Bhai Bahan Sex Kahani भाई-बहन वाली कहानियाँ - Page 2 - SexBaba
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Bhai Bahan Sex Kahani भाई-बहन वाली कहानियाँ

वैसे तो लंड बहुत गर्म था और जब उस पर थोड़ी ठंडी हवा लगी तो अच्छा महसूस होने लगा। जब उसने अपने कोमल हाथों से मेरे लंड को छुआ तो मैं सिहर गया और जब वो सहलाने लगी तो मानो मैं जन्नत में पहुँच गया। कुछ ऐसा जादू था उसके हाथों में।
ऊपर मैं उसकी चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा और चूसने लगा.. तो वो भी मेरे लंड को ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगी। सो मैं भी बुरड़ों को छोड़ कर अपना एक हाथ उसकी बुर के पास ले आया और ऊपर से सहलाने लगा। कपड़ों के ऊपर से ही लेकिन कपड़ों के ऊपर में बुर को सहलाने का क्या मजा..? सो मैंने उसके कपड़ों में हाथ डाल दिया और मेरी उंगली उसकी बुर के पास पहुँच गई। उसकी बुर तो मानो तप रही थी.. जैसे कोयले की भट्टी हो।
सो मैं उसके कपड़े उतारने लगा.. तो वो भी कपड़े उतारने में साथ देने लगी और अब वो मेरे सामने पूरी नंगी खड़ी थी।
जब उसके बदन पर ठंडी-ठंडी हवा लगी तो उसके रोंए खड़े हो गए।
दीप्ति- मैं नंगी खड़ी हूँ.. और तुम कपड़ों में अच्छे नहीं लग रहे हो।
मैं- तुम ही आकर उतार दो।
दीप्ति- खुद से उतार लो।
मैं- नहीं खुद से तो नहीं उतारना है मुझे.. तुम उतारोगी तो बोलो..
दीप्ति- ओके.. मैं ही उतार देती हूँ.. वैसे भी तुमसे बड़ी हूँ।
वो मेरे कपड़े उतारने लगी तो मैं खुद सारे कपड़े उतार कर नंगा हो गया और बोला- लो मैं भी तुम्हारे जैसा हो गया।
दीप्ति- वाउ… तुमने तो अच्छी बॉडी बना रखी है।
मैं- हाँ जिम जाता हूँ वैसे तुम्हारी बॉडी भी बहुत सेक्सी है और कोई इतना गोरा कैसे हो सकता है यार..
दीप्ति- ओहो.. थैंक्स..
मैं- आओ अब इसको मुँह में ले लो.. ये अन्दर जाने के लिए बहुत देर से तड़फ रहा है।
दीप्ति- छी: नहीं.. मैं नहीं लूँगी..
मैं - लेकर तो देखो.. मजा आ जाएगा।
कांता - ठीक है.. कोशिश करती हूँ।
वो नीचे बैठ गई और लंड पर किस किया फिर लंड के आगे वाले भाग पर जीभ घुमाने लगी। मुझे मजा आने लगा तो मैं बोला- अब अन्दर लो ना इसको..
तो उसने मुँह खोला और मैंने लंड अन्दर डाल दिया..
उसके मुँह में पूरा लंड नहीं आ पा रहा था.. सो वो उतने ही भाग को ही चूसने लगी।
मैं उसके सिर को पकड़ कर लंड अन्दर-बाहर कर रहा था। कुछ देर ऐसा करने के बाद उसको बिस्तर पर लिटा दिया और हम 69 की अवस्था में आ गए। अब मैं उसकी बुर को और वो मेरे लंड को चूस रही थी। उसकी गुलाबी सी बुर को जब मैं जीभ से चाट रहा था तो कितना मजा आ रहा था कि बता नहीं सकता।
कुछ देर ऐसा करने के बाद उसकी बुर ने पानी छोड़ दिया। कुछ देर बाद मेरा लंड भी छूट गया और सारा पानी उसके चेहरे पर लग गया। अब हम दोनों अलग हुए।
मैं- कैसा लगा?
दीप्ति- बहुत मजा आया..
मैं- बड़ी कमाल की है तुम्हारी बुर यार.. मुझे भी चूस कर मजा आ गया।
दीप्ति ने मेरे लंड पर हाथ मारते हुए- ये अभी तक खड़ा है।
मैं - हाँ तुम्हारे अन्दर जाना चाहता है।
दीप्ति- अब कहाँ?
मैंने उसकी बुर पर उंगली फिरा दी… बोला- यहाँ..
दीप्ति - नहीं यार.. नहीं जाएगा.. बहुत बड़ा है… बहुत दर्द होगा।
मैं - नहीं होगा ना.. मैं आराम से डालूंगा
दीप्ति - नहीं.. मेरी बुर फट जाएगी.. किसी और दिन।
मैं - कुछ नहीं होगा.. वैसे भी काल करे सो आज कर.. सो अभी ही करते हैं।
दीप्ति - नहीं यार.. मुझे डर लग रहा है.. बहुत दर्द होगा..
मैं - कुछ भी नहीं होगा.. जब ज्यादा दर्द होगा.. तो मत करना..
दीप्ति - ओके ठीक है.. लेकिन कन्डोम है? बिना कन्डोम के मैं नहीं करूँगी।
 
मैं - कुछ भी नहीं होगा.. जब ज्यादा दर्द होगा.. तो मत करना..
दीप्ति - ओके ठीक है.. लेकिन कन्डोम है? बिना कन्डोम के मैं नहीं करूँगी।
मैं - हाँ है ना.. मेरी गाड़ी में है..
दीप्ति - गाड़ी में क्यों रखते हो।
मैं - वैसे ही.. पता नहीं कब कहाँ ज़रूरत आ जाए.. जैसे आज ज़रूरत पड़ गई.. रूको मैं लेकर आता हूँ।
दीप्ति - ओके जाओ लेकर आओ।
मैं उसी की ओढ़नी लपेट कर कन्डोम लाने चला गया.. बाइक की डिक्की से तो कन्डोम निकाल लिया और आते समय मैंने सोचा देखूँ कि जय क्या कर रहा है?
मैंने उसको देखा कि साला फोन पर ही लगा हुआ था तो मैं उसके कमरे में गया।
मैं- क्या कर रहा है साले?
जय- तेरी बहन को फोन पर चोद रहा हूँ अभी नंगी लाइन पर ही है.. पूछ लो..
मैं - होगी.. मुझे क्या प्राब्लम है..
जय - और साले तुझे तो मैं छोडूँगा नहीं..
मैं - क्यों क्या हुआ.?
जय - तुम दोनों भाई-बहन ने मिल कर प्लान करके मुझे फंसाया है।
मैं - तुझे कौन बोला?
जय - ले लाइन पर ही है.. पूछ ले..
मैं - कांता, तुमने इसको सब कुछ बता दिया क्या..?
कांता - हाँ भैया ग़लत किया क्या?
मैं - नहीं.. सही किया..
जय - पूछ ले नंगी है.. तेरी बहन मुझसे अभी चुद रही थी।
कांता - ये सही बोल रहा है भैया..
मैं - तू साले मेरी बहन को फोन पर चोद रहा है.. और मैं तेरी बहन को रियल में चोदने जा रहा हूँ.. अपने कमरे में वो भी नंगी मेरा इंतज़ार कर रही है।
जय – सच ?
मैं- हाँ बेटा.. नहीं भरोसा हो.. तो देख ये ओढ़नी किसकी है.. पहचानता है ना और अगर फिर भी भरोसा नहीं है तो जाकर उसके कमरे में देख ले।
जय - तो क्या इधर मुझे बताने आया था क्या?
मैं - नहीं कन्डोम लेने आया था अगर लाइव टेलीकास्ट देखना है.. तो आ जा.. मैं खिड़की खोल दूँगा।
जय - ओके.. जा खोल देना.. मैं अभी तेरी बहन को चोद कर आता हूँ।
मैं - ओके!
मैं कन्डोम लेकर अन्दर आया तो..
दीप्ति - इतनी देर कहाँ लगा दी..?
मैं- देख रहा था तेरा भाई क्या कर रहा है?
दीप्ति - क्या कर रहा है.. सोया हुआ होगा।
मैं - नहीं फोन पर सेक्स चैट कर रहा है
दीप्ति - किससे?
मैं - पता नहीं.. उसको छोड़ो.. तुम मेरे आगोश में आ जाओ मेरी जान..
दीप्ति - मैं तो कब से तैयार बैठी हुई हूँ।
‘ओके मेरी जान.. लेकिन पहले मेरे राज़ा को कपड़े तो पहनाओ..’ मैं उसको कन्डोम देते हुए बोला।
दीप्ति- ओके।
उसने मुझे कन्डोम पहना दिया फिर मैंने उसको गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी बुर पर उंगली फिराने लगा।
कुछ देर ऐसा करने के बाद एक उंगली उसकी बुर में डाल दी, उसके मुँह से सीत्कार निकल रही थी.. तो मैं लंड को उसकी बुर पर घुमाने लगा।
जब देखा कि वो पूरी गरम है.. तो हल्का सा झटका लगा दिया.. लेकिन ज़ोर पूरा लगाया था सो लंड बुर के अन्दर चला गया और वो ज़ोर से चीख पड़ी..
‘आआअहह..’
जब तक मेरा हाथ उसके मुँह के पास पहुँचता.. उसकी आवाज़ गूँज चुकी थी और उसकी बुर से खून गिरना चालू हो गया था.. मतलब उसकी झिल्ली फट चुकी थी। वो दर्द से तड़फ रही थी.. सो मैंने उसके मुँह पर अपने होंठ रख दिए और उसके बदन को सहलाने लगा।
कुछ देर बाद वो जब नॉर्मल हुई तो मैंने एक और झटका मार दिया और मेरा आधा लंड बुर के अन्दर जा चुका था।
उसकी आँखों से आँसू आ गए.. सो फिर मैंने उसको किसी तरह नॉर्मल किया और फिर मौका पाकर एक जोरदार झटका मार दिया और अब की बार पूरा लंड उसकी बुर के अन्दर जड़ तक चला गया।
वो तड़फने लगी.. लंड को निकालने की कोशिश करने लगी.. लेकिन मैंने नहीं करने दिया और कुछ देर बाद जब वो नॉर्मल हुई तो मैंने लंड निकाला और उसकी बुर को साफ़ किया। अपने लंड को भी साफ़ किया.. उसके खून से लौड़ा लाल जो हो गया था।
 
कुछ देर आराम करने के बाद मैं फिर रेडी करने लगा लेकिन वो मना कर रही थी कि बहुत दर्द हो रहा है। लेकिन मेरे मनाने पर वो मान गई तो मैंने फिर से उसकी बुर पर लंड डाला और बड़े ही प्यार से लौड़े को अन्दर डाला.. तो इस बार दर्द कम और बर्दाश्त करने लायक हुआ.. तो मैं धीरे-धीरे लंड को अन्दर-बाहर करने लगा।
जब लौड़े ने बुर में अपनी जगह बना ली और उसे मजा आने लगा.. तो मैं ज़ोर-ज़ोर से चुदाई करने लगा।
उसके मुँह से ‘आह्ह.. उई माँ..’ की आवाजें पूरे कमरे में गूंजने लगीं।
कुछ देर बाद वो भी नीचे से गान्ड उठा-उठा कर मेरा साथ देने लगी।
कुछ देर वैसे किया.. फिर मैं उसके दोनों टाँगों के बीच में आ गया और चोदने लगा।
वो अपने दोनों पैरों को मेरी कमर में फंसा कर लेटी थी और कुछ देर उसी अवस्था में उसकी बुर चोदने के बाद मैंने महसूस किया कि उसका शरीर अकड़ने लगा। मैं समझ गया कि ये अब झड़ने ही वाली है.. सो मैंने झटके और तेज कर दिए और वो ज़ोर-ज़ोर से ‘आआहह.. ऊऊऊ ऊऊऊओह.. उउफ्फ़..’ करने लगी और एकदम से अकड़ते हुए डिस्चार्ज हो गई।
तो मैंने भी अपना लंड निकाल लिया और खुद हिलाने लगा। कुछ देर बाद मैं भी डिसचार्ज हो गया और उसके बगल में लेट गया।
मैं - मजा आया?
दीप्ति - हाँ लेकिन दर्द भी बहुत हुआ।
मैं - पहली बार हर किसी को होता है.. फिर धीरे-धीरे मजा आने लगता है.. जैसे आखिर में आया होगा।
दीप्ति - हाँ बहुत मजा आया..
कुछ देर लेटे रहने के बाद वो खुद मेरे शरीर पर हाथ फेरने लगी। मैं समझ गया इसका मन एक और राउंड के लिए हो गया है..
मैंने उसको दूसरा कन्डोम दिया.. तो उसने मेरे सोए हुए लंड को जैसे ही छुआ वो फिर से खड़ा हो गया। उसको साफ़ करके उस पर नया कन्डोम पहना दिया और मेरे लंड पर बैठने लगी। मैंने अपना लंड पकड़ लिया और उसकी बुर के छेद में टिका दिया।
वो उस पर बैठ गई और लंड अन्दर चला गया.. ज़रा सी ‘आह्ह..’ के बाद वो खुद ऊपर-नीचे हो कर चुदने लगी। जब वो चुद रही थी.. तब उसकी चूचियाँ गजब की उछाल मार रही थीं। जिसको देख कर मैं कंट्रोल नहीं कर पाया और मैं उसकी चूचियों को मसलने लगा। वो भी अपनी गान्ड को घुमा-घुमा कर चुद रही थी और खुद ही ऊपर-नीचे हो रही थी। फिर वो आगे को झुक गई और मैं उसको किस करने लगा और उसकी चूचियाँ मेरी छाती पर मसाज दे रही थीं।
मैं भी उसके बुरड़ों को दबा रहा था और आगे-पीछे होने में उसकी मदद कर रहा था।
कुछ देर बाद मैं नीचे से भी झटके मारने लग गया.. कुछ देर वैसे करने के बाद हम दोनों ने पोज़ बदल-बदल कर उस रात चार राउंड चोदन किया। मतलब चार बार हम दोनों डिसचार्ज हुए और फिर थक कर लेट गए.. ना जाने कब हमारी आँख लग गई.. पता ही नहीं चला।
सारी रात हम नंगे ही सोए रहे.. हमारी नींद सुबह खुली.. जब जय की आवाज हमारे कानों में पड़ी।
जय- कितनी देर तक सो रहे हो.. उठना नहीं है क्या?
एक ही कपड़े से हम अपने आपको छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए मैं बोला- तुम कब जागे?
दीप्ति- भाई वो..
उसके पास बोलने के लिए शब्द ही नहीं थे.. लेकिन तभी जय - अरे घबराओ नहीं.. मैंने कुछ नहीं देखा.. तुम दोनों कपड़े पहन कर बाहर आ जाओ और जो देखा वो किसी को नहीं बताऊँगा.. तुम लोग ज़वान हो.. ये सब तो हो ही जाता है.. ये सब छोटी-छोटी बातें हैं।
 
दीप्ति- भाई वो..
उसके पास बोलने के लिए शब्द ही नहीं थे.. लेकिन तभी जय - अरे घबराओ नहीं.. मैंने कुछ नहीं देखा.. तुम दोनों कपड़े पहन कर बाहर आ जाओ और जो देखा वो किसी को नहीं बताऊँगा.. तुम लोग ज़वान हो.. ये सब तो हो ही जाता है.. ये सब छोटी-छोटी बातें हैं।
अब जय दीप्ति के पास गया और बोला - तुम बुरा क्यों महसूस कर रही हो.. तुमने कुछ ग़लत नहीं किया.. मैं सब कुछ जानता हूँ.. अब मुस्कुरा दो।
दीप्ति मुस्कुरा दी।
‘ओके गुड गर्ल.. अब जाओ फ्रेश हो कर जल्दी आ जाओ.. मैं जब तक मार्केट से नास्ता ले आता हूँ.. मैं ज्यादा देर इंतज़ार नहीं करूँगा.. जल्दी आओ..’
वो बाहर चला गया।
दीप्ति- भाई ने तो कुछ बोला ही नहीं..
मैं - वो हमारे बारे में सब जानता है.. मैंने उसको सब कुछ बता दिया था.. सो डरने की कोई बात नहीं.. जाओ फ्रेश हो जाओ।
दीप्ति - बाथरूम तक अपनी गोद में लेकर चलो ना..
मैं- ओके..
मैं उसको गोद में उठा कर बाथरूम में गया।
हम दोनों फ्रेश हुए और कपड़े पहन कर रेडी हो गए तो वो फिर बोली- मुझे गोद में ही ले चलो ना नीचे..
तो मैं उसको गोद में ही ले कर नीचे आया.. टेबल पर जय नाश्ता लगा चुका था, दीप्ति मेरी गोद में ही बैठ कर खाने लगी।
तो वहीं जय और मैंने दोनों मिल कर दीप्ति को सारी बात बता दी।
दीप्ति - क्या.. मुझे चोदने के लिए तुम लोगों ने इतना बड़ा प्लान बनाया था।
मैं - क्या करूँ.. तुम हो ही इतनी खूबसूरत.. किसी का भी दिल तुमको चोदना चाहेगा।
जय - ये प्लान इसका नहीं.. इसकी बहन का था.. जो मुझसे चुदना चाहती है।
मैं - ये भी सही है।
जय - मैं अपना वादा पूरा किया.. अब मैं जा रहा हूँ तुम्हारे घर.. और तुम यहाँ एंजाय करो।
मैं - ठीक है जाओ..
दीप्ति - नहीं जय.. रूको.. मेरे पास एक प्लान है।
जय और मैं एक साथ बोले- क्या?
दीप्ति- क्यों ना तुम कांता को यहीं ले आओ.. वैसे भी घर 4 दिन तो खाली ही रहेगा.. यहीं पर ग्रुप में हम लोग मस्ती करेंगे।
जय और मैं - यह भी सही बोल रही है।
जय - तो एक काम करो.. तुम कांता को ले कर आओ।
मैं - ठीक है.. अभी लेकर आता हूँ।
मैं घर चला गया.. कांता का चेहरा मुझे देखते ही खिल उठा और मुझसे गले लग गई और बोली - वाउ भाई तुमने तो कमाल कर दिया।
मैं - मम्मी-पापा कहाँ हैं?
कांता - अन्दर हैं।
मैं उनके पास गया तो मुझे देखते ही पूछने लगे - अकेले पार्टी कहाँ करके आ गया?
‘नहीं पापा पार्टी आज है.. और वो आप तीनों को भी बुलाया है।’
तो पापा बोले - अरे न भाई.. हमारे पास टाइम नहीं है.. तुम कांता को ले कर चले जाना.. और हमारी तरफ़ से सॉरी बोल देना.. अब हम ऑफिस चलते हैं।
इतना बोल कर वे दोनों ऑफिस चले गए उनके जाते ही कांता फिर से मेरे ऊपर कूद पड़ी।
कांता - कमाल के लड़के हो तुम यार.. इतनी जल्दी काम कर दिया।
मैं - कभी कभी कमाल कर देता हूँ।
कांता - बिस्तर में कैसी लगी दीप्ति?
मैं - मस्त आइटम है यार.. उसके साथ चुदाई में मजा आ गया.. और वो सील पैक भी थी।
कांता - तब तो तुमने एक और सुहागरात मना ली.. मतलब 12 के चोदू हो गए।
मैं - हाँ चलो.. आज तुम भी मना लेना अपनी तीसरी सुहागरात..
वो शर्मा गई.. तो मैं बोला शर्माना बंद करो और जल्दी से तैयार हो जाओ.. जय के यहाँ चलना है.. अभी आज तेरे मन की मुराद पूरी हो जाएगी।
हम लोग जल्दी से रेडी होकर जय के घर पहुँच गए और जैसे ही अन्दर गए तो देखा जय और दीप्ति एक बिस्तर को सज़ा रहे थे।
पूछने पर पता चला आज इन दोनों की पहली चुदाई यादगार रहे.. उसी की तैयारी चल रही है। तभी दीप्ति कांता को लेकर चली गई बोली- इसको मैं सज़ा देती हूँ.. और मुझसे बोली - तुम जय को जाकर सज़ा दो।
मैं जय को कमरे में ले गया और बोला- खुद से तैयार हो जा..।
जब वो रेडी हो गया तो मैंने थोड़ा बहुत उसको सज़ा दिया और खुद भी फ्रेश हो कर बाहर आया। तो पता चला दीप्ति अभी भी कांता को सज़ा ही रही है.. वो भी बंद कमरे में।
 
जब वो रेडी हो गया तो मैंने थोड़ा बहुत उसको सज़ा दिया और खुद भी फ्रेश हो कर बाहर आया। तो पता चला दीप्ति अभी भी कांता को सज़ा ही रही है.. वो भी बंद कमरे में।
कुछ देर बाद जब वो बाहर निकली.. तो मैं देखता ही रह गया। कांता एकदम खूबसूरत दुल्हन की तरह सजी हुई थी। सिल्वर रंग की पारदर्शी साड़ी और उसी रंग की ब्लाउज.. पूरा फेस मेकअप किया हुआ.. साड़ी नाभि से नीचे.. बुर से थोड़ी ही ऊपर बँधी हुई थी।
उसकी बुर और नाभि के बीच का चिकना भाग और भी खूबसूरत लग रहा था।
मुझे तो लग रहा था कोई हूर परीलोक से उतर कर आई है.. क्योंकि इतनी खूबसूरत कांता को मैंने भी पहले कभी नहीं देखा था। वैसे दीप्ति भी तैयार हो कर आई थी.. लेकिन कांता के आगे वो कुछ ख़ास नहीं लग रही थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैं कांता के गले लग गया - अभी तुम इतनी खूबसूरत लग रही हो कि मन हो रहा है कि पहले मैं ही चोद दूँ।
कांता - आज तो मैं जय के लिए सजी हूँ.. आप किसी और दिन..
मैं - ओके मेरी जान.. लेकिन मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा है।
कांता - दीप्ति है ना.. आज इसी से काम चलाओ।
मैं - उसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं है।
दीप्ति - अब तुम हटो इसको बिस्तर पर ले जाने दो।
मैं - हाँ उसको पहुँचा कर मेरे पास आ जाओ.. जल्दी से मेरा राजा खड़ा हो रहा है।
दीप्ति - हाँ आती हूँ.. मेरे राजा सब्र करो।
मैं - नहीं हो पा रहा है।
दीप्ति - पिछली बार मिली थी.. तो बहुत छोटी थी.. लगता है कोई मेहनत कर रहा है।
मैं - हाँ तुम्हारा वही.. और तुम आओ मैं तुम पर मेहनत करता हूँ।
दीप्ति - अभी इन दोनों को देखने दो.. पहली बार लाइव सेक्स देख कर मजा आ रहा है।
मैं - अब शायद मैं पहला आदमी होऊँगा जो अपनी ही बहन को चुदते हुए लाइव देखूँगा।
हम दोनों हँसने लगे और वो दोनों अपने काम में लगे हुए थे। जय कांता की चूचियों से खेल रहा था.. कभी मसल रहा था.. तो कभी चूस रहा था।
इधर मैं भी दीप्ति की चूचियों को दबाने लगा तो ‘आहह..’ बोलते हुए वो मेरी गोद में बैठ गई।
मैं उसकी पीठ पर किस करते हुए उसकी चूचियों को मसलने लगा।
उधर वे दोनों अलग होकर बिस्तर पर ही खड़े हो गए… तो हम दोनों भी अलग हो गए ये देखने के लिए कि क्या हो रहा है।
मैंने देखा कांता उसके लंड को पैंट के ऊपर से मसल रही थी.. तो जय ने अपनी पैंट उतार को दिया और उसका लंड देख कर कांता उसके साथ खेलने लगी। तो दीप्ति से भी रहा नहीं गया और वो भी मेरे लंड को निकाल कर खेलने लगी और मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। दीप्ति जब तक चूस रही थी, मैंने भी अपनी पैंट उतार दी.. कुछ देर चूसने के बाद जय कांता को खड़ा करके उसकी साड़ी उतारने लगा.. तो कांता ने उसकी साड़ी और पेटीकोट दोनों उतारने में मदद कर दी।
मैं भी कहाँ पीछे रहने वाला था.. मैंने भी दीप्ति के कपड़े उतार दिए। अब कांता सिर्फ़ पैन्टी में थी और दीप्ति ब्रा और पैन्टी दोनों में खड़ी थी।
मैंने दीप्ति को सोफे पर बिठा कर उसकी दोनों टाँगों के बीच में जाकर उसकी पैंटी को हटा दिया और उसकी बुर चूसने लगा। तो जय भी पीछे नहीं रहा वो भी शुरू हो गया और दोनों लड़कियां मुँह से सीत्कार निकालने लगी। उनकी सीत्कारें पूरे कमरे में गूंजने लगीं।
दीप्ति मेरे लंड को पकड़ कर हिलाने लगी, कुछ देर ऐसा करने के बाद हम चारों डिसचार्ज हुए और अलग हो गए।
कुछ देर बाद फिर दोनों लड़कियों ने हम दोनों को कन्डोम पहनाए और हमारा लंड खाने को रेडी हो गईं। मैंने उधर देखा कि कांता बुर खोल कर बिस्तर पर लेट गई और जय ने अपना लंड उसकी बुर में डाल दिया।
उसको कोई खास दर्द नहीं हुआ.. क्योंकि वो मेरा लंड खा चुकी थी.. तो उसको क्या परेशानी होती भला..
दीप्ति - अरे वाहह.. इसने तो बड़ी आसानी से लंड खा लिया.. इसको तो दर्द भी नहीं हुआ और मैं तो कल बहुत रोई थी।
मैं - अब तुमको भी नहीं होगा मेरी जान..
दीप्ति - क्यों.. क्या ये पहले भी लंड खा चुकी है क्या?
मैं - हाँ इसको भी पहली बार हुआ होगा!
दीप्ति - ओह आजकल की लड़कियां बड़ी फास्ट होती हैं।
मैं - हाँ पद्मा भी अब तक लंड खा चुकी होगी।
दीप्ति - पता नहीं शायद..
मैंने उसको लिटा कर उसकी बुर में अपना मोटा लंड डाल दिया और जोरदार झटके मारने लग गया। पूरे कमरे में ‘आआआहह.. ऊहह.. ओह..’ की आवाजें गूंजने लगीं तो हम दोनों लड़कों ने झटके और तेज कर दिए।
फिर कुछ देर बाद हम चुदाई की अवस्था बदल-बदल कर चोदने लगे।
मैंने दीप्ति को घोड़ी बनाया तो ये देख कर जय भी कांता को घोड़ी बना दिया। जैसे-जैसे मैं दीप्ति के साथ कर रहा था.. वैसे ही वो कांता के साथ करने लगा।
उन दोनों लौंडियों के मुँह से ‘उऊहह.. ऊहह.. फफ्फ़..’ की आवाजें निकल कर पूरे कमरे में भरने लगीं और कुछ देर के बाद हम चारों लोग डिसचार्ज हो गए।
 
मैंने दीप्ति को घोड़ी बनाया तो ये देख कर जय भी कांता को घोड़ी बना दिया। जैसे-जैसे मैं दीप्ति के साथ कर रहा था.. वैसे ही वो कांता के साथ करने लगा।
उन दोनों लौंडियों के मुँह से ‘उऊहह.. ऊहह.. फफ्फ़..’ की आवाजें निकल कर पूरे कमरे में भरने लगीं और कुछ देर के बाद हम चारों लोग डिसचार्ज हो गए।
इस तरह बार-बार चुदाई होती रही और बार-बार झड़ते.. फिर कुछ देर के बाद शुरू हो जाते.. और इसी तरह हम लोगों ने चार-चार राउंड चुदाई की।
फिर वहीं नंगे ही निढाल होकर सो गए और मेरी नींद जब तक खुली.. तब तक शाम हो चुकी थी।
तो मैंने सबको उठाया और बोला- कहाँ खाना है.. यहीं खाना है या बाहर चलना है?
तो सबने एक साथ बोला- बाहर होटल में चलते हैं ना..
तो मैं बोला- जाओ.. जल्दी से रेडी हो जाओ.. हम बाहर चलते हैं।
हम सब साथ में ही बाथरूम में जाकर फ्रेश हुए और अच्छे से कपड़े पहन कर बाहर चल दिए।
कांता जय की बाइक पर और दीप्ति मेरी बाइक पर बैठी हुई थी। कुछ देर आगे ही गए होंगे कि बारिश शुरू हो गई सो हमने डिसाइड किया कि मैं और जय जाकर होटल से खाना पैक करवा कर ले आएंगे। तो वो दोनों लौट गईं और हम दोनों खाना पैक करवाने चले गए।
जय- थैंक्स यार..
मैं- थैंक्स क्यों बे?
जय- कांता के साथ चुदाई करने देने के लिए।
मैं- ऊऊऊऊओह.. अब समझ में आया.. मैंने कुछ नहीं किया.. वो तो कांता तुमको पसंद करती थी.. तो मैंने उसे तुमसे मिलवा दिया और बदले में मुझे दीप्ति मिली।
जय- हाँ बात तो सही बोली तुमने।
मैं- अच्छा ये बता.. कैसी लगी कांता?
जय- एकदम कट्टो माल है.. इतना किया उसके साथ.. फिर भी मन नहीं भरा यार..
मैं- हाँ वो चीज़ ही ऐसी है.. कभी मन नहीं भरेगा.. वैसे तेरी बहन भी कम नहीं है.. जबरदस्त आइटम है।
जय - हाँ देखा मैंने.. मुझे भी.. मस्त लगी..
मैं - क्यों अपनी बहन पर भी मन डोल रहा है क्या?
जय- हाँ यार.. एक बार मुझे भी दिला दो ना..
मैं- साले अपनी बहन को चोदेगा?
जय- तो साले तुमने कौन सा छोड़ दिया अपनी बहन को.. कांता मुझे सब बता चुकी है..
मैं- ठीक है.. अभी जो है उसको सम्भाल ना.. उसके बाद मैं कुछ करता हूँ।
जय- ठीक है.. अब घर चल.. दोनों हमारा इंतज़ार कर रही होगीं।
मैं- हाँ चल.. चलते हैं।
हम लोग घर पहुँचे तो वो दोनों टेबल के पास थाली लगा कर बैठी हुई थीं। मैं समझ गया कि इन दोनों को बहुत ज़ोर से भूख लगी हुई है..।
सो मैंने खाना टेबल पर रख दिया और वो दोनों खाना दो थालियों में लगाने लगीं.. हम दोनों खाने के लिए बढ़े ही थे कि दोनों एक साथ बोलीं - अभी नहीं पहले कपड़े उतारो.. साथ ही वे दोनों भी अपने-अपने कपड़े उतारने लगीं।
तो हम लोग कौन सा पीछे रहने वाले थे.. झट से उतार कर रेडी हो गए। तो दीप्ति मेरे और कांता जय की गोद में जाकर बैठ गई और हम नास्ता करने लग गए।
भोजन करते वक्त मैं दीप्ति की चूचियों को भी किस कर लेता था.. कैसे नहीं करता सामने जो था और कौन कंट्रोल करने वाला था।
तो दीप्ति ने कुछ सब्जी उठा कर अपनी चूचियों पर लगा ली और मेरे हाथ में रोटी पकड़ा दी। मैं समझ गया मैं कौन सा पीछे रहने वाला था.. मैं वहीं से सब्जी लगा कर खाने लगा। रोटी उठा कर सब्जी के लिए उसकी चूचियों चाट लेता था। अब मैंने भी थोड़ी सी सब्जी ले कर अपने लंड पर गिरा दी और बोला- लो अब तुम खा लो।
तो वो फिर रोटी खा कर पूरी सब्जी चाटने लग गई। इसी तरह की कुछ नोक-झोंक में हमने खाना ख़त्म कर लिया और रात भर चुदाई का कार्यक्रम चला। थक कर सब वहीं सो गए।
सुबह पापा के फोन ने हमारी नींद खोल दी.. तो मैंने कांता को गोद में उठाया और उसको बाथरूम में जा कर खड़ी कर दिया। कुछ देर में वो फ्रेश हो गई तो मैं उसको ले कर घर जाने लगा। तो जय एक और राउंड के लिए बोला.. लेकिन मैंने मना कर दिया और कांता को लेकर घर आ गया।
*****
 
मम्मी-पापा ऑफिस के लिए निकल गए थे.. तो कांता मेरे पास आई।
कांता- क्या कर रहे हो?
मैं- बस आराम..
कांता- क्या कल तुम्हें भी मजा आ गया आया?
मैं- हाँ यार बहुत..
कांता- मुझे तो एकदम सुहागरात वाली फीलिंग आ रही थी।
मैं- चलो अच्छा है.. शादी से पहले अच्छे से सुहागरात मना ली।
कांता- हाँ वो तो है.. लेकिन तुम तो बहुतों के साथ चुदाई कर चुके हो।
मैं- हा हा हा..
कांता- अच्छा एक बात पूछूँ?
मैं- हाँ बोलो.. क्या बात है?
कांता- तुमने कभी दो लड़कियों के साथ एक साथ किया है?
मैं- हाँ..
कांता - किसके साथ?
मैं - सोनी और मोनिका..
कांता- बहुत मजा आया होगा ना?
मैं - हाँ लेकिन तुम ये सब पूछ क्यों रही हो?
कांता- वैसे ही मन हुआ तो पूछ लिया।
मैं - करना है क्या?
कांता - सोच तो रही हूँ.. एक बार दीदी और मुझे एक साथ चोदो ना..
मैं - वो तो कोलकाता में है।
दीप्ति - तो एक और ऑप्शन है।
मैं - क्या?
कांता - तुम और जय दोनों मेरे साथ एक साथ चुदाई करो।
मैं - क्या? नहीं सम्भाल पाओगी.. अभी नहीं.. कुछ दिन बाद करना।
कांता - नहीं.. सम्भाल लूँगी..
मैं- तो ठीक है.. मैं बुला लेता हूँ जय को।
कांता- थैंक्स जान..
मैं- हैलो.. जय क्या कर रहा है?
जय- कुछ ख़ास नहीं..
मैं- और मेरी डार्लिंग कैसी है?
जय - यार कितना बेरहमी से चोदे हो.. बुर सूजी हुई है.. मैं बर्फ से सिकाई कर रहा हूँ.. अब ठीक है।
मैं - ओके.. उसको बोलो बुर में बर्फ डालती रहे.. और तुम मेरे घर आ जाओ।
जय - क्या बात है.. आज कुछ प्लान है क्या?
मैं - हाँ आज ग्रुप में करने का मन है।
जय - मतलब कांता को हम दोनों मिल कर चोदेंगे।
मैं- हाँ बे कमीने..
जय - ओके.. तब तो मैं भागते हुए आऊँगा।
मैं- ठीक है.. जल्दी आ जा.. पापा के आने से पहले तुमको वापस भी जाना होगा।
जय - ठीक है बस निकल ही गया हूँ।
मैं- ठीक है।
कुछ ही देर में जय मेरे घर आ गया उसको देखते ही कांता बहुत खुश हुई और जा कर उससे गले लग गई।
तो मैं भी कांता के पीछे उसके गले लग गया.. मतलब कांता मेरे और जय के बीच में थी.. तो मैंने उसके बालों को हटा कर उसकी पीठ पर किस किया।
उसकी गान्ड दबाते हुए बोला- चलो रानी.. शुरू करते हैं तेरी चुदाई..
हम तीनों कमरे में आ गए.. और हम दोनों मर्दों ने मिल कर कांता को जहाँ-तहाँ किस करना शुरू कर दिया।
मैं बोला- यार कपड़ों में मजा नहीं आ रहा है..
इतना सुनते ही हम तीनों अपने-अपने कपड़े उतारने लगे और कुछ देर में तीनों पूरे नंगे हो चुके थे।
कांता अपने एक-एक हाथ से हम दोनों के लंड को पकड़ कर मसलने लगी.. तो हम दोनों भी उसकी एक-एक चूची को पकड़ कर शुरू हो गए..
दबाना.. पीना.. मसलना.. कुछ देर ये सब चला.. तो मैं अपना लंड लेकर कांता के मुँह के पास चला गया।
कांता झट से मुँह में मेरा हथियार ले कर चूसने लगी और जय कांता की बुर को चाटने लगा।
कुछ देर ये सब चला.. फिर मैं बुर चाटने लगा और कांता जय का लंड पीने लगी।
एक-एक बार हम लोग झड़े.. तो कांता ने हम दोनों को कन्डोम पहनाया.. मैं तेल की शीशी लाया.. और कांता की गान्ड के छेद पर तेल लगाने लगा।
थोड़ी देर तेल लगा कर उंगली ऊपर से घुमाता रहा.. फिर जब गान्ड का छेद मुलायम हो गया तो मैंने अपना लंड घुसा दिया।
 
कुछ देर लौड़े को अन्दर-बाहर करने के बाद जब लगा कि अब गान्ड में ज्यादा दर्द नहीं होगा.. तो जय बिस्तर पर पीठ के बल लेट गया।
मैंने कांता को बोला- जा कर उसके लंड पर बैठ..
तो वो जैसे ही बैठी.. जय नीचे से झटका मारने लगा.. तो कांता के बुरड़ों कि टकराने के बाद जो हिल रहा था सो देख कर मजा आ रहा था।
अब मैं भी पास गया और कांता को थोड़ा झुका दिया.. तो उसकी गान्ड का छेद ऊपर को आ गया।
मैंने भी अपना लंड उसकी गान्ड के छेद पर रख कर एक जोरदार झटका मारा और पूरा लंड गान्ड में सटाक से अन्दर चला गया।
कांता की गान्ड फट गई.. वो इतनी तेज चीखी कि उसकी आवाजें पूरा गूँजने लगीं… शायद आस-पड़ोस वालों को भी आवाज़ का पता चल गया होगा और जिस-जिसने चुदाई के समय ऐसी आवाजें निकलवाई होंगी.. वे सब ज़रूर इन आवाजों को पहचान गए होंगे।
खैर.. मैं रुक गया.. जब कांता थोड़ी शांत हुई.. तो हम दोनों फिर झटके मारने लगे और इस बार हमने कांता के मुँह को हाथ से बंद कर रखा था।
कुछ देर बाद मैं और जय ने अपनी-अपनी अवस्था बदल ली.. मैं कांता की बुर और जय उसकी गान्ड मारने लगा।
उसके बाद एक-दो और आसनों में चुदाई की फिर हम सभी लोग डिसचार्ज हो गए।
कांता पसीने से पूरी तरह लथपथ थी। मैंने उससे पूछा- एक और राउंड?
तो बोली- अब नहीं हो पाएगा.. बहुत थक गई हूँ।
हम लोग बाथरूम जाकर फ्रेश हो गए और कुछ देर बाद कांता सो गई।
जय- तो अब मैं भी घर जाता हूँ..
मैं- ठीक है जा..
जय- दीप्ति की मुझे कब दिलवाओगे?
मैं - मैं क्या करूँ.. तुम खुद ट्राइ करो..
जय - नहीं.. तुम बोलोगे तो शायद मान जाएगी।
मैं - ठीक है.. आज शाम को आता हूँ.. लेकिन बदले में मुझे क्या मिलेगा?
जय - जो तू बोल..
मैं - दीप्ति की बुर दिलाऊँगा.. तो बदले में मुझे तुम पद्मा से मिलवाओगे।
जय - साले.. अब तुम क्या मेरी दोनों बहनों को चोदोगे?
मैं - कोशिश तो यही है.. अब क्या लिख कर दूँ.. कि दीप्ति को चोदना है.. तो सोच लो.. मेरे बिना वो तुमसे चुदने को राज़ी नहीं होगी.. बाकी तू समझ..
जय - ठीक है साले.. पद्मा को भी चोद लियो.. मुझे मंजूर है।
मैं - ठीक है.. तू जा घर.. मैं उसको मना लूँगा।
जय अपने घर चला गया और मैं कांता के कमरे में गया तो देखा वो पूरी नींद में औधी पड़ी थी तो मैं भी अपने कमरे में जाकर सो गया।
जब पापा आए तो मेरी नींद खुली.. फ्रेश हो कर मैंने नाश्ता किया और घूमने के बहाने से जय के घर गया।
मैंने देखा दीप्ति अपनी बुर में अब भी बर्फ का टुकड़ा डाल कर बैठी हुई थी। तो मैंने बर्फ हटा कर तेल से थोड़ी मालिश कर दी.. तो वो जल्द ही सामान्य हो गई..
 

अब मैं उसकी चूचियों को दबाते हुए बोला- अब दर्द कैसा है मेरी जान?
दीप्ति- ठीक हो गई हूँ..
मैं - तब तो एक राउंड हो जाए?
दीप्ति - हाँ अब हो जाएगा।
मैं - नहीं.. रहने दो तुम रेस्ट करो।
दीप्ति - ठीक है डार्लिंग..
मैं - एक बात बोलूँ.. बुरा तो नहीं मानोगी।
दीप्ति- नहीं.. बोलो?
मैं - वो जय तुमको..
दीप्ति- जय मुझे क्या? साफ़-साफ़ बोलो न?
मैं - जय तुम्हारे साथ एक बार करना चाहता है।
दीप्ति - क्या?
मैं - हाँ..
दीप्ति - लेकिन ये सही नहीं है।
मैं - क्या सही नहीं है.. तुम दोनों एक-दूसरे को नंगे देख ही चुके हो.. एक बार ट्राई कर लो।
दीप्ति - ओके.. तुम बोलते हो तो कर लूँगी।
तभी मैंने जय को फोन किया।
मैं- लो साले.. तेरा काम हो गया.. आज पहली बार गान्ड मार ले साले.. पर अपनी दीदी की बुर को मत छूना.. दीप्ति राज़ी हो गई।
दीप्ति - एक बात बोलूँ?
मैं- हाँ बोलो न..
दीप्ति - मैं अपनी गान्ड की सील भी तुमसे ही खुलवानी चाहती हूँ।
मैं - ऐसा क्यों?
दीप्ति - वैसे ही.. मेरी ये विश पूरी कर दो ना प्लीज़..
मैं - ओके मेरी जान..
मैंने उसके कपड़े उतारे और उसकी गान्ड में तेल लगा कर अपना लौड़ा पेल दिया।
मैं उसकी गान्ड खोल कर अपने घर चला आया और रात को आराम से सो गया।
सुबह जय ने फोन करके बताया कि उसने दीप्ति के साथ चुदाई करके उसकी गान्ड मार ली है।
मैं - गुड.. मजा आया ना?
जय - हाँ बहुत..
मैं- ठीक है.. अपना वादा याद है ना..
जय - पद्मा से मिलने का ही ना..
मैं- हाँ..
जय - जब दिल्ली जाएगा.. तब ना..
मैं - हाँ अब दिल्ली ही जाऊँगा.. कितने दिन यहाँ रहूँगा।
जय - ठीक है जब दिल्ली जाएगा.. तो मैं हेल्प कर दूँगा।
मैं - ठीक है।
मैंने फोन रख दिया.. तभी कांता मेरे कमरे में कॉफी ले कर आई.. जैसे ही टेबल पर उसने कॉफ़ी रखी.. मैंने उसे खींच कर अपनी गोद में बैठा लिया और उसकी चूचियों को दबा दिया।
कांता - पापा घर पर ही हैं.. ज़रा सबर करो।
मैं - तो क्या हुआ.. अभी इधर थोड़े ही आएंगे।
कांता - अगर आ गए तो.. अभी कंट्रोल करो.. और किससे फोन पर बात हो रही थी?
मैं - तुम्हारे आशिक से..
कांता - जय से क्या बात हो रही थी.. मेरे बारे में पूछ रहा था क्या?
मैं - नहीं दीप्ति को चोद दिया उसने.. यह बताने के लिए फोन किया था।
कांता - क्या.. दीप्ति मान कैसे गई?
मैं - मैंने मनाया था।
कांता - बड़ा कमीना है तू… और कुछ प्रोमिस की बात हो रही थी।
मैं - हाँ पद्मा को पटाने की।
कांता - अब उसको भी?
मैं - हाँ दिल्ली जा रहा हूँ.. पद्मा वहीं है.. उस पर भी ट्राई मारूँगा।
 
कांता- ऊऊ ऊऊहह.. वो तो आसानी से पट जाएगी।
इमैं- ऐसा क्यों?
कांता- जब दीप्ति को पटा लिया तो पद्मा तो पहले से ही फास्ट है।
मैं - तुमको कैसे पता?
कांता - अरे स्कूल में वो मेरी जूनियर थी ना.. तब से ही जानती हूँ उसको.. तब ही दो तीन ब्वॉय-फ्रेण्ड थे.. तो अब तो दिल्ली में रहती है।
मैं - तब तो उसको मेरे बेडरूम मे आने में ज्यादा देर नहीं लगेगी!
कांता- हाँ..
मैं - ठीक है.. मैं दिल्ली जा रहा हूँ 2-3 दिनों में ही..
कांता - और यहाँ कांता को भूल गए?
मैं - नहीं उसको अगली बार.. अभी पद्मा उसके बाद शेफाली।
कांता- ठीक है.. लेकिन मुझे भोपाल कौन छोड़ने जाएगा.. तुम दिल्ली जाओगे तो?
मैं - जय को बोलूँगा.. वो तुमको छोड़ आएगा।
कांता- वाउ.. लेकिन पापा उसके साथ नहीं जाने देंगे ना..
मैं - वो मैं कर लूँगा ना..
कांता- कैसे..?
मैं- पापा को बोलूंगा.. तुमको मैं भोपाल छोड़ कर दिल्ली चला जाऊँगा.. लेकिन स्टेशन से तुम जय के साथ चली जाना।
कांता - वाउ प्लान अच्छा है।
मैंने तीन दिन बाद भोपाल के दो और दिल्ली एक-एक टिकट बनवा लिए और दिल्ली जाने से पहले मैंने और जय ने कांता और दीप्ति को जम कर चोदा।
दिन में जय मेरे घर आ कर कांता को चोदता और मैं उसके घर जाकर दीप्ति को चोदता था।
रात को अपने-अपने घरों में अपनी-अपनी बहनों को चोदते थे।
दिन में मम्मी-पापा के ऑफिस जाने के बाद या तो जय दीप्ति को ले कर मेरे घर आ जाता था.. या तो मैं कांता को ले कर जय के घर पहुँच जाता था और शाम तक सामूहिक चुदाई होती थी, फिर अपने-अपने घर लौट जाते थे।
अब वो दिन आ गया.. जब हमें वापस जाना था.. तो मैं कांता को लेकर स्टेशन पहुँचा.. तो जय पहले से वहाँ पहुँचा हुआ था। मुझे एक सामान का बैग दिया।
जय- लो ये पद्मा को दे देना.. और मैं उसको बोल चुका हूँ.. तुम उसके होस्टल में सामान पहुँचा देना.. मैंने तुमको उसका नंबर दे दिया है.. और तुम भी अपने मोबाइल से अभी उसे फोन कर लो… मैं तुम्हारी बात करा देता हूँ।
जय ने मुझे पद्मा का नंबर दिया तो मैंने फोन किया.. पूरी रिंग हुई लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया।
मैं - हो सकता है कहीं बिजी होगी.. बाद में बात कर लूँगा।
जय - ठीक है.. लो ट्रेन भी आ गई।
मैं- हाँ..
मैंने उन दोनों को ट्रेन में चढ़ा दिया उनके डिब्बे में ज्यादा आदमी नहीं थे पूरी बोगी में केवल 5-6 आदमी ही होंगे। इनके आस-पास की सारी सीटें खाली थीं.. तो मैं बोला- डार्लिंग.. आज तो तू जा रही है.. अब मुझसे कब चुदेगी.. पता नहीं…
मैंने कांता की चूचियों को दबा दिया.. तो उसने भी मेरे लंड को दबाते हुए कहा- जब मन होगा.. आ जाना भोपाल..
तभी ट्रेन चलने लगी तो मैं दोनों को बाइ बोल कर नीचे उतर गया।
तभी एक फोन आया.. अरे यह तो पद्मा का नंबर है।
मैं- हैलो..
तो उधर से एक सेक्सी सी आवाज़ आई, मैं तो मन ही मन उसकी आवाज़ से उसके जिस्म के बारे में सोचने लगा।
पद्मा - हाँ जी.. आपका फोन आया था.. मैं उठा नहीं पाई थी।
मैं - हाँ वो जय ने फोन किया था।
पद्मा - अरे राजा भैया आप… भैया ने बताया था कि आप सामान ले कर आ रहे हैं।
मैं- हाँ..
पद्मा - तो क्या मैं स्टेशन आ जाऊँ.?
मैं - अरे नहीं.. मैं सामान तुम्हारे कमरे तक पहुँचा दूँगा.. तुम टेन्शन मत लो।
पद्मा - ठीक है.. वैसे आप आओगे तो थोड़ा अच्छा भी लगेगा.. मैं यहाँ बोर हो रही हूँ।
मैं - ऐसा क्यों?
पद्मा - यहाँ आए 10-12 दिन तो हुए हैं.. ना कुछ देखा हुआ है.. ना ही ज्यादा दोस्त हैं.. सो कमरे में बोर होते रहती हूँ।
मैं- ऊऊहह.. अब समझा.. ठीक है.. मैं आऊँगा तो तुम्हें दिल्ली घुमा दूँगा।
पद्मा- हाँ ये सही रहेगा!
मैं- ठीक है दिल्ली पहुँच कर फोन करता हूँ।
मेरी ट्रेन आ गई थी.. मैंने फोन रखना चाहा.. लेकिन वो बातें करने लगी और मैं बात करते-करते ही ट्रेन पकड़ ली।
वो बात करती रही.. मैं मन ही मन सोच रहा था कि ये तो आसानी से पट जाएगी।
कुछ देर बाद मैं फोन रख कर सो गया और नींद खुली तो दिल्ली पहुँच चुका था।
मैंने देखा तो उसका फोन आया हुआ था.. तो मैंने वापस से उसको फोन किया।
पद्मा- कहाँ पहुँचे?
मैं- दिल्ली स्टेशन पर उतर रहा हूँ।
पद्मा- मैं आ जाऊँ क्या?
मैं- नहीं रहने दो.. मैं कमरे से फ्रेश हो कर शाम तक तुम्हारे पास आता हूँ..
पद्मा- मेरा एड्रेस है ना आपके पास?
मैं- हाँ लक्ष्मी नगर पहुँच कर फोन कर लूँगा।
पद्मा- ठीक है।
कुछ देर बाद मैंने उसको लक्ष्मीनगर पहुँच कर फोन किया और उसके बताए पते पर पहुँच गया।
वो बोली- बस नीचे उतर रही हूँ..
मैंने देखा सामने से एक मस्त लड़की आती हुई दिखी.. सच में बहुत जवान थी.. यार.. तब उसने पौना पैंट और टॉप पहन रखी थी। उसका फिगर लगभग 36बी-28-36 होगा।
मैं तो देखता ही रह गया..
तो वो मेरे पास आई और बोली- ऊपर चलिए।
 
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