hotaks444
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अभी भी तेरे पास मौका है भाग जा और जाकर कहीं छुप जा वरना वो आ गया तो तेरा क्या हाल करेगा तू इसका अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता.. मुझसे बेहतर तू नहीं जानता होगा राहुल को......फिर वो विजय की ओर देखते हुए कहती हैं- और तू तो उसका दोस्त हैं ना... तेरे जैसे गद्दार दोस्त से तो अच्छा होता कि उसका कोई दोस्त ही ना रहता... तू तो जिस थाली में ख़ाता हैं उसी में छेद करता हैं.. जब तेरी असलियत पता चलेगी तब देखना राहुल तेरा भी क्या हाल करेगा....
विजय उसका हाथ पकड़कर उसे दूसरे कमरे में ले जाता हैं- चल यार यहाँ से अब निकलते हैं.. वो सही कह रही हैं अगर वो यहाँ आ गया तो हमारी बॅंड बजा देगा... तभी बिहारी को कुछ याद आता हैं और वो अलमारी की ओर बढ़ता हैं और जाकर अलमारी में से राधिका की सारी ब्लू फिल्म्स की सीडीज़, डीवीडी, और पेनड्राइव वहीं हाल में फर्श पर रख देता हैं फिर वहीं केरोसिन का तेल उसपर गिराकर वो वहीं माचिस से आग लगा देता हैं... थोड़ी देर में वो सारी फिल्म्स जलने लगती हैं और फिर वो राधिका के पास जाता हैं और अपने दोनो हाथों को जोड़ कर वो तेज़ी से बाहर निकल जाता हैं.... और साथ ही साथ विजय भी उसके साथ निकल जाता हैं.....
इस वक़्त राधिका अभी भी अपने बापू के पास रो रही थी वहीं फर्श के पास और उसकी नज़रो के सामने उसकी सारी फिल्म्स बिहारी ने जला दिया था.... आज इस हवस की वजह से राधिका की ज़िंदगी पूरी तरह से उजड़ चुकी थी देखना ये था कि आने वाला वक़्त उसे अब किस मोड़ पर ले जाने वाला था.
अभी राहुल को वहाँ पहुँचने में करीब 1/2 घंटे का समय तो लगना ही था...अभी भी राधिका अपने बापू के पास चुप चाप वहीं बैठी सिसक रही थी... बिरजू का जिस्म पूरा ठंडा पड़ चुका था.... तभी थोड़ी देर में दरवाज़ा फिर से खुलता हैं और शंकर काका अंदर आते है और जब उनकी नज़र कमरे में पड़ती हैं तो उन्हें एक गहरा दुख होता हैं.. चौंके तो वे इसलिए नहीं थे क्यों कि उनको इस बात का अंदाज़ा पहले से था कि ऐसा ही कुछ अंजाम इसका होगा.....इस बात का अंदाज़ा उन्हें पहले से था. जिस बात का उन्हें डर था वहीं हुआ... वो धीरे धीरे अपने कदमों को बढ़ाते हुए राधिका के पास आते हैं और वहीं उसके बाजू में बैठ जाते हैं और राधिका के कंधे पर अपना हाथ रखकर उसे सांत्वना देते हैं...
इस तरह से शंकर काका को अपने पास महसूस करते ही राधिका वहीं उनके कंधे पर अपना सिर रखकर फुट फुट कर रोने लगती हैं.... शंकर काका बड़े प्यार से उसके सिर पर अपना हाथ फेरते हैं और उसे थोड़ी हिम्मत देते हैं...
शंकर- चुप हो जा बेटी.. जो हुआ वो अच्छा नहीं हुआ... मैने बिहारी को पहले भी समझाया था मगर वो मेरी बात नहीं माना.. मैं जानता था कि इसका परिणाम बहुत भयानक होगा... अगर बिहारी ने आज मेरी बात मान ली होती तो ऐसा अनर्थ कभी ना होता.....आज उसने बाप बेटी के बीच के पवित्र रिस्ते को हमेशा हमेशा के लिए कलंकित कर दिया.... और यही सदमा बिरजू नहीं सह पाया और इसी वजह से उसने आज जान दी... मैं अच्छे से जानता हूँ कि बिरजू ऐसा नहीं था.... उसने कभी तेरे बारे में ग़लत नहीं सोचा और हमेशा तेरी भलाई चाही.....अगर इसकी जगह आज मैं होता तो मैं भी यही करता जो बिरजू ने किया हैं....खैर जो हुआ बेटी उसे तो वापस लाया नहीं जा सकता...
राधिका कुछ नहीं कहती और बस एक टक शंकर काका को देखने लगती हैं... आज उसकी आँखें पूरी तरह से लाल थी...वो थोड़ी देर तक कुछ सोचती हैं फिर वो थोड़ी हिम्मत करके शंकर काका से कहती हैं...
राधिका- काका मुझे थोड़ा बाथरूम तक सहारा दे दीजिए.... मेरे जिस्म से इस वक़्त बहुत ब्लीडिंग हो रही हैं.. मुझे इस वक़्त चलने में भी बहुत तकलीफ़ हो रही हैं... अगर आप वहाँ तक मुझे सहारा देंगे तो मुझे अच्छा लगेगा.... राधिका की बातें सुनकर शंकर काका वहीं राधिका के बाजू को पकड़कर उठाते हैं और उसे अपनी गोद में अपने दोनो हाथों से उठाकर बाथरूम की ओर ले जाते हैं... ये देखकर राधिका बोल पड़ती हैं- काका आप मुझे नहीं उठा पाएँगे... अब आप बूढ़े हो चुके हैं.. बस मुझे सहारा दे दीजिए.. मैं चली जाउन्गि.....
शंकर- नहीं बेटी..... आज भी इन बूढ़े हाथों में वो ताक़त बाकी हैं.. तू फिकर मत कर.... फिर शंकर काका उसे बाथरूम की ओर ले जाते हैं....और वहीं दरवाज़े के पास राधिका को उतार देते हैं....
राधिका-काका ज़रा मेरी डायरी मुझे देंगे...
शंकर काका वहीं उसके बॅग से वो डायरी लेकर आता हैं और राधिका को वो डायरी थमा देता हैं... राधिका वहीं फर्श पर बैठ कर वो डायरी लिखने बैठ जाती हैं... ये देखकर शंकर काका की आँखें नम हो जाती हैं...
शंकर- बेटी तू ऐसा क्या लिखती रहती हैं इस डायरी में हर रोज़.....
राधिका- एक ये ही तो मेरा सहारा हैं काका ... जिसमें मैं अपनी यादें और अपना दुख सुख लिखती हूँ...जो पल मैने बिताए अच्छा बुरा.... सब कुछ... अब तो ये डायरी मेरी ज़िंदगी बन चुकी हैं....
शंकर- बेटी तू यहीं पर आराम कर और थोड़ा फ्रेश हो जा.. मैं तेरे लिए दवाई और कुछ नाश्ता वगेराह लेकर आता हूँ.... फिर मैं तुझे थोड़ी देर में अस्पताल ले चलूँगा... तू फिकर मत कर बेटी तू बिल्कुल ठीक हो जाएगी...
विजय उसका हाथ पकड़कर उसे दूसरे कमरे में ले जाता हैं- चल यार यहाँ से अब निकलते हैं.. वो सही कह रही हैं अगर वो यहाँ आ गया तो हमारी बॅंड बजा देगा... तभी बिहारी को कुछ याद आता हैं और वो अलमारी की ओर बढ़ता हैं और जाकर अलमारी में से राधिका की सारी ब्लू फिल्म्स की सीडीज़, डीवीडी, और पेनड्राइव वहीं हाल में फर्श पर रख देता हैं फिर वहीं केरोसिन का तेल उसपर गिराकर वो वहीं माचिस से आग लगा देता हैं... थोड़ी देर में वो सारी फिल्म्स जलने लगती हैं और फिर वो राधिका के पास जाता हैं और अपने दोनो हाथों को जोड़ कर वो तेज़ी से बाहर निकल जाता हैं.... और साथ ही साथ विजय भी उसके साथ निकल जाता हैं.....
इस वक़्त राधिका अभी भी अपने बापू के पास रो रही थी वहीं फर्श के पास और उसकी नज़रो के सामने उसकी सारी फिल्म्स बिहारी ने जला दिया था.... आज इस हवस की वजह से राधिका की ज़िंदगी पूरी तरह से उजड़ चुकी थी देखना ये था कि आने वाला वक़्त उसे अब किस मोड़ पर ले जाने वाला था.
अभी राहुल को वहाँ पहुँचने में करीब 1/2 घंटे का समय तो लगना ही था...अभी भी राधिका अपने बापू के पास चुप चाप वहीं बैठी सिसक रही थी... बिरजू का जिस्म पूरा ठंडा पड़ चुका था.... तभी थोड़ी देर में दरवाज़ा फिर से खुलता हैं और शंकर काका अंदर आते है और जब उनकी नज़र कमरे में पड़ती हैं तो उन्हें एक गहरा दुख होता हैं.. चौंके तो वे इसलिए नहीं थे क्यों कि उनको इस बात का अंदाज़ा पहले से था कि ऐसा ही कुछ अंजाम इसका होगा.....इस बात का अंदाज़ा उन्हें पहले से था. जिस बात का उन्हें डर था वहीं हुआ... वो धीरे धीरे अपने कदमों को बढ़ाते हुए राधिका के पास आते हैं और वहीं उसके बाजू में बैठ जाते हैं और राधिका के कंधे पर अपना हाथ रखकर उसे सांत्वना देते हैं...
इस तरह से शंकर काका को अपने पास महसूस करते ही राधिका वहीं उनके कंधे पर अपना सिर रखकर फुट फुट कर रोने लगती हैं.... शंकर काका बड़े प्यार से उसके सिर पर अपना हाथ फेरते हैं और उसे थोड़ी हिम्मत देते हैं...
शंकर- चुप हो जा बेटी.. जो हुआ वो अच्छा नहीं हुआ... मैने बिहारी को पहले भी समझाया था मगर वो मेरी बात नहीं माना.. मैं जानता था कि इसका परिणाम बहुत भयानक होगा... अगर बिहारी ने आज मेरी बात मान ली होती तो ऐसा अनर्थ कभी ना होता.....आज उसने बाप बेटी के बीच के पवित्र रिस्ते को हमेशा हमेशा के लिए कलंकित कर दिया.... और यही सदमा बिरजू नहीं सह पाया और इसी वजह से उसने आज जान दी... मैं अच्छे से जानता हूँ कि बिरजू ऐसा नहीं था.... उसने कभी तेरे बारे में ग़लत नहीं सोचा और हमेशा तेरी भलाई चाही.....अगर इसकी जगह आज मैं होता तो मैं भी यही करता जो बिरजू ने किया हैं....खैर जो हुआ बेटी उसे तो वापस लाया नहीं जा सकता...
राधिका कुछ नहीं कहती और बस एक टक शंकर काका को देखने लगती हैं... आज उसकी आँखें पूरी तरह से लाल थी...वो थोड़ी देर तक कुछ सोचती हैं फिर वो थोड़ी हिम्मत करके शंकर काका से कहती हैं...
राधिका- काका मुझे थोड़ा बाथरूम तक सहारा दे दीजिए.... मेरे जिस्म से इस वक़्त बहुत ब्लीडिंग हो रही हैं.. मुझे इस वक़्त चलने में भी बहुत तकलीफ़ हो रही हैं... अगर आप वहाँ तक मुझे सहारा देंगे तो मुझे अच्छा लगेगा.... राधिका की बातें सुनकर शंकर काका वहीं राधिका के बाजू को पकड़कर उठाते हैं और उसे अपनी गोद में अपने दोनो हाथों से उठाकर बाथरूम की ओर ले जाते हैं... ये देखकर राधिका बोल पड़ती हैं- काका आप मुझे नहीं उठा पाएँगे... अब आप बूढ़े हो चुके हैं.. बस मुझे सहारा दे दीजिए.. मैं चली जाउन्गि.....
शंकर- नहीं बेटी..... आज भी इन बूढ़े हाथों में वो ताक़त बाकी हैं.. तू फिकर मत कर.... फिर शंकर काका उसे बाथरूम की ओर ले जाते हैं....और वहीं दरवाज़े के पास राधिका को उतार देते हैं....
राधिका-काका ज़रा मेरी डायरी मुझे देंगे...
शंकर काका वहीं उसके बॅग से वो डायरी लेकर आता हैं और राधिका को वो डायरी थमा देता हैं... राधिका वहीं फर्श पर बैठ कर वो डायरी लिखने बैठ जाती हैं... ये देखकर शंकर काका की आँखें नम हो जाती हैं...
शंकर- बेटी तू ऐसा क्या लिखती रहती हैं इस डायरी में हर रोज़.....
राधिका- एक ये ही तो मेरा सहारा हैं काका ... जिसमें मैं अपनी यादें और अपना दुख सुख लिखती हूँ...जो पल मैने बिताए अच्छा बुरा.... सब कुछ... अब तो ये डायरी मेरी ज़िंदगी बन चुकी हैं....
शंकर- बेटी तू यहीं पर आराम कर और थोड़ा फ्रेश हो जा.. मैं तेरे लिए दवाई और कुछ नाश्ता वगेराह लेकर आता हूँ.... फिर मैं तुझे थोड़ी देर में अस्पताल ले चलूँगा... तू फिकर मत कर बेटी तू बिल्कुल ठीक हो जाएगी...