hotaks444
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किचन में पहुँच कर वो ऋतु को उतारता है और उसे प्लेट्स ले कर टेबल पे आने के लिए कहकर अपने रूम में जाता है और वोड्का की एक बॉटल अपनी अलमारी से निकाल कर टेबल पे आ कर नंगा ही बैठ जाता है, और अपने लिए ड्रिंक बनाने लगता है.
ऋतु का दिमाग़ रवि के बारे में ही सोच रहा था, कैसा होगा वो, खाना खाया होगा या नही?
और जिस्म यहाँ नंगा किचन में खड़ा था, एक जंग छिड़ी हुई थी दिमाग़ और जिस्म में, जब रमण ने अपने कपड़े उतारे तो वो समझ गई थी, कि थोड़ी देर में चुदाई का समारोह फिर शुरू होगा, हालाँकि उसकी चूत थोड़ा सूज गई थी, फिर भी वो लार टपकाने लगी थी.
अपनी रिस्ति हुई चूत के साथ वो प्लेट्स उठा कर टेबल पे जाती है और खाना सर्व करती है.
रमण उसे अपनी गोद में बिठा लेता है और जैसे ही रमण के लंड का अहसास उसे अपनी चूत पे महसूस होता है दिमाग़ हार जाता है और जिस्म की प्यास की जीत हो जाती है.
रमण खाने के साथ साथ से थोड़ी पिलाता भी रहता है और उसने अपना एक हाथ उसके उरोज़ पे ही रखा हुआ था. रमण का लंड उसकी जांघों के बीच ठुमकीयाँ लगा रहा था और ऋतु भी अपनी गान्ड हिला हिला कर उसे अपनी जांघों के बीच रगड़ रही थी, कभी अपनी जांघें खोलती और कभी सख्ती से दबा लेती.
रमण उसके उरोज़ को हल्के हल्के सहला रहा था. ऋतु के निपल सख़्त होने लगे और उसकी चूत से बहता हुआ रस रमण के लंड को गीला करने लगा.
दोनो खाना ख़तम करते हैं और रमण वहीं टेबल पे बैठे बैठे वोड्का का दौर चालू रखता है.
ऋतु पे वोड्का का असर होने लगता है और उसके अंदर छुपी रंडी बाहर आने लगती है.
ऋतु अपना चेहरा मोड़ कर रमण के होंठों को अपने होंठों में जाकड़ लेती है और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगती है रमण भी अपना हाथों का कसाव उसके उरोज़ पे बढ़ा देता है और ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगता है.
तभी ऋतु का मोबाइल बजता है. ऋतु रमण की गोद से उठ कर अपने रूम में भागती है, जहाँ उसका मोबाइल बज रहा था. कॉल रवि की थी.
ऋतु कॉल रिसीव करते ही : कहाँ है तू, जल्दी घर आ .
ऋतु की साँस फूली हुई थी, और रवि को समझते देर ना लगी कि वो क्या कर रही होगी.
रवि : बस मेरे जाते ही पापा की गोद में चली गई.
ऋतु : रवि वो … वो…
रवि : खैर तेरी मर्ज़ी, अब मैं कभी वापस नही आउन्गा, और पापा को बोल देना, मैं इंडिया वापस नही जा रहा. मम्मी को मैं फोन कर के बता दूँगा.
रवि फोन काट देता है. ऋतु उसका फोन ट्राइ करती है, पर रवि ने फोन स्विच ऑफ कर दिया था. ऋतु को तेज झटका लगता है.
वो अपने कमरे का दरवाजा बंद कर बिस्तर पे गिर पड़ती है और रोने लगती है. उसने जो सोचा था, सब उल्टा हो गया.
थोड़ी देर बाद रमण उसे दरवाजा खोलने के लिए बोलता है, पर वो नही खोलती और उसे कह देती है, उसका मूड ऑफ हो गया है वो जा कर अपने कमरे में सो जाए.
रमण बहुत कोशिश करता है कि वो दरवाजा खोल दे, पर वो नही खोलती, हार कर रमण अपने कमरे में चला जाता है.
वो सोने की कोशिश करता है, पर नींद उसकी आँखों से गायब थी, उसे बस ऋतु का जवान नंगा बढ़न ही दिखता रहता है
ऋतु बिस्तर पे लेटी हुई रवि के बारे में सोच रही थी, आख़िर रवि को हुआ क्या है. वो उसे अपनी पत्नी तो नही बना सकता, समाज क्या सोचेगा, और अगर वो उसके साथ अपने पिता से भी प्यार करती है तो इसमे ग़लत क्या है. रवि को भी तो मोका मिलेगा माँ से प्यार करने का. क्या रवि अपना प्यार बाँट नही सकता? एक छोटी सा परवार ही तो है, दो मर्द और दो औरतें, क्या चारों आपस में प्यार नही कर सकते. आज नही तो कल वो समझ ही जाएगा, फिर बुरा नही मानेगा. इतना भी नही सोचा उसने कि मैने उसे अपनी सील तोड़ने दी थी, क्यूँ नही समझता वो मेरे दिल की बात. मुझे दो लंड मिलेंगे तो उसे भी दो चूत मिलेंगी. और बाहर का कोई नही है, सब अपने ही तो हैं जिनसे हम बहुत प्यार करते हैं.बस इस प्यार को थोड़ा और बढ़ा रहे हैं. कैसे समझाऊ उसे?
रवि के बारे में सोचते सोचते,उसका हाथ अपनी चूत पे चला जाता है, अफ कितनी बुरी तरहा से चूस रहा था, मेरा मूत तक निकाल दिया, और अब नाराज़ होके चला गया है, अब मुझे लंड चाहिए, क्या करूँ, खुद चला गया, तो मुझे पापा के पास ही तो जाना पड़ेगा, बेवकूफ़ कहीं का, यहाँ होता तो अभी मुझे चोद रहा होता.
ऋतु के जिस्म में उत्तेजना फैलने लगती है. लड़की जब ताज़ा चुदि हो, तो उसके अंदर लंड का आकर्षण बढ़ जाता है, उसकी चूत बार बार खुजलाने लगती है,जिसे सिर्फ़ एक तगड़ा लंड ही मिटा सकता है.
ऋतु खुद को रोक नही पाती और उठ कर कमरे का दरवाजा खोल देती है.
एक पल सोचती है फिर रमण के कमरे की तरफ बढ़ जाती है.
रमण नंगा ही बिस्तर पे लेटा हुआ था और करवटें बदल रहा था. उसकी हालत देख ऋतु के चेहरे पे मुस्कान आ जाती है.
कमरे के अंदर जाने की जगह वो दरवाजे पे खटका करती है और रमण की नज़र उसपे पड़ जाती है, वो रमण की तरफ कातिलाना मुस्कान के साथ देखती है और अपने कमरे की तरफ बढ़ जाती है. ऋतु चाहती थी कि रमण उसके पीछे आए और ये ना लगे कि वो रमण के बिस्तर पे गई थी, शायद इस तरहा वो रमण को ये दिखाना चाहती थी कि रमण को उसकी ज़्यादा ज़रूरत है. रमण फटाफट एक वाइन की बॉटल थाम कर 3-4 घूँट भरता है और ऋतु के कमरे की तरफ बढ़ जाता है, बॉटल उसके हाथ में ही थी, और उसका लंड जो मुरझाने के समीप था उसमे फिर जान आ जाती है.
रमण ऋतु के कमरे में घुसता है तो देखता है कि वो पेट के बल लेटी हुई है.
रमण उसके पास जा कर बैठ जाता है और उसकी पीठ पे हाथ फेरने लगता है. ऋतु की सिसकी निकल जाती है जैसे ही उसे रमण के हाथ का अहसास अपनी नंगे बदन पे होता है.
रमण उसकी पीठ पे उपर से नीचे हाथ फेरता है और फिर उसके कंधों को चूमने लगता है. ऋतु हल्की हल्की सिसकियाँ लेती रहती है.
रमण फिर उसकी पीठ पे थोड़ी वाइन गिरा देता है और उसे चाटने लगता है, रमण की हरकतों से ऋतु के जिस्म में तरंगें लहराने लगती हैं और वो लेटी ही नागिन की तरहा बल खाने लगती है. उसे बहुत मज़ा आ रहा था.
रमण उसकी पीठ चाट्ता है नीचे कमर पे आता है और फिर थोड़ी वाइन गिरा कर से चाटता है.
‘हाई क्या कर रहे हो उफफफफफफफफ्फ़’
रमण कोई जवाब नही देता और चाट्ता हुआ उसकी गान्ड तक पहुँच जाता है.
इसके बाद जो रमण करता है वो ऋतु के जिस्म को उछलने पे मजबूर कर देता है और उसकी सिसकियाँ तेज हो जाती है.
रमण उसकी गान्ड फैलाकर उसके छेद पे वाइन गिराता है और ज़ोर ज़ोर से उसकी गान्ड के छेद को चाटने और चूसने लगता है.
ओह म्म्म्म मममाआआआअ उूुुुउउइईईईईईईईईईई
रमण तुला हुआ था ऋतु की गान्ड को चूसने में और उसकी गान्ड का छेद उत्तेजना के मारे खुल और बंद होने लगा. रमण उसकी गान्ड के छेद में अपनी जीब घुसा देता है.
आआआआआआऐययईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई
ऋतु मस्ती में चीखती है, रमण उसकी गान्ड में अपनी जीब कभी डाल रहा था कभी निकल रहा था और कभी चाट रहा था, कभी चूस रहा था.
ऋतु का दिमाग़ रवि के बारे में ही सोच रहा था, कैसा होगा वो, खाना खाया होगा या नही?
और जिस्म यहाँ नंगा किचन में खड़ा था, एक जंग छिड़ी हुई थी दिमाग़ और जिस्म में, जब रमण ने अपने कपड़े उतारे तो वो समझ गई थी, कि थोड़ी देर में चुदाई का समारोह फिर शुरू होगा, हालाँकि उसकी चूत थोड़ा सूज गई थी, फिर भी वो लार टपकाने लगी थी.
अपनी रिस्ति हुई चूत के साथ वो प्लेट्स उठा कर टेबल पे जाती है और खाना सर्व करती है.
रमण उसे अपनी गोद में बिठा लेता है और जैसे ही रमण के लंड का अहसास उसे अपनी चूत पे महसूस होता है दिमाग़ हार जाता है और जिस्म की प्यास की जीत हो जाती है.
रमण खाने के साथ साथ से थोड़ी पिलाता भी रहता है और उसने अपना एक हाथ उसके उरोज़ पे ही रखा हुआ था. रमण का लंड उसकी जांघों के बीच ठुमकीयाँ लगा रहा था और ऋतु भी अपनी गान्ड हिला हिला कर उसे अपनी जांघों के बीच रगड़ रही थी, कभी अपनी जांघें खोलती और कभी सख्ती से दबा लेती.
रमण उसके उरोज़ को हल्के हल्के सहला रहा था. ऋतु के निपल सख़्त होने लगे और उसकी चूत से बहता हुआ रस रमण के लंड को गीला करने लगा.
दोनो खाना ख़तम करते हैं और रमण वहीं टेबल पे बैठे बैठे वोड्का का दौर चालू रखता है.
ऋतु पे वोड्का का असर होने लगता है और उसके अंदर छुपी रंडी बाहर आने लगती है.
ऋतु अपना चेहरा मोड़ कर रमण के होंठों को अपने होंठों में जाकड़ लेती है और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगती है रमण भी अपना हाथों का कसाव उसके उरोज़ पे बढ़ा देता है और ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगता है.
तभी ऋतु का मोबाइल बजता है. ऋतु रमण की गोद से उठ कर अपने रूम में भागती है, जहाँ उसका मोबाइल बज रहा था. कॉल रवि की थी.
ऋतु कॉल रिसीव करते ही : कहाँ है तू, जल्दी घर आ .
ऋतु की साँस फूली हुई थी, और रवि को समझते देर ना लगी कि वो क्या कर रही होगी.
रवि : बस मेरे जाते ही पापा की गोद में चली गई.
ऋतु : रवि वो … वो…
रवि : खैर तेरी मर्ज़ी, अब मैं कभी वापस नही आउन्गा, और पापा को बोल देना, मैं इंडिया वापस नही जा रहा. मम्मी को मैं फोन कर के बता दूँगा.
रवि फोन काट देता है. ऋतु उसका फोन ट्राइ करती है, पर रवि ने फोन स्विच ऑफ कर दिया था. ऋतु को तेज झटका लगता है.
वो अपने कमरे का दरवाजा बंद कर बिस्तर पे गिर पड़ती है और रोने लगती है. उसने जो सोचा था, सब उल्टा हो गया.
थोड़ी देर बाद रमण उसे दरवाजा खोलने के लिए बोलता है, पर वो नही खोलती और उसे कह देती है, उसका मूड ऑफ हो गया है वो जा कर अपने कमरे में सो जाए.
रमण बहुत कोशिश करता है कि वो दरवाजा खोल दे, पर वो नही खोलती, हार कर रमण अपने कमरे में चला जाता है.
वो सोने की कोशिश करता है, पर नींद उसकी आँखों से गायब थी, उसे बस ऋतु का जवान नंगा बढ़न ही दिखता रहता है
ऋतु बिस्तर पे लेटी हुई रवि के बारे में सोच रही थी, आख़िर रवि को हुआ क्या है. वो उसे अपनी पत्नी तो नही बना सकता, समाज क्या सोचेगा, और अगर वो उसके साथ अपने पिता से भी प्यार करती है तो इसमे ग़लत क्या है. रवि को भी तो मोका मिलेगा माँ से प्यार करने का. क्या रवि अपना प्यार बाँट नही सकता? एक छोटी सा परवार ही तो है, दो मर्द और दो औरतें, क्या चारों आपस में प्यार नही कर सकते. आज नही तो कल वो समझ ही जाएगा, फिर बुरा नही मानेगा. इतना भी नही सोचा उसने कि मैने उसे अपनी सील तोड़ने दी थी, क्यूँ नही समझता वो मेरे दिल की बात. मुझे दो लंड मिलेंगे तो उसे भी दो चूत मिलेंगी. और बाहर का कोई नही है, सब अपने ही तो हैं जिनसे हम बहुत प्यार करते हैं.बस इस प्यार को थोड़ा और बढ़ा रहे हैं. कैसे समझाऊ उसे?
रवि के बारे में सोचते सोचते,उसका हाथ अपनी चूत पे चला जाता है, अफ कितनी बुरी तरहा से चूस रहा था, मेरा मूत तक निकाल दिया, और अब नाराज़ होके चला गया है, अब मुझे लंड चाहिए, क्या करूँ, खुद चला गया, तो मुझे पापा के पास ही तो जाना पड़ेगा, बेवकूफ़ कहीं का, यहाँ होता तो अभी मुझे चोद रहा होता.
ऋतु के जिस्म में उत्तेजना फैलने लगती है. लड़की जब ताज़ा चुदि हो, तो उसके अंदर लंड का आकर्षण बढ़ जाता है, उसकी चूत बार बार खुजलाने लगती है,जिसे सिर्फ़ एक तगड़ा लंड ही मिटा सकता है.
ऋतु खुद को रोक नही पाती और उठ कर कमरे का दरवाजा खोल देती है.
एक पल सोचती है फिर रमण के कमरे की तरफ बढ़ जाती है.
रमण नंगा ही बिस्तर पे लेटा हुआ था और करवटें बदल रहा था. उसकी हालत देख ऋतु के चेहरे पे मुस्कान आ जाती है.
कमरे के अंदर जाने की जगह वो दरवाजे पे खटका करती है और रमण की नज़र उसपे पड़ जाती है, वो रमण की तरफ कातिलाना मुस्कान के साथ देखती है और अपने कमरे की तरफ बढ़ जाती है. ऋतु चाहती थी कि रमण उसके पीछे आए और ये ना लगे कि वो रमण के बिस्तर पे गई थी, शायद इस तरहा वो रमण को ये दिखाना चाहती थी कि रमण को उसकी ज़्यादा ज़रूरत है. रमण फटाफट एक वाइन की बॉटल थाम कर 3-4 घूँट भरता है और ऋतु के कमरे की तरफ बढ़ जाता है, बॉटल उसके हाथ में ही थी, और उसका लंड जो मुरझाने के समीप था उसमे फिर जान आ जाती है.
रमण ऋतु के कमरे में घुसता है तो देखता है कि वो पेट के बल लेटी हुई है.
रमण उसके पास जा कर बैठ जाता है और उसकी पीठ पे हाथ फेरने लगता है. ऋतु की सिसकी निकल जाती है जैसे ही उसे रमण के हाथ का अहसास अपनी नंगे बदन पे होता है.
रमण उसकी पीठ पे उपर से नीचे हाथ फेरता है और फिर उसके कंधों को चूमने लगता है. ऋतु हल्की हल्की सिसकियाँ लेती रहती है.
रमण फिर उसकी पीठ पे थोड़ी वाइन गिरा देता है और उसे चाटने लगता है, रमण की हरकतों से ऋतु के जिस्म में तरंगें लहराने लगती हैं और वो लेटी ही नागिन की तरहा बल खाने लगती है. उसे बहुत मज़ा आ रहा था.
रमण उसकी पीठ चाट्ता है नीचे कमर पे आता है और फिर थोड़ी वाइन गिरा कर से चाटता है.
‘हाई क्या कर रहे हो उफफफफफफफफ्फ़’
रमण कोई जवाब नही देता और चाट्ता हुआ उसकी गान्ड तक पहुँच जाता है.
इसके बाद जो रमण करता है वो ऋतु के जिस्म को उछलने पे मजबूर कर देता है और उसकी सिसकियाँ तेज हो जाती है.
रमण उसकी गान्ड फैलाकर उसके छेद पे वाइन गिराता है और ज़ोर ज़ोर से उसकी गान्ड के छेद को चाटने और चूसने लगता है.
ओह म्म्म्म मममाआआआअ उूुुुउउइईईईईईईईईईई
रमण तुला हुआ था ऋतु की गान्ड को चूसने में और उसकी गान्ड का छेद उत्तेजना के मारे खुल और बंद होने लगा. रमण उसकी गान्ड के छेद में अपनी जीब घुसा देता है.
आआआआआआऐययईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई
ऋतु मस्ती में चीखती है, रमण उसकी गान्ड में अपनी जीब कभी डाल रहा था कभी निकल रहा था और कभी चाट रहा था, कभी चूस रहा था.