hotaks444
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फ्लॅट से निकल कर वो सड़क पर ऐसे ही चहेल कदमी करने लगी....
दुकाने करीब करीब बंद हो चुकी थी... तभी उसकी निगाह सड़क के
सामने की ओर एक खुले बार पर पड़ी... ना जाने क्या सोच कर
हिचकिचाते हुए उसने बार मे कदम रखा.
बार बहोत बड़ा नही था.... हॉल मे रोशनी काफ़ी कम थी.. टेबल के
उपर लगी हल्की रोशनी के बल्ब जल रहे थे.... कोने मे एक ड्ज
रेकॉर्डर पर गाने बज रहा था.
रोमा एक टेबल पर जाकर बैठ गयी. तभी कहीं अंधेरा से एक 35
साल का मर्द प्रगट हुआ और रोमा को देख मुस्कुराने लगा.
"ज्योति ये लड़की जो भी पीना चाहे इसे लाकर दे दो." उसने टेबल के
पास खड़ी एक वेट्रेस से कहा.
रोमा के मन मे एक बार तो आया कि वो मना कर दे... लेकिन वो आदमी
दीखने मे काफ़ी स्मार्ट और इज़्ज़तदार लग रहा था इसलिए उसने कुछ
कहा नही.
"जी बहोत बहोत शुक्रिया आपका," रोमा ने उससे कहा और वेट्रेस को
एक वोड्का वित लाइम लाने को कह दिया.
"मेरे ख्याल से तुम इसी सहर के कॉलेज मे पढ़ती हो... है ना?"
उसने मुस्कुराते हुए पूछा.
"हां अभी दाखिला लिया है, ज़रूर आप ज्योतिष् विद्या जानते है."
रोमा ने जवाब दिया.
"नही ज्योतिष् तो नही हूँ.... पर हां मुझे ऐसा लगा.... वैसे
मुझे जीत कहते है." उस मर्द ने कहा.
"मुझे रोमा."
वेट्रेस ज्योति ने ड्रिंक लाकर रोमा के टेबल पर रख दी... रोमा
अपना ग्लास उठाकर धीरे धीरे सीप करने लगी.
"अगर आपको बुरा ना लगे तो क्या में आपके साथ बैठ सकता हूँ?"
जीत ने पूछा.
रोमा इस स्तिथि मे नही थी कि उसे मना कर सके, "प्लीस बैठिए
मुझे कोई ऐतराज़ नही है."
"तो, तुम्हारी कॉलेज लाइफ कैसे चल रही है?" जीत ने उसके सामने
की कुर्सी पर बैठते हुए पूछा.
"सच कहूँ तो बहोत मुश्किल हो रही है... नई साथी नई जगह और
साथ ही पढ़ाई भी थोड़ी डिफिकल्ट है... काफ़ी मेहनत करनी पड़ती
है." रोमा ने जवाब दिया.
"वैसे कौन से विषय मे परेशानी होती है तुम्हे?" जीत ने एक बार
फिर पूछा.
"सबसे ज़्यादा तकलीफ़ मॅतमॅटिक्स मे होती है.... अलगेबरा तो मेरी
समझ मे नही आता है." रोमा ने जवाब दिया.
रोमा को जीत से बाते करते हुए अच्छा लग रहा था... आज पहली
बार किसी ने उससे उसकी परेशानियाँ या फिर उसकी पढ़ाई के बारे मे
इतने अप्नत्व से पूछा था.... उसने अपनी ठंडी ड्रिंक से एक घूंठ
लिया और उसकी तरफ देखने लगी.... जीत एक हॅंडसम नौजवान था...
काली आँखें........ काले घने बॉल... चौड़े कंधे... और काफ़ी
हॅंडसम लग रहा था.. रोमा खुश थी कि वो उस के साथ बैठी थी.
"अगर तुम चाहो तो में तुम्हारी मदद कर सकता हूँ... जिस कॉलेज
मे तुम पढ़ रही हो मेने उसी कॉलेज से ग्रॅजुयेशन किया है और बाद
मे मेने Bएड का सर्टिफिकेट भी ले लिया है... में प्राइवेट अकॅडमी
मे पढ़ाता हूँ जो यहाँ से ज़्यादा दूर नही है... मेद्स और हिस्टरी
मेरे खास विषय है... में अकेला रहता हूँ और शाम के वक्त मेरे
पास काफ़ी समय रहता है." जीत ने उसकी आँखों मे आँखे डालते हुए
कहा.
रोमा तो खुशी उछल पड़ी, "क्या सच मे ऐसा हो सकता है?"
"हां अगर तुम चाहो तो," जीत ने उसके खुशी से भरे चेहरे पर
नज़र डालते हुए कहा, "जाने से पहले मेरा फोन नंबर ले लेना.... तुम
किसी भी वक्त मुझे फोन कर सकती हो... तुम्हारी मदद करके मुझे
खुशी होगी."
"आज में बहोत खुश हूँ और में चाहती हूँ कि आप मेरी मदद
करें." रोमा ने जवाब दिया.
राज और रिया दोनो रोमा के दीमाग से इस समय निकल चुके थे... आज
कितने दिनो बाद उसे एक राहत सी महसूस हो रही थी... दोनो बातो
मे खो गये.... वक्त कब बीत गया दोनो को पता ही नही चला.
* * * * * * * * * * *
दुकाने करीब करीब बंद हो चुकी थी... तभी उसकी निगाह सड़क के
सामने की ओर एक खुले बार पर पड़ी... ना जाने क्या सोच कर
हिचकिचाते हुए उसने बार मे कदम रखा.
बार बहोत बड़ा नही था.... हॉल मे रोशनी काफ़ी कम थी.. टेबल के
उपर लगी हल्की रोशनी के बल्ब जल रहे थे.... कोने मे एक ड्ज
रेकॉर्डर पर गाने बज रहा था.
रोमा एक टेबल पर जाकर बैठ गयी. तभी कहीं अंधेरा से एक 35
साल का मर्द प्रगट हुआ और रोमा को देख मुस्कुराने लगा.
"ज्योति ये लड़की जो भी पीना चाहे इसे लाकर दे दो." उसने टेबल के
पास खड़ी एक वेट्रेस से कहा.
रोमा के मन मे एक बार तो आया कि वो मना कर दे... लेकिन वो आदमी
दीखने मे काफ़ी स्मार्ट और इज़्ज़तदार लग रहा था इसलिए उसने कुछ
कहा नही.
"जी बहोत बहोत शुक्रिया आपका," रोमा ने उससे कहा और वेट्रेस को
एक वोड्का वित लाइम लाने को कह दिया.
"मेरे ख्याल से तुम इसी सहर के कॉलेज मे पढ़ती हो... है ना?"
उसने मुस्कुराते हुए पूछा.
"हां अभी दाखिला लिया है, ज़रूर आप ज्योतिष् विद्या जानते है."
रोमा ने जवाब दिया.
"नही ज्योतिष् तो नही हूँ.... पर हां मुझे ऐसा लगा.... वैसे
मुझे जीत कहते है." उस मर्द ने कहा.
"मुझे रोमा."
वेट्रेस ज्योति ने ड्रिंक लाकर रोमा के टेबल पर रख दी... रोमा
अपना ग्लास उठाकर धीरे धीरे सीप करने लगी.
"अगर आपको बुरा ना लगे तो क्या में आपके साथ बैठ सकता हूँ?"
जीत ने पूछा.
रोमा इस स्तिथि मे नही थी कि उसे मना कर सके, "प्लीस बैठिए
मुझे कोई ऐतराज़ नही है."
"तो, तुम्हारी कॉलेज लाइफ कैसे चल रही है?" जीत ने उसके सामने
की कुर्सी पर बैठते हुए पूछा.
"सच कहूँ तो बहोत मुश्किल हो रही है... नई साथी नई जगह और
साथ ही पढ़ाई भी थोड़ी डिफिकल्ट है... काफ़ी मेहनत करनी पड़ती
है." रोमा ने जवाब दिया.
"वैसे कौन से विषय मे परेशानी होती है तुम्हे?" जीत ने एक बार
फिर पूछा.
"सबसे ज़्यादा तकलीफ़ मॅतमॅटिक्स मे होती है.... अलगेबरा तो मेरी
समझ मे नही आता है." रोमा ने जवाब दिया.
रोमा को जीत से बाते करते हुए अच्छा लग रहा था... आज पहली
बार किसी ने उससे उसकी परेशानियाँ या फिर उसकी पढ़ाई के बारे मे
इतने अप्नत्व से पूछा था.... उसने अपनी ठंडी ड्रिंक से एक घूंठ
लिया और उसकी तरफ देखने लगी.... जीत एक हॅंडसम नौजवान था...
काली आँखें........ काले घने बॉल... चौड़े कंधे... और काफ़ी
हॅंडसम लग रहा था.. रोमा खुश थी कि वो उस के साथ बैठी थी.
"अगर तुम चाहो तो में तुम्हारी मदद कर सकता हूँ... जिस कॉलेज
मे तुम पढ़ रही हो मेने उसी कॉलेज से ग्रॅजुयेशन किया है और बाद
मे मेने Bएड का सर्टिफिकेट भी ले लिया है... में प्राइवेट अकॅडमी
मे पढ़ाता हूँ जो यहाँ से ज़्यादा दूर नही है... मेद्स और हिस्टरी
मेरे खास विषय है... में अकेला रहता हूँ और शाम के वक्त मेरे
पास काफ़ी समय रहता है." जीत ने उसकी आँखों मे आँखे डालते हुए
कहा.
रोमा तो खुशी उछल पड़ी, "क्या सच मे ऐसा हो सकता है?"
"हां अगर तुम चाहो तो," जीत ने उसके खुशी से भरे चेहरे पर
नज़र डालते हुए कहा, "जाने से पहले मेरा फोन नंबर ले लेना.... तुम
किसी भी वक्त मुझे फोन कर सकती हो... तुम्हारी मदद करके मुझे
खुशी होगी."
"आज में बहोत खुश हूँ और में चाहती हूँ कि आप मेरी मदद
करें." रोमा ने जवाब दिया.
राज और रिया दोनो रोमा के दीमाग से इस समय निकल चुके थे... आज
कितने दिनो बाद उसे एक राहत सी महसूस हो रही थी... दोनो बातो
मे खो गये.... वक्त कब बीत गया दोनो को पता ही नही चला.
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