hotaks444
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तभी उसने नज़रे झुका ली,,,ऑर बड़े शांत अंदाज़ मे बोली,,,,,,,,हम लोग बेड अलग कर के सो जाएँगें
भैया लेकिन नीचे चलो मुझे अच्छा नही लग रहा अकेले सोना ऑर तुम्हारा ऐसे यहाँ
मुझे तंग मत करो,,,,,,,,,,, जाके माँ को बुला लो मुझे नही जाना नीचे ,,,मुझे यहीं सोना है,,,,तू समझती क्यूँ नही मेरी बात को,,,,,जा यहाँ से अब गुस्सा मत दिला मुझे,,,,,,,,
वो चद्दर खींच रही थी ऑर बिरजू भी अपनी चद्दर को अपने हाथों से उसको खींचने से रोक रहा था तभी ज़ोर कुछ
ज़्यादा लग गया चद्दर पर ऑर वो उसके उपर गिर गई,,,,उसका आधा जिस्म उसके जिस्म के उपर था
जबकि जिस चद्दर की वजह से ये सब हुआ वो ज़मीन पर पड़ी थी,,,उसके गिरने से शॉल खुल गयी और रति के कठोर चूचक उसकी छाती से दब गये ऑर एक ही पल मे उसकी हालत खराब होने लगी,,
बिरजू अपनी बलिशट बाहों मे उसे जैसे कुचलना चाहता था.....रति की उन्नत चुचियाँ बिरजू के सीने की रगड़ से गुलाबी हो रहीं थी......
धोती में उसका लंड रति की जांघों मे फ्रिक्षन (घर्षण) पैदा कर रहा था......
फ़रवरी का महीना था ,गुलाबी ठंड में दोनों का शरीर..... एक आग पैदा कर रहा था... माहॉल में.....
रति का सर बिरजू के राइट साइड वाले कंधे पर था....बिरजू ने अपना दूसरा हाथ निकाला..... और रति की शॉल को पेट से उठा कर उस पर रख दिया.......
लौंडिया सिहर गयी.... और मुहँ से एक हल्की सी सिसकारी निकल गयी.... आआहा........
फिर हाथ उसकी कमर मे डाल कर बिरजू ने उसको अपने से बिल्कुल सटा लिया.......
अब बिरजू के लंड की तपिश और चुभन रति को अपनी जांघों मे महसूस हो रही थी.....
लेकिन फिर उसे पाप बोध का अहसास हुआ.... और बोली....भैया... हम भाई बेहन है....क्यों ये सब करके अपना रिश्ता मैला कर रहे हो....क्या ये सही है जो तुम चाह रहे हो.... और साथ- साथ वो अपने भाई का लंड और उस के अहसास से रोमांचित सी थी.....
तभी अचानक से मौसम बदला हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गयी....जैसे रति की बेरूख़ी से आसमान भी रोने लगा हो....
तभी ठंड की एक लहर सी दौड़ी दोनो के अंदर... और रति ने बिरजू को अपनी शॉल मे ले लिया...और तभी उसे अहसास हुआ कि वो ऊपर से बिल्कुल नंगी है.....एक शॉल के अंदर दोनो का शरीर एक तपन में जल रहा था.....भैया बारिश तेज़ हो गयी है.... नीचे चलो...
नहीं मैं नहीं आ रहा तू जा नहीं तो सर्दी लग जाएगी....
नहीं मैं भी नहीं जाउन्गी अगर आप नहीं आओगे तो.....वो गुस्से से बोली....वो गुस्से मे बड़ी प्यारी लग रही थी.... हालाँकि बारिश हो रही थी और और बादल छा गये थे... लेकिन फिर भी पूर्णिमा का चाँद... बीच-बीच में अपनी झलक दिखा जाता था.....
और उसी एक झलक मे.... रति की नथ का मोती फिर एक बार जगमगा उठा.... और उसकी चमक सीधी....बिरजू की आखों मे पड़ी...और उसे अपनी बेहन पर एकदम से बड़ा प्यार आया.... और उसने रति को एकदम से... अपने सीने से सटा लिया.... और उसकी चूचियाँ उसके उन्नत सीने से एकदम से कुचल सी गयी...... और एक आवेश मे बिरजू बोल पड़ा.... रति मैं तेरे को बहुत चाहता हूँ....और मैं तेरे साथ ही ज़िंदगी बिताना चाहता हूँ....
भैया ये कैसे संभव है....हम सगे भाई बेहन हैं और कोई समाज हमें इसकी मंज़ूरी नहीं देगा....अगर आप अपनी बेहन को इतना प्यार करते हो तो उसके साथ ऐसा खिलवाड़ क्यों कर रहे हो ? इस प्यार का क्या अंजाम होगा.... ये प्यार नहीं एक हवस है.....!.
फिर दोनो के बीच एक मौन सा छा गया....रति ने मौन तोड़ा..... आप बड़े हो मेरे से चलो आप ही मुझे समझा दो... मेरे को कन्वेन्स कर दो मैं आपकी हर बात मान लूँगीं... आप जैसा बोलगे मैं करूँगीं... सारा जीवन आपको समर्पित कर दूँगी...आपकी रखैल.... आपकी दासी बन के रहा लूँगीं.. पत्नी का दर्जा तो आप दे नहीं पाओगे....?. बारिश ने दोनो का तन बदन गीला कर दिया..... था....
फिर एक खामोशी सी छा गयी दोनो के बीच मे......और रति ने अपनी बात कंटिन्यू करते हुए...क्या...अपनी रंडी बनाना चाहते हो...
खामोश ! बिरजू लगभग शेर की तरह दहाड़ते हुए बोला.......
रति सिहर गयी...उसका रौद्र रूप देख कर....
तू क्या समझती है... मैं तेरे को पाने के लिए ये सब कर रहा हूँ.... तेरे को ज़रा सा भी अहसास है.... ग़लती से तेरी शादी एक नामर्द से हो गयी है... जो दिन भर चरस- गांजे मे डूबा रहता है....
जो सवाल तेरे मे अभी हैं उन सारे सवाल पर मेरी माँ से बात हो चुकी है... मैं भी नहीं चाहता था ये .... लेकिन माँ ने तेरी दुहाई और हमारे प्यार का वास्ता दिया.......और ये कसम ली मेरे से क़ी मैं ज़िंदगी भर शादी नहीं करूँगा..... केवल तेरा ख़याल रखूँगा.... अब तेरे पास दो विकल्प(ऑप्षन) हैं.... या तो तू सारी उमर कुँवारी रह.... या फिर सारी उमर बदचलन... जो बहुत सी औरतें आज भी कर रहीं हैं....हर किसी से तैयार हो जाती हैं चुदवाने को..... फिर या...... मैं जो तेरे लिए.... अपनी सारी ज़िंदगी की समर्पित कर चूका हूँ.....
रति मैं आज ये कह रहा हूँ.... अगर हमारे बीच आज कुछ नहीं बन पाया तो ये समझ..... कि आज के बाद हम दोनो इस सेक्स की दुनिया से बहुत दूर हैं..... मेरा प्रण निश्चित है..... तू साथ है या नहीं.... अगर तेरे कभी कदम डगमगाए..... तो उस दिन के लिए....तेरी गर्दन.... या उस की गर्दन... नहीं रहेगी.... चाहे..... सारी ज़िंदगी जैल मे ही क्यों ना कट जाए.....ये मेरी भीष्म प्रतिग्या है.......!
भैया लेकिन नीचे चलो मुझे अच्छा नही लग रहा अकेले सोना ऑर तुम्हारा ऐसे यहाँ
मुझे तंग मत करो,,,,,,,,,,, जाके माँ को बुला लो मुझे नही जाना नीचे ,,,मुझे यहीं सोना है,,,,तू समझती क्यूँ नही मेरी बात को,,,,,जा यहाँ से अब गुस्सा मत दिला मुझे,,,,,,,,
वो चद्दर खींच रही थी ऑर बिरजू भी अपनी चद्दर को अपने हाथों से उसको खींचने से रोक रहा था तभी ज़ोर कुछ
ज़्यादा लग गया चद्दर पर ऑर वो उसके उपर गिर गई,,,,उसका आधा जिस्म उसके जिस्म के उपर था
जबकि जिस चद्दर की वजह से ये सब हुआ वो ज़मीन पर पड़ी थी,,,उसके गिरने से शॉल खुल गयी और रति के कठोर चूचक उसकी छाती से दब गये ऑर एक ही पल मे उसकी हालत खराब होने लगी,,
बिरजू अपनी बलिशट बाहों मे उसे जैसे कुचलना चाहता था.....रति की उन्नत चुचियाँ बिरजू के सीने की रगड़ से गुलाबी हो रहीं थी......
धोती में उसका लंड रति की जांघों मे फ्रिक्षन (घर्षण) पैदा कर रहा था......
फ़रवरी का महीना था ,गुलाबी ठंड में दोनों का शरीर..... एक आग पैदा कर रहा था... माहॉल में.....
रति का सर बिरजू के राइट साइड वाले कंधे पर था....बिरजू ने अपना दूसरा हाथ निकाला..... और रति की शॉल को पेट से उठा कर उस पर रख दिया.......
लौंडिया सिहर गयी.... और मुहँ से एक हल्की सी सिसकारी निकल गयी.... आआहा........
फिर हाथ उसकी कमर मे डाल कर बिरजू ने उसको अपने से बिल्कुल सटा लिया.......
अब बिरजू के लंड की तपिश और चुभन रति को अपनी जांघों मे महसूस हो रही थी.....
लेकिन फिर उसे पाप बोध का अहसास हुआ.... और बोली....भैया... हम भाई बेहन है....क्यों ये सब करके अपना रिश्ता मैला कर रहे हो....क्या ये सही है जो तुम चाह रहे हो.... और साथ- साथ वो अपने भाई का लंड और उस के अहसास से रोमांचित सी थी.....
तभी अचानक से मौसम बदला हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गयी....जैसे रति की बेरूख़ी से आसमान भी रोने लगा हो....
तभी ठंड की एक लहर सी दौड़ी दोनो के अंदर... और रति ने बिरजू को अपनी शॉल मे ले लिया...और तभी उसे अहसास हुआ कि वो ऊपर से बिल्कुल नंगी है.....एक शॉल के अंदर दोनो का शरीर एक तपन में जल रहा था.....भैया बारिश तेज़ हो गयी है.... नीचे चलो...
नहीं मैं नहीं आ रहा तू जा नहीं तो सर्दी लग जाएगी....
नहीं मैं भी नहीं जाउन्गी अगर आप नहीं आओगे तो.....वो गुस्से से बोली....वो गुस्से मे बड़ी प्यारी लग रही थी.... हालाँकि बारिश हो रही थी और और बादल छा गये थे... लेकिन फिर भी पूर्णिमा का चाँद... बीच-बीच में अपनी झलक दिखा जाता था.....
और उसी एक झलक मे.... रति की नथ का मोती फिर एक बार जगमगा उठा.... और उसकी चमक सीधी....बिरजू की आखों मे पड़ी...और उसे अपनी बेहन पर एकदम से बड़ा प्यार आया.... और उसने रति को एकदम से... अपने सीने से सटा लिया.... और उसकी चूचियाँ उसके उन्नत सीने से एकदम से कुचल सी गयी...... और एक आवेश मे बिरजू बोल पड़ा.... रति मैं तेरे को बहुत चाहता हूँ....और मैं तेरे साथ ही ज़िंदगी बिताना चाहता हूँ....
भैया ये कैसे संभव है....हम सगे भाई बेहन हैं और कोई समाज हमें इसकी मंज़ूरी नहीं देगा....अगर आप अपनी बेहन को इतना प्यार करते हो तो उसके साथ ऐसा खिलवाड़ क्यों कर रहे हो ? इस प्यार का क्या अंजाम होगा.... ये प्यार नहीं एक हवस है.....!.
फिर दोनो के बीच एक मौन सा छा गया....रति ने मौन तोड़ा..... आप बड़े हो मेरे से चलो आप ही मुझे समझा दो... मेरे को कन्वेन्स कर दो मैं आपकी हर बात मान लूँगीं... आप जैसा बोलगे मैं करूँगीं... सारा जीवन आपको समर्पित कर दूँगी...आपकी रखैल.... आपकी दासी बन के रहा लूँगीं.. पत्नी का दर्जा तो आप दे नहीं पाओगे....?. बारिश ने दोनो का तन बदन गीला कर दिया..... था....
फिर एक खामोशी सी छा गयी दोनो के बीच मे......और रति ने अपनी बात कंटिन्यू करते हुए...क्या...अपनी रंडी बनाना चाहते हो...
खामोश ! बिरजू लगभग शेर की तरह दहाड़ते हुए बोला.......
रति सिहर गयी...उसका रौद्र रूप देख कर....
तू क्या समझती है... मैं तेरे को पाने के लिए ये सब कर रहा हूँ.... तेरे को ज़रा सा भी अहसास है.... ग़लती से तेरी शादी एक नामर्द से हो गयी है... जो दिन भर चरस- गांजे मे डूबा रहता है....
जो सवाल तेरे मे अभी हैं उन सारे सवाल पर मेरी माँ से बात हो चुकी है... मैं भी नहीं चाहता था ये .... लेकिन माँ ने तेरी दुहाई और हमारे प्यार का वास्ता दिया.......और ये कसम ली मेरे से क़ी मैं ज़िंदगी भर शादी नहीं करूँगा..... केवल तेरा ख़याल रखूँगा.... अब तेरे पास दो विकल्प(ऑप्षन) हैं.... या तो तू सारी उमर कुँवारी रह.... या फिर सारी उमर बदचलन... जो बहुत सी औरतें आज भी कर रहीं हैं....हर किसी से तैयार हो जाती हैं चुदवाने को..... फिर या...... मैं जो तेरे लिए.... अपनी सारी ज़िंदगी की समर्पित कर चूका हूँ.....
रति मैं आज ये कह रहा हूँ.... अगर हमारे बीच आज कुछ नहीं बन पाया तो ये समझ..... कि आज के बाद हम दोनो इस सेक्स की दुनिया से बहुत दूर हैं..... मेरा प्रण निश्चित है..... तू साथ है या नहीं.... अगर तेरे कभी कदम डगमगाए..... तो उस दिन के लिए....तेरी गर्दन.... या उस की गर्दन... नहीं रहेगी.... चाहे..... सारी ज़िंदगी जैल मे ही क्यों ना कट जाए.....ये मेरी भीष्म प्रतिग्या है.......!