Antarvasna Sex चमत्कारी - Page 12 - SexBaba
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Antarvasna Sex चमत्कारी

दूसरी तरफ परी लोक मे राजनंदिनी को देख कर सभी हैरान भी थे और खुश भी….आज कयि वर्षो के पश्चात उनकी महारानी अपने राज्य मे
पुनः आई थी और उनके चरण पड़ते ही परी लोक मे छाया अंधकार दूर हो गया था.

सोनालिका को कुछ दासियों की मदद से बिस्तर पर लिटा दिया गया….राजनंदिनी अभी भी आदिरीशि की तस्वीर को देखे जा रही थी
…उसकी आँखो मे नमी और व्याकुलता दोनो ही हिलोरे ले रही थी.

गुरुदेव—आप इतने समय तक कहाँ रह गयी थी महारानी…महाराज और आपके यहाँ से चले जाने के पश्चात परी लोक निर्जीव सा हो गया था.

राजनंदिनी—राजगुरु…ये सोना को क्या हुआ है…? और वो लोग यहाँ तक कैसे पहुचे…? परी लोक मे इतना अंधकार क्यो था.... ? जबकि
सिंघासन और उस मुकुट के होते हुए तो ऐसा कदापि नही होना चाहिए था.... ?

गुरुदेव—इसकी वजह भी राजकुमारी सोनालिका ही है महारानी.

राजनंदिनी—वो कैसे.... ?

गुरुदेव—महारानी, राजकुमारी को यहाँ से कील्विष् ज़बरदस्ती उठा ले गया था.

राजनंदिनी (चौंक कर)—क्याआ कील्विष्ह.... ? किंतु वो मर चुका था ना... ?

महाराज—वो वापिस लौट आया है महारानी...उसने आते ही मेरी पुत्री को घसीट कर यहाँ से ले गया.

राजनंदिनी—ये तो बहुत ही बुरा हुआ....ये तो असंभव था...अवश्य ही इसमे नरवाली का ही कोई हाथ रहा होगा... लेकिन सिंघासन और मुकुट की शक्तियो के होते हुए ये कैसे मुमकिन हुआ की यहा इतना अंधेरा व्याप्त हो गया था.. ?

गुरुदेव—महारानी, असल मे बात ये है कि....

अब सोनालिका की कहानी सुन कर झटका खाने की बारी राजनंदिनी की थी........
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वही धरती पर आनंद के द्वारा सारी सच्चाई जान कर मेघा के दिल मे दर्द अब और भी गहरा हो चुका था… रह रह कर उसके हृदय मे एक टीस सी उठ रही थी.

ख़तरा और चित्रा इस बात को लेकर परेशान थे कि आख़िर श्री की बॉडी गयी कहाँ….लाख सोचने के पश्चात भी उन्हे कुछ भी समझ नही आ रहा था.

श्री के साथ ये दुर्घटना होने से कुछ समय पहले……..

चित्रा ने चारो दोस्तो को मार मार के वहाँ से भगा दिया....बेचारे किसी तरह से अपनी जान बचा कर वहाँ से निकल पाए नही तो आज उनकी मौत जैसे पक्की ही थी चित्रा के हाथो से.

चूतड़ (भागते हुए)—अरे रे…मार डाला रे….पता नही ये कौन मेरे पीछे पड़ गया है….जब देखो बिना बात किए ही उठा के पटक देता है.

नांगु (भागते हुए)—चूतड़ तू सही कहता था..कोई तो है जो हमे श्री से दूर रखना चाहता है, शायद वो नही चाहता कि हम श्री को सच बता सके.

पंगु (भागते हुए)—अब और नही भागा जाएगा यार मुझसे…साँस फूलने लगी है अब तो..

गंगू—चलो उस पेड़ के नीचे बैठते हैं.

सभी रोड के किनारे लगे एक पेड़ के नीचे बैठ गये…और अपनी अपनी अनियंत्रित हो रही सांसो को नियंत्रित करने लगे…

गंगू—पता नही क्या बला थी यार....बड़ी ज़ोर से पटका उसने...मेरी तो कमर ही टूट जाती अगर थोड़ी देर और वहाँ रुकता तो...

नांगु—कमर ही क्या..सब कुछ टूट जाता अगर वहाँ से भागते नही तो…लेकिन वो हो कौन सकता है और हमे श्री से दूर रखने मे उसका क्या प्रायोजन हो सकता है….?

चुतताड—ज़रूर इसमे उस कमिने अजगर का ही हाथ होगा.

गंगू—अगर ऐसा हुआ तो इसका मतलब कि श्री की जान को ख़तरा हो सकता है…हमे किसी भी तरह श्री से मिलना ही होगा चाहे इसमे फिर हमारी जान ही क्यो ना चली जाए.

पंगु—तुम सही कह रहे हो….हमे एक कोशिश और करनी चाहिए.

अभी वो बात कर ही रहे थे कि तभी एक गाड़ी उनकी आँखो के सामने से बड़ी तेज़ी से गुज़री….ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स पर चूतड़ की नज़र पड़ते ही वो चौंकते हुए ज़ोर से उच्छल कर खड़ा हो गया.

गंगू—अब इस चूतड़ को क्या हो गया…?

पंगु—वो फिर से हमारे पीछे तो नही आ गया ना...हमारा पीछा करते हुए.... ?

चूतड़ (शॉक्ड)—नही यार...चलो उठो….मुझे लगता है कि श्री की जान को कोई ख़तरा है....मैने अभी अभी उसको रोते हुए तेज़ी से गाड़ी चलते हुए देखा है.

तीनो (शॉक्ड)—क्य्ाआआअ..... ? किधर गयी है वो…?

चुतताड (उंगली से इशारा करते हुए)—उस पहाड़ी की तरफ

तीनो—चलो फिर जल्दी….श्री का पीछा करते हैं.

चारो ने तेज़ी से उस पहाड़ी की तरफ दौड़ लगा दी….लेकिन जब तक वो वहाँ तक पहुचे तब तक श्री की गाड़ी अनबॅलेन्स हो कर खाई मे
तेज़ी से नीचे की ओर जा रही थी.

चारो दोस्तो ने ये देख कर वही से गाड़ी के उपर छलान्ग लगा दी….वो गाड़ी को तो नीचे जाने से नही रोक पाए किंतु फुर्ती दिखाते हुए आगे
का दरवाजा खोल कर उसमे से श्री को बाहर खीच लिया जिसके सिर मे चोट लगने की वजह से खून बह रहा था और वो बेहोशी जैसी हालत मे पहुच चुकी थी.

बाहर निकलते ही जब चारो ने उसकी ये हालत देखी तो उन्होने श्री को यथा शीघ्र किसी डॉक्टर के पास ले जाने का निर्णय लिया…..श्री
आदी…आदी धीरे धीरे कहते हुए अंततः चेतना शून्य हो गयी…..चारो तुरंत श्री को लेकर वहाँ से चले गये.

उधर एक जंगल मे कोई आज बहुत ज़्यादा गुस्से मे था….उसकी क्रोधाग्नि को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे आज सब कुछ उसकी इस क्रोधाग्नि मे जल कर भस्म हो जाएगा.
 
अपडेट—91

श्री को लेकर चारो तुरंत पहाड़ से नीचे उतर कर अपनी शक्ति से गाड़ी वहाँ मॅंगा के हॉस्पिटल ले गये….डॉक्टर ने इसको आक्सिडेंटल केस
कह कर इलाज़ करने से मना कर दिया.

नांगु—देखिए, प्लीज़ इनका इलाज़ कर दीजिए…जितना पैसा चाहे ले लो.

डॉक्टर—ये नही हो सकता...पहले पोलीस एफ.आइ.आर. होगी उसके बाद इलाज़.

चूतड़—ठीक है..आप हमे यहाँ के सबसे बड़े डॉक्टर का नंबर दो…हमे उनसे बात करनी है.

डॉक्टर—उनके पास जाने जाने की कोई ज़रूरत नही है….मैने उनको कॉल कर के सब बता दिया है…वो खुद ही यहाँ आते होंगे.

कुछ ही देर में वहाँ हॉस्पिटल का हेड डॉक्टर जयकाल आ गया…..उसने भी वही कहा जो कुछ उस डॉक्टर ने कहा था किंतु जैसे ही उसकी नज़र घायल और बेहोश श्री पर पड़ी तो वह बुरी तरह से चौंक गया.

जयकाल (चौंक कर मन मे)—राजनंदिनी……और यहाँ….? अंधेरा कायम रहेगा तमराज कील्विष्....शैतान जिंदाबाद

पंगु—सर, इनके इलाज़ के लिए कुछ करिए.

जयकाल—डॉक्टर तुम इस लड़की का इलाज़ शुरू करो…आइ विल हॅंडल पोलीस केस.

जयकाल के कहने के बाद डॉक्टर’स ने श्री का इलाज़ शुरू कर दिया….उसके शरीर मे काई जगह पर चोटे आई थी… लेकिन ज़्यादा गंभीर चोट कोई भी नही थी.

जयकाल अपने कॅबिन मे बैठ कर किसी गंभीर चिंता मे खोया हुआ था….शायद वो श्री के ही विषय मे कुछ सोच रहा था.

जयकाल (मंन मे)—मुझे इस बारे मे जल्द से जल्द कील्विष् या फिर अजगर से बात करनी होगी….अगर ये लड़की राजनंदिनी नही हुई तो फिर कौन है…? मुझे इसका भी पता लगाना होगा….मैं आज रात मे ही तमराज कील्विष् से बात करता हू.
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जबकि चूतड़ और गंगू के अब तक घर ना पहुचने पर उनकी बीविया परेशान थी….आख़िर कार दीपा पता लगाने के लिए सरोज के फ्लॅट मे आ गयी.

तोता (मुरूगन)—ये लो अब ये भी यहीं अपना धंधा करेगी लगता है.

दीपा (शॉक्ड)—सरोज…ये तोता मुझे कुछ ठीक नही लग रहा है.

सरोज—हाँ, यार…जब से आया है कुछ ना कुछ उल्टा सीधा ही बोलता रहता है.

दीपा—मेरे ये अभी तक नही आए…जाने कहाँ गये होंगे….? तुम्हे कुछ पता है…?

सरोज—ये भी तो नही आए अभी….पता नही कहाँ होंगे….? फोन भी नही लग रहा है.

मुरूगन—और कहाँ होंगे....कहीं किसी तुम दोनो जैसी किसी धंधे वाली के यहाँ मूह मार रहे होंगे दोनो के दोनो.

सरोज—ए तोते चुप कर...नही तो तेरी गर्दन मरोड़ दूँगी समझा.

मुरूगन—मेरा नाम मुरूगन है समझी....तुम दोनो के लिए मैं खूब ग्राहक ढूँढ कर लाउन्गा.

दीपा—क्याआआ…..?

सरोज—तू हम दोनो को धंधे वाली समझ रहा है…..? रुक तेरी तो….

मुरूगन—मुझे क्यो मारने को दौड़ रही हो…? मैं तो तुम दोनो की कमाई बढ़ा रहा हूँ….तुम दोनो की अड्वर्टाइज़्मेंट करूँगा.

दीपा—बड़ा ही बदतमीज़ तोता है ये सरोज…..चल तब तक बाहर आइस-क्रीम खा कर आते हैं.

सरोज—रुक..मैं कपड़े बदल के आती हूँ.

मुरूगन—अरे यही उतार दे…उतार दे…मेरे अलावा कोई नही देखेगा.

सरोज—सुबह ही इसको बाहर फेंक दूँगी....कितनी गंदी ज़ुबान है इसकी...चल ऐसे ही चल.
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इधर श्री के बारे मे कोई पता ना चलने पर ख़तरा और चित्रा जंगल मे अग्नि के पास पहुच गये जहाँ वो अभी अभी सोने के लिए ज़मीन मे लेटी ही थी.

आदी के साथ हुई घटना के बाद जब से अग्नि ने घर छोड़ा तो वो अपने माता पिता के पास ना जाकर सीधे जंगल मे पहुच गयी जहाँ उसने खाई मे कूद कर अपने प्राण त्यागने की कोशिश की लेकिन तभी किसी महिला ने उसको पकड़ लिया और उसकी दुख भरी कहानी सुनने के बाद अग्नि को अपने साथ एक आश्रम मे ले आई.

वैसे तो ये आश्रम कोई ज़्यादा बड़ा नही था और ना ही अधिक लोग थे वहाँ पर....यदा कदा ही कोई आ जाता था वहाँ पास के गाओं से और कुछ ना कुछ दान दे देता था.

आजीविका के निर्वहन हेतु कुछ फल वग़ैरह के पेड़ लगे हुए थे….पास मे ही एक छोटा सा प्राकृतिक जल कुंड बना हुआ था जिसमे हमेशा
स्वच्च्छ और निर्मल पानी भरा रहता था.

वो औरत इस आश्रम की संचालिका थी...उमर लगभग 90 साल से उपर की रही होगी उसकी....उसने अपने ग्यनोप्देश से अग्नि के मन मे चल रहे संताप को कुछ हद तक कम करने का प्रयास किया.

धीरे धीरे अग्नि उसी आश्रम मे रहते हुए ध्यान लगाने लगी और अपना जीवन काटने लगी....आज इतने समयोप्रांत ख़तरा को वहाँ देख कर वो
आश्चर्य चकित हुए बिना ना रह सकी.

अग्नि—ख़तरा... तुम यहाँ... !

ख़तरा—मुझे क्षमा करे मालकिन...लेकिन मुझे आज आप के पास आना ही पड़ा.

अग्नि—अब बचा ही क्या है मेरी ज़िंदगी मे ख़तरा...और तुम्हारे साथ मे ये लड़की कौन है... ?

चित्रा—मेरा नाम चित्रा है....हम आप से आदी के बारे मे कुछ बेहद ज़रूरी बाते करने के लिए आए हैं.

अग्नि—उनके बारे मे अब क्या बात करनी है तुम दोनो को... ?

ख़तरा—मालकिन बात ये है कि......(फिर पूरी बात बताते हुए)

जैसे जैसे ख़तरा बताता गया…अग्नि की आँखो ने पानी बरसाना शुरू कर दिया…..लेकिन जैसे ही उसका ध्यान इस बात पर गया कि किसी ने आदी को जान से मारने की कोशिश की है तो उसकी आँखो मे आँसुओ की जगह अचानक से सैलाब उमड़ पड़ा.

क्रोध की ज्वाला भभक उठी….अग्नि की क्रोधाग्नि इतनी प्रचंड हो गयी कि ऐसा लगने लगा जैसे उसकी क्रोध की ज्वाला मे सब कुछ आज जल कर राख का ढेर बन जाएगा.

अग्नि (गुस्से मे)—क्याअ…? वो जिंदा हैं….? जिसने भी उन्हे जान से मारने की कोशिश की है मैं उसका नामो निशान इस संसार से निर्मूल कर दूँगी.

ख़तरा—किंतु अभी हमे आपकी मदद की आवश्यकता है….केवल आप ही ये पता लगा सकती हैं कि मालिक उस आश्रम मे हैं या नही….?

अग्नि—चलो अभी चलो…मुझसे अब सुबह होने का इंतज़ार नही किया जाएगा.

अग्नि उन दोनो के साथ रात्रि प्रहार मे ही कनक ऋषि के आश्रम की ओर प्रस्थान कर गयी….जबकि दूसरी तरफ परी लोक मे राज गुरु सोनालिका की कहानी राजनंदिनी को सुनने जा रहे थे.

राजनंदिनी—राजगुरु…सोना को क्या हुआ है और वो इस अवस्था मे कैसे पहुचि….?

राज गुरु—महारानी…बात ये है कि ये महाराज आदिरीशि के कारण हुआ है.

राजनंदिनी (चौंक कर)—क्याआअ….ये क्या कह रहे हैं आप….? ये भला कैसे संभव हो सकता है…?

राज गुरु—राजकुमारी सोनालिका धरती लोक के एक लड़के आदित्य से प्रेम करती थी…..(पूरी बात बताते हुए)…

राजनंदिनी—सोना ने जो किया वो ग़लत किया उस लड़के के साथ….अगर वो सच्चा प्रेम करती तो कदापि उस पर शंका नही करती….सबने
उसके साथ एक तरह से छल ही किया है.

राज गुरु—लेकिन आप जानना नही चाहेंगी महारानी कि वो लड़का आदी कौन है….?

राजनंदिनी—कौन है….?

राज गुरु—हमारे महाराज आदिरीशि ही आदी हैं.

राजनंदिनी (शॉक्ड)—क्याआआआ…..?

राज गुरु की इस बात से राजनंदिनी को जबरदस्त झटका लगा….खड़े खड़े ही वो धडाम से नीचे बैठ गयी…जिसके लिए वो सदियो से उसके आने की प्रतीक्षा कर रही थी…जिसके आने की उम्मीद मे वो हर रोज अपनी आशा का दीपक बुझने नही देती थी….जिसकी तलाश मे कहाँ
कहाँ नही भटकी वो….हर जगह ठोकरे खाती रही….सब कहते रहे कि वो मर चुका है अब कभी नही आएगा…लेकिन राजनंदिनी ने किसी
की बात नही मानी….उसे अपने ऋषि पर और उसके प्रेम पर अटूट विश्वास था.

आज उसका वही विश्वास धराशायी होने की कगार पर आ चुका था….उसकी बरसो की तपस्या, उसकी खोज आज पूरी भी हुई तो किन परिस्थितियो मे….?

राजनंदिनी (चिल्लाते हुए)—नहियिइ…ये नही हो सकता….ये झूठ है राज गुरु….मेरा ऋषि मुझसे मिले बिना नही जा सकता….मैं ये मानने
को बिल्कुल तैय्यार नही हूँ…..मैं आदी के इन सबके प्यार को स्वीकार ना करने की वजह जानती हूँ राजगुरु…..मैं आज ही धरती लोक जाउन्गी

राजगुरु—लेकिन महारानी…

राजनंदिनी—लेकिन वेकीन कुछ नही…..मेरे ऋषि को कुछ नही हो सकता…..अगर मैं जिंदा हूँ तो उनको भी मेरे प्रेम की लाज़ रखनी ही होगी…..उन्हे अपनी राजनंदिनी के लिए वापिस आना ही होगा.

राजनंदिनी उसके बाद बिना किसी की बात सुने वहाँ से अति व्यग्रता मे धरती लोक की ओर बढ़ गयी तेज़ी से……
 
अपडेट—92

हॉस्पिटल मे श्री अभी भी बेहोश थी….चारो दोस्त वही हॉस्पिटल के बाहर रुक कर उसके होश मे आने की प्रतीक्षा कर रहे थे….क्यों कि
हॉस्पिटल के अंदर रुकने देने से जयकाल ने मना कर दिया था.

पंगु—श्री के होश मे आते ही हम उससे कहेंगे क्या….?

चूतड़—अबे ट्यूबलाइट…..इसमे सोचना क्या है….हम उसको सब सच सच बता देंगे…..?

पंगु—सब सच सच बता देंगे….जैसे कि वो हमारी बात पर यकीन कर ही लेगी…..यकीन करना तो दूर सुनेगी तक नही वो हमारी ऐसी बाते…

चूतड़—क्यो नही सुनेगी….? आख़िर हमने उसकी जान बचाई है….? उसे सुनना ही होगा…

गंगू—नही यार….पंगु ठीक कह रहा है….धरती के लोग दूसरी दुनिया के होने की बात पर यकीन नही करते हैं….ऐसे मे श्री के सामने
अपनी बात रखना बहुत मुश्किल काम होगा….और वैसे भी उसने हमे कहाँ देखा है बचाते हुए..वो तो बेहोश हो गयी थी.

नांगु—तो अब क्या करे….?

गंगू—करना क्या है…हमे अपनी बात तो कहनी ही पड़ेगी.

चूतड़—मेरे पास एक आइडिया है….

तीनो—क्या….?

चूतड़—बेशक श्री हमारी किसी बात का यकीन करे या ना करे…..लेकिन ऋषि का नाम सुन कर उसके मन मे कुछ ना कुछ तो ज़रूर
हलचल पैदा होगी.

नांगु—ये भी हो सकता है.

इधर ये सब आपस मे बाते करने मे लगे थे उधर जयकाल जो कि एक फेमस साइंटिस्ट और काले जादू का जानकार भी था अपनी लॅबोरेटरी
मे बैठ कर कील्विष् से संपर्क स्थापित करने मे लगा हुआ था….संपर्क स्थापित होते ही वो टेलीपोर्ट होकर उसके पास पहुच गया.

जयकाल—कील्विष् की जय हो…

कील्विष्—अंधेरा कायम रहे….कहो जयकाल क्या खबर है….?

जयकाल—अंधेरा कायम रहेगा तमराज कील्विष्…..मैने कुछ समय पहले यहाँ धरती मे राजनंदिनी को देखा है.

कील्विष् (चौंक कर)—क्याअ…राजनंदिनी और धरती लोक मे….? कुछ समय पहले ही तो वो अकाल और बकाल के हाथो से परी लोक की
राजकुमारी सोनालिका को छुड़ा कर गयी थी….वो परी लोक से यहाँ क्यो आई….?

जयकाल—आप कहो तो आज ही उसको ख़तम कर दूं….?

कील्विष्—नही जयकाल….राजनंदिनी को ख़तम करना तुम्हारे बस की बात नही….उसके पास तुमसे अधिक ख़तरनाक शक्तिया हैं…..तुम उसके उपर नज़र रखो और ये जानने का प्रयास करो कि उसके धरती लोक मे आने के पीछे उसका मक़सद क्या है…..? ज़रूर वो हमारे
खिलाफ कोई बड़े षड्यंत्र की रचना कर रही है.

जयकाल—आप चिंता मत कीजिए महा महिम…वो मेरी नज़रों से अब ओझल नही हो पाएगी.

कील्विष्—इस काम मे चाहो तो तुम शैतान लोक की मशहूर जादूगरनी दमदमी माई और तांत्रिक झींगा लाला की मदद ले सकते हो.

कील्विष् ने दोनो को बुला कर जयकाल के साथ जाने को कहा…दोनो मे हालाँकि बहुत कम बनती थी….झींगा लाला, हरदम दमदमी माई के पीछे ही पड़ा रहता था लेकिन वो उसको भाव नही देती थी.
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उधर सुबह होते ही श्री को होश आया तो खुद को हॉस्पिटल के बेड पर देख के चौंक गयी….उसके सिर पर और जहाँ कही भी शरीर के
हिस्सो मे चोट आई थी वहाँ पट्टी बँधी हुई थी.

उसको होश मे आते देख कर नर्स डॉक्टर को बुलाने चली गयी….श्री की आँखो के सामने कल रात की सारी बाते फिर से घूमने लगी और
उसकी आँखे दर्द से नम हो गयी.

डॉक्टर तुरंत नर्स के साथ आ गया लेकिन उनको श्री वहाँ कहीं नही दिखी….उन्होने सोचा कि शायद वो बाथरूम मे होगी किंतु जब काफ़ी
समय बाद भी कोई बाथरूम से बाहर नही आया तो उन्होने वहाँ चेक किया…पर बाथरूम मे भी कोई नही था.

उन्होने पूरा हॉस्पिटल देख लिया….चारो दोस्तो को भी अंदर बुला कर इश्स घटना के विषय मे बताया, साथ ही जयकाल को भी इनफॉर्म कर दिया.

ये बात सभी के लिए चौंकाने वाली थी कि श्री अचानक कहाँ गायब हो गयी…..? इतना जल्दी उसको धरती निगल गयी या फिर आसमान खा
गया….? मेन गेट से बाहर निकलते भी उसको किसी गार्ड ने नही देखा था.
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उधर स्वर्ग लोक मे आदी ने मुनीश के प्रस्ताव पर प्रियंवदा से विवाह करने की बात स्वीकार कर ली….प्रियंवदा भी बेहद खुश हो गयी.

ऋषि विश्वामित्र आदी को अपने साथ हिमालय के घने जंगलो के बीच अपने आश्रम पर ले आए और वहाँ उसको युद्ध कला कौशल मे निपुण करने लगे….आश्रम के आस पास मे और भी कयि आश्रम थे उनमे और भी काई ऋषि और उनके परिवार रहते थे…ये सभी ऋषि विश्वामित्र
के शिष्य थे.

आश्रम मे गाय और भैंसो की कोई कमी नही थी….जिनका दूध पी कर आदी और भी तंदुरुस्त हो रहा था…. विश्वामित्र ने ऋषि को भी समझा दिया था.

वही अग्नि ख़तरा और चित्रा के साथ कनक ऋषि के आश्रम क्षेत्र मे पहुच गयी दोनो की मदद से…किंतु ख़तरा और चित्रा ने जैसे ही आश्रम मे
प्रवेश करने का प्रयास किया तो आश्रम के चारो ओर लगा हुआ अदृश्य सुरक्षा कवच ने दोनो को बाहर फेंक दिया.

अग्नि—लगता है कि आश्रम के चारो ओर सुरक्षा कवच का घेरा है…तुम दोनो मेरी यहीं प्रतीक्षा करो.

ख़तरा—जो आग्या मालकिन.

अग्नि आश्रम के अंदर चली गयी …वहाँ पहुच कर उसने अन्य ऋषियो के पूछने पर उसने बताया कि वो कनक ऋषि से मिलने आई है….

एक शिस्य—आप कुछ देर यही इंतज़ार करिए देवी…मैं गुरुदेव को आप के बारे मे सूचित कर देता हू.

अग्नि—आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

वो शिस्य आश्रम के अंदर बनी हुई एक कुटिया के भीतर चला गया….जहाँ उसने कनक ऋषि को अग्नि के विषय मे बताया…कनक ऋषि
उस समय विश्राम कर रहे थे.

कनक—ठीक है, उन देवी को आदर सहित मेरे पास ले आओ.

शिष्य—जी गुरुदेव……(बाहर आने के बाद)—आप मेरे साथ अंदर चलिए…गुरुदेव आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं.

अग्नि—जी, चलिए.

अग्नि उस शिष्य के साथ कुटिया के अंदर आ गयी….कनक ऋषि बिस्तर से उठ कर अपने आसान मे विराजमान हो चुके थे अग्नि ने उन्हे प्रणाम किया.

अग्नि—कनक ऋषि के चर्नो मे एक तूक्ष साध्वी का प्रणाम.

कनक—आओ…देवी अग्नि..तुम्हारा मेरे इस आश्रम मे स्वागत है.

अग्नि—ये तो मेरा अहो भाग्य है कि मुझे आपके दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ.

कनक—आप कोई साधारण कन्या नही हैं देवी….आप तो अग्नि कुंड से उत्तपन्न हुई हैं…अग्नि पुत्री हैं….फिर भी कहिए देवी अग्नि….मैं आपकी क्या सहयता कर सकता हू….?

अग्नि—हे मुनि श्रेष्ठ…मैं अपने पति आदित्य राजवंश की तलाश मे आपके श्री चर्नो तक आई हूँ…कृपया मेरा मार्ग दर्शन कीजिए.

कनक—आप धन्य हैं देवी….और धन्य है आपकी पति भक्ति…आप के सुमधुर वचनो ने मेरा हृदय भी जीत लिया है, पुत्री….मैं अवश्य ही
आपकी मदद करने का हर यथा संभव प्रयास करूँगा जहाँ तक मेरे अधिकार क्षेत्र की सीमा के तहत संभव हो सकेगा.

अग्नि—मैं सदैव आपकी अभारी रहूंगी मुनिवर.

ऋषि कनक अपनी आँखे बंद कर के ध्यान मुद्रा मे आसीन हो गये.....ध्यान मे जाते ही उन्हे सब ग्यात हो गया कि अग्नि किस के विषय मे जानने के लिए यहा आई हुई है....ध्यान मे कुछ देर रहने के बाद उन्होने अपनी आँखे खोली.

कनक—पुत्री....बात आज से काई वर्ष पहले की है.....जब मैं एक बार ब्रम्‍हा जी की तपस्या करने के लिए जा रहा था.
 
अपडेट-93

कनक—आप कोई साधारण कन्या नही हैं देवी….आप तो अग्नि कुंड से उत्तपन्न हुई हैं…अग्नि पुत्री हैं….फिर भी कहिए देवी अग्नि….मैं
आपकी क्या सहयता कर सकता हूँ….?

अग्नि—हे मुनि श्रेष्ठ…मैं अपने पति आदित्य राजवंश की तलाश मे आपके श्री चरणो तक आई हूँ…कृपया मेरा मार्ग दर्शन कीजिए.

कनक—आप धनी हैं देवी….और धनी है आपकी पति भक्ति…आप के सुमधुर वचनो ने मेरा हृदय भी जीत लिया है, पुत्री….मैं अवश्य ही
आपकी मदद करने का हर यथा संभव प्रयास करूँगा जहा तक मेरे अधिकार क्षेत्र की सीमा के तहत संभव हो सकेगा.

अग्नि—मैं सदैव आपकी अभारी रहूंगी मुनिवर.

ऋषि कनक अपनी आँखे बंद कर के ध्यान मुद्रा मे आसीन हो गये.....ध्यान मे जाते ही उन्हे सब ग्यात हो गया कि अग्नि किस के विषय मे जानने के लिए यहा आई हुई है....ध्यान मे कुछ देर रहने के बाद उन्होने अपनी आँखे खोली.

कनक—पुत्री....बात आज से कयि वर्ष पहले की है.....जब मैं एक बार ब्रम्‍हा जी की तपस्या करने के लिए जा रहा था.

अब आगे.....

कनक—तपस्या के लिए जाते वक़्त मार्ग मे मुझे एक युवक अचेत अवस्था मे मिला....मैने अपने कमंडल से उसके उपर जल की कुछ बूंदे डाल कर उसकी चेतना को वापिस लाने का प्रयास किया किंतु सफल नही हो सका.

अपने कुछ सिश्‍यो की मदद से मैं उस युवक को यहाँ आश्रम मे ले आया और उसका उपचार करने लगा...मैने उसकी पहचान जानने के लिए
जब ध्यान योग मे लीन हुआ तब उसके विषय मे जान कर मैं चौंक गया.

क्यों कि वह युवक इस लोक का था ही नही....वो एक महान सत्य निष्ठ कर्मठ कर्मयोगी था....ऐसे महान विभूति के मेरे आश्रम मे आने से मेरा
कर्तव्य और भी बढ़ गया था.

मैने अपने शिष्यो के साथ दिन रात उसको ठीक करने के लिए अथक परिश्रम किया लेकिन कोई सार्थक परिणाम निकल कर सामने नही आया.

मैने हर तरह से उसको ठीक करने के यत्न किए...इन्न प्रयासो के चलते मैने अपनी शक्तियो की मदद से उसके मस्टिस्क की यादो को चेतना शून्या नही होने दिया.

ऐसे ही उपचार करते हुए ना जाने कितने वर्ष निकल गये...किंतु उसकी स्थिति यथावत बनी रही...उसमे जान होते हुए भी बेजान की ही तरह हो कर रह गया था.

तभी आज से पाँच वर्ष पहले मेरे कुछ शिष्य यहाँ पास मे ही जीवन दाइिनी माँ गंगा के तट पर स्नान कर रहे थे उससी समय उन्हे कोई युवक गंगा मे बहता हुआ दिखाई दिया.

उन्होने उसको शीघ्र ही पानी से बाहर ले आए किंतु जैसे ही उस युवक को देखा तो सभी चौंक गये क्यों कि वो युवक आश्रम मे मरणासन्न अवस्था मे पड़े युवक का हम शकल था.

सभी शिष्य उस युवक को बेहोसी की हालत मे ही मेरे पास यहा आश्रम मे ले आए...एक पल के लिए तो उसको देख कर मेरी बुद्धि भी भ्रमित हो कर रह गयी थी.

उसके शरीर पर काई जगह किसी तेज़ धारदार हथियार से किए गये गहरे चोट के निशान इस बात का प्रमाण थे कि गंगा मे गिरने से पूर्व
उसके उपर किसी ने छल से हमला किया है क्यों की घाव अधिकतर उसकी पीठ पर थे.

मैने ध्यान साधना से उसके बारे मे सब पता कर लिया और उस दिन मुझे ये भी ग्यात हो गया कि मैं अब तक पहले वाले युवक की चेतना वापिस लाने मे क्यो असमर्थ रहा.

क्यों कि दोनो का ही एक ही नाम था..आदिरीशि...वैसे पहले वाले युवक को लोग ऋषि के नाम से और दूसरे को आदी के नाम से जानते
हैं....और ये दूसरा युवक पहले वाले का पुनर्जनम था ..इसलिए पहले वाले की चेतना वापिस नही लौट रही थी.

मैने जड़ी बूटियो की मदद से उसका उपचार करके उसके सभी घाव को भर दिया...इस उपचार से उसकी हालत मे धीरे धीरे सुधार होने लगा.

जब वो शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ हो गया तो मैने ऋषि अष्टवक्र की सहयता से पहले वाले युवक की स्मृतीयो को उसके मस्तिस्क से निकाल कर दूसरे के मस्तिस्क से जोड़ दिया.

इस प्रक्रिया मे लगभग चार वर्ष लग गये...इसके पश्चात ऋषि का शरीर नष्ट हो गया....और आदी की चेतना धीरे धीरे लौटने लगी.

चेतना वापिस आने के बाद आदी ने एक वर्ष यही आश्रम मे व्यतीत किया ..तत्पश्चात उसके मित्र मुनीश के साथ उसको स्वर्ग लोक गुरु
\
 
विश्वामित्र से शिक्षा ग्रहण करने भेजा गया है.

अग्नि (खुशी से)—इसका..मतलब मेरे पति जीवित हैं..... ?

कनक—हाँ..देवी अग्नि आपका पति जीवित भी है और सुरक्षित भी.

आदी के जीवित होने की बात कनक ऋषि के मुखर बिंदु से सुन कर अग्नि खुशी से भाव विभोर हो गयी..उसकी आँखो से हर्ष और विशद के
मिश्रित भाव उमड़ पड़े और वो आँसुओं के रूप मे बाहर छलक आए.

कनक—पुत्री..आपके पति के साथ जो कुछ भी घटित हुआ उसमे किसी का कोई दोष नही है....ये सब विधाता का लिखा लेख था.

अग्नि—फिर भी ऋषिवर...जो कुछ उन लोगो ने मेरे पति के साथ किया उसके लिए उन्हे क्षमा भी तो नही किया जा सकता.

कनक—बेटी मैने कहा ना कि ये सब होना पूर्व निर्धारित था….ज़रा सोचो..अगर आदी के साथ उन लोगो ने ये सब नही किया होता तो क्या गणपत राई की लड़की की जान बच सकती थी... ? क्या वो यहाँ तक पहुच सकता था... ? और अगर वो यहाँ तक नही पहुचता तो क्या वो अपने वास्तविक अस्तित्व से परिचित हो पता.... ? क्या आदी और ऋषि की यादे एक हो पाती.. ? अगर दोनो की यादे एक नही होती तो उस लड़की के निश्चल प्रेम का क्या होता जो उसके वापिस आने का सदियो से इंतज़ार कर रही है.... ? उस माँ का क्या होता जो अपने बेटे से एक
बार मिलने के लिए कब से तड़प रही है... ? क्या वो फिर से आदिरीशि बन पाता.... ? और अगर वो अदीरिशि नही बनता तो उसके जनम का उद्देश्य ही अधूरा रह जाता...हर जगह केवल पाप और अंधकार का ही राज्य कायम हो जाता, जिसके की विनाश के लिए आदिरीशि का पुनर्जनम अत्यंत आवश्यक था.....तुम बस इतना समझ लो की ये सब घटनाए काई बिखरी हुई कड़ियो को एक करने की दिशा मे विधाता द्वारा रची गयी माया का एक हिस्सा थी.

अग्नि (हैरान)—कौन सी लड़की इंतज़ार कर रही है सदियो से... ? कौन सी माँ.... ? कैसा उद्देश्य.... ? मैं कुछ समझी नही गुरुदेव....कृपया
सविस्तार समझाने की कृपा करे...

कनक—वो लड़की जो उसको अपना सर्वस्व मनती है....उसके रूप सौंदर्या के सामने स्वर्ग लोग की अप्सरए भी नगण्य हैं....रणक्षेत्र मे वो रणचंडी के समान है....प्रेम मे उसके चंद्रमा की शीतलता है...आदिरीशि के हृदय की आत्मा है वो लड़की.... माता महाकाली की उस शिस्या का नाम है राजनंदिनी.

कनक—देवी आदि की मौसी मेघा ही उसकी असली माँ है....

अग्नि—कृपया मुझे राजनंदिनी और आदिरीशि के बारे मे विस्तार से बताइए..

कनक—बेटी, ये बात काई सदियो पुरानी है..जब**************

अग्नि—आज मैं धनी हो गयी मुनिवर….मुझे अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा है कि मैं ऐसे महा पुरुष की पत्नी हूँ…..पर गुरुदेव क्या वो
मुझे स्वीकार करेंगे….? क्यों की उन्होने आज तक दिल से मुझे अपनी पत्नी नही माना है….वो तो लड़कियो से दूर भागते थे.

कनक—बेटी…उसने तुम्हे या किसी को भी अपने हृदय मे स्थान नही दिया क्यों कि वो रिक्त ही नही था…..उसके हृदय स्थल पर तो सिर्फ़ राजनंदिनी है…भले ही उसको उसके बारे मे कुछ याद ना हो किंतु कही ना कही उसके दिल मे राजनंदिनी के अमर प्रेम की छाप तो लगी हुई थी जो उसको किसी के साथ जुड़ने से रोक देती थी….इसलिए ही उसने किसी के प्रेम को स्वीकार नही किया….और दूसरी बात ये भी थी की वो खुद भी अपने वास्तविक पहचान से अन्भिग्य था….किंतु अब हालत अलग हैं…वो तुम्हे ज़रूर स्वीकार करेगा….देवी अग्नि तुम्हारे
जनम का भी एक विशेष प्रायोजन है, जो समय आने पर तुम्हे मालूम चल जाएगा.

अग्नि—मुझे उनके दर्शन कब होंगे….?

कनक—समय की प्रतीक्षा करो देवी….जल्द ही सब का उससे मिलन होगा….तब तक आप अपने परिवार मे शामिल हो कर उनके दुख दर्द की सहभागी बन कर उन्हे सांत्वना प्रदान करो.

अग्नि—क्या आप श्री के विषय मे मुझे कुछ जानकारी दे सकते हैं….?

कनक—श्री ही तो वो महत्वपूर्ण कड़ी है जिसकी वजह से आदिरीशि को आदि के रूप मे धरती पर जनम लेना पड़ा… वो जहाँ भी है, समय आने पर आप लोगो तक पहुच जाएगी.

अग्नि—जो आग्या ऋषिवार…अब मुझे जाने की अनुमति प्रदान करे.

कनक—आपकी मनो कामना पूर्ण हो देवी.

अग्नि आश्रम से बाहर निकल कर ख़तरा और चित्रा के पास आ जाती है और उन्हे सारा व्रतांत कह सुनती है…जिसे सुन कर वो दोनो भी बहुत खुश हो जाते हैं.

अग्नि उन्न दोनो के साथ उर्मिला को देखने के लिए हॉस्पिटल की ओर चल पड़े…वही परी लोक मे सोनालिका बिस्तर मे लेटे हुए अपनी पुरानी
यादो मे खोई हुई थी..जब वो आदी को छोड़ कर पारी लोक वापिस लौट आई थी.

शॉर्ट फ्लॅशबॅक

आज परी लोक मे आदी का राज तिलक करने के लिए पूरा परी लोक और अन्या लोक के प्रतिनिधि उपस्थित थे…सभी के चेहरो पर उत्साह देखते ही बनता था.

आदी को भला बुरा कहने और आरोप प्रत्यारोप लगाने के बाद सोनालिका श्री के वहाँ से जाने का कहने पर गुस्से मे परी लोक लौट आई.

महाराज और महारानी सोनालिका को आया देख कर बहुत खुश हुए…किंतु जब उन्होने उसके साथ मे आदी को नही देखा तो सोच मे पड़ गये क्यों की राज तिलक के मुहूर्त का समय नज़दीक ही था.

महारानी—पुत्री तुम अकेली आई हो…? दामाद जी और हमारे होने वाले महाराज कहाँ हैं…?

सोनालिका (गुस्से मे)—मत कहो महाराज उस पापी को….वो हमारा महाराज बनने के काबिल नही है….और ना ही मेरा पति बनने योग्य है….पता नही कहाँ से आप लोगो को उसके अंदर आदिरीशि के दर्शन हो गये….? जबकि वो एक नंबर का धोखेबाज़ और मक्कार, हवश का पुजारी इंसान है…

महाराज और महारानी सोनालिका के इस बदले व्यवहार से आश्चर्य चकित रह गये…उससी समय गुरुजी भी वहाँ आ गये…सारी बाते सुन कर उन्हे बेहद क्रोध आया.

गुरुजी (क्रोध)—आप अपने होश मे तो हैं ना राजकुमारी….? आप को ग्यात भी है कि आप क्या और किस के विषय मे अनर्गल बाते किए जा रही हैं….?
 
सोनालिका—मैं बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ कि मैं किस को क्या कह रही हूँ….वो तो अच्छा हुआ कि आज वहाँ अलीज़ा आ गयी तो
उस व्यभिचारी की सारी पॉल खुल गयी और मैं उसके हवश का शिकार होने से बच गयी.

गुरुजी (ज़ोर से)—मूर्ख लड़की..लगता है तुझे अपने रूप पर बहुत ज़्यादा ही अभिमान हो गया है….उस लड़की के पास तो बुद्धि नही थी…किंतु तुम ये कैसे भूल गयी कि तुम आज अगर यहाँ सुरक्षित खड़ी हो तो उसी आदी की बदौलत खड़ी हो….उसने ही तुम्हे और तुम्हारे माता पिता को तांत्रिक जादूगर कपाली की क़ैद से आज़ाद करवाया था.

गुरुजी (चिल्लाते हुए)—उसने किस के साथ व्यभिचार किया…? क्या उसने तुम्हारी अस्मत लूटने की कभी चेष्टा की…? तुम्हारे पास तो शक्तिया थी, उन्न शक्तियो की मदद से तुम सत्य क्या है ये देख सकती थी…लेकिन तुमने दूसरो के कहने पर विश्वास किया.

गुरुजी (गुस्से मे)—महाराज आपकी ये राजकुमारी…परिलोक तो क्या किसी भी लोक की महारानी होने के योग्य नही है…मैं परी लोक का आज त्याग करता हू..और तपस्या के लिए जा रहा हू..आप अपने लोक के लिए दूसरा गुरु तलाश कर ले.

गुरुजी गुस्से मे वहाँ से चले गये…राज तिलक का कार्य क्रम स्थगित करने की घोसना महाराज करने ही जा रहे थे कि सोनालिका वहाँ भी आ
गयी और अभिमान के चलते उसने खुद को परी लोक की महारानी घोसित कर दिया.

महाराज और महारानी संतान मोह के आगे विवश हो गये….किंतु राज तिलक के लिए सोनालिका जैसे ही सिंघासन पर बैठने को हुई वैसे ही
सिंघासन ने उसको उठा कर परी लोक से बाहर फेंक दिया.

उसी समय यहाँ आदी के उपर हमला हुआ और वहाँ सिंघासन और राज मुकुट अदृश्य हो गये…उनके अदृश्य होते ही परी लोक मे अंधकार
छा गया…ये अंधकार छाते ही तमराज कील्विष् की आज़ादी का मार्ग प्रशस्त हो गया.

परी लोक मे सिंघासन द्वारा ठुकराए जाने और फिर अंधेरा व्याप्त होते ही सोनालिका को कुछ कुछ संदेह होने लगा उसने अपनी शक्तियो की
मदद से आदी का सच जानने की कोशिश की और सच पता चलते ही उसके अंतर आत्मा मे बहुत गहरा आघात लगा.

सोनालिका (मन मे)—ये मैने क्या अनर्थ कर दिया….? जिसकी मुझे पूजा करनी चाहिए थी मैने उसका ही अपमान कर दिया …यहाँ तक कि कितने घिनोने आरोप तक लगा दिए…आज मेरी ग़लती की वजह से वो जीवित नही रहे….धिक्कार है मेरे जीवन पर.

सोनालिका अपने कृत्य से दुखी हो कर पछताने लगी…किंतु अब बहुत देर हो चुकी थी…इश्स दुख से दुखी हो कर वो कमजोर होती चली
गयी और आज की इस हालत मे पहुच गयी.

फ्लॅशबॅक एंड

आइए अब चल कर तनिक देखते हैं कि झींगा लाला और दमदमी माई के बीच कौन सी खिचड़ी पक रही है….
 
अपडेट—94

जयकाल ने राजनंदिनी यानी श्री की खोज का काम झींगलाला और दमदमी माई को सौंप दिया और जल्द से जल्द उसका पता लगाने को कहा…दोनो अपने काम मे जुट गये.

झींगलाला और दमदमी माई की उमर कोई ज़्यादा नही थी….झींगा लाला की लगभग 200 साल और दमदमी माई की 180 साल…लेकिन वो फिर भी 25 साल की लड़की पर भी भारी थी.

झींगलाला—चलो बहुत दिनो बाद तू मुझे अकेले तो मिली….अब दोनो मिल के काम करेंगे.

दमदमी माई—तू मुझसे दूर ही रहना…समझ गया ना

झींगलाला—कितना जुर्म करती हो मेरी दमदमी

दमदमी—लगता है तेरी शिकायत तमराज से करनी पड़ेगी…? हमे उस लड़की राजनंदिनी को तलाश करना है..उसमे ध्यान लगा अपना.

झींगलाला—अरे तुम भी कहाँ उसके पीछे पड़ी हो….वो अपने तमराज के हाथ आने वाली नही है….राजनंदिनी हमसे ज़्यादा चालू चीज़ है.

दमदमी—लगता है कि तेरे तन्त्र मन्त्र मे अब ताक़त नही रही जो ऐसे डरपोक जैसी बाते कर रहा है…?

झींगलाला—तन्त्र मन्त्र का तो पता नही पर तेरा जादू ज़रूर असर कर रहा है मुझ पर..दमदमी जादूगरनी ... .राजनंदिनी को छोड़ और आ जा हम दोनो उधर कोने मे चलते हैं.

दमदमी (आँखे दिखाते हुए)—मैं तेरी ज़बान खिच लूँगी, कमिने.

झींगलाला—गुस्से मे तू ना बिल्कुल सन्नी ळेओन लगती है..दमदमी

दमदमी—अब ये सन्नी ळेओन कौन है….?

झींगलाला—सन्नी लेओन भारत की हेरोयिन है…अरे उसके चर्चे तो शैतान लोक तक मे होते हैं…और तुम सन्नी लेओन को नही जानती….?

दमदमी—हाँ नही जानती…वैसे क्या खूबी है तुम्हारी उस सन्नी लेओन मे….?

झींगलाला—सन्नी लेओन है ना…….वो सन्नी देओल का स्त्री (फीमेल) रूप है….उसके भी बड़े बड़े हैं….जिन्हे देखने के बाद आदमी उठता नही है……आदमी का उठ जाता है.

दमदमी—हरामी….मैं तेरा मूह तोड़ दूँगी….तुझे जादू से कुत्ता बना दूँगी

झींगलाला—गुस्सा क्यो होती हो…मैं तो उसकी खूबी बता रहा था.

दमदमी—मैं सब जानती हूँ तेरी चाल….लेकिन मेरा नाम भी दमदमी माई है…तेरे ऐसे किसी झाँसे मे नही आने वाली..समझा…और अब चल उसको ढूढ़ने मे मेरी मदद कर.

झींगलाला—हाँ..हाँ..चलो

दोनो राजनंदिनी की तलाश मे निकल पड़े…..जबकि दूसरी तरफ चारो दोस्त हॉस्पिटल से श्री के इस तरह से अचानक गायब हो जाने से बहुत परेशान थे….चारो ने फ़ैसला किया कि वो दो दो के ग्रूप मे श्री की तलाश करेंगे और अपने काम मे जुट गये.

ऐसे ही घूमते हुए दोनो जा रहे थे कि तभी उनकी नज़र नॅंगू और गंगू पर पड़ी....वही नॅंगू और गंगू ने भी इन्न दोनो को यहाँ देख कर चौंक गये.

झींगलाला (चौंक कर)—ये नंगा पुंगा यहाँ क्या कर रहे हैं…..?

दमदमी—ये ज़रूर राजनंदिनी के साथ आए होंगे….कहीं उसने इन्न दोनो को हमारा भेद तो लेने नही भेजा यहाँ…?

झींगलाला—तब तो हमे इन्न पर नज़र रखनी चाहिए.

दमदमी—हाँ…यही सही रहेगा….तुम इन्न पर नज़र रखो, मैं राजनंदिनी को तलाश करती हूँ.

दमदमी दूसरी दिशा मे राजनंदिनी की खोज मे निकल गयी….नॅंगू और पंगु इन्न दोनो को देख कर गहन चिंतन मे खो गये.

नॅंगू—ये दोनो यहाँ कैसे….?

पंगु—कही इन्न दोनो ने ही तो श्री को गायब नही किया….?

नांगु—मुझे भी ऐसा ही लग रहा है.

झींगलाला—मैं इनसे क्यो डर रहा हूँ…मैं तांत्रिक हूँ…अभी जा कर इन्हे सबक सिखाता हूँ.

पंगु (डरते हुए)—अरे यार वो इधर ही आ रहा है…अब क्या करे….?

नांगु—मेरे दिमाग़ मे एक आइडिया है….तू जल्दी से यहाँ जितनी भी जनवरो की हड्डिया हैं उनको एकट्ठा कर के ले आ.

पंगु ने आस पास मे पड़ी कुछ हड्डियो को समेट कर ले आया और फिर दोनो झींगलाला की ओर पीठ कर के बैठ गये झींगलाला जैसे ही
\ उनके पास पहुचा वैसे ही नॅंगू ज़ोर ज़ोर से कहने लगा.

नांगु (ज़ोर से)—वाह…पंगु..मज़ा आ गया..आज तो शैतान लोक के तांत्रिक का माँस खाने मे मज़ा आ गया.

पंगु—काश कि एक और तांत्रिक मिल जाए शैतान लोक का तो मैं भी उसको मार के खा जाउ.

झींगलाला (मान मे)—ये तो तांत्रिक का माँस खा रहे हैं वो भी शैतान लोक के….ज़रूर राजनंदिनी ने इन्हे शक्तिया दी होगी….ये मेरी ही खोज
मे आए होंगे ..मुझे मार कर खाने के लिए…दोनो की पीठ मेरी तरफ है.. अच्छा मौका है, चुप चाप यहा से जान बचा कर निकल लेता हूँ.

झींगलाला वहाँ से तेज़ी से भाग कर दमदमी माई के पास आ गया और उसको सारी बाते कह सुनाई...जिसे सुनने के बाद दमदमी उसको
भला बुरा सुनाने लगी.

दमदमी—किसी काम के नही हो तुम....कायर कही के....चलो मेरे साथ मैं अभी उन्हे मज़ा चखाती हूँ.
 
नॅंगू पंगु अब निश्चिंत हो गये थे कि झींगलाला भाग गया उनकी तरकीब से....लेकिन जब उसको फिर से अब की बार दमदमी माई के साथ आते देखा तो दोनो की जान सूखने लगी.

पंगु—ये तो फिर आ गया और साथ मे डाइन को भी ले आया....लगता है कि आज हमारी मौत पक्की है.

नॅंगू—डर तो अब मुझे भी लग रहा है...फिर भी चल एक बार फिर वही तरकीब करते हैं...अगर कोई फ़ायदा हुआ तो ठीक नही तो मरना पक्का है ही.

दमदमी और झींगा लाला दोनो नांगु पंगु के करीब पहुचते ही उनकी बाते सुन कर वही रुक गये और उनकी बातो को ध्यान से सुनने लगे.

नॅंगू—यार...ये लड़की भी ना कितना टाइम लगती है है....अपनी मन्त्र शक्ति से मैने एक लड़की को दमदमी माई के रूप मे कोई तांत्रिक को पकड़ कर लाने भेजा था...अभी तक नही आई....बहुत भूख लगी है.

पंगु—यार सुना है कि यहाँ शैतान लोक से तांत्रिक झींगा लाला आया है....तुम चिंता मत करो...वो ज़रूर किसी ना किसी तरह से झींगा लाला को यहा ले ही आएगी....फिर हम दोनो उसको मार के खाएँगे...हहेहहे

ये सुनते ही झींगा लाला काँप गया और उसने जल्दी जल्दी दमदमी माई को चार पाँच बार उठा उठा के पटका और फिर वहाँ से भाग खड़ा हुआ....दमदमी गुस्से मे झींगा लाला के पीछे पीछे भाग गयी.

वही दूसरी तरफ गुरु विश्वामित्र आदिरीशि को युद्ध शिक्षा देने मे निरंतर तत्पर थे…..उसे सूभ ब्रम्हा मुहूर्त मे ही उठा दिया जाता था.

उस समय व्यायाम और ऊँचे ऊँचे उबड़ खाबड़ पहाड़ो पर दौड़ते हुए तेज़ी रन्निंग की ट्रैनिंग दी जाती थी… उसके बाद अश्त्र शस्त्र चलाने का
अभ्यास कराया जाता था….कभी कभी अदिई शराराते भी कर दिया करता था, जो बाकी लोगो के लिए भारी पड़ जाता था.

ऐसे ही उस आश्रम मे एक ऋषि थे दमनाक….उनकी लड़की का नाम राधा था….वो चोरी चोरी आदी को नित्य प्रति दिन युद्ध अभ्यास करते
हुए देखती थी और शायद मंन ही मन आदी से प्रेम भी करने लगी थी.

दमनाक ऋषि की एक गाय थी जिसका नाम वैसे तो दामिनी था….उसका दूध अत्यंत मीठा अमृत सद्रश लगता था पीने मे….आदी के लिए
दोनो प्रहर उसका ही दूध पीने के लिए आता था.

लेकिन आदी उसको (काउ) प्यार से राधा कहता था…हालाँकि उसको ये पता नही था कि दमनाक ऋषि की पुत्री का नाम भी राधा है…इसी चक्कर मे बवाल मच गया.

सुबह कसरत कर के लौट रहे आदी को दमनाक ने रास्ते से ही अपने पास बुला लिया…उस समय वहाँ और भी शिष्य मौजूद थे.

दमनाक—आओ पुत्र हो गया व्यायाम.

आदी—हाँ..मुनिवर

दमनाक—अरे बेटी कुछ पीने के लिए ले आना..देखो कौन आया है…?

राधा ने जैसे ही बाहर झाँक कर देखा तो आदी को आया देख खुश हो कर अंदर से वो दो ग्लास दूध ले आई और दोनो के पास रख दिया.

दमनाक—लो वत्स दूध पियो…सेहत और मजबूत बनेगी.

आदी—क्षमा करे रिशिवर…लेकिन मैं ये दूध नही पी सकता.

दमनाक—क्यो इस दूध मे कोई खराबी है…?

आदी—ऐसी तो कुछ बात नही है…दर असल मुझे तो सिर्फ़ राधा (काउ) का ही दूध पीना अच्छा लगता है…उसका दूध मुझे पसंद है.

ये सुनते ही दमनाक ने जो दूध पिया ही था मूह मे वो फुरररर कर के बाहर आ गया….राधा तुरंत शरमा कर भीतर भाग गयी….और इधर
दमनाक का दिमाग़ चकराने लगा….साथ मे बाकी शिष्य भी चौंक गये.

आदी—वैसे कितना दूध निकल आता होगा….? राधा के दूध हैं तो बड़े बड़े…हर एक मे कम से कम पाँच पाँच लीटर तो निकल ही आता होगा.

दमनाक (गुस्से मे)—निकल जाओ यहाँ से….निर्लज्ज, अशभ्य, निरंकुश बालक…इससे पहले कि मैं तुम्हे अपने श्राप से भस्म कर दूं..दूर हो जा मेरी नज़रों से.

आदी (चौंक कर)—मैने ऐसी क्या ग़लत बात कर दी मुनिवर जो आप अचानक क्रोधित हो गये…? मुझे तो बस राधा के दूध की तारीफ ही तो कर रहा था.

दमनाक (चिल्लाते हुए)—आदिइई….

आदी—ठीक है….मैं चला जाता हूँ लेकिन राधा का दूध मैं ही पियुंगा.

दमनाक—आदिइईई…….गुरुदेव…इसको कहाँ से पकड़ लाए आप…..? ये तो हमारा ही जन कल्याण कर देगा.

दमनाक गुस्से मे उठ कर ऋषि विश्वामित्र से मिलने चले गये…..उनके जाते ही राधा भागते हुए आदी के पीछे जाने लगी.

राधा—सुनिए...रुक जाइए...पिता श्री की बात का बुरा मत मानिए.

आदी—जी कहिए....लेकिन आपके पिता श्री को अचानक क्या हो गया था... ?

राधा—जैसे आपको कुछ पता ही ना हो... ?

आदी—सच मे मुझे नही पता…मैं तो अब तक हैरान हूँ.

राधा (शरमाते हुए)—आप एक बाप के सामने उसकी बेटी के बारे मे ऐसी बाते करेंगे तो वो गुस्सा ही होंगे ना.

अदिई—बेटी के बारे मे….? ….(कुछ सोच कर)—आपका नाम क्या है….?

राधा—राधा

आदी (फुल शॉक्ड)—क्य्ाआआआ……?

इधर धरती लोक मे अग्नि, ख़तरा और चित्रा के साथ उर्मिला से मिलने जा रही थी….रास्ते मे चित्रा ने अग्नि को वो जगह दिखाई जहाँ पर आदी के उपर हमला हुआ था.

अग्नि दौड़ते हुए अधीर हो कर उस जगह आ गयी और जहाँ आदि खड़ा था उस जगह की मिट्टी को प्रणाम कर के अपने माथे और माँग मे
लगा लिया….ख़तरा और चित्रा, अग्नि की ऐसी पति भक्ति देख कर नत मस्तक हो गये.

कुछ समय वहाँ रुकने के बाद वो जैसे ही चलने को हुए तो उनकी नज़रें किसी को देख कर बुरी तरह से चौंक गयी.

तीनो (चौंक कर)—श्रीईईईई……..‼
 
अपडेट-95

इधर धरती लोक मे अग्नि, ख़तरा और चित्रा के साथ उर्मिला से मिलने जा रही थी….रास्ते मे चित्रा ने अग्नि को वो जगह दिखाई जहाँ पर आदी के उपर हमला हुआ था.

अग्नि दौड़ते हुए अधीर हो कर उस जगह आ गयी और जहाँ आदी खड़ा था उस जगह की मिट्टी को प्रणाम कर के अपने माथे और माँग मे
लगा लिया….ख़तरा और चित्रा, अग्नि की ऐसी पति भक्ति देख कर नत मस्तक हो गये.

कुछ समय वहाँ रुकने के बाद वो जैसे ही चलने को हुए तो उनकी नज़ारे किसी को देख कर बुरी तरह से चौंक गयी.

तीनो (चौंक कर)—श्रीईईईई……..‼

अब आगे…….

ख़तरा (खुशी से)—श्री मालकिन भी जिंदा हैं…मालकिन हमे मिल गयी.

चित्रा—लेकिन यहाँ क्यो आई ये…?

अग्नि—शायद आदि की तलाश मे.... ? लेकिन आज श्री के चेहरे पर इतना तेज़ कैसा है…? एक अलग ही चमक दिखी उसमे मुझे….श्री के
चेहरे पर ठीक वैसा ही सौंदर्य झलक रहा है जैसा कि कनक ऋषि ने राजनंदिनी का बताया था.

चित्रा—ये बात तो ज़रूर हैरान करने वाली है….श्री तो वैसे बहुत सुंदर पहले से ही है किंतु आज उसकी सुंदरता चाँद को भी फीका कर रही है.

ख़तरा—चलो उनको भी मालिक के जिंदा होने की खुश खूबरी देते हैं…सब श्री मालकिन को जिंदा देख कर बहुत खुश होंगे.

चित्रा—ह्म..चलो

सब तेज़ी से श्री की तरफ जाने लगे जो उधर ही आ रही थी…लेकिन ये क्या श्री तो उनके बगल से ऐसे निकल गयी जैसे कि उसने इन्न लोगो को देखा ही ना हो या फिर जान बुझ कर ना पहचाना हो.

अग्नि (शॉक्ड)—श्री ने हमे पहचाना क्यो नही….?

चित्रा—वही सोच कर तो मैं भी हैरान हूँ.

अग्नि (ज़ोर से)—श्री…रुक जाओ

ख़तरा—रुक जाइए मालकिन…..

चित्रा—श्री रुक जाऊओ……आदी जिंदा हाईईईई

जहाँ श्री ख़तरा और अग्नि की बातो को अनसुना कर के आगे चली जा रही थी वही चित्रा की बात सुनते ही उसके कदम जहाँ के तहाँ रुक गये…वो चौंक के पलट कर तीनो को देखने लगी…असल मे जिसे वो श्री समझ रहे थे वो श्री नही बल्कि राजनंदिनी थी.

ख़तरा—मालकिन आप नही जानती कि आपको जीवित देख कर मुझे कितना हर्ष हो रहा है….आप अचानक उस खाई मे गिरने के बाद कहाँ गायब हो गयी थी…?

चित्रा—हां..श्री आपको परेशान होने की ज़रूरत नही है…..आदी जिंदा है….कनक ऋषि ने सब बता दिया है आदी के बारे मे.

राजनंदिनी (मंन मे)—यहाँ तो और कोई भी नही है मेरे अलावा….तो फिर ये लोग मुझे श्री के नाम से क्यो पुकार रहे हैं….? मैं तो इन्न लोगो
को नही जानती….पर ये लोग आदी को कैसे जानते हैं…?

अग्नि—ऐसे हैरानी से क्या देख रही हो श्री... ? मैं अग्नि हूँ..क्या मुझे भूल गयी... ?

राजनंदिनी (मन मे)—अग्नि के बारे मे तो राजगुरु ने बताया था...तो क्या ये वही अग्नि है... ? और क्या सच मे मेरा ऋषि जिंदा है.... ?

इतना सोचते ही उसकी आँखो मे नमी उतर आई...आख़िर उसने कितने ही वर्षो से जिसके आने की प्रतीक्षा मे राहो मे आँखे बिच्छाए बैठी थी शायद वो शुभ घड़ी जल्दी ही आने वाली है.

राजनंदिनी (भावुक हो कर)—कहाँ है वो..... ? मुझे उसके पास ले चलो..

अग्नि—वो इस समय ब्रहमरीषि विश्वामित्र के पास किसी अज्ञांत जगह पर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.

राजनंदिनी (व्याकुल)—आप का बहुत बहुत शुक्रिया...मैं उन्हे खोज लूँगी

अग्नि—तुम उन्हे कहाँ तलाश करोगी श्री…हमे उनकी प्रतीक्षा करनी चाहिए…जल्दी ही वो लौटेंगे.

राजनंदिनी (अधिरता पूर्वक)—अब मुझसे और इंतज़ार नही होता...सदियो से तो तो प्रतीक्षा ही करती आ रही हूँ.

तीनो (चौंक कर)—सदियो से..... ?

अग्नि—कहीं आप…….राजनंदिनी……..?

राजनंदिनी (चौंक कर)—तुम्हे मेरा नाम कैसे मालूम……?

अग्नि—कनक ऋषि ने मुझे आप के बारे मे सब बता दिया है….आज मैं धन्य हो गयी….आज मुझे आप जैसी प्रेम की प्रतिमूर्ति के दर्शन प्राप्त हो ही गये…मेरा जीवन सफल हो गया….आप का प्रेम धन्य है दीदी…..क्या मैं आपको दीदी बुला सकती हूँ….? मुझे अपने चरणो मे थोड़ी सी जगह दे दो…जिंदगी भर दासी बन के आप दोनो की सेवा करूँगी.

राजनंदिनी—ये तुम क्या कह रही हो अग्नि…मैं तो खुद उनके प्रेम की दासी हूँ…भला एक दासी किसी और को दासी कैसे बना सकती है…तुम मुझे ज़रूर दीदी कह सकती हो अग्नि.

राजनंदिनी ने आगे बढ़ कर अग्नि को अपने गले से लगा लिया…दोनो ही इस समय बेहद भावुक हो गयी थी…उन दोनो को देख कर चित्रा और ख़तरा की आँखे भी ऐसा निश्चल प्यार देख कर दबदबा उठी.

ख़तरा—मालकिन मैं मालिक का सेवक ख़तरा जिन्न हूँ.

अग्नि (शॉक्ड)—क्याअ जिन्न….?

ख़तरा—हाँ…छोटी मालकिन…..मैं एक जिन्न हूँ…और चित्रा एक चुड़ैल….ये हमारा वास्तविक रूप नही है….

अग्नि (शॉक)—छू…..चुड़ैल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल

ख़तरा—जी छोटी मालकिन..चित्रा एक चुड़ैल है…..एयाया….मार डाला

चित्रा (गुस्से से)—खबरदार जो मुझे फिर से चुड़ैल बोला तो.

ख़तरा—मुझे क्यो पटक दिया तूने...अब चुड़ैल को चुड़ैल नही बोलू तो क्या बोलू.... ?

चित्रा (गुस्से से)—मुझे भी छोटी मालकिन बोला कर..समझा

ख़तरा (शॉक्ड)—क्याआ.... ? क्या तू और मालकिन....कहीं तेरा दिमाग़ तो खराब नही है... ? तू एक चुड़ैल है...चुड़ैल

चित्रा (गुस्से मे)—अब मैं तुझे नही छोड़ूँगी..रुक..अभी बताती हूँ तुझे.

चित्रा फिर से ख़तरा से लड़ने लगी...राजनंदिनी ने दोनो को अलग कर के चित्रा को किसी तरह शांत किया....फिर चित्रा ने अपने बारे मे सब बताया जिसे सुन कर सब को दुख लगा.

राजनंदिनी—तुम भी मुझे अपनी दीदी कह सकती हो चित्रा.

चित्रा (खुश)—सच

राजनंदिनी—ह्म ...सच मे तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ है चित्रा….

अग्नि—अब घर चलते हैं दीदी…माँ जी की तबीयत बहुत खराब है…जब से वो गये हैं तभी से वो कोमा मे हैं.

ख़तरा—हाँ मालकिन….मालिक ने माँ जी की ज़िम्मेदारी मुझे दी थी लेकिन मैं उनकी सुरक्षा नही कर पाया…

राजनंदिनी—ठीक है चलो.

सब राजनंदिनी के साथ उर्मिला को देखने के लिए निकल गये…..उधर नन्गु पंगु दमदमी और झींगा लाला से अपनी पहचान च्छुपाने के लिए
नकली दाढ़ी मूँछ लगा कर श्री की तलाश करने लगे.

हर जगह तलाश करने के बाद भी जब श्री का कोई पता नही चला तो उन्होने दूसरे सिटी मे जा कर ढूढ़ने की सोच कर ट्रेन मे सवार हो गये दूसरी सिटी जाने के लिए….

बदक़िस्मती से उसी डिब्बे मे झींगा लाला भी राजनंदिनी की तलाश करते हुए आ टपका और नॅंगू पंगु के सामने वाली सीट मे बैठ गया.

नॅंगू (धीरे से)—अरे यार ये तो यहाँ भी आ गया…कहीं पहचान तो नही लिया इसने हमे…?

पंगु (कानाफुसी करते)—लगता है कि हमारी मौत पक्की है….ज़रूर इसने पहचान लिया होगा…पीछा ही नही छोड़ रहा है ये साला तांत्रिक…

तभी उस डिब्बे मे हरियाणा का एक चौधरी आया और अपनी मून्छो पर ताव देता हुआ एक सरदार जी के बगल मे बैठ गया...नन्गु और पंगु मे एक दूसरे की ओर देखते हुए आँखो ही आँखो मे कुछ इशारा किया...और धीरे धीरे ऐसे बात करने लगे कि जिससे झींगा लाला को सुनाई दे जाए.

नांगु—यार मैने सुना है कि मून्छो वाले आदमी के सामने उसको दिखा दिखा के ताव दो और किसी सरदार से ये पूछ लो कि बारह बज गये क्या तो हर मनोवंच्छित इच्च्छा पूरी हो जाती है.

ये सुनते ही झींगा लाला के कान खड़े हो गये...वो मंन ही मंन मे बेहद खुश हो गया कि राजनंदिनी को वो अब तलाश कर लेगा अगर ऐसा कर दिया तो.

बस फिर क्या था, मंन मे ये सुविचार आते ही उसने उस चौधरी को दिखाते हुए अपनी सफाचत मूँछो पर ताव देने लग गया....ये देख कर चौधरी को गुस्सा आ गया..वो अपनी जगह से उठा और झींगा लाला के गालो पर जड़ दिए कस के दो थप्पड़.

चौधरी—साले बिना खेती के ही हल चला रिया है तू...

झींगा लाला (गाल सहलाते हुए मंन मे)—इसने मुझे मारा क्यो... ? अब इससे नही पूछूँगा.....उस सरदार से पूछता हूँ...वो अच्छा आदमी लगता है.

झींगा लाला (सरदार से)—ओये...सरदार ....बारह बज गये क्या..... ?

उसके इतना पूछते ही सरदार जी ने आव देखा ना ताव झींगा लाला को तीन चार बार उठा उठा के पटक दिया....झींगा लाला दर्द से बिलबिलाने लगा.

सरदार—साले खोतया नू...तेरे को मैं मनमोहन सिंग लगता हूँ जो चुप रहूँगा.

झींगा लाला (मंन मे)—आआ….सालो ने मार डाला…..कहाँ हैं वो दोनो….उनके आइडिया की ऐसी की तैसी…..अभी उन्न दोनो को सबक
सिखाता हूँ.

झींगा लाला उन दोनो (नॅंगू और पंगु) को सबक सिखाने के लिए गुस्से मे मुड़ा तो चौंक गया क्यों कि झींगा लाला की पिटाई शुरू होते ही दोनो
मौका देख कर वहाँ से खिसक चुके थे.

वही दूसरी जगह आदी ने जैसे ही सुना की दमनाक ऋषि की लड़की का नाम राधा है तो वो चौंक गया...उसको दमनाक के गुस्सा होने का कारण पता लग गया था.

अदिई (शॉक्ड)—तुम्हारा नाम राधा हाईईइ….?

राधा (लाज़ से)—ह्म….आप ने पिता जी से ऐसे क्यो कहा मेरे बारे मे…?

आदी (मन मे)—यार ये तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो गयी…..मैं तो राधा उनकी काउ (गाय) को बोलता हूँ और उसके दूध पीने की बात कर रहा था…पर ये तो कुछ और ही समझ रही है…..इन लड़कियो ने तो मेरा ही कल्याण कर रखा है......बड़ी मुश्किल से उन सबसे पीछा च्छुटा था,
ये एक और आ गयी.....पहले वो मुनीश ने जन कल्याण जन कल्याण कर कर के मेरा कल्याण कर दिया….अब पता नही गुरु विश्वामित्र
मुझसे कौन सा जन कल्याण करवाना चाहते हैं... ?

राधा आदी की तरफ देखती मुश्कूराती और फिर नज़रें झुका लेती.....तभी वहाँ एक शिष्य आ गया और बताया कि आदी को गुरु विश्वामित्र ने बुलाया है तुरंत.

शिष्य—आदी तुम्हे गुरुदेव ने तुरंत बुलाया है.

आदी—क्यो कोई खास काम है क्या.... ?

शिष्य—काम का तो पता नही लेकिन दमनाक ऋषि ज़रूर बहुत गुस्से मे लग रहे थे.

आदी—चल बेटा …हो गया तेरा जन कल्याण आज तो…‼
 
अपडेट-96

राधा आदी की तरफ देखती मुश्कूराती और फिर नज़रें झुका लेती.....तभी वहाँ एक शिस्य आ गया और बताया कि आदी को गुरु विश्वामित्र ने बुलाया है तुरंत.

शिष्य—आदी तुम्हे गुरुदेव ने तुरंत बुलाया है.

आदी—क्यो कोई खास काम है क्या.... ?

शिष्य—काम का तो पता नही लेकिन दमनाक ऋषि ज़रूर बहुत गुस्से मे लग रहे थे.

आदी—चल बेटा …हो गया तेरा जन कल्याण आज तो…‼

अब आगे……

आश्रम मे एक कुटिया के अंदर गुरु विश्वामित्र अपने आसान पर बैठे हुए थे…उनके सामने ही दमनाक ऋषि और कुछ शिष्य खड़े हुए थे.

इधर आदी आश्रम जाते हुए आज की घटना पर सोच मे खो गया…उसी समय उसकी जगह ऋषि ने ले ली…..वो शिष्य उसको गुरुदेव के पास ले गया.

ऋषि—प्रणाम गुरुदेव

विश्वामित्र—कल्याण्मस्तु

ऋषि—प्रणाम ऋषि दमनाक

उसके प्रणाम करते ही आशीर्वाद देने की जगह दमनाक ऋषि की भृकुटी टेढ़ी हो गयी…..आँखो से चिंगारिया निकलने लगी….पूरा चेहरा गुस्से से तमतमा गया.

ऋषि—क्या बात है ऋषिवर..आप ने कोई आशीर्वाद नही दिया….?

दमनाक (गुस्से मे)—आशीर्वाद उसको दिया जाता है जो उसके लायक हो….किसी दुष्ट और पापी को नही.

ऋषि—कौन दुष्ट और कौन पापी….? आप कहना क्या चाहते हैं.... ? और मैने आपके साथ क्या है जो आप ने ऐसे कहा... ?

दमनाक (गुस्से मे)—अच्छा तुमने तो बड़ा अच्छा काम किया है.....देख लिया आप ने गुरुदेव इस दुष्ट को...आप जिसे जन कल्याण करने की शिक्षा दे रहे थे, और ये दुष्ट कौन सा जान कल्याण कर रहा है... ?

विश्वामित्र—शांत वत्स दमनाक शांत.....मैं बात करता हूँ.....(ऋषि की ओर मूड कर)—वत्स दमनाक का कहना है कि तुमने इनकी पुत्री के
लिए बहुत ही अभद्र शब्दो का उच्चारण किया है , उनके सामने....क्या ये सत्य है..... ?

ऋषि (चौंक कर)—क्याआअ.....अभद्र व्यवहार और मैने...वो भी इनके सामने इनकी पुत्री के लिए.... ? मैं तो इनकी पुत्री को जानता तक नही
हूँ....ये सब मिथ्या आरोप है मेरे उपर.

दमनाक (चिल्लाते हुए)—दुष्ट…..कितना जल्दी गिरगिट की तरह रंग बदल लिया….मेरे सामने मेरी ही पुत्री के लिए अशोभनीय शब्दो का संबोधन करने के उपरांत अब .उल्टा मुझे ही मिथ्या चारी कह रहा है….गुरुदेव इस पापी को कठोर दंड दीजिए…ये इस आश्रम मे रहने
योग्य नही है…यहाँ और भी ऋषियो के परिवार रहते हैं…आज इसने मेरी बेटी के साथ ऐसा किया है कल किसी और के साथ करेगा….अगर ये रहा तो पता नही किस किस का कल्याण कर देगा.

ऋषि (ज़ोर से)—ऋषि दमनाक.… तनिक होश मे रह कर बात करिए…..इस तरह का घृणित आरोप मेरे उपर लगाते हुए आप को ज़रा भी लज्जा नही आ रही….?

दमनाक (तिलमिलाते हुए)—अच्छा मैं झूठ बोल रहा हूँ.... ? तो क्या ये सब शिष्य भी झूठे हैं, जिनके सामने तुमने मेरी पुत्री के लिए अपशब्द कहे हैं... ? बहुत बड़ा झूठा है ये गुरुदेव.

ऋषि (क्रोध मे)—ऋषि दमनाक....मैं कभी असत्य नही बोलता, चाहे मेरे सर पर मौत ही क्यों ना मंडरा रही हो..तब भी मैं सत्य ही बोलता हूँ.

दमनाक (चिल्लाते हुए)—दुष्ट और कितना झूठ बोलेगा....तू हम सबको, इतने सारे लोगो को कह रहा है कि सब के सब झूठ बोल रहे हैं... ?
और तू सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र बन रहा है....गुरुदेव आप इसको दंडित करिए...और बाहर निकालिए यहाँ से इस झूठे को.

ऋषि—गुरुदेव ये आरोप निराधार और ग़लत है.

विश्वामित्र—शांत.....वत्स क्या तुम अभी कुछ देर पहले दमनाक के पास गये थे.... ?

ऋषि—नही तो गुरुदेव....मैं तो आज तक इनके आश्रम मे नही गया…मैं तो रात से अभी सो कर उठा हूँ और सीधे आपके पास चला आया…मैं इनसे आज तो क्या बल्कि कभी नही मिला.

ऋषि की बात सुन कर दमनाक पूरी तरह से चौंक कर आग बाबूला हो गया.....वो कभी ऋषि को तो कभी बाकी शिष्यों की ओर
देखता....बाकी शिष्य भी हैरान थे.

दमनाक (हैरानी से)—ओह्ह्ह...भगवान... ! कितना झूठ बोलता है रे ये लड़का....मिलने के बाद भी कहता है कि कभी नही मिला....

ऋषि—गुरुदेव क्या आपको भी मुझ पर संदेह है.... ?

विश्वामित्र—नही वत्स...तुम तो कभी झूठ बोल ही नही सकते.

दमनाक (शॉक्ड)—गुरुदेव.. ! तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ.... ? ये कल के आए छोकरे पर आपको विश्वास है और मेरी बातो पर नही…?

गुरु विश्वामित्र ने अपनी आँखे बंद कर के सारे घटना क्रम को देखा आज जो कुछ घटित हुआ था….उनके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान
तैरने लगी और उन्होने आँखे खोली और दोनो को समझाने लगे.

विश्वामित्र (मुश्कूराते हुए)—सत्य कभी कभी सब के लिए एक जैसा नही होता है…..जो एक के लिए सत्य होता है किंतु वही सत्य दूसरे के लिए असत्य होता है….और जो दूसरे के लिए सत्य होता है वो पहले वाले के लिए असत्य… हालाँकि दोनो ही अपनी जगह पर सत्य हैं.

ऋषि—सुन लिया आप ने दमनाक जी…कि मैं झूठ नही बोलता.

दमनाक—ये कैसे हो सकता है गुरुदेव....आप ने भी मुझे ही झूठा बना दिया....इसको कड़ा दंड देने की जगह

विश्वामित्र—मैने जो कहा वही सत्य है वत्स और इसे स्वीकार करना सीखो.

इसके बाद ऋषि गुरुदेव को प्रणाम कर के वहाँ से चला गया…..दमनाक भी खिन्न मंन से अपने आश्रम के लिए वापिस चल पड़ा लेकिन उसके अंदर अभी भी आदी के लिए बेहद गुस्सा भरा हुआ था.

दमनाक (मन मे)—कितना बड़ा झूठा और मक्कार है ये...आज पता चल गया....इसने गुरुदेव को भी अपने झूठे जाल मे फँसा लिया है तभी तो गुरुदेव ने भी उसको ही सही ठहरा दिया.....अब तो मैं उसको अपने आश्रम के आस पास भी नही भटकने दूँगा.
 
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