीक कहा न?”

सबकी निगाह पोतेबाबा पर थी। पोतेबाबा के चेहरे पर मुस्कान छाई थी।
 
हम समझ नहीं पाईला बाप कि तूने ये सब करके अच्छा किएला या बुरा किएला?”

मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया।”

तन्ने म्हारे को धोखो दयो कहो कुछो, करो कुछो।”

“तुम सबकी पूर्वजन्म की धरती पर लाने के लिए ऐसा करना जरूरी था। वरना मैं मेहनत ही क्यों करता।”

जगमोहन कहाँ है?” नगीना बोली-“सोहन भैया कहां हैं?”

जग्गू और गुलचंद जथूरा की जमीन पर ही हैं। मैंने उन्हें कालचक्र के नर्म हिस्से में पहुंचाया, जहां उन्हें कोई तकलीफ नहीं होने दी। उस रास्ते से उनका पूर्वजन्म की जमीन पर प्रवेश करा दिया।”

छोरे ।” बांकेलाल राठौर, पोतेबाबा को देखता कह उठा।

बोल बाप।”

यो बूढ़ो तो म्हारे को घिसो हुओ लागे हो।”

बोत घिसेला बाप । इसने दाढ़ी यूं ही सफेद नेई किएला लगेला ।”

“म्हारे को चांस मिल्लो तो अंम ‘वड’ दयो इसो को। यो म्हारे को झूठो बोल के, पूर्वजन्म में खींच लायो हो।” कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया—“तंम म्हारे साथ हौवे ना?”

“यस बाप। आपुन तेरे साथ ही टिकेला।” । देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ चुके थे। नजरें पोतेबाबा पर थीं। मोना चौधरी कह उठी। “तूने टापू पर भी मुझे और देवराज चौहान को लाने के लिए आमने-सामने किया।”

मत भूलो कि मेरे भेजे मोमो जिन्न ने ही, तब सब कुछ ठीक किया।” । । “उससे पहले ही हममें से कोई दूसरे पर घातक वार कर देता

तो?”

“ये सम्भव नहीं था। रखवाली के तौर पर मैं जो वहां मौजूद था। सब कुछ मैं ही तो करवा रहा था।” ।

“टापू पर ये सब कराना जरूरी था क्या?” मोना चौधरी तीखे स्वर में बोली।।

“जरूरी था, ताकि तुम लोगों को हर वक्त यही लगे कि सच में कुछ होने वाला है। तभी तो तुम लोग मोमो जिन्न की बात मानकर उसके पीछे-पीछे चले और वहां मौजूद पनडुब्बी में आ बैठे।”

“सच में तुमने खूबसूरत चाल चली।” पारसनाथ कह उठा।

“ये सब करना मेरे लिए मजबूरी थीं। मोमो जिन्न ने जो किया, मेरे कहने पर किया। इधर कालचक्र से भौरी और शौहरी ने अपना काम किया। मखानी और कमला रानी का सही इस्तेमाल किया।”

“तुमने हमें खूब बेवकूफ बनाया।” नगीना कह उठी।

ऐसा न कहो बेला ।” पोतेबाबा ने कहा-“मैंने किसी को मूर्ख नहीं बनाया। मैंने वो ही किया, जो करना जरूरी था मेरे लिए। देवा और मिन्नो को जथूरा की जमीन पर लाना था। इसलिए ये सब करना पड़ा। परंतु ये भी तय है कि देवा और मिन्नों पूर्वजन्म के किसी भी हिस्से में आएंगे तो बाकी जो भी पूर्वजन्म से वास्ता रखता है, उसे भी आना ही पड़ेगा।”

ये जरूरी है!” पारसनाथ ने कहा।

हां। जरूरी है ये। सिलसिला इसी तरह पूर्ण होता है।” पोतेबाबा बोला।

“बातें तुम खूब करते हो पोतेबाबा।” देवराज चौहान कह उठा।

मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा।” ।

चालाकियों से भरा दिमाग है तुम्हारा। वरना हमें पूर्वजन्म में लाने में सफल न हो पाते।”

इसको काबलियत कहते हैं।” पोतेबाबा मुस्कराया—“अब तुम लोगों को भी अपनी काबलियत दिखानी है।” ।

“क्या चाहते हो?” देवराज चौहान ने पूछा-“जाहिर है कोई खास ही वजह होगी, जो तुम हमें इतना जोड़-तोड़ के साथ यहां तक लेकर आए हो। वो वजह भी बता दो। क्या चाहते हो हमसे?” ।

“वो बात भी होगी। पहले हमारा आपस में परिचय हो जाना चाहिए। तुम सबके बारे में हम सब जानते हैं। अब तुम सब हमारे बारे में भी जान लो।” पोतेबाबा कह उठा–“ये तवेरा है जथूरा की बेटी ।” ।

जथूरो की बेटी।” बांकेलाल राठौर बोला—“वो शादी करो हो?”

बाप तेरी ही नहीं हुईला ।”

पोतेबाबा ने अपना कहना जारी रखा।

“ये गरुड़ है, जथूरा का सर्वश्रेष्ठ सेवक। और ये रातुला है जो कि सैनिकों का सरदार है।”

जगमोहन को यहां बुलाओ।” देवराज चौहान ने कहा। क्षणिक खामोशी के बाद पोतेबाबा ने कहा।
 
वो यहां नहीं आ सकता।”

“क्यों?” ।

“जग्गू–गुलचंद और नानिया, तीनों ही सोबरा की जमीन की तरफ जा रहे हैं।”

सोबरा–जथूरा का भाई?”

हो ।”
“नानिया कौन है?” नगीना ने पूछा।
कालचक्र की रानी साहिबा है। उसका असली नाम नानिया है। वो उन दोनों के साथ है।” पोतेबाबा ने कहा। । “वो सोबरा की तरफ क्यों जा रहे हैं, तुम उन्हें हमारे यहां होने की खबर दो। वो यहीं आ जाएंगे।”
“उन्हें पता था कि तुम लोग यहां आ रहे हो, फिर भी वो सोबरा की तरफ जा रहे हैं।” पोतेबाबा ने कहा-“ऐसी हालत में उन्हें रोकना मुनासिब नहीं। उन्हें जाने देना चाहिए।” ।
हम जगमोहन को अपने पास देखना चाहते...।”

ये सम्भव नहीं।” तवेरा कह उठी–“परंतु वो लोग जल्दी ही तुम लोगों से मिलेंगे।”

ये तुम कैसे कह सकती हो?”

मैंने तंत्र-मंत्र ग्रहण कर रखा है। कई ताकतों से मेरी बात होती है। थोड़ा-बहुत मैं भविष्य में भी झांक लेती हूँ अपनी विद्या से। जग्गू से मिलना लिखा है मेरा। मैं पढ़ चुकी हूं।” ।

ये तो तुम्हारी बात हुई।” देवराज चौहान ने कहा “हम अपनी बात कर्...।”

“हम एक साथ ही कहीं जाने वाले हैं।” तवेरा ने कहा।
कहाँ?” ।

पोतेबाबा इस बारे में बात करेंगे।” तवेरा ने शांत स्वर में कहा।

सबकी निगाह पोतेबाबा की तरफ उठी तो वो बोला।

तुम लोगों को इस तरह पूर्वजन्म में क्यों बुलाया है। मैं सारी बात बताता हूं। आओ उधर कुर्सियों पर बैठें। बात लम्बी भी हो सकती है। सब कुछ बताना ही तो है तुम सबकी ।”

सब कुर्सियों पर जा बैठे। मख़ानी और कमला रानी की नजरें मिलीं।

मखानी ने आंख दबा दी। जवाब में कमला रानी ने भी आंख दबाई।।
‘क्या हरामी चीज मेरे पल्ले पड़ी है। मखानी बड़बड़ा उठा।

पोतेबाबा सब पर नजर मारता गम्भीर स्वर में कह उठा।

“जथूरा और सोबरा के पिता गिरधारी लाल ने बहुत ताकतें हासिल कर रखी थीं। वो अपनी नगरी के जाने-माने व्यक्ति थे। सोबरा और जथूरा बड़े हो चुके थे और जिदंगी के अपने-अपने कार्यों में व्यस्त होते चले गए। सोबरा ने अन्य गुरुकुल से शिक्षा हासिल की तो जथूरा ने अन्य गुरुकुल से। दोनों ही तेज दिमाग के थे और मुसीबतों को झेलते शिक्षा प्राप्त कर ली। दोनों के पास शुरुआती दौर की ताकतें आ चुकी थीं। परंतु जथूरा हमेशा ही सोबरा से ज्यादा तेज रहा। जथूरा ने ताकतें पाने की विद्या को ज्यादा समझा और वो ज्यादा ज्ञानी बन गया। जबकि सोबरा भी कम नहीं था, परंतु जथूरा के पास ज्ञानशक्ति ज्यादा आ गई थी। इस बीच सालों बाद जब उनके पिता गिरधारी का अंतिम वक्त आया तो उसने दोनों बेटों को बुलाया। परंतु सोबरा व्यस्त होने की वजह से समय पर नहीं पहुंच सका, जबकि जथूरा वक्त पर अपने पिता के पास पहुंचा। मते समय गिरधारी लाल ने अपनी ताकतें, जथूरा को दे दीं। बाद में जब बात सोबरा को पता चली तो उसने अपने हक के नाते जथूरा से पिता की दी आधी ताकतें मांगीं। परंतु जथूरा ने ये कहकर देने से इनकार कर दिया कि पिता ने ताकतें सिर्फ उसे सौंपी हैं। इसी बात को लेकर दोनों में मन-मुटाव बढ़ गया।”

ताकतें किस रूप में थीं?” देवराज चौहान ने पूछा।
ताकतों का रूप गुप्त श्लोकों में होता है।” पोतेबाबा ने कहा-“इंसान अपनी विद्या से जो ताकतें हासिल करता है, उसे उन्हीं ताकतों के दम पर अपनी सुविधानुसार छोटे श्लोकों में परिवर्तित कर लेता है। गिरधारी लाल ने अपनी जिंदगी भर की कमाई श्लोकों के रूप में जथूरा को दे दी थी। इस्तेमाल की विधि भी समझा दी थी।”
ये तो तुम कहते हो।” मोना चौधरी बोली। |
"क्या मतलब?”
ये तुम्हारा या जथूरा का कहना है कि गिरधारी लाल ने अपनी ताकतें जथूरा के हवाले कर दी थीं। हो सकता है कि तब गिरधारी लाल ने ये कहा हो कि दोनों भाई ताकतों को आधी-आधी बांट लेना।”
कुछ सोच के बाद पोतेबाबा ने अपना गम्भीर चेहरा हिलाया। ऐसा भी हो सकता है।” वो बोला। “क्या उस वक्त पास में कोई और था?”

कई लोग थे, परंतु इन बातों के दौरान, गिरधारी ने पहले ही उन्हें कमरे से बाहर जाने को कह दिया था।”
“इसका मतलब कोई गवाह नहीं जो ये बता सके कि गिरधारी लाल ने वो ताकतें जथूरा को दी थी।”
“जथूरा ये बात गलत क्यों कहेगा?”
“अपने लालच की खातिर ।”
जथूरा ऐसा नहीं है जो अपने लालच की खातिर भाई से झूठ बोले।”
मोना चौधरी मुस्करा पड़ी। । “अगर वो सच्चा इंसान होता तो अपने पिता द्वारा ताकतें दी जाने के बाद भी वो उन ताकतों को सोबरा के साथ अवश्य बांट लेता।”
पोतेबाबा ने मोना चौधरी को देखा।
तुम मेरे पिता पर बेईमानी की उंगली उठा रहे हो।” तवेरा कह उठी।

“सच बात तो ये है कि अभी तक तुम्हारे पिता ही मुझे बेईमान लगे हैं।”

तवेरा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला तो उसी पर पोतेबाबा ने टोका।

“शांत हो जाओ मेरी बच्चीं। ये वक्त इस बात को परखने का नहीं है कि कौन सच्चा है या कौन झूठा।”
तवेरा खामोश हो गई। परंतु चेहरे पर नाराजगी रही। वहां गहरी खामोशी छाई हुई थी। पोतेबाबा ने फिर कहना शुरू किया।
“जथूरा ने अपनी ताकतों के साथ पिता से मिली ताकतों का इस्तेमाल किया और देखते ही देखते वो जाना-माना, ताकतों वाला व्यक्ति बन गया। अपने काम से बड़ी शक्तियों को प्रभावित किया और इस तरह जथूरा धीरे-धीरे तरक्की करता हादसों का देवता बन गया। हर तरफ जथूरा का नाम गूंजने लगा। अब जथूरा की दो नगरियों में सिर्फ हादसों को तैयार करने और उन्हें जांचने-परखने का ही काम चलता है। वहां पर हजारों आदमी दिन-रात काम पर लगे रहते हैं।”

“और वो हादसे तैयार करके तुम लोग हमारी दुनिया में भेजते हो।” नगीना बोली।

हां, जथूरा का ये ही काम है।”

परंतु ये गलत बात है।”
“इस पर मेरा कुछ भी कहना ठीक नहीं।” पोतेबाबा बोला–“हादसों का जन्मदाता जथूरा नहीं बनता तो कोई और बनता। जो भी बनता वो ये ही काम करता। ये जथूरा के कर्म हैं। जिन्हें करना उसके लिए आवश्यक है।”

“इन बातों के दौरान जथूरा को भी यहां होना चाहिए।” देवराज चौहान बोला।

“वो यहां क्यों नहीं है, मेरी आगे कही बात से पता चल जाएगा।” पोतेबाबा ने कहा-“उधर सोबरा अपनी विद्या के दम पर ताकतें हासिल करता रहा। सोबरा जथूरा से कम नहीं था, परंतु गिरधारी लाल से मिली ताकतों ने, जथूरा को बहुत आगे पहुंचा दिया था। सोबरा और जथूरा का मन-मुटाव बढ़ते वक्त के साथ दुश्मनी में बदल गया था।
 
आखिरकार सोबरा ने जथूरा को सबक सिखाने के लिए, अपनी सारी ताकतों का इस्तेमाल करके कालचक्र तैयार किया।”
कालचक्र क्या होईला बाप?”
कालचक्र गहरे रहस्यों में डूबा, षड्यंत्रों का हिस्सा होता है। कालचक्र के भीतर हर तरह का हिस्सा संजोया जाता है। जरूरत पड़ने पर, बटन दबाकर उसी हिस्से को सक्रिय कर दिया जाता है। कालचक्र को मशीनों द्वारा कंट्रोल किया जाता है। कालचक्र के बारे में सब कुछ बताना सम्भव तो नहीं, परंतु दुश्मन को हराने के लिए, इसमें हर बाण मौजूद होता है, प्यार का भी, जंग का भी। चालाकियों से भरा होता है कालचक्र। जो भी इसमें एक बार फंस जाता है, वो तभी बाहर निकल सकता है, जब कालचक्र का मालिक चाहें, नहीं तो वो कालचक्र में ही भटकता रहता है। कालचक्र में तुम लोग भी फंस चुके हो। कालचक्र को सही ढंग से तैयार करने में 40 से 50 बरस का वक्त लगता है।”
इतना वक्त?” महाजन कह उठा।।
हां। बढ़िया कालचक्र के लिए 40 से 50 साल का ही वक्त लगता है। छोटा या कम ताकतों वाला कालचक्र 5 बरस में भी तैयार किया जा सकता है। परंतु सोबरा ने 50 बरस लगाकर कालचक्र तैयार किया। सोबरा के आदमियों में जथूरा के लोग थे। जो कि जथूरा को सोबरा की हरकतों की खबर देते रहते थे। जथूरा सोबरा के कालचक्र के बारे में जान चुका था और ये भी जानता था कि सोबरा उस पर कालचक्र का इस्तेमाल करने वाला है। इसलिए जथूरा ने अपनी तैयारियां शुरू कर दीं ।
*कैसी तैयारियां?”
“सोबरा को मात देने की तैयारियां। जथूरा ने वक्त रहते इस बात की पूरी तैयारी कर ली कि सोबरा जब उस पर कालचक्र फेंके तो वो कालचक्र को बंदी बना ले। उसे जब्त कर ले।”
“कालचक्र को बंदी भी बनाया जा सकता है?” पारसनाथ ने पूछा।
“हां। जथूरा के पास बेहिसाब ताकतें थीं। वो हर काम को आसानी से करने का हौसला रखता था और उसने ये कर भी लिया। जथूरा को पहले ही खबर मिल गई सोबरा कब उस पर कालचक्र का दांव फेंकने जा रहा है। जथूरा ने अपनी ताकतों का कवच पहले ही आसमान में फैला दिया कि कालचक्र को खुलने से पहले ही वो कैद कर ले और कैद कर भी लिया जथूरा ने।” पोतेबाबा गम्भीर था।
फिरो?” बांकेलाल राठौर ने मूंछ पर हाथ फेरा।
“परंतु बाद में पता चला कि सोवरा तो और भी गहरा खेल खेल रहा था।”
वों कैसे?” देवराज चौहान के होंठों से निकला। “दरअसल सोबरा ने कालचक्र वाली चाल खेली थी। उसका असली मकसद था कि जथूरा कालचक्र को कैद करे खुद भी कैदी बन जाए।”
वो कैसो बूढ़ो?” बांकेलाल राठौर के होंठों से निकला। “सोबरा को मालूम था कि उसके पास मौजूद कौन-कौन-सा आदमी जथूरा को खबरें भेज रहा है। चालाकी से सोबरा उन्हें वो ही बातें बताता, जो वो चाहता था कि जथूरा तक पहुंचे।

” पोतेबाबा ने शांत स्वर में कहा–“वो चाहता था कि जथूरा कालचक्र को कैद कर ले। क्योंकि सोबरा ने कालचक्र के एक हिस्से में महाकाली की परछाईं को बैठा रखा था, कालचक्र की पहरेदारी के लिए कि कोई कालचक्र को पकड़े तो महाकाली उसे अपनी कैद में कर ले।”
“यो महाकाली कौनो हौवे?”
“जादू, तंत्र-मंत्र की मल्लिका है महाकाली। यूं तो इस तरह किसी को बंदी बनाकर रखने के काम नहीं करती, परंतु सोबरा का उस पर एहसान है इसलिए वो तैयार हो गई थी और ये बात सोबरा ने आम नहीं होने दी। जथूरा तक ये बात नहीं पहुंची कि जो भी कालचक्र को कैद करेगा, महाकाली अपनी ताकतों से उसे बंदी बना लेगी। सोबरा चाहता ही ये था कि जथूरा कालचक्र को अपने अधिकार में ले और महाकाली जथूरा को कैद में रख ले।”
“तुम्हारा मतलब कि जथूरा को इस वक्त महाकाली ने अपने पास बंदी बना रखा है।” मोना चौधरी बोली।
“हां।” पोतेबाबा ने सिर हिलाया—“जथूरा इस वक्त हमारे बीच नहीं है।
छोरे।”
बोल बाप।”
महाकाली तो जथूरा की बापो हौवे ।”
बाप नहीं मां, बो औरत होईला ।”
म्हारा मतलबो तो थारी समझ में आ गयो कि नहीं ।”
समझेला बाप ।” रुस्तम राव गम्भीर था। पोतेबाबा पुनः कह उठा।
पचास साल से जथूरा, महाकाली का कैदी है।”
“तुमने चेष्टा तो की होगी जथूरा को आजाद कराने की ।” देवराज चौहान कह उठा।
कुछ खास नहीं ।”
“क्यों?”
“जथूरा को छुड़ा पाना हमारे लिए सम्भव नहीं है।”
*वजह।”
महाकाली ने उसे कैद करके, उस पर देवा और मिन्नो नाम का तिलिस्म बांध दिया है।”
“देवा-मिन्नो?” देवराज चौहान के होंठों से निकला–“तुम्हारा मतलब कि मेरे और मोना चौधरी के नाम का तिलिस्म?”

पोतेबाबा ने सहमति से सिर हिलाया। सबके चेहरे पर उलझन नजर आ रही थी।
“ऐसा क्यों, हमारे ही नाम का तिलिस्म क्यों?”
महाकाली जानती थी कि हम जथूरा को कैद से छुड़ाने का प्रयत्न करेंगे। ऐसे में उसे हर वक्त जथूरा की पहरेदारी पर रहना पड़ता। तो उसने जथूरा की कैद को देवा और मिन्नो नाम के तिलिस्म में बांध दिया कि देवा और मिन्नो के अलावा कोई और उस तक न पहुंच सके। उस वक्त से महाकाली को जथूरा की ज्यादा चिंता नहीं करनी पड़ती। हमारे सैनिकों ने जब-जब जथूरा को आजाद कराने की चेष्टा की, तिलिस्म में फंसकर वो जान गंवा बैठे।”
नगीना कह उठी।
महाकाली ने देवराज चौहान और मोना चौधरी के नाम का तिलिस्म ही क्यों बांधा?”
“महाकाली ने बहुत दूर की सोचकर ये सब किया।”
वो कैसे?” महाजन ने पूछा।
“महाकाली जानती है कि देवा-मिन्नो का तीसरा जन्म चल रहा है। वो हर तरफ की खबर रखती है। महाकाली को ये भी पता है कि दूसरी दुनिया में मौजूद देवा और मिन्नो में पटती नहीं है। ऐसे में देवा और मिन्नो कभी भी एक साथ, एक जगह इकट्ठे नहीं होंगे और किसी भी एक काम को मिलकर इकट्ठे नहीं करेंगे। इसलिए उसने देवा और मिन्नो नाम का तिलिस्म बांध दिया कि जथूरा हमेशा ही कैद में रहे। देवा और मिन्नो तो जथूरा को आजाद कराने पूर्वजन्म में तो आने से रहे। ये सोचकर महाकाली निश्चिंत हो गई थी।”
तो महाकाली सोचेला कि देवराज चौहान-मोना चौधरी एक साथ इधर नेई आईला ।”
“ये ही सोंचा महाकाली ने।” पोंतेबाबा ने कहा।
तो अब जो भी जथूरा को कैद से छुड़ाने जाता है, वो मारा जाता है।” नगीना ने पूछा। ।
 
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