Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - Page 11 - SexBaba
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Antarvasna kahani वक्त का तमाशा

"आहहहाहाः एसस्सस्स.......उफफफफफ्फ़ अहहाहा हां ना पापा अहहहाआ..." स्नेहा भी अपने ही खेल में अब तड़पने लगी थी और बस सिसकियाँ ही ले रही थी, उसके मूह से एक लफ्ज़ नहीं फुट रहा था



उंगलियों का जादू चालू रखते रखते राजवीर ने अपनी जीभ स्नेहा की जांघों पे रख दी और उन्हे हल्के से चाटने लगा और साथ ही अपने एक हाथ को उसके चुचों पे रख दिया...



"अहहहाआ, पापा, आइ आम कमिंग हहहहा.... मैं आ रही हूँ येस्स अहहहाआ.." स्नेहा ने जैसे ही चेतावनी दी, राजवीर ने उंगलियाँ निकाली और अपनी जीभ उसकी चूत के अंदर घुस्सा दी










"ओह्ह्ह हाआँ पापा. ऐसे ही अहहहहा... ईसस्स्सस्स माईंन्न्न् आ रहियीई उईईईईईई....." कहके स्नेहा ने अपना चूत रस राजवीर के मूह पे छोड़ दिया जिसे राजवीर बड़े मज़े से पीने लगा.....





"अहहाहा चाचा जी अहहहाहा मेरे ससुर जी उफ़फ्फ़ अहहाहा....उम्म्म्म" कहके स्नेहा अपनी जगह से उठी और राजवीर के होंठों पे टूट पड़ी और उन्हे किसी कुतिया की तरह चूसने लगी, काटने लगी... दोनो लोग अपने जिस्मो की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे और बेकाबू होते जा रहे थे....




"पापा आआहहहा..." स्नेहा ने एक सिसकारी लेके राजवीर को देखा, दोनो की आँखें सुर्ख लाल हो चुकी थी, दोनो अपने बदन की गर्मी को महसूस कर रहे थे और एक दूसरे के जिस्मो के साथ खेलने में लगे हुए थे, दोनो के बदन पसीने से भीग चुके थे, तक दोनो चुके थे, लेकिन रुकना कोई नहीं चाहता था.. राजवीर पास पड़े पलंग पे जाके लेट गया और स्नेहा को एक नज़र देखा, स्नेहा कूद के पलंग पे किसी भूखी शेरनी की तरह चढ़ गयी और राजवीर के लंड को अपनी थूक से भिगो के उसको अपनी चूत के छेद पे सेट कर दिया, और धीरे धीरे उसपे बैठने लगी...





"अहाहाहहहा ओह..." स्नेहा की चीखें निकलती जैसे जैसे लंड उसकी चूत के अंदर जाता, भीगी हुई चूत में लंड डालने में कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन एक बार जब लंड पूरा का पूरा अंदर चला गया और स्नेहा की चूत की दीवारों से टकराने लगा, उसकी जान निकलने लगी




"ओा अहाहा नूऊओ.....बाहर निकालो इसे अहहहहा पापा आहहहहा, टेक दिस मॉन्स्टर अहहहहाअ औत्त्तत्त......" स्नेहा कह तो यही रही थी लेकिन अपने एक हाथ नीचे ले जाके लंड को मज़बूती से पकड़े हुई थी...




"अहहहाआ...पापा, फक मी ना अहाहहाअ..." स्नेहा ने अपने हाथ उँचे लेके कहा, स्नेहा के इस इशारे से राजवीर अपने लंड को अंदर बाहर करने लगा, पहले धीरे धीरे, और जब स्नेहा के दर्द को मज़े में बदलते देखा तो उसके धक्कों की स्पीड बढ़ती गयी









कभी राजवीर लंड को अंदर बाहर करता तो कभी स्नेहा अपनी चूत को उछाल उछाल के उससे चुदवाती, रूम काफ़ी ठंडा था लेकिन इनके जिस्मो की गर्मी से वहाँ का तापमान भी बढ़ने लगा था, दोनो के बदन पसीने में भीग चुके थे, रूम में केवल बस चुदाई की आवाज़ें गूँज रही थी




"अहहहाआ..पापा फक मी अहाहा एस्स अहाहहाहा...." स्नेहा अपनी चूत को लंड पे उछालती हुई कहती




"हाआँ मेरी ज्योति बेटी.. अहहाहा यह ले ना पापा के लंड को अपनी चूत के अंदर आहहाहा.." राजवीर जवाब में देता




पूरे कमरे में चूत से लंड और टटटे टकराने की आवाज़ें आ रही थी, स्नेहा पसीने से बहाल हो चुकी थी, लेकिन रुकने का नाम नहीं ले रही थी, राजवीर का लंड भी जवाब देने वाला था, लेकिन वो कंट्रोल करके बस स्नेहा की चूत के चिथड़े करने के मूड में था....




"अहहा पापा, कुतिया को और चोदिये ना अहाहा.. दम नहीं है क्या मेरे ना मर्द पापा आआहहहाअ.." स्नेहा के बदन की गर्मी उसके शब्दों में भी दिख रही थी...




राजवीर ने अपने लंड को स्नेहा की चूत से निकाला "पल्लुक्क्कककक" की आवाज़ के साथ और उसके होंठों को चूस के बिस्तर से खड़ा किया, अपनी एक उंगली पीछे ले जाके उसकी गान्ड के अंदर घुसा दी



"अहहहहा नूऊ..." स्नेहा ने आँखें बंद करके कहा



"बेटी हो ना, अब से रखैल बनो मेरी रंडी..." राजवीर ने स्नेहा के एक चुचे को मूह में भर के कहा और पास पड़ी कुर्सी के भरोसे स्नेहा को कुतिया बनने को कहा.. कुछ कहे बिना स्नेहा भी उसकी बात मान गयी और कुतिया बन के अपनी टाँगें खोल दी.. राजवीर ने अपने गीले लंड को स्नेहा की गान्ड पे रखा और हल्का सा धक्का दे दिया




"अहहहहा नूऊओ....पापा नहिन्न उफफफफ्फ़.... धीरे धीरे प्लीज़ अजाहाहहाहा" स्नेहा भी आने वाले के दर्द के बारे मीं सोच के डर रही थी लेकिन उसके साथ वाले मज़े का सोच के फिर अपने मन को बहला लेती









धीरे धीरे कर जब गान्ड चुदाई का दर्द मज़े में तब्दील हुआ, स्नेहा भी चीख चीख के मज़े लेने लगी




"अहहा हां पापा अहहाहा फाड़ दो आज ज्योति की गान्ड को आहहहहहा.. और ज़ोर से पापा अहहहहाअ य्आहह" स्नेहा अपनी गान्ड को पीछे ले जाके राजवीर के लंड को और अंदर महसूस करती हुई बोलती




"उम्म्म अहहहा...यह ले ना ज्योति अहहहहा क्या गान्ड है तेरी, उफ़फ्फ़ अहहहा.. साली जब चलती है तो जी करता है अहहहा इन्हे पकड़ के मसल दूं अहाहहाअ..क्या चुचियाँ है तेरी आहुउऊम्म्म्मम..... अहाहहा दूध पिला दे अपने बाप को भी अहहाहा आएआःाहहहा तःप्प्प्प्प ठप्प्प्प्प्प्प्प... अहहाहा क्या चूत है तेरी अहाआहहा.." राजवीर स्नेहा की गान्ड में लंड अंदर बाहर करते करते बोलने लगा



"अहाहहा हां तो अहाहौईइ पापा किसने रोका अहहहहा.... हां चोद ना अपनी रांड़ बेटी को अहहहा बहू को भी चोद अहहहहाहा दिया अहाहा.. भाभीयाहहहहहा को भी अहहहा, आज बेटी को चोद अहहहहाहा दो ना अहहहा.. कल भतीजी कोआहहा अहाहौईइ माँ चोदना ना अहहहहाआ...सब को अहहहौईईई रंडी बना देना अपनी अहाहहाहा..."




स्नेहा की बातें सुन राजवीर से और नहीं रहा गया, लंड को गान्ड से अलग कर राजवीर ने स्नेहा को सीधा किया और अपना सारा माल उसके चेहरे पे छोड़ दिया जिसे स्नेहा भी एक टॉप रंडी के जैसे अपने गले के अंदर गटाकने लगी









"अहाहाः उर्रफफफफ्फ़......पी लो मेरी बेटी अहहहहा..... येस्स अहहहहा.."



"अहहाहा हाँ पापा दो ना अपना माल अहहाहा और पिलाओ...." स्नेहा ने सब गले के अंदर गटक लिया और राजवीर के लंड को फिर से निचोड़ने लगी....
 
"अभी तक तुमने मुझे अपना गिफ्ट नहीं दिया.." रिकी ने ज्योति से गाड़ी में बैठते हुए कहा



"अभी तक आपने मुझे बर्तडे पार्टी भी तो नहीं दी ना.." ज्योति ने हंस के कहा और दोनो गाड़ी से घर जाने के लिए निकले जब एग्ज़ॅम सेंटर से बाहर आए



"ओह हो, स्टारबक्क्स में गये थे कल, वो क्या था फिर.." रिकी ने अपनी नज़र रोड पे ही टिका के कहा



"रिकी राइचंद.. नाम में कितना वज़न है, नाम भी छोड़ो... सिर्फ़ सरनेम में कितना वज़न है, स्टारबक्क्स की कॉफी को पार्टी बोलता है, क्या यार.." ज्योति ने मज़ाक में कहा, जिसे सुन रिकी ने कुछ जवाब नहीं दिया और गाड़ी चलाता रहा



"वैसे, आपको याद है लास्ट टाइम आपने पार्टी कहाँ दी थी.. तो वैसी नहीं, तो अट लीस्ट उसका आधा तो खर्चा करो.." ज्योति ने अपना मूह रिकी की तरफ घुमा दिया



"याद है याद है... इस वीकेंड मैं महाबालेश्वर आउन्गा, तो वहाँ वी विल डू इट.. इधर शीना इस नोट वेल, ऐसी हालत में अच्छा नही लगेगा यार,होप यू अंडरस्टॅंड.." रिकी ने गाड़ी को मोढ़ के कहा



"हां जी, चिंता नहीं है, गिफ्ट भी महाबालेश्वर में दूँगी ओके.." ज्योति ने हँस के कहा और सीधी होके बैठ गयी.. जब तक दोनो घर पहुँचते तब तक दोनो के बीच फिर एक खामोशी सी रही, हाला कि ज्योति दिमाग़ से आक्टिव ही थी, तिरछी नज़रों से बार बार रिकी की तरफ देखती जिसकी आँखें तो रोड पे थी, लेकिन कुछ सवाल थे उसकी आँखों में और दिमाग़ से भी वो उस वक़्त ज्योति के साथ नहीं था, किसी सोच में डूबा हुआ था... ज्योति ने फिर अपनी आँखें सीधी की और अपनी टॅबलेट पे फिर कुछ लिखने लगी



"यह क्या लिखती रहती हो टॅबलेट पे तुम बार बार.." रिकी ने खामोशी तोड़ते हुए कहा



"अरे वाह, यू हॅव रीयलाइज़्ड कि मैं भी आपके साथ हूँ.. वाह वाह, क्या नज़र है आपकी भैया.." ज्योति ने हँसते हुए कहा



"मैं इसमे यह नोट करती हूँ कि जब जब हम साथ होते हैं तब तब आप कहीं सोच में डूब जाते हो, तो इसमे काउंट कर रही हूँ ऐसी कितनी बार हुआ है, देखो देखो, काफ़ी इन्सिडेंट्स हैं.." ज्योति ने टॅबलेट आगे बढ़ा के कहा



"उहह....हटाओ इसे, कुछ भी लिखती हो..." रिकी ने टॅबलेट को देखे बिना हाथ से पीछे कर दिया



"सही बोल रही हूँ, कभी हिसाब करेंगे कि ऐसा कितनी बार किया है आपने..हिहहिहीई.,," ज्योति ने टॅबलेट को अपने बॅग में डाल दिया



"चलो जी, यह लो.. घर आ गया..." रिकी ने गाड़ी मोडते हुए कहा और दोनो मेन गेट के पास आ गये..



"चलो, आप जाओ, मैं निकलती हूँ यहाँ से, आज थोड़ा जल्दी पहुँच जाउ कल से, तो अच्छा होगा.." ज्योति ने बाहर आके रिकी से कहा



"अंदर आओ और शीना से मिल लो, ऐसे नहीं अच्छा लगता यार.." रिकी ने घर के अंदर आते हुए कहा



"अरे भैया, मेरे 30 मिनिट्स निकल जाएँगे, प्लीज़ समझिए ना, आंड कल रात को शीना से मिल लिया, आधे घंटे तक हम ने बातें की.." ज्योति ने उत्साह से ड्राइवर साइड की सीट पे बैठ के कहा



"आंड किसने कहा कि तुम गाड़ी चला के जाओगी महाबालेश्वर तक, ड्राइवर है उसे ले जाओ.." रिकी ने कह के ड्राइवर को बुलाना ही चाहा के ज्योति ने उसे रोक दिया



"भैया, प्लीज़ जाने दो ना, कितने दिन हुए लोंग ड्राइव पे नहीं गयी अकेली... आंड आइ प्रॉमिस, आइ स्वेर के हर 30 मिनिट्स में आपको फोन करती रहूंगी..प्लीज़ प्लीज़..." ज्योति ने मासूम चेहरा बना के कहा



"ज्योति, हाइवे की बात है, आंड यू नो कैसे कैसे लोग मिल जायें यार, ड्राइवर रहेगा इट विल बी सेफ.." रिकी ने फिर ज्योति को मनाना चाहा



"गॉड प्रॉमिस भैया, प्लीज़ जाने दो ना अकेले, चलो बस 15 मिनिट्स में कॉल करती रहूंगी.." ज्योति ने फिर रिकी से कहा जिसे रिकी मना नही कर सका और वहाँ से निकल गयी



अभी तोड़ा देर आगे ज्योति निकली ही थी कि उसके मोबाइल पे प्राइवेट नंबर से कॉल आया



"हां बोलो, मैं अकेली ही हूँ.." ज्योति ने फोन उठा के कहा



"ब्रावो गर्ल, आख़िर भाई को कन्विन्स कर ही दिया.." सामने वाले ने खुश होके जवाब दिया



"वो छोड़ो, अब क्या करूँ वो बताओ" ज्योति ने वॉरली स्थित जसलोक हॉस्पिटल के सामने गाड़ी रोक के कहा



"अब रूको, 5 मिनिट में तुम्हे एक पार्सल मिलेगा...जैसे ही वो पार्सल मिलेगा, मैं कॉल कर दूँगा.." कहके फिर उसने फोन कट कर दिया



"कमाल है, फोन कट करने से पहले कुछ नहीं बोलता, ना ही फोन रिसीव करने पे.." ज्योति ने खुद से कहा और खिड़की खोल के बाहर देखने लगी, नॉर्मली इस वक़्त वॉरली रोड पे भीड़ काफ़ी रहती है, सामने जसलोक में गाड़ियों का ताँता लगा हुआ था, उसके पास इंडिया के सबसे अमीर आदमी का सबसे महेंगा घर.. ज्योति यह सब देख रही थी कि एक तेज़ बाइक की आवाज़ से उसका ध्यान उस तरफ खीचा, जैसे ही उसने उसे देखा, वो डर गयी और मूह अंदर कर दिया और कुछ ही सेकेंड्स में वो बाइक तेज़ी से उसके सामने से गुज़री...



"ताप्प्प्प्प्प...." की आवाज़ से जब उसने अपनी सीट के नीचे देखा तो एक मीडियम साइज़ का पार्सल पड़ा था



"व्हाट दा फक ईज़ दिस..." ज्योति ने चिल्लाया और गाड़ी का दरवाज़ा खोल के दौड़ के बाहर आई कि उसका ध्यान फिर उसके बजते हुए फोन पे गया



"यह क्या है..." ज्योति ने फोन उठा के कहा



"पार्सल है, मैने कहा तो था.." सामने से जवाब आया



"पर यह गाड़ी में कैसे..." ज्योति ने शॉक होके पूछा



"एक बाइक तुम्हारे पास से गुज़री होगी, शायद उसी ने अंदर फेंका होगा..हाहहहा" फिर उसे मज़किया जवाब मिला



"ऐसे कोई पार्सल देता है, आइएम फक्किंग स्केर्ड नाउ.. सीधा रोक के हाथ में नहीं दे सकता था क्या.." ज्योति ने लंबी साँसें लेते हुए कहा और फिर गाड़ी के अंदर बैठ गयी



"पिज़्ज़ा डेलिवर करने नहीं आया था वो स्वीटहार्ट,... एनीवे, अब पार्सल उठाओ पहले.." सामने वाले की आवाज़ फिर कड़क हो गयी



ज्योति ने उसके कहने पे पार्सल उठा लिया.. "हां ले लिया"



"अब ओपन करो..."



"ओके वेट... हाँ कर दिया.." उसने पार्सल खोल के कहा और उसके अंदर कुछ चीज़ें रखी हुई थी



"अंदर क्या क्या है ज़रा बताओ.."



"अंदर, एक तो चाबियों का गुच्छा है.. और दूसरा कुछ छोटे छोटे पॅकेट्स हैं, लाइक थोड़े केमिकल्स... आंड एक बॉटल है, इसमे भी कुछ लिक्विड है...पता नही क्या है..." ज्योति ने स्मेल करने की कोशिश की बट पहचान नही पाई



"ग्रेट.. अब मैं तुम्हे एक अड्रेस टेक्स्ट करता हूँ.. सबसे पहले तुम्हे उस अड्रेस पे जाना है" इतना कहके सामने से आवाज़ बंद हो गयी



"हेलो...फिर क्या करना है.." ज्योति ने सोचा शायद फोन कट हो गया लेकिन स्क्रीन पे देखा तो ड्यूरेशन चालू थी



"पहले यह करो..." फिर उसे ठंडी कड़क आवाज़ सुनाई दी और फोन कट हो गया
 
"कमाल है अब यह कहाँ.." ज्योति ने इतना ही कहा कि फिर उसे वापस कॉल आया



"और हां, अड्रेस भी शायड पार्सल में ही होगा, तुमने देखा नहीं.." सामने से उसे जवाब मिला वो कहती उससे कुछ पहले... इतना सुन कर पर ज्योति ने ठीक तरीके से पार्सल में देखा तो कोने में एक छोटा सा काग़ज़ रखा हुआ था..



"रूको , है यहीं..." ज्योति ने काग़ज़ उठा के कहा और उसे खोल के अड्रेस देखने लगी



"राइटिंग तो सॉफ है ना स्वीटहार्ट.." सामने से फिर जवाब मिला ज्योति को



"प्रिंटेड है, बट यह अड्रेस तो..." ज्योति ने इतना ही कहा के फिर उसे टोक दिया गया



"सस्शह...... नही बताओ, जानता हूँ मैं...हाहहहाहा..." कहके फिर फोन कट हो गया



ज्योति ने कुछ देर अड्रेस वाला काग़ज़ हाथ में पकड़े रखा और सोचने लगी..



"यह अड्रेस सुना हुआ है शायद...." ज्योति ने खुद से कहा और फिर याद करने लगी इसके बारे में लेकिन उसे कुछ याद नहीं आया




"चलो, देखते हैं क्या है, बट .." ज्योति ने फिर खुद से कहा और अड्रेस की तरफ चल दी..



"हां बताओ, पहुँच गयी मैं इस अड्रेस पे.." ज्योति ने अपनी गाड़ी बाहर खड़ी करी और मेन गेट की तरफ बढ़ गयी



"ग्रेट.. अब ध्यान से सुनो.. जो मैं कह रहा हूँ.. तुम्हे दिए दो कामो में से यह पहला काम है, यह सफल नहीं होता तो दूसरा काम भी नहीं हो पाएगा.. कुछ समझ ना आए तो मुझे याद करना, मैं कॉल कर दूँगा..." सामने से उसे जवाब मिला और फिर उसे निर्देश मिलने लगे के उसे क्या करना था..


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"भाई, कितने दिन से वी हॅव नोट मेड आउट ना.." शीना ने पास बैठे रिकी से कहा जो कुछ बिज़्नेस मॅगज़ीन पढ़ रहा था



"हैं...." रिकी ने अचंभे में आके जवाब दिया



"नहीं समझ आया, हिन्दी में कहूँ... कितने दिन से हमन्‍ने सेक्स नहीं किया ना भाई" शीना ने सीधा चेहरा बना के कहा



"वो मैं समझ गया, अपनी हालत देखो, घर पे सब को चिंता है तुम्हारी, एक पेर यूँ हवा में लटक रहा है, एवववव.. स्मेल भी अच्छे से नही कर रही ..यूक्कक... और तुम्हे सेक्स की पड़ी है,..हाहहहा.." रिकी ने शीना का मज़ाक उड़ाते हुए कहा



"हाहहाहा... बहुत हँसी आई, पेर हवा में हुआ तो क्या, सेक्स में भी पेर हवा में ही उठाना पड़ता है ना" शीना ने आँख मारते हुए कहा



"शांति शांति.. कोई सुन ना ले, और फिर भाई भाई बोलने लगी.. " रिकी ने अपनी मॅगज़ीन को बंद करके कहा



"कोई नहीं सुनेगा, मोम डॅड और चाचू बाहर गये हैं, ज्योति है नहीं, भाभी का होना या ना होना सब सेम ही है..और नर्स अपने रूम में है, वो एक घंटे के बाद आएगी..इसलिए, वी आर अलोन बेबी.. फ़ायदा उठा लो मेरे अकेलेपन का..हीही.." शीना ने थोड़ा सा तकिये पे उपर होके कहा



"ह्म्‍म्म, लगता है दिमाग़ पे भी चोट आई है..." रिकी ने अपने दोनो हाथ बेड पे रख के कहा और चेहरा शीना के पास ले गया



"आंड यस, आइ डॉन'ट स्मेल बॅड... टेस्ट कर लो... टेस्ट कर के..." शीना एक दम सुखी आवाज़ में बोली..और उसके होंठ धीरे धीरे कर खुलने लगे, रिकी की नज़र शीना के चेहरे से उसकी आँखों से होती हुई सीधा उसके होंठों पे पड़ी, उसकी आँखों में बेशुमार प्यार था, होंठों पे प्यास... बिना कुछ कहे रिकी थोड़ा सा आगे झुका जिसे देख शीना की आँखें बंद और होंठ खुल गये.. दोनो की साँसें हल्की सी तेज़ होने लगी, दोनो की साँसें बिल्कुल गरम, रिकी ने एक हाथ में शीना का हाथ थाम के महसूस किया के शीना का बदन भी गरम हुआ पड़ा है, प्यार से उसने शीना के हाथों को अपने हाथों में जकड लिया और अपने होंठ शीना के होंठों पे रख दिया




"उम्म्म्मम.....उम्म्म्ममममाअहहाहहूंम्म्मममम...." दोनो की सिसकी निकली और एक दूसरे के चुंबन में डूब गये




"उम्म्म्म...अहहह..." शीना ने फिर सिसकी ली और अपने होंठ रिकी के होंठों से अलग कर दिए.. दोनो अलग तो हुए लेकिन एक दूसरे की आँखों में ही देखते रहे, दोनो के चेहरे लाल हो चुके थे, नशा दोनो देख सकते थे एक दूसरे की आँखों में..



"मन ही नहीं भरता मेरा क्या करूँ.." शीना ने धीरे से कहा और फिर अपने होंठों से रिकी के होंठों को हल्का सा सक किया और उससे अलग हो गयी










"वैसे भाई..." शीना ने मुस्कुराते हुए ही कहा



"भाई, वैसे आप एक बात बताओ.. बुरा नहीं लगाना हाँ.." शीना ने आँखें बड़ी करके कहा



"ह्म्म, बोलो... वैसे, यूआर समेलिंग उम्म्म्ममम..... फॅंटॅस्टिक.." रिकी ने लंबी साँस लेके कहा और फिर जीभ अपने उपरी होंठ पे घुमाई



"हाहाहा, किकी !! ... अच्छा मैं पूछ रही थी, किस तो लंडन की गोरियों को भी किया होगा ना आपने, तो वो ज़्यादा अच्छी हैं या मैं.." शीना ने रिकी को चिढ़ाना जारी रखा



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"नहीं... आइ कॅन'ट डू दिस... जो तुम कह रहे हो वो अगर पासिबल भी हुआ तो भी मैं नहीं करूँगी.." ज्योति ने फोन पे सामने वाले को चिल्ला के कहा



"पासिबल तो है स्वीटी... मैं जानता हूँ अच्छे से, और वो तुम भी जानती हो, लेकिन बात यह है कि तुम क्यूँ नहीं करोगी, तुमने तो कहा था तुम हमारे साथ हो... फिर अचानक क्यूँ पीछे हट रही हो.." सामने से उसे बहुत धीमी आवाज़ में जवाब मिला



"देखो, तुम क्यूँ कर रहे हो मैं नहीं जानती, लेकिन इससे मेरी फॅमिली..."



"स्श्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..... तुम्हारी फॅमिली नहीं है, तुम अच्छे से जानती हो यह..और अगर तुम नहीं करोगी तो काम तो मेरा तब भी होगा, लेकिन मैं चाहता हूँ तुम करो.." फिर उसे समझाने की टोन लेनी पड़ी



"लेकिन मैं ही क्यूँ.." ज्योति ने सब भूल के सबसे अहेम सवाल उठाया जिसे सुन कुछ देर सामने वाले की आवाज़ भी नहीं आई



"कहो, अब क्यूँ खामोश हो... मैं ही क्यूँ, और यह काम तो स्नेहा भाभी भी कर सकती है ना, फिर भी तुम मुझसे ही क्यूँ यह करवाना चाहते हो..." ज्योति ने अपनी गाड़ी में बैठते ही उँची आवाज़ में कहा



"तुम्हारा अतीत क्या है ज्योति..." सामने से एक ठंडी आवाज़ में उसे जवाब मिला जिसे सुन ज्योति कुछ समझी नहीं



"अतीत.. मतलब.. क्या कहना चाहते हो तुम.." ज्योति की आवाज़ थोड़ी नीची हुई लेकिन बेचेनी बढ़ गयी



"तुम राइचंद'स की बेटी तो नहीं हो यह तो तुम जान चुकी होगी.. है ना.." सामने से भी आवाज़ उतनी ही नीची थी



"ह्म्‍म्म..." ज्योति सिर्फ़ इतना ही कह पाई



"मैं उसी अतीत की बात कर रहा हूँ.." सामने से फिर उसे जवाब मिला और फोन कट हो गया
 
"देखो, यह बात किसी को पता नहीं लगनी चाहिए, समझे तुम.." ज्योति इस वक़्त वहीं खड़ी थी जहाँ कुछ देर पहले वो फोन पर बतिया रही थी



"ठीक है मेडम, पर आप जो काम कह रहे हो वो काम करना कहाँ है, और बोल रहे हैं कि किसी को पता नहीं लगना चाहिए, अब यह काम जो आपने कहा है करने को

इसमे तो कितने दिन लग जाएँगे, और उपर से काम जब होगा तब सब को दिखेगा ही ना, फिर छुपाना कैसे है..." उसके सामने खड़े शख्स ने उसे जवाब दिया



"तुम यह सब काम रात में करोगे, कोई तकलीफ़ नहीं है कि यह काम तुम कितने वक़्त में करोगे, भले ही रात के दो या तीन घंटे काम करो, लेकिन काम होना चाहिए

बस..." ज्योति ने फिर उसे धीरे से कहा



"ठीक है मेडम, बट आप चलिए और दिखाइए तो यह काम एग्ज़ॅक्ट्ली कहाँ और क्या करना है, तभी तो मैं कुछ समझ पाउन्गा.." सामने वाले शख्स ने फिर उसे उतनी ही आवाज़ में जवाब दिया



"ओह्ह्ह, धीरे नहीं बोल सकते, तुम सही में आर्किटेक्ट ही हो या नहीं" ज्योति ने उसकी टोन से इरिटेट होके कहा



"ओह मेडम, आर्किटेक्ट ही हूँ, बेरोज़गार हूँ मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी बोलो, एक तो ऑलरेडी बहुत टेन्षन है, चलिए अब दिखाइए नहीं तो मैं जा रहा हूँ.."

उस बंदे ने फिर अपनी आवाज़ उँची कर जवाब दिया



"देखो बन्नी..या जो भी तुम्हारा नाम है, धीरे से बात करो, और बेरोज़गारी की चिंता नहीं करो, आ जाओ मेरे पीछे पहले.." ज्योति ने उसे हिदायत दी और उसे अपने पीछे बुला लिया, बन्नी नाम का शक़्क्स भी उसके पीछे चला गया और आस पास के एरिया को देखने लगा.. ज्योति ने चाबियों का गुच्छा निकाला और एक एक कर सब ट्राइ करने लगी, जब ताले की सही चाबी लग गयी, तब मैं दरवाज़ा खोल के उसने बन्नी को सिर्फ़ इशारा किया और दोनो अंदर चले गये...



"अब ध्यान से सुनो, तुम्हे इस रूम में क्या क्या करना है.. " ज्योति और बन्नी दोनो इस वक़्त एक कमरे में थे और ज्योति उसे हिदायत देने लगी के उसे क्या क्या करवाना था



"देखिए, सब मज़ाक साइड में, ज्योति जी, लेकिन मैं समझा नहीं कि यह काम क्यूँ करना है, आइ मीन बनी बनाई चीज़ को तोड़ के फिर से उसे..." बन्नी ने इतना ही कहा के ज्योति ने उसे टोक दिया



"देखो, तुम्हे जो कहा जा रहा है वैसा करो, अगर नहीं कर सकते तो रहने दो, मैं किसी और से करवा लूँगी..अब कोई भी सवाल नहीं होना चाहिए, ठीक है.."

ज्योति ने उसे उंगली दिखाते हुए कहा



"ओके... बट यह काम के लिए कुछ स्पेशलिस्ट्स भी चाहिए मुझे, एक दो दिन दीजिए, मैं उन्हे ढूँढ के आपको कॉंटॅक्ट करता हूँ और हम काम शुरू कर देंगे.." बन्नी ने पहली बार ज्योति को सीरीयस होके जवाब दिया था



"ओके, बेटर.." ज्योति ने सिर्फ़ इतना कहा और अपने क्लच में से 50000 की गॅडी निकाल कर बन्नी के हाथ में थमा दी



"अगर किसी को कुछ भी पता चला, तो याद रखना, वो तुम्हारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल होगी" ज्योति ने बन्नी को यह चीज़ ऐसे अंदाज़ में कही के बन्नी वहीं खड़े खड़े काँपने लगा



पैसे ले देके दोनो लोग वहाँ से निकल गये, बन्नी के जाते ही ज्योति वापस उस कमरे में गयी और पॅकेट में जो दूसरे केमिकल्स पड़े थे वो वहीं पे दिए हुए निर्देश के मुताबिक रख के फिर लॉक करके बाहर निकली.. मेन गेट लॉक और बिना देरी किए वो वहाँ से तेज़ी से निकल गयी



"हां भैया.." ज्योति ने रिकी का फोन उठा के कहा



"ज्योति, तुम अब तक नहीं पहुँची, अभी विलसन का फोन आया था, कुछ डिस्कशन के लिए..ठीक हो तुम.."



"हां भाई, कार पंक्चर हो गयी थी, इसलिए टायर बदलने में टाइम लग गया, अभी बस पहुँच ही रही हूँ, इन 10 मिन्स" ज्योति ने गाड़ी चलना जारी रखा



"ओके, चलो पहुँच के फोन करो मुझे.."



"ओके भाई, बाइ.." ज्योति ने भी जवाब दिया और जल्दी से गाड़ी भगाने लगी



"क्या हुआ रिकी, ज्योति का फोन आया कि नहीं.." राजवीर ने रिकी से पूछा



"हां चाचू, वो बस अभी पहुँच जाएगी, गाड़ी का टाइयर पंक्चर था इसलिए देर हुई, बट शी ईज़ फाइन.." रिकी ने राजवीर से कहा और दोनो नीचे की तरफ जाने लगे



"ओके, और हां वो सेठ के सौदे हुए हैं, वो सब तो ठीक है.. लेकिन उसके साथ साथ दूसरे कुछ काम भी होते हैं, तुम एक काम करो, आज तुम हमारे नेटवर्क के सभी लोगों को बुलाओ मिलने के लिए, मिलने की जगह बाहर ही रखना, उनसे मिलके कुछ बातें करनी है, कल तुम महाबालेश्वर जाओगे एग्ज़ॅम देके, इसलिए आज ही निपटा देते हैं यह चीज़ ओके..



"ओके चाचू, तो मैं बाजू के हिल्टन में ही बुला लेता हूँ सब को, आप भी 5 बजे तक आ जाइए.." रिकी ने राजवीर से कहा जिसे सुन राजवीर ने हामी भर दी
 
कुछ देर के बाद मिलने का कहके राजवीर और रिकी दोनो ही अपने अपने काम में लग गये, जहाँ राजवीर अमर के साथ कुछ प्रॉपर्टी के बारे में बात चीत करने गया,

वहीं रिकी शीना के कमरे में पहुँच गया... पहुँच के देखा तो शीना आराम से सो रही थी और नर्स भी नहीं थी, रिकी ने धीरे से कमरे को लॉक किया और शीना के पास जाके बैठा, कुछ वक़्त तक शीना को यूही उसके चेहरे को देखता रहा जो सोते वक़्त भी उतना ही प्यारा लग रहा था.. रिकी ने हल्के से शीना के हाथ को पकड़ के अपने हाथों में लिया और धीरे धीरे उसे चूमने लगा.. चूमते चूमते रिकी की आँखें नम होने लगी थी..



"आइ आम सो सॉरी शीना... शायद यह.." रिकी ने बस इतना ही कहा के शीना ने अपनी आँखें खोल दी



"आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो, आप थे क्या जिसने मुझे मारने की कोशिश की.. हिहीही." शीना ने हँस के कहा और रिकी को देखने लगी. रिकी की आँखें अभी भी नम थी, और उसने अपनी आँखें नीचे झुका दी, जैसे गुनेहगार करते हैं अपना गुनाह कबूल कर के



"भाई, प्लीज़ टेल मी ना क्या हुआ, मैं तो सोने की आक्टिंग कर रही थी, आपको देखा तो.. किस करते करते रोने लगे, बताइए ना प्लीज़.." शीना ने फिर ज़ोर देके कहा



"नतिंग.." रिकी ने भारी आवाज़ के साथ कहा, एक रुआंसी आवाज़ में, सिर्फ़ एक शब्द बोलने में भी उसे बहुत तकलीफ़ हो रही थी..



"भाई, ऐसे झूठ नहीं बोलो प्लीज़.. बताओ तो क्या हुआ.." शीना ने फिर ज़ोर देके कहा, लेकिन इस बार रिकी कुछ कहने के बदले वहाँ से निकल गया



"भाई.... भाई, व्हाट हॅपंड.. भाई..." शीना उसे आवाज़ लगाती रही लेकिन रिकी नहीं रुका



"आज बीसीसीआइ के बाप का फोन आया था, आइपीएल के फिकच्स्चर्स और स्क्वाड्स आ गये हैं, तुम सब को मैल किए हैं , देख लो... आज ही हमे बताना है कि आइपीएल किसको जीतवाना है, " राजवीर और रिकी दोनो इस वक़्त वॉरली में होटेल हिल्टन में बैठे हुए थे और राजवीर यह सब निर्देश सामने बैठे हुए अपने नेटवर्क के लोगों को दे रहा था



"हां, हम ने देख लिया वो सब, लेकिन विन्नर ऐसे कैसे अभी ही डिसाइड कर लें, अभी तो कोई भाव खुला नहीं है, आज अगर हम डिसाइड कर लेंगे तो आगे सब को खिलाना बहुत दिक्कत वाला काम होगा हमारे लिए" उनमे से एक ने जवाब दिया



"विक्रम ने जो डील की थी उसमे बीसीसीआइ का हिस्सा काफ़ी कम है, उपर से वो वीडियोस, इसलिए बीसीसीआइ का बाप ऐसे बदला ले रहा है.. अब हम पीछे नहीं हट सकते.." राजवीर ने जवाब दिया और अपनी ड्रिंक लेने लगा



"ठीक है, 2013 में तो हमारा अपना शहेर ही जीता था, उसी को जीतवाओ, कौन सोचेगा कि दो बार एक टीम ले जा सकती है"



"नहीं, बॅंगलुर रखो, वो हर बार सेमी में जाके निकल जाती है, इस बार भी लोग ऐसा ही सोचेंगे" किसी और ने कहा



"मैं तो कहता हूँ हयदेराबाद रखो या पंजाब, आज तक इनसे किसी ने उम्मीद नहीं बाँधी.." एक के बाद एक टीम्स के नाम आते गये और राजवीर सब को ध्यान से सुनने लगा



"रिकी, तुम क्या कहते हो.." राजवीर ने रिकी को देखा के वो कुछ सोच में डूबा हुआ था और उसकी आँखें ठीक सामने की दीवार की तरफ थी



"चाचू, 2012 का विन्नर कोलकाता.. जब उन्होने जीता तो सब को लगा एक फ्लूक है, हाला कि उन्होने डिफेंडिंग चॅंपियन्स को हराया उन्ही के घर में, लेकिन फिर भी फँस के अलावा कोई कन्विन्स नहीं हुआ उनके टॅलेंट के बारे में, 2013 में सेमी में भी नहीं आए.. इस बात पे मोहोर लग गयी कि 2012 बस एक फ्लूक था.. 2014, फिर वो जीतेंगे..इसमे पैसा आएगा.." रिकी ने अपनी सोच से बाहर आते हुए कहा



"लेकिन रिकी वो तो हम बॅंगलुर या हयदेराबाद के साथ भी कर सकते हैं.. फिर कोलकाता ही क्यूँ.." राजवीर ने फिर एक वाजिब सवाल उठाया



"बॅंगलुर नहीं चाचू, फाइनल बॅंगलुर में ही है, आज तक होम टीम फाइनल नहीं जीती, यह सब जानते हैं, तो बॅंगलुर में बॅंगलुर नहीं जीतेगी यह कोई भी सोच सकता है, और बॅंगलुर की टीम ज़्यादा मज़बूत है, इसलिए हम उसका भाव भी अच्छे से नहीं निकाल पाएँगे. कोलकाता की टीम में सब ठीक है पर वो धार नहीं है जो लोगों को चाहिए, इसलिए कोलकाता.. हयदेराबाद की मॅचस लास्ट एअर की मैने देखी, कोई भी हयदेराबाद की मॅच पे सट्टा कम खेलता है, या कोई खेलता है तो
हयदेराबाद के भाव में ज़्यादा फेरफार नहीं होता.. कोलकाता मुझे सेफ बेट लग रही है चाचू, और उसके भाव को गिराने के लिए भी एक आइडिया है.. एलेक्षन्स के चलते इस बार पहला राउंड यूएई में है, वहाँ कोलकाता की 5 मॅचस हैं, 1 मॅच जीतवाओ, 4 हरवाओ.. ठीक उसी वक़्त सीरीस का भाव निकालेंगे हम जिसमे कोलकाता का भाव कुछ नहीं होगा.. और तुमने कौनसी टीम कही थी.." रिकी ने एक बंदे की तरफ इशारा करके कहा



"पंजाब और हयदेराबाद.."



"पंजाब, दूसरी टीम फाइनल की, ऐसी टीम जो आज तक सेमी में भी नहीं आई, यूएई लीग में इसे सब मॅच जित्वाओ, 3र्ड स्पॉट पे पहुँचना है इसको, मतलब यह कि यूएई की सब मॅचस जीतने के बाद इंडिया में आके उसे सेक्यूर कर दो टॉप 4 में, लेकिन रन रेट के चलते वो 3 नंबर होनी चाहिए.."



"पंजाब ही क्यूँ.." राजवीर ने उसे टोक के कहा



"पंजाब आज तक सेमी में भी नहीं आई चाचू, सीरीस स्टार्ट होने के पहले ही उसके भाव में कुछ नहीं होगा, जिसका फ़ायदा हमे ही होना है.. सबसे कम भाव बॅंगलुर राजस्थान मुंबई और चेन्नई का होगा, जब मॅग्ज़िमम पैसा वहाँ जाएगा, तो कम से कम पैसा कोलकाता और पंजाब पे लगेगा.. हम सब का फ़ायदा कितना वो हम बाद में भी हिसाब कर सकते हैं, लेकिन चेन्नई बॅंगलुर में या मुंबई राजस्थान में हम को कुछ नहीं मिलने वाला.. और बॅंगलुर की पिच पे अगर फाइनल है तो

हाइ स्कोरिंग ही होगी, वो कॅल्क्युलेशन भी मेरे दिमाग़ में सेट है, फिलहाल मेरे हिसाब से यह टीम्स होनी चाहिए, विन्नर कोलकाता.. इसके अलावा अगर किसी और को कुछ हो दिमाग़ में तो बता सकता है.." रिकी ने अपनी बात ख़तम करके कहा



"हयदेराबाद, चेन्नई, राजस्थान, मुंबई सब जीत चुकी हैं और सब की तारीफ हुई थी.. बॅंगलुर कभी नहीं जीती लेकिन फिर भी मज़बूत रहती है पूरी सीरीस में, इन सब के अलावा हमारे पास यही दो टीम्स रहती है जिन्हे अंडरडॉग्स कह लो, " रिकी ने फिर अपनी बात कही और खामोश हो गया



रिकी की बात सुन हर कोई चक्कर खा गया, उसकी कॅल्क्युलेशन किसी को समझ नहीं आई लेकिन फिर भी किसी ने मना नहीं किया, काफ़ी देर खामोश रह रह के सब ने एक के बाद एक हामी भरी, जिससे राजवीर भी कन्विन्स हो गया..



"ठीक है रिकी, आइपीएल पूरा तुम हॅंडल करना, कितने रन, कितने विकेट्स.. हम यह सब कैसे करते हैं तुम्हे समझा दिया जाएगा." राजवीर ने अपना फ़ैसला सुनाया और बीसीसीआइ के बाप को फोन करने लगा
 
"आप मुझे बताओगे कि नहीं.." शीना ने रिकी से गुस्से भरी आवाज़ में पूछा.. रिकी इस वक़्त शीना के साथ ही बैठा हुआ था और उसे अपने हाथ से खाना खिला रहा था



"क्या बताऊ स्वीटहार्ट, वो तो समझाओ पहले.." रिकी अंजान बनते हुए बोला



"आप नहीं जानते मैं क्या कह रही हूँ.. अच्छा, सुनो, आज दोपहर को जो मेरे यहाँ बैठ के रो रहे थे, उसका क्या.. क्यूँ रो रहे थे, और सॉरी क्यूँ कहा मुझसे.." शीना ने मुद्दे की बात पे आके कहा



"अरे ऐसे ही, तुमको इस हालत में देख थोड़ा एमोशनल हो गया यार, नतिंग एल्स..." रिकी ने दबी हुई मुस्कान के साथ जवाब दिया



"अच्छा.. तो एमोशनल होके लोगों को सॉरी बोलते रहते हो आप.." शीना ने रिकी को आँख दिखाते हुए कहा



"देखो शीना.."



"आप देखो, अगर नहीं बताना तो ना बताओ, लेकिन यूँ बातें नहीं घूमाओ..और खाना वाना नहीं चाहिए मुझे, थॅंक यू.." शीना को इतना गुस्सा होते देख रिकी घबरा गया और शीना को बताने लगा उसके दोपहर के बिहेवियर का कारण



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"सो, आर वी कूल हियर मिस राइचंद.." विलसन की टीम के बंदे ने ज्योति से पूछा जो महाबालेश्वर में रिज़ॉर्ट के काम में थी



"यस.. वी आर पर्फेक्ट्ली फाइन विद थी...एनीवेस रिकी विल बी हियर टुमॉरो, सो ही विल हॅव दा फाइनल से ऑन दिस.." ज्योति ने एक पेपर को देख के कहा और सामने नज़र डाल के देखा तो ठीक वैसा ही काम चल रहा था जैसा वो लोग चाहते थे... महाबालेश्वर में काम शुरू होते ही राइचंद'स की खबर चारो दिशाओं में फेलने लगी, वैसे हिल स्टेशन्स पे खबर फेलना बड़ी आम बात ही है, पर आज से पहले इतने बड़े रिज़ॉर्ट के बारे में कभी किसी ने नहीं सुना था.. जहाँ लोकल होटेल्स वाले अपने बिज़्नेस के सामने इतना बड़ा कॉंपिटेशन देख घबरा गये थे, वहीं जो दूसरे कुछ रिज़ॉर्ट्स थे खुद को सेक्यूर करने के लिए राइचंद से बात करने लगे...



"नो नो, देयर ईज़ नो पॉइंट ऑफ आ पार्ट्नरशिप.. मैने आज तक कभी भागीदारी में काम नहीं किया, " अमर ने किसी को फोन पे जवाब देते हुए कहा



"राइचंद जी, यह सब ठीक है, पर आपके रिज़ॉर्ट के सामने हमारे रिज़ॉर्ट्स इतने बड़े नहीं है, हमारा घटा होने से अच्छा है कि आप कुछ करें इस बात का.."



"देखिए, अच्छा रुकिये.. यह लीजिए, रिज़ॉर्ट का मालिक आ गया, आप इसी से बात कर लीजिए.." अमर ने जब यह बात कही, सामने वाला थोड़ा चौंक सा गया, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं



"रिकी, यह लो बात करो.." अमर ने उसे फोन दिया और सारी बात उसे बता दी..



"ठीक है, एक काम करते हैं, मैं कल महाबालेश्वर आ ही रहा हूँ..हम मिलके बात करते हैं.." रिकी ने सामने वाले को फोन पे जवाब दिया



"थॅंक यू वेरी मच मिस्टर रिकी." सामने वाले की आवाज़ में पहली बार थोड़ी ताक़त दिखी थी



"अरे, कोई बात नहीं.. लोग एक दूसरे के काम आते रहेंगे उसी से यह दुनिया ठीक तरीके से चलेगी..मिलते हैं कल.." रिकी ने जवाब दिया और फोन कट कर दिया



"जब सीधे ना कर सकते हैं, तो कल मिलने में क्या फ़ायदा है रिकी.." अमर ने रिकी के फोन कट होते ही कहा



"नहीं डॅड, मना तो मैं भी कल करूँगा, लेकिन मेरे मना करने का तरीका आप से काफ़ी अलग होगा..." रिकी ने अमर को जवाब दिया जिसे सुन वहाँ बैठी सुहसनी और राजवीर के साथ स्नेहा भी चौंक गयी



"मतलब..." अमर ने आँखें छोटी करके कहा



"डॅड, मैं चाहता हूँ कि यह रिज़ॉर्ट भाभी के नाम पे बने, लाइक, भाभी इसकी मालकिन होनी चाहिए.. 100 % ..." रिकी के यह शब्द जैसे स्नेहा के कानो में किसी मधुर संगीत की तरह पड़े, वहीं बैठे बाकी के तीनो लोगों के नीचे से ज़मीन खिसकने लगी, राजवीर और स्नेहा एक दूसरे को ही घुरे जा रहे थे, जैसे पूछ रहे हो, क्या तुमने भी वही सुना जो मैने सुना... अमर को भी झटका लगा यह बात सुन के, लेकिन तीनो में से कोई कुछ कहता उससे पहले रिकी फिर बोल पड़ा



"डॅड, मोम चाचू... इसमे शॉक होने की कोई बात नहीं है प्लीज़.. मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्यूँ कि विकी भैया के बाद भाभी काफ़ी अकेली हो गयी हैं, आज अगर विकी भैया होते तो यह प्रॉजेक्ट देख काफ़ी खुश होते.. आप बताइए डॅड, अगर विकी भैया होते तो क्या आप उन्हे रिज़ॉर्ट में इन्वॉल्व नहीं करते.." रिकी ने धीरे ही सही, लेकिन एक ऐसा सवाल अमर के सामने रखा जिसे सुन अमर कुछ नहीं कह पाया



"आप भी जानते हैं डॅड, मैं भी जानता हूँ, के भैया हम से अच्छी तरह इस प्रॉजेक्ट को हॅंडल करते.. इन चीज़ो में उनको आज तक ना कोई मॅच कर पाया है और ना ही कोई आगे भी कर पाएगा.. अट लीस्ट मैं तो कभी नहीं डॅड, लेकिन अब विकी भैया नहीं है, डजन'ट मीन कि उनके अस्तित्वा को ही भूल जायें, भाभी कब तक उनकी यादों के सहारे यूँ अकेली ज़िंदगी काटेगी.. आक्सेप्ट इट डॅड, भैया के जाने के बाद या उनके रहते भाभी को इस घर में कितनी इंपॉर्टेन्स मिली है.. कुछ भी नहीं.. मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्यूँ कि अभी भी मानता हूँ कि विकी भैया हमारे साथ इस घर में मौजूद हैं, उनका शरीर नहीं तो क्या हुआ, लेकिन उनकी रूह अभी भी हम सब के साथ है.. और उनके सामने होते हुए भी हम ऐसा कैसे कर सकते हैं.." रिकी बोलता रहा और अमर उसे सुनता रहा



"रिकी, तुम जज़्बाती हो रहे हो, और रही इंपॉर्टेन्स की बात तो वो तुम ग़लत कह रहे हो.." सुहसनी ने उसे बीच में टोकते हुए कहा



"सच को छुपाया नहीं जा सकता मोम.. सब जानते हैं इस बात को.." रिकी ने सुहसनी को जवाब दिया तो सुहसनी को विश्वास नहीं हो रहा था कि रिकी को आख़िर क्या हुआ है आज



"खैर, मोम, डॅड, चाचू, यह सब बातें नहीं करना चाहता मैं.. मैने जो आपसे कहा वो मुझे ठीक लगा इसलिए कहा, आप बड़े हैं, आप फ़ैसला कीजिए के मेरी सोच सही है या ग़लत, आप हां बोलेंगे तभी रिज़ॉर्ट भाभी के नाम पे होगा नहीं तो नहीं.. मैं इतना बड़ा भी नहीं हुआ हूँ कि आपसे पूछे बिना कोई कदम लूँ.. अगर आप हां कहेंगे तो यह पेपर्स हैं, मैं इन्पे फिर साइन लूँगा भाभी के.. अगर आपकी ना है तो यह पेपर्स अभी के अभी जल जाएँगे.." रिकी ने तैश में आके पेपर्स टेबल पे रखे



रिकी को यूँ देख, उसकी बातें सुन सुहसनी और राजवीर के तो जैसे कानो में किसी ने गरम तेल डाल दिया हो, दोनो के मूह खुले के खुले रह गये थे , अमर ने ध्यान से रिकी की बातें सुनी और मन ही मन उन्हे टटोलने लगा, अमर सोच रहा था रिकी ने अभी जो भी कहा वो ग़लत नहीं था, लेकिन रिज़ॉर्ट स्नेहा के नाम कर देना, उसे भी ठीक नहीं लग रहा था, पर अगले ही पल यह ख़याल भी आया कि अगर ऐसा वो कर भी देता है तो कोई नुकसान नहीं है, अगर स्नेहा के पास रिज़ॉर्ट रहेगा तो भी क्या, मॅनेज तो रिकी और शीना ही करेंगे... अमर इसी कशमकश में चल रहा था, स्नेहा मन ही मन मिलने वाले इस तोहफे की गिनती में लगी हुई थी, कितने की प्रॉपर्टी उसके पास चलके आई है खुद, कितनी वॅल्यू आगे होगी...



"अरे वाह, यह क्या हो रहा है, लगता है किस्मत एक साथ मेहेरबान हो रही है, पहले राजवीर की जायदाद, फिर मेरे प्यारे ससुर की मौत के बाद और अब यह रिज़ॉर्ट.. मेरी ज़िंदगी सेट है.. पर यह अचानक रिकी इतना मेहेरबान क्यूँ हुआ है मुझ पे.. आज से पहले तो ठीक से बात भी नहीं करता था, लेकिन आज यह.. कुछ गड़बड़ तो नहीं है...नहीं नहीं, इसमे क्या गड़बड़, विक्रम के नाम से एमोशनल हो गया है, होने दो, मेरा तो फ़ायदा ही है ना.. ईयीई .." स्नेहा अंदर ही अंदर खुद से बातें करने लगी



"बहू, तुम्हारी क्या विचार धारा है इस मे.." अमर ने स्नेहा को देख के कहा जो अपने ही ख़यालों में खोई हुई थी..



"बहू..." अमर ने फिर थोड़ा उँची आवाज़ में कहा जिसे सुन स्नेहा अपने ख़यालों से बाहर आई



"ज.ज.ज.ज. जीई पापा.." स्नेहा ने हकला के कहा



"तुम मॅनेज कर पओगि रिज़ॉर्ट को.." अमर ने स्नेहा से पूछ के एक नज़र फिर रिकी की तरफ घुमाई और फिर सुहसनी और राजवीर को देखा



"पापा, आप बड़े हैं.. आप सब लोग को जो भी ठीक लगे, वैसे मैं तो मॅनेज नहीं करूँगी, नाम चाहे किसी का भी हो, मॅनेज तो देवर जी और शीना ही करेंगे.." स्नेहा ने बड़ी चालाकी से यह बात कही, क्यूँ कि वो सीधे हां कहती तो शायद सब को वो जवाब खटकता, और ऐसा जवाब देके उसने अमर को ख़यालों को और मज़बूती दे दी




"मुझे खुशी है बहू तुम्हारी सोच जान के..ठीक है, आओ इन पेपर्स पे साइन कर दो.." अमर ने स्नेहा से कहा और पेपर्स उसकी तरफ बढ़ा दिए.. यह पल ऐसा था जहाँ स्नेहा के दिमाग़ ने काम करना बिल्कुल बंद कर दिया था, पिछले कुछ दिनो में इतनी दौलत अपने नाम पे होते देख वो बौखला चुकी थी.. पैसे की कमी उसे नहीं थी वैसे, पर अपने नाम पे इतना पैसा सोच के, उसके दिल की धड़कने किसी डर्बी के घोड़े की तरह तेज़ भाग रही थी जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.. स्नेहा ने पेपर्स को हाथ में लिया और उसे पढ़ने लगी..



"इसमे क्या पढ़ रही हो.." सामने बैठे राजवीर ने कहा , उसकी ठंडी और कड़क आवाज़ सुन स्नेहा सकपका गयी



"हां बहू, रिकी ने पेपर्स बनवाए हैं, इसमे पढ़ना क्या.. " अमर ने राजवीर का समर्थन करते हुए कहा



"नही पापा, वो तो बस ऐसे ही.. पेन दीजिए प्लीज़.." स्नेहा ने राजवीर से कहा



राजवीर से पेन लेके स्नेहा ने रिकी के कहे अनुसार साइन करना चालू किया और हर एक काग़ज़ पे साइन करने लगी..


 
"लीजिए.." स्नेहा ने रिकी की तरफ पेपर बढ़ाए ही थे कि रिकी ने फिर कहा



"चाचू, विटनेस पे साइन कर लीजिए आप भी प्लीज़..." रिकी ने पेपर्स राजवीर के आगे रख के कहा



"अरे मैं कैसे, भाई साब से ले लो.." राजवीर ने अमर की तरफ देखते हुए कहा



"ठीक है यार तुम कर लो... एक ही बात है.." अमर ने बड़े कॅष्यूयली कहा और रिकी उससे भी साइन लेने लगा...



"डन चाचू, बस दो साइन्स ही हैं.." रिकी ने पेपर्स अपने पास रख के कहा



"भाभी.. कंग्रॅजुलेशन्स, रिज़ॉर्ट आपका है, जैसा आपको बनवाना है, जैसा आप को चाहिए, वैसा करवाईए तो हमे ज़्यादा खुशी होगी.." रिकी ने स्नेहा को बधाई दी और उसे हाथ मिलाया



"नही नही देवर जी.. वो तो आप के हिसाब से ही बनेगा.. साथ मिलके काम करने में जो मज़ा है, वो अकेले में कहाँ.." स्नेहा ने रिकी के हाथों पे अपने हाथ दबा के कहा जिसे रिकी ने इग्नोर किया और वहाँ से निकल के शीना को न्यूज़ देने गया



"पता नही, यह लड़का क्या कर रहा है.." सुहसनी ने ज़ोर से यह बात कही जिसे स्नेहा और राजवीर के साथ अमर भी सुन गया लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा और पेर पटक के सुहसनी अपने कमरे की तरफ निकल गयी



"राजवीर, तुम्हारा क्या कहना है... रिकी ने सही किया..." अमर ने राजवीर में अपना समर्थन खोजना चाहा



"पता नहीं भाई साब, कुछ फ़ैसलों के लिए सही या ग़लत सोचा नहीं जाना चाहिए.. रिकी ने कुछ सोचा होगा तो वो उसकी सोच है, और ज़रूरी नहीं हर किसी की सोच एक सी हो.. देखते हैं, आगे जाके पता लग ही जाएगा हमे यह फ़ैसला सही है या नहीं.." राजवीर ने अमर को हँस के जवाब दिया जिसे सुन अमर फिर एक असमंजस में पड़ गया




"ह्म्म, तो गिफ्ट दे दी भाभी को आपने आख़िर.." शीना ने रिकी की बात सुन के उसकी बात का जवाब दिया



"शीना, डॉन'ट वरी.. एक फ़ैसला तो मैं ले सकता हूँ ना.." रिकी ने सरलता से शीना का जवाब दिया



"ठीक है, आप को जो ठीक लगे, अब जब काम कर दिया तो मुझे बताने भी क्यूँ आए.. " शीना ने अपनी बात कह के मूह फेर लिया



"शीना... मेरे लिए हुए फ़ैसले का साथ नहीं दोगि.." रिकी ने उसके चेहरे को अपनी तरफ घुमा के पूछा



"भाई, अब पटाओ नहीं, दिस वाज़ नीडलेस, इतने ज़्यादा एमोशनल कब से हुए आप.." शीना का बनावटी गुस्सा कम होने लगा था वो रिकी ने भी देख लिया



"नो मोर डिस्कशन ऑन दिस, बस हां या ना कहो.." रिकी ने हँस के शीना से पूछा



"क्या कहूँ... अब हो गया तो रहने देते हैं, हां या ना नहीं कहूँगी मैं.." शीना का बचा कुचा गुस्सा भी पिघल गया



"चलो अब मैं जाउ.." रिकी ने आगे बढ़ के शीना के मस्तक को चूम के कहा



"कहाँ.." शीना ने एका एक अपना सर उठा के रिकी को देखा और फिर अगले ही पल उसे याद आया



"ओह यस... शिट यार, हां महाबालेश्वर, वीकेंड है..." शीना ने उदास होके कहा



"इसमे उदास क्यूँ.. आइ विल बी बॅक जल्दी, डोंट वरी" रिकी ने शीना के हाथों को अपने हाथ में लेते हुए कहा



"क्या खाक...ऐसे जवाब नहीं दो, आइ नो सनडे ईव्निंग तक आओगे.. फ्राइडे ईव्निंग से लेके सनडे ईव्निंग... दो दिन आप दूर होगे यार, प्लीज़ नही जाओ ना..." शीना ने मासूम सा चेहरा बना के कहा



"ठीक है, नहीं जाता, एनितिंग फॉर माइ प्रिन्सेस.." रिकी फिर शीना से गले लगने लगा



"ओह हेलो, चलो निकलो... आंड प्लीज़ देखना सब जैसा हम ने सोचा है वैसा ही बने..अगर कुछ भी उल्टा हुआ ना, ज्योति को छोड़ो, पहले आपको कच्चा खा जाउन्गी मैं..हिहीही" शीना की हसी छूट गयी और फिर रिकी भी अलविदा कहके महाबालेश्वर की तरफ निकल गया




"राजिवर, वैसे तुम्हे क्या लगता है, रिकी ने यह सब क्यूँ किया.." स्नेहा ने राजवीर से पूछा जब दोनो होटेल हिल्टन में मिले... जब से उनके शारीरिक संबंध बने तब से यह लोग घर पे कम और होटेलो में ज़्यादा चक्कर काटने लगे थे



"वो ठीक है, पर पहले ससुर जी, फिर चाचू और अब सीधा नाम.. और कितना नीचे लाओगी मुझे" राजवीर ने जवाब दिया



"अब तो तुम्हारे लंड के नीचे आ गयी हूँ मेरे राजा.. इज़्ज़त और कितनी करूँ.. जवाब दो ना, ऐसा क्यूँ किया होगा रिकी ने.." स्नेहा मुद्दे से भटकना नहीं चाहती थी



"पता नहीं, रिकी की सोच रिकी ही जाने, लेकिन तुम्हे तो खुश होना चाहिए, इतनी जयदाद की तुम अकेली मालकिन..क्या करोगी इन सब पैसों का.." राजवीर ने स्नेहा को अपनी गोद में खीचते हुए कहा और स्नेहा भी हसी खुशी उसकी गोद में जाके बैठ गयी




"उम्म्म, बस पूरा दिन यही करते रहो.." स्नेहा ने राजवीर से सिसक के कहा जब उसने अपनी गान्ड पे उसका खड़ा लंड महसूस किया



"तू चीज़ ही ऐसी है मेरी बहू रानी... अब मैं क्या करूँ तू ही बता.." राजवीर ने अपना एक हाथ उसके चुचों पे रख के कहा और उन्हे प्यार से सहलाने लगा



"ओह मेरे चोदु ससुर.. ज़रा रूको भी.. और मैं अकेली कहाँ, मेरा भाई भी तो है मेरे साथ..उसका ध्यान भी तो मैं ही रखूँगी" स्नेहा ने राजवीर के हाथों को अपने चुचों पे ज़ोर से दबा दिया



"अरे, हां वो है कहाँ आज कल.. आता नहीं क्या तुमसे मिलने.. " राजवीर की यह बात सुन स्नेहा को समझ नहीं आया कि वो क्या जवाब दे



"एक काम करो, लगाओ उसे फोन, बात तो कर लूँ, भाई साब है कहाँ आज कल.." राजवीर ने फिर स्नेहा से कहा जिसे सुन स्नेहा के दिमाग़ में ख़तरे की घंटियाँ बजने लगी




उधर रिकी शाम ढलते ढलते महाबालेश्वर पहुँच गया, सब से पहले जाके साइट पे देखा तो काम चालू हो चुका था और रात को कुछ नुकसान ना हो इसलिए कुछ आदमी वहाँ सेक्यूरिटी के लिए रखे गये थे.. यह सब देख रिकी को अच्छा लगा और मुस्कुरा के महाबालेश्वर वाले घर की तरफ निकल गया... वहाँ पहुँचने के सबसे पहले नज़र उसने सेक्यूरिटी गार्ड्स की तरफ डाली.. शीना के हमले के बाद घर के बाहर तीन गार्ड्स थे, दो गार्ड्स पीछे की तरफ थे और दो गार्ड्स उपर टेरेस पे खड़े रहते, क्यूँ कि शीना का हमलावर बाहर से अंदर नहीं घुसा था, तो सीधी बात है कि उपर से ही आया होगा.. इसलिए ज्योति के वहाँ आने से पहले ही रिकी ने यह सब बंदोबस्त करवाया था.. टेरेस पे नियुक्त दो गार्ड्स नीचे सुबह को उतरते और शाम होने से पहले वापस उपर चले जाते, और इसी बीच घर पे कोई मौजूद हो तो हर एक घंटे में एक गार्ड हर एक फ्लोर के चक्कर लगाएगा..



"गुड ईव्निंग सर..." सेक्यूरिटी गार्ड ने रिकी को सलाम ठोकते हुए कहा



"ह्म्‍म्म, ऑल गुड..." रिकी ने आस पास नज़र घूमाते हुए कहा और एक नज़र उपर भी देखा



"यस सर, डॉन'ट वरी..आप के मुताबिक ही हम पहरा दे रहे हैं" सेक्यूरिटी गार्ड ने बड़े ही कड़क अंदाज़ में जवाब दिया



"ओके, और जो उपर टेरेस वाले हैं उन्हे भी नीचे बुलाओ.." रिकी ने अपना मोबाइल निकाला और कुछ देखने लगा.. नीचे खड़े सेक्यूरिटी गार्ड ने उपर वालों को फोन किया और नीचे आने को कहा.. 1 मिनिट भी नहीं हुआ था कि तीनो के तीनो रिकी के सामने खड़े थे



"कुछ अजीब हरकत दिखी तुम्हे इन दिनो" रिकी ने तीनो से पूछा



"नो सर, ऐसा कुछ नहीं है..जब से हम यहाँ आए हैं, सब कुछ सामान्य है..." एक गार्ड ने आगे आके जवाब दिया



"ह्म्‍म्म्म, ठीक है.. एक काम करिए , आप तीनो और पीछे जो दो लोग हैं, उन्हे आप बुला लीजिए, आप चाहें तो आज छुट्टी पे जा सकते हैं, सनडे आइए आप लोग, तब तक मैं हूँ यहाँ" रिकी ने उन्हे देख फिर आस पास नज़र घुमाई और उनसे बात करने लगा..



कुछ ही देर में पाँच सेक्यूरिटी गार्ड उसके सामने आए और उससे इजाज़त लेके निकलने लगे..



"अरे रुकिये, घर जाओगे तो खाली हाथ जोगे क्या..यह लो, कुछ लेते हुए जाओ घर वालों के लिए" रिकी ने उन लोगो के हाथ में कुछ पैसे दिए और खुद अंदर चला गया



रिकी ज्योति को इनफॉर्म करके नहीं आया था, इसलिए अंदर जाके उसे सर्प्राइज़ करने का सोचा.. मैं हॉल में एंट्री लेते ही किचन के ठीक पास वाले कमरे की लाइट्स जल रही थी, जिससे रिकी ने अंदाज़ा लगा लिया कि ज्योति उधर होगी.. रिकी धीरे धीरे चल के दरवाज़े के पास पहुँचा तो देखा दरवाज़ा बंद था, लेकिन लॉक्ड नहीं था.. उसने हल्के से दरवाज़े को धकेला और सर्प्राइज़ चिल्लाने ही वाला था कि सामने का नज़ारा देख के उसके होश ही उड़ गये
 
"अरे अरे मेरे ससुर जी... भाई से क्या बात करनी जब भाई की बहेन आपके मस्ताने लंड पे झूल रही है.." स्नेहा ने राजवीर की बात को नकारने का सोचा



"बहेन हो या बहू.. रहोगी तो रंडी ही तुम स्नेहा..." राजवीर ने भी अपने लंड को स्नेहा की गान्ड पे दबा के जवाब दिया और स्नेहा की गर्दन पे जीभ घुमा के उसे चाट लिया



राजवीर के लंड की अकड़न महसूस करके स्नेहा की सिसक सी निकली "आहहूंम्म्म...." , जब राजवीर ने यह देखा तो वो अपने जोश को थोड़ा और बढ़ाने लगा और अपने लंड को होल होल से स्नेहा की रेशमी साड़ी के उपर से ही उसकी गान्ड को घिसने लगा.. राजवीर के लंड ने हुंकार भरना शुरू ही किया कि स्नेहा मदहोश सी होने लगी थी और उसी भावना में बहकी स्नेहा ने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी गर्दन को हल्के से पीछे ले गयी, राजवीर यह देख खुश होने लगा कि आज वो जितना चाहे स्नेहा को उतना तडपाएगा, राजवीर ने हल्के से अपनी जीभ उसकी गर्दन से हटा के उसके गालों पे रखी और उसके गालों को अपनी ज़बान से चाट चाट के गीला करने लगा.. स्नेहा पहले तो चाहती थी कि राजवीर प्रेम की बात को भूल जाए, लेकिन अब वो खुद भी इस मज़े में डूबने लगी थी, उसने अपनी गान्ड की रगड़ान को थोड़ा और तेज़ कर दिया जिससे उसकी साड़ी हल्के से उसको चुचों के उपर से खिसकने लगी जिसे देख राजवीर ने मौका ना गवाते हुए अपने हाथों को स्नेहा के चुचों पे रखा और हल्के हल्के से उन्हे ब्लाउस के उपर से ही सहलाने लगा



"आहाहह ससूरर जेजीईईई..." स्नेहा की आँखें बंद अभी भी बंद थी और वो बस राजवीर के कड़क हाथों और कड़क लंड के मज़े ले रही थी..



राजवीर का लंड स्नेहा के चुतड़ों की सेवा में लगा हुआ था, उसके हाथ स्नेहा के चुचों पे थे और उसकी जीभ स्नेहा के गालों पे.. स्नेहा ये तीन तरफ के मज़े में डूबी हुई थी और बस सिसक रही थी, जब की राजवीर आज फ़ुर्सत में स्नेहा के मज़े लेने के मूड में था, इसलिए उसने स्नेहा के ब्लाउस को धीरे धीरे कर खोला और स्नेहा के शरीर से अलग कर दिया.. ब्रा में आते ही स्नेहा की मस्ती और बढ़ गयी और एक ज़ोर की आवाज़ "आअहुउफफफफफफ्फ़" से राजवीर की मस्ती की नदी में डूबने को तैयार हो गयी... ऐसी तड़प देख राजवीर ने भी अपना दूसरा काम किया और अपना दूसरा हाथ ले जाके स्नेहा के दूसरे चुचे को हाथ में थामा और दोनो हाथों से स्नेहा के दोनो चुचों को हल्के हल्के मसल्ने लगा और साथ ही उसके गालों को चाटना और लंड को उसकी गान्ड पे रगड़ना जारी रखा



"आआहह ससुर जी.... उईईइ माआहहह.." स्नेहा ने बस इतना ही कहा और अपने हाथों से अपने चुचों को ब्रा के बाहर निकाल दिया और राजवीर के हाथों के उपर अपने हाथ रख के चुचों पे ज़ोर बढ़ा दिया, लेकिन राजवीर बिल्कुल उतावला नहीं था इसलिए उसने स्नेहा के हाथों को हटाया और अपने अंगूठों से स्नेहा के निपल्स को छेड़ने लगा, राजवीर के हाथों में अपने निपल्स महसूस करते ही स्नेहा के निपल पत्थर जैसे कड़क हो गये



"अहहहा....पापा उम्म्म्ममम...." स्नेहा ने फिर सिसकी भरी और अपने मूह को घुमा के राजवीर की तरफ घूम गयी... स्नेहा के चेहरे को अपने सामने देख राजवीर की आँखें भी नशे के समुंदर में डूबने लगी, स्नेहा का गोरा चिकना चेहरा, उसके चेहरे पे काम वासना सॉफ सॉफ दिख रही थी, काली ब्रा से हवा में झूल रहे उसके सफेद गोरे चुचे और उनका उभार देख राजवीर ने तुरंत निपल छोड़ दिया और अपने हाथों से उसके चुचों को ऐसे गूँथने लगा जैसा आटा गूँथा जाता है... स्नेहा ने हल्के से अपनी आँखें खोली जो काम वासना में लाल हो चुकी थी, यह पहला मौका था जब दोनो की आँखें एक दूसरे से टकराई थी, स्नेहा के चेहरे से लेके उसका पूरा शरीर काम वासना की नदी में गोते लगा रहा था, एक पल दोनो ने खुद को देखा और हल्के हल्के से एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे..




"उम्म्म्ममाहाहहहहहा ससुर जीएआहह.....उम्म्म्ममम उफफफ्फ़........" स्नेहा राजवीर के होंठों को चुस्ती हुई बोलने लगी, इतने में राजवीर ने अपने हाथों को उसकी ब्रा के स्ट्रॅप पे रखा और ब्रा हटा के उसके पहाड़ी चुचों को ब्रा की क़ैद से आज़ाद कर दिया, स्नेहा के चुचे राजवीर की छाती में धसे जा रहे थे.. दोनो एक दूसरे को चूम रहे थे, राजवीर ने अपने हाथ स्नेहा की कमर पे रखे और उसे पकड़ के धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा, जिससे स्नेहा की चूत वाला हिस्सा राजवीर के लंड पे घिसने लगा



"अहाहा..मेरे हरामी ससुर अहहहहाहा...बेटी चोद साले उफफफ्फ़....." स्नेहा ने अपने होंठों को अलग किया और आनंद से अपनी गर्दन पीछे कर दी, जिससे उसके चुचों का उभार राजवीर की आँखों के सामने आया और राजवीर ने भी बिना वक़्त गँवाए उसके चुचों को अपने मूह में भरा और एक एक कर चूसने में लग गया.. जब एक निपल उसके मूह में होता तो दूसरा उसके अंगूठे में और स्नेहा इस आनंद की शीत ल़हेर में बहने लग गयी, अभी राजवीर ने कुछ भी नहीं किया था और स्नेहा झड़ने को आ गयी थी



"आआहा ससुर जी.... हाँ और ज़ोर से अहहहा यस प्लीज़ आहहाहा.... पापा अहहाहा मैं आ रही हूँ अहाहहा...." स्नेहा राजवीर के मूह को अपने चुचों पे दबाने लगी और उसके बालों में हाथ घुमाने लगी...



"अहहाहा हां पापा अहहाहा हाआँ आइए अहहहाहा चुसिये अपनी बहू अहहाहा के चुचे अहहहः चुचियों को अहाहाा...अहहहाहा नूऊऊओ" स्नेहा झड के चिल्लाने लगी , लेकिन राजवीर अभी भी अपनी उसी हरकत में लगा हुआ था..




"अहहाहा मेरे भडवे बाप सहहहाहा...." स्नेहा ने अपनी गर्दन आगे की ओर जंगली जैसे राजवीर के होंठों को चूसने लगी... काफ़ी देर तक होंठों को चूस के स्नेहा उसकी गोद से उठी और अपने साड़ी का पेटिकोट उतार के अपनी कच्छि में आ गयी.. राजवीर बस उसकी चूत की लकीर को ही देखता रहा जो बिल्कुल गीली लग रही थी, स्नेहा आगे बढ़ी और राजवीर की जीन्स के बटन पे हाथ रख के उसे खोल दिया और नीचे खिसकाने लगी... राजवीर की जीन्स उतर गयी और देखते ही देखते स्नेहा ने उसके बॉक्सर को भी उसके शरीर से अलग कर दिया.. राजवीर का लंड स्नेहा की आँखों के आगे ऐसे खड़ा था जैसे किसी को सलामी दे रहा हो



"उम्म्म अहहाहा...." स्नेहा ने अपने होंठों पे जीभ फेरी राजवीर के लंड को देख के.. स्नेहा एक हाथ अपने चुचे पे ले गयी और उसे हल्के से दबा दिया और दो कदम पीछे चली गयी.. राजवीर के सामने स्नेहा अब सिर्फ़ पैंटी में थी, जिसे देख राजवीर ने भी अपनी शर्ट उतार दी.. राजवीर की चौड़ी छाती पे हल्के घुंघराले बाल, उसके अब और नीचे सबसे अहेम चीज़, उसका सलामी देता हुआ लंड देख स्नेहा की लाल आँखें चमक उठी और देखते ही देखते वो राजवीर के सामने धीरे धीरे अपने बदन को हिलाने लगी और पोले डॅन्स की आक्टिंग करने लगी, स्नेहा जब भी पीछे घूमती, तो अपनी गान्ड को किसी रंडी की तरह मटका देती और फिर आगे पलट के अपने चुचों को अपने ही हाथों से मसल्ति.. धीरे धीरे स्नेहा अपनी पैंटी को हल्के हल्के नीचे खिसकाने लगी और राजवीर को तड़पाने के लिए फिर उपर कर लेती... तड़पाते तड़पाते स्नेहा ने धीरे धीरे कर अपनी पैंटी उतार दी और उसे राजवीर की तरफ हवा में उछाल के फेंक दी, जिसे राजवीर ने कॅच किया और अपनी नाक से उसकी चूत की महक लेने लगा..





"अहहहा.. मेरे चोदु ससुर की थरक नयी उँचाई पे है आज तो.." स्नेहा ने दो कदम आगे बढ़ के कहा



"क्या करूँ, आज मेरी बहू की रंडी पन्ति भी तो एक अलग ही उँचाई पे है.." राजवीर ने बैठे बैठे ही जवाब दिया और स्नेहा की कच्छि को अपने लंड पे लपेट दिया




"हाहाहा... हां, उम्म्म्म...." स्नेहा राजवीर के पास आई और नीचे झुक के उसके लंड पे हाथ फेरने लगी...राजवीर ने भी अपने हाथ को स्नेहा के बालों में डाला और उसे सहलाने लगा.. स्नेहा इशारा समझ गयी और झुक के राजवीर के टट्टों को चूसने लगी और हाथों से लंड को उपर नीचे करने लगी..



"अहहहा...उम्म्म स्लूर्र्रप्प्प आहाहहहहा.... अहहहः उम्म्म्म उम्म्म अहहाहा....स्लूर्र्रप्प्प अहहहा..." स्नेहा टट्टों को चुस्ती और राजवीर की आँखों में देखते देखते लंड को भी हिलाती रहती, राजवीर आराम से बस स्नेहा के बालों में हाथ फेरता और उसकी चुसाइ का मज़ा लेता...


"उम्म्म उम्म्म अहहहा स्लूर्रप्प्प्प्प अहहाहा.... चाचा जीए अहहाहहहहह अहाहौमम्म्मममम अपने भतीजे की अहहहाहा उम्म्म ससलुर्र्रप्प्प्प अहाहा...बीवी को अहहहा उईईईईई ओमम्म्मम..चोद्ते हो अहहहहा..... " स्नेहा अटक अटक के बोलती और चुसाइ के मज़ा लेती और देती.. स्नेहा ने धीरे धीरे से शुरू कर अपने हाथों की गति को बढ़ाया और ज़ोर ज़ोर से राजवीर के लंड को हिलाने लगी और उपर नीचे हो रहे उसके टट्टों को मूह में लेके कुतिया की तरह काटने लगी... जब राजवीर को लगा अब वो नहीं रुक पाएगा तो उसने स्नेहा को उपर अपने पास खींचा और उसके होंठों को चूसने लगा...




"अहाहहा तू तो मेरी भतीजी है ना अहाहहा... मेरी शीना रानी अहाहहा उम्म्म्मम सस्सूउप्प्प्प्प्प्प अहाहाआ....." राजवीर स्नेहा के होंठों पे ऐसा टूटा जैसे स्नेहा कहीं भागी जा रही थी, और उसके इस जंगलीपन में स्नेहा ने भी उतना ही साथ दिया.. होंठ चूस्ते चूस्ते राजवीर ने स्नेहा को अपनी गोद में उठाया और पास पड़े बिस्तर पे फेंक दिया




"अहाहा धीरे ना चाचू अजाहहहा.." स्नेहा ने किसी रंडी जैसी अदा में कहा... बिस्तर पे गिर के स्नेहा ने बिना देर किए अपनी टाँगें खोली और अपनी भीगी हुई लाल चूत का दाना राजवीर के आँखों के सामने प्रदर्शित कर दिया.. राजवीर ने लपक के अपनी जीभ को उसकी भीगी हुई चूत पे रखा ही था के स्नेहा दूसरी बार झड गयी..





"अयाया फुक्ककककक....." स्नेहा चिल्लाई और राजवीर भी उसका पूरा पानी पीने लगा...




"अहहहा सक मी ना चाचू अहाहहा.. शीना अहहहाहा ही तो हूँ मैं अहहहाहा.." स्नेहा ने राजवीर के चेहरे को अपनी चूत में धसाते हुए कहा और राजवीर भी कुत्ते की तरह उसकी चूत को चाटने में लग गया..





"अहाहहा..मेरी शीना रानी अहाहा स्लूर्र्रप्प्प अहहहा.... चाचू से चुदवाती है अहहहहा..... मेरी रंडी भतीजी अहहहाहा स्लूर्र्रप्प्प्प्प उम्म्म्मममम..." राजवीर का आपा खोने लगा था, वो फिर उतावलेपन में आ गया था अब





"हां चाचू अहहहहा... अपनी भतीजी को अहहहहाहा अनूऊऊऊ चोदो ना जीभ से ही अहहहा... कैसी लगी अहहहहा मेरी चूत चाचू आपको अहाहहाहा...." स्नेहा आँखें बंद किए हुए मज़े ले रही थी और अपने हाथों से अपने चुचों को मसल रही थी


 
"अहहाहा मेरी रंडी भतीजी.. चाचू अहहहाहा अभी तुझे लंड से चोदेगा आहाहहा उम्म्म.." राजवीर अपनी जीभ स्नेहा की चूत के चारों तरफ घुमाने लगा और तरीके से उसे गीला करने में लग गया




"अहहाहा चाचू चोदो ना अहहहा... मैं भी देखूं अहहा कितना दम है मेरे अहहाहा उफफफ्फ़ बूढ़े चाचू में अहहहहा..." स्नेहा ने राजवीर को ललकार के शायद अच्छा नहीं किया.. स्नेहा की यह बात सुन राजवीर ने चूत चुसाइ छोड़ दी और बिस्तर पे चढ़ के स्नेहा को अपने उपर खींच लिया. जब तक स्नेहा को कुछ समझ आता, तब तक राजवीर ने स्नेहा को अपने उपर बिठा लिया था और नीचे से उसकी चूत पे अपने लंड को सेट कर दिया... स्नेहा को समझते देर ना लगी और धीरे धीरे कर उसके लंड पे हिल्के चुदने लगी..




"आअहह चाचू अहाहहा फक मी अहहाहा फक युवर स्लट नाइस ना अहहहहाआ... अपनी रंडी भतीजी अहहहाहा को चोदो ना अहहहा...ज़ोर से चाचू मेरे अहहहहाआ....." स्नेहा चुदते चुदते बोलने लगी....





"अभी तू दम देख तेरी माँ को चोदु अहहहाआ..." राजवीर ने तैश में आके कहा और स्नेहा के एक चुचे को अपने मूह में लिया और नीचे से अपने लंड को तेज़ी से अंदर बाहर करने लगा...




"आआहः धीरे धीरे अहहहाहा फक्क्क अहहहा..." स्नेहा चिल्लाने लगी..




"धीरे क्यूँ मेरी रंडी भतीजी अहाहाआ.. दम देखना था ना चाचू का.. यह ले तेरी माँ को चोदु साली अहहहाआ..." राजवीर के जैसे ईगो को ठेस पहुँची थी





"अहहः धीरे धीरे चाचू अहाहा. मेरी माँ को तो अहहाहा फक चोद ही चुके हो ना अहाहहाअ.. यस फास्टर चाचू अहहहाहा फास्टर......" स्नेहा भी अब राजवीर के लंड की तेज़ी के मज़े लेने लगी





थप्प्प्प्प. थाप्प.... चूत से लंड के टकराने की आवाज़ों से रूम गूंजने लगा था, स्नेहा किसी रंडी की तरह चुद रही थी और राजवीर किसी मशीन की तरह चोदे जा रहा था..





"आहहा चाचू आइ आम कमिनंग अहहहाआ.... हाँ मैं आई अहहहहा......." कहके स्नेहा तीसरी बार झड़ी और निढाल होके राजवीर के सीने पे पस्त हो गयी... राजवीर ने भी अपने धक्के तेज़ कर दिए और जोश से स्नेहा की पस्त हुई चूत को रगडे जा रहा था...





"अहहाहा क्या हुआ मेरी रंडी भतीजी अहहहहा घुटने टेक दिए ना उफ़फ्फ़ अहहहा....." राजवीर ने स्नेहा के चेहरे को चूम के कहा जिसका जवाब स्नेहा ने कुछ नहीं दिया और बस राजवीर के होंठों को चूसने लगी....




"अहहहहाअ.. मैं आ रहा हूँ मेरी कुतिया भतीजी अहाहहाअ..." राजवीर ने जैसे ही यह कहा, स्नेहा उसके लंड से खड़ी हुई और राजवीर के लंड को मूह में ले लिया और राजवीर भी अपने धक्के स्नेहा के मूह में लगाने लगा....





"उम्म्म्मम उम्म्म्म गुणन्ञणन् गुणन्ञणन् अहहहा... उम्म्म्मम गुणन्ञनननणणन् गन गाहहहहाआ..." स्नेहा राजवीर के लंड के धक्कों को अपने मूह महसूस करती हुई आवाज़ें निकालने लगी





"अहाहहा मैं आ अरहा हूँ मेरी शीना रानी अहहहहा... उफफफफ्फ़......." राजवीर ने चीख के कहा और एक ही झटके में स्नेहा के मूह को अपने माल से भरने लगा.. स्नेहा भी रंडी की तरह उसका सारा माल अपने अंदर निगलने की कोशिश करने लगी.....












"क्या हुआ भैया..खाना अच्छा नहीं है.." ज्योति ने सामने बैठे रिकी से कहा जो कहीं खोया हुआ बैठा था...



"ऊह.. ना, नहीं नहीं.. नतिंग लाइक दट" रिकी ज्योति की आवाज़ सुन होश में आया



"तो फिर, अरेंज्मेंट अच्छा नहीं है..." ज्योति ने आस पास नज़र घुमा के कहा




दरअसल, ज्योति ने घर सबसे बड़े और उपर वाले फ्लोर के एक कमरे में डेकोरेशन किया हुआ था, थोड़े से कॅंडल्स जलाए थे, कुछ बेलून्स और रूम के बीचो बीच दीवार पे स्प्रे पैंट से "हॅपी बर्तडे तो मोस्ट केरिंग आंड लविंग ब्रदर इन वर्ल्ड.." लिखा हुआ था... केक के लिए छोटा सा लेकिन काफ़ी सुंदर वाइट चॉक्लेट भी ज्योति ने लाके रखा था... और साथ ही शॅंपेन की बॉटल...




"नहीं ज्योति.. दिस ईज़ दा बेस्ट बर्तडे गिफ्ट फॉर मी.." रिकी ने इस बार अपनी आवाज़ को कंट्रोल करके जवाब दिया




जब रिकी घर आया था, तो ज्योति को पता नहीं था कि वो आ चुका है इसलिए वो लापरवाही से कपड़े बदलने में लगी हुई थी, लेकिन रिकी ने जैसे ही दरवाज़ा खोल कि ज्योति को सर्प्राइज़ देने का सोचा, सामने अध नंगी अवस्था में खड़ी ज्योति और उसके सुंदर गोल मादक चुतड़ों को देख, रिकी की सिट्टी गुल हो गयी थी.. ज्योति बेख़बर सी थी इसलिए वो आराम से अपने कपड़े बदलने में लगी हुई थी, और रिकी के देखते ही देखते, ज्योति के सुंदर गोल से चूतड़ उसकी कच्छि से आज़ाद हो गये.. रिकी का मूह खुला का खुला रह गया, लेकिन जल्द ही अपने होश में आके रिकी दबे पाँव पीछे चला गया और घर के बाहर जाके 5 मिनिट तक खुद को संभालने की कोशिश करने लगा...ज्योति जब कपड़े बदल रही थी, सामने रखे हुए आईने में उसने रिकी को देख तो लिया था, लेकिन फिर भी उसने कुछ रिक्ट नहीं किया और चुपके से मुस्कुरा दी... ज्योति ने जब देखा के रिकी वहीं का वहीं खड़ा हुआ है, तब उसने एक कदम आगे बढ़ के अपने चुतड़ों के नंगे दर्शन भी रिकी को करवा दिए और मन ही मन उसने तय कर लिया, इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा उसे रिकी के करीब जाने का... "आज या तो इस पार, या तो उस पार..." ज्योति ने खुद से कहा और कपड़े बदल के कमरे के बाहर आई..




"भैया, बताओ भी.. ऐसे खामोश रहोगे तो मुझे तो यह लगेगा ना कि शायद खाना अच्छा नहीं है या यह तैयारी आपको अच्छी नहीं लगी..." ज्योति ने रिकी से कहा और पास पड़ी शॅंपेन बॉटल खोल दी और दो ग्लासस भरने लगी... रिकी फिलहाल होश में तो था, लेकिन अभी भी उसके सामने ज्योति के नंगे चुतड़ों की तस्वीर घूम रही थी.. ज्योति के इतना बोलने पर भी रिकी ने कुछ नहीं कहा और चुप चाप शॅंपेन पीने लगा.. ज्योति को लगा के शायद रिकी इस बारे में कुछ बोलेगा और उस बात से ज्योति कुछ शुरुआत करेगी लेकिन ऐसा ना होते हुए देख उसको अपनी प्लॅनिंग फैल होती हुई दिखी... चुप चाप एक के बाद एक दोनो अपने ग्लासस ख़तम करने लगे और करीब डेढ़ घंटे तक दोनो बस खामोश रह के खिड़की से आती हुई ठंडी हवाओं के मज़ा लेने लगे.. कहते हैं शॅंपेन का सुरूर तब चढ़ता है जब उसे पीने के बाद आप ठंडी हवा को महसूस करो, शायद रिकी और ज्योति को भी इस वक़्त वोही हो रहा था, दोनो की पलकें कुछ कुछ भारी होने लगी थी , दोनो के शरीर ढीले पड़ने लगे थे...




"सोने चलते हैं ज्योति... काफ़ी वक़्त हो गया है.." रिकी ने खामोशी के सन्नाटे को चीरते हुए सामने बैठी ज्योति को बड़े नशीले अंदाज़ में कहा



"चलिए भैया..." ज्योति ने बस इतना ही कहा और अपने चेहरे को नीचे लटका के उठ के बाहर जाने लगी.. दोनो कुछ कदम आगे बढ़े ही थे कि ज्योति ने फिर कहा



"भैया..." यह सुनते ही रिकी रुक गया और पीछे पलट के ज्योति को देखने लगा..




बिना कुछ सोचे समझे, ज्योति रिकी के पास गयी और उसके होंठों पे हमला बोल दिया
 
ज्योति का यूँ अचानक सा रिकी के होंठों पे टूट पड़ना, रिकी को कुछ समझ नहीं आया, उसका दिमाग़ काम करना बंद ही कर गया था..तब तक जब तक वो होश में नहीं आया और धक्का देके ज्योति को पीछे धकेल दिया..



"व्हॅट दा ........ आरएरीई....." रिकी अपनी साँसों को इकट्ठा करते हुए बस इतना ही कह पाया



"व्हातटत्त.... व्हाट ईज़.... आहह.... व्हाट'स रॉंग हाँ...." ज्योति भी अपनी टूटती हुई साँसों को समेट के बोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन कुछ कह नहीं पा रही थी.. कमरे में कुछ आवाज़ थी तो वो बस दोनो की चलती लंबी लंबी साँसें, यूँ लग रहा था मानो दोनो काफ़ी मेहनत करके तक के आयें हो..



"ज्योति, व्हाट'स रॉंग..सडन्ली, डू यू ईवन रीयलाइज़ के हम कौन हैं.." रिकी ने आख़िर कर कुछ शब्द जुटाए और बोलने की हिम्मत हुई



"कौन हैं हम..भाई बहेन हैं.. तो शीना कौन है आपकी, वो तो सग़ी बहेन है ना आपकी, फिर उसके साथ तो आपको कोई परहेज़ नहीं है और जब मुझे यहाँ कोई इनकार नहीं है तो फिर आप यह रिश्तों का हवाला क्यूँ दे रहे हैं



ज्योति की बात सुन रिकी खामोश हो गया, उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था, शीना ने उसे बताया था कि उसने ज्योति को उनके रिश्ते के बारे में बता दिया है.. रिकी को उस वक़्त डर था कि कहीं ज्योति सब को खबर ना कर दे इस रिश्ते की, लेकिन वो यह नहीं जानता था कि ज्योति भी ऐसा ही कदम उठाना चाहेगी..



"बोलिए ना, अब क्यूँ चुप हैं.." ज्योति ने रिकी को खामोश देख के कहा



"ज्योति, टू रॉंग डजन'ट मेक वन राइट ओके... अगर शीना के साथ मैं ऐसे रिश्ते में हूँ तो इसका यह मतलब नहीं के वो ग़लत नहीं है या वो ग़लती बार बार दोहराता रहूं.. शीना के साथ उस वक़्त पे हमारा काबू नहीं था, हम बह गये थे उस वक़्त के साथ..लेकिन उसका यह मतलब नहीं कि मैं हर बार वो ग़लती जान बुझ के करूँ , यू अंडरस्टॅंड.." रिकी ने अपनी आवाज़ को थोड़ा उँचा कर के कहा



"भैया...लुक अट मी, मैं आपको किसी रिश्ते में बाँधने के लिए नहीं कह रही, इट'स जस्ट दट.. मैं किसी के प्यार के लिए तड़प रही हूँ, अगर मेरा दिल कहता है के मैं वो प्यार आपसे लूँ तो इसमे आपको कोई हर्ज़ क्यूँ है..क्या आप मुझे प्यार नहीं करते..क्या मैं आपकी कोई नहीं लगती.." ज्योति यह कहने के साथ ही दो कदम आगे बढ़ गयी. रिकी ने ज्योति की इस बात को कोई जवाब नहीं दिया.. ज्योति ने यह देखा रिकी के एक हाथ को अपने हाथ में लिया और उन्हे धीरे धीरे मसल्ने लगी...



"भैया, प्लीज़ लुक अट मी वन्स..." ज्योति ने फिर रिकी के हाथ को दबाते हुए कहा, इस बार ज्योति के कहने पे रिकी ने उसके चेहरे को देखा



"आप देखिए मेरी आँखों में..क्या दिख रहा है..क्या इसमे आपके लिए प्यार नहीं है... आज तक आपने शीना और मुझ में कोई फरक नहीं समझा, तो फिर इस बात में क्यूँ है यह फरक.. और मैं तो किसी रिश्ते के लिए भी नहीं बोल रही आपको, आइ जस्ट वॉंट यू टू प्लीज़ मी ... फिज़िकली..." ज्योति ने आज सब भुला के रिकी के सामने अपने मन की बात रखी थी.. ज्योति की यह बात सुन रिकी को यकीन नहीं हो रहा था कि वो क्या कह रही है इसलिए उसकी यह बात सुन रिकी की आँखों में वो एक हल्का सा झटका सॉफ देखा जा सकता था..






"देयर ईज़ नतिंग टू बी शॉक्ड ऑफ... क्या मैं आपसे खुल के भी बात नहीं कर सकती अब, क्या मैं अपने मन की नहीं कह सकती.. आप ही कहते हैं ना भाई बहेन से पहले वी आर फ्रेंड्स... तो क्या दोस्त बातें शेयर नहीं कर सकते.." ज्योति ने फिर रिकी को अपनी बातों से घेरना चालू कर दिया



"सिंपल वर्ड्स में कहूँ भैया, आइ जस्ट वॉंट सम्वन टू बी माइ फक बडी..लाइक फ्रेंड्स वित बेनिफिट्स..कुछ ज़्यादा तो नहीं माँग रही आपसे..." ज्योति को आज खुद यकीन नहीं हो रहा था कि वो यह सब बोले जा रही है वो भी रिकी से जो रिश्ते में उसका भाई है... कितने दिनो तक एक कन्फ्यूषन में रह के, ज्योति को आज क्लियर हुआ कि वो किस चीज़ की तलाश में थी, इतने दिनो तक वो जिस चीज़ को प्यार समझती थी वो प्यार नहीं बस एक जलन थी... जलन अपने तन की, अपने मन की, और उस जलन को मिटाने के लिए ज्योति ने अपने भाई और बाप से रिश्ता बनाना चाहा लेकिन दोनो में ना कामयाबी.. आज , इस पल रिकी के साथ ये बात कहके वो अंदर ही अंदर काफ़ी हल्का महसूस कर रही थी.. आज भले वो सामने रिकी हो, लेकिन किसी को उसने अपने दिल की बात बता दी कि वो क्या चाहती है, और वो कहके उसे शरम के बदले काफ़ी खुशी हो रही थी.. यह बात अब तक किसी से ना कहके वो जितनी बेचैनी महसूस करती थी, अब वो उतना ही हल्का महसूस कर रही थी, जैसे दिल से एक बोझ उतर गया हो..



"ज्योति.. यूआर नोट कॉन्षियस.. तुम पागल हो गयी हो...." रिकी ने फिर इतना ही जवाब दिया और वहाँ से जाने की कोशिश की, लेकिन उसको जाते देख ज्योति ने तुरंत उसके हाथ पकड़े और फिर उसके चेहरे की तरफ देखने लगी



"आइ नो भैया.. जो आप सोच रहे हैं, बट ट्रस्ट मी दिस ईज़ नोट चीटिंग..आंड शीना विल नेवेर गेट टू नो अबाउट दिस..."ज्योति ने रिकी के हाथों को मज़बूती से पकड़ा और उसके सीने से चिपकने लगी.. रिकी अभी भी सोच रहा था कि वो ज्योति को रोके तो कैसे क्यूँ कि अब तक का उसका हर प्रयास नाकाम ही रहा था, और ज्योति की बातें भी ऐसी थी जिन्हे रिकी सही या ग़लत नहीं कह सकता था, ज्योति की कही हुई बातें रिकी के कानो में अब तक गूँज रही थी..



"भैया... प्लीज़ लव मी फिज़िकली.." ज्योति ने काँपते होंठों से रिकी को देख के कहा और धीरे धीरे अपने होंठ रिकी के होंठों से मिलाने की कोशिश करने लगी.. रिकी ना तो खुद को समझा सकता था, ना ही ज्योति को..ऐसे हालत में रिकी को जब तक कुछ समझ आता, तब तक ज्योति के नरम और तपते होंठ रिकी के लबों से मिल चुके थे.. ज्योति के तपते होंठों को महसूस करके जैसे रिकी अंदर तक पिघल गया, उसके चेहरे से टपकता पसीना धीरे धीरे गिर उसके होंठों पे आ रहा था जिन्हे ज्योति बड़े चाव से चूसे जा रही थी... रिकी अब तक ना तो ज्योति का साथ दे रहा था, और ना ही उसे रोक रहा था... ज्योति को यह समझते देर ना लगी के रिकी अब उसे मना नहीं करेगा, इसलिए हिम्मत करके उसने अपने दोनो हाथ रिकी की कमर के पीछे ले जाके उसे अपने पास खींचा.. ज्योति और रिकी के बदन एक दूसरे से चिपके हुए थे, रिकी बड़े ही आराम से ज्योति के शरीर की गर्मी को महसूस कर सकता था, ऐसी गर्मी में रिकी से रहा नहीं गया और धीरे धीरे उसकी आँखें भी बंद होने लगी.... जैसे जैसे रिकी की पलकें ज्योति के नशे में भारी होती गयी, वैसे वैसे रिकी अपने होंठों को हल्के हल्के खोल देता और ज्योति के होंठों को महसूस करने लगता...




"उम्म्म......आअहह यस भाई.......उम्म्म्मम..प्लीज़ लव मी....अहहहह.." ज्योति रिकी का साथ पाकर बहकने लगी थी.... ज्योति के यह शब्द जैसे रिकी को मन्त्र मुग्ध कर गये, रिकी भी बड़े प्यार से अभी ज्योति के होंठों को चूसने में लग गया था.. रिकी और ज्योति के हाथ, एक दूसरे की कमर के पीछे चले गये थे और दोनो एक दूसरे की गर्मी को महसूस करते हुए, अपनी गरम साँसें एक दूसरे के मूह में छोड़ते चले गये और लबों से लबों को मिलते रहे












"आअहह य्स्स्स भाई........ सक देम हर्दड़ अहहाहा उफफफफ्फ़.......उम्म्म्ममम लव मी ना भाई आहहह...." ज्योति सिसकते सिसकते बोलने लगी और होंठों को जन्गलियो की तरह चूसने लगती




"अहहहहा ओह्ह्ह्ह भैईई अहहा.... एसस्स... शो मी युवर बॉडी ना अहहहाहा.....आइ आम ओमम्म्मम अहहहह वेटिंग..... अहहहहहा उम्म्म्मममम फॉर यू अहहहहहहाहा भाईयैई आहह..." ज्योति अपने हाथों को आगे ले आई और रिकी की शर्ट के बटन खोलने लगी.... एक एक कर जैसे ही रिकी की शर्ट उसके बदन से उतरी, ज्योति ने अपने चेहरे को उसके सीने में धंसा दिया और अपनी जीभ से उसकी छाति को चूसने लगी...



"अहहौमम्म्मम.... आहहः भाई....... ईएसस्साहहह....स्लूर्रप्प्प्प्पाहह....."ज्योति अपनी जीभ से रिकी के सीने को गीला करने में लगी हुई थी, यह नज़ारा देख कोई भी समझ सकता था कि ज्योति की बात बिल्कुल सही है, वो फिज़िकल होने के लिए कितने वक़्त से तड़प रही थी, और आज उसे वो मिला जो वो चाहती थी.. ज्योति की जीभ को अपने सीने पे महसूस कर रिकी की आँखें मस्ती में बंद होने लगी थी और वो हल्के हल्के से सिसक रहा था..



"लेट मी सी आहाहहा..... भाई के नीचे अहहाहा...उम्म्म्मम...."ज्योति रिकी के सीने से जीभ घूमती घूमती नीचे उसकी नाभि के पास पहुँची जहाँ उसने अपनी जीभ को गोल गोल घुमाना जारी रखा और अपने हाथ नीचे ले आई...



"उम्म्म्म....युवर लविंग दिस, डॉन'ट यू..हेहहेः.." ज्योति ने मस्ती में कहा और अपने दाँत से रिकी की जीन्स के बटन को खोने की कोशिश की और बटन खुलते ही एक झटके में उसकी जीन्स को नीचे खिसकाया.. जीन्स नीचे उतरते ही ज्योति की नज़र रिकी के उभार पे पड़ी जो उसके बॉक्सर से देख के ज्योति मदहोश होने लगी.... बिना ज़्यादा कुछ कहे ज्योति ने अपने हाथों से धीरे धीरे रिकी के बॉक्सर को उतारा और अपनी लाल सुर्ख आँखों से रिकी के सलामी देते हुए लंड को देखने लगी... रिकी के लंड को देख ज्योति की आँखों में एक हवस दौड़ गयी, लाल लाल आँखों में बहता हुआ नशा ज्योति की हालत बयान कर रहा था... ज्योति से रहा नहीं गया और अपनी जीभ हल्के से रिकी के टट्टों पे घुमा के उसे चूस दिया




"ससलुर्र्रप्प्प्प्प्प्प अहहह....." ज्योति ने चूस के उपर देखा तो रिकी की आँखें अभी भी मस्ती में बंद ही थी..



"उम्म्म..मज़ा आ रहा है ना भैया, हाउ'स युवर फक बडी पर्फॉर्मिंग हाँ...हिहीही.." ज्योति मुस्काते हुए उपर उठी और फिर रिकी के होंठों को चूसने लगी



"उम्म्म्म अहहह....लेम्मे अहहाहा उम्म्म्म..शो यू.." ज्योति ने होंठों को चूस्ते हुए कहा और रिकी को पास पड़े बेड पे धक्का देके सुला दिया... बेड पे गिरते ही रिकी ने आँखें खोली तो सामने देख के हैरान रह गया.. सामने ज्योति सिर्फ़ ब्रा पैंटी में खड़ी थी...



"यू लव व्हाट यू सी...हाँ भैया.." ज्योति ने मादक अंदाज़ में कहा और रिकी की आँखों में देखने लगी... रिकी की आँखों में भी उसे वोही नशा, वोही भूख, वोही प्यार और वोही गर्मी दिखी जो वो खुद महसूस कर रही थी...



"हाउ डू आइ लुक नाउ भैया....." ज्योति ने रिकी से कहा और एक ही झटके में अपनी ब्रा खोल के उसे साइड में फेंक दिया









ब्रा खुलते ही ज्योति के दूध से भी सफेद चुचे रिकी की आँखों के सामने झूलने लगे.. रिकी चाहकर भी अपनी नज़रें उनसे दूर नहीं कर पा रहा था...



"टेल मी ना भाई, हाउ डू आइ लुक नाउ.." ज्योति ने अपने एक निपल को चुटकी में दबाते हुए कहा जिससे उसकी एक हल्की सी सिसक निकल गयी...



"यू वॉंट मोर....भैय्ाआ हह..." ज्योति ने फिर एक नशीली आवाज़ में रिकी से कहा और धीरे धीरे अपनी गान्ड मटकाते मटकाते अपनी पैंटी को भी नीचे सरका दिया... ज्योति की पैंटी नीचे सरकते ही उसकी गीली हो चुकी चिकनी चूत भी रिकी के सामने आ गयी.. दोनो भाई बहेन एक दूसरे के सामने पूरे नंगे थे, बहें खड़ी थी और भाई लेटा हुआ था..



"भाइईईई....हाउ ईज़ माइ बोड्ड़य्यययी..." ज्योति ने अपनी एक उंगली अपनी मूह में डाल के उसे चूसा और फिर उसे अपनी चूत के अंदर घुसा के रिकी के सामने मस्ताने लगी....



"अहहाहा भाइईइ.......टेल्ल मी नाआहह.." ज्योति ने ऐसे अंदाज़ में यह कहा के रिकी से अब कंट्रोल नहीं हुआ और एक झटके में खड़ा होके ज्योति के पास गया और उसके चुचे को मूह में लेके चूसने लगा




"आहहहाँ,म्‍म्म य्स भाई... सक कीजिए ना आहहहा... हाआँ भाइी उफफफ्फ़....... और ज़ोर से चुसिये ना अहहहहा..." ज्योति रिकी के चेहरे को अपने चुचों पे दबाने लगी और मस्ती में सिसकने लगी



"आहहाहा उम्म्म्म....उम्म्म्मम अहहाहा....ससलुर्र्रप......" रिकी ज्योति के चुचों को चूस चूस के लाल करने लगा था..




"आआहहः यस भाई... आम कमिंग अहाहाहा... हार्डर अहहहा... फास्टर ईसस्स अहहह......" ज्योति ने जैसे ही यह कहा रिकी ने तेज़ी से उसको पलंग पे धक्का दे दिया और उसकी टाँगें हवा में उठा के अपने कंधे पे रख दी, और अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटने लगा




"अहाहाहा भाइईइ फास्टर्ररर ईससस्स अहहह... ओह्ह्ह्ह नूऊओ अहहहहहा...." ज्योति चिल्ला चिल्ला के मस्ती में डूबने लगी और रिकी के बालों को कस के पकड़ के अपनी चूत में दबाने लगी...




"अहहहहा स्लूर्रप्र्प आहहाहहहा... उम्म्म उम्म्म स्ाआहह स्कलूररप्प्प आहह.. यस बेबी कम फॉर मी आहहहहा कम फॉर युवर ब्रदर अहहहहा......" रिकी भी ज्योति का साथ देने लगा....










"अहहाहा हाआँ भाऐईइ अपनी बहेन की अहाआहः चूत चातऊूओ नीई अहहहहहाआ मैं गाइिईईईईई.." ज्योति एक ज़ोर की चीख से अपना पानी छोड़ने लगी जिसे रिकी किसी प्यासे की तरह अपने अंदर गटकने लगा




"आआहहा उफफफ्फ़....... हाा फुक्कककक..... दिस वाज़ दा बेस्ट ऑर्गॅज़म ऑफ माइ लाइफ....." ज्योति ने लंबी साँसें छोड़ते हुए रिकी से कहा और अगले ही पल फिर दोनो एक दूसरे के होंठों को चूसने में लग गये.....




"उम्म्म अहहह...ईससस्स अहहहा... सक मी फास्टर बहेन आअहह..." रिकी की गर्मी लफ़्ज़ों में काफ़ी वक़्त बाद निकली थी




"आहहः यस भाई आहहह स्लूर्रप्रप्प आहहः उम्म्म्म..." ज्योति रिकी के होंठों को और तेज़ी से चूसने लगी.. दोनो एक दूसरे के होंठों के साथ साथ एक दूसरे के बदन के पसीने को भी चूसने और चाटने में लगे हुए थे... खड़े खड़े जब दोनो थक गये तो पास में पड़े सोफे पे लेट गये और 69 पोज़िशन में आ गये
 
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