Bhabhi ki Chudai कमीना देवर - Page 2 - SexBaba
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Bhabhi ki Chudai कमीना देवर

सनी वहां से निकल कर अपने कमरे में आया कमरे में नाईट लैंप पहले ही जल रहा था, वो उसकी रोशनी में ही अपने कमरे में टहलने लगाऔर सोचने लगा जो अभी अभी वो अपनी ही सगी भाभी के साथ कर के आया था, उस निर्दोष स्त्री के गहन नींद में होने का अनुचित लाभ उठाते हुए उसने अपनी हवस का जो वहशीपन उसके साथ किया था उससे उसकी कामवासना तो शांत हुई लेकिन उसके अन्तर्मन का ताप बढ़ गया और अब वो उसे कचोटने लगा और अपनी कमजोरी पर पश्चाताप करने लगा। उसका मन उसे धिकारने लगा यही सोच सोच कर वो परेशान कमरे में टहलने लगा और सोच रहा था कि "आखिर मैं खुद पर नियंत्रण क्यों नही रख पाता, मैं उसे देख कर पागल क्यों हो जाता हूं ?" , बेचारी
सीधी साधी भाभी मैं उसके भोलेपन और शर्मिलेपन का अनुचित लाभ उठा रहा हूं। मेंरे भाई ने कितने विश्वास से उसे यहां रखा है, कितने विश्वास से वो मुझे ये कहता है कि उसे अपने साथ ले कर जाया कर घुमाया कर और मेंरे मां-बाप, बहिन सब मुझ पर कितना भरोसा करते हैं, और एक मैं हूं कि मैने सबके विश्वास को धोखा दिया है, सबके साथ दगाबाजी की है, छी: धिक्कार है मुझ पर।ऎसा सोचते हुए वो जब थक गया तो पलंग पर लेट गया और सोचते हुए ही वो कुछ ही क्षणों में नींद के आगोश में समा गया।

इधर सनी के कमरे से निकलते के लगभग डेढ़ मीनट के बाद नेहा ने हौले से अपनी आंख खोली और अपनी अधखुली आंखों से धीरे से कमरे का जायजा लिया जब उसे पक्का यकीन हो गया कि उसका देवर सनी उसके कमरे से जा चुका है तो वो झट से उठ कर पलंग पर बैठ गई और उसने शरीर का जायजा लिया।

उसने देखा कि उसे गहन नींद में समझ कर कामवासना में अंधे हो चुके उसके देवर सनी ने उसके सोते हुए जिस्म के साथ हवस का जो खेल खेला था और जिस तरीके से उसके कपड़ों को अस्त व्यस्त कर दिया था उसे देख उसे लगभग नंगी ही कहा जा सकता था।केवल कपड़े नहीं उतारे थे सनी ने के,लेकिन उसके शरीर के किसी अंग को उसने अनछुआ नहीं रखा था और उसके शरीर के सभी अंगो का उसने काफ़ी करीब से मुआयना किया था और उसके जिस्म के भूगोल को अच्छी तरह से समझ गया था,शायद संजय से भी ज्यादा।

नेहा ने अपने उपर एक नज़र ड़ाली,अपनी हालत देखते हुए उसे घोर लज्जा का अनुभव हुआ . उसके गाऊन के सभी बटन खुले हुए थे और उसके दोनों विशाल स्तन पूरी तरह अनावृत्त थे, उसका गाऊन कमर से उपर चढा हुआ था तथा उसकी दोनों मोटी चिकनी जांघे और उसके बीच दबी उसकी चूत साफ़ दिखाई दे रही थी। अपनी हालत देख कर वो सोच रही थी कि "कितनी बेरहमी से नोंच कर गया था उसका देवर उसका बदन". अपने प्रति सनी की हवस को काफ़ी समय से मह्सूस कर रही थी लेकिन वो इस हद तक जा सकता है ऎसा उसने सोचा भी नहीं था। जवानी के जोश में उसके कदम बहक गए हैं और उसकी अक्ल पर पत्थर पड़ गए लेकिन नीता से शादी होते ही वो अपने रास्ते पर आ जायेगा और मेंरे प्रति उसका आकर्षण खत्म हो जायेगा ऎसा सोच कर और अपनी बहन की जिंदगी संवर जाये इस
कारण वो चुपचाप सहती रही।लेकिन अब बात काफ़ी बढ़ चुकी थी और उसे साफ़ मह्सूस हो रहा था कि उसकी हरकतें अब और बढ़ेंगी। उसकी इसी उहापोह का नतीजा था कि वो खुल्लमखुल्ला उसके जिस्म को एक घंटे तक नोच कर अपनी हवस शांत करके चलता बना और उपर से उसकी ये हिमाकत की उसने अपना पूरा का पूरा वीर्य ही उसके सोते जिस्म में ड़ाल दिया।
 
दरअसल नेहा तो उसी समय उठ चुकी थी जब सनी ने उसकी चूत में मुंह लगाया था।लेकिन वासना में अंधे हो चुके मूर्ख सनी को ये बात समझ नहीं आई कि वो भाभी के जिस अंग से खिलवाड़ कर रहा है और उसमें मुंह लगा जवानी का रस चूस रहा है वो किसी भी स्त्री के लिये ऎसा संवेदनशील अंग होता है जिसके प्रति एक स्त्री हमेंशा सजग रहती है।जो स्त्री अपने अबोध बालक की शक्तिहीन करुण पुकार मात्र से अपनी गहरी नींद का परित्याग कर उसे अपने सीने से लगा कर अपने मातृत्व और वात्सल्य के रस से उसकी भूख मिटाने के लिये हर क्षण तत्पर रहती हो उसे क्या अपनी चूत पर किसी (पराये)पुरुष के स्पर्श का आभास नहीं होगा?लेकिन मूर्खों को ये बातें कहां समझ आती है?

काम अपना प्रथम प्रहार इंसान के दिमाग पर ही करता है और उसके सोचने समझने की शक्ती को खत्म कर देता है और आचार-विचार विहीन मनुष्य मूर्ख ही होता है।

जैसे ही सनी ने नेहा की चूत में मुंह लगाया था उसी क्षण उसकी नींद उड़ गई थी उसने मुंह उपर उठाया और देखा तो उसके होश उड़ गए। सामने उसका सगा देवर सनी था जो बड़े ही अजीबो गरीब तरिके से अपना मुंह बना रहा था और परम संतोष के भाव के साथ उसकी चूत को चूस रहा था।

चूत का रस पीने में वो इतना मशगूल था कि उसे तनिक भी अभास नहीं हुआ कि उसकी भाभी जाग चुकी है और उसकी चोरी पकड़ी जा चुकी है।उस एक क्षण में ही नेहा के दिमाग में कई बातें कौंध गई और वो निढ़ाल पड़ी रही। वो चाहती तो उसी क्षण उठ कर उसे चांटा मार सकती थी या शोर मचा कर घर के सदस्यों को बता सकती थी लेकिन उसने सोचा ऎसा करने में खतरा ही खतरा है।हो सकता है सनी उल्टा उस पर ही लांछन लगा दे और घर वालों ने यदि उसकी बात को सच मान लिया तो? यदि किसी ने पुछ लिया कि वो तेरे कमरे में घुसा कैसे? तो मैं क्या जवाब दूंगी ? कैसे खुद को निर्दोष साबित करुंगी? कौन है मेरे पक्ष में ? परिस्थितियां भी तो नहीं है मेरे पक्ष में।

जब एक धोबी ने सीता जैसी देवी पर लांछन लगा दिया तो स्वयं भगवान श्रीराम ने ये जानते हुए कि सीता निर्दोष है उसे अग्नी परिक्षा का आदेश दिया ताकि युगों युगों तक लोगों को ये संदेश जाता रहे की देवी सीता पवित्र है।

मुझे बचाने वाला कौन है यहां?निर्बल पुरुष न तो अपनी रक्षा कर सकता है न अपनी संपत्ति और न अपनी स्त्री ,कदाचित ईश्वर ही दया कर उसे बचाने आ जाए कुंती की तरह तो अलग बात है लेकिन नेहा ने सोचा मेंरा चीरहरण तो इस सनी ने कर ही ड़ाला है।मैं क्या जवाब दूंगी घर के लोगों को कि "तू नंगी होते तक क्यों चुप पड़ी रही?"
 
दूसरा खतरा ये था कि कहीं बात इतनी न बिगड़ जाय कि सनी की नीता से शादी ही टूट जाय अगर ऎसा हुआ तो मेंरा परिवार मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। विशेषकर नीता और मेंरी माँ। वो तो सीधा यही पूछेगी की बात इतनी कैसे बढ़ी की वो इतनी हिम्मत कर बैठा ? ताली एक हाथ से बजती है क्या ? कोई पुरुष किसी स्त्री को दो या तीन बार जाने अन्जाने स्पर्श का प्रयास कर सकता है बार बार नहीं। स्त्री की एक क्रोध भरी नजर ही किसी पुरुष को पस्त करने के लिये काफ़ी होती है। फ़िर यदि कोई पुरुष बार बार किसी स्त्री के साथ ऎसा करता है तो इसका मतलब साफ़ है कि इसमें उसकी भी रजामंदी है।

तीसरी परेशानी नेहा की ये थी कि यदि इस वक्त उसने आंख खोली और दोनों की नजर मिली तो फ़िर दोनों के लिये ही जीवन भर एक दूसरे से नजर मिलाना संभव नहीं था। कम से कम नेहा के लिये तो संभव था ही नहीं।और ऎसी अवस्था में सनी से नजर मिलाने का साहस नेहा में था ही नहीं। इसीलिये उसने इस शुतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छुपा कर इस तूफ़ान को गुजर जाने देने में ही अपनी भलाई समझी और वो आंखे बंद किये पड़ी रही।

अब तक उसके शरीर में लगाया हुआ सनी का वीर्य सूखने लगा था और उसकी चमड़ी खीचाने लगी थी। उसने अपने चेहरे और स्तनों पर हाथ लगाया वहां एक परत सी बन गई थी।

वो पलंग से उठी और कांच के सामने जा कर खड़ी हो गई और अपने जिस्म को निहारने लगी।उसने अपना गाऊन निचे गिरा दिया, अब वो नंगी कांच्के सामने खड़ी थी। उसने उसमे अपने बदन को देखते हुए अपना हाथ चूत में लगाया वहां लगाया हुआ सनी का वीर्य अभी भी गीला था और उसे वहां चिपचिपा पन मह्सूस हो रहा था। वहां हाथ लगाते ही उसके हाथ में उसके हाथ में उसके देवर का वीर्य आ गया और उसका हाथ भी चिपचिपाने लगा। उसने दरवाजे की तरफ़ नजर उठाकर देखा वो अभी तक अधखुला था,वो तत्काल दरवाजे की तरफ़ दौड़ी और उसे अंदर से बंद किया।

जवानी का लूटना किसी स्त्री के लिये दौलत लूट जाने से भी बड़ी घटना होती है। नेहा दरवाजे के पास ही नंगी खड़ी हो कर पलंग की तरफ़ देख रही थी जहां अभी कुछ ही मीनटों पहले सनी उसकी जवानी को लूट रहा था। उसने पलंग की तरफ़ देखते हुए अपार शर्म और लज्जा का अनुभव हो रहा था उसने अपने दोनों हाथों की हथेलियों से अपने चेहरे को ढ़क लिया और फ़फ़क कर रोने लगी। उसी तरह रोते हुए वो पलंग के पास गई और वहीं जमीन पर बैठ गई और पलंग पर अपना सर रख कर फ़फ़कने लगी।
 
नेहा लज्जित थी और रो रही थी,उसे चुप कराने वाला वहां कोई नहीं था,हर गलत काम के समय कचोटने वाला उसका अन्तर्मन भी मौन था।दर असल वो अपनी ही अन्तरात्मा के सामने बेनकाब होने से लज्जित थी और फ़फ़क कर रो रही थी। उसके अन्तर्मन ने उसके राम,सीता,कुंती और नीता की शादी वाले तमाम तर्कों को नकार दिया था और ये साबित कर दिया था कि जिस्मानी तौर पर सनी के हाथों से नंगी होने से पहले ही वो चारित्रिक रुप से अपने ही अन्तर्मन के सामने उसी समय नंगी हो चुकी थी जब सनी ने उसका गाऊन उठा कर उसकी चूत में मुंह लगा कर उसे चूसना शुरु किया था। किसी पुरुष के साथ संसर्ग की अपनी दमित इच्छा को अपने देवर से पूरी होते पा कर वो यूं ही निढ़ाल पड़ी रही और नींद का बहाना उसकी ढ़ाल का काम रहा था।

अब उसे इस बात की बेहद ग्लानी हो रही थी कि जब सनी उसकी चूत को चूस रहा था तो कैसे रोमांचित हो रही थी और रोमांच में उसने कैसे अपने होठों को अपने दातों से काट लिया था। कहीं सनी को उसके जागने का अभास ना हो जाय इस ड़र से वो संयत हो गई और आंख बंद किये पड़ी रही।फ़फ़कते हुए वो सोच रही थी कि कैसे जब सनी ने उसकी चूत को चूसना बंद किया तो वो कितनी बुरी तरह से तड़्फ़ी थी और उसका मन किया था कि वो उठ कर उसके सर को फ़िर से उसकी जांघो के बीच में फ़ंसा कर उसकी चूत को चूसवाना चालू रखे।उसे अच्छी तरह से याद था कि जब वो हड़्बड़ा कर उठा और उसने देखा कि मेंरे खर्राटे की अवाज को बंद पाकर वो कैसे भय से पीला पड़ गया था तो उसने किस चतुराई से अपनी नाक से सीऽऽऽऽऽसीऽऽऽऽऽ कि अवाज निकाल कर उसे अपने सोते होने का अहसास करवाया था और अपने जिस्म से खेलते रहने के लिए उकसाया था।

उसकी अन्तरात्मा ने साक्षी भाव से उसके तमाम मनोभावों देखा था और उसकी दमित कामवासना को मह्सूस किया था।उसने एक हंस की तरह दूध से पानी को अलग कर दिया था। और अपनी ही अन्तरात्मा का सामना करने का साहस नेहा में नहीं था, खुद के ही सामने बेनकाब होने और अपनी कमजोरी पर नियंत्रण न रख पाने के कारण वो बेहद लज्जित थी और अपनी अन्तरात्मा के तीखे सवालों का जवाब न दे पाने के कारण वो फ़फ़क फ़फ़क कर रो रही थी
 
कुछ देर तक इसी तरह मंथन करने और लगातार रोने के कारण वो मानसिक रुप से बुरी तरह से थक गई तो वो पलंग के पास से उठी नंगी ही सिसकते हुए बाथरुम में चली गई। वहां उसने शावर चालू किया और नहाने लगी और अपने जिस्म से सनी के वीर्य को साफ़ किया।नहाते समय वो यही सोच रही थी कि अब वो इस खेल को बंद करेगी और अब वो सनी को और अधिक स्पेस नहीं देगी।

चार दिनों के बाद संजय तो आ ही रहा है वो उससे बात करेगी और उस पर दबाव बानायेगी कि वो उसे अपने साथ ले जाय।नहाने के बाद उसने अपना बदन पोंछा और बाहर निकल कर आल्मारी से एक दूसरा
गाऊन निकाल कर पहना और पलंग पर जा कर सो गई।

अगले दिन सुबह जब सनी सो कर उठा तो उसे रात वाली घटना याद आने लगी और किसी फ़िल्म की तरह सारे दृष्य उसके सामने आने लगे। नींद में बेखबर अपनी भाभी के जिस्म से उसने जो हवस का खेल खेला था उससे उसका मन खिन्न हो गया, वो अपना चेहरा ही आईने मे देखने का साहस नहीं कर पा रहा था लेकिन किसी तरह वो उठा और फ़्रेश हो कर नीचे पहूंच गया। नीचे मां नहाने के बाद पूजा की तैयारी में व्यस्त थी उसे इतनी सुबह तैयार पा कर वो आश्चर्य से उससे बोली अरे बेटा इतनी सुबह तैयार हो गये कहीं जाना है क्या?जवाब में उसने कहा हां मां आज कालेज जल्दी जाना है,तुम जल्दी से चाय नाश्ता दे दो।

मां ने कहा मैं क्यों बेटा नेहा है न किचन में वो भी आज जल्दी उठ गई है। दरअसल कल रात की घटना के कारण वो ठीक से सो नही पाई थी और सुबह जल्दी उठ गई थी।तुषार ने चौंक कर कहा भाभी इतनी जल्दी उठ गई . मां ने कुछ नहीं कहा और केवल मुस्कुरा दिया और वहीं से उसने जोर से अवाज दे कर कहा नेहा सनी के लिये चाय नाश्ता दे दो आज वो भी जल्दी उठ गया है उसे जल्दी कालेज जाना है।ऎसा बोल कर मां ने पेपर उसकी टेबल पर रखा और पूजा करने चली गई।

मां के जाते ही सनी असहज मह्सूस करने लगा उसमें आज नेहा का सामना करने का साहस नही था।वो बड़ी ग्लानी मह्सूस कर रहा था। उधर नेहा का भी यही हाल था लेकिन क्या करे मज्बूरी थी जाना तो था ही सो उसने जल्दी से चाय नाश्ता तैयार कर मन भर के ड़ग भरते हुए उसके टेबल की तरफ़ जाने लगी। भाभी को अपनी तरफ़ आते देख वो पेपर पढने का नाटक करने लगा,उधर भाभी भी जल्दी से चाय नाश्ता उसकी टेबल पर रख कर जल्दी से किचन की तरफ़ जाने लगी,दोनों ने न एक दूसरे की तरफ़ देखा और न ही कोई बात की।

वो इतनी तेजी से किचन की तरफ़ जा रही थी कि उसकी दोनों बड़ी बड़ी गांड बुरी तरह से उछल रही थी।लेकिन जिन गांड़ो का सनी पिछले आठ माह से दिवाना था आज उसने उसकी तरफ़ पहली बार देखा तक नहीं। उसने

अपना नाश्ता खत्म किया और कालेज चला गया।उस पूरा दिन वो घर नहीं आया रात को घर आया और थोड़ा बहुत खा कर अपने कमरे में जा कर सो गया।

दूसरे दिन भी यही हुआ वो सुबह जल्दी ही कलेज चला गया और फ़िर रात को देर से घर आया।लेकिन देर से घर आने के बावजूद उसने घर में सभी को जागते हुए पाया,घर के सारे सदस्य ड्राईंग रुम में ही बैठे थे और उसी का इंतजार कर रहे थे।

उसने देखा कि मां और पिताजी आपस में धीरे धीरे कुछ बात कर रहे है और नेहा उनके सोफ़े के पीछे खड़ी थी। दिया भी बगल वाले सोफ़े में बैठ कर उनकी बातों को सून रही थी।सब के इस प्रकार से
बैठ कर चर्चा करने का मतलब साफ़ था कि वे किसी गंभीर मसले पर बात कर रहे थे। सनी के माथे पर बल पड़े वो सोचने लगा कि कहीं भाभी ने तो रात वाली बात नहीं बता दी है इन लोगों को। दर असल सनी को अपनीभाभी के पिछले दो दिनों के उसके साथ व्यवहार से उस पर शक हो रहा कि कहीं उस रात वो जग तो नहीं रही थी।ज्यों ज्यों वो उस बारे में सोचता उसका शक यकीन में बदलता जा रहा था कि उस रात भाभी पक्का जाग चुकी थी.
 
इतनी गंभीरता से उन लोगों को बात करते देख कर एक बार तो सनी सहम गया और दरवाजे के पास ही खड़े हो कर सोचने लगा कहीं भाभी ने रात वाली बात आखीरकार इन लोगों को बता तो नहीं दी होगी। ऎसा विचार मन में आते ही उसके रोंगटे खड़े हो गये और उसकी गांड़ फटने लगी।

आखिर मरता क्या ना करता ? वो धीरे धीरे उनकी तरफ़ बढने लगा। पाप करना जितना आसान होता है और मजेदार होता है उतना ही कठिन उसका बोध होता है। और उसका परिणाम उतना ही भयावह। दरवाजे से मात्र दस कदम दूर चलने में तुषारको ऎसा लगा मानो वो दस बार मर कर जनम ले चुका है।

जैसे तैसे वो उनके पास जा कर खड़ा हो गया। तभी दिया की नज़र सबसे पहले उस पर पड़ी और वो बोल उठी लो आ गये जनाब,सभी ने एक साथ पिछे मुड़ कर देखा और सबकी नज़र सनी पर टिक गई। एक क्षण के लिये कमरे में सन्नाटा छा गया। सनी नज़रें झुकाये खड़ा था किसी अपराधी की तरह। उसक दिल धड़क रहा था।

माँ ने तनिक क्रोध भरी अवाज में कहा "क्यों रे बेशर्म, नालायक"
माँ के इतना कहते ही सनी का मन किया की उसका पाँव पकड़ कर फ़ूट-फ़ूट रोने लगे और माफ़ी मांग ले। उसकाचेहरा देखने लायक था और उस पर हवाईयां उड़ रही थी। वो बदहवास हो उनकी तरफ़ देख रहा था। उसकी बदहवासीको "दिया" ने और बढा दिया उसने कहा " हां माँ लगाओ हम सब की तरफ़ से और संजय भैया की तरफ़ से भी".

"संजय" का नाम सुनते ही वो पूरी तरह से ढ़ीला पड़ गया और समझ गया कि भाभी ने आखिर उसकी पोल खोल ही ड़ाली है , गूंगी गुड़िया के मुंह में ज़बान आ गई है और अब उसकी शामत आने वाली है। उसका मान सम्मान , रुतबा सब खतम हो गया। उसने सोचा अब क्या किया जा सकता है? आखिर उसने काम ही ऎसा किया था। वो मन ही मन खुद को कोसने लगा और सोचने लगा कि ऎसे जीने से तो मर जाना बेह्तर है। उसने तय कर लिया कि चाहे इनको जो बोलना हो सो बोल ले वो कुछ नहीं बोलेगा और आज अपने पैरों से चल कर आखिरी बार अपने कमरे में जायगा।

अपमानित हो कर जीने से तो मर जाना बेह्तर है। उसने तय कर लिया था उपर जा कर फ़ांसी लगा कर अपनी जान दे देगा। कमरे में फ़िर कुछ क्षण के लिये चुप्पी चा गई। आखिर उसके पिताजी ने चुप्पी तोड़्ते हुए कहा तुम दोनों माँ बेटी को कोई धंधा नही है ? बेकार में इसे धमका रही हो साफ़ साफ़ बतओ ना इसे . पिताजी घुड़की सुन कर दोनों मां बेटी खिलखिला कर हंस पड़ी।
 
अपनी मां और बहन को इस तरह से हंसते हुए देख कर सनी की जान में जान वापस आई . उसकी मां उसके पास जा कर बोली तू तो ऎसे ड़र गया था जैसे तेरी कोई चोरी पकड़ी गई हो या तू कहीं से ड़ाका ड़ाल कर या किसी का खून कर के आया हो।

चोरी तो उसने की थी अपने ईमान की और ड़ाका ड़ाला था अपनी ही माँ समान सगी भाभी की जवानी
पर और खून किया था अपनी ही अन्तरात्मा का। लेकिन ये किसी को दिखाई नहीं दे रहा था। खुद सनी को भी नहीं।

वैसे भी आज के जमानें में चोरी उसी को कहते हैं जो पकड़ी जाय। सो सनी साहूकारों की तरह खड़ा हो गया। वो समझ चुका था कि बात कुछ और ही है और वो नाहक ही ड़र रहा था।

कुछ क्षण पहले फ़ांसी लगा कर मरने की बात सोचने वाला सनी न केवल फ़िर से निर्लज्ज बन गया बल्कि पहले से ज्यादा बेखौफ़ भी . उसे पूरा यकीन हो गया कि ये गदराई हसीना कभी अपना मुंह नही खोलेगी। ऎसा विचार मन में आते ही उसने पूरे दो दिनों के बाद फ़िर से अपनी भाभी के गदाराए बदन को नीचे से उपर तक देखा और उसकी नज़र फ़िर से उसकी झिनी साड़ी के अंदर दिखने वाले उसके क्लिवेज पर पड़ने लगी। उसके लंड़ ने पेण्ट के अंदर से झटका मार नेहा की रसीली जवानी को सलामी दे ड़ाली।

जिस तरह से दिया बुझने से पहले आखिरी बार जोर से जलता है उसी तरह सनी की अन्तरात्मा भी उसे लगातार दो दिन तक अपराध बोध कराने के बाद आज सदा सदा के लिये चुप हो गई। सनी काफ़ी आज़ाद मह्सूस कर रहा था।

पाप करने के लिये लोग नये नये बहाने बनाते हैं और उसे सही साबित करने के लिये अपने हिसाब से तर्क देते हैं। इंसान का मन एक वकील की तरह काम करता है। जिस तरह एक वकील अदालत में अपने तर्कों से अपने क्लाइंट के गलत काम को भी सही साबित कर देता है और उसे सजा से बचा लेता है। उसी प्रकार सनी के अंदर बैठा उसका मन रुपी वकील भी उसे समझा रहा था कि उसने जो किया उसमें कुछ भी गलत नहीं है। आखिर नेहा जवान है और पति उससे काफ़ी दूर है और अगले काफ़ी महिनों तक उसके यहां वापस आने की कोई गुंजाईश भी नही है, ऎसे में अपनी शरीर की जरुरतों के आगे यदि वो झुक गई और किसी और से उसका रिश्ता बन गया तो?

जिस प्रकार इंदौर की एक जैन साध्वी इंदुप्रभा अपने शरीर के ताप को न सह पाई और अपने ही दूध वाले राधेश्याम गुर्जर के साथ भाग गई थी तो कैसे पूरे देश में जैन समाज की नाक कटी थी। कहीं नेहा ने ऎसा कोई कदम उठाया तो पूरे समाज मे तुम्हारे परिवार की नाक ही ही कट जायगी .
 
सो अपने मन के तर्कों को मानते हुए सनी ने अपने परिवार की इज्जत बचाने के लिये अपनी सगी भाभी को चोदने का फ़ैसला किया था। उसके मन ने उसे ऎसा तर्क दिया था कि उसकी आत्मग्लानी अब गायब हो चुकी थी और नेहा भाभी को चोदना अब उसे पाप नहीं बल्की अपना धर्म लग रहा था। उसे लगने लगा था कि परिवार की इज्जत बचाने के लिये उसे अपनी भाभी को चोदने का धर्म निभाना ही पड़ेगा।

सनी ने अपनी मां से कहा नहीं मां ऎसी कोई बात नही है दरासल मुझे बहुत भूख भी लगी और मैं बहुत थक भी गया हूं ,इसीलिये आपको ऎसा लगा। फ़िर उसने मां के हाथ पकड़ कर पूछा अब बता भी दो न मां . मां ने हंसते हुए नेहा की तरफ़ देखा और पूछा क्यों बहू बता दूं इसे या नहीं? नेहा ने जवाब में कुछ नहीं कहा केवल मुस्कुरा दिया। मां ने नेहा की तरफ़ बनावटी गुस्से से देखते हुए कहा "अरि रहने दे, तू तो बोलने से रही, तेरा तो कोई खून भी कर दे तो भी तू उसे कुछ नहीं कहेगी बस खड़ी खड़ी देखती रहेगी".

अब मां ने सनी की तरफ़ देख कर कहा "सुन बेटा बड़ी अच्छी खबर है, तेरी नीता के साथ बात पक्की हो गई है। और परसों संजय भी आ रहा है अपने बास के साथ बस उसके दो दिन के बाद तेरी नीता के साथ सगाई कर देंगे।"
सनी : सगाई ! इतनी जल्दी, और फ़िर संजय भैया तो सिर्फ़ एक दिन के लिये ही आ रहे हैं न?
उसके पापा ने बीच में टोकते हुए कहा " एक दिन के लिये नहीं बेटा पूरे चार दिनों के लिये आ रहे है वो दोनों।
सनी (तनिक चौंकते हुए ) : दोनों! कौन दोनों पापा ?
पापा : अरे बेटा संजय और उसका बास दोनों . वो मेंरा बहुत अच्छा दोस्त भी है और फ़िर वो मेरें बेटे का बास भी तो है। मुझे अपने बेटे की तरक्की भी तो करवानी है न। तुम सब ध्यान से सुन लो संजय के बास की खातिरदारी में कोई कसर बाकी नहीं रहनी चाहिये समझे।
सब ने एक दूसरे की तरफ़ देखा और सहमती में अपना सर हिला दिया। तभी पापा खड़े हुए और कहने लगे चलो भई अब आज की सभा समाप्त करो मुझे तो बहुत नींद आ रही है, ऎसा कहते हुए वो अपने कमरे की तरफ़ चले गये। उनको जाते देख सनी की मां भी उनके पिछे चली गई और "दिया" भी सबको गुड़ नाईट कहते हुए अपने कमरे में चली गई।

दो दिनों की लुका छिपी के बाद सनी और नेहा भी अब आज के महौल के बाद सामान्य हो चुके थे और दो दिनों के बाद दोनो ने एक दूसरे को देखा और मुस्कारा दिये।उसकी मुस्कुराहट में उसे सहमती और बेबसी दोनो नजर आ रही थी।

लेकिन शिकारी को उससे क्या ? वो तो अपने शिकार को बेबस देख कर और खुश होता है। सनी का लण्ड़ फ़िर से खड़ा होने लगा था।
 
एक चतुर शेर जिस तरह से झुंड़ से अपने शिकार को पहले अलग करता है और फ़िर उसे थका कर उस पर झपट्टा मार कर उसका काम तमाम कर देता है उसी तरह सनी ने नेहा को अलग थलग तो कर दिया था और अब उस पर झपटने की तैयारी कर रहा था।

वो दोनों भी अब उपर अपने अपने कमरों की तरफ़ जाने लगे। नेहा थोड़ा आगे थी और सनी उसके पिछे। नेहा जैसे ही सीढियों पर पांव रखती उसकी बड़ी बड़ी विशाल मांसल गांड़ बडे उत्तेजक तरिके से हिलता उसे देख कर उसके पिछे आ रहे सनी बुरी तरह से उत्तेजित हो गया और उसका लंड़ पेंट फाड़ कर बाहर आने के लिये बेताब होने लगा।

इसी तरह अपनी भाभी की हिलती गांड़ को देखते हुए वो उपर तक पहुंच गया। जैसे ही नेहा उसके दरवाजे के सामने से गुजरी उसने पिछे से अवाज लगाई, भाभी।

नेहा रुक गई उसने पिछे मुड़ कर सनी की तरफ़ देखा। तब तक वो नेहा के पास पहुंच गया।
नेहा के पास पहुंच कर उसने उससे बोला मैं आपको थैंक्स कहना तो भूल ही गया था। वो मुस्काराई लेकिन प्रत्यक्षत: बोली किस बात का थैंक्स?
सनी : जी वो सगाई की बात पक्की कराने के लिये।
नेहा: अच्छा! लेकिन इसमें थैक्स जैसी क्या बात है जब उमर होती है तो शादी तो करनी ही पड़ती है न, वरना बच्चे बिगड़ जाते हैं। ऎसा बोल कर वो नजर निची कर व्यंग से मुस्कुराने लगी।
सनी : हां ठीक कहा आपने सब काम ठीक समय पर होना चाहिये वरना कुछ लोग बिगड़ जाते है और कुछ कुंठित हो जाते है। अब हंसने की बारी सनी की थी। उसने नेहा का हाथ पकड़ा और कहा आओ न भाभी अंदर बैठ कर कुछ बाते करते हैं।
नेहा : अभी ! अरे नहीं कल बात करेंगे मुझे नींद आ रही है।
लेकिन उसकी बात को अन्सुना करते हुए उसे लगभग खिंचते हुए अपने कमरे में ले आया और बोला मुझे नीता के बारे में बताओ।
नेहा : क्या बताऊं मै उसके बारे में ? वो तो एक सीधी सादी घरेलु लड़्की है और क्या ?
सनी : वो तो होगी ही आखिर आपकी बहन जो है। लेकिन मुझे और बताईये उसके बारे में जैसे उसकी पसंद नापसंद उसके शौक बगैरह . इस बात करते हुए सनी ने नेहा को अपने पलंग पर बैठा दिया और खुद उससे लग्भग सट कर बैठ गया। इस दौरान उसने नेहा का हाथ थामे रखा और सदा की भांती नेहा लाचार की तरह बैठी रही उसमें अपना छुड़ाने का साहस नहीं था।

वो उसे नीता के बारे में बताने लगी। लेकिन सनी का ध्यान उसकी बातों में नहीं बल्की उसके जिस्म पर था। वो तो किसी तरह नेहा को अपने पास बैठाये रखना चाहता था। इसी तरह बाते करते हुए लग्भग २०-२५ मीनट हो गये तो अचानक वो झटके से खड़ी हो गई और उसने कहा अब चलना चाहिये काफ़ी देर हो गई है सुबह जल्दी उठना है। सनी भी खड़ा हो गया और बोला ठीक है भाभी लेकिन एक बात मैं बार बार आपसे कहना चाहता हूं .
नेहा : वो क्या?
सनी : यही की आप बहुत अच्छी हो और ऎसा कहते हुए उसने नेहा के गाल पर एक हल्का सा चुंबन लगा दिया।
इस अप्रत्याशित बात से नेहा थोड़ी हड़बड़ा जाती है और केवल इतना ही कह पाती है " अरे" , और फ़िर वो अपने रुम की तरफ़ तेज कदमों से चलते हुए जाने लगती है। सनी मुस्कुरा देता है और हौले से कहता है गुड़ नाईट भाभी।
वो भी प्रत्युत्तर में गुड़ नाईट कहती है और अपने रुम में चली जाती है।
 
सनी उसको अपने रुम के अंदर तक जाते देखता है . दरसल वो उसकी गांड़ो को घूर रहा था। नेहा की गांड़ सनी की सबसे बड़ी कमजोरी थी।

जैसे ही वो अपन्रे रुम में चली जाती है, वो तुरंत तेजी से चलते हुए छ्त पर चला जाता है और फ़िर कूलर के छेद से अंदर देखने लगता हैं। अंदर नेहा हमेशा की तरह नंगी हो कर अपने कपड़े बदलती है जिसे देख सनी बदहवास हो जाता है। नेहा के कपड़े बदलने के बाद छत पर बैठने का कोई मतलब नही था सो सनी अपने कमरे में जाता है और अपनी भाभी के नंगे जिस्म को याद करते हुए मुठ्ठ मार कर सो जाता है।

रात को सोने में देर हो जाने के कारण नेहा सुबह जल्दी नहीं उठ पाती , जब सो कर उठने पर उसकी नजर घड़ी पर पड़्ती है तो वो हड़्बड़ा जाती है। सुबह के आठ बज चुके थे . वो एक झटके में पलंग से नीचे कूदती है जल्दी से अपना मुंह धोती है कपड़े बदल कर और थोड़ा बाल बना कर तुरंत नीचे की तरफ़ भागती है।

नीचे का नजारा उसकी आशा के अनुरुप ही था। मां रसोई में बड़्बडाते हुए काम कर रही थी और उसके ससुर और ननद नाश्ते के लिये हलाकान हो रहे थे। दरसल नेहा की सास की काम करने की आदत छूट चुकी थी किचन में वो यदा कदा ही आती थी,और आती भी तो केवल नेहा को ये बताने के लिये कि उसे आज क्या पकाना है। सो उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि कौन सा सामान कहां रखा हुआ है और यही वजह थी को नेहा पर झुंझला रही थी।

नेहा को देखते ही वो फ़ट पड़ी और तनिक तेज आवाज में बोली : आ गई इतनी जल्दी अरी थोड़ा और सो लेती अभी बखत ही कितना हुआ है? सीधा खा पी कर उतरती . नेहा जानती थी मां के गुस्से की वजह दरअसल उसे किचन में सामान नहीं मिलने क्कि वजह से वो झुंझला रही थी और बाहर उसके ससुर जी उनका मजाक उड़ा रहे थे।

नेहा ने किचन में जाते ही मोर्चा संभाल लिया . उसने मां से कहा दर असल कल रात को बातें करते हुए काफ़ी देर हो गई थी इसी वजह से आज उठनें में काफ़ी देर हो गई मम्मीजी . मैं तो सीधे नीचे ही आ गई पहले आप लोगों को नाश्ता वगैरे बना कर दे दूं फ़िर जा कर नहा लूंगी। उसकी बात सुन मम्मी चीखते हुए कहती है क्या कहा तुमने तुम बाद में नहा कर आओगी यानी तुम अभी बिना नहाये नीचे आ गई हो? और वो भी किचन में !

उसने नेहा को डांटते हुए कहा : चल निकल यहां से , निकल किचन के बाहर और जा कर नहा कर आ, तुझे पता है न तेरे पापा को यदि पता चल जायेगा तो वो आसमान सर पर उठा लेंगे। उन्होंने जानबूझ कर ये बातें जोर से कही ताकी उसके ससुर भी ये बातें सुन ले। ताकी थोडी डांट उनसे भी नेहा को पड़ जाय लेकिन उसका दांव उल्टा पड़ गया, उन्होंने वहीं से बैठे हुए कहा : वाह देखो बेचारी नेहा को उसे हमारी कितनी चिंता है बिना नहाये ही ही आ गई। तुम रहने दो बेटा नेहा तुम आराम से जा कर नहाकर नीचे उतरो कोई जल्दी नहीं है। आज तो तुम्हारी मम्मी के हाथ का नाश्ता ही करेंगे।

उनकी ये बातें सुन कर पहले से जली भुनी बैठी उसकी मां और चिढ़ गई और जोर जोर से चिल्लाने लगी , और चढाओ सर पे सबको यदि मैंने किया होता तो चिल्ला चिल्ला कर सर पर आसमान उठा लिया होता और धर्म के ठेकेदार बन कर दुनिया भर ताने मार दिये होते और इसे कहते हो कोई बात नहीं। उसके पापाजी ये बातें सुन कर जोर जोर से हंसने लगे हॊ हॊ हो

और कहने लगे अरे क्या हो गया एक दिन यदि तुम बना कर खिला दोगी तो? यदि नहीं बनाना तो साफ़ साफ़ बोल दो हम बाहर जा कर कुछ खा लेंगे छोटि सी बात का बतंगड मत बनाओ।
 
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