hotaks444
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मेरा परिपेक्ष्य:
"दीदी?" यह आवाज़ सुन कर हम दोनों ही चौंक गए - हमारा चुम्बन और आलिंगन टूट गया और उस आवाज़ की दिशा में हड़बड़ा कर देखने लगे। मैंने देखा की वहां तो सुमन खड़ी है।
"अरे! सुमन?" रश्मि हड़बड़ा गयी - एक हाथ से उसने अपने स्तन और दूसरे से अपनी योनि छुपाने का प्रयास किया। "…. तू कब आई?" यह प्रश्न उसने अपनी शर्मिंदगी छुपाने के लिए किया था। रश्मि को समझ आ गया था की उन दोनों की गरमागरम रति-क्रिया सुमन बहुत देर से देख रही है।
मैंने सुमन को देखकर अपनी नितांत नग्नता को महसूस किया और मैं भी हड़बड़ी में अपने शरीर को ढकने का असफल प्रयास करने लगा। हमारे कपडे उस चट्टान पर थोड़ा दूर रखे हुए थे, अतः चाह कर भी हम लोग जल्दी से कपडे नहीं पहन सकते थे।
"दीदी मैं अभी आई हूँ …. माँ ने आप दोनों के पीछे भेजा था मुझे, आप लोगो को वापस लिवाने के लिए। वो कह रही थी की मौसम खराब हो जाएगा और आप लोगो की तबियत न ख़राब हो जाए!"
कहते हुए उसने एक भरपूर नज़र मेरे शरीर पर डाली। मुझे मालूम था की सुमन ने मुझे और रश्मि को पूरा नग्न तो देख ही लिया है, तो अब छुपाने को क्या ही है? अतः मैंने भी अपने शरीर को छुपाने की कोई कोशिश नहीं की - उसने हमको काफी देर तक देखा होगा - संभव है की सम्भोग करते हुए भी। संभव नहीं, निश्चित है। लिहाज़ा, अब उससे छुपाने को अब कुछ रह नहीं गया था।
सुमन के हाव भाव देख कर मुझे लगा की वह हमारी नग्नता से काफी नर्वस है। हो सकता है की हमारे सम्भोग को देख कर वह लज्जित या जेहनी तौर पर उलझ गयी हो। उधर रश्मि बड़े जतन से अपने स्तनों को अपने हाथों से ढँके हुए थी।
"अच्छा …" रश्मि ने शर्माते हुए कहा। वो बेचारी जितना सिमटी जा रही थी, उसके अंग उतने अधिक अनावृत होते जा रहे थे। "…. वो हमारे कपड़े यहाँ ले आ …. प्लीज!" रश्मि ने विनती करी। सुमन बात मान कर हमारे कपड़े लाने लगी।
"आप लोग ऐसे नंग्युल …. मेरा मतलब ऐसे नंगे क्यों हैं? ठंडक लग जायेगी न! कर क्या रहे थे आप लोग?" उसने एक ही सांस में पूछ डाला।
"हम लोग एक दूसरे को प्यार कर रहे थे, बच्चे!" मैंने माहौल को हल्का बनाने के लिए कहा।
"प्यार कर रहे थे, या मेरी दीदी को मार रहे थे। मैंने देखा … दीदी दर्द के मारे कराह रही थी, लेकिन आप थे की उसको मारते ही जा रहे थे।"
‘ओके! तो उसने हम दोनों को सम्भोग करते देख लिया है।‘ मुझे लगा की सुमन हम दोनों को ऐसे देख कर संभवतः चकित हो गयी है - वैसे जब बच्चे इस तरह की घटना घटते देखते हैं, तो समझ नहीं पाते की क्या हो रहा है। कई बार वे डर भी जाते हैं, और उस डर की घुटन से अजीब तरह से बर्ताव करने लगते हैं। सुमन सतही तौर पर उतनी बुरी हालत में नहीं लग रही थी, लेकिन कुछ कह नहीं सकते थे। मुझे लग रहा था की उसमें इस घटना को समझने की दक्षता तो थी, लेकिन अभी उचित और पर्याप्त ज्ञान नहीं था।
उसने पहले रश्मि को, और फिर मुझको हमारे कपड़े दिए, मैंने कपडे लेते हुए उसका हाथ पकड़ लिया और अपने ओर खींच कर उसकी कमर को पकड़ लिया और उसकी आँख में आँख डाल कर, मुस्कुराते हुए, बहुत ही नरमी से कहा,
"तुम्हारी दीदी को मारने की मैं सपने में भी नहीं सोच सकता - वो जान है मेरी! उसकी ख़ुशी मेरे लिए सब कुछ है और मैं उसकी ख़ुशी के लिए कुछ भी करूंगा। हम लोग वाकई एक दूसरे को प्यार कर रहे थे - वैसे जैसे की शादीशुदा लोग करते हैं। लेकिन, तुम अभी यह बात नहीं समझोगी। जब तुम्हारी शादी हो जायेगी न, तब तुमको मालूम होगा की दाजू सही कह रहे थे। तब तक मेरी कही हुई बात पर भरोसा करो …. ओके? तुम्हारी दीदी और मैं, हम दोनों एक हैं!"
सुमन ने अत्यंत मिले जुले भाव से मुझे देखा (मुझे स्पष्ट नहीं समझ आया की वह क्या सोच रही थी) और फिर सर हिला कर हामी भरी। मैंने उसके माथे पर एक छोटा सा चुम्बन दिया। मैंने देखा की उधर रश्मि कपड़े पहनते हुए हमको ध्यान से देख रही है, और जब मैंने सुमन को चूमा, तो रश्मि मुस्कुरा उठी। उस मुस्कान में मेरे लिए प्रशंसा और प्यार भरा हुआ था। सुमन मेरे द्वारा इस तरह खुले आम चूमे जाने से शरमा गयी - उसके गाल सेब जैसे लाल हो गए, अतः मैंने उसको जोर से गले से लगा लिया, जिससे उसको और शर्मिंदगी न हो।
जब वो अलग हुई तो बोली, "दाजू, आप बहुत अच्छे हो! … और एक बात कहूं? आप और दीदी साथ में बहुत सुन्दर लगते हैं!" इसके जवाब में सुमन को मेरी तरफ से एक और चुम्बन मिला, और कुछ ही देर में रश्मि की तरफ से भी, जो अब तक अपने कपडे पहन चुकी थी।
कोई दो मिनट में हम दोनों ही शालीनता पूर्वक तरीके से कपड़े पहन कर, सुमन के साथ वापस घर को रवाना हो रहे थे।
वापस आते समय हम बिलकुल अलग रास्ते से आये और तब मुझे समझ आया की रश्मि मुझे लम्बे और एकांत रास्ते से लायी थी - यह सोच कर मेरे होंठों पर शरारत भरी मुस्कान आ गयी। खैर, इस नए रास्ते के अपने फायदे थे। यह रास्ता अपेक्षाकृत छोटा था और इस रास्ते पर घर और दुकाने भी थीं। वैसे अगर मन में मौसम खराब होने की आशंका हो तो अच्छा ही है की आप आबादी वाली जगह पर हों - इससे सहायता मिलने में आसानी रहती है।
इस छोटी जगह में मैं एक मुख़्तलिफ़ इंसान था। ऐसा सोचिये जैसे की स्वदेस फिल्म का 'मोहन भार्गव'। मैं स्थानीय नहीं था, बल्कि बाहर से आया था; मेरे हाव भाव और ढंग बहुत भिन्न थे; मुझे इनकी भाषा नहीं आती थी, इन्ही लोगो को दया कर के मुझसे हिंदी में बात करनी पड़ती थी - मुझसे ये लोग कई सारे मजेदार प्रश्न पूछते जिनसे इनका भोलापन ही उजागर होता; और तो और बहुत सारे लोग मुझे बहुत ही जिज्ञासु निगाहों से देखते थे - मुझसे बात करने के बजाय मुझे देख कर आपस में ही खुसुर पुसुर करने लगते। लेकिन, अब सबसे बड़ी बात यह थी की मैं यहाँ का दामाद था। इसलिए लोग ऐसे ही काफी मित्रवत व्यवहार कर रहे थे। यहाँ जितने भी लोगों ने हमको देखा, सभी ने हमसे मुलाक़ात की, अपने घर में बुलाया और आशीर्वाद दिया। नाश्ते इत्यादि के आग्रह करने पर हमने कई लोगो को टाला, लेकिन एक परिवार ने हमको जबरदस्ती घर में बुला ही लिया और हमारे लिए चाय और हलके नाश्ते का बंदोबस्त भी किया। वहां करीब आधे घंटे बैठे और जब तक हम लोग वापस आये तब शाम होने लगी थी।
इस समय तक मुझे वाकई ठंडक लगने लगी थी - और लम्बे समय तक अनावृत अवस्था में रहने से ठण्ड कुछ अधिक ही लग रही थी।
घर आकर देखा की आस पास की पाँच-छः स्त्रियाँ आकर रसोई घर में कार्यरत थी। पता चला की आज भी कुछ पकवान बनेंगे! मैंने सवेरे जो मैती आन्दोलन के लिए जिस प्रकार का सहयोग दिया था, उससे प्रभावित होकर स्त्रियाँ कर-सेवा करने आई थी और साझे में खाना बना रही थी। वो सारे परिवार आ कर एक साथ खाना खायेंगे। मैंने रश्मि से गुजारिश करी की कुछ स्थानीय और रोज़मर्रा का खाना बनाए। वो तो तुरंत ही शुरू ही किया गया था, इसलिए मेरी यह विनती मान ली गयी।
खाने के पहले करीबी लोग साथ बैठ कर हंसी मजाक कर रहे थे। एक भाई साहब अपने घर से म्यूजिक सिस्टम ले आये थे और उस पर 'गोल्डन ओल्डीस' वाले गीत बजा रहे थे। उन्होंने ने ही बताया की रश्मि गाती भी है, और बहुत अच्छा गाती है। उसकी यह कला तो खैर मुझे मालूम नहीं थी। वैसे भी, हमको एक दूसरे के बारे में मालूम ही क्या था? मुझे उसके बारे में बस यह मालूम था की उसको देखते ही मेरे दिल ने आवाज़ दी की यही वह लड़की है जिसके साथ तुम्हे पूरी उम्र गुजारनी है।
"दीदी?" यह आवाज़ सुन कर हम दोनों ही चौंक गए - हमारा चुम्बन और आलिंगन टूट गया और उस आवाज़ की दिशा में हड़बड़ा कर देखने लगे। मैंने देखा की वहां तो सुमन खड़ी है।
"अरे! सुमन?" रश्मि हड़बड़ा गयी - एक हाथ से उसने अपने स्तन और दूसरे से अपनी योनि छुपाने का प्रयास किया। "…. तू कब आई?" यह प्रश्न उसने अपनी शर्मिंदगी छुपाने के लिए किया था। रश्मि को समझ आ गया था की उन दोनों की गरमागरम रति-क्रिया सुमन बहुत देर से देख रही है।
मैंने सुमन को देखकर अपनी नितांत नग्नता को महसूस किया और मैं भी हड़बड़ी में अपने शरीर को ढकने का असफल प्रयास करने लगा। हमारे कपडे उस चट्टान पर थोड़ा दूर रखे हुए थे, अतः चाह कर भी हम लोग जल्दी से कपडे नहीं पहन सकते थे।
"दीदी मैं अभी आई हूँ …. माँ ने आप दोनों के पीछे भेजा था मुझे, आप लोगो को वापस लिवाने के लिए। वो कह रही थी की मौसम खराब हो जाएगा और आप लोगो की तबियत न ख़राब हो जाए!"
कहते हुए उसने एक भरपूर नज़र मेरे शरीर पर डाली। मुझे मालूम था की सुमन ने मुझे और रश्मि को पूरा नग्न तो देख ही लिया है, तो अब छुपाने को क्या ही है? अतः मैंने भी अपने शरीर को छुपाने की कोई कोशिश नहीं की - उसने हमको काफी देर तक देखा होगा - संभव है की सम्भोग करते हुए भी। संभव नहीं, निश्चित है। लिहाज़ा, अब उससे छुपाने को अब कुछ रह नहीं गया था।
सुमन के हाव भाव देख कर मुझे लगा की वह हमारी नग्नता से काफी नर्वस है। हो सकता है की हमारे सम्भोग को देख कर वह लज्जित या जेहनी तौर पर उलझ गयी हो। उधर रश्मि बड़े जतन से अपने स्तनों को अपने हाथों से ढँके हुए थी।
"अच्छा …" रश्मि ने शर्माते हुए कहा। वो बेचारी जितना सिमटी जा रही थी, उसके अंग उतने अधिक अनावृत होते जा रहे थे। "…. वो हमारे कपड़े यहाँ ले आ …. प्लीज!" रश्मि ने विनती करी। सुमन बात मान कर हमारे कपड़े लाने लगी।
"आप लोग ऐसे नंग्युल …. मेरा मतलब ऐसे नंगे क्यों हैं? ठंडक लग जायेगी न! कर क्या रहे थे आप लोग?" उसने एक ही सांस में पूछ डाला।
"हम लोग एक दूसरे को प्यार कर रहे थे, बच्चे!" मैंने माहौल को हल्का बनाने के लिए कहा।
"प्यार कर रहे थे, या मेरी दीदी को मार रहे थे। मैंने देखा … दीदी दर्द के मारे कराह रही थी, लेकिन आप थे की उसको मारते ही जा रहे थे।"
‘ओके! तो उसने हम दोनों को सम्भोग करते देख लिया है।‘ मुझे लगा की सुमन हम दोनों को ऐसे देख कर संभवतः चकित हो गयी है - वैसे जब बच्चे इस तरह की घटना घटते देखते हैं, तो समझ नहीं पाते की क्या हो रहा है। कई बार वे डर भी जाते हैं, और उस डर की घुटन से अजीब तरह से बर्ताव करने लगते हैं। सुमन सतही तौर पर उतनी बुरी हालत में नहीं लग रही थी, लेकिन कुछ कह नहीं सकते थे। मुझे लग रहा था की उसमें इस घटना को समझने की दक्षता तो थी, लेकिन अभी उचित और पर्याप्त ज्ञान नहीं था।
उसने पहले रश्मि को, और फिर मुझको हमारे कपड़े दिए, मैंने कपडे लेते हुए उसका हाथ पकड़ लिया और अपने ओर खींच कर उसकी कमर को पकड़ लिया और उसकी आँख में आँख डाल कर, मुस्कुराते हुए, बहुत ही नरमी से कहा,
"तुम्हारी दीदी को मारने की मैं सपने में भी नहीं सोच सकता - वो जान है मेरी! उसकी ख़ुशी मेरे लिए सब कुछ है और मैं उसकी ख़ुशी के लिए कुछ भी करूंगा। हम लोग वाकई एक दूसरे को प्यार कर रहे थे - वैसे जैसे की शादीशुदा लोग करते हैं। लेकिन, तुम अभी यह बात नहीं समझोगी। जब तुम्हारी शादी हो जायेगी न, तब तुमको मालूम होगा की दाजू सही कह रहे थे। तब तक मेरी कही हुई बात पर भरोसा करो …. ओके? तुम्हारी दीदी और मैं, हम दोनों एक हैं!"
सुमन ने अत्यंत मिले जुले भाव से मुझे देखा (मुझे स्पष्ट नहीं समझ आया की वह क्या सोच रही थी) और फिर सर हिला कर हामी भरी। मैंने उसके माथे पर एक छोटा सा चुम्बन दिया। मैंने देखा की उधर रश्मि कपड़े पहनते हुए हमको ध्यान से देख रही है, और जब मैंने सुमन को चूमा, तो रश्मि मुस्कुरा उठी। उस मुस्कान में मेरे लिए प्रशंसा और प्यार भरा हुआ था। सुमन मेरे द्वारा इस तरह खुले आम चूमे जाने से शरमा गयी - उसके गाल सेब जैसे लाल हो गए, अतः मैंने उसको जोर से गले से लगा लिया, जिससे उसको और शर्मिंदगी न हो।
जब वो अलग हुई तो बोली, "दाजू, आप बहुत अच्छे हो! … और एक बात कहूं? आप और दीदी साथ में बहुत सुन्दर लगते हैं!" इसके जवाब में सुमन को मेरी तरफ से एक और चुम्बन मिला, और कुछ ही देर में रश्मि की तरफ से भी, जो अब तक अपने कपडे पहन चुकी थी।
कोई दो मिनट में हम दोनों ही शालीनता पूर्वक तरीके से कपड़े पहन कर, सुमन के साथ वापस घर को रवाना हो रहे थे।
वापस आते समय हम बिलकुल अलग रास्ते से आये और तब मुझे समझ आया की रश्मि मुझे लम्बे और एकांत रास्ते से लायी थी - यह सोच कर मेरे होंठों पर शरारत भरी मुस्कान आ गयी। खैर, इस नए रास्ते के अपने फायदे थे। यह रास्ता अपेक्षाकृत छोटा था और इस रास्ते पर घर और दुकाने भी थीं। वैसे अगर मन में मौसम खराब होने की आशंका हो तो अच्छा ही है की आप आबादी वाली जगह पर हों - इससे सहायता मिलने में आसानी रहती है।
इस छोटी जगह में मैं एक मुख़्तलिफ़ इंसान था। ऐसा सोचिये जैसे की स्वदेस फिल्म का 'मोहन भार्गव'। मैं स्थानीय नहीं था, बल्कि बाहर से आया था; मेरे हाव भाव और ढंग बहुत भिन्न थे; मुझे इनकी भाषा नहीं आती थी, इन्ही लोगो को दया कर के मुझसे हिंदी में बात करनी पड़ती थी - मुझसे ये लोग कई सारे मजेदार प्रश्न पूछते जिनसे इनका भोलापन ही उजागर होता; और तो और बहुत सारे लोग मुझे बहुत ही जिज्ञासु निगाहों से देखते थे - मुझसे बात करने के बजाय मुझे देख कर आपस में ही खुसुर पुसुर करने लगते। लेकिन, अब सबसे बड़ी बात यह थी की मैं यहाँ का दामाद था। इसलिए लोग ऐसे ही काफी मित्रवत व्यवहार कर रहे थे। यहाँ जितने भी लोगों ने हमको देखा, सभी ने हमसे मुलाक़ात की, अपने घर में बुलाया और आशीर्वाद दिया। नाश्ते इत्यादि के आग्रह करने पर हमने कई लोगो को टाला, लेकिन एक परिवार ने हमको जबरदस्ती घर में बुला ही लिया और हमारे लिए चाय और हलके नाश्ते का बंदोबस्त भी किया। वहां करीब आधे घंटे बैठे और जब तक हम लोग वापस आये तब शाम होने लगी थी।
इस समय तक मुझे वाकई ठंडक लगने लगी थी - और लम्बे समय तक अनावृत अवस्था में रहने से ठण्ड कुछ अधिक ही लग रही थी।
घर आकर देखा की आस पास की पाँच-छः स्त्रियाँ आकर रसोई घर में कार्यरत थी। पता चला की आज भी कुछ पकवान बनेंगे! मैंने सवेरे जो मैती आन्दोलन के लिए जिस प्रकार का सहयोग दिया था, उससे प्रभावित होकर स्त्रियाँ कर-सेवा करने आई थी और साझे में खाना बना रही थी। वो सारे परिवार आ कर एक साथ खाना खायेंगे। मैंने रश्मि से गुजारिश करी की कुछ स्थानीय और रोज़मर्रा का खाना बनाए। वो तो तुरंत ही शुरू ही किया गया था, इसलिए मेरी यह विनती मान ली गयी।
खाने के पहले करीबी लोग साथ बैठ कर हंसी मजाक कर रहे थे। एक भाई साहब अपने घर से म्यूजिक सिस्टम ले आये थे और उस पर 'गोल्डन ओल्डीस' वाले गीत बजा रहे थे। उन्होंने ने ही बताया की रश्मि गाती भी है, और बहुत अच्छा गाती है। उसकी यह कला तो खैर मुझे मालूम नहीं थी। वैसे भी, हमको एक दूसरे के बारे में मालूम ही क्या था? मुझे उसके बारे में बस यह मालूम था की उसको देखते ही मेरे दिल ने आवाज़ दी की यही वह लड़की है जिसके साथ तुम्हे पूरी उम्र गुजारनी है।