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- Dec 5, 2013
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राजनंदिनी—जा और कह दे अपने मालिक अजगर से कि राजनंदिनी अभी जीवित है..और उसके रहते यहाँ कोई अन्याय नही होगा अब.
वो सैनिक वहाँ से भाग खड़ा हुआ और मुखिया सहित पूरे गाओं वाले राजनंदिनी के पैरो मे गिर पड़े…मुखिया की वो बेटी भी उसके सामने झुक गयी.
मुखिया—आज तुमने फिर से हमारी लाज़ बचा ली…मैं कैसे तुम्हारा धन्यवाद करूँ..?
राजनंदिनी—इसकी कोई आवश्यकता नही है मुखिया जी….आज से आप सब मेरे मकान मे रहेंगे…जाइए आप सब जल्दी से अपना समान
लेकर मेरे मकान मे चलिए..इसके पहले की वो शैतान यहाँ आ जाए.
मुखिया—लेकिन इतने सारे लोग एक मकान मे कैसे आ पाएँगे…?
राजनंदिनी—मेरा मकान तिलिस्मि है…उसमे काफ़ी जगह है….उसके अंदर बिना मेरी इजाज़त के कोई प्रवेश नही कर सकता है…आप सब वहाँ सुरक्षित रहेंगे…जल्दी करिए, समय बहुत कम है..क्यों कि अगर खुद अजगर आ गया तो फिर शायद मैं भी आप लोगो को नही बचा सकूँगी उससे.
सब जल्दी जल्दी अपना अपना समान लेकर बीवी बच्चो सहित राजनंदिनी के साथ उसके मकान मे आ गये…इतने लोगो के रहने के हिसाब से जगह पर्याप्त तो नही थी किंतु फिर भी विपरीत परिस्थितियो के अनुसार काम चलाया जा सकता था.
राजनंदिनी—मैं जानती हूँ कि जगह की कुछ कमी है…लेकिन आप सब को इसमे ही कुछ दिन तक मिल जुल कर रहना होगा ये पूरी तरह से सुरक्षित है…कोई इस मकान के अंदर नही आ सकता है….हाँ बस एक बात का ध्यान रहे कि चाहे कुछ भी हो जाए कोई इसके बाहर ना निकले…जब तक आप अंदर हैं तब तक सुरक्षित हैं…सब के भोजन पानी का प्रबंध मैने कर दिया है कुछ दिनो तक किसी को दिक्कत नही होगी इसकी….मुझे अब जाना होगा, आप सब मेरी बातो का ध्यान रखना.
मुखिया—बेटी क्या अब भी तुम्हे लगता है कि वो आएगा, जो तुम रात दिन उसके लिए भटकती रहती हो…?
राजनंदिनी—मुखिया जी, जहा चाह है वही राह है…अच्छा नमस्कार
राजनंदिनी सब को कुछ हिदायतें देकर वहाँ से किसी अंजाने सफ़र पर निकल गयी….दूसरी तरफ गणपत राई ने जैसे ही आनंद और सब
को बताया कि ख़तरा आ गया है तो सभी तुरंत आशा की एक उम्मीद लिए उसके साथ साथ चल दिए.
सबसे ज़्यादा व्याकुलता तो श्री के हृदय मे हो रही थी…उसका दिल धक धक कर रहा था…वो मन ही मन यही प्रार्थना किए जा रही थी कि
आदी जिंदा हो…..गणपत उन्हे एक कक्ष मे ले गया जहाँ पर ख़तरा और चित्रा मानव रूप मे बैठे हुए थे.
गणपत—आनंद साब. इनसे मिलिए यही हैं आदी सर के दोस्त और ख़तरा जी, ये हैं आदी साहब के पिता जी.
ख़तरा (पैर छुते हुए)—वो भले ही मुझे अपना दोस्त मानते रहे हो लेकिन मैने हमेशा खुद को उनका मुलाज़िम ही समझा है.
आनंद (व्याकुल होकर)—क्या तुम बता सकते हो कि मेरा बेटा कहाँ है….? क्या हुआ था उसे…? मैने तुम्हे आज से पहले तो कभी नही देखा,
जबकि उसके सारे दोस्तो को मैं जानता हूँ.
ख़तरा—आप का कहना सही है…हालाँकि मैने कयि बार आप को देखा है….मैं साहब के बारे मे अभी कुछ नही जानता कि वो कहाँ
हैं..लेकिन जितना जानता हूँ उतना बता सकता हूँ.
श्री (हकलाते हुए)—ककक्ककयाअ…आदिइइ ज़िंदाअ है….? आदी ने मुझे तुम्हारे बारे मे बताया था.
ख़तरा—देखिए मालकिन बात दरअसल ये है कि….
फिर ख़तरा ने आदी के घर छोड़ने से लेकर उस पर हमला होने के बाद गंगा मे गिरने तक की बात को उन्हे बता दिया…जिसे सुनते ही सब
की आँखो से आँसू बहने लगे.
ख़तरा—देखिए निराश मत होइए…हमे पूरी उम्मीद है कि वो जिंदा हैं..लेकिन कहाँ और किन हालत मे हैं ये नही जानता….मैं और चित्रा इसलिए ही यहा आए हुए हैं, उनकी खोज करते हुए
मेघा—चित्रा…? कौन चित्रा…?
चित्रा—जी मेरा नाम चित्रा है…आदी मेरे भी दोस्त हैं
श्री (रोते हुए)—मेरा आदी गंगा मे डूब गया, फिर भी मैं जिंदा हूँ, लानत है मुझ पर...मुझे जीने का कोई हक़ नही है.
श्री वहाँ से रोते हुए बाहर की तरफ तेज़ी से भागी...सब उसको आवाज़ देते हुए उसके पीछे पीछे भागे लेकिन तब तक वो कार मे बैठ कर
वहाँ से निकल गयी.
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वही परी लोक मे महाराज और महारानी अपने सैनिको के साथ गुरुदेव के पास पहुचे जो कि ध्यान मे लीन थे...वो वही बैठ कर उनके ध्यान से उठने की प्रतीक्षा करने लगे.
जबकि कील्विष् सोनालिका को लेकर एक गुफा मे आ गया...सोनालिका इस समय कुछ भी बोलने मे असमर्थ थी..शायद कमज़ोरी या फिर कुछ और वजह से.
कील्विष्—हाहहाहा.....आज तुझे कोई बचाने नही आएगा....हाहहाहा
तभी वहाँ पर कोई आता है जिसे देख कर कील्विष् चौंक जाता है.
वो सैनिक वहाँ से भाग खड़ा हुआ और मुखिया सहित पूरे गाओं वाले राजनंदिनी के पैरो मे गिर पड़े…मुखिया की वो बेटी भी उसके सामने झुक गयी.
मुखिया—आज तुमने फिर से हमारी लाज़ बचा ली…मैं कैसे तुम्हारा धन्यवाद करूँ..?
राजनंदिनी—इसकी कोई आवश्यकता नही है मुखिया जी….आज से आप सब मेरे मकान मे रहेंगे…जाइए आप सब जल्दी से अपना समान
लेकर मेरे मकान मे चलिए..इसके पहले की वो शैतान यहाँ आ जाए.
मुखिया—लेकिन इतने सारे लोग एक मकान मे कैसे आ पाएँगे…?
राजनंदिनी—मेरा मकान तिलिस्मि है…उसमे काफ़ी जगह है….उसके अंदर बिना मेरी इजाज़त के कोई प्रवेश नही कर सकता है…आप सब वहाँ सुरक्षित रहेंगे…जल्दी करिए, समय बहुत कम है..क्यों कि अगर खुद अजगर आ गया तो फिर शायद मैं भी आप लोगो को नही बचा सकूँगी उससे.
सब जल्दी जल्दी अपना अपना समान लेकर बीवी बच्चो सहित राजनंदिनी के साथ उसके मकान मे आ गये…इतने लोगो के रहने के हिसाब से जगह पर्याप्त तो नही थी किंतु फिर भी विपरीत परिस्थितियो के अनुसार काम चलाया जा सकता था.
राजनंदिनी—मैं जानती हूँ कि जगह की कुछ कमी है…लेकिन आप सब को इसमे ही कुछ दिन तक मिल जुल कर रहना होगा ये पूरी तरह से सुरक्षित है…कोई इस मकान के अंदर नही आ सकता है….हाँ बस एक बात का ध्यान रहे कि चाहे कुछ भी हो जाए कोई इसके बाहर ना निकले…जब तक आप अंदर हैं तब तक सुरक्षित हैं…सब के भोजन पानी का प्रबंध मैने कर दिया है कुछ दिनो तक किसी को दिक्कत नही होगी इसकी….मुझे अब जाना होगा, आप सब मेरी बातो का ध्यान रखना.
मुखिया—बेटी क्या अब भी तुम्हे लगता है कि वो आएगा, जो तुम रात दिन उसके लिए भटकती रहती हो…?
राजनंदिनी—मुखिया जी, जहा चाह है वही राह है…अच्छा नमस्कार
राजनंदिनी सब को कुछ हिदायतें देकर वहाँ से किसी अंजाने सफ़र पर निकल गयी….दूसरी तरफ गणपत राई ने जैसे ही आनंद और सब
को बताया कि ख़तरा आ गया है तो सभी तुरंत आशा की एक उम्मीद लिए उसके साथ साथ चल दिए.
सबसे ज़्यादा व्याकुलता तो श्री के हृदय मे हो रही थी…उसका दिल धक धक कर रहा था…वो मन ही मन यही प्रार्थना किए जा रही थी कि
आदी जिंदा हो…..गणपत उन्हे एक कक्ष मे ले गया जहाँ पर ख़तरा और चित्रा मानव रूप मे बैठे हुए थे.
गणपत—आनंद साब. इनसे मिलिए यही हैं आदी सर के दोस्त और ख़तरा जी, ये हैं आदी साहब के पिता जी.
ख़तरा (पैर छुते हुए)—वो भले ही मुझे अपना दोस्त मानते रहे हो लेकिन मैने हमेशा खुद को उनका मुलाज़िम ही समझा है.
आनंद (व्याकुल होकर)—क्या तुम बता सकते हो कि मेरा बेटा कहाँ है….? क्या हुआ था उसे…? मैने तुम्हे आज से पहले तो कभी नही देखा,
जबकि उसके सारे दोस्तो को मैं जानता हूँ.
ख़तरा—आप का कहना सही है…हालाँकि मैने कयि बार आप को देखा है….मैं साहब के बारे मे अभी कुछ नही जानता कि वो कहाँ
हैं..लेकिन जितना जानता हूँ उतना बता सकता हूँ.
श्री (हकलाते हुए)—ककक्ककयाअ…आदिइइ ज़िंदाअ है….? आदी ने मुझे तुम्हारे बारे मे बताया था.
ख़तरा—देखिए मालकिन बात दरअसल ये है कि….
फिर ख़तरा ने आदी के घर छोड़ने से लेकर उस पर हमला होने के बाद गंगा मे गिरने तक की बात को उन्हे बता दिया…जिसे सुनते ही सब
की आँखो से आँसू बहने लगे.
ख़तरा—देखिए निराश मत होइए…हमे पूरी उम्मीद है कि वो जिंदा हैं..लेकिन कहाँ और किन हालत मे हैं ये नही जानता….मैं और चित्रा इसलिए ही यहा आए हुए हैं, उनकी खोज करते हुए
मेघा—चित्रा…? कौन चित्रा…?
चित्रा—जी मेरा नाम चित्रा है…आदी मेरे भी दोस्त हैं
श्री (रोते हुए)—मेरा आदी गंगा मे डूब गया, फिर भी मैं जिंदा हूँ, लानत है मुझ पर...मुझे जीने का कोई हक़ नही है.
श्री वहाँ से रोते हुए बाहर की तरफ तेज़ी से भागी...सब उसको आवाज़ देते हुए उसके पीछे पीछे भागे लेकिन तब तक वो कार मे बैठ कर
वहाँ से निकल गयी.
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वही परी लोक मे महाराज और महारानी अपने सैनिको के साथ गुरुदेव के पास पहुचे जो कि ध्यान मे लीन थे...वो वही बैठ कर उनके ध्यान से उठने की प्रतीक्षा करने लगे.
जबकि कील्विष् सोनालिका को लेकर एक गुफा मे आ गया...सोनालिका इस समय कुछ भी बोलने मे असमर्थ थी..शायद कमज़ोरी या फिर कुछ और वजह से.
कील्विष्—हाहहाहा.....आज तुझे कोई बचाने नही आएगा....हाहहाहा
तभी वहाँ पर कोई आता है जिसे देख कर कील्विष् चौंक जाता है.