hotaks444
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देर शाम को शुरू हुआ मूवी देखने का सिलसिला अगले दिन दोपहर तक चला. हर एक मूवी को बार-बार देख कर वो उसमें से ज़रूरी बातें नोट करते रहे. दोपहर तक सारा प्लान फाइनल हो चुका था.
अब सबसे ज़रूरी था इस प्लान का आगाज़ करना. होटेल मे लंच करने के बाद वीरेंदर और आशना अपने शोरुम गये और वहाँ से कुछ ज़रूरी अपने साथ लेकर फिर से नोएडा मे अपने हनिमून सूट मे आ गये. आशना, वीरेंदर के काम करने के तरीके और तेज़ दिमाग़ से काफ़ी इंप्रेस हुई थी. उसे वीरेंदर द्वारा बनाए हुए प्लान के सफल होने की पूरी उम्मीद थी. वीरेंदर का यह रूप उसने पहले कभी नहीं देखा था. इस वक्त वीरेंदर बिल्कुल एक डीटेक्टिव की तरह सोच रहा था और उसे अमल मे लाने के लिए काफ़ी मेहनत कर रहा था.
आशना भी उसका बखूबी साथ निभा रही थी. आख़िर दोनो को ज़िंदगी भर साथ रहने के लिए इस वक्त साथ होना बहुत ज़रूरी था. शाम को यमुना नदी के किनारे बैठ कर उन्होने आने वाले दिनो के हसीन ख्वाब देखे और फिर वहीं से अपने प्लान पर अमल करना शुरू कर दिया.
सबसे पहले वीरेंदर ने अपने डीटेक्टिव दोस्त को फोन करके इस मामले को यहीं पर ख़तम करने के लिए कह दिया और उस से यह वादा लिया कि फ्यूचर मे कोई प्राब्लम होगी तो वो उसकी हेल्प करेगा. उसके बाद घर आकर हल्का सा डिन्नर करके वीरेंदर और आशना निकल पड़े प्लान के पहले फेज़ के लिए जो के बहुत ही अहम था.
अगली सुबह, वीरेंदर और आशना ऑफीस चले गये और फिर दोपहर को वापिस "शरमा निवास" मे आ गये.
आशना-वीरेंदर को देखकर बिहारी की साँस अटक गयी.
बिहारी(चेहरे पर झूठी खुशी लाते हुए): मालिक आप तो एक हफ्ते के लिए गये थे तो फिर अचानक से इतनी जल्दी वापिस कैसे आ गये? सब कुशल मंगल तो है?
वीरेंदर(चेहरे पर दुख भरे भाव लाते हुए): काका, ग़लती कर ली इसे वहाँ ले जाकर. वीरेंदर ने आशना की तरफ इशारा करते हुए कहा.
बिहारी ने आशना की तरफ देखा. आशना के चेहरे को देखकर बिहारी को भी थोड़ा अजीब लगा. कहाँ वो खिला हुआ चेहरा और अब तो ऐसा लग रहा था कि इस लड़की में जान ही नहीं है. चेहरा काफ़ी उतरा हुआ था, जैसे काफ़ी दिन से बीमार हो.
बिहारी: क्या हुआ मालकिन, आप ठीक तो हैं.
आशना ने बिहारी की तरफ देखा और बोली: वो....वो यहाँ भी आएगी. नहीं छोड़ेगी वो, वो मेरा पीछा करते हुए यहाँ भी आएगी.
आशना की हालत देख कर बिहारी चौंक गया. बिहारी ने वीरेंदर की तरफ सवालिया नज़रों से देखा.
वीरेंदर: काका पता नहीं कुछ दिनो से इसे क्या हो गया है. जब से हम यहाँ से गये हैं यह खोई खोई सी रहने लगी है. अजीब अजीब सी बातें करती है. अब पिछले दो दिन से इसे यह वहम हो गया है कि डॉक्टर. बीना की आत्मा वापिस आ गयी है.
इतना सुनते ही बिहारी के पैरों से ज़मीन खिसक गयी.
बिहारी: क,क्या ....ये...यह कैसे हो सकता है?
वीरेंदर: यही बात तो मैं इसे समझा रहा हूँ कि यह सब फिल्मों में होता है, असल ज़िंदगी में ऐसा नहीं होता. इतना पढ़ने-लिखने के बाद भी अंधविश्वाश ने इसे जकड रखा है. देल्ही जैसे बड़े शहर मे रहकर डॉक्टर की पढ़ाई करने वाली लड़की इन सब बातों मे कैसे विश्वास कर सकती है.
बिहारी की आँखों मे खोफ़ सॉफ देखा जा सकता था.
वीरेंदर: काका, आप रागिनी को फोन करके जल्दी बुला लीजिए. अब रात को रागिनी इसके पास ही सोया करेगी. इसे तो अकेले सोने मे भी डर लगता है.
बिहारी को एक और झटका लगा.
बिहारी: ल..... ले..... लेकिन रागिनी का तो अभी तक कोई पता नहीं चला. जब से गयी है, उसने कोई फोन भी नहीं किया. उसका फोन भी स्विचऑफ आ रहा है.
वीरेंदर: पता नहीं यह लड़की कहाँ चली गयी.
काका: आपने अपने गाँव में ही किसी से फोन पर बात करके पूछना था कि वो वहाँ पहुँची भी है या नहीं.
बिहारी की आँखो मे डर बढ़ता ही जा रहा था.
अब सबसे ज़रूरी था इस प्लान का आगाज़ करना. होटेल मे लंच करने के बाद वीरेंदर और आशना अपने शोरुम गये और वहाँ से कुछ ज़रूरी अपने साथ लेकर फिर से नोएडा मे अपने हनिमून सूट मे आ गये. आशना, वीरेंदर के काम करने के तरीके और तेज़ दिमाग़ से काफ़ी इंप्रेस हुई थी. उसे वीरेंदर द्वारा बनाए हुए प्लान के सफल होने की पूरी उम्मीद थी. वीरेंदर का यह रूप उसने पहले कभी नहीं देखा था. इस वक्त वीरेंदर बिल्कुल एक डीटेक्टिव की तरह सोच रहा था और उसे अमल मे लाने के लिए काफ़ी मेहनत कर रहा था.
आशना भी उसका बखूबी साथ निभा रही थी. आख़िर दोनो को ज़िंदगी भर साथ रहने के लिए इस वक्त साथ होना बहुत ज़रूरी था. शाम को यमुना नदी के किनारे बैठ कर उन्होने आने वाले दिनो के हसीन ख्वाब देखे और फिर वहीं से अपने प्लान पर अमल करना शुरू कर दिया.
सबसे पहले वीरेंदर ने अपने डीटेक्टिव दोस्त को फोन करके इस मामले को यहीं पर ख़तम करने के लिए कह दिया और उस से यह वादा लिया कि फ्यूचर मे कोई प्राब्लम होगी तो वो उसकी हेल्प करेगा. उसके बाद घर आकर हल्का सा डिन्नर करके वीरेंदर और आशना निकल पड़े प्लान के पहले फेज़ के लिए जो के बहुत ही अहम था.
अगली सुबह, वीरेंदर और आशना ऑफीस चले गये और फिर दोपहर को वापिस "शरमा निवास" मे आ गये.
आशना-वीरेंदर को देखकर बिहारी की साँस अटक गयी.
बिहारी(चेहरे पर झूठी खुशी लाते हुए): मालिक आप तो एक हफ्ते के लिए गये थे तो फिर अचानक से इतनी जल्दी वापिस कैसे आ गये? सब कुशल मंगल तो है?
वीरेंदर(चेहरे पर दुख भरे भाव लाते हुए): काका, ग़लती कर ली इसे वहाँ ले जाकर. वीरेंदर ने आशना की तरफ इशारा करते हुए कहा.
बिहारी ने आशना की तरफ देखा. आशना के चेहरे को देखकर बिहारी को भी थोड़ा अजीब लगा. कहाँ वो खिला हुआ चेहरा और अब तो ऐसा लग रहा था कि इस लड़की में जान ही नहीं है. चेहरा काफ़ी उतरा हुआ था, जैसे काफ़ी दिन से बीमार हो.
बिहारी: क्या हुआ मालकिन, आप ठीक तो हैं.
आशना ने बिहारी की तरफ देखा और बोली: वो....वो यहाँ भी आएगी. नहीं छोड़ेगी वो, वो मेरा पीछा करते हुए यहाँ भी आएगी.
आशना की हालत देख कर बिहारी चौंक गया. बिहारी ने वीरेंदर की तरफ सवालिया नज़रों से देखा.
वीरेंदर: काका पता नहीं कुछ दिनो से इसे क्या हो गया है. जब से हम यहाँ से गये हैं यह खोई खोई सी रहने लगी है. अजीब अजीब सी बातें करती है. अब पिछले दो दिन से इसे यह वहम हो गया है कि डॉक्टर. बीना की आत्मा वापिस आ गयी है.
इतना सुनते ही बिहारी के पैरों से ज़मीन खिसक गयी.
बिहारी: क,क्या ....ये...यह कैसे हो सकता है?
वीरेंदर: यही बात तो मैं इसे समझा रहा हूँ कि यह सब फिल्मों में होता है, असल ज़िंदगी में ऐसा नहीं होता. इतना पढ़ने-लिखने के बाद भी अंधविश्वाश ने इसे जकड रखा है. देल्ही जैसे बड़े शहर मे रहकर डॉक्टर की पढ़ाई करने वाली लड़की इन सब बातों मे कैसे विश्वास कर सकती है.
बिहारी की आँखों मे खोफ़ सॉफ देखा जा सकता था.
वीरेंदर: काका, आप रागिनी को फोन करके जल्दी बुला लीजिए. अब रात को रागिनी इसके पास ही सोया करेगी. इसे तो अकेले सोने मे भी डर लगता है.
बिहारी को एक और झटका लगा.
बिहारी: ल..... ले..... लेकिन रागिनी का तो अभी तक कोई पता नहीं चला. जब से गयी है, उसने कोई फोन भी नहीं किया. उसका फोन भी स्विचऑफ आ रहा है.
वीरेंदर: पता नहीं यह लड़की कहाँ चली गयी.
काका: आपने अपने गाँव में ही किसी से फोन पर बात करके पूछना था कि वो वहाँ पहुँची भी है या नहीं.
बिहारी की आँखो मे डर बढ़ता ही जा रहा था.