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- Dec 5, 2013
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दूसरी तरफ परी लोक मे राजनंदिनी को देख कर सभी हैरान भी थे और खुश भी….आज कयि वर्षो के पश्चात उनकी महारानी अपने राज्य मे
पुनः आई थी और उनके चरण पड़ते ही परी लोक मे छाया अंधकार दूर हो गया था.
सोनालिका को कुछ दासियों की मदद से बिस्तर पर लिटा दिया गया….राजनंदिनी अभी भी आदिरीशि की तस्वीर को देखे जा रही थी
…उसकी आँखो मे नमी और व्याकुलता दोनो ही हिलोरे ले रही थी.
गुरुदेव—आप इतने समय तक कहाँ रह गयी थी महारानी…महाराज और आपके यहाँ से चले जाने के पश्चात परी लोक निर्जीव सा हो गया था.
राजनंदिनी—राजगुरु…ये सोना को क्या हुआ है…? और वो लोग यहाँ तक कैसे पहुचे…? परी लोक मे इतना अंधकार क्यो था.... ? जबकि
सिंघासन और उस मुकुट के होते हुए तो ऐसा कदापि नही होना चाहिए था.... ?
गुरुदेव—इसकी वजह भी राजकुमारी सोनालिका ही है महारानी.
राजनंदिनी—वो कैसे.... ?
गुरुदेव—महारानी, राजकुमारी को यहाँ से कील्विष् ज़बरदस्ती उठा ले गया था.
राजनंदिनी (चौंक कर)—क्याआ कील्विष्ह.... ? किंतु वो मर चुका था ना... ?
महाराज—वो वापिस लौट आया है महारानी...उसने आते ही मेरी पुत्री को घसीट कर यहाँ से ले गया.
राजनंदिनी—ये तो बहुत ही बुरा हुआ....ये तो असंभव था...अवश्य ही इसमे नरवाली का ही कोई हाथ रहा होगा... लेकिन सिंघासन और मुकुट की शक्तियो के होते हुए ये कैसे मुमकिन हुआ की यहा इतना अंधेरा व्याप्त हो गया था.. ?
गुरुदेव—महारानी, असल मे बात ये है कि....
अब सोनालिका की कहानी सुन कर झटका खाने की बारी राजनंदिनी की थी........
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वही धरती पर आनंद के द्वारा सारी सच्चाई जान कर मेघा के दिल मे दर्द अब और भी गहरा हो चुका था… रह रह कर उसके हृदय मे एक टीस सी उठ रही थी.
ख़तरा और चित्रा इस बात को लेकर परेशान थे कि आख़िर श्री की बॉडी गयी कहाँ….लाख सोचने के पश्चात भी उन्हे कुछ भी समझ नही आ रहा था.
श्री के साथ ये दुर्घटना होने से कुछ समय पहले……..
चित्रा ने चारो दोस्तो को मार मार के वहाँ से भगा दिया....बेचारे किसी तरह से अपनी जान बचा कर वहाँ से निकल पाए नही तो आज उनकी मौत जैसे पक्की ही थी चित्रा के हाथो से.
चूतड़ (भागते हुए)—अरे रे…मार डाला रे….पता नही ये कौन मेरे पीछे पड़ गया है….जब देखो बिना बात किए ही उठा के पटक देता है.
नांगु (भागते हुए)—चूतड़ तू सही कहता था..कोई तो है जो हमे श्री से दूर रखना चाहता है, शायद वो नही चाहता कि हम श्री को सच बता सके.
पंगु (भागते हुए)—अब और नही भागा जाएगा यार मुझसे…साँस फूलने लगी है अब तो..
गंगू—चलो उस पेड़ के नीचे बैठते हैं.
सभी रोड के किनारे लगे एक पेड़ के नीचे बैठ गये…और अपनी अपनी अनियंत्रित हो रही सांसो को नियंत्रित करने लगे…
गंगू—पता नही क्या बला थी यार....बड़ी ज़ोर से पटका उसने...मेरी तो कमर ही टूट जाती अगर थोड़ी देर और वहाँ रुकता तो...
नांगु—कमर ही क्या..सब कुछ टूट जाता अगर वहाँ से भागते नही तो…लेकिन वो हो कौन सकता है और हमे श्री से दूर रखने मे उसका क्या प्रायोजन हो सकता है….?
चुतताड—ज़रूर इसमे उस कमिने अजगर का ही हाथ होगा.
गंगू—अगर ऐसा हुआ तो इसका मतलब कि श्री की जान को ख़तरा हो सकता है…हमे किसी भी तरह श्री से मिलना ही होगा चाहे इसमे फिर हमारी जान ही क्यो ना चली जाए.
पंगु—तुम सही कह रहे हो….हमे एक कोशिश और करनी चाहिए.
अभी वो बात कर ही रहे थे कि तभी एक गाड़ी उनकी आँखो के सामने से बड़ी तेज़ी से गुज़री….ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स पर चूतड़ की नज़र पड़ते ही वो चौंकते हुए ज़ोर से उच्छल कर खड़ा हो गया.
गंगू—अब इस चूतड़ को क्या हो गया…?
पंगु—वो फिर से हमारे पीछे तो नही आ गया ना...हमारा पीछा करते हुए.... ?
चूतड़ (शॉक्ड)—नही यार...चलो उठो….मुझे लगता है कि श्री की जान को कोई ख़तरा है....मैने अभी अभी उसको रोते हुए तेज़ी से गाड़ी चलते हुए देखा है.
तीनो (शॉक्ड)—क्य्ाआआअ..... ? किधर गयी है वो…?
चुतताड (उंगली से इशारा करते हुए)—उस पहाड़ी की तरफ
तीनो—चलो फिर जल्दी….श्री का पीछा करते हैं.
चारो ने तेज़ी से उस पहाड़ी की तरफ दौड़ लगा दी….लेकिन जब तक वो वहाँ तक पहुचे तब तक श्री की गाड़ी अनबॅलेन्स हो कर खाई मे
तेज़ी से नीचे की ओर जा रही थी.
चारो दोस्तो ने ये देख कर वही से गाड़ी के उपर छलान्ग लगा दी….वो गाड़ी को तो नीचे जाने से नही रोक पाए किंतु फुर्ती दिखाते हुए आगे
का दरवाजा खोल कर उसमे से श्री को बाहर खीच लिया जिसके सिर मे चोट लगने की वजह से खून बह रहा था और वो बेहोशी जैसी हालत मे पहुच चुकी थी.
बाहर निकलते ही जब चारो ने उसकी ये हालत देखी तो उन्होने श्री को यथा शीघ्र किसी डॉक्टर के पास ले जाने का निर्णय लिया…..श्री
आदी…आदी धीरे धीरे कहते हुए अंततः चेतना शून्य हो गयी…..चारो तुरंत श्री को लेकर वहाँ से चले गये.
उधर एक जंगल मे कोई आज बहुत ज़्यादा गुस्से मे था….उसकी क्रोधाग्नि को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे आज सब कुछ उसकी इस क्रोधाग्नि मे जल कर भस्म हो जाएगा.
पुनः आई थी और उनके चरण पड़ते ही परी लोक मे छाया अंधकार दूर हो गया था.
सोनालिका को कुछ दासियों की मदद से बिस्तर पर लिटा दिया गया….राजनंदिनी अभी भी आदिरीशि की तस्वीर को देखे जा रही थी
…उसकी आँखो मे नमी और व्याकुलता दोनो ही हिलोरे ले रही थी.
गुरुदेव—आप इतने समय तक कहाँ रह गयी थी महारानी…महाराज और आपके यहाँ से चले जाने के पश्चात परी लोक निर्जीव सा हो गया था.
राजनंदिनी—राजगुरु…ये सोना को क्या हुआ है…? और वो लोग यहाँ तक कैसे पहुचे…? परी लोक मे इतना अंधकार क्यो था.... ? जबकि
सिंघासन और उस मुकुट के होते हुए तो ऐसा कदापि नही होना चाहिए था.... ?
गुरुदेव—इसकी वजह भी राजकुमारी सोनालिका ही है महारानी.
राजनंदिनी—वो कैसे.... ?
गुरुदेव—महारानी, राजकुमारी को यहाँ से कील्विष् ज़बरदस्ती उठा ले गया था.
राजनंदिनी (चौंक कर)—क्याआ कील्विष्ह.... ? किंतु वो मर चुका था ना... ?
महाराज—वो वापिस लौट आया है महारानी...उसने आते ही मेरी पुत्री को घसीट कर यहाँ से ले गया.
राजनंदिनी—ये तो बहुत ही बुरा हुआ....ये तो असंभव था...अवश्य ही इसमे नरवाली का ही कोई हाथ रहा होगा... लेकिन सिंघासन और मुकुट की शक्तियो के होते हुए ये कैसे मुमकिन हुआ की यहा इतना अंधेरा व्याप्त हो गया था.. ?
गुरुदेव—महारानी, असल मे बात ये है कि....
अब सोनालिका की कहानी सुन कर झटका खाने की बारी राजनंदिनी की थी........
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वही धरती पर आनंद के द्वारा सारी सच्चाई जान कर मेघा के दिल मे दर्द अब और भी गहरा हो चुका था… रह रह कर उसके हृदय मे एक टीस सी उठ रही थी.
ख़तरा और चित्रा इस बात को लेकर परेशान थे कि आख़िर श्री की बॉडी गयी कहाँ….लाख सोचने के पश्चात भी उन्हे कुछ भी समझ नही आ रहा था.
श्री के साथ ये दुर्घटना होने से कुछ समय पहले……..
चित्रा ने चारो दोस्तो को मार मार के वहाँ से भगा दिया....बेचारे किसी तरह से अपनी जान बचा कर वहाँ से निकल पाए नही तो आज उनकी मौत जैसे पक्की ही थी चित्रा के हाथो से.
चूतड़ (भागते हुए)—अरे रे…मार डाला रे….पता नही ये कौन मेरे पीछे पड़ गया है….जब देखो बिना बात किए ही उठा के पटक देता है.
नांगु (भागते हुए)—चूतड़ तू सही कहता था..कोई तो है जो हमे श्री से दूर रखना चाहता है, शायद वो नही चाहता कि हम श्री को सच बता सके.
पंगु (भागते हुए)—अब और नही भागा जाएगा यार मुझसे…साँस फूलने लगी है अब तो..
गंगू—चलो उस पेड़ के नीचे बैठते हैं.
सभी रोड के किनारे लगे एक पेड़ के नीचे बैठ गये…और अपनी अपनी अनियंत्रित हो रही सांसो को नियंत्रित करने लगे…
गंगू—पता नही क्या बला थी यार....बड़ी ज़ोर से पटका उसने...मेरी तो कमर ही टूट जाती अगर थोड़ी देर और वहाँ रुकता तो...
नांगु—कमर ही क्या..सब कुछ टूट जाता अगर वहाँ से भागते नही तो…लेकिन वो हो कौन सकता है और हमे श्री से दूर रखने मे उसका क्या प्रायोजन हो सकता है….?
चुतताड—ज़रूर इसमे उस कमिने अजगर का ही हाथ होगा.
गंगू—अगर ऐसा हुआ तो इसका मतलब कि श्री की जान को ख़तरा हो सकता है…हमे किसी भी तरह श्री से मिलना ही होगा चाहे इसमे फिर हमारी जान ही क्यो ना चली जाए.
पंगु—तुम सही कह रहे हो….हमे एक कोशिश और करनी चाहिए.
अभी वो बात कर ही रहे थे कि तभी एक गाड़ी उनकी आँखो के सामने से बड़ी तेज़ी से गुज़री….ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स पर चूतड़ की नज़र पड़ते ही वो चौंकते हुए ज़ोर से उच्छल कर खड़ा हो गया.
गंगू—अब इस चूतड़ को क्या हो गया…?
पंगु—वो फिर से हमारे पीछे तो नही आ गया ना...हमारा पीछा करते हुए.... ?
चूतड़ (शॉक्ड)—नही यार...चलो उठो….मुझे लगता है कि श्री की जान को कोई ख़तरा है....मैने अभी अभी उसको रोते हुए तेज़ी से गाड़ी चलते हुए देखा है.
तीनो (शॉक्ड)—क्य्ाआआअ..... ? किधर गयी है वो…?
चुतताड (उंगली से इशारा करते हुए)—उस पहाड़ी की तरफ
तीनो—चलो फिर जल्दी….श्री का पीछा करते हैं.
चारो ने तेज़ी से उस पहाड़ी की तरफ दौड़ लगा दी….लेकिन जब तक वो वहाँ तक पहुचे तब तक श्री की गाड़ी अनबॅलेन्स हो कर खाई मे
तेज़ी से नीचे की ओर जा रही थी.
चारो दोस्तो ने ये देख कर वही से गाड़ी के उपर छलान्ग लगा दी….वो गाड़ी को तो नीचे जाने से नही रोक पाए किंतु फुर्ती दिखाते हुए आगे
का दरवाजा खोल कर उसमे से श्री को बाहर खीच लिया जिसके सिर मे चोट लगने की वजह से खून बह रहा था और वो बेहोशी जैसी हालत मे पहुच चुकी थी.
बाहर निकलते ही जब चारो ने उसकी ये हालत देखी तो उन्होने श्री को यथा शीघ्र किसी डॉक्टर के पास ले जाने का निर्णय लिया…..श्री
आदी…आदी धीरे धीरे कहते हुए अंततः चेतना शून्य हो गयी…..चारो तुरंत श्री को लेकर वहाँ से चले गये.
उधर एक जंगल मे कोई आज बहुत ज़्यादा गुस्से मे था….उसकी क्रोधाग्नि को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे आज सब कुछ उसकी इस क्रोधाग्नि मे जल कर भस्म हो जाएगा.