तभी बिरजू ने कोई 10 मिनट तक उसकी चूचिओ का मर्दन करने के बाद....
बिरजू ने रति का चेहरा चाँदनी की रोशनी में देखा... रति ने अपनी नाक में... एक बड़ी प्यारी सी नथ (बाली) पहन रखी थी.....और चाँदनी की चमक मे उसकी नथ का मोती चाँद की रोशनी में और दमकने लगा.... उसे ऐसा लगा जैसे चाँद भी रति की नथ में उतर आया हो...उसे अपनीी बहना की खूबसूरती पर गुमान होने लगा.....दोनो की आखें एक दूसरे से टकराई... और बिरजू ने.... उसकी नथ को चूम लिया.... हाई.... लौंडिया.... उन्माद के शिखर पर पहुँच गयी....
अचानक ! रति का मुहँ खुल गया....फिर बिरजू ने अपने लरजते होठ..... रति के होठों पर रख दिए....और बिरजू उसकी जीभ को अपने मुँह मे लेकर बेतहाशा चूसने लगा.... दोनो का स्मूचिंग किस कोई 10 मिनिट तक चला...रति की चूत से जैसे....पानी की धार रुकने का नाम ही नहीं... ले रही थी...दोनो जैसे एक दूसरे में समाना चाहते थे... और दोनो के लब ये बयान कर रहे.... थे और दूर चाँद भाई- बेहन का संगम देख कर मुस्करा रहा था.
रति जैसे ही होश में आई और अगले ही पल उसे अहसास हुआ कि वो अपने सगे भाई के साथ है....उसकी आखों से आँसुओं की धार टूट पड़ी...... नीचे उसकी चूत..का बाँध टूट गया.... और वो झर- झरा के झड गयी...
और साथ ही उसके.... आँसुओं का बाँध भी टूट पड़ा....और वो हिचकी ले-ले कर रो पड़ी.... और उसे अपने पाप बोध का अहसास हुआ......वो अधनंगी अवस्था में फूट-फूट कर रोने लगी....उसने बिरजू को एक धक्का सा दिया....और उठ कर खड़ी हो गयी....
बिरजू को जैसे कुछ समझ में ही नहीं आया.... बोला क्या हुआ... क्यों रो रही है....
भैया ये ग़लत है.... ये पाप है.... उसके गोरे मुखड़े से तो आसुओं की धार रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.... बिरजू बड़े विस्मय की दृष्टि से रति को देखने लगा....और उसकी कुछ समझ में नहीं आया कि अचानक रति को क्या हो गया..... लेकिन वो रति को बहुत प्यार करता था...... वो चाहता तो अभी ज़बरदस्ती भी कर सकता था.... उसकी माँ की मौन सहमति थी....
लेकिन वो कुछ नहीं बोला.... और कमरे से बाहर जाने लगा....
कहाँ जा रहे हो भैया,,,,,,,,बिरजू जाते जाते दरवाजे पर रुक गया रति की आवाज़ सुनके,,,,,,लेकिन
बिरजू वापिस नही पलटा ऑर ऐसे ही उसकी बात का जवाब देने लगा,,,,,
मैं छत पर सोने जा रहा हूँ,,,,,,,,मुझे नही लगता कि अब हम दोनो को एक कमरे मे सोना
चाहिए,,,,,,,,इतना बोलकर बिरजू वहाँ से चला गया,,,,,,,,,,,बिरजू कमरे से निकल तो गया था लेकिन
अब सोना कहाँ था ये नही पता था बिरजू उपर वाली छत की तरफ चला गया जहाँ एक बड़ा झूला है,बिरजू उससी झूले पर लेट गया,,,
काफ़ी देर तक लेटा रहा लेकिन नींद नही आई,,,
बिरजू किसी सोच में डूबा हुआ था और सारे घटना क्रम पर सोचने लगा... तभी उसे सीढ़ियों की तरफ से एक साया उसकी तरफ आता नज़र आया ऑर वो रति थी,,,,,,,उसने एक शाल ओढ़ रखी थी
भैया तुम उपर क्यों आ गये,,,,,,,उसने बड़ी उदासी से पूछा,,,,
कुछ नही बस ऐसे ही ,,,मेरा दिल नही किया नीचे सोने को,,,,,बिरजू ने बड़े रूखे ऑर रूड अंदाज़
मे उसको जवाब दिया,,,,,,,,,,
भैया मुझे अकेले नींद नही आ रही,,,जैसे आपको भी नही आ रही,,,,,,,उसने फिर से उदासी से बोला,,,,,,,,
नींद बस आने ही वाली थी कि तुम आ गई,,,,अब जाओ नीचे मुझे सोने दो ,,बिरजू फिर से रूड
तरीके से बोला उसको,,,,,
भैया मुझे नींद नही आ रही बोला ना,,,अब उसका लहज़ा थोड़ा गर्म था,,,आपको पता है ना
बिरजू बचपन से आपके साथ सोती हूँ ,,,,,,,,,,अकेले सोना मुश्किल है मेरे लिए,,,
जानता हूँ लेकिन नीचे कमरे मे एक ही पलंग है