Adult Kahani कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास - Page 6 - SexBaba
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Adult Kahani कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास

जस्सी सुनीता को लेकर जैसे ही अपने कमरे में पहुँचती है, पीछे पीछे विमल और सोनी भी आ जाते हैं. जस्सी का तमतमाया हुआ चेहरा और सुनीता की आँखों में आँसू उनसे नही छुपाते.

विमल : क्या हुआ मासी आप रो क्यूँ रहे हो?

सोनी : और तुझे क्या हुआ है जस्सी, तेरा थोबडा क्यूँ गुस्से से लाल हो रहा है?.

जस्सी : कोई जस्सी वस्सी नही. मैं रिया हूँ रिया ही रहूंगी. खबरदार आज के बाद किसी ने मुझे जस्सी कह के बुलाया. ( पैर पटक कर वो बिस्तर पे बैठ जाती है)

विमल सुनीता के चेहरे को अपने हाथों में थाम लेता है और उसके माथे पे हल्का सा किस करता है. ‘क्या हुआ मासी बताओ ना? हमारे होते हुए आपकी आँखों में आँसू कैसे? अंकल और बच्चों की याद आ रही है क्या?’

सुनीता : कुछ नही बेटा, आँख में कुछ पड़ गया था. मैं अभी आती हूँ ( कह कर वो बाथरूम में घुस जाती है)

सोनी जस्सी के पास बैठ जाती है और विमल उसके सामने ज़मीन पर बैठ जाता है.
विमल ; क्या हुआ मेरी गुड़िया को?

जस्सी : कुछ नही भाई वो …. ( इससे पहले जस्सी कुछ बोलती सुनीता बाथरूम से आ जाती है और आँखों के इशारे से उसे मना कर देती है) वो – बस मूड ऑफ हो गया था. रास्ते में आज कुछ लड़के पीछे पड़ गये थे.

सुनीता : विमल मेरा बॅग तो ले के आना, तुम लोगो के लिए कुछ लाई हूँ.
विमल उठ के चला जाता है और सुनीता जस्सी और सोनी के साथ बीच में बैठ जाती है.

सुनीता : तुम लोगो से तो कुछ बात ही नही हो पायी. बताओ क्या क्या चल रहा है.
फिर दोनो बहने सुनीता को अपनी पढ़ाई वगेरा की बातें बताने लगती हैं.

सुनीता : वाह रे मज़ा आ गया. सोनी मेरे लिए भी तो कुछ अच्छी ड्रेस डिज़ाइन कर ना.

सोनी : नेकी और पूछ पूछ, कल ही आपको सारे डिज़ाइन दिखाती हूँ. आज तो आप थक गई होगी. आज आराम करो.

इतने मे विमल सुनीता का बॅग ले आता है.
सुनीता बॅग खोल कर दो एक एक पॅकेट सोनी और जस्सी को देती है. इससे पहले सुनीता कुछ बोल पाती दोनो ने पॅकेट खोल डाले और और अंदर की ड्रेस देख कर दोनो के चेहरे लाल पड़ गये. सुनीता उनके लिए डिज़ाइनर नाइट गाउन ले के आइी थी जो बहुत पारदर्शी था. विमल की नज़रे भी उन नाइट गाउन्स पे अटक जाती है और वो कल्पना करने लगता है, कैसी दिखेगी उसकी बहने वो ड्रेसस पहन कर और उसका लंड तुफ्फान मचाने लगता है.

सुनीता एक पॅकेट विमल को देती है.

विमल : मासी मैं बाद में ले लूँगा, अभी तो ज़रा खाने का इंतज़ाम देख लूँ. (कह कर विमल चला जाता है.)

विमल नीचे पहुँचता है तो माँ के कमरे से लड़ने की आवाज़ें आ रही थी. सॉफ पता चल रहा था कि रमेश और कामया के बीच झगड़ा हो रहा है.

विमल सोनी को एक मसेज भेजता है उसके सेल पे और खुद बाहर जा कर अपनी बाइक निकालता है और खाना लेने चला जाता है.

सोनी को जब विमल का मसेज आता है तो वो जस्सी को लेकर नीचे चली जाती है. दोनो ही हैरान थी, कि अब उनके माँ बाप में ऐसी क्या बात हो गई जो लड़ाई हो रही है. दोनो ही दरवाजा खटका कर माँ को आवाज़ देती हैं. अंदर एक दम ऐसी शांति हो जाती है कि सुई भी गिरे तो आवाज़ सुनाई दे.
 
कामया दरवाजा खोलती है तो उसके चेरे से सॉफ पता चल रहा था कि थोड़ी देर पहले एक ज्वालामुखी फटा है.

जस्सी : माँ भाई खाना ले के आ रहा है 10 मिनट में आ जाएगा. हम टेबल पे प्लेट्स लगा लेते हैं तब तक. आपको कुछ चाहिए तो नही.

कामया : नही बेटा कुछ नही चाहिए. तुम प्लेट्स लगाओ मैं अभी आती हूँ. मासी कहाँ है.

सोनी : मासी तो उपर आराम कर रही है.

कामया : हां आराम करने दे उसे. बहुत थक गई होगी. तुम चलो मैं आती हूँ. दोनो लड़कियाँ किचन की तरफ बढ़ जाती हैं.

कामया रमेश को गुस्से से देखती है और लड़कियों के पीछे चली जाती है.

रमेश का मूड ऑफ हो चुका था. वो बाहर आता है और ज़ोर से बोलता है , 'मैं किसी काम से जा रहा हूँ देर हो जाएगी. मेरी वेट मत करना.' कह कर वो घर से चला जाता है.

विमल खाना ले के घर आता है तो पता चलता है डॅड गुस्से में घर से चले गये हैं और देर से आएँगे.

विमल कामया से पूछता है.
विमल : माँ क्या बात हुई, आपका झगड़ा क्यूँ हुआ डॅड से.
कामया : कुछ नही बेटा बस ऐसे ही कुछ ग़लत फहमी हो गई थी.

जस्सी : ग़लतफहमी या कुछ और, डॅड क्या कर रहे थे मासी के साथ.

कामया : जस्सी !

जस्सी : मैं बच्ची नही हूँ माँ. सब जानती हूँ और अपनी आँखों से देखा है. तभी मासी रो रही थी.

विमल : अरे कोई मुझे भी कुछ बताएगा, हुआ क्या?

कामया : कुछ नही हुआ. तुम लोग खाना खा लो. मैं सुनीता को खाना दे के आती हूँ.

विमल खाने की टेबल पे बैठ जाता है.

विमल : जस्सी बता ना क्या हुआ.

जस्सी : कुछ नही भाई, भूल जा.
विमल : ना बता, पता तो कर के रहूँगा. तू बताएगी तो ठीक. नही तो सीधा कल मासी से पूछूँगा.
सोनी : तू मासी से कोई बात नही करेगा. समझा! अभी चुप चाप खाना खा.

विमल : माँ को तो आने दे.

सोनी : पता है ना, जब तक डॅड नही आएँगे माँ नही खाएगी. अब बहस मत कर.

विमल : मैं डॅड को फोन करता हूँ.
जस्सी : रहने दे ना. गुस्सा ठंडा होगा तो आ जाएँगे.

विमल : ये हो क्या रहा है आज इस घर में.

सोनी : तू खाना खा ना.

विमल अपना मोबाइल निकाल कर रमेश को फोन करता है.

विमल : डॅड कहाँ हो, खाना ठंडा हो रहा है. जल्दी घर आओ.

रमेश उधर से : तुम खाना खा लो बेटा, मुझे थोड़ी देर हो जाएगी.

विमल : डॅड आप आ रहे हो, या लेने आउ. और ज़यादा मत पीना. आपकी आवाज़ बता रही है काफ़ी ले चुके हो.

विमल : अच्छा बाबा आता हूँ.

विमल : डॅड आ रहे हैं. रुक जाओ. सब साथ में खाएँगे.
जस्सी टेबल से उठ के चली जाती है.

विमल : अब इससे क्या हुआ.

सोनी : मैं लाती हूँ उसे. ( और उठ कर जस्सी के पीछे चली जाती है)
 
विमल टेबल पे परेशान बैठा सोच रहा था कि हुआ क्या है. क्यूँ मोम और डॅड के बीच झगड़ा हुआ?. जस्सी क्यूँ इतना खुंदक में है? वो बैठा बैठा सोच ही रहा था कि सोनी नीचे आ कर खाने की एक प्लेट उपर ले जाती है और थोड़ी देर में नीचे आ जाती है.

विमल : अब ये खाना किस के लिए उपर ले गई थी.
सोनी : जस्सी के लिए वो मासी के साथ उपर ही खा रही है.

विमल : यार हुआ क्या है?
सोनी : चुप कर अभी रात को बात करेंगे.

इतने मे रमेश भी घर आ जाता है, उसने काफ़ी पी रखी थी, कदम लड़खड़ा रहे थे. विमल उसे सहारा दे कर टेबल की तरफ ले के चलता है पर रमेश सीधा अपने कमरे में जाता है और बिस्तर पे गिर पड़ता है.

रमेश ने कभी इतनी नही पी थी जितनी उसने आज पी ली थी. सोनी उपर जा कर कामया को नीचे लाती है तो अंदर रमेश के पास चली जाती है.

सोनी : भाई फटाफट खा और हम भी अपने कमरे में चलते हैं. मोम डॅड को खिला देंगी और खुद भी खा लेगी.परसों के लिए पॅकिंग भी करनी है.

विमल कुछ नही बोलता. फटाफट अपना खाना ख़तम करता है और सोनी को एक नज़र अच्छी तरह देख कर उपर अपने कमरे में चला जाता है.

सोनी सारे बर्तन संभालती है. एक नज़र माँ के कमरे में डालती है. हल्की हल्की आवाज़ें आ रही थी. अब कोई झगड़ा नही हो रहा था. सोनी डोर नॉक करती है अंदर से कामया की आवाज़ आती है.
'कौन?'
'माँ मैं, कुछ चाहिए तो नही, किचन सब संभाल दी है मैने.'
'कुछ नही बेटा जा के सोजा और एक बार चेक कर लेना मासी के रूम में पानी है या नही'
'ओके गुड नाइट मोम, गुड नाइट डॅड.' बोल कर सोनी उपर जाती है. सीडीयों पर ही विमल उसका इंतेज़ार कर रहा था.

विमल उसका हाथ पकड़ता है तो सोनी छुड़ा लेती है. और धीमी आवाज़ में बोलती है. 'कमरे में जा मैं आ रही हूँ. एक बार मासी और जस्सी को चेक कर लूँ.'
आज घर में सब लोग जाग रहे थे.

जस्सी की आँखों के सामने वो सीन घूम रहा था, कैसे उसका बाप ज़बरदस्ती अपनी साली को माँ के सामने ही चूम रहा था. अपने बाप का ये रूप उससे बर्दाश्त नही हो रहा था.

रमेश जाग रहा था, आज बरसों के बाद सुनीता उसके सामने आई थी और वो खुद को रोक नही पा रहा था. रमेश ने शादी के बाद ही सुनीता को देखा था, तबसे वो उसका दीवाना बन चुका था. अगर शादी से पहले वो सुनीता को देख लेता तो उससे ही शादी करता. ऐसा नही था कि वो कामया से प्यार नही करता था पर सुनीता उसकी रग रग में समाई हुई थी. आज वो खुद को रोक नही पाया था और सुनीता को देखते ही उसपे टूट पड़ा था, ये भी भूल गया था कि अब बच्चे बड़े हो चुके हैं. अब जस्सी के सामने वो नीचे गिर चुका था और उसे खुद से भी नफ़रत हो रही थी, काश उसने खुद पे कंट्रोल रखा होता. शराब तो इसलिए पी कि बच्चों को लगे वो नशे में है और रात को इस टॉपिक पे कोई बात ना हो. सुबह देखा जाएगा क्या महॉल बनता है.

कहानी जारी रहेगी..................................
 
कामया जाग रही थी कि जो आग बरसों पहले भुज गई थी वो फिर शोलों का रूप ना लेले. इस आग को सुनीता ने ही भुजाया था अपने पति को मजबूर कर के कि वो गुल्फ में नौकरी करे.

सुनीता जाग रही थी और सोच रही थी कि उसकी दबी हुई ममता कहीं भड़क ना जाए. वो राज जो इतनो सालों से दबा हुआ है कहीं बाहर ना आजाए. वो नही चाहती थी कि उसे फिर वापस भारत आना पड़े पर गुल्फ में हालत ही कुछ ऐसे हो गये थे कि रमण ने उसे मजबूर कर दिया वापस आने के लिए. अब वो भारत में ही रहना चाहता था और बच्चों को भी भारत में रखना चाहता था ताकि वो अपनी मिट्टी की खुसबु सूंघ सकें और उसका आदर करना सीख सकें.

सुनीता के दिमाग़ में उसके बच्चे ऋतु और रवि नही थे बस विमल ही घूम रहा था. कितना बड़ा हो गया है वो , कितना हॅंडसम लगता है. उसे एरपोर्ट का मिलन याद आ जाता है.कैसे विमल का लंड उसकी चूत पे दस्तक दे रहा था. सोच सोच कर सुनीता की चूत गीली होने लगती है. और वो तकिये को अपनी जाँघो में दबा कर सोने की कोशिश करती है. वो रमेश को अपने से दूर रखना चाहती थी. वो अच्छी तरह जानती थी, कि एक बार रमेश फिर उसके करीब आ गया तो सारा घर टूट जाएगा, सब बिखर जाएगा और पाँचों बच्चों की जिंदगी तहस नहस हो जाएगी.

वो अपनी बहन कामया से बहुत प्यार करती है और उसकी जिंदगी में काँटे नही डालना चाहती थी. इसलिए वो खुद को रमेश से दूर रख रही थी.

तीन लोग और भी जाग रहे थे रमण जो पॅकिंग में लगा हुआ था.

ऋतु जो दरवाजे के पीछे छुप कर अपने भाई रवि को देख रही थी . रवि उसकी फोटो हाथ में पकड़ के मूठ मार रहा था और बार बार उसकी फोटो को चूम रहा था. ऋतु की चूत भी गीली हो जाती है रवि का तमतमाया हुआ मोटा लंबा लंड उसकी आँखों के सामने था. वो हाँफती हुई अपने कमरे में चली जाती है और अपनी चूत पे अत्याचार करने लगती है. ऋतु रवि से छोटी है और अपने भाई को बहुत प्यार करती है. आज पहली बार उसने अपने भाई का लंड देखा और मूठ मारते हुए उसे देखा था. रवि के हाथ में उसकी फोटो थी, इसका मतलब सॉफ था कि वो उसे चोदना चाहता है. पर आज तक रवि ने कभी भी ऋतु को इस बात का अहसास नही होने दिया था.

इधर....................................
विमल जाग रहा था उसे सोनी का इंतेज़ार था, उसकी प्यारी बहन जिसकी वजह से उसके लंड को सकुन मिलना शुरू हुआ था. कभी सोनी उसकी नज़रों के सामने होती, तो कभी कामया का चुदता हुआ नग्न रूप उसके दिमाग़ को फाड़ने लगता और कभी सुनीता मासी के भारी बूब्स और छोड़ी गान्ड उसके सामने घूमने लगती, और इस सबका असर उसके लंड पे हो रहा था जो अपने पूरे रूप में आ कर उसके पाजामा को फाड़ने के लिए व्याकुल हो रहा था.

सोनी सुनीता के कमरे में पानी रख कर जस्सी के पास जाती है, वो अभी तक जाग रही थी.

सोनी :क्या हुआ यार अभी तक सोई नही. क्या बात हुई थी, बता मुझे, आज तू इतने गुस्से में क्यूँ आ गई थी.

जस्सी : डॅड ऐसे निकलेंगे मैने सोचा नही था.

सोनी : क्या किया डॅड ने.

जस्सी : वो मासी को ज़बरदस्ती चूम रहे थे.

सोनी : तू क्यूँ बड़ों के बीच आती है. जीजा साली में इतना तो चलता ही है.

जस्सी : पर ज़बरदस्ती तो ठीक नही होती ना.

सोनी : तो क्या मासी खुद मोम के सामने डॅड से बोलती आओ मुझे चुमो. ऐसा ही होता है. इस बात पे ज़यादा तूल मत दे. धीरे धीरे सब समझ जाएगी तू. अभी अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पे ही ध्यान दे, इन बातों को अगर देख भी ले तो अनदेखा कर दिया कर. चल सोजा अब. कल पॅकिंग करनी है.

जस्सी को सुला कर सोनी धड़कते दिल से विमल के कमरे की तरफ बढ़ती है. विमल जैसे ही उसे देखता है वो लपक कर उसे अपनी बाँहों में भर लेता है और इस से पहले सोनी कुछ बोलती विमल के होंठ उसके होंठों से चिपक जाते हैं.
 
अहह सोनी की सिसकी निकल पड़ती है जो विमल के होंठों में ही दब के रह जाती है.
सोनी, खुद को छुड़ाती है विमल से, ‘नही विमल आज नही कोई भी आ सकता है, सब जाग रहे हैं’

विमल : क्या यार मुझे नींद कहाँ आएगी तेरे बिना.

सोनी : थोड़ा सब्र रखना भी सीख भाई, इतना उतावलापन अच्छा नही होता.

विमल उसे फिर अपनी बाँहों में खींच लेता है.

‘जो आदत तूने लगा दी है अब सब्र नही होता’ और फिर सोनी के होंठ चूमता है.

सोनी : आह मत कर ना, प्लीज़ आज रुक जा

मैं जा रही हूँ अपने कमरे में और सोनी फटाफट विमल के कमरे से निकल जाती है. उसके होंठों पे मुस्कान थी, विमल को यूँ तड़प्ता हुआ देख उसे मज़ा आ रहा था. अपने कमरे में जाती है, पर दरवाजा अंदर से बंद नही करती और बाथरूम में घुस जाती है.

विमल तड़प उठता है जब सोनी भाग कर कमरे से चली जाती है. कितनी ही देर वो कमरे में इधर से उधर घूमता ही रहता है. पर जब और रहा नही जाता तो वो सोनी के कमरे की तरफ बढ़ जाता है. जैसे ही दरवाजे पे हाथ लगाता है , वो खुल जाता है, यानी सोनी सिर्फ़ उसे तडपा रही थी. कमरे में घुस कर वो अंदर से दरवाजा बंद कर लेता है

इधर..............................
सुनीता की आँखों से नींद कोसो दूर थी. कहते हैं कि कोई भी लड़की ना पहला प्यार भूल सकती है और ना ही वो पहला लंड जो उसकी चूत में घुसा हो, पर यहाँ तो बात उससे भी आगे बढ़ गई थी.
जब किसी को उसकी ममता से दूर कर दिया गया हो तो उसके दिल की हालत आप सोच सकते हो, और वर्षों से सुनीता भी खून के आँसू पीती रही सिर्फ़ कामया के लिए.
बिस्तर पे करवटें बदलते बदलते सुनीता अपने अतीत की गहराइयों में पहुँच जाती है, जिसे सिर्फ़ चन्द लोग ही जानते थे, वो खुद, कामया, रमेश और उसके माता पिता जो अब इस दुनिया में नही रहे.

कामया की शादी को तीन साल हो चुके थे, पर कोई बच्चा नही हो रहा था. डेढ़ साल तो रमेश और कामया ने इस बात को कोई महत्व नही दिया पर जैसे ही दो साल पूरे हुए, चिंता के बादल लहराने लगे क्यूंकी कामया की माँ बार बार अपने पोते की फरमाइश कर रही थी.

रमेश के घर में सिर्फ़ उसका छोटा भाई ही रह गया था तो कामया को रमेश के घर से कोई ताने देनेवाला नही था. पर कामया खुद भी तो माँ बनना चाहती थी.

रमेश और कामया दोनो ही ने बहुत से डॉक्टर्स को अप्रोच किया. दोनो ही बिल्कुल ठीक थे. ना रमेश में कोई कमी थी और ना ही कामया में. पर फिर भी कामया माँ नही बन पा रही थी. डॉक्टर्स ने सिर्फ़ इतना कहा कि कामया को साइकोलॉजिकल प्राब्लम है जो वक़्त के साथ ठीक हो जाएगी.

कामया बहुत उदास रहने लगी और उसका दिल बहलाने के लिए सुनीता होली के दिनो में उसके पास आ गई.

होली के दिन की सुबह रमेश फुल मस्ती में था उसने बहुत हुड़दंग बाज़ी की, अभी कामया और सुनीता उठे नही थे कि रमेश ने दोनो को रंगवाले पानी से नहला दिया. दोनो ही हड़बड़ा के उठी और रमेश ' होली है ! होली है!' चिल्लाने लगा. दोनो की नाइटी बुरी तरह गीली हो गई थी और दोनो के ही कामुक स्तन अपनी झलक दिखाने लगे.

'ये भी कोई तरीका है होली खेलने का, बाहर जाइए आप' कामया चिल्लाई पर रमेश कुछ और ही मूड में था उसने लपक कर कामया को अपनी बाजुओं पे उठा लिया और कमरे से बाहर निकल पड़ा. घर के पीछे उसने एक बहुत बड़ा टब तैयार कर रखा था जो रंग भरे पानी से लबालब भरा हुआ था. रमेश कामया को उसी टब में गिरा देता है. छपाक ! चारों तरफ पानी के छींटे फैलते हैं और रमेश खुद भी उस टब में घुस जाता है. कामया चिल्लाती हुई खड़े होने के कोशिश कर रही थी, कि वो तब से बाहर निकल सके, पर रमेश फिर उसे पकड़ लेता है और उसके होंठों पे अपने होंठ चिपका देता है.
 
कमरे के बाहर खड़ी सुनीता ये सारा मंज़र देख रही थी. रमेश जब कामया को चूमने लगा तो जवान सुनीता की उमंगे भी साथ साथ भड़की. काफ़ी देर तो कामया छटपटाई फिर क्यूंकी उसे भी मज़ा आने लगा था तो उसने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया और रमेश का साथ देने लगी.

सुनीता से और ना देखा गया, वो वापस कमरे में घुस गई और बाथरूम में जा कर उसने गीली नाइटी उतार कर, ना जाने क्या सोचा और बिना ब्रा और पैंटी के सलवार सूट पहन लिया. फिर वो किचन में घुस गई, चाइ बनाने के लिए.

और बाहर रमेश के हाथ कामया के सारे जिस्म पे घूम रहे थे और अभी तक दोनो के होंठ जुड़े हुए थे.

सुनीता किचन से चिल्लाती है ' चाइ तैयार हो गई'

रमेश कामया के होंठ छोड़ कर बोलता है " साली साहिबा, बाहर यहीं ले आओ"

सुनीता चाइ बाहर ले आती है और कामया पे जब उसकी नज़र पड़ती है तो अपनी नज़रें झुका लेती है. कामया की नाइटी उसके बदन से चिपकी हुई उसकी कमर तक उठी हुई थी और उसकी पैंटी सॉफ झलक रही थी.

सुनीता चाइ वहाँ बाहर टेबल पे रख देती है और मूड के किचन की तरफ जाने लगती है.

रमेश उसे आवाज़ लगाता है ' साली साहिबा कहाँ चली, यहीं हमारे साथ बैठो.'

सुनीता के बढ़ते कदम रुक जाते हैं ' अपनी चाइ ले के आ रही हूँ' कह कर वो किचन में चली जाती है और थोड़ी देर वहीं खड़ी रहती है. इस उम्मीद में की कामया अपनी नाइटी ठीक कर लेगी.

सुनीता जब बाहर आती है तो कामया को उसी हालत में पाती है. रमेश और कामया दोनो ही कुर्सी पे बैठ कर चाइ पी रहे थे. सुनीता उनकी बगल में बैठ कर चाइ पीने लगती है और आँखों ही आँखों से कामया को इशारा करती है नाइटी ठीक करने के लिए. पहले तो कामया कुछ समझती नही और जब सुनीता उसे बार बार इशारा करती है तो कामया अपनी हालत देखती है. लाज के मारे उसके गाल टमाटर से भी ज़्यादा लाल सुर्ख हो जाते हैं और वो झेन्पते हुए अपनी नाइटी ठीक करती है. रमेश के होंठों पे शरारती मुस्कान तैर जाती है.

जैसे ही चाइ ख़तम होती है रमेश उठता है और हाथों में गुलाल ले कर सुनीता के पीछे आ कर उसे दबोच लेता है और उसके चेहरे और जिस्म को अच्छी तरह से रगड़ते हुए गुलाल लगाने लगता है. कामया भी पीछे नही रहती वो भी सुनीता पे टूट पड़ती है और सुनीता चिल्लाती रह जाती है.

सुनीता भी रंग में आ जाती है और उन दोनो को गुलाल लगाने लगती है. रमेश उसे गुलाल लगाते हुए उसके बूब्स भी अच्छी तरह मसल रहा था और सुनीता अपनी सिसकियों का गला घोट्ती जा रही थी. फिर रमेश उसे भी उठा कर टब में डाल देता है .

'छपाक ' की आवाज़ होती है . सुनीता टब में गोते लगाती है और रमेश और कामया दोनो ही होली है होली है के नारे लगाते हैं.
इनकी धिन्गा मस्ती एक घंटा और चलती है फिर कामया रोक लगा देती है. आज रमेश होली खेलने अपने दोस्तो के पास नही गया था तो कोई भी टपक सकता था.

कामया और सुनीता दोनो ही कपड़े बदलती हैं पर नहाती नही, क्यूंकी गली मोहल्ले से कोई भी आ सकता था.

रमेश के दोस्त भी आए अपनी अपनी बीवियों के साथ और सबने एक दूसरे को बड़ी शालीनता से गुलाल लगाया.

दोपहर तक पूरा घर तहस नहस हो चुका था. हर तरफ कोई ना कोई रंग बिखरा हुआ था.

कामया और सुनीता नहा कर किचन में लग जाती हैं. आज लंच के लिए रमेश चिकन और मटन लेके आया हुआ था.
 
कामया उसके लिए चिकन टिक्का तैयार करती है, क्यूंकी उसे मालूम था रमेश आज ड्रिंक ज़रूर करेगा. रमेश साल में 6-7 बार से ज़यादा नही पीता था इसलिए कामया भी ऐतराज नही करती थी.

स्नॅक्स जब तैयार हो जाता है तो कामया टेबल पे सर्व करती है. रमेश , दोनो बहनो को साथ में बैठने के लिए कहता है और उनके लिए भी ड्रिंक बनाता है. सुनीता पहले मना करती है, पर कामया के ज़ोर देने पर मान जाती है.

ड्रिंक के दौर चलते हैं और तीनो सरूर में आने लगते हैं. सुनीता को ज़यादा चढ़ रही थी, क्यूंकी वो पहली बार पी रही थी.

रमेश हल्का म्यूज़िक लगाता है और कामया के साथ डॅन्स करने लगता है. काफ़ी देर तक दोनो डॅन्स करते हैं , फिर रमेश सुनीता को भी डॅन्स के लिए खींच लेता है. कामया थक कर बैठ जाती है और अपनी ड्रिंक की चुस्कियाँ लेती रहती है. रमेश डॅन्स करते वक़्त सुनीता को अपने जिस्म से चिपका लेता है और सुनीता अपना सर उसके कंधे पे रख देती है.

डॅन्स करते करते, रमेश को और मस्ती चढ़ती है और वो सुनीता के होंठो पे अपने होंठ रख देता है.

पहली बार किसी आदमी ने उसके होंठों को अपने होंठों से छुआ था. सुनीता घबरा जाती है, पर नशा और होंठों से उठती हुई तरंगे उसे अपने बस में कर लेती है और वो भी अपने होंठ रमेश के होंठों के साथ चिपकाए डॅन्स करती रहती है. पता नही कामया ने दोनो को क्यूँ नही रोका. शायद उसे भी कुछ ज़्यादा नशा चढ़ गया था और ग़लत सही की पहचान ख़तम हो गई थी. या जीजा साली की इतनी छेड़ छाड़ को वो बुरा नही मानती थी.

रमेश सुनीता के होंठों को चूसने लगा तो सुनीता को अपनी जाँघो के बीच कुछ होता हुआ महसूस होने लगा और वो रमेश से और भी चिपकती चली गई.

थोड़ी देर बाद रमेश सुनीता को छोड़ देता है. सुनीता की आँखें लाल हो चुकी थी और जिस्म में आग भड़क चुकी थी. उसे रमेश का अलग होना अच्छा नही लगा.

रमेश अपने लिए एक और ड्रिंक बनाता है और एक साँस में गटक जाता है.
फिर वो कामया को डॅन्स के लिए खींच लेता है और इस बार दोनो का डॅन्स बहुत कामुक हो जाता है, जिसका गहरा असर सुनीता पे पड़ने लगता है.

नशे में इंसान अपनी सुध बुध खो देता है और यही हो रहा था. डॅन्स करते करते कामया के कपड़े उतरने लगते हैं , दोनो को ध्यान ही नही रहता कि सुनीता उन्हें लाइव शो देते हुए देख रही है. रमेश कामया के निपल को मुँह में ले कर चूसने लगता है और कामया की सिसकियाँ निकलने लगती हैं. सुनीता चाह कर भी उन पर से नज़रें नही हटा पाती और उसकी टाँगें काँपने लगती हैं वो वहीं सोफे पे ढेर हो जाती है और कामया को रमेश की पॅंट उतारते हुए देखने लगती है.

रमेश की पॅंट और अंडरवेर दोनो उसका साथ छोड़ देते हैं और उसका 7-8 इंच लंबा तना हुआ मोटा लंड आज़ाद हो कर फुफ्कारने लगता है. कामया उसके लंड को अपने हाथ में पकड़ सहलाने लगती है और रमेश एक एक कर उसके निपल को चूस्ता है, काटता है और दोनो स्तनो पर रमेश की उंगलियों के निशान छपने लगते हैं.

सुनीता आँखें फाडे सब कुछ होता हुआ देख रही थी, उसका गला सूख जाता है और उसका एक हाथ अपने स्तन को दबाने लगता है और दूसरा उसकी चूत को सहलाने लगता है.

कामया वहीं नीचे कार्पेट पे लेट जाती है और रमेश को अपने उपर खींच लेती है. दो जिस्म एक दूसरे में समाने के लिए तड़प रहे थे. कामया अपनी टाँगे फैला देती है और रमेश उसकी टाँगों के बीच बैठ कर अपना लंड उसकी चूत पे घिसने लगता है. सुनीता की आँखें जैसे उबल पड़ी थी .

कामया : चोद डालो मुझे, आज मुझे माँ बना दो. डालो ना क्यूँ देर कर रहे हो. अहह
 
रमेश कामया की चूत में अपना लंड घुसा देता है और दोनो की कमर एक दूसरे से टकराने लगती है.

सुनीता का गला बिल्कुल सूख चुका था. वो टेबल पे पड़ी विस्की की बॉटल उठाती है और नीट ही 3-4 घूँट लगा लेती है. उसका सीना तेज़ी से जलने लगता है, पर जो आँच उसके जिस्म में उठ चुकी थी उसके सामने ये जलन कुछ नही थी.

रमेश के धक्के ज़ोर पकड़ने लगते हैं और सुनीता अपने जिस्म की माँग के हाथों मजबूर हो जाती है. वो अपने कपड़े उतार फेंक ती है और जा कर रमेश की पीठ से चिपक जाती है.

रमेश को जब उसका अहसास होता है तो वो उसे अपने सामने खींच लेता है और उसके होंठ चूस्ते हुए कामया को ज़ोर ज़ोर से चोदने लगता है.

कामया इतनी देर में दो बार झाड़ चुकी थी, और सुनीता के पास आने पर रमेश में और जान आ जाती है.

कामया का जिस्म इतना आनंद पा कर ढीला पड़ जाता है, उसकी आँखें बंद हो जाती हैं और रमेश अपना लंड कामया की चूत से बाहर निकाल कल सुनीता को अपनी गोद में उठा कर सोफे पे लिटा देता है.

सुनीता के उन्नत गुलाबी स्तन उसे पागल कर देते हैं और वो उन पर टूट पड़ता है. सुनीता की सिसकियाँ ज़ोर ज़ोर से निकलने लगती हैं और वो रमेश के सर को अपने स्तनो पे दबा देती है.

सुनीता का हाथ खुद ब खुद रमेश के लंड पे चला जाता है जो उसकी बहन के चूत रस से पूरी तरह गीला था और चमक रहा था.

सुनीता जैसे ही रमेश के लंड को पकड़ती है रमेश के जिस्म में आग के शोले भड़कने लगते हैं.
 
रमेश सुनीता की टाँगों के बीच में आ कर उन्हें अपने कंधों पे रखता है और अपने लंड को सीनुता की चूत से रगड़ने लगता है.


एक कुँवारी लड़की के नंगे जिस्म पर एक मर्द के हाथ जब घूमने लगते हैं तो उसका जिस्म सितार वादन की तरह सभी सुरू के तार छेड़ देता है, यही हाल सुनीता का हो रहा था.

अचानक रमेश को ख़याल आता है कि सुनीता कुँवारी है और सोफे पे जो पोज़िशन बनी हुई थी, वो किसी कुंवारे की सील तोड़ने के लिए ठीक नही थी. रमेश वापस हटना चाहता था पर बहुत देर हो चुकी थी.

रमेश सुनीता को उठा कर नीचे कार्पेट पे कामया के पास ही लिटा देता है. सुनीता शर्म के मारे अपनी आँखें बंद कर लेती है.

कामया तो अपनी आँखें बंद करे किसी और दुनिया में पहुँच चुकी थी. उसे कुछ आभास ही नही था कि उसके करीब क्या हो रहा है जीजा साली में.

रमेश फिर पोज़िशन में आता है. कुछ पल पहले सुनीता के स्तन चूस्ता है उसके जिस्म की आग को और भड़काता है और फिर उसकी कमर को थाम कर अपने लंड का ज़ोर उसकी चूत पे लगा देता है.

आआआआआआआआऐययईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई सुनीता चीख पड़ती है और उसकी कमसिन छोटी चूत में रमेश के लंड का सुपाडा घुस जाता है.
सुनीता की आँखों से आँसू निकलने लगते हैं और उसका जिस्म छटपटाने लगता है.

रमेश थोड़ी देर रुका और फिर एक बहुत ही ज़ोर का झटका लगा दिया. उसका लंड सुनीता की चूत को चीरता हुआ जड़ तक घुस गया. सुनीता ऐसे चिल्लाई जैसे कसाई ने छुरा उसकी चूत में घोंप दिया हो.

उसकी चीख इतनी ज़ोर की निकली कि कामया हड़बड़ाती हुई उठ गई और जो मंज़र उसके सामने था उसने उसका सारा नशा काफूर कर दिया.

वो आँखें फाडे सुनीता की चूत में घुसे रमेश के लंड को देख रही थी और सुनीता की चूत से बहते हुए खून को.

सुनीता अब दर्द सह चुकी थी, उसका कुँवारापन ख़तम हो गया था. अब अगर कामया रमेश को रोकती भी तो बहुत देर हो चुकी थी, कामया को समझ में नही आ रहा था कि क्या करे और उसके सामने रमेश के धक्के सुनीता की चूत में लगने लगे और थोड़ी देर में सुनीता भी मज़े से अपनी गान्ड उपर उछालने लगी.

दोनो की चुदाई देख कर जहाँ कामया को एक तरफ गुस्सा चढ़ रहा था वहीं खुद उसका जिस्म गरम होने लगा और उसकी चूत कुलबुलाने लगी.

सुनीता की टाइट चूत के घर्षण को रमेश सह ना सका और जल्दी ही उसकी चूत में झाड़ गया पर उससे पहले सुनीता दो बार ओर्गसम का सुख पा चुकी थी.

रमेश ने अपना लंड अच्छी तरह सुनीता की चूत में खाली कर दिया और फिर उसकी बगल में गिर कर हान्फते हुए अपनी साँसे संभालने लगा.

सुनीता की आँखें बंद हो चुकी थी वो मज़े की दुनिया में पहुँच गई थी.

और कामया का जिस्म तपने लगा था, वो फटाफट बाथरूम गई एक गीला कपड़ा ला कर पहले उसने रमेश के लंड को सॉफ किया फिर सुनीता की जाँघो को. और उसके बाद वो रमेश के लंड को चूसने लगी उसे तैयार करने के लिए, क्यूंकी अब उसे अपनी चूत में उठती हुई खुजली को मिटाना था.

थोड़ी देर में रमेश का लंड फिर खड़ा हो गया और कामया की भयंकर चुदाई शुरू हो गई.

उस दिन रमेश ने दोनो को अगले दिन सुबह तक 3-3 बार चोदा था.

वक़्त गुजरा और सुनीता के प्रेग्नेंट होने की खबर आ गई. कामया तब तक प्रेग्नेंट नही हुई थी. कामया ने सुनीता का अबॉर्षन नही होने दिया और उसे ले कर दूसरे शहर चली गई. जब वापस आई तो कामया की गोद में हस्ता खेलता तंदुरुस्त लड़का था जो आज विमल बन चुका था.

ये राज सिर्फ़ तीन लोग जानते थे रमेश, सुनीता और कामया. सुनीता के पति को भी इसका नही मालूम था. और कामया ने रमेश को दुबारा सुनीता के पास फटकने नही दिया.
 
सुनीता की शादी हो गई, पर वो अंदर ही अंदर घुलती रहती विमल के लिए, उसकी अंतरात्मा उसे गालियाँ देती अपने बेटे को खुद से दूर करने के लिए.

विमल के आने के बाद कामया खुश रहने लगी और भगवान की दया से अगले कुछ सालों में वो दो लड़कियों की माँ बन गई.

विमल के बचपन के सुख को ना भोगने के कारण सुनीता की ममता अधूरी ही रह गई. उसकी छाती विमल के होंठों के सुख को तरसती रहती है.

सोचते सोचते पता नही कब सुनीता की आँख लग गई.
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विमल की नज़र जैसे ही बिस्तर पे पड़ती है उसका लंड फुफ्कारने लगता है. सोनी बिस्तर पे गुलाबी नेट वाली ब्रा और पैंटी में ही लेटी हुई थी. विमल को देखते ही उसके होंठों पे कातिलाना मुस्कान आ जाती है.


विमल फटाफट अपने कपड़े उतारता है और अंडरवेर में सोनी के पास जा के लेट जाता है.

सोनी दूसरी तरफ करवट ले लेती है. विमल उसे अपनी तरफ करने की कोशिश करता है पर वो नही होती और होंठों में अपनी हँसी दबा के रखती है.

विमल कुछ पल और कोशिश करता है फिर अचानक वो सोनी की ब्रा के हुक खोल देता है.
सोनी अपनी ब्रा को संभालते हुए उठ जाती है.

'विमल जा यहाँ से, आज ख़तरा है पकड़े जाएँगे. कोई भी नही सो रहा आज. प्लीज़ जा'

'बस थोड़ी देर, फिर चला जाउन्गा'

'थोड़ी देर में क्या होगा. एक बार शुरू हो गये तो ना तू रुकेगा ना मैं रुक पाउन्गि. प्लीज़ जा एक दो दिन बाद देखेंगे जब महॉल थोड़ा ठंडा हो जाएगा'

'प्लीज़ मेरी रानी, बस थोड़ी देर, मान जा ना'

तभी बाहर किसी के चलने की आवाज़ होती है और दोनो को साँप सूंघ जाता है. सोनी फटाफट अपनी ब्रा ठीक करती है और पास पड़ी एक नाइटी पहन लेती है. विमल भी खटाखट अपने कपड़े पहनता है. विमल बाहर झाँकता हुआ निकलता है और जैसे ही अपने कमरे की तरफ जाने लगता है साथ वाले कमरे से ज़ोर की आवाज़ें आने लगती हैं जैसे लड़ाई हो रही हो. विमल के कदम रुक जाते हैं और वो उस कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ता है. विमल बाहर से नॉक करता है

'मासी क्या हुआ कुछ प्राब्लम है क्या? मैं अंदर आ जाउ?'

अंदर एक दम शांति छा जाती है.

'विमल रुक मैं आ रही हूँ' सुनीता कमरे से बाहर आ जाती है.

'क्या हुआ मासी?'

'कुछ नही बेटा, नींद नही आ रही थी. चल तेरे कमरे में चलते हैं. कुछ देर बाते करते हैं.'

विमल हैरानी से सुनीता की तरफ देखता है और कमरे में जाने की कोशिश करता है.
सुनीता फट उसकी बाँह पकड़ लेती है और खींचते हुए ' चल ना'

विमल खिंचा चला जाता है . दोनो कमरे में घुस जाते हैं और सुनीता पलट कर दरवाजा अंदर से बंद कर लेती है.

विमल भोचका सा खड़ा रहता है और सुनीता दरवाजा बंद करते ही उस से लिपट जाती है और उसके चेहरे को बोसो से भर देती है और साथ साथ बोलती रहती है ' विमू मुझे माफ़ कर दे बेटा, बहुत साल दूर रही तुझसे'

विमल की हैरानी बढ़ती रहती है और सुनीता के चुंबन ख़तम ही नही होते, उसकी आँखों से आँसू बहते रहते हैं.
 
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