hotaks444
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"मैं चाहूंगी, क्यों नहीं चाहूंगी ?"
"कब चाहोगी ?"
"जब आपके साथ अग्नि के गिर्द सात फेरे ले चुकी होऊंगी।"
"लानत ! लानत !"
वह हंसी ।
"अब यह तो बको कि फोन क्यों किया ?"
"इसलिए किया क्योंकि यहां ऑफिस में आपके फोन पर फोन आ रहे हैं।"
"किसके ?"
"आपकी फैन क्लब के और किसके ? उन्हीं बहनजियों के जिन्हें आपसे कुछ खास तरह की उम्मीदें हैं और जिनसे
आपको कुछ खास तरह की उम्मीदें हैं।"
"मसलन ?"
"मसलन एक तो कोई मिस जूही चावला आपसे बात करने को मरी जा रही थीं । दूसरी बहन जी मरी तो नहीं जा रही थीं लेकिन बात करने की ख्वाहिशमंद काफी थीं।"
"दूसरी कौन ?"
"दूसरी ने नाम नहीं बताया था लेकिन अपना फोन नंबर दिया है।"
"नंबर बोलो।"
उसने मुझे एक फोन नंबर बताया जो कि मैंने नोट कर लिया। "और ?" - मैं बोला।
"और बस । अब सिर्फ इतना और बता दीजिए कि आज आपके ऑफिस में दर्शन होंगे ?"
"ऑफिस में बैठूगा तो तुम्हारी तनखाह कैसे कमाकर लाऊंगा ?"
"यानी कि नहीं होंगे ?"
"कैसी कमबख्त औरत हो ? अपनी तनखाह की फिक्र है, मेरी दाल-रोटी की फिक्र नहीं ।”
"आपका काम कहीं चलता है दाल-रोटी से ! चलता है तो फिर मेरी तनखाह ही हम दोनों के लिए काफी है।"
“एक नंबर की कमबख्त औरत हो।"
"आपने यह बात कल भी कही थी और कल भी मैंने इसमें दो संशोधन किए थे। मैं एक नंबर की नहीं हूं और मैं
औरत नहीं हूं।"
"तुम जरूर आदमी हो, तभी तो..."
उसने लाइन काट दी। मैंने डायरैक्ट्री में जूही चावला का नंबर तलाश किया और उस पर फोन किया। वह लाइन पर आई तो मैंने उसे अपना परिचय दिया। "मैंने तुम्हारे ऑफिस में फोन किया था ।" - वह बोली।
“मुझे मालूम हुआ है। तभी तो मैं फोन कर रहा हूं । फरमाइए, क्या खिदमत है है मेरे लिए ?"
"मैं तुमसे मिलना चाहती हूं।"
“किस सिलसिले में ?"
। "मिस्टर अमर चावला की मौत के सिलसिले में । मुझे मालूम हुआ है कि चावला साहब की मौत के वक्त तुम
उनकी पत्नी के साथ घटनास्थल पर थे।"
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"कब चाहोगी ?"
"जब आपके साथ अग्नि के गिर्द सात फेरे ले चुकी होऊंगी।"
"लानत ! लानत !"
वह हंसी ।
"अब यह तो बको कि फोन क्यों किया ?"
"इसलिए किया क्योंकि यहां ऑफिस में आपके फोन पर फोन आ रहे हैं।"
"किसके ?"
"आपकी फैन क्लब के और किसके ? उन्हीं बहनजियों के जिन्हें आपसे कुछ खास तरह की उम्मीदें हैं और जिनसे
आपको कुछ खास तरह की उम्मीदें हैं।"
"मसलन ?"
"मसलन एक तो कोई मिस जूही चावला आपसे बात करने को मरी जा रही थीं । दूसरी बहन जी मरी तो नहीं जा रही थीं लेकिन बात करने की ख्वाहिशमंद काफी थीं।"
"दूसरी कौन ?"
"दूसरी ने नाम नहीं बताया था लेकिन अपना फोन नंबर दिया है।"
"नंबर बोलो।"
उसने मुझे एक फोन नंबर बताया जो कि मैंने नोट कर लिया। "और ?" - मैं बोला।
"और बस । अब सिर्फ इतना और बता दीजिए कि आज आपके ऑफिस में दर्शन होंगे ?"
"ऑफिस में बैठूगा तो तुम्हारी तनखाह कैसे कमाकर लाऊंगा ?"
"यानी कि नहीं होंगे ?"
"कैसी कमबख्त औरत हो ? अपनी तनखाह की फिक्र है, मेरी दाल-रोटी की फिक्र नहीं ।”
"आपका काम कहीं चलता है दाल-रोटी से ! चलता है तो फिर मेरी तनखाह ही हम दोनों के लिए काफी है।"
“एक नंबर की कमबख्त औरत हो।"
"आपने यह बात कल भी कही थी और कल भी मैंने इसमें दो संशोधन किए थे। मैं एक नंबर की नहीं हूं और मैं
औरत नहीं हूं।"
"तुम जरूर आदमी हो, तभी तो..."
उसने लाइन काट दी। मैंने डायरैक्ट्री में जूही चावला का नंबर तलाश किया और उस पर फोन किया। वह लाइन पर आई तो मैंने उसे अपना परिचय दिया। "मैंने तुम्हारे ऑफिस में फोन किया था ।" - वह बोली।
“मुझे मालूम हुआ है। तभी तो मैं फोन कर रहा हूं । फरमाइए, क्या खिदमत है है मेरे लिए ?"
"मैं तुमसे मिलना चाहती हूं।"
“किस सिलसिले में ?"
। "मिस्टर अमर चावला की मौत के सिलसिले में । मुझे मालूम हुआ है कि चावला साहब की मौत के वक्त तुम
उनकी पत्नी के साथ घटनास्थल पर थे।"
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