Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प ) - Page 4 - SexBaba
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Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )

लोगों के दिए गए उपहारों को समेट कर घर आते-आते पुनः रात के बारह बज गए। देर तक सोने का समय ही नहीं बचा। सबसे पहले अपने कपड़े बदले, दो बैग तैयार किये, अपना कैमरा और लैपटॉप रखा। सोने का कोई सवाल ही नहीं था, इसलिए मैं रश्मि को लेकर अपनी बालकनी में आ गया।

“कितनी शान्ति है – लगता ही नहीं की यह वही शहर है जहाँ दिन भर इतना शोर होता रहता है।“ रश्मि ने कहा।

“हा हा! हाँ, रात में ही लोगो को ठंडक पड़ती है यहाँ तो! पूरा दिन बदहवासी में भटकते रहते हैं सब! आपने अभी मुंबई शहर नहीं देखा – देखेंगी तो डर जाएँगी।”

“इतना खराब है?”

“खराब छोटा शब्द है! बहुत खराब है।”

कुछ देर चुप रहने के बाद,

“आप क्यों इतना खर्च कर रहे हैं? मैं ... हम, अपने घर में, मतलब यहीं क्यों नहीं रह सकते?”

“जानेमन, अपने ही घर में रहेंगे। हनीमून घर में नहीं मनाते! और इसी बहाने कहीं घूम भी आयेंगे!! मैंने अपनी पूरी लाइफ में सिर्फ एक ही यात्रा की है – और उसमें ही भगवान को इतनी दया आ गयी की आपको मेरे जीवन में भेज दिया। सोचा, की एक बार और अपने लक को ट्राई कर लेता हूँ। न जाने और क्या क्या मिल जाए! हा हा!”

“अच्छा, तो आपका मन मुझसे अभी से भर गया, की अब दूसरी की खोज में निकल पड़े?” रश्मि ने मुझे छेड़ा।

“दूसरी की खोज! अरे नहीं बाबा! फिलहाल तो पहली की ही खोज चल रही है! न तो आपने कभी बीच देखे, और न ही मैंने! बीच भी देखेंगे, और.... और भी काफी कुछ!” मैंने आँख मारते हुए कहा। 

“काफी कुछ मतलब?”

उत्तर में मैंने रश्मि के कुरते के ऊपर से उसके स्तन को उंगली से तीन चार बार छुआ। 

“आप थके नहीं अभी तक?” रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा।

“ऐसी बीवी हो तो कोई गधा हस्बैंड ही होगा जो थकेगा! तो बताओ, मैं गधा हूँ क्या?”

रश्मि ने प्यार से मेरे गले में गलबैंयां डालते हुए कहा, “नहीं... आप तो मेरे शेर हैं!”

“आपको मालूम है की शेर और शेरनी दिन भर में कोई 40-50 बार सेक्स करते हैं?”

“क्या?... आप सचमुच, बहुत बदमाश हैं! न जाने कैसे ऐसी बाते मालूम रहती हैं आपको!”

“इंटरेस्टिंग बाते मुझको हमेशा मालूम रहती हैं!”

“तो, जब आपने मान ही लिया है, की मैंने आपका शेर हूँ.... और आप... मेरी शेरनी... तो....”

“हःहःहःह...” रश्मि हल्का सा हंसी, “शेर आपके जैसा हो, और शेरनी मेरे जैसी, तो शेरनी तो बेचारी मर ही जाए!”

मैंने कुछ और खींचने की ठानी, “मेरे जैसा मतलब?”

“जब हमारी शादी पास आ रही थी, तो पास-पड़ोस की 'भाभियां' मुझे.... सेक्स... सिखाने के लिए न जाने क्या-क्या बताती रहती थीं।“

“आएँ! आपको भाभियाँ यह सब सिखाती है?”

“तो और कौन बतायेगा? उनके कारण मुझे कम से कम कुछ तो मालूम पड़ा – भले ही उन्होंने सब कुछ उल्टा पुल्टा बताया हो! अब तो लगता है की शायद उनको ही ठीक से नहीं मालूम!” 

मुझे रश्मि की बात में कुछ दिलचस्पी आई, “अच्छा, ऐसा क्या बताया उन्होंने जो आपको उल्टा पुल्टा लगा? मुझे भी मालूम पड़े!”

रश्मि थोड़ा शरमाई, और फिर बोली, “उन्होंने मुझे बताया की पुरुषों का... ‘वो’.. ककड़ी के जैसा होता है। मैं तो उसी बात से डर गयी! मैंने तो सिर्फ बच्चों के ही... ‘छुन्नू’ देखे थे, लेकिन उस दिन जब मैंने पहली बार आपका.... देखा, तो समझ आया की ‘वो’ उनके बताये जैसा तो बिलकुल भी नहीं था। आपका साइज़ तो बहुत बड़ा है! मुझे लगा की मेरी जान निकल जाएगी। और फिर आप इतनी देर तक करते हैं की.....!”

“मतलब आपको मज़ा नहीं आता?” मैंने आश्चर्य से कहा – मुझे लगा की मैंने रश्मि को बहुत मज़े दे रहा हूँ! कहीं देर तक करने के कारण उसको तकलीफ तो नहीं होती!

“नहीं! प्लीज! ऐसा न कहिये! मैं सिर्फ यह कह रही हूँ की आप वैसे बिलकुल भी नहीं हैं, जैसा मुझे भाभियों ने मर्दों के बारे में बताया है! भाभियों के हिसाब से सेक्स.... बस दो-चार मिनट में ख़तम हो जाता है, और यह भी की यह मर्दों के अपने मज़े के लिए है। लेकिन आप.... आप एक तो कम से कम पंद्रह-बीस मिनट से कम नहीं करते, और आप हमेशा मेरे मज़े को तरजीह देते हैं। और बात सिर्फ सेक्स की नहीं है......”

रश्मि थोड़ी भावुक हो कर रुक गई, “मेरे शेर तो आप ही हैं!” कहते हुए रश्मि ने मेरे लिंग को अपने हाथ की गिरफ्त में ले लिया – मेरा लिंग फूलता जा रहा था। 

“आई ऍम सो लकी! .... और अगर मैं यह बात आपको बोलूँ, तो आप मेरे बारे में न जाने क्या सोचेंगे! लेकिन फिर भी मुझे कहना ही है की मैं आपकी फैन हूँ! फैन ही नहीं, गुलाम! आप मेरे हीरो हैं... आप जो कुछ भी कहेंगे मैं करूंगी। आज आपने मुझे जब कपड़े उतारने को कहा, तो मुझे डर या शंका नहीं हुई। मुझे मालूम था की आप मेरे लिए वहां हैं, और मुझे कोई नुक्सान नहीं होने देंगे। और... आप चाहे तो दिन के चौबीसों घंटे मेरे साथ सेक्स कर सकते हैं, और मैं बिलकुल भी मना नहीं करूंगी!”

“हम्म्म्म! गुड!” फिर कुछ सोच कर, “... लगता है आपकी भाभियों को मेरे पीनस (लिंग) का स्वाद देना पड़ेगा!”

“न न ना! आप बहुत गंदे हैं!” रश्मि ने मेरे लिंग पर अपनी गिरफ्त और मज़बूत करते हुए कहा, “ऐसा सोचिएगा भी नहीं। ये सिर्फ मेरा है!”

कह कर रश्मि ने मेरे लिंग को दबाया, सहलाया और हल्का सा झटका दिया।

“ये करना आपकी भाभियों ने सिखाया है?” मैंने शरारत से पूछा।

“चलिए, आपको थकाते हैं!” रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा।

मैंने भी मुस्कुराते हुए रश्मि को चूमने के लिए उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खीचा और उसके मुँह में मुँह डाल कर उसको चूमने लगा। कुछ देर चूमने के बाद मैंने रश्मि का कुरता उसके शरीर से खींच कर अलग किया और अपना भी टी-शर्ट उतार दिया। मेरी हुस्न-परी के स्तन अब मेरे सामने परोसे हुए थे – मैंने रश्मि के दाहिने निप्पल को अपनी जीभ से कुछ देर तक चुभलाया, फिर मुँह में भर लिया। रश्मि के मुँह से मीठी सिसकारी निकल पड़ी। मैं बारी-बारी से उसके स्तनों को चूमता और चूसता गया - जब मैं एक स्तन को अपने मुँह से दुलारता, तो दूसरे को अपनी उँगलियों से। उसके निप्पल उत्तेजना से मारे कड़े हो गए, और सांसे तेज हो गईं। अब समय था अगले वार का - मैंने अपने खाली हाथ को उसकी शलवार के अन्दर डाल दिया, और उसकी योनि को टटोला। योनि पर हाथ जाते ही मुझे वहां पर गीलेपन का एहसास हुआ। कुछ देर उसको सहलाने के बाद मैंने अपनी उंगली रश्मि की योनि में डाल कर अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।
 
रश्मि कुछ देर आँखें बंद करके आनंद लेती रही, फिर उसने मेरे लिंग को मुक्त कर दिया – मैं पूरी तरह उत्तेजित था। कुछ देर रश्मि ने मेरे लिंग को अपने हाथ से पकड़ कर मैथुन किया, और फिर झुक कर उसको अपने मुँह में भर लिया। दोस्तों, लिंग को चूसे जाने का एहसास अत्यंत आंदोलित करने वाला होता है। उत्तेजना के उन्माद में मैं बालकनी की रेलिंग के सहारे आधा लेट गया, और लिंग चुसवाता रहा। रश्मि कोई निपुण नहीं थी – लेकिन उसका अनाड़ीपन, और मुझे प्रसन्न करने की उसकी कोशिश मुझे अभूतपूर्व आनंद दे रही थी। कुछ देर के बाद रश्मि ने चूसना रोक दिया, और अपनी शलवार और चड्ढी उतार फेंकी। फिर उसने वो किया जो मैंने कभी सोचा भी नहीं – मेरे दोनों तरफ अपनी टांगे फैला कर वह मेरे लिंग को अपनी नम योनि में डाल कर धीरे-धीरे नीचे बैठने गयी। 

“आअह्ह्ह्ह....” उन्माद में रश्मि की साँसे उखड गयी।

रश्मि ने उत्साह के साथ मैथुन करना प्रारंभ कर दिया – मैं वैसे भी दो दिन से भरा बैठा था, इसलिए वैसे भी बहुत कामोत्तेजित हो गया था। मेरा लिंग एकदम कड़क हो गया, और रश्मि की पहल भरी यौन-क्रिया से और भी दमदार हो गया। मैं बस रश्मि के स्तनों और नितम्बो को बारी-बारी से दबाता रहा। इस बीच रश्मि पूरे अनाड़ीपन में मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे होती रही – कभी कभी लिंग उसकी योनि से बाहर भी निकल जाता। वैसा होने पर मैं वापस उसको अन्दर डाल देता। रश्मि को संभवतः एक पूर्व संसर्ग की याद हो आई हो – वह अपने नितम्बो को न केवल ऊपर नीचे, बल्कि गोलाकार गति में भी घुमा रही थी - इससे मेरे लिंग का दो-आयामी दोहन होने लगा था। इससे उसके भगनासे का भी बराबर उत्तेजन हो रहा था। उसकी गति भी बढ़ने लगी थी - सम्भवतः वह स्खलित होने ही वाली थी। बस अगले 2 ही मिनटों में रश्मि का शरीर चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर थरथराने लगा, और उसी समय मैं भी अपने उन्माद के आखिरी सिरे पर पहुँच गया। कुछ ही धक्को में मैं स्खलित हो गया। रश्मि जैसी सौंदर्य की देवी की योनि में वीर्य की धाराएँ छोड़ने का एहसास बहुत ही सुखद था। 

सम्भोग का ज्वार थमते ही रश्मि मेरे सीने पर गिर कर हांफने लगी! मेरे तेजी से सिकुड़ते लिंग पर उसकी योनि का मादक संकुचन – मानो उसकी मालिश हो रही हो। 

“बाप रे! आप कैसे करते हैं, इतना देर! ..... आपका तो नहीं मालूम, लेकिन मैं थक गयी! आअह्ह!” 

हम दोनों ही इस बात पर हंसने लगे। फिर रश्मि को कुछ याद आया,

“अच्छा, आपने बताया ही नहीं की उस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?”

“किस कहानी से?” मैंने दिमाग पर जोर डाला, “अच्छा, वो! हा हा हा! तो आपको याद आ ही गया। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है की साँवली लड़कियाँ सेक्स में बहुत तेज़ होती हैं... और... गोरी लड़कियों को सिखाना पड़ता है!”

“छी! धत्त! आप न! आपके साथ दो दिन क्या रह ली, मैं भी बेशरम हो गई हूँ!”

“हा हा! बेशरम? कैसे?”

“ऐसे ही आपके सामने नंगी पड़ी हूँ।“

“तो फिर किसके सामने नंगा पड़ा होना था आपको?”

“किसी के सामने नहीं! नंगा होना क्या ज़रूरी है? और तो और, उस दिन तो सुमन ने भी देख लिया। और आप भी पूरे बेशरम हो कर उसको दिखाते रहे।”

“अरे! देख लिया तो देख लिया! बच्ची है वह! सीखने के दिन हैं... अच्छा है, हमसे सीख रही है!”

“जी नहीं! कोई ज़रुरत नहीं!”

हम लोग ऐसी ही फ़िज़ूल की बातें कुछ देर तक करते रहे। नव-विवाहितों के बीच में शुरू शुरू में एक दीवार होती है। हमारे बीच में वह दीवार अब नहीं थी। ये सब शिकायतें, छेड़खानी, हंसी-मज़ाक, सब कुछ मृदुलता और नेकदिली से हो रहा था। हमारे बीच की अंतरंगता अब सिर्फ शारीरिक नहीं रह गई थी। मैंने एक कैब सर्विस को फ़ोन कर बैंगलोर हवाई अड्डे के लिए टैक्सी मंगाई, और हम दोनों एक साथ नहाने के लिए गुसलखाने में चले गए।
रश्मि भले ही न दिखा रही हो, लेकिन वह हनीमून को लेकर उतना ही रोमांचित थी, जितना की मैं। मैंने जब भी द्वीपों के बारे में सोचा, मुझे बस यही लगता की वह कोई ऐसी एकांत जगह होगी, जहाँ सफ़ेद बलुई बीच होंगे, लहराते ताड़ और नारियल के पेड़ होंगे, और गरम उजले दिन होंगे! सच मानिए, उन तीन चार दिनों की ठंडी में ही मेरा मन भर गया। इतने दिनों तक बैंगलोर की सम जलवायु में रहते हुए उस प्रकार की कड़क ठंडक से दो-चार होने की हिम्मत मुझमे नहीं थी। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह बिलकुल वैसी जगह थी, जहाँ मैं अभी जाना पसंद करता। रश्मि का साथ, इस यात्रा में सोने पर सुहागा थी। 

बैंगलोर हवाई-अड्डे पर पुनः कोई समस्या नहीं हुई। बस यही की चेक-इन काउंटर पर बैठी ऑफिसर, रश्मि जैसी अल्पवय तरुणी को विवाहित सोच कर उत्सुकता पूर्वक देख रही थी। मेरे लाख मन करने के बावजूद आज भी रश्मि ने साड़ी-ब्लाउज़ पहना हुआ था – हाथों में मेहंदी, सुहाग की चूड़ियाँ, सिन्दूर, मंगलसूत्र, इत्यादि सब पहना हुआ था उसने। मैंने लाख समझाया की गहनों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है, फिर भी! अल्प-वय पत्नी होने के अपने ही नुकसान हैं – लोग कैसी कैसी नज़रों से देखते रहते हैं! और तो और, सारे मॉडर्न कपड़े-लत्ते खरीदना बेकार सिद्ध हो रहा था। जवान लोगो के शौक होते हैं... लेकिन ये तो परंपरागत परिधान छोड़ ही नहीं रही है। 

फ्लाइट अपने निर्धारित समय पर निकली – मैंने रश्मि को विंडो सीट पर बैठाया, जिससे वो बाहर के नज़ारे देख सके। बंगाल की खाड़ी पर उड़ते समय कुछ भी साफ़ नहीं दिख रहा था – अधिक रोशनी और धूल-भरी धुंध के कारण कुछ भी नहीं समझ आ रहा था। लेकिन, जब हम द्वीप समूह के निकट पहुंचे, तब नजारे एकदम से अलग दिखने लगे। नीले रंग का पानी, उसके बीच में अनगिनत हरे रंग के टापू, नीला आसमान, उसमें छिटपुट सफ़ेद बादल! फ्लाइट पूरा समय सुगम रूप से चली, लेकिन आखिरी पंद्रह मिनट किसी एयर-पॉकेट के कारण हमको झटके लगते रहे। बेचारी रश्मि ने डर के मारे मेरा हाथ कस के पकड़ रखा था (अब कोई किसी को कैसे समझाए की अगर हवाई जहाज गिर जाए, तो कुछ भी पकड़ने का कोई फायदा नहीं!)। 

खैर, उतरते समय नीचे का जो भी दृश्य दिखा वो अत्यंत मनोरम था। एअरपोर्ट पर हवाई पट्टी के चहुँओर छोटे-छोटे पहाड़ी टीले थे, जिन पर प्रचुर मात्रा में हरे हरे पेड़ लगे हुए थे। देख कर ऐसा लग रहा था की यहाँ बहुत ठंडक होगी, लेकिन सूरज की गर्मी और समुद्री प्रभाव के कारण वातावरण गुनगुना गरम था। उत्तराँचल की ठंडी (जो की मेरे दिलोदिमाग में बस गई थी) से तुरंत ही बहुत राहत मिली।
 
कुछ शब्द अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के बारे में:

अंडमान में मानव जीवन हजारों सालों से है – तब से जब से मानव-जाति अफ्रीका से बाकी विश्व में प्रवास कर रही थी। वहां पर मिलने वाले पुरातात्विक प्रमाण कोई ढाई हज़ार साल पुराने हैं। माना जाता है की प्राचीन ग्रीक भूगोलवेत्ता टालमी को इनके बारे में मालूम था। महान चोल राजाओं को भी इनके बारे में मालूम था और वे इन द्वीप समूहों को ‘अशुद्ध द्वीप’ कहते थे। खैर, उनके लिए इन द्वीपों की आवश्यकता एक नौसेना छावनी से अधिक नहीं थी। बाद में महान मराठा योद्धा, शिवाजी महाराज ने भी इन द्वीपों पर राज किया। अंततः अंग्रेजों ने 1780 के आस पास इन पर अपना प्रभुत्त्व जमा लिया, और इनका प्रयोग एक दण्ड-विषयक कॉलोनी जैसे करना आरम्भ किया। 1857 की क्रान्ति के बाद अनगिनत युद्ध बंदियों को यहाँ पर कारावास दिया गया और अंततः, आजादी की लड़ाई के समय बहुत से महत्त्वपूर्ण राजनीतिकी बंदियों को यहाँ बनायीं हुई ‘सेलुलर जेल’ में बंधक बना कर रखा गया। इसी अतीत के कारण, इनको ‘काला पानी’ कहते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के समय थोड़े समय के लिए जापानियों ने इन पर कब्ज़ा कर लिया था, जिनके अवशेष वहां अभी भी मौजूद हैं। स्वतंत्रता मिलने के पश्चात इनको केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा मिला, और तब से यह स्थान शान्ति से है। 

अंडमान की सबसे ख़ास बात यह है की पूरे भारत में यही एक जगह है, जिसको सही मायने में अवकाश वाली जगह कहा जा सकता है। पूरा देश, जब टी-टी पो-पो के शोर से, गंदगी और दुर्गन्ध से, और हर प्रकार के प्रदूषण से दो चार होता रहता है, तब साफ़, स्वच्छ, उच्च-दृश्य, और नीले पानी से घिरा यह स्थान, हमको सच में आनंदित करता है। देश के काफी पूर्वी हिस्से में रहने के कारण यहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त दिल्ली या मुंबई के मुकाबले कम से कम एक घंटे पहले होता है।

हमने पूरे दस दिनों का प्रोग्राम बनाया था (दरअसल, बॉस ने बनाया था... और एक बात, मेरे ऑफिस के सभी सहकर्मियों ने हमारे हनीमून के लिए योगदान किया था। यह एक अभूतपूर्व घटना थी, और लोगो के प्रेम के इस संकेत से में पहले ही बहुत प्रभावित और भावुक था), और उसका सारा दारोमदार बॉस के मित्र पर था। उन्होंने पूरी दयालुता से हमारे हनीमून को अविस्मरणीय अनुभव बनाने की गारंटी ली थी।

पोर्ट ब्लेयर आते ही एक टैक्सी ने हमको एक जेटी (जलबंधक) तक पहुँचाया, जहाँ एक उत्तम प्रकार की फेरी में फर्स्ट-क्लास में हमारी बुकिंग थी। यह सब कुछ हम दोनों के लिए ही नया था और रोमांचक भी। फिरोज़ी नीला समुद्री जल, उसमें उठती अनंत लहरें, हमारे जहाज द्वारा छोड़े जाने वाला फेन और शोर – सब कुछ रोमांचक था। फर्स्ट क्लास में हमारे अलावा एक और नव-विवाहित जोड़ा भी था, लेकिन वो दोनों अपने में ही इतना मगन थे, की उनसे बात करने का अवाल ही नहीं उठा, और ऐसा भी नहीं है की मुझको उनसे बात करने की तीव्र इच्छा थी। खैर, इन सब में समय यूँ ही निकल गया, और हम लोग वहां के हेवलॉक द्वीप पर पहुँच गए।

वहां जेटी पर हमें लेने होटल की गाड़ी आई। कार की खुली खिड़की से गुनगुनी धूप मिली हुई हवा और समुद्री महक बहुत अच्छी लग रही थी। कोई दस मिनट में ही हम लोग अपने रिसोर्ट पर पहुँच गए। आज सवेरे हवाई अड्डे पर ही जो खाया था, वही था, इसलिए अभी बहुत तेज भूख लग रही थी। हमने होटल में चेक-इन किया और अपने कमरे में पहुँच गए। यह रिसोर्ट एक विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ था – उसमे कुछ टेंट लगे हुए कमरे थे, और कुछ झोपड़े-नुमा कमरे। टेंट और झोपड़े सिर्फ कहने के लिए है – दरअसल ज्यादातर कमरों में वातानुकूलन लगा हुआ था। पूरे रिसोर्ट में नारियल के पेड़ और बहुत सारे फूल लगे हुए थे, जिससे दृश्य बहुत ही सुन्दर बन पड़ता था। इस समय मुझे जितने भी ग्राहक वहां दिखे, वो सारे ही विदेशी थे। इस रिसोर्ट में खूबी यह भी थी की यहाँ पर समुद्री एडवेंचर स्पोर्ट्स का भी बंदोबस्त करते थे। हमारा कमरा उनके सबसे अच्छे कमरों में से एक था, और रिसोर्ट के अपने बीच के ठीक सामने था। कमरे को सफ़ेद रंग से रंग गया था, और लिनेन फिरोज़ी नीले रंग के विभिन्न शेड्स के थे। पेंटिंग में भी समुद्र ही दिख रहा था। बिस्तर के सामने की तरफ फ्लैट-स्क्रीन टीवी लगी हुई थी, और दाहिनी तरफ लकड़ी का ड्रेसर – कुल मिला कर एक स्टैण्डर्ड रख रखाव! 

“हियर वी आर!” बेलहॉप ने हमारा सामान ड्रेसर में रखते हुए कहा, और फिर दरवाज़े की तरफ बढ़ते हुए, “कान्ग्रेचुलेशंस ऑन योर वेडिंग! आपको अगर कुछ आर्डर करना है तो मेनू साइड टेबल पर है और रेस्त्राँ का नंबर 10 है।“ 

कह कर वह कमरे से बाहर चला गया। खैर, मैंने अपने आपको बिस्तर पर पटका और खाने का मेनू उठाया, और रश्मि को पूछा की वो क्या खाएगी। 

जैसा पहले भी हो चुका है, अंततः मुझे ही आर्डर करना पड़ा। खाने के साथ-साथ फ्रेश लाइम सोडा भी मंगाया।

“चलिए, आपको इन कपड़ों से छुट्टी दिलाते हैं?” आर्डर देते ही मैंने जैसे ही रश्मि की तरफ हाथ बढाया, वह झट से पीछे हट गई। 

“धत्त! आप भी न, जब देखो तब शुरू हो जाते हैं! आपके छुन्नू पर आपका कोई कंट्रोल नहीं है!”

“छुन्नू? ये छुन्नू है?” कहते हुए मैंने रश्मि का हाथ पकड़ कर अपने सख्त होते लिंग पर फ़िराया.... “जानेमन, इसको लंड कहते हैं.... क्या कहते हैं?”

“मुझे नहीं मालूम।“ रश्मि ने ठुनकते हुए कहा। 

“अरे! अभी तो बताया – इसको ल्ल्ल्लंड कहते हैं।“ मैंने थोडा महत्व देकर बोला। “अब बोलो।“ 

अब तक मैं बिस्तर के कोने पर बैठ गया था, और रश्मि मेरे बांहों के घेरे में थी। 

“नहीं नहीं!.. मैं नहीं बोल सकती!”

मैंने रश्मि के नितम्ब पर एक हल्की सी चपत लगाई, “बोलो न! प्लीईईज्! क्या कहते हैं इसको?”

रश्मि, हिचकते और शर्माते हुए, “ल्ल्ल्लंड...”

“वेरी गुड! और लंड कहाँ जाता है?”

“मेरे अन्दर...”

“नहीं, ऐसे कहो, ‘मेरी चूत के अन्दर..’ .... कहाँ?”

रश्मि अब तक शर्मसार हो चली थी, लेकिन गन्दी भाषा का प्रयोग हम दोनों के ही लिए बहुत ही रोमांचक था, “मेरी .. चूत.. के अन्दर...”

“गुड! कल ही आपने कहा था की मैं चाहूँ तो दिन के चौबीसों घंटे आपकी चूत में अपना लंड डाल सकता हूँ, और आप बिलकुल भी मना नहीं करेंगी! कहा था न?”

“मैंने कहा था? कब?” रश्मि भी खेल में शामिल हो गई।

“जब आप मेरे लंड को अपनी चूत में डाल कर उछल-कूद कर रहीं थी तब...” मैंने रश्मि की साड़ी का फेंटा उसके पेटीकोट के अंदर से निकाल लिया और ज़मीन पर फेंक दिया। “बोलिए न, मुझे रोज़ डालने देंगी?”

“आप भी न! जाइए, मैं अब और कुछ नहीं बोलूंगी..”

“अरे! मुझसे क्या शर्माना? यहाँ मेरे सिवाय और कौन है यह सब सुनने को? बोलिए न!”

“नहीं! आप बहुत गंदे हैं! और, मैं अब कुछ नहीं बोलूंगी.... जो बोलना था, वो सब बोल दिया।“

अब उसकी पेटीकोट का नाडा खुल गया और खुलते ही पेटीकोट नीचे सरक गया। रश्मि सिर्फ ब्लाउज और चड्ढी में मेरे सामने खड़ी हुई थी।

“ऐसे मत सताओ! प्लीज! बोलो न!”

“हाँ!”

“क्या हाँ? ऐसे बोलो, ‘हाँ, मैं तुमको रोज़ डालने दूंगी’...”

“छी! मुझे शरम आती है।“
 
“कल तो बड़ी-बड़ी बाते कह रही थी, और आज इतना शर्मा रही हैं! अब क्या शरमाना? ये देखो, मेरी उंगली आपकी चूत के अन्दर घुस रही है! और कुछ ही देर में मेरा लंड भी घुस जाएगा! अब बोल दो प्लीज। मेंरे कान तरस रहे हैं!” रश्मि की चड्ढी मैंने थोड़ा नीचे सरका दी और उसकी योनि को अपनी तर्जनी से प्यार से स्पर्श कर रहा था। 

“बोलो न!”

“हाँ, मैं रोज़ डालने दूंगी।“

“कभी मना नहीं करोगी?”

“कभी नहीं... जब आपका मन हो, तब डाल लीजिये!”

“क्या डाल लीजिये?”

“जो आप थोड़ी देर में डालने वाले हैं!”

“क्या डालने वाले हैं?”

इस बार थोड़ी कम हिचक से, “ल्ल्ल्लंड...”

“गुड! और कहाँ डालने वाले हैं?” कहते हुए मैंने रश्मि के भगोष्ट को सहलाते हुए उसकी योनि में अपनी तर्जनी प्रविष्ट करा दी।

“अआह्हह! मेरी चूत में!”

“वेरी वेरी गुड! अब पूरा बोलो!”

रश्मि फिर से सकुचा गई, “मैं रोज़ आपका लंड.... अपनी चूत में... डालने दूँगी! और.... कभी मना नहीं करूँगी।”

यह सुन कर मैंने रश्मि को अपनी ओर भींच लिया और उसके सपाट पेट पर एक जबरदस्त चुम्बन दिया। हमारी ‘डर्टी टॉक’ से वह बहुत उत्तेजित हो गयी थी। एक दो और चुम्बन जड़ने के बाद मैंने रश्मि को बिस्तर पर पेट के ही बल पटक दिया और उसकी चड्ढी उतार फेंकी। 

रश्मि को बिस्तर पर लिटा कर मैंने उसकी दोनों जांघें कुछ इस प्रकार फैलाईं जिससे उसकी योनि और गुदा दोनों के ही द्वार खुल गए। इससे एक और बात हुई, रश्मि के नितम्ब ऊपर की तरफ थोडा उभर आये और थोड़ा और गोल हो गए। सुडौल नितम्ब..! स्वस्थ और युवा नितम्ब। जैसा की मैंने पहले भी बताया है, रश्मि के नितम्ब स्त्रियोचित फैलाव लिए हुए प्रतीत होते थे, जिसका प्रमुख कारण यह है की उसकी कमर पतली थी। 

मैंने पहले अधिक ध्यान नहीं दिया, लेकिन रश्मि के नितम्ब भी उसके स्तनों के सामान ही लुभावने थे। मैंने उसके दोनों नितम्बों को अपनी दोनों हथेलियों में जितना हो सकता था, भर लिया और उनको प्रेम भरे तरीके से दबाने कुचलने लगा। कुछ देर ऐसे ही दबाने के बाद उसके नितम्बों के बीच की दरार की पूरी लम्बाई में अपनी तर्जनी फिराई। उसकी योनि पर जैसे ही मेरी उंगली पहुंची, मुझे वहां पर उसकी उत्तेजना का प्रमाण मिल गया – योनि रस के स्राव से योनि मुख चिकना हो गया था। मैंने उसकी योनि रस में अपनी तर्जनी भिगो कर उसकी गुदा पर कई बार फिराया। हर बार जैसे ही मैं उसकी गुदा को छूता, स्वप्रतिक्रिया में उसका द्वार बंद हो जाता।

“और इस काम को क्या कहते हैं?”

“आह! ... सेक्स!”

“नहीं, बोलो, चुदाई! क्या कहते हैं?”

“चुदाई! आह!”

“हाँ! अभी पक्का हो गया। मुझे रोज़ आपकी चूत में मेरा लंड डाल कर चुदाई करने का एग्रीमेंट मिल गया है... क्यों ठीक है न?”

“आह... जीईई..!”

हम आगे कुछ और करते, की दरवाज़े पर दस्तक हुई, “रूम सर्विस!”

मैंने हड़बड़ा कर बोला, “एक मिनट!”

रश्मि सिर्फ ब्लाउज पहने हुए ही भाग कर बाथरूम में छुप गई। वो तो कहो मैंने भी अपने कपड़े नहीं उतारे थे, नहीं तो बहुत ही लज्जाजनक स्थिति हो जाती। खैर, रश्मि के बाथरूम में जाते ही मैंने दरवाज़ा खोल दिया। वेटर खाने की ट्रे, पानी, टिश्यु इत्यादि लेकर आ गया था। उसने अन्दर आते हुए एक नज़र फर्श पर डाली, और वहां पर साड़ी, पेटीकोट, चड्ढी यूँ ही पड़ी हुई देख कर उसने एक हल्की सी मुस्कान फेंकी – उसको शायद ऐसे दृश्य देखने की आदत हो गयी होगी। उसने अब तक न जाने कितने ही नवदंपत्ति देख लिए होंगे! 

उसने टेबल पर खाने की प्लेट, डिशेस, पानी इत्यादि रखा और जाते-जाते कह गया की शाम को एक ऑटोरिक्शा हमको राधानगर बीच ले जाने के लिए बुक कर दिया गया है। मैंने उसको धन्यवाद कहा और उससे विदा ली। दरवाज़ा बंद करने के बाद मैंने रश्मि को बाहर आने को कहा – उसको ऐसे सिर्फ ब्लाउज पहने देखना बहुत ही हास्यकर प्रतीत हो रहा था। 

“मैं इसीलिए कह रहा था की आपके कपड़ों की छुट्टी कर देते हैं.. लेकिन आप ही नहीं मानी!”

“और वो आप जो मुझे वो नए नए शब्द सिखाकर टाइम वेस्ट कर रहे थे, उसका क्या?”

“हा हा! अरे! आपने कुछ नया सीखा, उसका कुछ नहीं!”

“आप मुझे कुछ भी सिखा नहीं रहे हैं, ... बल्कि सिर्फ बिगाड़ रहे हैं! अब चलिए, मुझे कुछ पहनने दीजिये!”

“अरे, मैं तो यह ब्लाउज भी उतारने वाला था – आराम से, फ्री हो कर लंच करिए!”

“आपका बस चले तो मुझे हमेशा ऐसे नंगी ही करके रखें!”

“हाँ! आप हैं ही इतनी खूबसूरत!”

“हाय मेरी किस्मत! मेरे पापा ने सोचा की लड़की को अच्छे घर भेज रहे हैं। कमाऊ जवैं और एकलौता लड़का देख कर उन्होंने सोचा की उनकी लाडली राज करेगी! और यहाँ असलियत यह है की उस बेचारी को तो कपड़े पहनना भी नसीब नहीं हो रहा!” रश्मि ने ठिठोली की।

“उतना ही नहीं, उस बेचारी के ऊपर तो न जाने कैसे कैसे सितम हो रहे हैं! बेचारी की चूत में रोज़....” 

मैंने जैसे ही उस पर हो रहे अत्याचारों की सूची कुछ जोड़ना चाहा तो रश्मि ने बीच में ही काट दिया, “छीह्ह! आपकी सुई तो वहीँ पर अटकी रहती है।”

“सुई नहीं... ल्ल्ल्लंड... सब भूल जाती हो!”

रश्मि ने कृत्रिम निराशा में माथा पीट लिया – वह अलग बात है की मेरी बात पर वह खुद भी बेरोक मुस्कुरा रही थी। खैर, मैंने जब तक खाना सर्व किया, रश्मि ब्लाउज उतार कर, और एक स्पोर्ट्स पजामा और टी-शर्ट पहन कर खाने आ गयी। खाते-खाते मैंने रश्मि को अपने हनीमून के प्लान के बारे में बताया – उसको यह जान कर राहत हुई की हमारे हनीमून में सिर्फ सेक्स ही नहीं, बल्कि काफी घूमना-फिरना और एडवेंचर स्पोर्ट्स भी शामिल रहेंगे।

भोजन समाप्त कर हम बीच की सैर पर निकले – इस समय समुद्र में भाटा आया हुआ था, जिसके कारण काफी दूर तक सिर्फ गीली, बलुई और पत्थरों से अटी भूमि ही दिख रही थी। हम लोग यूँ ही बाते करते, शंख, सीपियाँ और रंगीन पत्थर बीनते काफी दूर निकल गए। बातों में हमारे सर पर चमक रहे चटक सूर्य का भी ध्यान नहीं रहा – कहने का मतलब यह, की उन डेढ़-दो घंटों में ही धूप से हम लोगों का रंग भी साँवला हो गया। और आगे जाते, लेकिन अचानक ही हमको पानी वापस आता महसूस हुआ, तो हमने वापस रिसोर्ट जाने में ही भलाई समझी। हम दोनों के हाथ शंख और सीपियों से भर गए थे, इसलिए यह उचित था, की उनमें से सबसे अच्छे वाले चुन लिए जाएँ और बाकी सब वापस समुद्र के हवाले कर के हम वापस आ गए।

वापस आते हुए मैंने दो-तीन विदेशी जोड़ों से बात-चीत करी और उनके अंडमान के अनुभवों के बारे में पूछ-ताछ की। रश्मि के लिए भी यह एक नया अनुभव था – शायद ही उसने किसी विदेशी से पहले कभी बात करी हो, इसलिए उसको थोडा मुश्किल लग रहा था। लेकिन फिर भी, वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी। कमरे में आ कर मैंने दो कप चाय मंगाई – चाय पीते-पीते ही ऑटो-रिक्शा वाला भी आ गया। मैंने हाफ-पैंट और टी-शर्ट पहना और रश्मि को भी स्कर्ट और टी-शर्ट पहनने को कहा। रश्मि की स्कर्ट, दरअसल, सूती के हलके कपड़े की बनी हुई थी और उसके हलके हरे रंग के कपड़े पर काले रंग के छोटे छोटे बिखरे हुए प्रिंट्स थे। यह स्कर्ट मैंने बीच पर पहनने की दृष्टि से ही लिया था। वैसे, रश्मि के लिए ऐसी स्कर्ट पहनना, जो उसके घुटने तक भी न आ सके, थोड़ा सा भिन्न, या यह कह लीजिये की अटपटा अनुभव था। लेकिन, मेरे साथ बिताये गए कुछ ही दिनों में उसको समझ आ गया था की इस प्रकार के अनुभवों का होना अभी बस शुरू ही हुआ है। इसलिए, उसने कोई हील-हुज्जत नहीं करी और कुछ ही देर में हम लोग राधानगर बीच की तरफ रवाना हो गए।
 
रिसोर्ट से बीच का रास्ता काफी अधिक था – या यह कह लीजिये की ऑटो की टरटराती (?) तीव्र गति और खाली सड़क के कारण अधिक लग रहा हो। यह रास्ता भी बहुत ही मनोरंजक था – सड़क के दोनों तरफ हरे भरे पेड़ और दूर दूर तक सिर्फ हरियाली ही दिख रही थी। खैर, कोई पंद्रह मिनट में हम राधानगर बीच पहुँच गए। यहाँ की एक ख़ास बात है – इस बीच को टाइम मैगज़ीन ने एशिया के सबसे सुन्दर बीचों में एक घोषित किया है। वहां पहुँच कर तुरंत ही समझ आ गया की ऐसा क्यों है – मुलायम सफ़ेद बालू, शुद्ध फ़िरोज़ी समुद्र, साफ़ सुथरा और सुन्दर बीच, और ऊपर से अपूर्व शान्ति – कुल मिला कर एक बहुत ही असाधारण अनुभव! रश्मि के चेहरे पर आते-जाते भाव देखते ही बन रहे थे। पहाड़ों पर रहने वाली लड़की, आज अथाह समुद्र का आनंद ले रही थी। 

नम और हल्की गर्म हवा बहुत ही अच्छी लग रही थी। सूर्यास्त होने में कुछ और समय था, इसलिए मैंने समुद्र में नहाने की सोची – रश्मि डर रही थी, इसलिए कैमरा देखने का बहाना कर के तक पर ही खड़ी रही। लेकिन इसमें क्या मज़ा! मैंने अपनी टी-शर्ट उतारी, और अपने कैमरा बैग में रख कर बीच के ही एक दूकानदार के पास रख दिया। उसने मुझे आश्वस्त किया की उसके पास यह सुरक्षित रहेगा, और रश्मि को खींच कर समुद्र में ले गया। बीच की गीली रेत जब पानी के आवागमन से पैरों के नीचे से खिसकती है तो संतुलन बनाना बहुत मुश्किल होता है, ख़ास-तौर पर तब जब आप इस अनुभव के लिए बिलकुल नए हों। न तो मुझे, और न ही रश्मि को समुद्र और बीच का कोई अनुभव था, इसलिए पहली बार में ही हम दोनों पानी में गिर गए। नहाने ही आये थे, इसलिए गीला होने में कोई बुराई नहीं लगी।

हम दोनों को ही तैरना आता था, इसलिए कुछ ही देर में समुद्री लहरों से निबटने का तरीका आ गया और हमने कोई आधे घंटे तक तट पर ही तैराकी करी। इतने में ही सूर्यास्त होने का समय भी निकट आ गया इसलिए मैंने वापस बीच पर खड़े होकर कुछ फोटोग्राफी करने की सोची। 

दूकानदार से कैमरा बैग लेकर मैंने सबसे पहले रश्मि पर फोकस किया। रश्मि की टी-शर्ट जगह के ही मुताबिक़ सफ़ेद रंग की थी – ब्रा तो उसने पहना ही नहीं था, इसलिए गीले और उसके शरीर से चिपक गए कपड़े से उसका शरीर पूरी तरह से दिख रहा था - उसके निप्पल स्पष्ट दिख रहे थे, और, चूंकि उसकी स्कर्ट भी पूरी तरह से उसके इर्द-गिर्द चिपक गयी थी और अन्दर की काले रंग की चड्ढी, और जांघें साफ़ दिख रही थी। अब चलने वाली हवा शरीर पर ठंडक दे रही थी – लिहाज़ा, रश्मि के निप्पल भी कड़े हो गए। इससे पहले की रश्मि अपनी इस स्थिति पर ध्यान दे पाती, मैंने दनादन उसकी कई दर्जन फोटो खींच डाली! और एक अच्छी बात यह दिखी की वहां पर जो भी लोग थे, किसी का भी व्यवहार लम्पटों जैसा नहीं था – न तो किसी ने रश्मि की तरफ कामुक दृष्टि डाली और न ही किसी प्रकार की छींटाकशी करी। एक और हनीमूनर को मैंने कैमरा पकडाया जिससे वह हम दोनों की कुछ फोटो ले सके। 

मैंने रश्मि के नितम्ब पर एक चिकोटी काट कर उसके कान में गुनगुनाया,

‘समुन्दर में नहा के, और भी नमकीन हो गयी हो!
अरे लगा है प्यार का मोरंग, रंगीन हो गयी हो हो हो!’

मेरे हो हो करने से रश्मि खिलखिला कर हंसने लगी, “अपनी बीवी को सबके सामने नंगा करने में आपको अच्छा लगता है?”

मैंने भी बेशर्मी से जवाब दिया, “बहुत अच्छा लगता है!” और गुनगुनाना जारी रखा, 

“हंसती हो तो दिल की धड़कन हो जाए फिर जवान! 
चलती हो जब लहरा के तो दिल में उठे तूफ़ान...”

इतने में सूर्यास्त प्रारंभ हो गया – बीच पर सूर्यास्त अत्यंत नाटकीय होता है। उन पंद्रह-बीस मिनटों में प्रकृति विभिन्न रंगों की ऐसी सुंदर छटा बिखेरती है की उसका शब्दों में बखान नहीं किया जा सकता। जब मैंने रश्मि को पहली बार देखा था, तो मुझे भी ऐसी ही सांझ की अनुभूति हुई थी - मन को आराम देती हुई, पल-पल नए रंग भरती हुई! यह उचित था की ऐसी सुन्दर प्राकृतिक छटा के अवलोकन में मेरी प्रेयसी, रश्मि, जो खुद भी इस ढलती शाम के समान सुन्दर थी, मेरे साथ खड़ी थी। मैं जब फोटो खींचने और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाने की तन्द्रा से बाहर निकला तो देखा की बीच लगभग वीरान हो चली है। कमाल की बात है न, लोग सूर्य के अस्त होते होते गायब हो गए! लेकिन मैं और रश्मि वहां कुछ और देर बैठे रहे। पास की चाय-पानी की दुकान वाला हमारे पास आया और पूछा की हम लोग कुछ लेंगे, तो हमने उसको चाय लाने के लिए बोल दिया। अभी लगभग अँधेरा हो गया था और कुछ दिख भी नहीं रहा था, इसलिए चाय पीकर, हमने वापसी करी।

रिसोर्ट वापस जाने के रास्ते में एक एटीएम से कुछ रकम निकाली और कुछ देर बाद हम लोग अपने रिसोर्ट में आ गए। हनीमून का पहला दिन बहुत बढ़िया बीत रहा था। ऑटो वाले को पैसे देकर मैंने रिसेप्शन पर एडवेंचर स्पोर्ट्स की बात करी। उन्होंने हमको स्कूबा-डाइविंग, स्नोर्केलिंग, और ट्रेकिंग के बारे में विस्तार में बताया। पुनः, चूंकि यह सब कुछ हमारे लिए नया था, इसलिए हम सबसे आसान और सुरक्षित कार्य करना चाहते थे। रिसेप्शनिस्ट ने हमको डाइविंग प्रशिक्षकों से मिलवाया। ये दोनों विदेशी महिलाएं थीं – मॉरीन और आना! दोनों बत्तीस से पैंतीस वर्षीय पेशेवर डाइवर थीं – मॉरीन ऑस्ट्रेलिया की मूल निवासी थी और आना इंग्लैंड की। और सबसे ख़ास बात – दोनों समलैंगिक थीं और साथ ही रहती थीं। यह सब बातें मुझे बाद में मालूम पड़ीं। खैर, उन्होंने बताया की फिलहाल दोनों फ्री हैं, और इसलिए वे अगले दो तीन दिनों में रश्मि और मुझे विभिन्न प्रकार के डाइव करवा सकती हैं। मैंने कहा की फिलहाल तो हम लोग स्नोर्केलिंग से शुरू करना चाहते हैं – एक बार पानी की समझ आनी ज़रूरी है। मॉरीन ने कहा की वह हमको स्नोर्केलिंग करवाएगी और अगले सवेरे तैयार रहने को बोला।

देर शाम रश्मि ने अपने घर पर फ़ोन लगाया और देर तक अपनी शादी के रिसेप्शन, हवाई यात्रा और अंडमान के बारे में बाते बताईं। रश्मि का उत्साह देखते ही बन रहा था – स्पष्ट रूप से वह बहुत ख़ुश थी और यह एक अच्छी खबर थी। मैंने उसके बात करने के बाद कुछ देर अपने ससुराल पक्ष के लोगो से बात कर अपनी औपचारिकता निभाई। अब आप लोग ही बताइए "आप क्या कर रहे हैं?" जैसे प्रश्नों का क्या उत्तर दूं? कभी कभी मन में आता है की कह दूं की आपकी बेटी के साथ सेक्स कर रहा हूँ... लेकिन! 

खैर, शाम को रिसोर्ट में लाइव म्यूजिक का कार्यक्रम आरम्भ हुआ – बैंड के लोग अंग्रेजी और हिंदी के विभिन्न शैलियों के गाने गा-बजा रहे थे। बगल में ही एक बार था, जहाँ पर बैठ कर मदिरा और संगीत का आनंद उठाया जा सकता था। 

“जानेमन, कॉकटेल पियोगी?” मैंने पूछा।

“वो क्या होता है?”

“कॉकटेल यानी अल्कोहलिक मिक्स्ड ड्रिंक... पियोगी?”

“मतलब शराब!? न बाबा! आप पीते हैं?” जब मैंने हामी भरी तो, “हाय राम! और क्या क्या करते हैं?”

“अबे! मैं कोई शराबी थोड़े ही न हूँ! मैं पीता हूँ तो बस कभी-कभार... किन्ही ख़ास मौकों पर! जैसे की हमारा हनीमून!”

“आप पीजिये, मैं ऐसे ही ठीक हूँ!”

“अरे एक बार ट्राई तो करो – यह कोई देसी ठर्रे की दूकान नहीं है। ये जो बार में बैठा है वह एक प्रोफेशनल मिक्सर है। इसको ख़ास ट्रेनिंग मिली हुई है.. एक कॉकटेल ट्राई करो, मज़ा न आये तो मत पीना! ओके?”

ऐसे न जाने कितनी ही देर मनाने के बाद आखिरकार रश्मि ने हथियार डाल ही दिए। मैंने बारमैन को दो ‘लांग आइलैंड आइस्ड टी’ बनाने को कहा।

“आप तो कॉकटेल कह रहे थे, और अभी चाय मंगा रहे हैं!”

“चाय नहीं है – दरअसल इस ड्रिंक का नाम ऐसा इसलिए है क्योंकि इसका रंग और स्वाद ‘आइस्ड टी’ जैसा लगता है... जी हाँ, चाय को ठंडा भी पिया जाता है!” 

“और यह लांग आइलैंड क्यों?”

“शायद इसलिए क्योंकि इस ड्रिंक के आविष्कारक को इसका आईडिया न्यूयॉर्क के ‘लांग आइलैंड’ नाम के द्वीप में आया था।“ मैं इस बात को छुपा गया की ‘लांग’ दरअसल अल्कोहल की सामान्य से कुछ ज्यादा ही मात्रा को दर्शाता है। 

“ह्म्म्म... लेकिन, अगर पापा को मालूम पड़ेगा तो वो बहुत नाराज़ होंगे।“ 

“पहला, पापा को क्यों मालूम पड़ेगा? और दूसरा, अगर मालूम पड़ भी जाय, तो क्या? अब आप मेरी हैं! मेरी गार्जियनशिप में!” मैंने आँख मारते हुए कहा।

कुछ ही देर में हमारी ड्रिंक्स आ गईं।

“आराम से पीना... धीरे धीरे! ओके?” मैंने हिदायद दी।
 
रश्मि ने बहुत ही सावधानीपूर्वक पहला सिप लिया – अनजान स्वाद! मीठा, खट्टा, कड़वा! आखिर किस श्रेणी में रखा जाय इस स्वाद को? अगली चुस्की कुछ ज्यादा ही लम्बी थी। कॉकटेल का आनंद उठाने का वैसे यही सही तरीका है – जीभ के सामने वाले हिस्से में कम स्वादेन्द्रियाँ होती हैं, इसलिए अगर ड्रिंक पूरी जीभ में फ़ैलेगी तो अधिक स्वाद आएगा।

“कैसा लगा?”

“पता नहीं...” 

“खराब?”

“नहीं.. खराब तो नहीं.. अलग!” 

“ह्म्म्म.. इसको अक्वायर्ड टेस्ट बोलते हैं... दूसरी ड्रिंक आपको ज्यादा अच्छी लगेगी।“

मेरी हिदायद के बावजूद, और शायद इसलिए भी क्योंकि मीठे स्वाद में इस ड्रिंक के जोखिम का पता नहीं चलता, रश्मि ने मुझसे पहले ही अपना ड्रिंक ख़तम कर लिया। मैंने मना भी नहीं किया – वो कहते हैं न, अपने सामने किसी और को नशे में धुत्त होते हुए देखना ज्यादा मजेदार होता है। मैंने रश्मि के लिए दूसरा ड्रिंक मंगाया। दूसरे के आते-आते, पहले का असर रश्मि पर होने लग गया। उसकी पलकें भारी हो रही थीं, और वह अब ज्यादा ख़ुश दिख रही थी।

“आपने मुझसे मिलने के पहले तक, सबसे वाइल्ड, मतलब, सबसे पागलपन वाला काम क्या किया है?”

“मैं...ने..? कुछ नहीं – मैं बहुत अच्छी बच्ची हूँ!” रश्मि ने दूसरी घूँट भरते हुए कहा।

“फिर भी... बच्ची ने कुछ तो किया होगा?”

“ऊम्म्म... हाँ, एक बार मैंने और मेरी सहेलियों ने मिल कर पास के रामदीन चाचा की बकरियां छुपा दी थीं। उन्होंने पूरे दिन भर बकरियां ढूँढी.. लेकिन उनको मिलती कैसे? हमने उनको कहा की दस रूपये दो, हम ढूंढ कर ले आएँगी! उनको समझ तो आ गया की हमारी शैतानी है, लेकिन उन्होंने शर्त मान ली। फिर हमने ढूँढने का नाटक करने के बाद देर शाम को बकरियां वापस की और उनसे दस रूपया भी लिया।“

“रामदीन चाचा आये थे शादी में?”

“हाँ – गाँव के सब लोग ही आये थे! सभी आपको देखना चाहते थे।“ उसकी दूसरी ड्रिंक आधी ख़तम भी हो गई।

“जानू, आराम से पियो! चढ़ जायेगी!”

“लेकिन मुझको तो नहीं चढ़ी...! और ये ‘लांग टी आइलैंड’ बहुत मजेदार है! अरे, अभी तक आपने पहला भी ख़तम नहीं किया?”

“हा हा!” मुझे समझ आ गया की रश्मि को चढ़ गयी है। “आपको कोई जोक आता है?”

“जोक – हाँ! आप सुनेंगे?” मैंने हामी भरी।

“एक बार संता शादी की दावत में गया, लेकिन सामने रखे सलाद की टेबल को देख कर वापस आ गया। और बंता से बोला, “ओये बंता... अभी मत जा! अभी तो सब्जियां ही कट रही हैं!”

“हा हा! एक और?”

“हाँ –एक बार संता कहता है, “यार बंता, मेरी बीवी मुझको नौकर समझने लगी है... बोल क्या करूँ? बंता कहता है, अरे मौके का फायदा उठा... दो-चार घर और पकड़ ले और अपना धंधा जमा ले!”

“आपको सब ऐसे ही जोक्स आते हैं?”

“हाँ! मुझको संता-बंता के बहुत से जोक आते हैं! बहुत मजाकिया होते हैं!”

“संता-बंता नहीं... कोई और जोक सुनाइये!”

“अच्छा..... कोई और? उम्म्म्म...... हाँ याद आया.... एक बार एक पत्नी अपने पति को कहती है, “चलो एक खेल खेलते हैं, मैं छुपती हूँ और आप मुझे ढूंढ़ना। अगर आपने ढून्ढ लिया तो मैं आपके साथ शॉपिंग करने चलूंगी।“ पति कहता है, “अगर नहीं ढूंढ पाया तो?” पत्नी कहती है, “ऐसा मत कहो जानू, बस दरवाज़े के पीछे ही छुपूंगी।“”

“अब आप भी तो कुछ सुनाइए... सारे मैं ही सुना दूँ?”

“अच्छा! आपने कभी कोई एडल्ट जोक सुना है?”

“एडल्ट जोक? वो क्या होता है?”

“अभी समझ आ जायेगा... यह सुनो.... 

“दिल्ली के एक मोहल्ले में एक बच्चा अपने घर में हमेशा नंगा घूमा करता था। घर में कोई भी आता, तो बच्चा नंगा ही मिलता और उसकी मां को ताने सुनना पड़ते। उसकी इस आदत से परेशान होकर मां ने एक उपाय सोचा और अपने बच्चे से कहा, “बेटा, जब भी कोई घर में आए, तो मैं कहूँगी, ‘दिल्ली बंद’ और तुम तुरंत निक्कर पहनकर बाहर आ जाना।“ 
बच्चा समझ गया। एक दिन उस बच्चे की मौसी उसके घर आई, तो मां ने आवाज लगाई, “बेटा, दिल्ली बंद।“ बच्चा निक्कर पहनकर बाहर आ जाता है और कहता है, “मौसी, आप यहां किसलिए आये हो?” मौसी कहती है, “बेटा, मैं दिल्ली देखने आई हूं।“ 
बच्चा कहता है, “ये लो! वो तो अभी-अभी मम्मी ने बंद करवा दी!” और कहते हुए उसने अपना निक्कर उतार दिया। मौसी हंसते हुए कहती है, “बेटा, मैं यह वाली दिल्ली नहीं, बड़ी वाली दिल्ली देखने आई हूं।“
बच्चा तुरंत कहता है, “कोई बात नहीं मौसी, मैं अभी पापा को बुलाता हूं!””

“ये भी क्या जोक है? धत्त! .....और मुझे मालूम है, वो बच्चा आप ही हैं... आपका ही निक्कर हमेशा उतरा रहता है!”

“हा हा हा!! एक और जोक सुनो - शादी के बाद सुहागरात के लिए पति और उसकी पत्नी अपने कमरे में गये। पत्नी बेड पर बैठ गई और पति “कैडबरी चॉकलेट” अपने लंड पर लगाने लगा। पत्नी ये देखकर बोली, “क्या कर रहे हो जी?” पति कहता है, “अरे! वो कहते हैं न? शुभ काम करने से पहले कुछ मीठा हो जाये।“

रश्मि खिलखिला का हँस पड़ी - दो गिलास भर के कॉकटेल गटकने के बाद रश्मि अब पूरी तरह से रिलैक्स्ड और आरामदायक हो गई थी। मैंने देखा की उसकी मुस्कराहट बढती ही जा रही थी और अब वह खुल कर बातें कर रही थी। मैंने अंदाज़ा लगाया की एक और पेग, और बस! लड़की ढह जायेगी!

मैंने एक बार फिर से पांसा फेंका, “अच्छा, और क्या-क्या वाइल्ड काम किया है?” 

“और क्या? ऐसे कुछ तो याद नहीं आ रहा!”

“कुछ सेक्सुअल? मेरे से पहले!”

“मेरे साथ जो भी सेक्सुअल है सब आपने ही किया है!” इतनी स्पष्ट स्वीकारोक्ति! 

“लेकिन...” मैं तुरंत चौकन्ना हो गया, “... जब पड़ोस की भाभियों ने मर्दों के लिंग और उसके काम के बारे में बताया तो मैं बहुत घबरा गई। उनके बताने के एक दिन बाद मैंने.. उंगली डालने का ट्राई किया था...”

“उंगली? कहाँ?” मुझे अच्छी तरह से मालूम था की कहाँ, लेकिन फिर भी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आया।

“जाइए हटिये! आप मुझे सताते हैं!”

“अरे! बिलकुल नहीं! क्यों सताऊँगा? बोलो न, कहाँ?”

“यहाँ... नीचे!” रश्मि ने दबी हुई आवाज़ में कहा। 

“पीछे?” मैंने फिर छेड़ा!

“हटो – मुझे नहीं कहना कुछ भी!” रश्मि रूठ गई।

“अरे मेरी जान .. ठीक है, अब नहीं छेडूंगा.. बोल भी दो!”

“मेरी...” एक पल को हिचकिचाई, “... वेजाइना में! यही नाम बताया था न आपने? आधा इंच भी नहीं जा पाई, और दर्द हुआ! मैंने डर के मारे वहीँ छोड़ दिया!”
 
“अच्छा बेटा! मेरे पीठ पीछे यह सब करती थी? वेजाइना के साथ एक और नाम बताया था – याद है?”

“हा हा! नहीं नहीं... मैं तो बस यह देख रही थी की... की मेरी वेजाइना कितनी चौड़ी है, और कितनी फ़ैल सकती है! बस! सच्ची! बस और कुछ नहीं!”

“हा हा हा!”

“एक्सैक्ट्ली मेरी पहली उंगली जितनी ही तो चौड़ी है! और ये देखिये,” उसने उत्साह से अपनी तर्जनी दिखाते हुए कहा, “ये उंगली ही कितनी पतली है! और इतने में ही दर्द हो गया! उस दिन आपका पहली बार देखा तो मेरी सांस ही अटक गयी की यह कैसे अन्दर जाएगा!”

“देखो – उस दिन आपकी यह पतली सी उंगली ही ठीक से नहीं जा पा रही थी, और आज देखिये, मेरा ल्ल्लंड भी आराम से चला जाता है!”

“कोई आराम वाराम से नहीं जाता, आपका...!” बोलते बोलते रश्मि रुक गयी, और फिर, “.. मेरी जगह पर होते तो आपको मालूम पड़ता सारा आराम!”

“अच्छा, आपने मुझसे तो सब पूछ लिया – अब आप बताइए – आपने क्या किया?”

“जानेमन, मेरे पास तो ऐसे कारनामों की एक लम्बी फेहरिस्त है! बताने लग गया तो कई दिन निकल जायेंगे!”

“अच्छा जी! ह्म्म्म.. वैसे मुझे याद है, आपने बताया था की आपकी कई सारी गर्लफ्रेंड थीं। उनके साथ क्या क्या किया? सच बताइयेगा – मैं बुरा नहीं मानूंगी।“

"नहीं... सच ही बताऊँगा। आपसे झूठ बोलने वाला काम मैं कभी नहीं करूंगा। मैं आपसे यह वायदा करता हूँ की मैंने आपसे पहले कभी भी किसी लड़की के साथ सेक्स नहीं किया। सेक्स का मतलब अगर लिंग और योनि से है तो! लेकिन मैंने उनके साथ बहुत सारे अन्तरंग क्षण बिताये हैं। हमारे रिसेप्शन में आपको वो ‘हिमानी’ याद है? जिसने गुलाबी-हरे रंग की ड्रेस पहनी हुई थी... वो जिसके थोड़े बड़े-बड़े स्तन थे?”

“न...ही..!”

“अरे जिसने आपको चूमा था।“

“मुझे तो दो लोगो ने चूमा था – हाँ याद आया! अच्छा! वो आपकी गर्लफ्रेंड थी?”

“हाँ – उसका नाम हिमानी है। आपसे सच कहूँगा, मुझे किसी भी स्त्री में स्तन बहुत प्यारे लगते हैं। इसलिए जब मेरी हिमानी के साथ घनिष्ठता बढ़ी तो मैं उसके स्तनों को अक्सर ही चूमता, चूसता था। एक दिन बात काफी आगे बढ़ गई। मैंने उसके स्तनों के बीच में अपने लिंग को फंसा कर मैथुन किया – बड़ा आनंद भी आया! लेकिन सच कहता हूँ की इसके आगे कभी नहीं गया।”

“चलिए... मान लिया की आप सच कह रहे हैं! वैसे भी, आपके जीवन में मेरे आने से पहले जो हुआ, उससे मुझे क्या सरोकार होगा? लेकिन...”

“लेकिन?”

“लेकिन मेरे स्तन तो बहुत छोटे हैं।“

“छोटे नहीं हैं जानू – आप भी तो अभी छोटी हैं! धीरे-धीरे यह भी बढ़ेंगे! लेकिन, सच कहूँ तो अभी जैसे हैं, मुझे वैसे ही पसंद हैं ये दोनों!” कह कर मैंने आँख मार दी। 

यहाँ लिखने में आसानी हो, इसलिए मैं बेहिसाब लिखा जा रहा हूँ। लेकिन सच तो यह है की रश्मि की जुबान यह सब बातें करते हुए बुरी तरह लड़खड़ा रही थी और उसकी आँखें भी ढलकी जा रही थीं। मैंने हम दोनों के लिए दो और गिलास लांग आइलैंड आइस्ड टी मंगाई, लेकिन ड्रिंक आते आते रश्मि को पूरी तरह से चढ़ गयी। अतः, मुझे ही दोनों ड्रिंक्स ख़तम करनी पड़ी। मेरे अन्दर चार, और रश्मि के अंदर दो गिलास मदिरा आ गयी थी – मुझे भी कोई ख़ास स्टैमिना तो था नहीं, और आखिरी दोनो ड्रिंक्स मुझे जल्दी जल्दी ख़तम करनी पड़ी। इसलिए मुझे भी नशा आ गया। मैंने बैरा को एक प्लेट कबाब का आर्डर दिया, जिससे अगर भूख लगे तो खाया जा सके और एक और बैरा की मदद से रश्मि को कमरे में ले आया।

रश्मि नशे के कारण सो गयी थी – लेकिन उसके माथे और सीने पर पसीने की बूंदे साफ़ दिख रही थीं। कमरे 
के वातानुकूलन से रश्मि को ठण्ड लग सकती थी, इसलिए मैंने बिना उसको अधिक हिलाए डुलाये उसके सारे कपड़े उतार दिए। मुझे भी गर्मी सी लग रही थी (जैसा की मुझे हर बार मदिरा पीने से होता है) इसलिए मैंने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए, और रश्मि के बगल बैठ कर, तौलिये से उसके शरीर से पसीना पोछने लगा।

वो कहते हैं न की नशे में स्वयं पर वश नहीं रहता। जब मैं रश्मि को पोंछ रहा था, तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। मैंने बिना सोचे समझे ‘कम-इन’ बोल दिया। और परिचारक को एक पूर्णतया नग्न युगल को देखने का आनंद प्राप्त हो गया। जब तक मुझे हम दोनों की नग्नावस्था का भान होता तब तक इतनी देर हो चली थी की कुछ करने का कोई लाभ न होता। खैर, उसके जाने के बाद मुझे एक विचार कौंधा की क्यों न रश्मि की ऐसी हालत में कुछ तस्वीरें उतार ली जाएँ! मैंने झटपट अपना डी एस एल आर उठाया और रश्मि की नग्नता की कलात्मक और अन्तरंग कई तस्वीरें ले डाली। उसके बाद मैं सो गया।

अगली सुबह

मॉरीन ने मुझे सुझाव दिया की स्नॉर्कलिंग के लिए एक बहुत ही सुन्दर जगह है। उसको ‘इंग्लिश आइलैंड’ कहते हैं और उधर बहुत ही कम लोग जाते हैं। इस कारण से वहां का स्थानीय पर्यावरण सुन्दर है और बहुत ही अच्छे नज़ारे दिखते हैं। रकम थोड़ी अधिक लगती है, लेकिन आनंद भी बहुत आता है। मैंने सोचा, और हाँ बोल दिया। वैसे भी हम लोग यहाँ पर हनीमून के लिए आये हैं – अकेलापन तो चाहिए ही!

मैंने हल्की टी-शर्ट, स्विमिंग ट्रंक, कैप और सन-ग्लासेज पहने, और रश्मि ने नायलॉन-लाइक्रा का स्विमसूट पहना – वह बिना बाँह का, V-गले वाला परिधान था, जिसको पीछे डोरी से बाँधा जाता था। इस पर बहुरंग प्रिंट्स बने हुए थे। उसके ऊपर (जिससे उसको अटपटा न लगे) रश्मि ने एक लम्बी बीच मैक्सी, जिसका रंग पीला और हल्का हरा था, स्लीव-लेस, V-गले और बैक वाला परिधान पहना हुआ था। इसमें स्तनों के नीचे से रिब केज तक करीब चार इंच चौड़ा कोमल इलास्टिक लगा हुआ था। आज रश्मि को इस प्रकार के परिधान में देख कर मुझे कुछ-कुछ होने लगा। मन तो यही था की उसको वहीँ पटक कर सम्भोग करने लगूं, लेकिन जैसे तैसे मैंने खुद को जब्त कर लिया। लेकिन बोट पर चढ़ने और उसके बाद आइलैंड के करीब स्नोर्केलिंग वाले स्थान तक पहुँचने तक मैंने उसकी अनगिनत तस्वीरें खींच डाली। 

मॉरीन हमारी गाइड भी थी और प्रशिक्षक भी। उसने हम दोनों को स्नोर्केलिंग की विधि के बारे में बताया और उपकरणों से जानकारी कराई – ऐसा कुछ खास तो होता नहीं, बसे एक आँखों पर लगाने के लिए मास्क और साँस लेने के लिए मुँह में लगाने वाली पाइप। खैर, गोत लगाने की बारी आई तो हम तीनों ने तैराकी की पोशाक में आने का उपक्रम करना आरम्भ किया। रश्मि बहुत झिझक रही थी, इसलिए मैंने उसको मैक्सी उतारने में मदद करी, और खुद की भी टी-शर्ट उतारी। मॉरीन ने टू-पीस स्विमिंग कॉस्टयूम पहना हुआ था। मैंने बोट चालक को कैमरा पकड़ा कर हम तीनों की तस्वीरें लेने को कहा – खुद बीच में खड़ा हुआ, दाहिनी तरफ रश्मि और बाईं तरफ मॉरीन!

और फिर हम तीनों समुद्र में उतर गए। 

उस स्थान पर मूंगा-चट्टानों की बहुतायत थी – यह अनुभव जैसे समुद्र के अन्दर झाँकने जैसा था। समुद्र का ठंडा पानी, कानों में पानी के हलचल की आवाज़, और आँखों के सामने एक अलग ही दुनिया का अद्भुत नज़ारा!! आपने ‘फाइंडिंग निमो’ फिल्म देखी है? यहाँ पर वो वाली मछलियाँ बहुत दिख रही थीं। पानी यहाँ पर बहुत गहरा था – कम से कम 20-25 फीट गहरा। विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी मछलियाँ हमारे चरों तरफ तैर रही थीं – मैंने कई बार कोशिश करी की एक को कम से कम छू लिया जाय – लेकिन मछलियाँ मुझसे कहीं तेज और चपल थीं। लेकिन यह खेल बड़ा ही मज़ेदार रहा। हमने अचानक ही एक बड़ी, ग्रे रंग की मछली देखी, जो कम से कम 3 फीट लम्बी रही होगी। ज्यादातर मछलियाँ 8 इंच से लेकर डेढ़ फीट तक की ही थीं। एक बार तो कोई सौ-डेढ़ सौ मछलियाँ हमारे इर्द गिर्द वृत्ताकार विन्यास में तैरने लगीं। उनको देखते देखते मानो समय ही रुक गया हो – न जाने कितनी ही देर वो हमारे चारो ओर चक्कर लगाती ही रही। और फिर अचानक ही सारी की सारी एक ओर निकल गईं। स्टार फिश, जेली फिश, एनिमोनी, और न जाने कौन कौन सी मछलियाँ दिखीं, जिनके नाम याद रखना अभी मेरे लिए संभव नहीं है। समुद्र तल भी साफ़ दिख रहा था – मूंगे की कई प्रकार की संरचनाएं, समुद्री सिवार, और तल पर बड़े आकार के सीपियाँ और शंख यूँ ही पड़े हुए थे। हमने कोई तीन घंटे तक इसी प्रकार से प्रकृति का आनंद उठाया। रश्मि इस नज़ारे को देख कर स्तब्ध हो गयी थी और अति प्रसन्न थी। खैर, हम लोग वापस बोट में बैठ कर इंग्लिश आइलैंड को चल दिए।
 
यह एक एकांत और छोटा टापू था और पूरी तरह निर्जन! इसके बीच में काफी पेड़ थे और इसका बीच नरम सफ़ेद रेत का बना हुआ था। मॉरीन ने बताया था की पांच मिनट में ही टापू पर पहुँच जायेंगे, इसलिए हमने कपड़े भी नहीं बदले थे, और ऐसे ही गीले गीले टापू पर पहुंचे। उस समय समुद्र में लहरें काफी ऊंची ऊंची उठ रही थी, इसलिए नाव को थोडा दूर ही लंगर दिया गया और टापू पर जाने के लिए एक बार फिर से समुद्र में कूदना पड़ा। नाविक और मॉरीन हमारे खाने पीने का सामान हमारे पास रखा, और हमें बताया की हम लोग यहाँ पर दो तीन घंटे आराम से रह सकते हैं, और दोनों टापू पर ही हमसे कुछ दूर पर बैठ कर अपना खुद खाने पीने लगे। 

रश्मि और मैंने सोचा की इस टापू को थोडा और देखना चाहिए, और तट पर ही चलने लगे। रश्मि और उसका स्विमसूट पूरी तरह से गीला था और हवा के कारण उसको ठण्ड लग रही थी – रह रह कर उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ जा रही थी। मैंने ऐसा देखा तो पीछे से उसकी कमर में हाथ डाल कर, उसे अपनी तरफ खींच कर चलना शुरू किया। चलते चलते मैंने देखा की उसका सूट उसके नितम्बो को ढक कम, और प्रदर्शित ज्यादा कर रहा था। अतः, मैंने उसके नितंबो को थोड़े जोश से रगड़ना शुरू कर दिया।

“आप यह क्या कर रहे हैं?”

“गर्मी पैदा कर रहा हूँ, जानू! आपके कपड़े पूरी तरह से गीले हैं, और हवा भी चल रही है। ऐसे में आपको ठंड लग सकती है।"

“आप बहुत ख़याल रखते हैं मेरा!”, रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा। 

‘कैसी नासमझ लड़की है यह! – ऐसी अवस्था में कोई लड़की राका डाकू को मिल जाए, तो वह भी इसी प्रकार गर्मी पैदा करेगा।‘ हम लोग चलते चलते एक एकांत वाली जगह पर आ गए – वहां पर बीच काफी चौड़ा और समतल था। सूर्य की गर्म भी अच्छी आ रही थी।

"क्या इसे उतार सकती हो?" मैंने रश्मि को पूछा।

"क्यों?"

"आपकी बॉडी जल्दी सूख जायगी, अगर उसको गर्मी और हवा लगेगी।"

"लेकिन, वो लोग?”

“वो पीछे ही ठहरे हुए हैं। इधर नहीं आयेंगे... चिंता न करो!” 

"अरे? ऐसे कैसे? अगर उनमे से कोई भी आ गया... और हमको ऐसी हालत में देखेगा तो क्या सोचेगा? और उनकी छोड़िए... मुझको ऐसे कोई और देखे तो मैं तो शरम से मर ही जाऊंगी!"

"आप भी क्या मरने मारने वाली बातें करती हैं? हनीमून पर आए हैं ... हमको कुछ तो मज़ा करना चाहिए? और पूरे इंडिया में ऐसी सूनसान जगह नहीं मिलेगी! जितना कपड़े उतार सको, उतना ही मस्त!!" मैंने समझाया, "कोई नहीं आएगा ... अब उतार दो न.." 

“ठीक है। लेकिन यह डोर आपको खोलनी पड़ेगी...” कहकर रश्मि मुड़ कर खड़ी हो गई।

मैंने उसकी यह बात सुनकर आश्चर्यचकित हो गया। दिमाग में उत्तराँचल की वादियों में नग्न होकर आनंद उठाने का अनुभव याद आ गया। मैंने उसकी सूट की डोर खोली और जैसे केले का छिलका उतारते हैं वैसे ही स्विमसूट को उतार दिया। कुछ ही पलों में रश्मि पूर्ण नग्न होकर बीच पर खड़ी थी। मैंने उसका सूट सूखने के लिए बीच पर फैला दिया, और उसके बाद खुद भी अपना स्विमिंग ट्रंक उतार कर पूर्ण नग्न हो गया।

हम दोनों कुछ देर ऐसे ही नंगे पुंगे वहां पर खड़े होकर पानी सुखाते रहे, लेकिन वहां ऐसे रहते हुए भी (चाहे कितने भी अकेले हों), बेढंगा लग रहा था। खैर, ऐसे निर्जन बीच पर होने का फायदा यह है की वहां पर खूब सारे समुद्री तोहफे ऐसे ही बिखरे पड़े रहते हैं। मैंने रश्मि को बीच-वाक करने और सीपियाँ बीनने के लिए तैयार कर लिया,

“अरे, चलो, यहाँ पर ज़रूर अच्छे वाले शंख और सीपियाँ मिलेंगी – चल कर उनको ढूंढते हैं, और बीनते हैं।“ 

मैंने कहा और हम दोनों ऐसे ही पूर्ण नग्न, उस वीरान और निर्जन द्वीप पर घूमने चल दिए। अपना सब सामान उसी स्थान पर छोड़ दिया – भला किससे डरना? सूर्य की गर्मी शरीर पर बहुत अच्छी लग रही थी – अब तक सारा पानी सूख गया था और हवा भी थोड़ी सी ऊष्ण लगने लगी थी। मैंने सोचा की एक गलती हो गयी – बिना किसी प्रकार के सन-स्क्रीन क्रीम के ऐसे ही बीच पर घूमने से सन-बर्न हो सकता है। कुछ और नहीं तो सांवलापन बढ़ जाएगा – खैर, यही सोच के संतुष्टि कर ली की चलो कुछ विटामिन D ही बन जायेगा शरीर में।

सबसे आनंददायक बात यह थी की रश्मि इस प्रकार से नग्न होने में पूरी तरह से आश्वस्त थी – यह मैं मान ही नहीं सकता की उसको यह संज्ञान न हो की कम से कम दो अजनबी लोग कभी भी उसके सामने सामने आ सकते हैं और उसको उसकी पूर्ण नग्नता वाली स्थिति में देख सकते हैं। लेकिन मेरे साथ रहते हुए उसको अब ज्यादा आत्मविश्वास हो गया था। खैर, कोई तीन चार मिनट चलते रहते हुए ही हमको बढ़िया किस्म की बड़ी सीपियाँ और शंख मिलने लग गए – एक बार फिर से हमारे पास उनको एकत्र करने के लिए हमारे पास हाथों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था। हम लोग ऐसे ही कोई पंद्रह बीस मिनट तक घूमते रहे और फिर वापस अपने स्थान की ओर चल दिए। वापस आकर हमने खाना खाया और नर्म और गरम रेत पर लेट कर धूप सेंकने लगे और कुछ ही देर में हम दोनों को ही झपकी आ गई।

मॉरीन कब वहां आई, हमको इसका कोई ज्ञान नहीं। लेकिन उसने हम दोनों को न केवल एक दूसरे से गुत्थमगुत्था होकर सोते देखा, वरन उसी अवस्था में मेरे ही कैमरे से हमारी कई तस्वीरें भी उतार लीं।

(मॉरीन, जैसा की मैंने पहले ही बताया है, एक ऑस्ट्रेलियाई है और अंग्रेज़ी में बात करती है। हमारे वार्तालाप को अंग्रेज़ी और हिंदी, दोनों में ही लिखने की ऊर्जा नहीं है मुझमें, इसलिए यहाँ सिर्फ हिंदी में ही लिखूंगा। लेकिन कुछ शब्द अंग्रेजी के भी होंगे) 

“अरे सोते हुए बच्चों, उठो... चलना भी है।“

“कक्या? ओह... मॉरीन? क्या हुआ?” मॉरीन ने मुझे ही हिला कर उठाया ... मैं हड़बड़ा गया। 

“कुछ हुआ नहीं! लेकिन हमको कभी न कभी वापस भी तो चलना है न? ...और, देख रही हूँ की तुम दोनों बड़े मजे ले रहे हो! है न? हे हे हे!”

“कोई मज़ा वज़ा नहीं, मॉरीन। बस, थोड़ा धूप सेंकते सेंकते सो गए थे।“ मॉरीन के सामने ऐसे ही नग्न पड़े रहना लज्जाजनक तो था, लेकिन चूँकि वह भी ब्रा-पैंटीज में ही थी, इसलिए मैंने खुद को या रश्मि को छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया। मॉरीन को जो भी कुछ देखना था, वह अब तक विस्तार से देख चुकी होगी। 

“जैसा तुम कहो!” फिर उनींदी रश्मि को देखते हुए उसने मुस्कुरा कर कहा, “वेल, हेल्लो ब्यूटीफुल! नींद हो गई?” फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर, “तुम्हारी पत्नी बहुत सुन्दर और सेक्सी है। तुम बहुत ही भाग्यशाली हो, दोस्त...!मेरे कहने का यह मतलब कतई मत निकालना की तुम किसी भी तरह से कम हो... लेकिन, ये बहुत सुन्दर हैं!”

“हाँ – यह बात मुझे मालूम है। इसीलिए तो मैंने इनसे शादी की है।“ हमारी बातों के बीच ही रश्मि ने अपना स्विमसूट उठा कर अपने शरीर पर इस तरह से डाल लिया जिससे उसकी जाहिर नग्नता छुप जाय। “हे! हम लोग यहाँ कुछ देर और नहीं रुक सकते? यहाँ बहुत अच्छा लग रहा है।“ मैंने आगे जोड़ा।

“बिलकुल रुक सकते हैं... लेकिन हमको एक निर्धारित समय के बाद रिसोर्ट में इत्तला देनी होती है। और यहाँ पर कोई दूरसंचार की सुविधा तो है नहीं... लेकिन.. मेरे पास एक विचार है। उसको बताने से पहले मैं तुमको एक बात बताना चाहती हूँ की जब आप लोग सो रहे थे, तो मुझे आप दोनों को ऐसे देख कर इतना अच्छा लगा की मैंने आप लोगो की ऐसी न्यूड फोटोज खींच ली...”

“क्या?!! दिखाना ज़रा!” 

“आपके ही कैमरे से ली हैं... देख लीजिये।“ कह कर मॉरीन ने मेरा कैमरा मेरे हाथ में सौंप दिया। 
मैंने कैमरा ऑन कर, तुरंत ही रिव्यु बटन दबाया – रश्मि भी अपनी छाती पर अपनी बिकिनी चिपकाए, उत्सुकतावश कैमरे की तस्वीरों को देखने मेरे बगल आ गई... इस बात से बेखबर की उसकी योनि से बिकिनी का वस्त्र हट गया है। खैर, जब हमने वो तस्वीरें देखीं तो हमको लज्जा, आश्चर्य और गर्व तीनों प्रकार के ही भाव आए।

ज्यादातर तस्वीरों में हम पूर्णतः नग्न अवस्था में आलिंगनबद्ध होकर सो रहे थे – मैं रश्मि की तरफ करवट करके लेटा हुआ था, ऐसे की मेरा बायाँ पाँव रश्मि के ऊपर था, और इस कारण मेरा लिंग और वृषण स्पष्ट दिख रहे थे। मेरा लिंग अर्ध स्तम्भन में खड़ा हुआ था और उसकी स्किन थोड़ी पीछे खिसकी हुई थी। रश्मि चित लेटी हुई थी और उसका सारा शरीर प्रदर्शित था। उसके छोटे छोटे स्तन, और उन पर आकर्षक निप्पल! सुन्दर, स्वस्थ और पतली बाहें और सपाट पेट! उसका बायाँ पाँव थोडा अलग हो रखा था जिस कारण उसका योनि द्वार थोडा खुला हुआ था।

“थैंक्स फॉर दीस पिक्चर्स! लेकिन, आप क्या कहने वाली थीं?”

“मैं यह कह रही हूँ की आप दोनों अपने हनीमून पर आये हैं... क्यों न मैं आप दोनों के और भी अन्तरंग फोटोस कैमरे में उतारूँ..? वैसी जैसी 2-एक्स या 3-एक्स फिल्मों में होता है? यू नो... जैसे आपका लिंग, इनकी योनि में...? क्या कहते हैं? वस्तुतः, मेरे ख़याल से आपके हनीमून की यह एक अच्छी यादगार निशानी बनेगी! इन तस्वीरों को जब आप लोग बीस साल बाद देखेंगे तो वापस एक और हनीमून करने का मन हो जायगा!”

मैंने रश्मि को संछेप में मॉरीन के सुझाव के बारे में बता दिया।

“नहीं बाबा! मैं नहीं कर पाऊंगी! इनके सामने कैसे ऐसे...?”

“जानू, देखो न... इनके सामने हम दोनों ही तो नंगे ही हैं...”

“लेकिन अगर उन तस्वीरों को कोई और देख ले तो?”

“अरे कौन देखेगा? हमारे बच्चे? हा हा! तो उनको बताएँगे की हमने उनको ऐसे बनाया था।“ मैंने शरारत भरी दलील दी।

रश्मि वैसे भी मेरी किसी भी बात का कोई विरोध तो करती नहीं... अतः उसने अंत में हामी भर दी। लेकिन एक शर्त पर की मॉरीन भी हमारे साथ निर्वस्त्र होकर कुछ तस्वीरें निकलवाए। मॉरीन ने कुछ सोचने के बाद हामी भर दी।

“अच्छी बात है!” मैंने कहा, “हम लोग क्या करें?”

“सबसे पहले तो रिलैक्स होने की कोशिश करिए... आपकी पत्नी तो अभी भी नर्वस लग रही हैं। पहले इन्ही की कुछ तस्वीरें निकाल लेती हूँ... ठीक है न?” अभी भी हम तीनों में सिर्फ मॉरीन ने ही कपड़े पहने हुए थे।

मॉरीन रश्मि को कभी मुस्कुराने, तो कभी कोई पोज़ बनाने को कहती – ‘हैंड्स इन एयर... हैंड्स ऑन हिप्स... लिक योर लिप्स... मेक अ पाउट.. शो सम ब्रैस्ट..’ रश्मि की इन झिझक और लज्जा भरी अदाओं का असर मुझ पर होने लग गया और मेरा लिंग जीवित होने लगा। रश्मि इस समय मॉरीन के निर्देशन में एक पेड़ के तने से टिक कर अपने दाहिने हाथ से खुद को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर की तरफ खींच रही थी। इसका प्रभाव यह था की रश्मि की पूरी सुन्दरता अपने पूरे शबाब पर प्रदर्शित हो रही थी। 

ऐसा तो मैंने कभी सोचा ही नहीं... ‘यह मॉरीन तो वाकई एक कलाकार है!’

‘पिंच योर निप्पल’ रश्मि पर भी इस प्रकार के देह प्रदर्शन का अनुकूल प्रभाव पड़ रहा था। उसके निप्पल उत्तेजना से खड़े हो गए थे। ‘टर्न अराउंड... शो में सम हिप्स..’ 

फोटो खींचते हुए मॉरीन अब मेरी तरफ मुखातिब हुई – मैं सम्मोहित होकर रश्मि के उस नए रूप को निहार रहा था और अपने उत्तेजित लिंग पर प्यार से हाथ फिरा रहा था।

मॉरीन: “एक्साइटेड? अब तुम्हारी बारी...” मेरे किसी प्रतिक्रिया से पहले ही मेरी चार-पांच फोटो उतर चुकी थी। “ये इसकी देखभाल कैसे कर पाती है? उसके लिए बहुत बड़ा है! उसके क्या, मेरे लिए बहुत बड़ा है...” एक पल को जैसे मॉरीन फोटो लेना ही भूल गयी – और फिर जैसे तन्द्रा से जाग कर उसने मेरे लिंग की कुछ क्लोज-अप तस्वीरें भी ले डालीं।

फिर उसने रश्मि को रेत पर लेटने को कहा और मुझको रश्मि के दोनों ओर अपने घुटने टिका कर इस तरह बैठने को कहा जिससे मेरा स्तंभित लिंग रश्मि के मुख के ऊपर आ जाय। अब रश्मि को कुछ बताने की आवश्यकता नहीं थी – उसने स्वतः ही मेरा लिंग अपने मुँह में भर लिया और इस पूरी हरकत को मॉरीन ने पूरी निपुणता से कैमरा में कैद कर लिया। मुझसे रहा ही नहीं जा पा रहा था – मैंने अपने लिंग को रश्मि के मुख में थोडा और अन्दर तक घुसेड दिया। 

“एनफ़ नाउ! प्लीज लिक हर निप्पल्स...”
 
मैंन रश्मि के ऊपर आकर उसको अपनी बाहों में कस कर चूमना शुरू कर दिया – प्रतिक्रिया स्वरुप संद्य ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और सहलाने लगी। मैं कभी उसके होंठो को चूमता, तो कभी उसके स्तनों को। मॉरीन हमारे बिकुल करीब आकर बेहद अन्तरंग तस्वीरें उतारने में व्यस्त थी। मेरी और रश्मि की हालत बहुत खराब थी – मेरा लिंग इस समय ऐसा अकड़ा हुआ था जैसे की बस एक हलके से दबाव से फट जाए। रश्मि की योनि भी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। मुझसे रहा नहीं जा रहा था और मैंने बिना किसी निर्देशन के रश्मि के होंठ चूमते हुए अपने लिंग को रश्मि के योनि द्वार पर सटा कर एक ज़ोर का धक्का लगाया .... लिंग उसकी योनि में ऐसे सरकता चला गया जैसे मोम में गरमागरम चाकू घुसा दिया गया हो। रश्मि के मुँह से एक कामुक सीत्कार निकल गई।

“मेरी जान... आह! मेरी हिरनी..” मैं न जाने क्या क्या बड़बड़ाते हुए पूरी गति से रश्मि के साथ सम्भोग करने में व्यस्त हो गया। हमारा खेल 3-4 मिनटों में अपने पूरे शबाब पर पहुँच गया। मैंने रश्मि को भोगते हुए उसके घुटनों को ऊपर की तरफ उठा कर मोड़ दिया और उसके नितम्बों को सहलाना आरम्भ कर दिया। मैं जल्दी ही स्खलित होने वाला था, लेकिन कुछ और देर यह खेल खेलना चाहता था। इसलिए मैंने धक्के लगाना रोक कर, अपने लिंग को बाहर निकाल लिया। योनि रस से सना हुआ मेरा लिंग, सूर्य की रौशनी में शामक रहा था। मैंने रश्मि के नितम्बों के नीचे अपनी हथेलियाँ रखीं और उस हिस्से को ऊपर की तरफ़ इस तरह उठाया की उसकी योनि मेरे मुख के सामने आ जाय। और फिर उसकी योनि पर अपने मुख को ले जाकर उसको चूमा। रश्मि किलकारी भरने लगी।

कुछ देर चूमने के बाद, मैंने खुद को व्यवस्थित किया और अपने लिंग को रश्मि की योनि में पुनः समाहित कर के धक्के लगाने आरम्भ कर दिए। अगले 2-3 मिनटों की मेहनत में मेरा वीर्य रश्मि की योनि में की गहराइयों में छूट गया। आहें भरते हुए मैंने रश्मि की कमर को कस कर अपने जघन क्षेत्र से चिपका लिया। रश्मि भी संयत होकर गहरी साँसे भारती हुई लेट गई – मैं उसके ऊपर ही लेट गया। लेकिन उसके होंठों, आँखों, कानों, गले और स्तनों पर चुंबनो की झड़ी लगा दी। कुछ ही देर बाद मेरा लिंग सिकुड़ कर खुद ही रश्मि की योनि से बाहर आ गया।

मॉरीन का परिप्रेक्ष्य

सेक्स के इस सजीव प्रसारण ने मुझे इस प्रकार मन्त्र-मुग्ध कर दिया की मैं अपनी सुध-बुध ही खो बैठी। मेरे हाथों से कैमरा गिरते गिरते बचा। मैं एक समलैंगिक हूँ, लेकिन इस इतर्लैंगिक मैथुन ने मुझे बहुत प्रभावित कर दिया था। रूद्र अब उठ कर बैठ गया था और मेरी तरफ मुखातिब था, और रश्मि अपने अभी अभी संपन्न हुए मर्दन के कारण थक कर लेटी हुई थी और सुस्ता रही थी। आखिरी कुछ तस्वीरें लेटे समय मुझे झुक कर बैठना पड़ा, जिसके कारण मेरे स्तन ब्रा के कपों से थोड़ा बाहर ढलक रहे थे। रूद्र नजरें इस समय उनको ही सहला रही थी। मैंने उसकी आँखों का पीछा किया तो तुरंत समझ गयी की वो कहाँ घूम रही हैं। मैं हांलाकि थोड़ा सचेत हो गई, लेकिन मैंने उनको छिपाने की कोई कोशिश नहीं की – वैसे भी मैंने वायदा किया था की हम तीनों नग्न तवीरें खिचायेंगे – तो देर-सबेर इन वस्त्रों से छुट्टी तो होनी ही थी। रूद्र ने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया और मैं यंत्रवत उसके पास आकर बैठ गई। रूद्र है भी कितने आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक! और इसकी पत्नी, रश्मि, जब कम उम्र में ऐसी बला की सुन्दर है, तो फिर जब उसका यौवन पूरा निखरेगा, तब क्या होगा!!?

रूद्र ने अपनी बाहें मेरी कमर में डाल कर मुझे कस कर दबोच लिया और अपने होंठों से मेरे होंठ सटा कर चूमने लगा। इस स्त्यंत अप्रत्याशित हमले से मैं सकते में आ गई। उसने मेरे होंठ काट लिये और उनको चूसने लगा। एक क्षण को तो मैं अपनी लैंगिकता और सुध-बुध दोनों भूल गई और चुम्बन में उसका सहयोग करने लगी। उनके सम्भोग के दृश्य से मेरा शरीर पहले से ही कामाग्नि भड़क उठी थी, और अब इस चुम्बन ने मुझे दहकाना शुरू कर दिया। उसने मेरे होंठों को अपने दांतों के बीच दबा कर धीरे धीरे काटना शुरू किया, और फ़िर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी। मैंने भी भीना इनकार किये उसकी जीभ को रसीले फल के जैसे ही चूसना शुरू कर दिया। 

कुछ देर तक इसी प्रकार चूमने के बाद जब उसके हाथ मेरी ब्रा को खोलने लगे... तब मैंने अपने होंठ झटक कर उससे अलग किए।

“यह क्या कर रहे हो...? बस अब बहुत हुआ... अब चलते हैं यहाँ से!” मैंने नाटक किया।

पर वह ऐसे मानने वाला नहीं था – उसने ब्रा के ऊपर से ही मेरे दोनों स्तन अपनी गिरफ़्त में ले लिया। उसकी पकड़ बहुत मज़बूत थी – और उनको इस प्रकार दबा रहा था की मेरी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी। मेरे दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। वैसे चाहती तो मैं वहां से हट सकती थी, लेकिन वस्तुतः मेरी कोशिश भी बस सतही तौर पर ही थी, और मैंने उसकी हरकतों का कोई ख़ास विरोध नहीं किया। कुछ ही पलों में उसने मेरी ब्रा खींच कर मेरे शरीर से अलग कर दी और मैं ऊपर से पूरी नंगी हो गई। मेरे स्तन उभर कर बाहर हो आये – निप्पल पहले ही उत्तेजना के मारे कठोर हो गए थे।

मेरे गोरे बदन पर तने हुये स्तनों देख कर उसकी आँखों में एक चमक आ गई। उसने मेरे स्तनों को अपनी उंगली से हल्के हल्के सहलाते हुए कहा, “तुम बहुत ख़ूबसूरत हो।“

उसने मुझे खीच कर अपनी गोद में बैठा लिया, ऐसे जिससे मेरे दोनों पांव उसकी कमर के अगल बगल होते हुए उसकी पीठ के पीछे आ गए। उसकी हिम्मत की दाद देनी होगी – इस समय वह मेरे बाएँ स्तन के निप्पल को अपने मुँह में भर कर बच्चों की तरह चूस रहा था और उत्तेजनावश मेरे होंठों पर सिस्कारियां फूटने लगी। मैंने उत्तेजनावश रूद्र के सर को अपने स्तनों में भींच लिया। मेरे दिमाग में इस समय गहरी उलझन हो रही थी – मैं समलैंगिक हूँ, इतर्लैंगिक हूँ, या उभयलैंगिक हूँ? इस लड़के ने मुझे भरमा दिया है। 

अपने स्तनों के चूषण के आनंद के दौरान मेरी आँख अचानक ही खुली – देखा की रश्मि मेरी तरफ कुछ अजीब से भाव से देख रही है। क्या वह गुस्सा है? लगता तो नहीं! उत्सुक? नहीं! लालसा? पता नहीं! रश्मि की नज़र देख कर उसके भाव कुछ समझ नहीं आये – मैंने अपने आपको उसके किसी भी प्रकार के आवेग के लिए मन ही मन तैयार कर लिया। रश्मि उठी, मेरे पास आकर मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा और आँखों में उसी प्रकार के भाव लिए मेरी तरफ गहरी दृष्टि डाली। 

‘कहीं ये मेरी गर्दन तो दबाने वाली नहीं है?’ मैंरे मन में एक तनाव देने वाला विचार कौंधा। लेकिन बस एक दो क्षणों के लिए ही। मैं लगभग तुरंत ही तनाव मुक्त हो गई – रश्मि की छरहरी उंगलियाँ मेरे दाहिने स्तन को छू रही थीं। ऐसे ही दो तीन बार छूने के बाद उसने मेरे स्तन को अपनी हथेली में भर कर दबाया। मेरे स्तन का आकार उसकी हथेली के लिए काफी बड़ा था, लेकिन फिर भी उसकी पकड़ दृढ़ थी। बीच बीच में वह मेरे निप्पल को अपने अंगूठे और उंगली के बीच पकड़ कर चुटकी ले रही थी।

उधर रूद्र आँखें बंद किये मजे से मेरे बाएँ स्तन का पान कर रहा था, और इधर उसकी पत्नी मेरे दाहिने स्तन से खेल रही थी। उसकी आँखों के भाव मुझे अब समझ आये – वह भी अपने पति की ही तरह मेरे स्तनों का पान करना चाहती है! मैंने रूद्र के सर को ज़रा हिलाया, तब जाकर वह अपने उन्माद से बाहर निकला, लेकिन उसकी सिर्फ आँखें ही खुली, मुँह में अभी भी मेरा निप्पल भरा हुआ था। उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा तो उसको भान हुआ की रश्मि मेरे दूसरे स्तन से खिलवाड़ कर रही थी। वह मेरे निप्पल को मुँह में लिए मिलये ही मुस्कुराया, और फिर रश्मि को कुछ बोला। ज़रूर उसने उसको मेरे स्तन पीने को कहा होगा क्योंकि अगले ही पल रश्मि ने मेरे निप्पल को अपने मुँह में रख लिया। 

रश्मि के मुँह की गर्मी का एहसास रूद्र से अलग था और बहुत अच्छा भी। कुछ देर उसने अपनी जीभ से उस पर दुलराया और फिर चूसना शुरू किया। मेरे दोनों निप्पल पूरी तरह से कड़े हो गए थे, अतः रश्मि को वह पूर्ण सुगमता से उपलब्ध हो गया। रश्मि निप्पल को मुँह में भरे हुए अपने दोनों हाथों से मेरे स्तन को धीरे धीरे दबाने और सहलाने लगी।

"तुमको यह पसंद है?" रश्मि बिना निप्पल को छोड़े मुस्कुराई। "जब तक मन करे, पियो" मैंने कहा। यह सीन बड़ा ही हास्यास्पद था – मेरे दोनों स्तनों से दोनों इस प्रकार चिपके थे जैसे अबोध बच्चे! कुछ देर चूसने के बाद रूद्र ने मेरे स्तन को छोड़ दिया और मेरे पीछे जा कर मेरी चड्ढी उतारने लगा। एक तरीके से यह सही भी था – हम तीनों में सिर्फ मैं ही थी, जिसने कुछ भी पहन रखा था। मैंने भी अपने पैर इधर उधर उठा कर उसकी मदद करी – अब हम तीनों ही पूर्ण निर्वस्त्र हो गए। 

मैं तो एक समलैंगिक हूँ, और जब रश्मि जैसी सुन्दर, सेक्सी लड़की मेरे सामने इस प्रकार रहे, तो मेरा मन भी कुछ तो करने का बनेगा ही। मुझे यह नहीं मालूम था की हम तीनों की इस कामुक क्रिया की निष्पत्ति कैसे होगी, लेकिन उसके बारे में कुछ सोचना भी बेकार था। मैंने रश्मि के मुख से अपना स्तन मुक्त कर उसको पीछे ही तरफ धकेला, जिससे वह रेत पर पीठ के बल गिर गयी। मैंने कुछ पल उसको निहारा, फिर अपना चेहरा रश्मि के पास ला कर अपने होंठ उसके होंठो से सटा दिए। तुरंत ही मुझे दो अत्यंत कोमल होंठो का स्वाद मिलने लगा।

मैं नहीं चाहती थी की रश्मि इस नए अनुभव से डर जाए या घबरा जाए, इसलिए मैंने उसके होंठों पर हलके हलके कई चुम्बन जड़ दिए। मैंने देखा की रश्मि बुरा नहीं मान रही हैम तो थोड़ी और तेज़ी और जोश के साथ उसको चूमना आरम्भ कर दिया। मैंने उसके दोनों गाल अपने हाथो में लेकर से थोडा दबा दिया, जिससे उसके होंठ खुल गए। मैंने अपनी जीभ रश्मि के मुँह में डाल कर अन्दर का जायजा लेना और चूसना शुरू कर दिया।
 
मैंने एक हाथ उसके गाल से हटाया तो रश्मि का मुँह फिर से बंद हो गया – हो सकता है की उसको मेरा इस तरह से चूमना पसंद न आया हो। खैर, मुझे भी उसके स्तनों का स्वाद चाहिए था – मेरा हाथ इस सामय उसके एक स्तन पर टिका हुआ था, और उसको धीरे धीरे दबा रहा था। अब एक साथ ही उसके होंठों और दोनों स्तनों का मर्दन आरम्भ हो गया। रश्मि का पूरा शरीर पहले से ही कामोन्माद के कारण काफी संवेदनशील हो गया था, और अब इस नए प्रहार के कारण अब वह असहज होने लगी। उसके मुँह से कराहें निकलने लगीं। फिर भी, मैंने उसके दोनों निप्पल बारी बारी से अपने मुँह में भर कर चूसना आरम्भ कर दिया। वो अब बहुत कड़े हो गए। 

फिर मैंने उसकी योनि पर अपनी उंगलियाँ सटा दी, और उसे मसलने लगी। मेरी खुद की हालत कोई ख़ास अच्छी नहीं थी – रश्मि और रूद्र के मैथुन, मेरी खुद की यौन भ्रान्ति (पता नहीं की मैं समलैंगिक हूँ या इतरलैंगिक?), और अब रश्मि जैसी सुंदरी को इस प्रकार दुलारने से मेरी खुद की योनि भी काम रस टपकाने लगी। मुझ पर भी रश्मि के सामान ही मदहोशी छा रही थी। मुझे रश्मि की योनि का स्वाद भी लेना ही था – मैंने उसके पैरों के बीच में अपना मुँह लाकर उसकी योनि से सटा दिया और जीभ से उसका रस चाटने लगी। रश्मि की योनि से बहुत सारा तरल निकल रहा था – उसकी योनि का रस, जिसमे रूद्र का वीर्य भी सम्मिश्रित था! अनोखा स्वाद! 

मुझे अचानक ही अपने पीछे एक और जिस्म की अनुभूति हुई – किसी ने मेरे कंधे को पकड़ कर खुद को मुझसे चिपका लिया था। और उसी के साथ ही मुझे मेरी योनि की दीवार पर अभूतपूर्व खिंचाव महसूस हुआ। मुझे समझ आ गया की क्या हुआ है – रूद्र का लिंग मेरी योनि की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर घुस रहा था। थ्रीसम का ऐसा अनुभव तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

जैसे ही उसका लिंग मेरी योनि में आगे बढ़ा मेरे मुँह से एक गहरी आआअह्ह्ह निकल पड़ी। उसका लिंग मेरी योनि की गहराइयों में उतर गया, और फिर बाहर भी निकल पड़ा – लेकिन मेरे राहत की एक भी सांस लेने से लहले ही वह वापस घुस गया। मुझे यकीन हो गया की रूद्र मेरे साथ सम्भोग कर ही लेगा, लेकिन फिर भी मैंने उसको रोकने की एक आखिरी कोशिश करी।

“रूद्र.... आह्ह्ह! आई ऍम अ लेस्बियन!”

“हह हह हह ... ट्राई स्ट्रैट सेक्स वन्स। देन डिसाइड... ओके?”

फिर शायद उसको कुछ याद आया,

“आर यू सेफ? आई मीन...”

“यस... आह! आई ऍम सेफ! एंड आर यू?”

“यस! नो एस टी डी!” 

कह कर रूद्र ने धक्के लगाने आरम्भ कर दिए। क्या बताऊँ! उस वक्त मुझे ऐसा मज़ा आ रहा था जैसे की मैं आसमान मैं उड़ रही हूँ। मेरे मुँह में रश्मि की क्लिटोरिस थी, जिसको मैं अपनी जीभ से सहला रही थी और उधर मेरी योनि की कुटाई हो रही थी।

“आह ऊह! इट इस हर्टिंग! इट इस सो बिग! माई वेजाइना इस स्मार्टिंग! हाऊ डस शी टेक इट इन?” 

मैंने उसके आगे पीछे वाले धक्के से अपनी लय मिलानी शुरू कर दी। हर धक्के से उसका लिंग मेरी योनि के पूरी भीतर तक घुस जाता। वो जोर-जोर से मुझे भोगने लगा – और मैं रश्मि को भोगना भूल गई। वह मुझे पीछे से होकर मेरे स्तनों को दबोच दबोच निचोड़ रहा था। उसके रगड़ने से मेरे पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ने लगी। उसके जोरदार धक्के मुझे पागल बना रहे थे। कोई चार पांच मिनट तक वह मुझे ऐसे ही ठोंकता रहा - उसके धक्कों से मैं निढाल होकर पूरी तरह थक गई। फिर मुझे मेरी योनि में गरम गरम वीर्य की बूँदें गिरती महसूस हुई। कम से कम बीस साल बाद किसी पुरुष ने मुझे भोगा था – लेकिन ऐसा मज़ा मुझे पूरे जीवन में कभी नहीं आया।

हम तीनों बुरी तरह से थक कर वही गिर कर एक दूसरे की बाहों में कुछ देर लेटे रहे। और फिर सुस्ताने के बाद हमने कैमरे को ऑटो-मोड में सेट कर हम तीनों की वैसी ही नग्नावस्था में विभिन्न प्रकार की तस्वीरें खींची, एक दूसरे के गले लगे और फिर अपने कपड़े पहन कर वापस रिसोर्ट जाने के लिए तैयार हो गए। अगले दस मिनट में हम लोग वापस हेवलॉक द्वीप के लिए रवाना हो गए। 

जैसे जैसे हम लोग अपने रूम की तरफ आ रहे थे, मैंने देखा, की रश्मि का चेहरा उतरता जा रहा था। उसके चेहरे पर उदासी, गुस्सा, निराशा, खीझ, घृणा, और जुगुप्सा जैसे मिले जुले भाव आते और जाते जा रहे थे। उसके चेहरे को देख कर मेरे खुद के मजे का नशा पूरी तरह से उतर गया था और समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ! मैं जानना चाहता था की उसके मन में क्या चल रहा है, लेकिन उस समय मैंने खुद तो जब्त कर लिया और रूम तक पहुँचने तक का इंतज़ार किया। हम दोनों जैसे ही अन्दर आये रश्मि के सब्र का बाँध टूट गया, 

“आपका अपनी बीवी से मन भर गया?”

जैसे जैसे हम लोग अपने रूम की तरफ आ रहे थे, मैंने देखा, की रश्मि का चेहरा उतरता जा रहा था। उसके चेहरे पर उदासी, गुस्सा, निराशा, खीझ, घृणा, और जुगुप्सा जैसे मिले जुले भाव आते और जाते जा रहे थे। उसके चेहरे को देख कर मेरे खुद के मजे का नशा पूरी तरह से उतर गया था और समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ! मैं जानना चाहता था की उसके मन में क्या चल रहा है, लेकिन उस समय मैंने खुद तो जब्त कर लिया और रूम तक पहुँचने तक का इंतज़ार किया। हम दोनों जैसे ही अन्दर आये रश्मि के सब्र का बाँध टूट गया,

“आपका अपनी बीवी से मन भर गया?”

“क्या! ... आप ऐसे क्यों कह रही हैं, जानू?” मुझे तो जैसे काटो खून नहीं। 

“आप प्लीज सच सच बताइये... मैं बुरा नहीं मानूंगी! मुझसे आपका मन भर गया है न?”

“क्या बकवास कर रही हो?” 

“बकवास नहीं है! देखिये.... आपने मुझ पर पहले कभी भी गुस्सा नहीं किया.. और आज यह भी शुरू हो गया। क्या मैं आपके लिए ठीक नहीं हूँ?“ कह कर रश्मि सुबकने लगी।

“जानू, मैं आप पर नहीं, आपकी बात पर गुस्सा हो रहा हूँ! आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं? क्यों भरेगा मेरा मन आपसे? इसका तो सवाल ही नहीं उठता! आप यह सब क्या बातें कर रही हैं?” अब तक मेरी हवाइयां उड़ने लगी। 

“क्या सोच रही हैं आप? क्या चल रहा है दिमाग में? प्लीज बताइए न? ऐसे मत करिए मेरे साथ!” मैं गिड़गिड़ाया।

“आप वो मॉरीन के साथ .... कर रहे थे! अब मैं इसको क्या समझूं?”

“ओह गॉड! ... शिट! तो यह बात है!?” मैंने माथा पीट लिया।

“जानू! मैंने वो सब कुछ प्लान नहीं किया था - ऑनेस्ट! गॉड प्रोमिस! वो कुछ भी नहीं है! मॉरीन कोई भी नहीं है! मैंने मॉरीन को कुछ भी नहीं कहा – वो हम दोनों को सेक्स करते देख कर खुद भी उत्तेजित हो गई..... और इसलिए उसने आपके साथ...... दरअसल, आप दोनों को ऐसी हालत में देख कर मेरा खुद पर कोई काबू ही नहीं रहा। वह सब कुछ ऐसा लग रहा था जैसे की किसी ने मुझ पर सम्मोहन डाल दिया हो। सच में जानू! प्लीज... मुझ पर विश्वास करो!” मैंने अपनी तरफ से सफाई दी।

“आप दोनों ने मेरे साथ यह करने का प्लान किया था?”

“नहीं जानू! मैंने आपको कहा न! और तो और, मॉरीन एक लेस्बियन है ... मतलब वह आदमियों से नहीं, औरतों से सेक्स करती है। पहले तो हम दोनों को सेक्स करते देख कर, और फिर आपको देखकर ... आई मीन, आप इतनी सेक्सी हैं की वह अपने आपको रोक नहीं पाई।“

“तो आपने उसको मेरे साथ यह सब इसलिए करने दिया?”

“मैंने उसको यह सब करने को नहीं कहा था जानू! प्लीज बिलीव मी!!” मेरी दलील उलटी पड़ रही थी।

“तो इसका मतलब उसने मेरे साथ वह सब कुछ यूँ ही कर लिया?”

“हाँ!” मैंने अनिश्चय के साथ हामी भरी।

“और आपने उसको रोका भी नहीं?” रश्मि की आँखों से आंसू गिरने लगे।
 
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