hotaks444
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मेरे बस इतना ही बोलने की देर थी की रश्मि ने अपनी बाहें मेरी गर्दन पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर कर जोर से चूमने चूसने लगी। उसके ऐसा करते ही एक विस्फोट के साथ वीर्य का पहला खेप स्खलित हो गया और फिर उसके बाद ही ताबड़ तोड़ चार पांच बड़ी गोलिकाएं और निकलीं। रश्मि ने इस क्रिया के दौरान अपने कूल्हे चलाने जारी रखा। और मेरे स्खलन के कुछ ही देर बाद रश्मि का शरीर भी कुछ अकड़ा और एक बार फिर झटके खाते हुए वो भी शांत पड़ने लगी और मुझ पर निढाल होकर गिर गई। मेरा शरीर अभी भी उत्तेजना में कांप रहा था.. मैंने रश्मि को अपने में जोर से भींच लिया – कभी उसके होंठ चूमता, तो कभी गाल, तो कभी माथा! मेरी हरकतों पर मीठी मीठी सिसकियाँ निकल जातीं। इस अनोखे सम्भोग की संतुष्टि उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।
जब हमारी उत्तेजना का ज्वार कुछ थमा, तो मैंने कहा, “देखो न.. मैंने कहा था न की साँवली लड़कियाँ सेक्स में बहुत तेज़ होती हैं... और... गोरी लड़कियों को सिखाना पड़ता है! याद है?”
रश्मि को पहले कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर मेरा इशारा समझ कर मुस्कुरा दी। उसके गाल सेब के जैसे लाल हो गए।
प्रिय पाठकों, अगर आप मेरी माने, तो वैवाहिक जीवन का सुख तो यही है – हर पल बढ़ता पारस्परिक प्रेम और सामंजस्य, अपने जीवन की अंतरंगता को किसी और से ता-उम्र बांटना, सुखमय जीवन के सपने साथ में संजोना.. और संतुष्टि प्रदान करने वाली यौन क्रीड़ा! भला विवाह में इससे अधिक किसी को और क्या चाहिए? लोग-बाग़ दहेज़ मांगते हैं, खानदान मांगते हैं, होने वाले रिश्तेदारों में रुतबा मांगते हैं.. भला यह कोई शादी है? यह तो, आज कल वो कहते हैं न, सिर्फ और सिर्फ एक ‘अलायन्स’ है। अलायन्स... अरे हम लोग कोई राजे-रजवाड़े हैं क्या, जो राजनीतिक दृष्टि से सम्बन्ध बनाएँ? अलायन्स तो यही हुआ न? खैर... मेरी तो बस यही समझ है की शादी तो बस स्वयं के लिए करनी चाहिए!
लेकिन लोग बाग़ तो अपने माँ बाप का हवाला देते हैं.. मानों उनके लिए शादी कर रहे हैं। वह भाई! शादी के लड्डू खुद खाओ, और नाम माँ बाप का लगाओ! एक बार मैंने किसी लड़के के मुंह से सुना... वो लड़की वालो को कह रहा था, “जी मैं तो शादी अपनी माँ के लिए कर रहा हूँ... कोई ऐसी मिले जो उनका ख़याल रख सके! बहुत बीमार रहती हैं! कोई उनको अपना मान कर उनकी सेवा कर सके! बस! मेरी तो बस यही उम्मीद है लड़की से!”
मेरा उस लड़के से बस इतना ही कहना है की भाई, अगर अपनी माँ की सेवा करनी है तो तेरे खुद के हाथ-पैर टूट गए हैं क्या? कर भाई सेवा! बहुत पुण्य कमाएगा। माँ बाप की सेवा तो सबसे भला काम है जीवन का! लेकिन तू उस काम को करने के लिए किसी और की मदद क्यों चाहता है? खुद क्यों नहीं कर लेता? एक आया रख ले, किसी जानी मानी अच्छी एजेंसी से.. या फिर एक नर्स! फुल-टाइम के लिए! या फिर दोनों! यह उम्मीद करना की बीवी आकर तेरी अम्मा की सेवा करने लगेगी, न केवल गलत है, बल्कि मैं तो कहता हूँ की एक तरह का अत्याचार है! जो काम तू खुद नहीं कर पा रहा है, वो तू दूसरे से क्यों उम्मीद करता है?
पति पत्नी का साथ उम्र भर का होता है.. लेकिन वह उम्र भर तभी चलता है जब उन दोनों में एक दूसरे के लिए सम्मान, और प्रेम हो। सामंजस्य बैठाया जा सकता है.. लेकिन अगर यह दोनों सामग्री विवाह में न हो तो चाहे कितने भी मन्त्र फूंक लो, चाहे कितनी ही कुंडली का मिलान कर लो, और चाहे कितने ही ग्रह शांत करा लो, प्रलय तो निश्चित ही है!
ओह मैं भावनाओं की रौ में बह गया! माफ़ करना!!
सम्भोग की निवृत्ति के बाद हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपनी सफाई करी और फिर कपड़े बदल कर अपनी साइकिल उठा कर द्वीप के पश्चिम दिशा की तरफ चल दिए.. जिससे सूर्यास्त के दर्शन हो सकें। रश्मि ने मुझे बताया था की सूर्यास्त ऐसा सुन्दर हो सकता है, उसको मालूम ही नहीं था। पहाड़ों पर क्या सूर्योदय और क्या सूर्यास्त! सब एक जैसा ही दिखता है। हम दोनों जल्दी ही एक साफ़ सुथरे निर्जन बीच पर पहुँच गए.. ऐसा कोई निर्जन भी नहीं था.. कोई पांच छः जोड़े वही बैठे हुए थे, सूर्यास्त के इंतज़ार में।
रश्मि और मैं बाहों में बाहें डाल कर सुनहरी रेत वाले इस बीच के एक तरफ बैठ गए।
“जानू, मैं आपसे एक बात कहूं?”
“हाँ.. पूछो मत, बस कह डालो” मैंने रोमांटिक अंदाज़ में कहा।
“मैं आपके साथ ही रहना चाहती हूँ.... हनीमून के बाद भी।“
“हयं! तो और कहाँ रहने वाली थी? अरे भई, हम लोग हस्बैंड-वाइफ हैं.. साथ ही तो रहेंगे?”
“नहीं वो बात नहीं... बोर्ड एक्साम्स के लिए पढना भी तो है। इतने दिनों से कॉलेज नहीं गई हूँ.. और जो भी कुछ पढ़ा लिखा था, वो सब गायब है! हा हा!”
“हा हा! अच्छा, कब हैं एक्साम्स?”
“मार्च – अप्रैल के महीने में ही होंगे.. लेकिन आप कुछ न कुछ कर के मुझे अपने साथ रखिए न, प्लीज!”
“अरे! यह भी कोई कहने वाली बात है? एग्जाम तो वही जा कर देने होंगे... लेकिन उसके पहले के लिए एक काम तो कर ही सकते हैं.. आपके प्रिंसिपल से पूछ के ‘होम-स्कूल’ की अनुमति ले सकते हैं.. वो अलाऊ कर दें, तो फिर बस एग्जाम देने के लिए आपको मार्च में वापस जाना होगा... उतना तो ठीक है न? उसके बाद फिर से यहाँ? ओके?”
“हाँ... ठीक तो है... लेकिन हो जाएगा न?”
“अरे क्यों नहीं? मुझसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं क्या वहां? मैं कन्विंस कर लूँगा आपके प्रिंसिपल को! और जहाँ तक पढाई की बात है, हमारे पड़ोसी बहुत ही क्वालिफाइड हैं.. उनसे कह कर दिन में आपकी पढाई का इंतज़ाम कर दूंगा... कुछ कोर्स तो मैं ही पढ़ा सकता हूँ.. मुझे नहीं लगता कोई प्रॉब्लम होगी। क्या पता आप टापर हो जाएँ! हा हा!”
रश्मि मुस्कुराई।
“वैसे आप आगे क्या करना चाहती हैं? मेरा मतलब कैरियर के बारे में कुछ सोचा है? आप कह रही थी न.. हमारी सुहागरात को, की आप कुछ करना चाहती हैं.. कुछ बनना चाहती हैं?”
“करना तो चाहती हू, लेकिन क्या करूंगी.. कुछ मालूम नहीं..!”
“अच्छा, मैं आपसे कुछ सवाल पूछूंगा... आप सोच कर उसमें जो पसंद है बताइयेगा.. ओके?”
“ओके..”
“खूब पैसे चाहिए, की रुतबा?”
“उम्म्म्म...” रश्मि ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहा, “..आप!”
मैं मुस्कुराया, “खूब मेहनत या फिर आराम?”
“मेहनत.. लेकिन आपका साथ चाहिए।“
“ओके! नौकर, या अपना खुद का बॉस?”
“अपना खुद का..”
“नौकरी या बिजनेस...”
जब हमारी उत्तेजना का ज्वार कुछ थमा, तो मैंने कहा, “देखो न.. मैंने कहा था न की साँवली लड़कियाँ सेक्स में बहुत तेज़ होती हैं... और... गोरी लड़कियों को सिखाना पड़ता है! याद है?”
रश्मि को पहले कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर मेरा इशारा समझ कर मुस्कुरा दी। उसके गाल सेब के जैसे लाल हो गए।
प्रिय पाठकों, अगर आप मेरी माने, तो वैवाहिक जीवन का सुख तो यही है – हर पल बढ़ता पारस्परिक प्रेम और सामंजस्य, अपने जीवन की अंतरंगता को किसी और से ता-उम्र बांटना, सुखमय जीवन के सपने साथ में संजोना.. और संतुष्टि प्रदान करने वाली यौन क्रीड़ा! भला विवाह में इससे अधिक किसी को और क्या चाहिए? लोग-बाग़ दहेज़ मांगते हैं, खानदान मांगते हैं, होने वाले रिश्तेदारों में रुतबा मांगते हैं.. भला यह कोई शादी है? यह तो, आज कल वो कहते हैं न, सिर्फ और सिर्फ एक ‘अलायन्स’ है। अलायन्स... अरे हम लोग कोई राजे-रजवाड़े हैं क्या, जो राजनीतिक दृष्टि से सम्बन्ध बनाएँ? अलायन्स तो यही हुआ न? खैर... मेरी तो बस यही समझ है की शादी तो बस स्वयं के लिए करनी चाहिए!
लेकिन लोग बाग़ तो अपने माँ बाप का हवाला देते हैं.. मानों उनके लिए शादी कर रहे हैं। वह भाई! शादी के लड्डू खुद खाओ, और नाम माँ बाप का लगाओ! एक बार मैंने किसी लड़के के मुंह से सुना... वो लड़की वालो को कह रहा था, “जी मैं तो शादी अपनी माँ के लिए कर रहा हूँ... कोई ऐसी मिले जो उनका ख़याल रख सके! बहुत बीमार रहती हैं! कोई उनको अपना मान कर उनकी सेवा कर सके! बस! मेरी तो बस यही उम्मीद है लड़की से!”
मेरा उस लड़के से बस इतना ही कहना है की भाई, अगर अपनी माँ की सेवा करनी है तो तेरे खुद के हाथ-पैर टूट गए हैं क्या? कर भाई सेवा! बहुत पुण्य कमाएगा। माँ बाप की सेवा तो सबसे भला काम है जीवन का! लेकिन तू उस काम को करने के लिए किसी और की मदद क्यों चाहता है? खुद क्यों नहीं कर लेता? एक आया रख ले, किसी जानी मानी अच्छी एजेंसी से.. या फिर एक नर्स! फुल-टाइम के लिए! या फिर दोनों! यह उम्मीद करना की बीवी आकर तेरी अम्मा की सेवा करने लगेगी, न केवल गलत है, बल्कि मैं तो कहता हूँ की एक तरह का अत्याचार है! जो काम तू खुद नहीं कर पा रहा है, वो तू दूसरे से क्यों उम्मीद करता है?
पति पत्नी का साथ उम्र भर का होता है.. लेकिन वह उम्र भर तभी चलता है जब उन दोनों में एक दूसरे के लिए सम्मान, और प्रेम हो। सामंजस्य बैठाया जा सकता है.. लेकिन अगर यह दोनों सामग्री विवाह में न हो तो चाहे कितने भी मन्त्र फूंक लो, चाहे कितनी ही कुंडली का मिलान कर लो, और चाहे कितने ही ग्रह शांत करा लो, प्रलय तो निश्चित ही है!
ओह मैं भावनाओं की रौ में बह गया! माफ़ करना!!
सम्भोग की निवृत्ति के बाद हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपनी सफाई करी और फिर कपड़े बदल कर अपनी साइकिल उठा कर द्वीप के पश्चिम दिशा की तरफ चल दिए.. जिससे सूर्यास्त के दर्शन हो सकें। रश्मि ने मुझे बताया था की सूर्यास्त ऐसा सुन्दर हो सकता है, उसको मालूम ही नहीं था। पहाड़ों पर क्या सूर्योदय और क्या सूर्यास्त! सब एक जैसा ही दिखता है। हम दोनों जल्दी ही एक साफ़ सुथरे निर्जन बीच पर पहुँच गए.. ऐसा कोई निर्जन भी नहीं था.. कोई पांच छः जोड़े वही बैठे हुए थे, सूर्यास्त के इंतज़ार में।
रश्मि और मैं बाहों में बाहें डाल कर सुनहरी रेत वाले इस बीच के एक तरफ बैठ गए।
“जानू, मैं आपसे एक बात कहूं?”
“हाँ.. पूछो मत, बस कह डालो” मैंने रोमांटिक अंदाज़ में कहा।
“मैं आपके साथ ही रहना चाहती हूँ.... हनीमून के बाद भी।“
“हयं! तो और कहाँ रहने वाली थी? अरे भई, हम लोग हस्बैंड-वाइफ हैं.. साथ ही तो रहेंगे?”
“नहीं वो बात नहीं... बोर्ड एक्साम्स के लिए पढना भी तो है। इतने दिनों से कॉलेज नहीं गई हूँ.. और जो भी कुछ पढ़ा लिखा था, वो सब गायब है! हा हा!”
“हा हा! अच्छा, कब हैं एक्साम्स?”
“मार्च – अप्रैल के महीने में ही होंगे.. लेकिन आप कुछ न कुछ कर के मुझे अपने साथ रखिए न, प्लीज!”
“अरे! यह भी कोई कहने वाली बात है? एग्जाम तो वही जा कर देने होंगे... लेकिन उसके पहले के लिए एक काम तो कर ही सकते हैं.. आपके प्रिंसिपल से पूछ के ‘होम-स्कूल’ की अनुमति ले सकते हैं.. वो अलाऊ कर दें, तो फिर बस एग्जाम देने के लिए आपको मार्च में वापस जाना होगा... उतना तो ठीक है न? उसके बाद फिर से यहाँ? ओके?”
“हाँ... ठीक तो है... लेकिन हो जाएगा न?”
“अरे क्यों नहीं? मुझसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं क्या वहां? मैं कन्विंस कर लूँगा आपके प्रिंसिपल को! और जहाँ तक पढाई की बात है, हमारे पड़ोसी बहुत ही क्वालिफाइड हैं.. उनसे कह कर दिन में आपकी पढाई का इंतज़ाम कर दूंगा... कुछ कोर्स तो मैं ही पढ़ा सकता हूँ.. मुझे नहीं लगता कोई प्रॉब्लम होगी। क्या पता आप टापर हो जाएँ! हा हा!”
रश्मि मुस्कुराई।
“वैसे आप आगे क्या करना चाहती हैं? मेरा मतलब कैरियर के बारे में कुछ सोचा है? आप कह रही थी न.. हमारी सुहागरात को, की आप कुछ करना चाहती हैं.. कुछ बनना चाहती हैं?”
“करना तो चाहती हू, लेकिन क्या करूंगी.. कुछ मालूम नहीं..!”
“अच्छा, मैं आपसे कुछ सवाल पूछूंगा... आप सोच कर उसमें जो पसंद है बताइयेगा.. ओके?”
“ओके..”
“खूब पैसे चाहिए, की रुतबा?”
“उम्म्म्म...” रश्मि ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहा, “..आप!”
मैं मुस्कुराया, “खूब मेहनत या फिर आराम?”
“मेहनत.. लेकिन आपका साथ चाहिए।“
“ओके! नौकर, या अपना खुद का बॉस?”
“अपना खुद का..”
“नौकरी या बिजनेस...”