desiaks
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राजीव ने महक को फ़ोन किया और बोला: थैंक्स बेटी, तुमने बहुत साथ दिया। अब वो ज़रूर कुछ सोचेगी मेरी शादी को रोकने के लिए।
महक: अच्छा पापा मेरे को तो बताओ कि क्या आप सच में आप शादी करोगे ?
राजीव: अरे नहीं बेटी, इस उम्र में में कैसे शादी कर सकता हूँ। किसी लड़की की ज़िन्दगी नहीं खराब करूँगा।
महक: फिर ठीक है, ये आप मालिनी को पटाने के लिए कर रहे हो। है ना?
राजीव: बिलकुल बेटी यही सच है। अब तुम मेरे पास होती तो हम मज़े कर लेते। पर तुम तो जॉन से मज़े कर रही हूँ। यहाँ मैं अपना डंडा दबा दबा कर परेशान हो रहा हूँ। क्या बताऊँ तुम्हें कि ये मालिनी इतनी ग़दरा गयी है कि इसको देखकर ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है। साली की गाँड़ मस्त मोटी हो गयी है। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ क्या बताऊँ तुम्हें।
महक हँसती हुई बोली: बस बस पापा बस करिए। समझ में आ गया कि आपकी बहू मस्त माल हो गयी है। और अब बहुत जल्दी ही वो आपके आग़ोश में होगी। चलिए रखती हूँ। बाई ।
राजीव का लौड़ा महक से बात करते हुए खड़ा हो गया था। इसने उसको दबाया और लम्बी साँस ली और सोचा कि चलो कल देखते हैं क्या होता है।
शिवा घर आया तो उदास मालिनी को देखकर पूछा: क्या हुआ जान , उदास दिख रही हो ।
मालिनी: अरे कुछ नहीं, बस थोड़ी सुस्ती लग रही थी। चलो आप फ़्रेश हो मैं खाना लगती हूँ।
शिवा: अरे पहले तुम्हें तो खा लूँ फिर खाना खाऊँगा। यह कहते हुए उसने मालिनी को बिस्तर पर गिरा दिया और उसके ऊपर आकर उसके गाल और होंठ चूसने लगा।
मालिनी उसको धक्का दी और बोली: चलो अभी छोड़ो और खाना खाते हैं।
शिवा थोड़ा हैरानी से : क्या हुआ जान? सब ठीक है ना?
मालिनी: सब ठीक है, अभी मूड नहीं है।
शिवा उसे छोड़कर बिस्तर से उठा और बोला: अच्छा आज भी बात हुई पापा जी से पैसे के बारे में?
मालिनी झल्ला कर बोली: नहीं हुई और आप भी मत करना । कोई ज़रूरत नहीं है।
शिवा उसको पकड़कर बोला: बताओ ना क्या बात हुई है? तुम्हारा मूड इतना ख़राब मैंने कभी नहीं देखा।
मालिनी: कुछ नहीं हुआ है बस सर दर्द कर रहा है। इसलिए आराम करना चाहती हूँ।
फिर वह किचन में चली गयी। खाना लगाते हुए उसे अपने व्यवहार पर काफ़ी बुरा लगा और वह वापस अपने कमरे में आयी और शिवा से लिपट गयी और बोली: रात को कर लेना । मना नहीं करूँगी और ये कहते हुए उसने लोअर के ऊपर से उसका लौड़ा दबा दिया। शिवा भी मस्ती में आकर उसकी कमर सहलाने लगा। फिर उसका हाथ उसके चूतरों पर आ गया और उसकी साड़ी के ऊपर से उसकी पैंटी पर हाथ फिराकर बोला: जान, घर में पैंटी मत पहना करो। बाहर जाओ तो पहन लिया करो। ऐसे हाथ फिरा रहा हूँ तो पैंटी के कारण तुम्हारे चूतरों का मज़ा भी नहीं मिल पा रहा है।
मालिनी: आपका बस चले तो मुझे नंगी ही रखोगे क्या पता?
शिवा उसके चूतरों के ऊपर से पैंटी को टटोलते हुए बोला: देखो ये पैंटी मेरे हाथ को तुम्हारी मस्तानी गाँड़ को महसूस ही करने नहीं दे रहा है।
मालिनी हँसकर बोली: अच्छा नहीं पहनूँगी पैंटी बस । चलो अब खाना खा लो।
वो दोनों बाहर आए और शिवा ने राजीव को आवाज़ दी और सब खाना खाए। राजीव ने कुछ भी ऐसा शो नहीं किया जैसे कि कोई बात है। मालिनी सोचने लगी कि कितना बड़ा नाटककार है ये पापा जी , ऐसे बर्ताव कर रहे है जैसे कुछ हुआ ही नहीं। कल शादी करने के लिए लड़की देखने जा रहे हैं और बेटे को इसकी भनक भी नहीं लगने दे रहे हैं और मेरे पीछे भी पड़े हैं कि मैं अपनी जवानी इनको सौंप दूँ। उफफफफ क्या करूँ।
खाना खाते हुए बाप बेटा व्यापार की बातें करते रहे। फिर वो अपने अपने कमरे में चले गए।
रात को शिवा ने मालिनी की दो बार चुदाई की और फिर वो सो गए।
अगले दिन शिवा के जाने के बाद कमला किचन में आयी और मालिनी को बोली: बड़े साहब कहीं बाहर जा रहें हैं क्या?
मालिनी : क्यों क्या हुआ?
कमला: वो साहब सूटकेस पैक कर रहे हैं ना इसलिए पूछी।
मालिनी बहुत परेशान हो गयी । उफफफफ पापा जी को भी चैन नहीं है । लगता है आज जा रहें हैं लड़की देखने। वह सोची कि क्या करूँ कैसे रोकूँ उनको।
तभी राजीव ने चाय माँगी। मालिनी बोली: अभी लाती हूँ।
कमला अपना काम कर चली गयी। मालिनी चाय लेकर सोफ़े पर बैठे राजीव को दी।
राजीव चाय पीते हुए बोला: बहु आज मैं गाँव जा रहा हूँ। रात तक वापस आ जाऊँगा।
मालिनी: मैं शिवा को क्या बोलूँ?
राजीव: जो तुम्हें सही लगे बोल देना। वैसे भी उसे बताना तो होगा ही कि उसकी नयी माँ आने वाली है।
मालिनी रुआंसी होकर बोली: जानते हैं उनको कितना बुरा लगेगा। पता नहीं वो टूट ना जाए।
राजीव: मैं क्या कर सकता हूँ अगर तुम मेरी बात मान जाओ तो मुझे ये सब कुछ नहीं करना पड़ेगा।
मालिनी: पापा जी आप समझते क्यों नहीं कि मैं शिवा से आपके बेटे से बहुत प्यार करती हूँ और उनको धोका कैसे दे सकती हूँ।
राजीव: वही रट लगा रखी हो । कहा ना हम दोनों की बनकर रहो। पता नहीं क्यों तुम्हें समझ नहीं आ रहा है। तुम मुझे मजबूर कर रही हो कि मैं शादी करूँ और इस घर का बँटवारा करूँ।
मालिनी रोने लगी और बोली: पापा जी क्यों मेरी ज़िंदगी तबाह करने पर तुले हैं। मैं बरबाद हो जाऊँगी।
राजीव: रोने से इस समस्या का हल नहीं होगा बहु। तुमको फ़ैसला करना ही होगा।
यह कहकर वह उठा और अपने कमरे में चला गया। वह दरवाज़ा खुला छोड़कर अपना सूट्केस पैक करने लगा। मालिनी सोफ़े पर बैठी हुई राजीव को पैकिंग करते हुए देख रही थी और उसका कलेजा मुँह को आ रहा था । उसे लगा कि ये पापाजी सूट्केस नहीं बल्कि इस घर की ख़ुशियाँ पैक करके बाहर ले जा रहे हैं। तभी उसने फ़ैसला लिया कि ये नहीं हो सकता और वह ये नहीं होने देगी चाहे इसके लिए उसे कितना बड़ा भी त्याग ना करना पड़े।
वह उठी और राजीव के कमरे में पहुँची और बोली: ठीक है पापाजी मुझे आपकी शर्त मंज़ूर है , आप गाँव नहीं जाएँगे।
राजीव बहुत ख़ुश हो कर बोला: सच में बहु! अगर तुम मान गयी हो तो मुझे क्या ज़रूरत है जाने की।
यह कहकर वह आगे बढ़ा और मालिनी को अपनी बाहों में जकड़ लिया। मालिनी ने छूटने का कोई प्रयास नहीं किया और ना ही कोई उत्साह दिखाया। राजीव उसके गाल चूमा पर मालिनी को जैसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ा। वह बुत की तरह खड़ी रही।
राजीव थोड़ा परेशान होकर बोला: क्या हुआ बहु ? क्या बात है?
मालिनी: पापा जी , आपको मैं अपना शरीर दे दी हूँ। आप जो चाहे कर लीजिए मेरे साथ। पर मेरा दिल आपको अभी भी अपना नहीं मान रहा है। शिवा ने मेरे तन और मन दोनों जीता है। पर आपको मेरा सिर्फ़ तन ही मिलेगा, मन नहीं। उसने राजीव को देखते हुए कहा।
राजीव उसे छोड़ कर बोला: बहु , मैंने आजतक किसी भी लड़की से कभी भी ज़बरदस्ती नहीं की। मैंने कई लड़कियों से मज़ा लिया है पर कभी भी उनकी मर्ज़ी के बिना नहीं किया। और सुन लो तुमसे भी कोई ज़बरदस्ती नहीं करूँगा।
मालिनी: मैंने तो आपको अपना बदन सौंप ही दिया है जो करना है कर लीजिए मेरे साथ। ज़बरदस्ती का सवाल ही नहीं है। यह कहते हुए उसने अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया। उसकी ब्लाउस में भरी हुई बड़ी बड़ी छातियाँ राजीव के सामने थी। वो बोली: पापा जी, जो करना है कर लीजिए। आप साड़ी उतारेंगे या मैं ही उतार दूँ।
राजीव ने देखा कि उसका चेहरा बिलकुल ही भावहीन था। वह सकते में आ गया इस लड़की के व्यवहार से । वह चुपचाप खड़ा रहा , फिर वह पास आकर उसकी साड़ी का पल्लू उठाकर वापस उसके कंधे पर रखा। फिर बोला: बहु ,मुझे लाश से प्यार नहीं करना है। अब मैं भी पहले तुम्हारा मन जीतूँगा और फिर तन से मज़े लूँगा। बोलो मेरा चैलेंज स्वीकार है ?
मालिनी: मतलब आप मेरा पहले मन जीतेंगे और फिर मेरे साथ यह सब करेंगे?
राजीव: बिलकुल सही कहा तुमने।
मालिनी: फिर आप गाँव जाएँगे क्या?
राजीव: गाँव जा कर क्या करूँगा। अब तो तुमको जीतना है और तुम्हारा मन भी जीतना है। वो गाँव जाकर नहीं होगा बल्कि यहाँ रहकर ही होगा।
यह कहकर वो हँसने लगा। मालिनी को भी अजीब सी फ़ीलिंग हो रही थी। अब राजीव मालिनी के पास आकर उसको अपनी बाँह में लेकर उसके गाल को चूमा और बोला: बहुत जल्दी तुम्हारा मन भी जीतूँगा और ये भी । यह कहते हुए उसने साड़ी के ऊपर से उसकी बुर को दबा दिया और फिर उसको छोड़कर हँसते हुए कमरे से बाहर निकल गया। मालिनी उसकी इस हरकत से भौंचक्की रह गयी।
वह भी चुप चाप अपने कमरे में चली गयी । परिस्थितियाँ इतनी जल्दी से बदली थीं कि वह भी हैरान थी।
महक: अच्छा पापा मेरे को तो बताओ कि क्या आप सच में आप शादी करोगे ?
राजीव: अरे नहीं बेटी, इस उम्र में में कैसे शादी कर सकता हूँ। किसी लड़की की ज़िन्दगी नहीं खराब करूँगा।
महक: फिर ठीक है, ये आप मालिनी को पटाने के लिए कर रहे हो। है ना?
राजीव: बिलकुल बेटी यही सच है। अब तुम मेरे पास होती तो हम मज़े कर लेते। पर तुम तो जॉन से मज़े कर रही हूँ। यहाँ मैं अपना डंडा दबा दबा कर परेशान हो रहा हूँ। क्या बताऊँ तुम्हें कि ये मालिनी इतनी ग़दरा गयी है कि इसको देखकर ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है। साली की गाँड़ मस्त मोटी हो गयी है। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ क्या बताऊँ तुम्हें।
महक हँसती हुई बोली: बस बस पापा बस करिए। समझ में आ गया कि आपकी बहू मस्त माल हो गयी है। और अब बहुत जल्दी ही वो आपके आग़ोश में होगी। चलिए रखती हूँ। बाई ।
राजीव का लौड़ा महक से बात करते हुए खड़ा हो गया था। इसने उसको दबाया और लम्बी साँस ली और सोचा कि चलो कल देखते हैं क्या होता है।
शिवा घर आया तो उदास मालिनी को देखकर पूछा: क्या हुआ जान , उदास दिख रही हो ।
मालिनी: अरे कुछ नहीं, बस थोड़ी सुस्ती लग रही थी। चलो आप फ़्रेश हो मैं खाना लगती हूँ।
शिवा: अरे पहले तुम्हें तो खा लूँ फिर खाना खाऊँगा। यह कहते हुए उसने मालिनी को बिस्तर पर गिरा दिया और उसके ऊपर आकर उसके गाल और होंठ चूसने लगा।
मालिनी उसको धक्का दी और बोली: चलो अभी छोड़ो और खाना खाते हैं।
शिवा थोड़ा हैरानी से : क्या हुआ जान? सब ठीक है ना?
मालिनी: सब ठीक है, अभी मूड नहीं है।
शिवा उसे छोड़कर बिस्तर से उठा और बोला: अच्छा आज भी बात हुई पापा जी से पैसे के बारे में?
मालिनी झल्ला कर बोली: नहीं हुई और आप भी मत करना । कोई ज़रूरत नहीं है।
शिवा उसको पकड़कर बोला: बताओ ना क्या बात हुई है? तुम्हारा मूड इतना ख़राब मैंने कभी नहीं देखा।
मालिनी: कुछ नहीं हुआ है बस सर दर्द कर रहा है। इसलिए आराम करना चाहती हूँ।
फिर वह किचन में चली गयी। खाना लगाते हुए उसे अपने व्यवहार पर काफ़ी बुरा लगा और वह वापस अपने कमरे में आयी और शिवा से लिपट गयी और बोली: रात को कर लेना । मना नहीं करूँगी और ये कहते हुए उसने लोअर के ऊपर से उसका लौड़ा दबा दिया। शिवा भी मस्ती में आकर उसकी कमर सहलाने लगा। फिर उसका हाथ उसके चूतरों पर आ गया और उसकी साड़ी के ऊपर से उसकी पैंटी पर हाथ फिराकर बोला: जान, घर में पैंटी मत पहना करो। बाहर जाओ तो पहन लिया करो। ऐसे हाथ फिरा रहा हूँ तो पैंटी के कारण तुम्हारे चूतरों का मज़ा भी नहीं मिल पा रहा है।
मालिनी: आपका बस चले तो मुझे नंगी ही रखोगे क्या पता?
शिवा उसके चूतरों के ऊपर से पैंटी को टटोलते हुए बोला: देखो ये पैंटी मेरे हाथ को तुम्हारी मस्तानी गाँड़ को महसूस ही करने नहीं दे रहा है।
मालिनी हँसकर बोली: अच्छा नहीं पहनूँगी पैंटी बस । चलो अब खाना खा लो।
वो दोनों बाहर आए और शिवा ने राजीव को आवाज़ दी और सब खाना खाए। राजीव ने कुछ भी ऐसा शो नहीं किया जैसे कि कोई बात है। मालिनी सोचने लगी कि कितना बड़ा नाटककार है ये पापा जी , ऐसे बर्ताव कर रहे है जैसे कुछ हुआ ही नहीं। कल शादी करने के लिए लड़की देखने जा रहे हैं और बेटे को इसकी भनक भी नहीं लगने दे रहे हैं और मेरे पीछे भी पड़े हैं कि मैं अपनी जवानी इनको सौंप दूँ। उफफफफ क्या करूँ।
खाना खाते हुए बाप बेटा व्यापार की बातें करते रहे। फिर वो अपने अपने कमरे में चले गए।
रात को शिवा ने मालिनी की दो बार चुदाई की और फिर वो सो गए।
अगले दिन शिवा के जाने के बाद कमला किचन में आयी और मालिनी को बोली: बड़े साहब कहीं बाहर जा रहें हैं क्या?
मालिनी : क्यों क्या हुआ?
कमला: वो साहब सूटकेस पैक कर रहे हैं ना इसलिए पूछी।
मालिनी बहुत परेशान हो गयी । उफफफफ पापा जी को भी चैन नहीं है । लगता है आज जा रहें हैं लड़की देखने। वह सोची कि क्या करूँ कैसे रोकूँ उनको।
तभी राजीव ने चाय माँगी। मालिनी बोली: अभी लाती हूँ।
कमला अपना काम कर चली गयी। मालिनी चाय लेकर सोफ़े पर बैठे राजीव को दी।
राजीव चाय पीते हुए बोला: बहु आज मैं गाँव जा रहा हूँ। रात तक वापस आ जाऊँगा।
मालिनी: मैं शिवा को क्या बोलूँ?
राजीव: जो तुम्हें सही लगे बोल देना। वैसे भी उसे बताना तो होगा ही कि उसकी नयी माँ आने वाली है।
मालिनी रुआंसी होकर बोली: जानते हैं उनको कितना बुरा लगेगा। पता नहीं वो टूट ना जाए।
राजीव: मैं क्या कर सकता हूँ अगर तुम मेरी बात मान जाओ तो मुझे ये सब कुछ नहीं करना पड़ेगा।
मालिनी: पापा जी आप समझते क्यों नहीं कि मैं शिवा से आपके बेटे से बहुत प्यार करती हूँ और उनको धोका कैसे दे सकती हूँ।
राजीव: वही रट लगा रखी हो । कहा ना हम दोनों की बनकर रहो। पता नहीं क्यों तुम्हें समझ नहीं आ रहा है। तुम मुझे मजबूर कर रही हो कि मैं शादी करूँ और इस घर का बँटवारा करूँ।
मालिनी रोने लगी और बोली: पापा जी क्यों मेरी ज़िंदगी तबाह करने पर तुले हैं। मैं बरबाद हो जाऊँगी।
राजीव: रोने से इस समस्या का हल नहीं होगा बहु। तुमको फ़ैसला करना ही होगा।
यह कहकर वह उठा और अपने कमरे में चला गया। वह दरवाज़ा खुला छोड़कर अपना सूट्केस पैक करने लगा। मालिनी सोफ़े पर बैठी हुई राजीव को पैकिंग करते हुए देख रही थी और उसका कलेजा मुँह को आ रहा था । उसे लगा कि ये पापाजी सूट्केस नहीं बल्कि इस घर की ख़ुशियाँ पैक करके बाहर ले जा रहे हैं। तभी उसने फ़ैसला लिया कि ये नहीं हो सकता और वह ये नहीं होने देगी चाहे इसके लिए उसे कितना बड़ा भी त्याग ना करना पड़े।
वह उठी और राजीव के कमरे में पहुँची और बोली: ठीक है पापाजी मुझे आपकी शर्त मंज़ूर है , आप गाँव नहीं जाएँगे।
राजीव बहुत ख़ुश हो कर बोला: सच में बहु! अगर तुम मान गयी हो तो मुझे क्या ज़रूरत है जाने की।
यह कहकर वह आगे बढ़ा और मालिनी को अपनी बाहों में जकड़ लिया। मालिनी ने छूटने का कोई प्रयास नहीं किया और ना ही कोई उत्साह दिखाया। राजीव उसके गाल चूमा पर मालिनी को जैसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ा। वह बुत की तरह खड़ी रही।
राजीव थोड़ा परेशान होकर बोला: क्या हुआ बहु ? क्या बात है?
मालिनी: पापा जी , आपको मैं अपना शरीर दे दी हूँ। आप जो चाहे कर लीजिए मेरे साथ। पर मेरा दिल आपको अभी भी अपना नहीं मान रहा है। शिवा ने मेरे तन और मन दोनों जीता है। पर आपको मेरा सिर्फ़ तन ही मिलेगा, मन नहीं। उसने राजीव को देखते हुए कहा।
राजीव उसे छोड़ कर बोला: बहु , मैंने आजतक किसी भी लड़की से कभी भी ज़बरदस्ती नहीं की। मैंने कई लड़कियों से मज़ा लिया है पर कभी भी उनकी मर्ज़ी के बिना नहीं किया। और सुन लो तुमसे भी कोई ज़बरदस्ती नहीं करूँगा।
मालिनी: मैंने तो आपको अपना बदन सौंप ही दिया है जो करना है कर लीजिए मेरे साथ। ज़बरदस्ती का सवाल ही नहीं है। यह कहते हुए उसने अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया। उसकी ब्लाउस में भरी हुई बड़ी बड़ी छातियाँ राजीव के सामने थी। वो बोली: पापा जी, जो करना है कर लीजिए। आप साड़ी उतारेंगे या मैं ही उतार दूँ।
राजीव ने देखा कि उसका चेहरा बिलकुल ही भावहीन था। वह सकते में आ गया इस लड़की के व्यवहार से । वह चुपचाप खड़ा रहा , फिर वह पास आकर उसकी साड़ी का पल्लू उठाकर वापस उसके कंधे पर रखा। फिर बोला: बहु ,मुझे लाश से प्यार नहीं करना है। अब मैं भी पहले तुम्हारा मन जीतूँगा और फिर तन से मज़े लूँगा। बोलो मेरा चैलेंज स्वीकार है ?
मालिनी: मतलब आप मेरा पहले मन जीतेंगे और फिर मेरे साथ यह सब करेंगे?
राजीव: बिलकुल सही कहा तुमने।
मालिनी: फिर आप गाँव जाएँगे क्या?
राजीव: गाँव जा कर क्या करूँगा। अब तो तुमको जीतना है और तुम्हारा मन भी जीतना है। वो गाँव जाकर नहीं होगा बल्कि यहाँ रहकर ही होगा।
यह कहकर वो हँसने लगा। मालिनी को भी अजीब सी फ़ीलिंग हो रही थी। अब राजीव मालिनी के पास आकर उसको अपनी बाँह में लेकर उसके गाल को चूमा और बोला: बहुत जल्दी तुम्हारा मन भी जीतूँगा और ये भी । यह कहते हुए उसने साड़ी के ऊपर से उसकी बुर को दबा दिया और फिर उसको छोड़कर हँसते हुए कमरे से बाहर निकल गया। मालिनी उसकी इस हरकत से भौंचक्की रह गयी।
वह भी चुप चाप अपने कमरे में चली गयी । परिस्थितियाँ इतनी जल्दी से बदली थीं कि वह भी हैरान थी।