hotaks444
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भानु वाकई सीरियस थी। मुझे शुरू शुरू में लगा की वो शायद मजाक कर रही थी। लेकिन जब उसने मेरे पास आकर मेरे होंठों पर अपने होंठ सटाए तो मुझे वाकई एक करंट सा लगा। कुछ देर ऊपर से ही छोटे छोटे चुम्बन लेने के बाद वो उन्हे चूसने लगी। मैंने भी अपनी तरफ से जैसा हो सका, सहयोग किया। कुछ देर चूमने के बाद भानु का मेरे स्तनों पर आ गया और वो उनको टी-शर्ट के ऊपर से ही सहलाने लगी। मैं रोमांचित हो उठी.. दिमाग में पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। सच में, मेरे शरीर में एक अनोखी सी आग आग सुलग गई। भानु मुझे अपनी बाहों में लिए रह रह कर मेरे गाल, होंठ, आंखें, नाक, गर्दन और स्तनों पर चुम्बन देने लगी। एक बारगी कामुक उन्माद में मेरा मुँह खुल गया, तो उसने मौका पाते ही अपने होंठों से वहाँ हमला कर दिया, और अपनी जीभ मेरे मुंह के अन्दर डाल कर मेरी जीभ से खिलवाड़ करने लगी! मैं उचक कर अलग हो गई।
मैं : “ओए! छी! कैसा कैसा तो लगा! गीला गीला!”
भानु : “तुझे अच्छा नहीं लगा?”
मैं : “न रे! कैसा अजीब सा लग रहा था। अब बस कर..।“
भानु : “बस कैसे करूँ मेरी जान? अब तो मुझसे भी रहा नहीं जा रहा है..”
मैं : “हम्म.. तो क्या किया जाय?”
भानु : “तेरा तो नहीं मालूम.. लेकिन मेरा तो अब इन कपड़ों के अन्दर रहना मुश्किल है..”
मैं (हँसते हुए) : “तो बाहर आ जा.. मेरे अलावा कौन है यहाँ तुझे देखने वाला?”
भानु : “अरे ऐसे नहीं! तू उतार! मैं तेरा उतार दूँगी!”
कहते हुए वो फिर से मुझसे लिपट कर मेरे होंठ चूसने लगी और टी-शर्ट के निचले हिस्से को पकड़ कर मेरे शरीर से हटाने लगी। मैं भी उसके कुर्ते के बटन खोल कर उसके कुरते को उतारने लगी। जैसा की मैंने पहले भी बताया है, मैंने टी-शर्ट के नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था, लिहाजा, उसके उतरते ही मैं अर्धनग्न भानु के सामने सम्मुख हो गयी। भानु का कुर्ता भी उतरा – लेकिन उसने अभी भी ब्रा पहनी हुई थी।
भानु : “अरे भगवान्! नीलू.. तेरी चून्चियां क्या मस्त हैं! कितनी प्यारी प्यारी! देख न! कैसे लाइट मार रही हैं!”
मैं : “हट्ट बेशरम! कैसे बोल रही है!”
भानु : “अरे मैं सच कह रही हूँ..” कहते हुए उसने मेरे हाथ अपने स्तनों पर जमाए, और खुद मेरे दोनों स्तनों को दबाने लगी। मेरी तो जान ही निकल गयी।
मैं : “आऊऊ.. आह्ह नहीं.. धीरे अआह्ह्ह.. धीरे!”
भानु (अनसुना करते हुए) : “नीलू, तू भी उतार इसको और खेलो..”
मैंने जैसे तैसे उसके प्रहार झेलते हुए उसकी ब्रा उतारी। तुरंत ही उसके उन्नत वक्ष मेरे सामने उपस्थित थे। मैं सचमुच में उसके स्तन देखती रह गई। कितने प्यारे स्तन! बिलकुल खिलौनों के समान! बड़े-बड़े, शरीर के बाकी हिस्सों जैसा ही साँवला सलोना रंग, उत्तेजना से ओत-प्रोत लम्बे तने हुए गहरे सांवले चूचक, और उसी से मिलता जुलता गोल घेरा। मुझसे रहा नहीं गया.. और मैंने भी अपने हाथ उन पर जमा दिए।
मैं : “हाय रे मेरी भानु रानी! तेरे संतरे कितने मस्त हैं! ठोस.. मुलायम.. और रसीले... दोनों के दोनों! मैं खा लूँ?”
भानु : “नेकी और पूछ पूछ?”
मैंने उसकी इस बात पर उसको सोफे पर ही लिटा दिया, और खुद भी उसके बराबर लेट गई। एक तरीके का आलिंगन – करवट में मेरा दाहिना स्तन उसके बाएं स्तन से टकरा रहा था। मैंने उसकी पीठ और नितम्ब सहलाते हुए उसके एक निप्पल पर अपनी जीभ फिराई। दीदी की याद पुनः हो आई। मैंने पूरा निप्पल अपने मुंह में भरा, और चूसना शुरू किया। मज़ा आ गया। भानु की सिसकी छूट गयी। लेकिन फिर भी उसने मेरे सर को पकड़ कर अपने स्तन में भींच सा लिया।
भानु : “आह्ह्ह्ह! इस्स्स्स... नील्लू.. आह्ह्ह! धीरे... ऊफ़.. मज़ा आ गया! आह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है। कस कर चूसो न... उफ्फ्फ़! आआऊऊ ... काटो मत प्लीज। आराम से मेरी जान। अआह्ह्ह.. अरुण सुनेगा, तो जल मरेगा! ऊऊह्ह्ह.. मजे से चूसो! ओह्ह्ह!”
मैंने कोई चार-पांच मिनट तक उसके दोनों स्तनों को बारी बारी से चूसा। एक पल मुझे लगा की भानु का शरीर थरथरा रहा है.. मुझे समझ में आ गया की उसने अपना कामोत्कर्ष प्राप्त कर लिया है, इसलिए जब तक वो शांत न हो जाए, तब तक मैं चूसती रही। निवृत्त होने के बाद भानु भी अब मेरे स्तन दबाने और चूसने लगी।
मैं : “भानु, तेरा मन नहीं हुआ की और कुछ भी किया जाय..?”
भानु : “मन क्यों नहीं हुआ! मैंने बताया न.. बड़ी मुश्किल से भागी वहाँ से.. कोई और जगह होती, तो आज तो अरुण ने मेरा काम तमाम कर दिया होता! खैर, मेरी छोड़.. तू बता, तेरा दिल भी तो तेरे जीजू से लगा हुआ है.. तेरा दिल नहीं चाहता?”
मैं : “दिल तो बहुत चाहता है! मैंने उनका और दीदी का खेल देखा है.. और मुझे मालूम है सब कुछ। लेकिन डर लगता है।“
भानु : “डर? किस बात का?”
मैं : “इस बात का की कहीं मैं उनको चोट न पहुंचा दूं! वो अभी तक दीदी के जाने का गम नहीं मिटा पाए हैं.. कहीं उनको ऐसा न लगे की मैं दीदी की याद मिटाना चाहती हूँ.. उनकी जगह लेना चाहती हूँ..”
भानु : “लेकिन ऐसा तो नहीं है न! तू तो उनसे प्यार करती है!”
मैं : “हाँ! प्यार तो मैं बहुत करती हूँ.. जब से उनको देखा है तब से! बस, प्यार के रूप बदलते गए!”
भानु : “तुम्हारी जैसी लड़की भी तो बड़े नसीब से मिलती है। ये एहसास करा दो अपने जीजू को! प्यार करती हो, तो बता भी दो! क्या बिगड़ेगा भला!”
फिर कुछ देर बाद अचानक ही बोलती है, “एक काम कर.. एक रात को चांस ले। तू पूरी नंगी हो कर उनके रूम में चली जा.. खुद बा खुद लाइन पर आ जायेंगे वो.. जब खुद विश्वामित्र मेनका के सामने मेमना बन गए, तो वो क्या चीज़ हैं?”
मैं : “बस कर.. अपने आइडियाज अपने पास ही रख.. अब तेरा हो गया हो तो छोड़ मेरे दुद्धू..”
भानु : “छोड़ने का मन ही नहीं करता। नीलू मेरी जान.. सच सच बताना, कहाँ छुपा रखी थी यह प्यारी प्यारी चून्चियां?”
उसकी इतनी बेशर्मी भरी बात सुन कर मैं पुनः शरमा गयी।
वो फिर मेरे स्तन जोर जोर से चूसने लगी और उसके कारण उठने वाले आनंद के उन्माद में मैं पागल होने लगी। इसी बीच उसने मेरा पजामा भी नीचे सरकाना शुरू कर दिया। मैं चौंक गई, “अआह्ह्ह.. ओए.. ये क्या कर रही है?”
“नीलू.. तेरे यार से पहले मैं देख लूंगी, तो क्या हो जाएगा?”
अब वो पूरी तरह निर्लज्ज हो कर मुझे निर्वस्त्र करने पर उतारू हो गई थी। हलके फुल्के कपड़े उतारने में कितनी ही देर लगती है.. कुछ ही क्षणों में मैं पूर्ण नग्न उसके सामने थी। शर्म के कारण मैंने अपनी दोनों टांगें और पैर एकदम सटा लिए, जिससे भानु मेरी योनि ठीक से न देख सके। कैसी मूर्खता.. निर्वस्त्र हो जाने पर भी क्या छुपना है भला! भानु न जाने कहाँ कहाँ से सीख कर आई है (और कहाँ से सीखी होगी?) लेकिन वो अपनी उँगलियों से मेरी योनि पर मालिश जैसी करने लगी, और साथ ही मेरे स्तन भी पी रही थी। ऐसे में भला कितनी देर रहा जाए? मैं वैसे ही उत्तेजित थी, अब अतिउत्तेजित हो गयी और बिना सोचे मैंने अपने दोनों पैर खोल दिए। भानु अब मेरी योनि एकदम साफ़ साफ़ देख सकती थी।
भानु मेरी योनि की दरार पर अपनी उंगली फिराते हुए बोली, “सच नीलू.. जिसे तू ये खज़ाना देगी न, वो धन्य हो जाएगा! कैसी पतली पतली फांकें हैं.. और गोरी भी! बस... ये बाल साफ़ करवा ले.. एकदम मस्त लगेगी!”
वो हल्के हलके हाथों से मेरी योनि को सहलाते हुए, मेरे उसके भगांकुर को रगड़ने लगी, मैं न चाहते हुए भी जोर जोर से आहें भरने लगी! उन्माद की बेचैनी के मारे मैं अपना सिर इधर-उधर करने लगी। लगा की साँसे रुक रुक कर चल रही हैं.. वाकई, कोई और छूता है, तो बहुत ही अलग एहसास होता है। भानु न जाने कब तक मेरी योनि को इस प्रकार रगडती रही, फिर अचानक ही उसने मेरे छिद्र में अपनी उंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगी। इस प्रहार को मैं नहीं सह पाई, और देखते ही देखते वह दबी घुटी आहें भरते हुए स्खलित हो गई। उसी उन्माद में मैं उठ कर जोर से भानु से लिपट गई। जब वासना का ज्वार थमा, तो मैंने देखा की सोफे के गद्दी पर मेरी योनि के नीचे की जगह गीली हो गई थी। न जाने क्यों मेरी आँखों में आँसू आ गए। भानु बिना कुछ कहे मुझसे लिपटी रही।
जब हम दोनों सहेलियां संयत हो कर एक दूसरे से अलग हुईं, तो भानु ने कहा, “नीलू रानी.. चल, तेरी चूत से बाल निकलवाते हैं.. ऐसा चिकना व्यंजन देख कर तेरे जीजू की भूख बढ़ जायेगी!”
मैंने काफी देर न नुकुर की, और नाराज़ होने का नाटक किया, लेकिन कौन लड़की सुन्दर नहीं दिखना चाहती? और कौन लड़की अपने प्रियतम को रिझाना नहीं चाहती? हम दोनों ने अपनी साफ़ सफाई करी, कपड़े पहने और बाहर चल दिए।
भानु मुझे एक वैक्सिंग सैलून लेकर गयी। मैं कभी कभार ब्यूटी पार्लर जाती हूँ, और शरीर की वैक्सिंग भी करवाती हूँ। वैक्सिंग करने में दर्द अधिक हो सकता है, बनिस्बत शेविंग जैसे उपायों के! लेकिन अनगिनत स्त्रियाँ आज कल वैक्सिंग ज्यादा करवाती हैं, क्योंकि उसके परिणाम कई कई सप्ताह तक रह सकते हैं। खास तौर पर गर्मी के मौसम में, जब शेविंग करने के एक-दो दिनों के अन्दर ही छोटे-छोटे बाल आना शुरू हो जाते हैं। वो अटपटा भी लगता है, और मेहनत भी बेकार जाती है। ऐसे में वैक्सिंग लंबे समय तक अनचाहे बालों से निजात दिलाता है। तो कहने का मतलब, मुझे भी अच्छा खासा अनुभव हो गया था अब तक! लेकिन आज कुछ अनोखा होना था। जब योनि और गुदा जैसे अति-संवेदनशील हिस्सों के बाल वैक्सिंग के द्वारा निकलवाए जाते हैं, तो इसको बिकिनी अथवा ब्राज़ीलियन वैक्सिंग करवाना कहते हैं। यह सैलून थोड़ा अप-मार्केट था.. बहुत ही साफ सुथरा और शांत! मुझे यहाँ आने से पहले डर लग रहा था की योनि पर से बाल नोचे जाने पर तो बहुत दर्द होगा, लेकिन यहाँ आ कर उम्मीद बंधी की सब ठीक हो जाएगा। भानु ने बताया की वो अक्सर बिकिनी वैक्सिंग करवाती है, और इसमें डरने जैसी कोई बात नहीं है। मुझे इंतज़ार नहीं करना पड़ा – वैक्सर मुझे एक रोशनी-युक्त छोटे कमरे में ले गई – इसमें कोई खिड़की नहीं थी, और मधुर संगीत भी बज रहा था। उसने मुझे एक टेबल पर लेटने को कहा – वो टेबल भी काफी साफ़ थी, और उस पर एक कागज़ की परत चढ़ी हुई थी.. जैसे कोई अस्पताल हो।
“आप अपनी पैन्ट्स उतार कर इधर लेट जाइए.. सर उधर रख कर..” उसने कहा।
“... और अंडरवियर?”
“आप बिकिनी वैक्सिंग करवाने आई हैं न?”
“हाँ.. पहली बार! इसलिए डर लग रहा है..”
“ओके! डरने जैसी कोई बात नहीं है.. और हाँ, अंडरवियर भी..”
मैंने अनिश्चित होकर अपनी चड्ढी उतार दी, और डरते हुए उस टेबल पर लेट गयी। वैक्सर मुझे बहलाने के लिए मुझसे बात करने लगी (आप यहाँ की लगती नहीं.. कहाँ से हैं? क्या कर रही हैं? कहाँ रहती हैं.. इत्यादि)।
खैर, बिकिनी वैक्सिंग के लिए वैक्सर को अपने गुप्तांगों में ज्यादा से ज्यादा पैठ देने के लिए अपनी जांघ को ऊपर की तरफ मोड़ कर और फैला कर रखना होता है... ठीक वैसे ही जैसे सम्भोग के समय लड़की लेटती है.. या लगभग वैसा ही! अब ऐसी दशा में कोई कैसे आराम से लेट सकता है? खुली हुई, पूर्णतः प्रदर्शित योनि, खूब सारी रौशनी, और एक अजनबी... न जाने भानु कैसे कह रही है की इतना खराब नहीं होता! झूठ कह रही है! मुझे तो लग रहा है की यह सब बहुत देर तक चलने वाला है.. अपने पैर हवा में उठाना, और अपने शरीर के उस भाग में किसी अजनबी की उंगलियाँ महसूस करना जहाँ अपने कभी सोचा भी ना हो, की कोई छुएगा...
खैर! अब तो भगवान् ही बचाए!
यहाँ इस्तेमाल होने वाला वैक्स कुछ अलग था। यह जल्दी सूख जाता है.. मेरा मतलब बहुत जल्दी। वैक्सर इसको लगाती हैं, और लगभग तुरंत ही यह सूख जाता है। यहाँ तक तो ठीक है, लेकिन जान निकलती है जब वो इसको एक झटके के साथ शरीर से अलग करती है। गनीमत यह थी की वो वैक्स की हुई जगह पर अपने हथेली से थोड़ा दबाव डालती है.. इससे चुभन और दर्द कुछ कम हो जाता है। यदि वो ऐसे न करती तो शायद मैं बेहोश ही हो जाती! कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
अब मुझे यह तो नहीं पता की ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली सारी महिलाएं बातूनी होती हैं या वो मुझको कुछ ख़ास ही स्वान्त्वाना दे रही थी, लेकिन अगले एक घंटे तक, जब मैं सिर्फ चीख, चिल्ला और दर्द बर्दाश्त कर रही थी, वो वैक्सर लगातार अपनी ही बातें करने में लगी हुई थी।
“आप पहली बार करवा रही हैं न, इसलिए दर्द तो ज़रूर होगा।“
‘कमीनी.. अभी तो कह रही थी की डरने वाली कोई बात नहीं है..!’
“बाल कुछ छोटे काट कर आती तो कम दर्द होता..”
‘माफ़ कर दो मालकिन..’
“आपको पता है.. अभी कल ही हमारे यहाँ एक दुल्हन आई थी यह वैक्सिंग कराने। कह रही थी की उसके होने वाले पति को सब चिकना चिकना चाहिए था.. हे हे हे!”
“आअह्ह्ह्ह... ह्म्म्म..”
“आपकी भी शादी होने वाली है क्या?”
“इह.. आह.. नहीं.. ऐसे ही..”
“ओह!”
न जाने क्या समझी वो! वैसे ज्यादातर लड़कियाँ तो इसीलिए बिकिनी वैक्सिंग करवाती हैं जब उनको यौन क्रिया करनी होती है.. बिलकुल वह भी यही समझी होगी। वैसे, मन में मेरे भी तो यही था!
“आप तो उससे ज्यादा हिम्मती हैं... उसकी तो चीख चिल्लाहट के साथ साथ कुछ पेशाब भी निकल गयी...”
‘भानु की बच्ची! ठहर.. तेरी खैर नहीं!’
उसने जांघों के ऊपरी हिस्से से शुरू होते हुए योनि तक ऐसे ही वैक्स किया। दर्द भी इसी प्रकार से बढ़ता रहा। योनि तक आते आते दर्द असहनीय हो गया! देखने में तो यहाँ के बाल तो पूरी तरह से बेकार लगते हैं। लेकिन जो दर्द मुझे महसूस हुआ, उससे तो यही लगता है की जघन क्षेत्र के बाल निकालने नहीं चाहिए! उनका कोई तो उपयोग होगा.. पता नहीं! खैर! अच्छी बात यह थी की यह महिला लगातार मुझसे बात कर रही थी.. इससे मेरा ध्यान अपने दर्द से काफी हट सा गया था।
लेकिन इतना होने के बावजूद, परेशानी तो होती ही है। वातानुकूलन चल रहा था, लेकिन फिर भी मुझे पसीने छूट रहे थे। ऐसे की जैसे अभी दौड़ कर आई हूँ! हाथ, चेहरा, छातियाँ.. सब जगह पसीना! और फिर यह नोचना खसोटना बहुत ही अन्तरंग स्थान पर होने लगा – योनिमुख के बेहद समीप! एक बारगी मन में आया की यह कमीनी अपनी एक उंगली भी अन्दर घुसेड़ देती.. कम से कम ध्यान हट जाता। वो तो जल्दी ही कर रही होगी, लेकिन मुझे लग रहा था की न जाने कितनी देर से यह नोच खसोट चल रही है।
अंततः योनि के ठीक बीच पर वैक्स लगा, और इससे पहले की मैं खुद को तैयार कर पाती, उसने उसे तेजी से उखाड़ दिया। दर्द के अतिरेक से मेरी आँखों में आंसू भर गए। मन हुआ की फूट फूट कर रो दूं। लेकिन जैसे तैसे खुद को ज़ब्त किया।
“वैरी गुड हनी! यू आर सो ब्रेव!! अब पीछे भी कर लें?”
भानु ने कहा था की पीछे वैक्सिंग करने में दर्द नहीं होता। एक तरह से सच ही था – जब पहले ही किसी लड़की की योनि और भगनासे को नोच लिया गया हो, उसको और क्या दर्द महसूस होगा? दर्द क्या.. पहले की तकलीफ़ के आगे यह तो जैसे बगीचे की सैर जैसा लगा! खैर, जैसे तैसे मेरी वैक्सिंग ख़तम हो ही गयी। उस वैक्सर ने वैक्सिंग ख़तम होते ही किसी तरह का लोशन लगा दिया और अपने दराज से एक दर्द निवारक गोली भी दी।
फिर वो मुझे एक आदमकद आईने के पास ले गयी और मुस्कुराते हुए बोली, “देख लीजिये... अपनी चूत को ध्यान से...”
मैंने देखा और अपनी योनि को ऐसे नंगा देख कर खुद ही शर्म से पानी पानी हो गई... मुय्झे समझ नहीं आया की क्या करूँ, बस उस वैक्सर के गले लग गई, और उसको दोनों गालो पर चूम कर बोली, “यू आर ग्रेट... यू हैव डन अ वंडरफुल जॉब...!”
कुछ देर वहाँ बैठने के बाद मैं भानु के साथ बेढंगी चाल चलती हुई घर तक पहुंची। घर तक आते आते दर्द काफी कम हो गया, और मैं ठीक महसूस करने लगी। बाहर किसी होटल जाने के बजाय घर पर ही खाना मंगाने का निश्चय किया था, यह सोच कर की ऐसे बेढंग चाल चलता हुआ देख कर न जाने लोग क्या सोचेंगे! खैर, इतने दर्द झेलने के बावजूद मुझे साफ़ और चिकना होने का एहसास बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे बहुत ख़ुशी मिल रही थी, और एक तरह से वो मेरा प्रतिष्ठा वाला पल भी था।
मैं : “ओए! छी! कैसा कैसा तो लगा! गीला गीला!”
भानु : “तुझे अच्छा नहीं लगा?”
मैं : “न रे! कैसा अजीब सा लग रहा था। अब बस कर..।“
भानु : “बस कैसे करूँ मेरी जान? अब तो मुझसे भी रहा नहीं जा रहा है..”
मैं : “हम्म.. तो क्या किया जाय?”
भानु : “तेरा तो नहीं मालूम.. लेकिन मेरा तो अब इन कपड़ों के अन्दर रहना मुश्किल है..”
मैं (हँसते हुए) : “तो बाहर आ जा.. मेरे अलावा कौन है यहाँ तुझे देखने वाला?”
भानु : “अरे ऐसे नहीं! तू उतार! मैं तेरा उतार दूँगी!”
कहते हुए वो फिर से मुझसे लिपट कर मेरे होंठ चूसने लगी और टी-शर्ट के निचले हिस्से को पकड़ कर मेरे शरीर से हटाने लगी। मैं भी उसके कुर्ते के बटन खोल कर उसके कुरते को उतारने लगी। जैसा की मैंने पहले भी बताया है, मैंने टी-शर्ट के नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था, लिहाजा, उसके उतरते ही मैं अर्धनग्न भानु के सामने सम्मुख हो गयी। भानु का कुर्ता भी उतरा – लेकिन उसने अभी भी ब्रा पहनी हुई थी।
भानु : “अरे भगवान्! नीलू.. तेरी चून्चियां क्या मस्त हैं! कितनी प्यारी प्यारी! देख न! कैसे लाइट मार रही हैं!”
मैं : “हट्ट बेशरम! कैसे बोल रही है!”
भानु : “अरे मैं सच कह रही हूँ..” कहते हुए उसने मेरे हाथ अपने स्तनों पर जमाए, और खुद मेरे दोनों स्तनों को दबाने लगी। मेरी तो जान ही निकल गयी।
मैं : “आऊऊ.. आह्ह नहीं.. धीरे अआह्ह्ह.. धीरे!”
भानु (अनसुना करते हुए) : “नीलू, तू भी उतार इसको और खेलो..”
मैंने जैसे तैसे उसके प्रहार झेलते हुए उसकी ब्रा उतारी। तुरंत ही उसके उन्नत वक्ष मेरे सामने उपस्थित थे। मैं सचमुच में उसके स्तन देखती रह गई। कितने प्यारे स्तन! बिलकुल खिलौनों के समान! बड़े-बड़े, शरीर के बाकी हिस्सों जैसा ही साँवला सलोना रंग, उत्तेजना से ओत-प्रोत लम्बे तने हुए गहरे सांवले चूचक, और उसी से मिलता जुलता गोल घेरा। मुझसे रहा नहीं गया.. और मैंने भी अपने हाथ उन पर जमा दिए।
मैं : “हाय रे मेरी भानु रानी! तेरे संतरे कितने मस्त हैं! ठोस.. मुलायम.. और रसीले... दोनों के दोनों! मैं खा लूँ?”
भानु : “नेकी और पूछ पूछ?”
मैंने उसकी इस बात पर उसको सोफे पर ही लिटा दिया, और खुद भी उसके बराबर लेट गई। एक तरीके का आलिंगन – करवट में मेरा दाहिना स्तन उसके बाएं स्तन से टकरा रहा था। मैंने उसकी पीठ और नितम्ब सहलाते हुए उसके एक निप्पल पर अपनी जीभ फिराई। दीदी की याद पुनः हो आई। मैंने पूरा निप्पल अपने मुंह में भरा, और चूसना शुरू किया। मज़ा आ गया। भानु की सिसकी छूट गयी। लेकिन फिर भी उसने मेरे सर को पकड़ कर अपने स्तन में भींच सा लिया।
भानु : “आह्ह्ह्ह! इस्स्स्स... नील्लू.. आह्ह्ह! धीरे... ऊफ़.. मज़ा आ गया! आह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है। कस कर चूसो न... उफ्फ्फ़! आआऊऊ ... काटो मत प्लीज। आराम से मेरी जान। अआह्ह्ह.. अरुण सुनेगा, तो जल मरेगा! ऊऊह्ह्ह.. मजे से चूसो! ओह्ह्ह!”
मैंने कोई चार-पांच मिनट तक उसके दोनों स्तनों को बारी बारी से चूसा। एक पल मुझे लगा की भानु का शरीर थरथरा रहा है.. मुझे समझ में आ गया की उसने अपना कामोत्कर्ष प्राप्त कर लिया है, इसलिए जब तक वो शांत न हो जाए, तब तक मैं चूसती रही। निवृत्त होने के बाद भानु भी अब मेरे स्तन दबाने और चूसने लगी।
मैं : “भानु, तेरा मन नहीं हुआ की और कुछ भी किया जाय..?”
भानु : “मन क्यों नहीं हुआ! मैंने बताया न.. बड़ी मुश्किल से भागी वहाँ से.. कोई और जगह होती, तो आज तो अरुण ने मेरा काम तमाम कर दिया होता! खैर, मेरी छोड़.. तू बता, तेरा दिल भी तो तेरे जीजू से लगा हुआ है.. तेरा दिल नहीं चाहता?”
मैं : “दिल तो बहुत चाहता है! मैंने उनका और दीदी का खेल देखा है.. और मुझे मालूम है सब कुछ। लेकिन डर लगता है।“
भानु : “डर? किस बात का?”
मैं : “इस बात का की कहीं मैं उनको चोट न पहुंचा दूं! वो अभी तक दीदी के जाने का गम नहीं मिटा पाए हैं.. कहीं उनको ऐसा न लगे की मैं दीदी की याद मिटाना चाहती हूँ.. उनकी जगह लेना चाहती हूँ..”
भानु : “लेकिन ऐसा तो नहीं है न! तू तो उनसे प्यार करती है!”
मैं : “हाँ! प्यार तो मैं बहुत करती हूँ.. जब से उनको देखा है तब से! बस, प्यार के रूप बदलते गए!”
भानु : “तुम्हारी जैसी लड़की भी तो बड़े नसीब से मिलती है। ये एहसास करा दो अपने जीजू को! प्यार करती हो, तो बता भी दो! क्या बिगड़ेगा भला!”
फिर कुछ देर बाद अचानक ही बोलती है, “एक काम कर.. एक रात को चांस ले। तू पूरी नंगी हो कर उनके रूम में चली जा.. खुद बा खुद लाइन पर आ जायेंगे वो.. जब खुद विश्वामित्र मेनका के सामने मेमना बन गए, तो वो क्या चीज़ हैं?”
मैं : “बस कर.. अपने आइडियाज अपने पास ही रख.. अब तेरा हो गया हो तो छोड़ मेरे दुद्धू..”
भानु : “छोड़ने का मन ही नहीं करता। नीलू मेरी जान.. सच सच बताना, कहाँ छुपा रखी थी यह प्यारी प्यारी चून्चियां?”
उसकी इतनी बेशर्मी भरी बात सुन कर मैं पुनः शरमा गयी।
वो फिर मेरे स्तन जोर जोर से चूसने लगी और उसके कारण उठने वाले आनंद के उन्माद में मैं पागल होने लगी। इसी बीच उसने मेरा पजामा भी नीचे सरकाना शुरू कर दिया। मैं चौंक गई, “अआह्ह्ह.. ओए.. ये क्या कर रही है?”
“नीलू.. तेरे यार से पहले मैं देख लूंगी, तो क्या हो जाएगा?”
अब वो पूरी तरह निर्लज्ज हो कर मुझे निर्वस्त्र करने पर उतारू हो गई थी। हलके फुल्के कपड़े उतारने में कितनी ही देर लगती है.. कुछ ही क्षणों में मैं पूर्ण नग्न उसके सामने थी। शर्म के कारण मैंने अपनी दोनों टांगें और पैर एकदम सटा लिए, जिससे भानु मेरी योनि ठीक से न देख सके। कैसी मूर्खता.. निर्वस्त्र हो जाने पर भी क्या छुपना है भला! भानु न जाने कहाँ कहाँ से सीख कर आई है (और कहाँ से सीखी होगी?) लेकिन वो अपनी उँगलियों से मेरी योनि पर मालिश जैसी करने लगी, और साथ ही मेरे स्तन भी पी रही थी। ऐसे में भला कितनी देर रहा जाए? मैं वैसे ही उत्तेजित थी, अब अतिउत्तेजित हो गयी और बिना सोचे मैंने अपने दोनों पैर खोल दिए। भानु अब मेरी योनि एकदम साफ़ साफ़ देख सकती थी।
भानु मेरी योनि की दरार पर अपनी उंगली फिराते हुए बोली, “सच नीलू.. जिसे तू ये खज़ाना देगी न, वो धन्य हो जाएगा! कैसी पतली पतली फांकें हैं.. और गोरी भी! बस... ये बाल साफ़ करवा ले.. एकदम मस्त लगेगी!”
वो हल्के हलके हाथों से मेरी योनि को सहलाते हुए, मेरे उसके भगांकुर को रगड़ने लगी, मैं न चाहते हुए भी जोर जोर से आहें भरने लगी! उन्माद की बेचैनी के मारे मैं अपना सिर इधर-उधर करने लगी। लगा की साँसे रुक रुक कर चल रही हैं.. वाकई, कोई और छूता है, तो बहुत ही अलग एहसास होता है। भानु न जाने कब तक मेरी योनि को इस प्रकार रगडती रही, फिर अचानक ही उसने मेरे छिद्र में अपनी उंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगी। इस प्रहार को मैं नहीं सह पाई, और देखते ही देखते वह दबी घुटी आहें भरते हुए स्खलित हो गई। उसी उन्माद में मैं उठ कर जोर से भानु से लिपट गई। जब वासना का ज्वार थमा, तो मैंने देखा की सोफे के गद्दी पर मेरी योनि के नीचे की जगह गीली हो गई थी। न जाने क्यों मेरी आँखों में आँसू आ गए। भानु बिना कुछ कहे मुझसे लिपटी रही।
जब हम दोनों सहेलियां संयत हो कर एक दूसरे से अलग हुईं, तो भानु ने कहा, “नीलू रानी.. चल, तेरी चूत से बाल निकलवाते हैं.. ऐसा चिकना व्यंजन देख कर तेरे जीजू की भूख बढ़ जायेगी!”
मैंने काफी देर न नुकुर की, और नाराज़ होने का नाटक किया, लेकिन कौन लड़की सुन्दर नहीं दिखना चाहती? और कौन लड़की अपने प्रियतम को रिझाना नहीं चाहती? हम दोनों ने अपनी साफ़ सफाई करी, कपड़े पहने और बाहर चल दिए।
भानु मुझे एक वैक्सिंग सैलून लेकर गयी। मैं कभी कभार ब्यूटी पार्लर जाती हूँ, और शरीर की वैक्सिंग भी करवाती हूँ। वैक्सिंग करने में दर्द अधिक हो सकता है, बनिस्बत शेविंग जैसे उपायों के! लेकिन अनगिनत स्त्रियाँ आज कल वैक्सिंग ज्यादा करवाती हैं, क्योंकि उसके परिणाम कई कई सप्ताह तक रह सकते हैं। खास तौर पर गर्मी के मौसम में, जब शेविंग करने के एक-दो दिनों के अन्दर ही छोटे-छोटे बाल आना शुरू हो जाते हैं। वो अटपटा भी लगता है, और मेहनत भी बेकार जाती है। ऐसे में वैक्सिंग लंबे समय तक अनचाहे बालों से निजात दिलाता है। तो कहने का मतलब, मुझे भी अच्छा खासा अनुभव हो गया था अब तक! लेकिन आज कुछ अनोखा होना था। जब योनि और गुदा जैसे अति-संवेदनशील हिस्सों के बाल वैक्सिंग के द्वारा निकलवाए जाते हैं, तो इसको बिकिनी अथवा ब्राज़ीलियन वैक्सिंग करवाना कहते हैं। यह सैलून थोड़ा अप-मार्केट था.. बहुत ही साफ सुथरा और शांत! मुझे यहाँ आने से पहले डर लग रहा था की योनि पर से बाल नोचे जाने पर तो बहुत दर्द होगा, लेकिन यहाँ आ कर उम्मीद बंधी की सब ठीक हो जाएगा। भानु ने बताया की वो अक्सर बिकिनी वैक्सिंग करवाती है, और इसमें डरने जैसी कोई बात नहीं है। मुझे इंतज़ार नहीं करना पड़ा – वैक्सर मुझे एक रोशनी-युक्त छोटे कमरे में ले गई – इसमें कोई खिड़की नहीं थी, और मधुर संगीत भी बज रहा था। उसने मुझे एक टेबल पर लेटने को कहा – वो टेबल भी काफी साफ़ थी, और उस पर एक कागज़ की परत चढ़ी हुई थी.. जैसे कोई अस्पताल हो।
“आप अपनी पैन्ट्स उतार कर इधर लेट जाइए.. सर उधर रख कर..” उसने कहा।
“... और अंडरवियर?”
“आप बिकिनी वैक्सिंग करवाने आई हैं न?”
“हाँ.. पहली बार! इसलिए डर लग रहा है..”
“ओके! डरने जैसी कोई बात नहीं है.. और हाँ, अंडरवियर भी..”
मैंने अनिश्चित होकर अपनी चड्ढी उतार दी, और डरते हुए उस टेबल पर लेट गयी। वैक्सर मुझे बहलाने के लिए मुझसे बात करने लगी (आप यहाँ की लगती नहीं.. कहाँ से हैं? क्या कर रही हैं? कहाँ रहती हैं.. इत्यादि)।
खैर, बिकिनी वैक्सिंग के लिए वैक्सर को अपने गुप्तांगों में ज्यादा से ज्यादा पैठ देने के लिए अपनी जांघ को ऊपर की तरफ मोड़ कर और फैला कर रखना होता है... ठीक वैसे ही जैसे सम्भोग के समय लड़की लेटती है.. या लगभग वैसा ही! अब ऐसी दशा में कोई कैसे आराम से लेट सकता है? खुली हुई, पूर्णतः प्रदर्शित योनि, खूब सारी रौशनी, और एक अजनबी... न जाने भानु कैसे कह रही है की इतना खराब नहीं होता! झूठ कह रही है! मुझे तो लग रहा है की यह सब बहुत देर तक चलने वाला है.. अपने पैर हवा में उठाना, और अपने शरीर के उस भाग में किसी अजनबी की उंगलियाँ महसूस करना जहाँ अपने कभी सोचा भी ना हो, की कोई छुएगा...
खैर! अब तो भगवान् ही बचाए!
यहाँ इस्तेमाल होने वाला वैक्स कुछ अलग था। यह जल्दी सूख जाता है.. मेरा मतलब बहुत जल्दी। वैक्सर इसको लगाती हैं, और लगभग तुरंत ही यह सूख जाता है। यहाँ तक तो ठीक है, लेकिन जान निकलती है जब वो इसको एक झटके के साथ शरीर से अलग करती है। गनीमत यह थी की वो वैक्स की हुई जगह पर अपने हथेली से थोड़ा दबाव डालती है.. इससे चुभन और दर्द कुछ कम हो जाता है। यदि वो ऐसे न करती तो शायद मैं बेहोश ही हो जाती! कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
अब मुझे यह तो नहीं पता की ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली सारी महिलाएं बातूनी होती हैं या वो मुझको कुछ ख़ास ही स्वान्त्वाना दे रही थी, लेकिन अगले एक घंटे तक, जब मैं सिर्फ चीख, चिल्ला और दर्द बर्दाश्त कर रही थी, वो वैक्सर लगातार अपनी ही बातें करने में लगी हुई थी।
“आप पहली बार करवा रही हैं न, इसलिए दर्द तो ज़रूर होगा।“
‘कमीनी.. अभी तो कह रही थी की डरने वाली कोई बात नहीं है..!’
“बाल कुछ छोटे काट कर आती तो कम दर्द होता..”
‘माफ़ कर दो मालकिन..’
“आपको पता है.. अभी कल ही हमारे यहाँ एक दुल्हन आई थी यह वैक्सिंग कराने। कह रही थी की उसके होने वाले पति को सब चिकना चिकना चाहिए था.. हे हे हे!”
“आअह्ह्ह्ह... ह्म्म्म..”
“आपकी भी शादी होने वाली है क्या?”
“इह.. आह.. नहीं.. ऐसे ही..”
“ओह!”
न जाने क्या समझी वो! वैसे ज्यादातर लड़कियाँ तो इसीलिए बिकिनी वैक्सिंग करवाती हैं जब उनको यौन क्रिया करनी होती है.. बिलकुल वह भी यही समझी होगी। वैसे, मन में मेरे भी तो यही था!
“आप तो उससे ज्यादा हिम्मती हैं... उसकी तो चीख चिल्लाहट के साथ साथ कुछ पेशाब भी निकल गयी...”
‘भानु की बच्ची! ठहर.. तेरी खैर नहीं!’
उसने जांघों के ऊपरी हिस्से से शुरू होते हुए योनि तक ऐसे ही वैक्स किया। दर्द भी इसी प्रकार से बढ़ता रहा। योनि तक आते आते दर्द असहनीय हो गया! देखने में तो यहाँ के बाल तो पूरी तरह से बेकार लगते हैं। लेकिन जो दर्द मुझे महसूस हुआ, उससे तो यही लगता है की जघन क्षेत्र के बाल निकालने नहीं चाहिए! उनका कोई तो उपयोग होगा.. पता नहीं! खैर! अच्छी बात यह थी की यह महिला लगातार मुझसे बात कर रही थी.. इससे मेरा ध्यान अपने दर्द से काफी हट सा गया था।
लेकिन इतना होने के बावजूद, परेशानी तो होती ही है। वातानुकूलन चल रहा था, लेकिन फिर भी मुझे पसीने छूट रहे थे। ऐसे की जैसे अभी दौड़ कर आई हूँ! हाथ, चेहरा, छातियाँ.. सब जगह पसीना! और फिर यह नोचना खसोटना बहुत ही अन्तरंग स्थान पर होने लगा – योनिमुख के बेहद समीप! एक बारगी मन में आया की यह कमीनी अपनी एक उंगली भी अन्दर घुसेड़ देती.. कम से कम ध्यान हट जाता। वो तो जल्दी ही कर रही होगी, लेकिन मुझे लग रहा था की न जाने कितनी देर से यह नोच खसोट चल रही है।
अंततः योनि के ठीक बीच पर वैक्स लगा, और इससे पहले की मैं खुद को तैयार कर पाती, उसने उसे तेजी से उखाड़ दिया। दर्द के अतिरेक से मेरी आँखों में आंसू भर गए। मन हुआ की फूट फूट कर रो दूं। लेकिन जैसे तैसे खुद को ज़ब्त किया।
“वैरी गुड हनी! यू आर सो ब्रेव!! अब पीछे भी कर लें?”
भानु ने कहा था की पीछे वैक्सिंग करने में दर्द नहीं होता। एक तरह से सच ही था – जब पहले ही किसी लड़की की योनि और भगनासे को नोच लिया गया हो, उसको और क्या दर्द महसूस होगा? दर्द क्या.. पहले की तकलीफ़ के आगे यह तो जैसे बगीचे की सैर जैसा लगा! खैर, जैसे तैसे मेरी वैक्सिंग ख़तम हो ही गयी। उस वैक्सर ने वैक्सिंग ख़तम होते ही किसी तरह का लोशन लगा दिया और अपने दराज से एक दर्द निवारक गोली भी दी।
फिर वो मुझे एक आदमकद आईने के पास ले गयी और मुस्कुराते हुए बोली, “देख लीजिये... अपनी चूत को ध्यान से...”
मैंने देखा और अपनी योनि को ऐसे नंगा देख कर खुद ही शर्म से पानी पानी हो गई... मुय्झे समझ नहीं आया की क्या करूँ, बस उस वैक्सर के गले लग गई, और उसको दोनों गालो पर चूम कर बोली, “यू आर ग्रेट... यू हैव डन अ वंडरफुल जॉब...!”
कुछ देर वहाँ बैठने के बाद मैं भानु के साथ बेढंगी चाल चलती हुई घर तक पहुंची। घर तक आते आते दर्द काफी कम हो गया, और मैं ठीक महसूस करने लगी। बाहर किसी होटल जाने के बजाय घर पर ही खाना मंगाने का निश्चय किया था, यह सोच कर की ऐसे बेढंग चाल चलता हुआ देख कर न जाने लोग क्या सोचेंगे! खैर, इतने दर्द झेलने के बावजूद मुझे साफ़ और चिकना होने का एहसास बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे बहुत ख़ुशी मिल रही थी, और एक तरह से वो मेरा प्रतिष्ठा वाला पल भी था।