XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़ - Page 33 - SexBaba
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XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

महाकाली

देवराज चौहान और मोना चौधरी एक साथ तंत्र-मंत्र, तिलिस्म और नया उपन्यास

जहां पर 'पोतेबाबा' की कहानी रुकी थी, 'महाकाली' की कहानी को वहीं से आगे बढ़ाते हैं। ____
मोना चौधरी की आंखें फटी-सी पड़ी थीं। चेहरे पर ढेर सारे अजीब-से भाव इकट्ठे हुए पड़े थे जिसकी वजह से चेहरा बदरंग-सा हो रहा था। वो एकटक सामने की दीवार को देखे जा रही थी। ___

मोना चौधरी के इस हाल पर मखानी की निगाह सबसे पहले पड़ी।

“ये क्या हो गया इसको।”

सबकी निगाह मोना चौधरी की तरफ उठी। मोना चौधरी की हालत देखकर सब चौंके।

“मोना चौधरी।” पारसनाथ ने पुकारा। परंतु मोना चौधरी के रूप में कोई बदलाव नहीं हुआ।

नगीना ने आगे बढ़कर, मोना चौधरी को कंधे से हिलाते हुए कहा। "तुम्हें क्या हो गया है मोना चौधरी?"

"ये मैं हूं बेला, नीलकंठ...।" मोना चौधरी के होंठों से खरखराती मर्दाना आवाज निकली।

ये सब होता पाकर हर कोई हक्का-बक्का रह गया। "कौन नीलकंठ?"

जवाब में मोना चौधरी के होंठों से मर्दाना ठहाका निकला। मोना चौधरी का चेहरा नगीना की तरफ घूमा तो हड़बड़ाकर नगीना एक कदम पीछे हो गई। मोना चौधरी के होंठों से निकलता नीलकंठ का ठहाका रुका।
"हैरानी है कि तू मुझे भूल गई बेला।” मोना चौधरी के होंठों से पुनः नीलकंठ की आवाज निकली।

"मैं तुझे नहीं पहचानती।” नगीना ने कहा।

“तू भूल गई मुझे, याद कर।"

"मुझे कुछ भी याद नहीं।” “तुम अपने बारे में बताओ।” देवराज चौहान बोला।

"तुझे भी मैं याद नहीं रहा देवा?" .

"नहीं। कौन हो तुम?" देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े हुए थे।

बांकेलाल राठौर रुस्तम राव के कान में कह उठा। "तंम जाणों हो नीलकंठ को?"

"नेई बाप। पैली बार नाम सुनेला है।"

"यो मन्नो चौधरी के बीचो में घुस गयो का?" ‘

“पता नेई बाप क्या रगड़ेला है।"

"गुलचंद कहां है, वो मुझे जरूर पहचानेगा।” मोना चौधरी के होंठों से पूनः नीलकंठ की आवाज निकली।

"सोहनलाल यहां नहीं है।”

"ओह गुलचंद तो मेरा खास यार है।"

“तुम अपने बारे में बताओ।” महाजन कह उठा—“तुमने बेबी पर कब्जा कैसे कर लिया। छोड़ो इसे।" ।

"नहीं छोड़ता।” नीलकंठ हंसा—“तूने जो करना है कर ले नीलसिंह।"

महाजन दांत भींचकर रह गया।

“तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता नीलसिंह । कोई भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। मैं तुम में से किसी की पकड़ में आने वाला नहीं। मिन्नो का दिमाग मेरे कब्जे में है।” नीलकंठ ने कहा—“कोई भी कुछ नहीं कर सकता।” |

“तुम कौन होईला बाप?" __

“यो सब करो के तंम अपणी शक्ति का परीक्षण करो के, का दिखायो हो?"
 
“त्रिवेणी और भंवर सिंह । तुम दोनों की जोड़ी इस जन्म में भी चल रही है।" नीलकंठ ने कहा।

“जौड़ा-थारा का मतलबो हौवे। अंम शादी न करो हो, जो तंम जौड़ी बोल्लो हो।”

नीलकंठ हंसकर कह उठा।। “पुरानी यादें फिर से ताजा हो गई हैं, तुम लोगों के बीच आकर।"

सब खामोश से मोना चौधरी को देखे जा रहे थे।

"मेरे बारे में जानना चाहते हो। बहुत अजीब लग रहा है, तुम लोगों को अपने बारे में बताना। क्योंकि मेरे बारे में तो तुम लोग जानते ही हो, परंतु नया जन्म लेकर भूले हुए हो। खैर, सुन लो मेरे बारे में... मैं...।"
-
तभी मोना चौधरी के शरीर को झटका-सा लगा।
वो लड़खड़ाकर ठिठक गई। इसके साथ ही मोना चौधरी की निगाह हर तरफ घूमी। फिर नजरें हवा में लहराते एक चमकीले बिंदु पर जा टिकी जो कि मध्यम-सा इधर-उधर लहरा रहा था। __“कौन है?" मोना चौधरी के होंठों से नीलकंठ का स्वर निकला। नजरें चमकते बिंदु पर थीं।

बाकी सब भी उस चमकीले बिंदु को देख चुके थे।

“तू बहुत कमीना है।” वहां महाकाली की आवाज गूंजी।

"तु, महाकाली।” मोना चौधरी के होंठों से नीलकंठ की आवाज निकली—“यहां क्यों आई?”

"तेरी करतूत खींच लाई।"

“मैंने क्या कर दिया ऐसा?" नीलकंठ हंसा।

“यहां क्यों आया?"

"मेरी मर्जी।"

“मैंने पूछा है कि तूने मिन्नो के शरीर पर अधिकार क्यों किया, क्या चाहता है त?" __

“वाह, बात तो ऐसे कर रही है जैसे तेरे को कुछ पता ही न हो।” ___

“सब पता है मेरे को, तू अपने मुंह से बता।” महाकाली की आवाज सबको सुनाई दे रही थी।

“मैं मिन्नो का नुकसान होते नहीं देख सकता।” नीलकंठ की आवाज मोना चौधरी के होंठों से निकली।

"क्या नुकसान हो गया जो तू तड़प उठा।"

“हुआ नहीं है, परंतु अभी होगा। ये देवा के साथ जथूरा को आजाद कराने जा रही है।"

"तो?"

“जथूरा को तूने कैद कर रखा है। तू नहीं चाहती वो आजाद हो। जो ऐसी कोशिश करेगा, तू उसे मार देगी। या वो खुद ही तेरे बिछाए जाल में फंसकर, अपनी जान गवां देगा।” नीलकंठ बोला।

“और तू ये सब होने से रोक लेगा।"

"कोशिश तो कर सकता हूं।"

"बहुत भला चाहता है मिन्नो का। महाकाली के स्वर में कड़वापन था—“तेरा एकतरफा प्यार अभी भी जिंदा है, जबकि मिन्नो ने कभी भी तेरी जरा भी परवाह नहीं की।"

“न करे। मुझे तो परवाह है मिन्नो की।"

“पागल मत बन। हम दोनों एक ही गुरु के शिष्य हैं और हमें झगड़ना नहीं चाहिए।"

"मेरा भी यही खयाल है।” नीलकंठ मुस्कराया।

“छोड़ दे मिन्नो को और चला जा यहां से।”

“तू सोबरा की चौकीदारी छोड़ दे। जथूरा को आजाद कर दे। पीछे हट जा।" _

“मैंने सोबरा से वादा कर रखा है कि जथूरा को सुरक्षित कैद में रसुंगी और आजाद नहीं होने दूंगी।"

"तेरे जैसी को सोबरा की बात इस कदर मानते पाकर, मुझे अच्छा नहीं लग रहा महाकाली।" ___

“सोबरा का एक एहसान है मुझ पर।"

"जो तेरा मन करे तू वो ही कर। मैं तेरे पास नहीं आया। तू ही मेरे पास आई है।"

"मिन्नो को छोड़कर तू चला जा।"

"कभी नहीं।"

"मेरे से झगड़ा करेगा नीलकंठ ।"

"मैं मिन्नो की सहायता करूंगा।"

"मेरे खिलाफ?"

“तेरे से मुझे कुछ नहीं लेना-देना। मैं तो सिर्फ मिन्नो का बचाव चाहता हूं। उसी के लिए आया हूं।"

“इस रास्ते पर चला तो झगड़ा होगा। मैं तेरे साथ कोई रियायत नहीं करूंगी।" महाकाली ने गुस्से से कहा।

“क्या करेगी तू मेरा?" नीलकंठ ने कड़वे स्वर में कहा।

"तू जानता है कि तेरे से ज्यादा ताकतवर हूं।"

"बेशक। परंतु मुझे जीतने के लिए, तेरे को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।"

"देवा-मिन्नो के साथ तवेरा है। तू बीच में मत आ।"

"ये तो तूने अच्छी बात बताई। सुना है तवेरा तंत्र-मंत्र की बढ़िया विद्या जानती है।" ___

“तो तू पीछे नहीं हटेगा?" महाकाली की आवाज में गुस्सा भरा था।

"मैं मिन्नो से प्यार करता हूं।" “वो तो तेरे से नहीं करती।”

“तो क्या हो गया, मैं तो करता हूं। हो सकता है वो अब मुझसे प्यार करने लगे।"

“नहीं करेगी। उसकी दुनिया जुदा है।"

"कोई बात नहीं, मैं हर हाल में उसका भला चाहूंगा।" मोना चौधरी के होंठ हिल रहे थे। नीलकंठ की आवाज बाहर निकल रही
थी।

"नुकसान उठाएगा।"

"मुझे समझा मत। हम एक ही गुरु के चेले हैं। मेरा बुरा करेगी तो तू भी नहीं बचेगी। नुकसान तो तुझे भी होगा।"
उसी पल चमकता बिंदु लुप्त हो गया।
 
मोना चौधरी ने मुस्कराकर सबको देखा और नीलकंठ की आवाज निकली। __ “अब तो आपको कुछ हद तक अंदाजा हो गया होगा कि मैं कौन हूं। मैं मिन्नो का पुराना प्रेमी नीलकंठ हूं। गुलचंद का यार होता था, परंतु मिन्नो के लिए चाहत थी मेरे मन में। ये जुदा बात है कि मिन्नो ने कभी मेरी परवाह नहीं की।"

"तो अब क्या चाहते हो?" देवराज चौहान ने पूछा।

"मैं मिन्नो का भला चाहता हूं। ये तेरे साथ जथूरा को आजाद करने के लिए जा रही है और महाकाली जथूरा को आजाद करने वाली नहीं। जो ये काम करेगा, उसे किसी तरह अपने जाल में फंसाकर मार देगी। जबकि मैं मिन्नो का अहित होता नहीं देख सकता। इसलिए आया हूं कि महाकाली से मिन्नो का बचाव कर सकूँ।"

"कैसे करोगे बचाव?" महाजन ने पूछा। ____

“जो पढ़ाई महाकाली ने पढ़ी है, वो ही मैंने पढ़ी है, ये जुदा बात है कि वो मेरे से तेज है। आज उसका नाम है। परंतु मैं इस बात की पूरी कोशिश करूंगा कि मिन्नो का अहित न हो।"

“जथूरा की कैद के बारे में तुम क्या जानते हो?" पारसनाथ ने पूछा।

' “महाकाली ने जथूरा को अपनी ताकतों से बनाई कृत्रिम पहाड़ी के भीतर तिलिस्म के जाल में कैद कर रखा है। उस पहाड़ी के भीतर, रहस्यों की दुनिया बसा रखी है महाकाली ने। ऐसा मकड़जाल बिछा रखा है कि जो एक बार भीतर गया वो वहीं फंसकर रह गया। बाहर नहीं आ सकता वो।" मोना चौधरी के होंठों से निकलने वाली नीलकंठ की आवाज गम्भीर थी—“मेरी कोशिश होगी कि पहाड़ी के भीतर महाकाली के मकड़जाल से तुम लोगों को बचाऊं। तुम लोगों को जथूरा तक पहुंचा सकू। मिन्नो जो चाहती है, उसकी इच्छा को पूरा करके, मुझे खुशी होगी।"

“तुम भी तो खतरे में पड़ सकते हो।” नगीना बोली।

"मैं।” नीलकंठ मुस्करा पड़ा—“मुझे कुछ नहीं होगा। मेरा शरीर तो पास में है नहीं। मैं अपनी ताकतों के सहारे मिन्नो के भीतर आया हूं। अगर कुछ नुकसान हुआ तो मिन्नो का होगा। जो मैं नहीं होने दूंगा।" ___

“तुम्हें यकीन नहीं कि तुम महाकाली की ताकतों से पार पा लोगे?"

“पूरा यकीन नहीं है। वो ताकतवर है, फिर भी मैं तुम लोगों के बहुत काम आऊंगा। वो परेशान हो जाएगी। इन सब बातों में एक अच्छी बात ये भी है कि तवेरा तुम लोगों के साथ है। सुना है वो भी तंत्र-मंत्र में खासी माहिर है।” ____

“तुम्हारी ऐसी कोई शर्त तो नहीं कि मोना चौधरी तुम्हें चाहे, तभी तुम हमारी सहायता..."

“नहीं परसू। ये तो मेरी इच्छा की बात है कि मैं तुम लोगों की, खासतौर से मिन्नो की सहायता करना चाहता हूं। बरसों बाद मुझे मिन्नो के काम आने का मौका मिला है तो पीछे क्यों हटूंगा।"

“अब तुम क्या करोगे?" "तुम लोग सुबह यहां से रवाना होने वाले हो?” नीलकंठ बोला।

“हर जरूरत के वक्त तुम लोग मुझे अपने पास पाओगे। मैं मिन्नो में आ जाया करूंगा।"

सब चुप रहे। नीलकंठ की आवाज पुनः सुनाई दी। "मैं अब जाता हूं।"

“बेबी को तुम्हारे बारे में क्या कहें?"

"कुछ भी कहने की जरूरत नहीं। वो सब जान गई है। मैंने हर बात उसके दिमाग में डाल दी है।"

"ओह।" उसके बाद नीलकंठ की आवाज नहीं आई। वहां खामोशी सी आ ठहरी।

कमला रानी और मखानी कुर्सियों पर पास-पास ही बैठे थे। मखानी कमला रानी के कान में बोला।
"बाथरूम में चलें?"

"हट ।” कमला रानी ने मुंह बनाया—“बार-बार थोड़े न जाते हैं।"

"दिल कर रहा...।"

“अपने दिल को संभाल के रख। अभी मेरा दिल नहीं कर रहा। तेरे को तो ये ही सब सूझता है।"

.
तभी सबने मोना चौधरी को गहरी सांस लेते देखा।

मोना चौधरी ने सबको देखा फिर एकाएक मुस्कराकर कह उठी।

"नीलकंठ से मिलकर हैरान हो रहे हो।”

“तुम्हें...कैसे पता?" महाजन कह उठा।

“यहां जो भी हुआ, उसकी जानकारी नीलकंठ ने मेरे भीतर डाल दी है।" मोना चौधरी ने कहा। ___

“तुम...तुम जानती हो उसे—याद है नीलकंठ की?"

“याद नहीं थी, परंतु नीलकंठ ने याद दिला दी। मस्तिष्क की दबी परतों को सामने ला दिया। अब मुझे सब कुछ याद है। नीलकंठ भी, जथूरा भी, महाकाली भी।"

“यानी तुम्हें सब याद आ गया?"
"हां।"
"कौन था नीलकंठ?"
“सोहनलाल यानी कि गुलचंद का यार हुआ करता था। मेरे पे नजर रखता था। जहां मैं जाती, मेरे पीछे चला आया करता था। दो-चार बार प्यार का इजहार भी किया। लेकिन मैंने डांटकर मना कर दिया। उसके बाद भी वो मेरी ताक में ही रहा करता था कि मुझे देख ले। उसके बाद नगरी में आपसी लड़ाई छिड़नी आरम्भ हो गई थी। हम सबके मारे जाने के बाद जो बचे उन्होंने अपना रास्ता चुना। नीलकंठ तंत्र-मंत्र की विद्या लेने गुरुजी की शरण में चला गया था। वहां महाकाली भी शिक्षा ले रही थी।" मोना चौधरी ने सोच-भरे स्वर में बताया।

__ "और जथरा?" नगीना ने पूछा।

“जथूरा ने नागमणि से शिक्षा ली। साधारण-सा व्यक्ति होता था जथूरा। नागमणि को जाने क्यों जंच गया। यूं नागमणि आसानी से किसी को अपना शिष्य नहीं बनाती। जथूरा को कई कठिन परीक्षाएं देनी पड़ीं। उनमें सफल होना पड़ा। जथुरा के भाई सोबरा ने भी नागमणि से ही शिक्षा पाई। परंतु नागमणि जथूरा पर ज्यादा मेहरबान रही। यही वजह है कि जथूरा काफी आगे निकल गया और सोबरा उससे कुछ कमजोर पड़ गया। जथूरा की जगमोहन से बना करती थी। उनमें कम ही मुलाकात हो पाती थी, परंतु वे अच्छे दोस्त थे।"

सबकी निगाह मोना चौधरी पर थी।
“अब क्या होगा?" पारसनाथ बोला।

"नीलकंठ मुझसे एकतरफा प्यार करता है। यही वजह है कि वो मेरी सहायता को आगे आया है।" मोना चौधरी ने कहा।

"लेकिन नीलकंठ महाकाली का मुकाबला नहीं कर सकता।"

"बेशक नहीं कर सकता। परंतु साथ में जथूरा की बेटी तवेरा भी है। इन दोनों के साथ होने पर हमें बहुत हौंसला रहेगा। राह में आने वाली कठिनाइयों से ये हमें बचा सकते हैं।” मोना चौधरी बोली।

"इसमें कोई शक नहीं।"

"लेकिन नीलकंठ अपने शरीर के साथ सीधी तरह हमारे सामने क्यों नहीं आता?" नगीना ने कहा। ___

“वो नहीं आ सकता। वो लम्बी समाधि में गया हुआ है। समाधि तोड़नी पड़ेगी उसे और नुकसान में रहेगा। परंतु वो मेरे शरीर के अंदर आता रहेगा। उसकी मौजूदगी की कमी महसूस नहीं होगी। वो सिर्फ मेरा भला चाहता है। वो मेरे बारे में ही सोचेगा। मेरे अलावा किसी और का भी भला हो जाए तो जदा बाद है।"

___“लेकिन हम सब एक ही तो हैं।"

“हैं। परंतु नीलकंठ मेरा ही भला करेगा।" मोना चौधरी मस्कराकर बोली—“ये बात उसने स्पष्ट कही है।"

"तुमसे कही?" __

“मेरे दिमाग में डाली है। वो मेरे से बात नहीं कर सकता। परंतु जो कहना हो उसे, वो बात मेरे दिमाग में डाल सकता है।" ___

“तो नीलकंठ कल से तुम्हारे साथ रहेगा?"

"हां। कल हम जथूरा को आजाद कराने के लिए चल रहे हैं। पोतेबाबा रात-रात में सफर की तैयारी कर देगा। जब भी जरूरत पडेगी नीलकंठ मेरे में आ जाएगा। उसकी चेष्टा यही है कि महाकाली मेरे को क्षति न पहुंचा सके।" ।

बांकेलाल राठौर ने रुस्तम राव के कान में कहा। "छोरे यो तो घणा प्यार का मामलो लागे हो।"

"नीलकंठ सीरियस प्यार करेला बाप।"

"म्हारी वो गुरदासपूरो बाली म्हारे से सीरियस प्यार न करो हो। दूसरों के चार बच्चे जण के बैठो हो वो तो।"

"उसका प्यार सच्चा नेई होईला बाप।”

"सच्चो प्यार होवो, म्हारे को लस्सी के गिलासो में मकखनो का गोला डालो के दयो, पर वो म्हारी लस्सी निकाल भी लयो।"

“लस्सी निकालेगा तुम्हारी। वो कैसे बाप?"

"तंम नेई समझो हो। बच्चो हो अम्भी।” बांकेलाल राठौर ने गहरी सांस ली।

मखानी ने कमला रानी को कोहनी मारी।

कमला रानी ने उसे देखा तो मखानी ने आंख के इशारे से बाथरूम की तरफ चलने का इशारा किया।

कमला रानी ने मुंह बनाकर, चेहरा घुमा लिया।

'साली नखरे बहुत दिखाती है।' मखानी बड़बड़ाया—'सारी मेहनत तो मैंने ही करनी है, तब भी इसे नखरे सूझ रहे हैं।'

तभी देवराज चौहान कह उठा।
"मेरे खयाल में ये अच्छी बात है कि नीलकंठ के रूप में हमें एक सहायक मिल गया, जो कि हमें ठीक रास्ता दिखाएगा।"

“मोना चौधरी को।” पारसनाथ मुस्कराया।

"हम मोना चौधरी के साथ ही तो हैं।” देवराज चौहान बोला।

“महाकाली को नहीं भूलना चाहिए, वो हमारे लिए अब जाने क्या जाल बिछा रही होगी। नगीना कह उठी।
 
शाम ढल रही थी। सूर्य पश्चिम की तरफ झुकता अपनी सुर्थी बिखेर रहा था। कुछ गहरे बादल थे पश्चिम में। सूर्य की सी उन्हें पार करने की चेष्टा में, उन बादलों के किनारों से तीखी-सी होकर निकल रही थी।

जगमोहन, सोहनलाल और नानिया बिना रुके अब तक आगे बढ़े जा रहे थे। उनके चेहरों पर थकान नजर आ रही थी, परंतु उनका रुकने का इरादा नहीं लगता था। नानिया का खूबसूरत चेहरा, लाली से भरा लग रहा था।

“मेरे खयाल में सफर लम्बा हो रहा है।" जगमोहन कह उठा।

"थक गए तुम।” नानिया ने सोहनलाल से मुस्कराकर कहा।

"कुछ-कुछ।"

"मैं उठा लूं तुम्हें?" नानिया हंसी।
"पूछने के लिए मेहरबानी। मैं ऐसे ही ठीक हूं।” सोहनलाल ने प्यार से नानिया को देखा।

नानिया उसे देखती मुस्करा रही थी। चलते-चलते सोहनलाल ने नानिया का हाथ पकड़ लिया।

“तुम कितने अच्छे हो सोहनलाल ।” नानिया बोली- “मुझे अपने साथ अपनी दुनिया में ले जाओगे?"

"जरूर ले जाऊंगा।"

“मुझसे ब्याह करोगे?"

"हां । तुम्हें रानी बनाकर रखंगा।" दोनों के चेहरों पर प्यार का खुमार नजर आ रहा था।

तभी जगमोहन कह उठा।

“कम-से-कम मेरे सामने तो ये सब बातें मत करो।” ।

"क्यों?" नानिया कह उठी—“तुम्हें क्या तकलीफ होती है।"

“तकलीफ होती है तभी तो कह रहा हूं।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

“अजीब हो तुम । क्या तुम ऐसी बातें नहीं करते?" नानिया ने पूछा।

“नहीं। इन बातों से मेरा दिमाग खराब होता है।"

“फिर वो तुम्हारे साथ कैसे रहती होगी, जिसे तुम प्यार करते हो।"

“इसके साथ कोई नहीं रहती।” सोहनलाल बोला। ___

“ऐसे इंसान के साथ रहेगी भी कौन, जिसे प्यार की भाषा पसंद न हो।"

“वो बात नहीं है।” सोहनलाल ने कहा—“इसने ब्याह नहीं किया। ___

“ऐसे के साथ ब्याह करेगी भी कौन।” नानिया ने मुंह बनाकर कहा।

"वैसे ब्याह तो इसने कर रखा है।” सोहनलाल ने गहरी सांस ली।

नानिया ने गर्दन घुमाकर सोहनलाल को घूरा।

"क्या बात है।" नानिया बोली__“कभी तम कहते हो ब्याह नहीं किया इसने, कभी कहते हो कि ब्याह कर रखा है। मैं गलत कह रही हूँ कि या तुम गलत कह रहे हो। कहना क्या चाहते हो?"

"इसने नोटों के साथ ब्याह कर रखा है।"

"नोटों के साथ?”

"पैसा-दौलत। इसने और देवराज चौहान ने इतनी दौलत इकट्ठी कर रखी है कि इसका सारा वक्त दौलत को संभालने में ही निकल जाता है। ब्याह जैसी बात के बारे में सोचने की इसे फुर्सत ही कहां है। पैसे से ही इसने ब्याह कर रखा है।" ___

"यूं कहो न।” नानिया ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया। ___

"किस्मत वाले ही दौलत से शादी कर पाते हैं।" जगमोहन मुस्कराकर बोला।

“पर दौलत से तुम औरत जैसा फायदा तो नहीं उठा सकते।" नानिया ने कहा।

"इससे भी ज्यादा फायदा उठा सकता हूं।"

"क्या मतलब?

“समझा करो।” सोहनलाल ने कहा—“दौलत हो तो औरत की कमी नहीं होती।"

“छिः। तो ये इस तरह औरत को...।"
 
"ये ऐसा नहीं करता। यूं ही बात कही है।” सोहनलाल ने बताया।

"दौलत बच्चे तो पैदा नहीं कर सकती।"

"बिल्कुल नहीं।”

“मैं बच्चे पैदा करूंगी सोहनलाल ।”

“जरूर करेंगे।” सोहनलाल ने प्यार से कहा-"हमारा परिवार होगा और... "

“अब बस भी करो।" जगमोहन ने मंह बनाकर कहा। ___

“तुम चिढ़ते क्यों हो। तुम्हारे नोट बच्चे पैदा नहीं कर सकते तो

“ये चिढ़ता नहीं है।” सोहनलाल बोला—“इसकी आदत ही ऐसी है, ये ऐसी ही बात करता है।" ____

“ये बात तुम्हें पहले बतानी चाहिए थी।” नानिया बोली-“तुम्हें ये अजीब सा नहीं लगता?"

“शायद, थोड़ा सा है।” सोहनलाल ने मुस्कराकर जगमोहन को देखा। _

“औरत के फेर में पड़कर, तेरे को बदलते देख रहा हूं सोहनलाल।” जगमोहन बोला।

“अब मेरी जिम्मेवारी बढ़ गई है।” सोहनलाल बोला।

"वो कैसे?"

"औरत का दिल भी रखना है और यारों का भी।"

(नानिया के बारे में विस्तार से जानने के लिए अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'पोतेबाबा पढ़ें। नानिया के अलावा और भी कई अहम घटनाओं की जानकारी आपको मिलेगी 'पोते बाबा' में!)

एकाएक नानिया ठिठकी और जमीन को देखने लगी।

इस वक्त वो खुली जमीन पर थे। जंगल जैसा इलाका पीछे छूट गया था और काफी आगे पुनः जंगल जैसा इलाका नजर आ रहा था। शाम के वक्त वहां हर तरफ सुनसानी छाई हुई थी। कोई और नजर नहीं आ रहा था।

“क्या हुआ?" सोहनलाल ने पूछा।

“यहां से सोबरा का इलाका शुरू हो गया है।" नानिया ने कहा।

"कैसे जाना?"

“मिट्टी के रंग से। जथूरा ने अपनी ताकतों से अपनी जमीन की मिट्टी को सुर्ख जैसा रंग दे रखा है जबकि सोबरा की जमीन की मिट्टी भूरे रंग की है और यहां पर मिट्टी के दोनों रंग मिल रहे हैं। लाल और भूरा रंग। यानी कि हम ऐसी जमीन पर खड़े हैं जहां से सोबरा और जथूरा की जमीन बंट रही है।” नानिया ने सोहनलाल को देखकर कहा। __

सोहनलाल और जगमोहन ने देखा कि नानिया का कहना सही था। __जहां वे खड़े थे, वहां नीचे की मिट्टी सुर्ख जैसी और भूरी मिक्स थी।

_ “हम कितनी देर में सोबरा की नगरी पहुंच जाएंगे?" जगमोहन ने पूछा।

"ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, अंधेरा होने वाला है। हमें चलते रहना चाहिए।"

उसके बाद वे तीनों फिर चल पड़े।

कुछ ही देर में मैदानी इलाका पार करके, जंगल में प्रवेश करते चले गए। अंधेरा ज्यादा महसूस होने लगा था पेड़ों की वजह से। जंगल के बीच काफी चौड़ी पगडंडी बनी हुई थी। जिससे जाहिर था कि यहां लोगों का आना-जाना लगा रहता है। वे उसी पगडंडी पर तेजी से आगे बढ़ते रहे।

दिन की रोशनी अब गायब होने लगी थी।

तभी उनके कानों में घोड़ों की टापों की आवाज पड़ने लगी। वे ठिठके। एक-दूसरे को देखा।

"कोई इधर ही आ रहा है।” नानिया बोली। टॉपों की आवाज धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगी थी।

“सोबरा की नगरी की तरफ से ही कोई आ रहा है। सोहनलाल ने कहा—“आवाज उधर से ही आ रही है।" ___

“एक नहीं, ये दो घोड़ों की टापों की आवाज है।” जगमोहन सोच-भरे स्वर में बोला—“परंतु एक बात अजीब है कि दोनों घोड़ों की टापों की आवाज एकसार है। यानी कि दोनों घोड़े एक समान ही दौड़ते आ रहे हैं। वरना दो घोड़ों की टापों की आवाजें तो आगे-पीछे पड़कर, कानों में उबड़-खाबड़ आवाज पड़ती है।"

"घोड़े बग्गी में लगे होंगे।” नानिया कह उठी। जगमोहन ने मुस्कराकर नानिया को देखा।

"ऐसे क्या देखता है?" नानिया तुनककर बोली।

“सोच रहा हूं, तेरे में अक्ल है।"

"ये बात तेरे को पहले ही सोच लेनी चाहिए थी।"

“पहले तूने ऐसी समझदारी वाली कोई बात नहीं कही कि मुझे लगे कि तू समझदार है।"

“सोहनलाल, ये बोलता बहुत है।"

"तेरी तारीफ कर रहा है।"

“तू भी इसकी तरफदारी करने लगा।"

“थोड़ा-बहुत तो ध्यान रखना ही पड़ता है। वैसे तेरी जगह ये कैसे ले सकता है।"

घोड़ों के दौड़ने की आवाजें अब करीब ही सुनाई देने लगी थीं।
फिर सामने, दूर पगडंडी पर, घोड़े दिखे। साथ में बग्गी लगी हुई थी।

धूल उड़ाती बग्गी तेजी से पास आती जा रही थी। तीनों की निगाह करीब आती बग्गी पर टिकी रही।
पास आते-आते बग्गी की रफ्तार कम होती चली गई। फिर रुक गई।

अभी दिन की रोशनी बाकी थी।
कोचवान की जगह पर घोड़ों की लगाम थामे चालीस बरस का एक व्यक्ति बैठा था। मूछे थीं। सिर के बाल छोटे थे। सफेद कमीज पायजामा पहन रखा था। उसने मुस्कराती निगाहों से तीनों को देखा।

"कैसा है जग्गू?" उसने अपनी जगह पर बैठे-बैठे ही पूछा।
 
उसकी आवाज से फौरन पहचान गया जगमोहन कि ये वो ही है, जो बिना नजर आए उससे मिलता रहा और उसे रास्ता बताता रहा है। आखिरी बार ये कुएं में तब मिला था जब कमला रानी ने उन्हें कुएं में फेंक दिया था। (ये सब विस्तार से जानने के लिए पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'पोतेबाबा' अवश्य पढ़ें।)

"तुम।” जगमोहन के होंठों से निकला। सोहनलाल ने भी उसकी आवाज सुनकर उसे पहचान लिया था।

“हां जग्गू मैं। तेरे को लेने आया हूं। वैसे मैं खुद किसी को लेने कभी नहीं आता।"

“अब तुम अपने बारे में बताओ।"

"बग्गी में बैठ जाओ। सोबरा की नगरी चलते हैं।” वो बोला—“रास्ते में बात भी हो जाएगी।

जगमोहन ने सोहनलाल को देखा।

"चले चलते हैं।” सोहनलाल ने सिर हिलाया। तीनों बग्गी में जाकर बैठ गए।

उसने बग्गी मोड़ी और वापस दौड़ा दी।

“ये कौन है सोहनलाल?" नानिया ने पूछा।
"सोबरा का कोई आदमी है। कई बार ये हमसे बातें करता रहा है। परंतु आमने-सामने पहली बार देखा है।" ___

“ये वो ही है, जिसने कालचक्र से निकलने के बाद हमसे बातें की थीं।

"हां" जगमोहन उससे बोला।

"तुम कौन हो?"

“मैं सोबरा का करीबी सेवक हूं। मनीराम नाम है मेरा।” वो बोला।

“अब हम कहां जा रहे हैं?"

"सोबरा की नगरी। मैंने सोचा पैदल चलने में तुम लोगों को कष्ट होगा। इसलिए घोडागाड़ी ले आया।"

"देवराज चौहान कहां है?"

“देवा-मिन्नो, बाकी सब जथूरा की नगरी पहुंच चुके हैं।"

“सब?"

“हां सब।”

"तुमने हमें सोबरा की जमीन पर आने के लिए क्यों कहा?" जगमोहन ने पूछा।

“इसी में सबका भला है।” मनीराम ने कहा।

"क्यों?"

“सब जथूरा की जमीन पर इकट्ठे होते तो गलत हो जाता। देवा-मिन्नो को समझाता कौन?"

“क्या मतलब?”

"सारे मतलब मुझसे मत पूछो। हम सोबरा के पास चल रहे हैं, उससे बात करना।"

"मेरे खयाल में मुझे देवराज चौहान के पास होना चाहिए था। जथूरा उससे कभी भी झगड़ा कर सकता है।"

मनीराम हंस पड़ा।

“क्या हुआ?"

“तुम अभी भी नहीं समझे।”

"क्या?"

“पोतेबाबा तुम सबको यहां लाया है।"

जगमोहन चौंका। आंखें सिकुड़ीं उसकी।

“क्या कह रहे हो। वो तो हमें पूर्वजन्म में आने से रोकना चाहता था।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“जगमोहन ठीक कहता है।” सोहनलाल ने कहा।

"ऐसा आभास कराकर, तुम लोगों को धोखा दे रहा था पोतेबाबा। वो बहुत चालाक है।" ___

"क्या कहना चाहते हो?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ी हुई थीं। __

“सच बात तो ये है कि अपनी हरकतों की आड़ में पोतेबाबा तुम सबको पूर्वजन्म में लाना चाहता था।"

“तुम्हारी बात पर यकीन नहीं होता।" ।

“तुम सब पूर्वजन्म में पहुंच चुके हो। अब तुम्हें मेरी बात का यकीन कर लेना चाहिए।"

“तुम्हारा मतलब है कि जथूरा देवराज चौहान से झगड़ा नहीं करेगा?"

“नहीं। वो तो झगड़ा करने की स्थिति में ही नहीं है।” मनीराम बग्गी दौडाता ऊंचे स्वर में कह रहा था—“पोतेबाबा ही जथूरा के हर काम का कर्ता-धर्ता बना हुआ है। कुछ काम जथूरा की बेटी तवेरा देखती है।"

"तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आ रहीं। खुलकर बताओ।"

"बेहतर होगा कि ये सब बातें सोबरा के मुंह से ही सुनो। सब कुछ कह देना मेरे अधिकार में भी नहीं है।"

' “अगर हम सोबरा के पास न आते तो?"

"बुरा होता देवा-मिन्नो का। परंतु अब शायद सब ठीक हो जाए।

जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं। "तुम अपनी बातों में पहेलियां बुझा रहे हो।"

मनीराम खामोश रहा।

“बग्गी रोक दो।” जगमोहन बोला—“हम जथूरा की जमीन पर, देवराज चौहान के पास जाएंगे।

“अब ये सम्भव नहीं।"

"क्यों?"

“सोबरा तुम लोगों का इंतजार कर रहा है और क्या तुम चाहते हो कि देवा-मिन्नो को कोई नुकसान हो?"

“नहीं।”

"फिर तुम्हें सोबरा की जमीन पर ही रहना होगा। यहीं से आगे जाने का, तुम लोगों का रास्ता बनेगा।"

“कहां-आगे जाने का रास्ता?"

"इस बारे में सोबरा बताएगा।"

"देवराज चौहान जथूरा की जमीन पर, इस वक्त किस स्थिति में है?" जगमोहन ने पूछा। ___

“वो सब जथूरा के बड़े महल में मेहमान बने हुए हैं। उनके बारे में फिक्र मत करो।"

जगमोहन ने सोहनलाल को देखा।

"देखते हैं, क्या होता है।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा—“अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा।"

"किसी भी बात की फिक्र मत करो। सोबरा तुम लोगों का दुश्मन नहीं है। समझो, तुम लोग अपने घर में हो।"

"लेकिन ये सब हो क्या रहा है, कुछ तो पता चले।” जगमोहन झल्लाया।

“सोबरा से बात होते ही सब जान जाओगे।" जगमोहन ने नानिया ने कहा।।

"तुम तो कहती थी कि सोबरा अच्छा है।"

"तो बुरा क्या कर दिया सोबरा ने तुम्हारे साथ।" नानिया कह उठी—“वैसे मेरा मतलब था कि सोबरा जथुरा से बेहतर है।"

“जथूरा में तुम्हें क्या बुराई दिखी?"

“पता नहीं, पर वो मुझे अच्छा नहीं लगता।"

“तुम कालचक्र में रानी साहिबा बनी हुई थीं। वो कालचक्र सोबरा का है, जिस पर अब जथूरा का अधिकार है।"

"तो?"

"तुम सोबरा को जानती हो?"

"हां, तभी तो उसने कालचक्र में मेरी जगह बनाई।"

"फिर तो वो तुम्हें, जथूरा से अच्छा लगेगा ही।" जगमोहन ने मुंह बनाकर कहा। -

“सोहनलाल, अपने दोस्त से कह दो कि मुझसे ठीक तरह बात किया करे।"

"धीरे-धीरे तुम्हें इसकी और इसे तुम्हारी आदत पड़ जाएगी।"

“ये क्या बात हुई। ब्याह तो मेरा और तुम्हारा होना है।"

"रिश्तेदार भी तो होते हैं ब्याह के बाद।” सोहनलाल मुस्कराया— “तब जगमोहन तेरा रिश्तेदार होगा।"

"ये तो बहुत बोलता है।”

"वो ही तो कहा है कि आदत पड़ जाएगी।” सोहनलाल ने गहरी सांस ली।

“तुम काम क्या करते हो?" नानिया ने पूछा।

“मैं?" सोहनलाल अचकचाया।

“हां, तुमसे ही पूछ रही हूं। तुम्हारे दोस्त से नहीं।"

"मैं...मैं ताले-तिजौरी खोलता हूं।"

“ये क्या काम हुआ?"

"ये काम ही है।” सोहनलाल अब क्या जवाब देता।
 
"इसे भी सिखा देना।" जगमोहन ने व्यंग्य से सोहनलाल से कहा।

“तू चुप रह।” सकपकाए से सोहनलाल ने कहा। जगमोहन ने मुंह घुमा लिया।

"इसे कहो हमारी बातों के बीच न बोले।"

"सुन लिया होगा इसने।"

“इसके साथ तो नहीं रहते तुम उस दुनिया में?" नानिया ने पूछा।

“नहीं। हम दोनों अलग-अलग घरों में रहते हैं।" __

“ये तो कितनी अच्छी बात है।" नानिया ने कहकर गहरी सांस ली।

जगमोहन ने मनीराम से पूछा। "कितनी देर का रास्ता है?"

"थोड़ा वक्त और लगेगा फिर हम सोबरा की नगरी पहुंच जाएंगे।” मनीराम ने बग्गी दौड़ाते कहा।

"अंधेरे में घोड़ों को रास्ता कैसे नजर आ रहा है?"

“घोड़े रास्ता पहचानते हैं।” |

“सोबरा और जथूरा भाई हैं?"

"हां।"

"दोनों में बनती नहीं?"

“नहीं। लम्बे समय से मनमुटाव चला आ रहा है।” मनीराम ने बताया।

कुछ देर बाद ही उन्हें नगरी की रोशनियां दिखाई देने लगीं।

सादी-सी नगरी थी सोबरा की।

जथूरा की तरह, सोबरा की नगरी में तड़क-भड़क नहीं थी। साधारण-सी सड़कें थीं। घोडागाड़ी-बग्गी, ठेलागाड़ी वगैरह आ-जा रही थीं। अंधेरा होने के पश्चात रोशनियों का पर्याप्त इंतजाम था।

वहां एक ही महल नजर आ रहा था। उस पर रोशनियां चमक रही थीं। ___ मनीराम उन तीनों को उसी महल में ले आया था। बग्गी महल के गेट के भीतर जा रुकी थी।

"आओ।” मनीराम नीचे उतरता कह उठा—“नीचे उतरो।”

जगमोहन, सोहनलाल और नानिया नीचे उतरे। महल पर नजर मारी।

"सोबरा यहां रहता है?" जगमोहन ने पूछा।

“हां।” मनीराम मुस्कराया— “सोबरा यहीं रहता है।"

महल के फाटक पर जलती मध्यम-सी रोशनी उन तक पहुंच रही थी।

"इस वक्त वो भीतर ही है?"

"हां।” मनीराम आगे बढ़ता कह उठा—“मेरे पीछे आओ।" तीनों उसके पीछे चल पड़े।

"मैं इस महल में बहुत बार आई हूं।” नानिया ने कहा।

"कब?"

“सोबरा के कालचक्र बनाने से पहले। मैं यहीं तो काम किया करती थी। सोबरा के काम। फिर उसने मुझे कालचक्र में रानी साहिबा बनाकर बैठा दिया। मैं कालचक्र में कैद होकर रह गई।"

"तब तो तुम्हें सोबरा से नाराजगी होगी कि उसने तुम्हें कैद में बिठा दिया।” सोहनलाल ने कहा।

“नाराजगी क्यों, ये भी सोबरा का ही काम था।"

मनीराम के साथ वे महल में प्रवेश करते चले गए।

शानदार महल था भीतर से। विशाल, खुले रास्ते। महल के कर्मचारी काले कपड़ों में आ-जा रहे थे।

मनीराम तेजी से एक राहदारी में बढ़ता जा रहा था। जगह-जगह रोशनी हुई पड़ी थी।

उन्हें लेकर मनीराम एक कमरे में जा पहुंचा। बड़ा और खुला कमरा था। बिस्तरे लगे थे वहां। रोशनी हो रही
थी।

“तुम तीनों यहां आराम करो। उस तरफ स्नानघर है। नहा लेना। कुछ ही देर में भोजन हाजिर हो जाएगा।"

"हम सोबरा से मिलना चाहते हैं।”

“अवश्य । परंतु मुलाकात भोजन के बाद होगी। मेहमान की पहले सेवा करना आवश्यक है। तुम लोग दूर से आए हो।” कहने के साथ ही मनीराम पलटा और वहां से बाहर निकलता चला गया।

जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं। ___

“आह। कितना अच्छा लग रहा है महल में ठहरकर" नानिया कह उठी—“महल में हर कोई नहीं ठहर सकता।"

“तुम खुश हो?" सोहनलाल मुस्कराया।

“बहुत। मैं तो स्नान करने जा रही हूं।” नानिया एक दिशा में बढ़ती कह उठी—“मैं जानती हूं इधर जनाना और मर्दाना, दोनों स्नानघर हैं। पहले मैं कभी महल के स्नानघर में स्नान नहीं कर पाई। परंतु आज करूंगी।"
नानिया चली गई।

"हमें समझ नहीं आ रहा कि हम यहां क्यों आए हैं?" सोहनलाल ने कहा।

“ये बात सोबरा बताएगा।"

"क्या मतलब?"

"सोबरा के आदमी मनीराम ने ही हमें यहां पहुंचने को कहा था। सोबरा के इशारे पर ही उसने ये सब किया होगा।”

सोहनलाल ने सहमति में सिर हिलाया।
 
"मेरे खयाल में हम जितनी जल्दी नहा-धोकर फारिग होंगे, उतनी ही जल्दी सोबरा से मुलाकात होगी। अब मनीराम सोबरा को हमारे आ जाने की खबर दे रहा होगा। देखें तो सही कि सोबरा कहता क्या है।" जगमोहन बोला।

“देवराज चौहान और बाकी के लोग जथरा के महल में। हम सोबरा के महल में और दोनों दुश्मन हैं।"

जगमोहन सोहनलाल को देखने लगा।
"सोबरा और जथूरा की दुश्मनी से हम मुसीबत में फंस सकते हैं।” सोहनलाल ने कहा।

जगमोहन के चेहरे पर सोचें छाई रहीं।

“शायद हमें यहां नहीं आना चाहिए था।” सोहनलाल पुनः बोला।

“सोबरा से बातचीत के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है।" जगमोहन कह उठा।

मनीराम जगमोहन, सोहनलाल और नानिया को लेकर सोबरा के पास पहुंचा।

बहुत बड़े खुले कमरे में सोबरा मौजूद था। बाहर दो पहरेदार सतर्क खड़े थे।

उस कमरे में मध्यम-सी रोशनियां फैली थीं। छत पर फानूस लटक रहे थे जो कि रोशन थे। एक तरफ फर्श पर नीचे ही नर्म गद्दे बिछे थे। जिन पर पड़े गोल तकियों के बीच पांच फुट का सोबरा बैठा था। बदन पर एक धोती के अलावा और कुछ नहीं था। हाथ में चांदी का गिलास था, जिसमें से वो रह-रहकर बूंट भर रहा था।

पास में घुटने के बल एक कम उम्र की युवती अर्धनग्न से कपड़े पहने, बैठी थी। सोबरा की आंखों में नशे की लाली झलक रही थी।

सोबरा ने तीनों को देखा फिर मुस्कराकर कह उठा।

"स्वागत है। सोबरा तुम तीनों का स्वागत करता है। इसके साथ ही उसने कुछ फट दूर गददे की तरफ इशारा किया___"मेरे मेहमान वहां बैठकर, आराम कर सकते हैं। बातें भी हो जाएंगी।"

जगमोहन, सोहनलाल और नानिया गद्दे पर जा बैठे। मनीराम हाथ बांधे खड़ा रहा।

"ये वक्त मेरे आराम करने का होता है। परंतु तुम लोग मेरे खास मेहमान हो। सफर में परेशानी तो नहीं हुई?"

“सब ठीक रहा।” जगमोहन बोला।

सोबरा ने उस कमसिन युवती से कहा। "मेहमानों को जाम पिलाओ।"

“अभी लीजिए।" कहकर वो फौरन उठी।

"कोई जरूरत नहीं।” जगमोहन कह उठा—“हम इन चीजों का सेवन नहीं करते।" ____

"बेहतर है।” सोबरा ने युवती को देखा—“तुम जाओ। अभी मुझे मेहमानों से बातचीत करनी है।"

युवती बाहर निकल गई।

“तुम कैसी हो नानिया?"

“अच्छी हूं सोबरा। परंतु कालचक्र में बंदी बनकर रहने में परेशानी अवश्य हुई।"

“मैंने तुम्हें रानी साहिबा बनाया था।"

“यही तो मेरी सजा थी कि एक साधारण युवती को रानी साहिबा बनकर, कालचक्र में रहना पड़ा।"

सोबरा हंस पड़ा।
हाथ में थाम रखे गिलास से बूंट भरा और उसे एक तरफ रख दिया।
“जग्गू और गुलचंद। बहुत समय बाद तुम दोनों को देख रहा

- "तुम हमें कब से जानते हो?” सोहनलाल ने पूछा। ___

“बहुत देर से। जब तुम लोगों का पहला जन्म था। फिर तुम सब ही मिन्नो के साथ हुई नगरी की लड़ाई में मर गए। दोबारा तुम दोनों को देखकर अच्छा लगा।"

“हमें काम की बातें करनी चाहिए।" जगमोहन कह उठा।

“अवश्य।” सोबरा मुस्कराया और मनीराम से बोला— “तुम जाओ मनीराम। अब तुम्हारी जरूरत नहीं।"

मनीराम बाहर निकल गया।

“कहो, क्या कहना है जग्गू?" ।

"तुमने हमें यहां पर क्यों बुला लिया मनीराम के द्वारा?"

"क्या तुम्हें मेरे यहां आना बुरा लगा?"

"ये मेरी बात का जवाब नहीं है।” जगमोहन गम्भीर था।

“तुम्हें बुलाना, गुलचंद को भी यहां लाना जरूरी था, ताकि संतुलन कायम रहे।” सोबरा ने कहा—“नानिया ने तुम लोगों से कहा कि सोबरा के यहां जाना ठीक है। ये बात मैंने ही नानिया के दिमाग में डाली थी।" ___

"तुमने ऐसा क्यों किया?"

"संतुलन कायम रखने के लिए।" सोबरा शांत स्वर में कह उठा— “देवा, मिन्नो, बेला, त्रिवेणी, भंवर सिंह, नील सिंह, परसू सब तो जथूरा की जमीन पर जा रहे थे। अगर तुम दोनों भी वहां चले जाते तो संतलन बिगड जाता। देवा-मिन्नों को समझाता कौन कि वो जो कर रहे हैं, उन्हें वो नहीं करना चाहिए।"

"क्या कर रहे हैं वो?" सोबरा खामोश-सा हो गया। जगमोहन, सोहनलाल, नानिया की नजरें उस पर टिकी रहीं। फिर सोबरा कह उठा।

“जथूरा मेरा भाई है, परंतु उसकी मेरी बनती नहीं। क्योंकि उसने धोखेबाजी की मुझसे। पिता की मौत के समय उसने पिताश्री से उनकी सारी ताकतें ले लीं। मुझे कुछ भी नहीं दिया। उन्हीं ताकतों के सहारे आज वो मुझसे ज्यादा शक्तिशाली बना हुआ है।"

"तो ये वजह है भाइयों की दुश्मनी की?"

"ये वजह नहीं, दुश्मनी की शुरुआत थी। उसके बाद तो बात-बात पर दुश्मनी बढ़ती ही चली गई। परंतु जथूरा पिता से मिली ताकतों का बंटवारा करने को तैयार नहीं हुआ। ज्यादा ताकतवर होकर, वो हमेशा मुझे नीचा दिखाने की चेष्टा में लगा रहता।"

तीनों उसकी बात को ध्यान से सुन रहे थे। जगमोहन कह उठा।
"ये भी तो हो सकता है कि जथूरा ने ऐसा कुछ न किया हो, परंतु उसके ज्यादा ताकतवर हो जाने की वजह से तुम्हें अक्सर ये महसूस होता हो कि जथूरा तुम्हें नीचा दिखा रहा हो।"

सोबरा मुस्करा पड़ा।

"अगर ऐसा भी हो तो कोई बड़ी बात नहीं। परंतु वो उन ताकतों की सहायता से बड़ा बना, जिन पर मेरा भी हक था।"

तीनों की निगाह सोबरा पर थी।
 
तीनों की निगाह सोबरा पर थी।

"मानते हो या नहीं?" सोबरा ने पूछा।

“पिता की चीज पर तो दोनों का बराबर-बराबर हक होना चाहिए।" सोहनलाल ने कहा।। ___

“ये ही तो मैं कहता हूं।” सोबरा ने सिर हिलाया—“परंतु जथूरा मानने को तैयार नहीं हुआ कभी भी।

"लेकिन तुम दोनों भाइयों के झगड़े में हमारा क्या मतलब?” जगमोहन ने कहा।

“मतलब पैदा हो गया।"

"कैसे?"

“मेरी बातें वहीं तक पहुंचेंगी। सुनते रहो।” सोबरा बोला— “ताकतवर होने के नाते जथूरा ने मुझे कई बार नुकसान पहुंचाया। उसके खबरी मेरे आदमियों में मौजूद रहते हैं, जो उसे खबरें देते हैं तंग आकर मैंने कालचक्र का निर्माण किया। जथूरा के जासूसों को मैं पहचान गया था, इसलिए उनके द्वारा, कालचक्र की खबर जथूरा तक पहुंचाता रहा कि मैं ऐसे कालचक्र का निर्माण कर रहा हूं कि जथूरा इसमें फंसकर कुछ भी करने के लायक नहीं रहेगा। ये जानकर जथूरा ने कालचक्र पर काबू पाने की तैयारियां शुरू कर दी और ये ही तो मैं चाहता था।" ।

“वो क्यों?"

"क्योंकि कालचक्र की आड़ में मैं जथूरा को फंसा देना चाहता था और वो फंस भी गया।"

“कालचक्र होता क्या है?" सोहनलाल ने पूछा।

“कालचक्र में नकली दुनिया और नकली हादसे भरे जाते हैं। हालात के मुताबिक जिन्हें कालचक्र में छोड़ दिया जाता है, उनसे दूर बैठे मनचाहा काम लिया जा सकता है। किसी को कालचक्र के भीतर धकेल दो तो वो कालचक्र में ही भटकता रहेगा। बाहर नहीं निकल सकेगा तमाम उम्र । बहुत कुछ होता है कालचक्र में, बताने लगूं तो सारी उम्र बीत जाए। कालचक्र भी कई तरह के होते हैं। मैंने चालीस वर्ष लगाकर उम्दा-बढ़िया कालचक्र बनाया। परंतु जथूरा के खबरियों की जानकारी में आए बिना मैंने ये बात भी कालचक्र में डाल दी कि जो कालचक्र को काबू में करेगा, वो सजा का हकदार होगा।

“ये कैसे हो सकता है?"

"ये हो सकता है। विद्या द्वारा ऐसा किया जा सकता है। मैंने कालचक्र को महाकाली के नाम बांध दिया।"

“महाकाली?"

"हां। तंत्र-मंत्र की बहुत बड़ी शक्ति है महाकाली। उससे बात कर पाना भी किसी के लिए आसान नहीं। परंतु मेरे से उसकी पहचान है। कभी मैं उसके काम आया था। महाकाली के नाम बांधने से पहले मैंने महाकाली की इजाजत ली। यानी कि अब कालचक्र को कोई नुकसान पहुंचाता तो महाकाली उसे सजा देने की हकदार थी। ये सारा काम मैंने गुप-चुप किया। जथूरा के खबरियों को ये सारी खबर नहीं होने दी कि बात जथूरा तक पहुंचे। यानी कि जथूरा इस सारी बात से अनजान रहा।” सोबरा बेहद शांत स्वर में कह रहा था—“आखिरकार वो वक्त भी आया, जब मैंने जथूरा पर कालचक्र फेंका।"

“फिर क्या हुआ?"

“जथूरा पहले से ही सावधान था। उसे खबर हो चुकी थी कि मैं कालचक्र फेंकने जा रहा हूं। उसने कालचक्र को काबू में करने का पूरा इंतजाम कर रखा था और उसने कालचक्र पर काबू पा लिया। मेरी चालीस वर्षों की मेहनत पर जथूरा ने अपना अधिकार जमा लिया। कालचक्र का वो मालिक बन बैठा। जबकि उस कालचक्र के साथ ये बात भी जुड़ी थी कि जो उसे पकड़ेगा, कैद करेगा, उसे सजा भुगतनी पड़ेगी। ये बात जथूरा तब जान पाता, जब वो पूरा कालचक्र देखता। तब उसे ये बात भी नजर आती। परंतु वो तो जीत के नशे में चूर था। इन बातों को सोचने की उसे फुर्सत ही कहां थी।"

सोबरा खामोश हुआ तो जगमोहन बोला। “फिर क्या हुआ?"

“जथूरा ने कालचक्र पर अपना कब्जा जमाया तो महाकाली को फौरन इस बात का संकेत मिल गया। उसने मुझे बताया कि जथूरा ने कालचक्र पर कब्जा कर लिया है। महाकाली आजाद है। उस पर किसी का हुक्म नहीं चल सकता। चूंकि जथूरा मेरा भाई था, इसलिए महाकाली चाहती थी कि जथूरा को सजा न दी जाए। जबकि मैंने ये सब किया ही इसलिए था कि जथूरा को तकलीफ मिले। मैंने महाकाली से कहा कि नियम के मुताबिक वो जथूरा को सजा दे। महाकाली तैयार नहीं हो रही थी तो मैंने उस पर किया एहसान उसे याद दिलाया। तब जाकर वो तैयार हुई, जथूरा को सजा देने के लिए। मैंने महाकाली से कहा कि वो जथूरा को अपनी कैद में रखे।

इस तरह कि जथूरा कभी आजाद न हो सके। महाकाली ने मेरी बात मानी और अपनी ताकतों के दम पर जथूरा को कैद करके, अपनी बनाई एक तिलिस्मी पहाड़ी में कैद कर लिया।"

जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं।
 
"तो क्या जथूरा कैद में है इस वक्त?" जगमोहन के होंठों से निकला।

"हां"

“उसी तिलिस्मी पहाड़ी में?"

"ठीक समझे तुम जग्ग।" सोबरा मुस्कराया।

"तो जथूरा के कामों को कौन देखता है?" सोहनलाल ने कहा।

“पोतेबाबा। मेरे खयाल में तुम पोतेबाबा से मिल चुके हो।” सोबरा बोला।

“हां, कई बार मिला मैं पोतेबाबा से।” (ये सब विस्तार से जानने के लिए पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'जथूरा' अवश्य पढ़ें।) ____ “लेकिन पोतेबाबा तो चाहता था कि हम पूर्वजन्म में प्रवेश न करें।” सोहनलाल ने कहा। ___

“पोतेबाबा ने ऐसा कभी नहीं चाहा।” सोबरा गम्भीर स्वर में बोला—“वो तो तुम लोगों को पूर्वजन्म में लाना चाहता था।"

___“नहीं, वो हमें रोक रहा...।" जगमोहन ने तेज स्वर में कहना चाहा।

सोबरा इनकार में सिर हिलाते हुए कह उठा।
"बेवकूफ जग्गू, तुम लोग पूर्वजन्म में आने की सोच रहे थे तब क्या?"

“नहीं।"

"तो फिर वो तुम सबको रोकने क्यों पहुंच गया? तुम लोग तो आ ही नहीं रहे थे।

जगमोहन-सोहनलाल सोबरा को देखते रहे।

“पोतेबाबा तुम लोगों को पूर्वजन्म में लाना चाहता था। इसके लिए उसने चालाकियों से भरी चाल चली। वो चाल ही ऐसी थी कि तुम लोग फंस गए। उसकी बातों में आते चले गए और..."

“पोतेबाबा ने ऐसा क्यों किया?" सोहनलाल बोला।

"उसकी मजबूरी बन गई थी तुम लोगों को पूर्वजन्म में प्रवेश कराना। अगर वो सीधे-सीधे तुम लोगों को पूर्वजन्म में चलने को कहता तो यहां के खतरे के बारे में सोचकर तुममें से कोई भी सहमत नहीं होता कि... "

"ठीक कहा तुमने।"

"लेकिन पोतेबाबा हमें पूर्वजन्म में क्यों लाना चाहता था?"

"मेरी बातें उसी तरफ आ रही हैं।” सोबरा कह उठा—“महाकाली ने जथूरा को तिलिस्मी पहाड़ी में कैद कर दिया। परंतु महाकाली हर वक्त जथूरा की निगरानी नहीं कर सकती । वो बहुत व्यस्त रहती है। उसने सोचा कि कहीं जथूरा उसके बिछाए तिलिस्म से अपना बचाव करके आजाद न हो जाए या उसके लोग उसे छुड़ा न लें। इसलिए जथुरा की कैद पर महाकाली ने देवा और मिन्नो के नाम का तिलिस्म बांध दिया। ऐसा करके महाकाली निश्चिंत हो गई।"

“वो कैसे?"

“वो जानती थी कि देवा और मिन्नो इस जन्म में एक-दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं। वो दोनों इकट्ठे होकर काम नहीं कर सकते। ये ही वजह रही कि महाकाली ने देवा और मिन्नो के नाम का तिलस्म बांधा कि ना तो वो इकट्ठा होंगे न ही तिलिस्म टूटेगा। इस तरह जथूरा आजाद नहीं हो सकेगा। ये बात पोतेबाबा को मालूम पड़ गई तो उसने सोचा कि देवा और मिन्नो को किसी तरह पूर्वजन्म में ले आए तो जथूरा को आजाद कराया जा सकता है।" ___

“अब चूंकि देवराज चौहान और मोना चौधरी पूर्वजन्म में आ पहुंचे हैं, तो महाकाली तिलिस्म के नाम बदल सकती है।” सोहनलाल बोला- "इस तरह वो जथूरा की कैद को पक्का रख सकती है।" ___

“ऐसा नहीं हो सकता।” सोबरा कह उठा— “एक जगह का तिलिस्म एक बार किसी के नाम का बांध दिया जाए तो उसे बदला नहीं जा सकता।"

“ओह।"

"तो पोतेबाबा का असली मकसद हमें पूर्वजन्म में लाना था।" जगमोहन होंठ सिकोड़े बोला।

“ठीक समझे।

"बहुत चालाकियां की पोतेबाबा ने हमारे साथ ।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

"काम बनाने के लिए चालाकियां तो करनी ही पड़ती हैं।” सोबरा मुस्कराया।

सोहनलाल ने जगमोहन से कहा। "सारी बात समझा कि हालात क्या है।"

“हां।” जगमोहन ने कहा—“महाकाली ने जथूरा की कैद को, देवराज चौहान और मोना चौधरी के नाम का ताला लगा रखा है कि देवराज चौहान और मोना चौधरी आकर ही, जथूरा को आजाद करा सकते हैं।"

"तो अब पोतेबाबा, उन दोनों को इस बात के लिए तैयार करेगा कि वो जथूरा को आजाद कराएं।”

"ये ही हो रहा होगा वहां।"
 
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