hotaks444
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हमारे साथ ही एक हरफन मौला टाइप लड़का था लंबा सा लेकिन पतला, सभी प्रकार के नशे की लत थी उसे. उसको जब मेरे ध्यान के बारे में पता लगा तो वो मुझे चेलेंज करने लगा कि आप भांग-गांजे के नशे में भी ध्यान लगा सकें तब हम जानें कि आपका ध्यान पक्का है.
वैसे तो मुझे किसी से कोई फ़र्क नही पड़ने वाला था कि कोई मेरे बारे में क्या सोचता है, पर कुछ बातें समय के हिसाब से या जो होना होता है..
मैने उसका चॅलेंज आक्सेप्ट कर लिया और उन चीज़ों का सेवन शुरू कर दिया, धीरे-2 मुझे नशे की आदत पड़ने लगी, लेकिन उससे मेरे ध्यान में कोई अंतर नही आया, उल्टा और गहरा होने लगा.
लेकिन एक ग़लत लत लग चुकी थी जो अब आदत बनती जा रही थी. पर इतना ज़रूर सुनिश्चित रखा कि वो चीज़ें प्राकृतिक ही हों.
ध्यान और ब्रह्मचर्य से मेरी ज्ञानइंद्रियों की क्षमता बढ़ती जा रही थी, ऐसा मुझे महसूस होने लगा,
जब भी मे थोड़ा विचलित होता किसी भी कारण से तो मध्य रात्रि के बाद त्राटक ध्यान में बैठ जाता और मेरा आत्मबल लौटने लगता जिससे सारी मन की चंचलता मिट जाती और वैचैनि दूर हो जाती.
एक दिन मन किया कि चलो कुछ मनोरंजन कर लिया जाए, वैसे तो मेरा घर शहर की भीड़ भाड़ से दूर बाहरी इलाक़े में था, लेकिन कोई कार्यवश ही शहर जाना होता था,
एक अच्छी परिवारिक मूवी लगी थी तो देखने का विचार हो गया, शायद एक या दो ही हॉल थे उस समय उस शहर में.
मैं चॉक में जो सिनिमा हॉल था उसमें थी वो मूवी, मे टिकेट लेकर टाय्लेट की तरफ जा रहा था, तभी मेरे कानों में कुछ ऐसी आवाज़ें सुनाई दी जो असम्बेदन्शील थी,
अब ये चाहो तो ज्ञानइंद्रियों की शक्ति बढ़ गयी हो या कुछ अनहोनी से बचाने का नियती का प्रायोजन कह लो,...
मे उन आवाज़ों की तरफ गया तो चार व्यक्ति टाय्लेट के पीछे की साइड में खड़े बातें कर रहे थे.
मुझे सच में ये अचंभा हुआ कि कोई व्यक्ति इतनी दूर की आवाज़ें इतनी सुगमता से कैसे सुन सकता है..? लेकिन मैने सुन ली थी.
वो चारों कुछ बॉम्ब ब्लास्ट करने के बारे में बातें कर रहे थे.
उनकी बातें सुन कर मेरे तिर्पन काँप गये, कहीं ये इसी हॉल को उड़ाने की बात तो नही कर रहे..? हे ईश्वर अगर ऐसा हो गया तो पता नही कितनी जानें जाएँगी.
मैने बाहर आकर इधर-उधर नज़र दौड़ाई इस आशा में कि शायद कोई पोलीस वाला दिखाई दे जाए तो उससे इनफॉर्म कर दूं. लेकिन दुर्भगयवस कोई नही दिखा.
अब करूँ तो क्या करूँ..? सच पुछो तो बॉम्ब का नाम ही इतना घातक है कि सुनते ही रूह फ़ना हो जाए. मरता क्या ना करता वाली बात.. खुद ही कूदने का फ़ैसला ले लिया और उन लोगों की तरफ चल दिया.
जैसे ही उधर पहुँचा…! ये क्या..? ये साले नर्पिशाच कहाँ गायब हो गये.. ? अब क्या करूँ..?
मे किन्कर्तव्य विमुड सा वहीं खड़ा रह गया...! फिर कुछ सोच कर कि यहाँ खड़े रहने से कुछ नही होगा मुझे कुछ तो करना होगा..?
मे मुड़कर हॉल के एंट्रेन्स की तरफ बढ़ा दूसरे लोग एंटर होना शुरू हो गये थे पहले वाला शो छूटने के बाद.
अब मेरी बैचैनि बढ़ने लगी थी, अंदर जाउ या नही जाउ, समस्या ये थी कि अगर ये बात में किसी ऐरे-गैरे हॉल के कर्मचारी को बताता हूँ, उसने मेरी बात का भरोसा किया नही किया..?
और ये भी कह सकता है कि में जानबूझकर किसी के कहने से हॉल को बदनाम करने या पब्लिसिटी स्टंट कर रहा हूँ तो खम्खा समय बर्बाद होगा और करने वाले अपना काम करके निकल चुके होंगे.. !
यही सब उधेड़बुन में मे खड़ा था कि तभी मेरी नज़र उनमें से दो लोगों पर पड़ी, वो हाथ में एक छोटा सा हॅंड बॅग लिए हॉल में एंटर कर रहे थे.
मे फ़ौरन उनकी ओर लपका, लेकिन जब तक में उन तक पहुँच पता वो अंदर घुस चुके थे.
उनपर नज़र बनाए हुए में भी अंदर बढ़ता चला गया. हॉल में रोशनी मामूली थी, लेकिन मेरी आँखें सॉफ-सॉफ उन्हें देखने में सक्षम थी.
वो मैं गॅलरी में ही थे कि मे लोगों से बचता बचाता उनके पास और पास होता जा रहा था. इससे पहले कि वो अपनी रो की तरफ मुड़ते मैने पीछे से लपक कर दोनो की गर्दन अपने दोनो हाथों की मजबूत पकड़ में लेली......
अब वो दोनो चाह कर भी अपनी -2 गर्दन पीछे घुमा नही सकते थे.
मेरे हाथों में ना जाने कहाँ से इतनी मजबूती आ गयी, मेरे शरीर की पूरी शक्ति जैसे मेरे हाथों में आ गई हो.
मैने अपने हाथों के जोरे से ही पीछे घूमने पर उन्हें मजबूर कर दिया और बाहर की ओर ले चला.
मैने अपनी दोनो बाहें उन दोनो के गले में लपेट दी और दोनो हाथों के अंगूठे सीधे खड़े करके उनके गले के कौए (तेंटुवे) की सीध में कर दिए और उनके कदम से कदम मिला कर चलते हुए उन दोनो के कानों में सर्द लहजे में फुसफुसाया-
तुम लोग मेरे हाथों की पकड़ से ही समझ चुके होगे कि मे तुम लोगों का क्या हश्र कर सकता हूँ, इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में हैं कि तुम चुपचाप मेरे साथ बाहर की ओर चलो.
इस समय हम तीनों ऐसे चल रहे थे मानो तीन जिगरी चल रहे हों, जिनके कंधे पर मेरे हाथ रखे हों.
उनमें से एक बोला- तुम हो कॉन और हमें बाहर क्यों ले जाना चाहते हो..?
मे- मुझे पता है कि तुम यहाँ क्या करने वाले हो और इस बॅग में क्या है..? अगर मैने तुम्हें इस पब्लिक के हवाले कर दिया तो तुम लोग समझ सकते हो कि क्या हश्र होगा तुम्हारा,
ये पब्लिक 50-50ग्राम बाँट के ले जाएँगे तुम दोनो की बॉडी को. और हां मेरे अंगूठे देख रहे हो..? ज़रा भी चालाकी दिखाने की कोशिश की तो विश्वास करो ये किसी चाकू से कम काम नही करेंगे, सेकेंड्स से पहले तुम्हारे तेंटुवे अंदर घुस चुके होंगे, इसलिए चुप-चाप चलते रहो…
वैसे तो मुझे किसी से कोई फ़र्क नही पड़ने वाला था कि कोई मेरे बारे में क्या सोचता है, पर कुछ बातें समय के हिसाब से या जो होना होता है..
मैने उसका चॅलेंज आक्सेप्ट कर लिया और उन चीज़ों का सेवन शुरू कर दिया, धीरे-2 मुझे नशे की आदत पड़ने लगी, लेकिन उससे मेरे ध्यान में कोई अंतर नही आया, उल्टा और गहरा होने लगा.
लेकिन एक ग़लत लत लग चुकी थी जो अब आदत बनती जा रही थी. पर इतना ज़रूर सुनिश्चित रखा कि वो चीज़ें प्राकृतिक ही हों.
ध्यान और ब्रह्मचर्य से मेरी ज्ञानइंद्रियों की क्षमता बढ़ती जा रही थी, ऐसा मुझे महसूस होने लगा,
जब भी मे थोड़ा विचलित होता किसी भी कारण से तो मध्य रात्रि के बाद त्राटक ध्यान में बैठ जाता और मेरा आत्मबल लौटने लगता जिससे सारी मन की चंचलता मिट जाती और वैचैनि दूर हो जाती.
एक दिन मन किया कि चलो कुछ मनोरंजन कर लिया जाए, वैसे तो मेरा घर शहर की भीड़ भाड़ से दूर बाहरी इलाक़े में था, लेकिन कोई कार्यवश ही शहर जाना होता था,
एक अच्छी परिवारिक मूवी लगी थी तो देखने का विचार हो गया, शायद एक या दो ही हॉल थे उस समय उस शहर में.
मैं चॉक में जो सिनिमा हॉल था उसमें थी वो मूवी, मे टिकेट लेकर टाय्लेट की तरफ जा रहा था, तभी मेरे कानों में कुछ ऐसी आवाज़ें सुनाई दी जो असम्बेदन्शील थी,
अब ये चाहो तो ज्ञानइंद्रियों की शक्ति बढ़ गयी हो या कुछ अनहोनी से बचाने का नियती का प्रायोजन कह लो,...
मे उन आवाज़ों की तरफ गया तो चार व्यक्ति टाय्लेट के पीछे की साइड में खड़े बातें कर रहे थे.
मुझे सच में ये अचंभा हुआ कि कोई व्यक्ति इतनी दूर की आवाज़ें इतनी सुगमता से कैसे सुन सकता है..? लेकिन मैने सुन ली थी.
वो चारों कुछ बॉम्ब ब्लास्ट करने के बारे में बातें कर रहे थे.
उनकी बातें सुन कर मेरे तिर्पन काँप गये, कहीं ये इसी हॉल को उड़ाने की बात तो नही कर रहे..? हे ईश्वर अगर ऐसा हो गया तो पता नही कितनी जानें जाएँगी.
मैने बाहर आकर इधर-उधर नज़र दौड़ाई इस आशा में कि शायद कोई पोलीस वाला दिखाई दे जाए तो उससे इनफॉर्म कर दूं. लेकिन दुर्भगयवस कोई नही दिखा.
अब करूँ तो क्या करूँ..? सच पुछो तो बॉम्ब का नाम ही इतना घातक है कि सुनते ही रूह फ़ना हो जाए. मरता क्या ना करता वाली बात.. खुद ही कूदने का फ़ैसला ले लिया और उन लोगों की तरफ चल दिया.
जैसे ही उधर पहुँचा…! ये क्या..? ये साले नर्पिशाच कहाँ गायब हो गये.. ? अब क्या करूँ..?
मे किन्कर्तव्य विमुड सा वहीं खड़ा रह गया...! फिर कुछ सोच कर कि यहाँ खड़े रहने से कुछ नही होगा मुझे कुछ तो करना होगा..?
मे मुड़कर हॉल के एंट्रेन्स की तरफ बढ़ा दूसरे लोग एंटर होना शुरू हो गये थे पहले वाला शो छूटने के बाद.
अब मेरी बैचैनि बढ़ने लगी थी, अंदर जाउ या नही जाउ, समस्या ये थी कि अगर ये बात में किसी ऐरे-गैरे हॉल के कर्मचारी को बताता हूँ, उसने मेरी बात का भरोसा किया नही किया..?
और ये भी कह सकता है कि में जानबूझकर किसी के कहने से हॉल को बदनाम करने या पब्लिसिटी स्टंट कर रहा हूँ तो खम्खा समय बर्बाद होगा और करने वाले अपना काम करके निकल चुके होंगे.. !
यही सब उधेड़बुन में मे खड़ा था कि तभी मेरी नज़र उनमें से दो लोगों पर पड़ी, वो हाथ में एक छोटा सा हॅंड बॅग लिए हॉल में एंटर कर रहे थे.
मे फ़ौरन उनकी ओर लपका, लेकिन जब तक में उन तक पहुँच पता वो अंदर घुस चुके थे.
उनपर नज़र बनाए हुए में भी अंदर बढ़ता चला गया. हॉल में रोशनी मामूली थी, लेकिन मेरी आँखें सॉफ-सॉफ उन्हें देखने में सक्षम थी.
वो मैं गॅलरी में ही थे कि मे लोगों से बचता बचाता उनके पास और पास होता जा रहा था. इससे पहले कि वो अपनी रो की तरफ मुड़ते मैने पीछे से लपक कर दोनो की गर्दन अपने दोनो हाथों की मजबूत पकड़ में लेली......
अब वो दोनो चाह कर भी अपनी -2 गर्दन पीछे घुमा नही सकते थे.
मेरे हाथों में ना जाने कहाँ से इतनी मजबूती आ गयी, मेरे शरीर की पूरी शक्ति जैसे मेरे हाथों में आ गई हो.
मैने अपने हाथों के जोरे से ही पीछे घूमने पर उन्हें मजबूर कर दिया और बाहर की ओर ले चला.
मैने अपनी दोनो बाहें उन दोनो के गले में लपेट दी और दोनो हाथों के अंगूठे सीधे खड़े करके उनके गले के कौए (तेंटुवे) की सीध में कर दिए और उनके कदम से कदम मिला कर चलते हुए उन दोनो के कानों में सर्द लहजे में फुसफुसाया-
तुम लोग मेरे हाथों की पकड़ से ही समझ चुके होगे कि मे तुम लोगों का क्या हश्र कर सकता हूँ, इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में हैं कि तुम चुपचाप मेरे साथ बाहर की ओर चलो.
इस समय हम तीनों ऐसे चल रहे थे मानो तीन जिगरी चल रहे हों, जिनके कंधे पर मेरे हाथ रखे हों.
उनमें से एक बोला- तुम हो कॉन और हमें बाहर क्यों ले जाना चाहते हो..?
मे- मुझे पता है कि तुम यहाँ क्या करने वाले हो और इस बॅग में क्या है..? अगर मैने तुम्हें इस पब्लिक के हवाले कर दिया तो तुम लोग समझ सकते हो कि क्या हश्र होगा तुम्हारा,
ये पब्लिक 50-50ग्राम बाँट के ले जाएँगे तुम दोनो की बॉडी को. और हां मेरे अंगूठे देख रहे हो..? ज़रा भी चालाकी दिखाने की कोशिश की तो विश्वास करो ये किसी चाकू से कम काम नही करेंगे, सेकेंड्स से पहले तुम्हारे तेंटुवे अंदर घुस चुके होंगे, इसलिए चुप-चाप चलते रहो…