Desi Chudai Kahani कमसिन जवानी - Page 3 - SexBaba
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Desi Chudai Kahani कमसिन जवानी

कमसिन जवानी-8

गतान्क से आगे...........................

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वहाँ उमैर बाजू वाले कमरे से आराही आवाज़ों का जायेज़ा लेने लगता है ..आख़िर ये किसकी आवाज़ है.."आह ह और ज़ोर से"की आवाज़ीएँ सुन कर उमैर को किसी बुरी घटने वाली अनहोनी का एहसास होने लगता है..वो जैसे ही कमरे के पास जाता है..आवाज़े उसे और करीब से सुनाई देने लगती हैं..कमरे की खिड़की जो की अधखुली रहती है उसे ज़ोर से धक्का मार कर खोल देता है..अंदर का नज़ारा देख कर ही उमैर के लिए ज़मीन और आसमान एक हो गये..आँखों के सामने पाहाड़ टूट पड़ा..सामने उसकी गोशी किसी मर्द के लंड पर कूद रही थी..और देखते ही उमैर की आँखे बाहर की और आ गई ..आआंखों में खून उतर गया..जिस लड़की को जान से भी ज़्यादा प्यार किया आज उसी ने उसकी भाआवनाओ के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ किया या फिर ये सब उसका मात्रा सपना ही है...उमैर को सामने चल रही घटना झूट सी प्रतीत हो रही थी..रोबदार चेहरे पर बड़ी बड़ी आँखों में आँसुओं का मेला लगा हुआ था..और ठुड्डी से होते हुए पूरी शर्ट को गीला कर चुका था....

गोशी:-( लंड पर उपेर नीचे होते हुए)आअरररे जाअनुउ अंदर क्यूँ खड़े हो आ जाओ..तुम भी हमारे साथ एंजाय कर सकते हो..आ जाओ दरवाज़ा खुला हैं..कम ऑन डार्लिंगग...आह ह

उमैर बिना पल गवाए अंदर आया और ज़ोरदार सनसानता हुआ चाँटा गोशी के गाल पर जड़ दिया..."रंडी छीनाल वेश्या....तुझे तो मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था.. मैने अपने दोस्तों को ठुकराया ..सब को छ्चोड़ दिया और तू यहाँ पर चुदवा रही है..सब कुछ किया तेरे साथ हर खुशी दी और तू"आधी बात बीच मे ही छूट गई और पीछे कलसूम मॅम ने आकर उमैर को वहीं धकेल दिया ..गोशी "अभी तुमने देखा ही क्या है जानू..पहले ये तो देख लो के मेरी चुदाई किससे हो रही है""""उमैर आँखें फाडे नीचे लेटे हुए प्रोफेसर सिन्हा को टकटकी लगाए हुए देख रहा था...माज़रा उसे समझ मे आ चुका था.."ओह्ह्ह्ह तो ये बात है..सर और मॅम..तो ये सब आप सब की मिली भगत थी"

सिन्हा:-(गोशी को उपेर नीचे लंड से चोद्ते हुए)हां मेरे उमैर अब हम जो भी कहेंगे वो तुझे करना होगा....

उमैर:-सब ने कहा सर कि आप लड़को को ग़लत काम के लिए बाहर भेजते हैं लेकिन हमारे ग्रूप ने तब भी आप पर भरोसा किया और आप तो सच मे 1 नंबर. के रंडवे निकले..

गोशी को इस हालत में लंड पर उपेर नीचे होते देख उमैर लगातार रोया जा रहा था..."और्र साली तू...क्या बिगाड़ा था मैने तेरा जो इतना बड़ा धोका दिया तूने मुझे साली रांड़"

सिन्हा:-(उठकर खड़ा हो गया और लंड को हाथ से मसल्ने लगा और सब के सामने वीर्य की पिचकारियाँ छोड़ने लगा और झड़केर वहीं नंगा बिस्तर पर बैठ गया)उमैर अब हमारे लिए तुम काम करोगे..बदले मे तुम्हे खूब सारा पैसा इज़्ज़त मिलेगी..तुम्हारे घर वाले ऐश की ज़िंदगी जी लेंगे..और एंजेनियिरिंग की फीस बाकी सब तुम्हारे लिए फ्री होगी .."

उमैर उसकी बातों को ख़तम होने हीनही देता और जाकर एक सापाता सिन्हा के गाल पर जड़ दिया.."मदर्चोद तू क्या मुझसे धंधा करवाएगा अब देख कैसे तुम सब क सब अंदर होते हो....अब देख में तुम लोगों का क्या बिगाड़ता हूँ ...उमैर का गुस्सा ज्वालामुखी की तरह टूट पड़ा और कमरे में फैले सारे सामान को तोड़ने फोड़ने लगा...उमैर के अंदर का जानवर जाग चुका था..और वो सारी चीज़ें यहाँ से वहाँ पटाकने फेकने लगा..और 2 3 झापड़ कलसूम के गाल पर झाड़ दिए"रांड़ मुझसे चुदवा कर क्या मिला तुझसे अपनी बेटी की चुदाई तू कैसे देख सकती है..और तुझे लगता है कि तेरे इस घटिया काम मे में तुम लोगों का साथ दूँगा कलसूम के बालों को पकड़केर वही दीवार पर जड़ देता है..ये सब देखकेर वाहा सिन्हा की हालत खराब हो जाती हैं और वो पीछे से आकर उमैर के सिर पर शीशी फोड़ देता है..उमैर बदहवास होकेर वहीं नीचे गिर गया...


वहाँ सिर पर वार होते ही उमैर नीचे ज़मीर पर गिर गया..

सिन्हा:-याअर डार्लिंग अब इसका क्या करें ये मान ने वाला नहीं अब..अगर कॉलेज मे सबको बता दिया तो हम सब जेल के अंदर आटा पीसेंगे ....कुछ करना होगा इसका

कलसूम:-अर्रे किस्सा ही ख़तम करो जान मार्कर फैक देते हैं हरम्खोर को..

गोशी उन दोंनो की बातें ऐसे सुन रही थी जैसे उमैर से उसका कभी कोई ताल्लुक ही नहीं हो...

उमैर की आँखे खुल चुकी थी..होश में आकर जैसे ही वो आँखे खोलता है स्वयं को 10 12 लड़को के बीच में पाता है..खुद को समहालता है ..तो देखता है गोशी का भाई उन लड़को के साथ उसे घेरे खरा है..उमैर माजरा समझ ही पाता है कि लड़के उसे इतना मारते हैं इतना मारते हैं कि उमार को अब ये भी नहीं मालूम कि वो अब इस दुनिया में हैं या जा चुका है..
 
उमैर की गाड़ी नीचे खाई में कलसूम मॅम और सिन्हा ऐसे फैकते हैं कि किसी को कोई सबूत ना मिले...

कलसूम मॅम उमैर के घर पर कॉल कर देती हैं उमैर"म्र्स गुप्ता उमैर का आक्सिडेंट हो चुका है आप का बेटा मर चुका है खाई में उसकी गाड़ी मिली है "कलसूम अपना नाम नहीं बताती है"

उमैर के माँ बाप तो जैसे अपने बच्चे के मरने की खबर सुनकेर ही हाल बहाल हो जाते हैं...

कॉलेज में मातम च्छा गया..उमैर की दीवानियो से कोई पूछता ..जिस सीनियर को देख देखकेर हर लड़की के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान तार जाती थी ,योवानायें उसके कॉलेज आने का बेसब्री से इंतेज़ार करा करती थी..आअज वो मर गया है..

शोक और मातम ऐसा फैल गया जैसे अब कॉलेज में किसी लड़की के आने का कोई मतलब ही नही..उमैर का ग्रूप हरियाणा ट्रिप पर गया हुआ था..जो उसके जिगरी दोस्त थे वो यहाँ इस शहेर में नहीं थे...

अजय इस बात से बेख़बर ही था...वो खुद को समहालने के लिए अपने दोस्तों के साथ चला गया था

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अजय और उसके दोस्त टीकमगढ़ गाओ पोहोच चुके हैं....!!!!!!


गाव पोहोच्ते ही अजय के साथी मानव के दादाजी के घर पोहोच जाते हैं..दूर का सफ़र होने के कारण सब आराम करने लग जाते हैं..शेरसिंघ उनका स्वागत करता है...बोहोत बड़ा घर होने के कारण शेरसिंघ का परिवार आँगन के दूसरे तरफ बने हुए कमरों में अपना गुज़ारा करता था..शेरसिंघ के घर पर उसकी बहू और बेटा था बेटा खेती का काम करता था...बहू के 3 लड़कियाँ थी...जो अभी वयस्क नहीं हुईं थीं..अजय ने अपना रूम सेलेक्ट कर लिया था और घोड़े बेच कर सो गया...मानव भी उसके ही साथ और बाकी दोनो लड़कियाँ अपने दूसरे रूम में जाकर आराम करने लगी और फ्रेश होने लगी...

शेरसिंघ की बहू राधिका देखने में एक दम गाओ की मदमस्त औरत लगती थी..चौड़ा चकरा गोल चेहरा और एक दम सुर्ख गुलाबी होन्ट और गदराया हुआ उसका बदन एक नज़र मे ही क़ायल कर देने के लिए काफ़ी था...उसे देखकेर कोई उसकी 3 बेटियाँ होने का अंदाज़ा नहीं लगा सकता था...मानव राधिका से घुला मिला था क्यूंकी वो गाओं मे आता जाता रहता था..नींद खुलते ही मानव शेरसिंघ से खेत और घर का हाल चाल पूछने चला गया और राधिका चाय देने के लिए आँगन को पार करते हुए इन लोगों को चाय और नाश्ता कमरों मे देने चली गई..

दीपाली और हर्षा को देने के बाद वह अजय के रूम मे आती है तो अजय टाँगें पसारे घोड़े बेचकर सो रहा था ..मानव शेरसिंघ के पास आँगन में बैठकर बातें कर रहा था..राधिका आती है तो अजय के चहरे पर नज़रे घुमाती है.."क्या सच मे सहेर के लोग ऐसे होते हैं.."अजय के चेहरे की चमक देखकर वह मन ही मन ऐसा सोच रही थी.कि अचानक अजय की आखे खुल गई और वो सामने खड़ी राधिका को देखकर अजय उठकर बैठ गया"जी जीई आप कोन है"

राधिका"हमारा नाम राधिका है..इहाआँ की बहू हैं हम ..गुड्डू भैया की लुगाई..


गुड्डू भैया की लुगाई को देख कर अजय एक दम गर्म हो चुका था.."क्या सेक्सी फिगेर है यरर्र्र्ररर मिल गई ना तो छोड़ूँगा नहीं"ऐसी बातें अजय के दिमाग़ में घूम रही थी..सो कर उठने के बाद अजय बोहोत सेक्सी फील कर रहा था....उंघते हुए उठा और बोला भाभिजी में फ्रेश हो जाउ आप चाय और नाश्ता रख दीजिए में अभी कर लूँगा......भाभिजी चाय और नाश्ते की ट्रे वहीं रख कर चली गई...मानव अजय के रूम में आकर "अबे उठ जाअ कुंभकारण के बस ऐसे ही सोता रहेगा चल उठ जा "मानव ने चदडार ओढ़े सो रहे अजय की चादर खीच कर फेक दी...



अजय"अबे तेरी ऐसी की तेसि....चल ये बता मेरी बहेन कहाँ हैं हर्षा और दीपाली उठ गये क्या वो दोनो भी????"

मानव"हर्षा फ्रेश होने गई है..और दीपाली अभी सो रहीं रही है उसे भी उठाने जाना है..और हाआँ सुन बे पीछे आँगन में चले जाना वहीं जाते हैं कुए के पीछे फ्रेश होने चल उठ और फ्रेश होकेर आ.."""

अजय ने उसकी बात सुनकेर थोड़ा मूह सा बनाया कि अब आँगन पार करके ही बार बार मूतने कॉन जाए याअर"

वहाँ मानव अपनी जान दीपाली को जो कि सो रही है उठाने जाता है....

दीपाली बड़े आराम से घोड़े बेचकेर सो रही थी....उपेर वाइट टॉप था बाकी जिस्म उसका चादर से ढका हुआ था..करवट लेकेर सो रही थी..जिससे गोर से देखने पर उसकी हल्की हल्की ब्रा भी नज़र आ रही थी..मानव उसके बेड पर जा कर बैठ गया और धीरे से अपने होंठो से उसके कानो को मसल्ने लगा..और बोलने लगा"जाअनुउऊ उठना नहीं है क्या..."दीपाली फिर भी सो रही थी...... मानव ने करवट लेकेर सो रही दीपाली को पलट कर सीधा कर दिया..उसकी चूचियाँ उसके सास लेने के साथ साथ उपेर नीचे हो रही थी ,सुर्ख लाल होठों पर लालिमा मानव को पागल बना रही थी मानव उसके होठों के रस को पी लेना चाहता था........उसे देखकेर लग रहा था कि बेचारी सच मे थक गई थी...एक हाथ दीपाली का उसके सीने पर और दूसरा उसके सिर के पास था..उसे क्या मालूम था कि उसका प्रेमी उसके पास बैठा हुआ अद्भुत द्रश्य को निहार रहा था...
 
मानव ने एक हाथ को उसके हाथ के उपेर रखा जो उसके सीने पर रखा था...और धीरे धीरे चूचियों पर फेरने लगा...धीरे से अपने होठों को उसके होठों पर रखा ताकि जाग ना जाए..दीपाली मानव की गर्लफ्र्न्ड ज़रूर थी लेकिन कभी अपने करीब उसे ना आने देती थी....आज मानव अपनी मनमानी कर रहा था.उसके गुलाब की पंखदियों जैसे होठों पर अपने होठ रखते ही मानव सिहर उठा...दीपाली ने थोड़ी हलचल सी करी और मानव दूर हो गया...."दीपाली जाआअनु उठ भी जाओ अब..."

दीपाली नींद मे"एम्म.ह थोड़ा और सोने दो ना जानू..आहह"और बड़े मज़े से सो गई...

मानव"उठ रही हो कि नहीं....ह्म्‍म्म्मम वैसे मुझे भी बोहोत निन्नी आ रही है...चलो यहीं सो जाता हू तुम्हारे साथ ही...एम्म मुझे भी अपनी जान को देख कर नींद आने लगी"उसकी चादर के अंदर मानव भी घुस गया और हड़बड़ा कर दीपाली उठ बैठी और मानव से अपनी चादर छ्चीन ली...........मूह फूला कर बोली "तुमने पूरी नींद खराब कर दी मेरी.... जाआओ कटती"मानव उसको अपनी बाहों में घसीट ते हुई जान टाइम तो देख लो सब उठ गये हैं....11 बज रहे हैं सुबह के....अब उठ भी जाओ और फ्रेश हो जाओ घूमने नहीं चलना क्या....?"


दीपाली ने उससे खुद को छुड़ाया "हां ठीक हैं हो रही हूँ फ्रेश अब तुम जऊऊओ और वहीं लेट गई और सो फिर से सो गई..."मानव हस्ने लगा और चला गया...

चारो तय्यार हो गये थे और बाहर दादाजी के खेतो में घूमने जा रहे थे..

खेत गाओ से थोड़ा दूर था...इसलिए वो लोग रास्ते में खेत जा रही बैलगाड़ी मे बैठकेर खेत पोहोच गयी...


वहाँ गये ही थे तो और खेत में बनी छ्होटी सी झोपड़ी में जाकेर बैठ कर आराम करने लगे कोई भी आता जाता नहीं था वाहंन...सिर्फ़ किसान दूर दूर तक खेती करते दिखाई दे रहे थे........................दोपहर का मौसम था और हल्की हल्की बारिश ने तो जैसे समा ही बाँध कर रख दिया था...हर्षा और अजय घूम घूम कर बोर हो चुके थे लेकिन मानव और दीपाली एक दूसरे की आँखों मे ही टकटकी लाए हुए प्यार के सागर मे गोते लगाकेर हद से गुज़र जानेको बेताब थे"झोपड़ी के अंदर छोटी सी आग जल रही थी जहाँ हर्षा ने चाय बनाई थी...चारो उस आग के आस पास बैठे थे

अजय"ओईए मानव यार बोर हो रहा हूँ चले क्या घर"

मानव के जाने का मान नहीं था /अचानक से दीपाली बोली"अन्न अजय तुम और हर्षा चलो में और मानव खेत घूमेंगे...."

अजय इरादों को भाँप चुका था उसने हर्षा को इशारा किया और वो लोग वहाँ से चली गई.............


मानव और दीपाली को झोपड़ी मे छ्चोड़केर अजय और हर्षा चले गये,...दीपाली वहाँ जल रही आग के पास बैठी थी..और आग के दूसरे तरफ मानव बैठा हुआ था दोनो आँखों ही आँखों में हद से गुज़र जाने को बेताब थे..दीपाली ने चुप्पी तोड़ दी और बोली "चलो खेत नहीं घूमना है क्या उठो भी "लेकिन मानव उसे देखकेर पागल हुआ जा रहा था....अकेले सुनसान झोपड़ी के अंदर जल रही आग मानव के दिल की आग को भड़का रही थी...दीपाली उठकेर खड़ी हो चुकी थी और आकर मानव के पास आ गई और हाथ मानव की ओर बढ़ाया"चलो चलना नहीं है क्याअ???"

मानव ने उसके हाथों को अपने हाथों मे ले लिया और अपनी तरफ खीच कर गोदी में बैठा लिया

दीपाली"अर्र्ररे यी क्या कर रहे हो अब छोड़ो भी..पागल हो क्या घूमना नहीं है तुम्हे खेत"?

मानव"नहीं मुझे तो प्यास लगी है?

दीपाली"रूको पानी ले आती हूँ..."

मानव "नहीं मुझे तो तुम्हारा दूध पीना है.."

सुनकर ही दीपाली शर्म से लाल हो गई और धीरे से मानव के गालो पर एक थप्पड़ प्यार से मारा .."बेशरम हो गये हो तुम "

मानव ने उसे अपनी बाहों में कस कर दबा लिया"बोलो ना पिलाओगी अपना दूध प्लस्ससस्स"

दीपाली शरमाकर लाल हुए जा रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वो मानव से कैसे नज़रे मिलाए....


प्यार में डूबे हुए जोड़े सामने जलती आग के सामने बैठे हुए प्याअर के सागर मे डूब रहे थे .....सुनसान झोपड़ी में बैठे एक टक मानव उसे देखा जा रहा था... और बाहर से बारिश की बूंदे अंदर आकर ज़मीन को गीला कर रही थी...वहाँ का द्रश्य ही रोमांचक हो गया था...


मानव की गोदी में बैठी दीपाली की नज़रे झुक चुकी थी और मानव उसके चेहरे को बड़े उम्मीद भरी नगाहों से देख रहा था..जैसे अभी दीपाली उसे अपना दूध पीला ही देगी..मानव ने दीपाली की पॅल्को को चूम लिया"जान यहाँ देखो मेरी आँखों में"

दीपाली ने नही में सिर हिला दिया उसकी नज़रे अब भी नीचे ही थी

मानव "एक बार देखो ना मेरी आँखों में प्लस्सस एक बार"

दीपाली ने मानव की आँखों में देखा और उसे वासना का सागर नज़र आया और ज़ोर से मानव की बाहों में जाकेर लिपट गईइ...दीपाली और मानव का ये प्रथम मिलन ही था......

मानव ने भी उसे खुद से चिपका लिया ...उसके काँपते चेहरे को अपने दोनो हाथों में समेट लिया और गुलाब की पंखारियो जैसे होठों पर अपने सख़्त होठों से धीरे धीरे रस चूसने लगा ....

दीपाली ने भी उसके सिर को ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी जीभ को उसके मूह मे घुमाने लगी............

क्रमशः.............................
 
कमसिन जवानी-9

गतान्क से आगे...........................

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मानव ने देर नही करी और उसे गोद मे उठा लिया और झोपड़ी में पड़ी चटाई पर उसे लेटा दिया..दीपाली का कमसिन पेट उसके टॉप उपेर हो जाने के वजह से दिखाई दे रहा था...नीचे जींस पहनी दीपाली ने अपनी आखों को ज़ोर से भिच लिया....मानव ने उसके हाथों को आँखों से हटाया और दीपाली ने देखा कि मानव सिर्फ़ अनडरवेर मे उसके उपर चढ़ा हुआ है.."याइ यी क्या है मानव तुम नहीं प्लस्सस्स कपड़े पहेन लो प्लस्स मुझे डर लग रहा है प्ल्स मानव "

मानव ने उसकी बात ना सुनते हुए दोनो हाथों को ज़ोर से पकड़ लिया और मूह.माथे होठ सभी जगह चूमने लगा...विरोध कर रही दीपाली अचानक शांत होने लगी और मानव का हॉंसला बढ़ता गया...

मानव ने टॉप उपेर किया तो सामने पिंक ब्रा के अंदर च्छूपी चूचियाँ दिखाई दी..मानव ने ब्रा को ही थोड़ा सा उपेर कर दिया सामने गोरे चिट मम्मे उसकी आँखों के सामने आ गये...मानव का पागलपन बढ़ गया और अपने होठों से निपल्स को मसल्ने लगा...दीपाली का एक हाथ उसके बालों मे घूम रहा था और दूसरा अपने ही टॉप को उतारने में व्यस्त था..

मानव ने उसकी टॉप उतारने में मदद करी....सामने पूरी नंगी हो चुकी दीपाली को मानव ने खुद से चिपका लिया और दोनो हाथों से उसके चूचियों का मर्दन केरने मे लग गया... ....मानव का एक हाथ नीचे उसकी जीन्स की ज़िप पर पोहोच गया..ज़िप के अंदर गीली पॅंटी के उपेर हाथों को फेरने लगा और उपेर से ही चूत मसल्ने लगा ....

दीपाली"अहह मत तरसाओ प्लस्सस्स आह करो ना जल्दी प्लस्सस घुसेदो ....डाल दू"

मानव"पहले मुझे नीचे का रस तो पीने दो जान बस एक बार मैने सुना है कि वो बोहोत यूम्मी होता है"

दीपाली"वो बाद में भी कर सकते हो प्लस्सस्स अभी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा..

मानव"क्या हो रहा है..दर्द हो रहा है क्या यहाँ(उसकी चूत को मसल्ते हुए)"

दीपाली ने हां में सिर को हिला दिया उसका शरीर झटके पर झटके मार रहा था...निपल्स एक दम खड़े हो गये थे

मानव से भी अब बर्दाश्त केरना मुश्किल हो रहा था...

उसने अंडर वेर उतार कर लंड को उसकी चूत की दरार में रगड़ना शुरू कर दिया और एक हाथ से दीपाली का मूह दबा लिया..लंड ने पहला झटका इतने ज़ोर से दे मारा कि सरसरता हुआ पूरा लंड दीपाली के अंदर पूरा समा गया.........दीपाली को झर्राते आने लगे...आँखों से आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा...मानव ने उसे प्यार केरना शुरू करा"बस जान थोड़ा और बस थोड़ा सा..."

दीपाली रोने लगी दर्द होने की वजेह से कुछ भी नहीं बोल पा रही थी....मानव को भी अपनी जान का दर्द देखके सहेन नहीं हो रहा था..कभी उसके बूब्स मसलता कभी उसके होठों को चाट रहा था तो कभी उसकी गांद को मसल रहा था....... दर्द का आलम ख़तम होते ही दीपाली ने कमर को झटका देना शुरू कर दिया .......मानव के लंड ने स्ट्रोक पर स्ट्रोक्स लगाने शुरू कर दिए......अब दीपाली सपनो की दुनिया में खो गईइइ और जन्नत का आनंद लेने लगी

मानव और दीपाली एक दूसरे को धक्के पर धक्का देने में लगे हुए थे........नीचे से दीपाली और उपेर से मानव...दीपाली भी अब कम नहीं थी....दोनो पूरी ताक़त लगाकर चुदाई कर रहे थे....

और दोनो ने ही अपना पानी साथ छ्चोड़ा और वही निढाल एक दूसरे से नंगे ही चिपके रहे मानव उसके उपेर ही लेटा था..

दीपाली की आँखें बंद थी...मानव उठा और उसकी चूत की फाआंकों को देखा..चूत सूज कर लाल हो गई थी...

और चटाई उनके रस और खून से सराबोर हो गई थी...

मानव ने अपनी बनियान से दीपाली की चूत से बहते खून को और वहाँ के रस को पोछ दिया और उसे कपड़े पहनने लगा........मानव ने चाइ बनाई दीपाली को दी...
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अजय और हर्षा घर पोहोच चुके थे..घर जाते ही हर्षा ने मूह हाथ धोए और जाकर अपने रूम में टीवी देखने लगी..अजय का मन भाभिजी के यौवन के बारे में सोचने मे ही अटका हुआ था...अजय कुए के पीच्चे आँगन मे फ्रेश होने गया तो देखा कि राधिका भाभिजी आँगन मे नहा रही है.. अधिकतर गाओ की औरतें बाथरूम सुविधा ना होने की वजेह से घर के कुए के पास ही नहाती हैं..राधिका भी ऐसे ही नहा रही थी उसकी बेटियाँ स्कूल गई थी..और ससुर और पति खेत गये थे..उनका यही काम था..दोपहर से रात तक वहीं गुज़ारा केरना पड़ता था...अजय भाभिजी को नहाते देखकेर वहीं रुक गया.. आँगन मे अंदर जाने का दरवाज़ा थोड़ा सा बंद था,,अजय ने देखा कि राधिका भाभिजी वहीं नहा रही थी...उन्होने पेटीकोआट को उपेर चढ़ा कर अपनी चूचियों को ढक रहा था..और कपड़े धो रही थी...झुक झुक कर कपड़े धोने के कारण उसकी चूचियों की गहराई सॉफ नज़र आ रही थी..वो बाहर आकेर लटके जा रही थी..बस निपल्स ही पेटीकोत के कपड़े द्वारा ढके हुए थे..........अमित का दिल बेचेन हो गया और लंड मे तनाव आने लगा..सामने आधी नंगी भाभी जी एक दम गदराई हसीना लग रही थी भाभिजी के बूब्स एकदम बड़े बड़े थे लगभग 40 और उसकी गांद एक दम सुडोल थी....चेहरा एक दम चमकता हुआ प्रतीत होता था..अजय का लंड पॅंट के अंदर ही दर्द केरने लगा उसने वहीं दरवाज़े के पीछे खड़े खड़े राधिका भाभिजी को नहाते देखने लगा..और अपने पॅंट की ज़िप खोलकेर लंड बाहर निकाल लिया..भाभी ने कपड़े धोकेर एक कोने में रख दिए और उठकेर वहीं कुए के थोड़े दूर जाकेर मूतने लगी....पीछे से अपने पेटीकोआट को उठाया और बैठ गयी...उसकी गंद अजय के मूह के सामने थी..गोरी गदराई गंद को देखकेर अजय का लंड झटके पर झटके दे रहा था..भाभी ने 2 मिनट तक मूतने के बाद उठी और फिर से वहीं कुए के पास आकर नहाने बैठ गयीं..उसने अपने हाथों मे साबुन लगाया और फिर साबुन को पैरों पर रगड़ने लगी ..पिंदलियों पर साबुन मलते मलते जांघों पर हाथों से ज़ोर ज़ोर से साबुन घिसने लगी अपने दोनो हाथों की हथेलियो से एक एक झांघ को घिस रही थी..अजय ने देखा कि भभजी का पेटीकोआट उपेर हो गया और दूर से ही जांघों का जोड़ ख़तम होकेर वहाँ बालों का गुच्छा नज़र आ रहा था..भाभिजी ने अपने हाथों मे साबुन लेकेर पेटीकोआट के अंदर चूचियो पर रगड़ने लगी चुचियाँ पेटी कोट के अंदर यहाँ वहाँ हिल रही थी..अजय ने लंड को ज़ोर से थाम लिया और उसे उपेर नीचे घिसने लगा..सामने का नज़ारा उसे पागल बनाने के लिए काफ़ी था..भाभिजी भी अब होठों मे साबुन रगदकेर हाथ नीचे ले गई और हाथ को पेटीकोआट के अंदर घुसेड कर चूत के अंदर साबुन मलने लगी..वहाँ भाभिजी अपनी चूत घिसाई कर रही थी यहाँ अजय अपने लंड को घिस रहा था...भाभी ने चूत को अच्छी तरह से साबुन से मला और बाल्टी से मग के द्वारा सिर से पानी डालने लगी उनका पूरा पेटीकोआट उनके शरीर से चिपक गया ..भाभिजी खड़ी हो गई और अच्छे से खड़े होकेर सिर से पानी डाल रही थी और हाथ को अंदर ले जाकर चूत पर लगाए गये साबुन को साफ कर रही थी..अजय के लंड घिसाई और सामने का कामुक नज़ारा देखकेर पाओ अकड़ने लगे और 3 -4 पिचकारिया दूर आँगन में जा गिरी ..अजय वहीं घुटने टेक कर बैठ गया....और हाआफ़ रहा था..."याअर ये माल कितना गरम है सच मे मिल गया ना तो नोच नोच कर खाउन्गा और जी भर कर मज़े लूँगा"अजय उठ कर खड़ा हुआ और अपने रूम में जाकेर लेट गया...मूठ मारने के बाद उसे ज़ोरों की नींद आ रही थी...और वह सो गया..../

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हर्षा खुद को बोहोत अकेला महसूस कर रही थी वहाँ भाभिजी के पास अंदर गई तो भाभिजी नाहकेर कपड़े पहेन रही थी..वो अपने ब्लाउस के बटन लगा रही थी...


"अर्रे हर्षा बाहर काहे खड़ी हो अंदर आ सकती हो "भाभी ने कहा ..हर्षा अंदर आगाई"भभजी यहाँ और क्या क्या है अच्छा घूमने के लायक..

भाभी"अरे हर्षा इते तो कछु ख़ास नहीं है बस तुम हमारे गाओ ही घूम लो ओही काफ़ी है तुम्हारे लिए ..बाइसे घर के सामने लल्लू हलबाई के यहाँ बोहोट अच्छी अच्छी मिठाई मिलती है ..बोहोत फमौस है तुम खओगि तो पागल ही हो जओगी..और बो कहाँ है तुम्हारे और दोस्त लोग ?बो तो दिखाई ही नही दे रहे है..."

हर्षा"जी अजय तो सो रहा है और दीपाली ,मानव खेत घूम रहे हैं..में थोडा बाहर जा रही हू वही हलवाई के यहाँ कुछ लेकेर आती हू" ...सकुचाते हुए हर्षा वहाँ से चली गई..गाओ में पगडंदियों पर जा रही हर्षा को सब आँखें बाहर निकालकेर घूर रहे थे..उन्होने शायद टीवी मे ही ऐसी लड़कियों को देखा था..हर्षा ने लो वेस्ट जीन्स और स्लेअवलेशस टॉप पहेन रखा था...प्यारी सी लगने वाली हर्षा एकदम शांत स्वाभाव की थी ..उसने कभी प्यार या सेक्स की बातों में खुद को नहीं उतारा था..लल्लू हलवाई के यहाँ पोहोच्ते ही उसने कुछ मिठाइयाँ अपने लिए और फ्रेंड्स के लिए पॅक करवाई..
 
अजय घर पर सो रहा था और मानव ,दीपाली खेत घूम रहे थे...............बेचारी हर्षा ऐसे ही अपना टाइम पास कर रही थी..रास्ते मे घर वापस जा ही रही थी कि अचानक उसे आभास हुआ कि पीछे से कोई बोहोत तेज़ी से दौड़ कर उसके करीब आ रहा है..हर्षा ने पीछे मूड कर देखा तो गाओ का बड़ा भारी सा बैल उसके पास तेज़ी से दौड़ते हुए आ रहा था...हर्षा ने उपेर लाल सुर्ख रंग का टॉप पहना था..उसकी हवाइयाँ उड़ गई और सारी स्वीट्स नीचे गिर गयीं ..हर्षा अपने होश खो बैठी थी..और ज़ोर ज़ोर से बदहवास सी रोने लगी..बैल उसके पास आ चुका था और अपने मूह नीचे बैठी हर्षा के घुटनो पर मर रहा था....................गाओ का देसी बैल जैसे हर्षा ने ज़िंदगी मे नहीं देखा था..उसके लिए वो यमराज से कम नहीं था..अचानक एक नौजवान ने बैल की डोर को थाम लिया और उसे पीछे की और घसीट लिया..वो वहाँ का लड़का हरिसिंघ था..प्यार से लोग उसे हरिया बुलाते थे ...देखने मे एक दम सख़्त था..कुर्ता पाज़मा पहने और सिर पर पगड़ी बाँधे उँचा पूरा दिखाई देने वाला आकर्षक मर्द था उसकी उम्र ज़्यादा नहीं थी..हर्षा से लग भाग थोड़ा ही बड़ा था...उसने हर्षा को देखा हर्षा को तो जैसे सुध ही नहीं थी ..खौफनाक घटना से वो घबरा चुकी थी आँखों मे सिर्फ़ आँसू थे ..ऐसा लग रहा था कि अब हर्षा मारे ख़ौफ़ के बेहोश होने वाली है.....हरिया ने उसे देखा और उसे उठाने की कोशिश करने लगा ..वहाँ से बैल का मालिक दौड़ कर हाफ्ते हुए आया"का हुआ भैया कछु गड़बड़ तो नाही हो गयी ना हमरे बैल से उ का है कि ये भाग गया था सुक्रिया आपने पकड़ लिया"

हरिया"तो समहालो ना अपने बैल को .. किसी की जान ही निकलवाकर दम लोगे..अभी हम ना आते तो तुम्हारा बैल ए छ्छोकरी को मार ही ना देता बड़े आए बैल समहालने वाले"हरिया की आँखों मे गुस्से का सैलाब था

बैल का मालिक"अरीय बीबीजी हम का माफ़ केरदीजिए हम ऐसा ना करेंगे कभी ..हमेशा इसको साथ रखेंगे आप चुप हो जाइए"कहकर वो वहाँ से चला गया लेकिन हर्षा तो जैसे ख़ौफ़ के मारे ही मारी जा रही थी..उसे अपने दोस्तो के पास जाना था ..हरिया ने उस रोती हुई शहेर की मेम को देखा तो जैसे वो खो ही गया था...."का सचमुच ऐसे भी कपड़े पेहेन्ते हैं लोग और इतने खूबसूरत होते हैं"सोच रहा था ..हरिया उसके पास बैठ गया "बीबीजी आप ठीक हैं मत रोइए देखिए ओ चला गिया है..चुप हो जाइए"

हर्षा की तो हिचकी पर हिचकी बँध रही थी रोना तो जैसे अब बंद ही नहीं हो रहा था..इतना ख़तरनाक जानवर आख़िर ज़िंदगी मे पहेली बार उसके इतने करीब था सोच सोच कर हर्षा का दम निकाला जा रहा था..

हरिया से अब उसे चुप नहीं कराया जा रहा था उसे मालूम था कि पास वाले घर मे गुड्डू भैया के यहाँ सहर से कुछ लोग घूमने आए हैं..उसने हर्षा को अपनी बाहों में उठा लिया और चल दिया उसे छ्चोड़ने ...हरिया को तो जैसे लगा कि वो फूल सी नाज़ुक गुड़िया को उठाकेर ले जा रहा है..उसके हाथ हर्षा की टाँगों के नीचे और कमर के नीचे थे ...ज़्यादा ज़ोर से भी अगर हाथों को दबाया तो फूल सी गुड़िया टूट कर बिखर जाएगी...हर्षा की झाघों का स्पर्श मुलायम था और कमर एकदम पतली सी थी..उसे नहीं मालूम था के कॉन उसे उठा कर लाया था वो तो बस सदमे में ही थी...
 
दीपाली मानव घर आ चुके थे और अजय को हर्षा की टेंशन हो रही थी

"यार ये अभी तक आई नहीं कहाँ भेज दिया था भाभिजी आपने हर्षा को आपको मालूम था ना कि वो नादान है...मुझे ही उठा दिया होता तो चला जाता उसके साथ"अजय गुस्से मे भाभी पर तन तना रहा था

राधिका भाभी"अरे भैयाजि हमने तो बस पास ही मे भेजे थे बस आती ही होगी फिकर ना करिए आप"

अजय से रहा नहीं गया और वो जाने लगा उसे ढूढ़ने..अचानक हरिया की एंट्री हुई और वो अंदर आया उसकी बाहों मे हर्षा बिलख बिलख कर रो रही थी..देख कर ही सब के होश उड़ गये कि ऐसा क्या हो गया..हरिया ने उसे धीरे से वहीं चारपाई पर लेटा दिया...अजय पागलों की तरह हरिया को देख रहा था जैसे उसे जान से मार देगा"सीसी क्क्या हुआ इसे रो क्यूँ रही है ये"

हरिया ने सारी बात बताई कि कैसे हर्षा बैल के आ जाने से घबरा गई थी...

दीपाली और भाभिजी हर्षा को चुप करा रहे थे..अजय ने हरिया को थेक्श कहा और उसे जाने को बोल दिया हरिया वहाँ से चला गया...........


हर्षा रोते रोते सो चुकी थी दीपाली ,मानव और अजय भाभिजी से आँगन में बैठकेर बातें कर रहे थे शाम के 7 बज रहे थे....राधिका भाभी से थोड़ी देर तक बात केरने के बाद दीपाली उठी और हर्षा के पास चली गईइइ..मानव भी उठ कर चला गया ..भाभिजी और अजय दोनो अकेले बैठे हुए थे..आस पास उनकी लड़कियाँ खेल रही थी..अजय ने भाभिजी से पूछा"भाभिजी क्या आपको लड़के की कमी महसूस नहीं होती"

भाभिजी"ह्म्म अब होती भी है तो हम का कर सकत हैं भैईयाज़ी

...इसके पापा तो हमे खूब ताने मारत हैं कि जब देखो गर्भ मे लर्की को ही ले कर आती हैं..जे काहे नही सोचत हैं कि इनमे ही कमी हैं..औलाद मरद से होती हैं और लड़का या लड़की पैदा करना मारद के उपेर ही निर्भर होता और झेलते हम औरत लोग हैं"

अजय उसकी बातों को गोर से सुन रहा था....

वहाँ हर्षा को सपनो मे बैल का ख़ौफ़ सता रहा था...उसे रह रह कर अपने साथ घटने वाली घटना सपनो मे ही परेशान कर रही थी..अचानक दूर रोशनी से आता हुआ नौजवान उसे प्यार से बाँहो मे समेट लेता है और अब चारो तरफ अलग ही रोमांच सा प्रतीत होता है...हर्षा को सपनो मे हरिया का स्वरूप बार बार नज़र आ रहा था..वो इतना अच्छा इतना सच्चा ...उँचा कद काठी वाला कामुक निगाहें और उसके चौरे सीने से लगी हुई हर्षा .............. सब कुछ हर्षा अपने सपने में ही देख रही थी...और नींद मे ही बार्बरा रही थी..उसके बाजू मे लेटी दीपाली हर्षा के सिर पर हाथ फेर रही थी कि शायद हर्षा अभी भी सदमे में ही हैं....

...........................................


कॉलेज में पड़ाई का महॉल फिर से शुरू हो चुका था ..लड़किया उमैर की यादों मे ही अपने 2 4 आसू बहा लेती थी..गमों को भूल कर सबने पड़ाई केरना शुरू कर दिया था आख़िर कब तक वो भी शोक मे जीते..............?


वहाँ उमैर की ज़िंदगी और मौत का फ़ैसला लेना शायद नियती के हाथों मे ही था..उमैर को ये होश नहीं था कि वो ज़िंदा है या मर चुका है..गोशी का भाई उसे मार मार कर अधमरा करके रास्ते मे ही फैक कर चले गये थे ..ये सोचकेर कि कोई ट्रक या भारी वाहन के आने पर अच्छे से कुचल कर स्वयं ही मर जाएगा ...पर शायद नियती को कुछ और ही मंज़ूर था उसकी प्रेमिका द्वारा की गई लंबी उम्र की मिन्नतें उसे कैसे आसानी से मरने दे सकती थी..................

क्रमशः.............................
 
कमसिन जवानी-10

गतान्क से आयेज..........................

.......

फ़िज़ा इस बात से बिल्कुल बेख़बर थी कि उसके सेनिऔर अब इस दुनिया मे नही रहे वो अपने मामा के यहाँ गई थी कॉलेज मे होने वाली घटना का उसे मालूम नहीं था वरना वो खुद ही ज़िंदा नहीं रह पाती...फ़िज़ा अपने मामा के घर से जो की शहर से कुछ ही दूर था वहाँ एक हफ्ते के लिए शादी में गई थी लौट ते हुए अपने फार्म हाउस पर जा रही थी..फ़िज़ा का फार्म हाउस शहेर के हाइ वे के पास ही था ..रास्ते में फ़िज़ा बड़े आराम से गाड़ी चलाती हुई गाने सुनते हुए मस्ती मे चली जा रही थी कि अचानक उसे एक बॉडी जो की पेट के बल ओंधी पड़ी हुई थी को देखती है पहले तो डर के मारे काँप गई फ़िज़ा ने गाड़ी को सीधे लेकेर जाने का सोचा लेकिन पता नहीं उसे क्या हुआ और उसने गाड़ी को रोक दिया और धीरे धीरे अपने कदमो को उस बॉडी की तरफ बढ़ाने लगी...


बॉडी खून से सनी हुई थी..किसी नौजवान लड़के की ही लग रही थी..आसपास कोई नहीं था सुनसान रोड पर फ़िज़ा उस बॉडी के पास बैठी हुई थी.."हाए भगवान ये किसने इसे इतनी बेदर्दी से मार कर फैक दिया "कहते हुए फ़िज़ा ने बॉडी को सीधा किया और उसके लिए तो जैसे सब कुछ एक बार मे ख़तम हो गया...फ़िज़ा के सामने उसका सीनियर था जिसे उसने प्रपोज़ करा था..हमेशा जिसकी बाहों मे आकर फ़िज़ा गिरा करती थी..आज उसे फ़िज़ा की बाहों की उसके प्यार की और साथ की ज़रूरत थी..फ़िज़ा बदहवास हो चुकी थी उसे लग रहा था कि अब उसके जीने का मकसद ख़तम हो चुका है...फ़िज़ा वहीं पसार कर बैठ गई और उमैर के सीने पर सिर पटक पटक कर रोने लगी ..सीने पर सिर रखा और उसे धड़कनो की धीमी रफ़्तार सुनाई देने लगी..फ़िज़ा ने कार को पास लाकर उसे गाड़ी मे रखा और ले गयी उमैर को अपने फार्म हाउस पर.........जहाँ कोई आता जाता नहीं था


सुबह का सूरज निकल चुका था और नयी सुबह के साथ हर्ष कल अपने साथ हुई डरावनी घटना को भुला चुकी थी ..हर्षा को अब वो बैल वाली घटना याद नहीं आ रही थी उसे तो बस हरिया की मर्दानगी ही याद आरहि थी ..हरिया के बारे मे सोचते ही हर्षा की चूचियों मे उभार और बढ़ जाता था..और नीचे पॅंटी गीली हो जाती थी उसे समझ नहीं आता था कि आख़िर उसे प्यार हो गया है या फिर उसका जिस्म जवानी के सारे बंधानो को तोड़ कर हद से गुज़र जाना चाहता है वो भी क्या हरिया के साथ...."नहीं नहीं वो तो सिर्फ़ गाओ का एक मामूली सा लड़का है जो सिर्फ़ खेती किसानी मे ही जीवन बिता देगा ..वो मेरे लायक कहाँ है"सोच सोच कर हर्षा अपने बेचेन दिल को सांत्वना दे रही थी....हर्षा का मन फिर से उस नौजवान से मिलने को लालायित था..उसे थैंक्स कहने के लिए...
 
अजय सुबह सुबह उठ कर हर्षा को देखने उसके कमरे में गया..हर्षा वहाँ नहीं थी...और दीपाली का रूम बंद था अजय ने कान लगाकेर सुना तो सिसकिया और कामुक आवाज़े उसे कानो में सुनाई दी..वो समझ गया कि चुदाई अभी चरम सीमा पर है..उन्हे डिस्टर्ब ना केरते हुए अजय अपने रूम में आ गया और नंगा होकर लंड को हाथों मे पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा"क्या किस्मत है तेरी कहाँ शहेर में तुझे 2 3 दिन में एक आध चूत तो मिल ही जाती थी और यहाँ हिला हिला कर ही पिचकारिया छोड़ने पड़ रही हैं..."अजय अपने लंड को हिला ही रहा था कि अचानक उसी किसी के पुकारने की आवाज़ आई "काहो भैईयाज़ी हम अंदर आ जाए का? कछु(कुछ) काम है आपसे.........."अजय ने जल्दी से अपने शॉर्ट्स को उपेर खिछा "जी आ जाइए "

राधिका भाभी अंदर आ चुकी थी.."अर्रे भैईयाज़ी वो हमे 3 4 बाल्टी से पानी चाहिए उपेर की टंकी से वो जो कुआ के पास है उहा से(वहाँ से)चल के तनिक हमारी मदद केरवा देंगे"....अजय को जैसे आमंतरण सा मिल गया भाभिजी के बदन की खुश्बू पास से सूंघने का..अजय भाभिजी के साथ कुए के पास थोड़ी उपेर रखी टंकी मे से पानी निकालने लगा ..

राधिका भाभिइ"लाइए भैईयाज़ी हम भी पकड़ कर आपकी मदद करे"

और भाभिजी ने भी बाल्टी को दोनो हाथो से अजय क साथ ही पकड़ कर पानी निकलवाने लगी..बड़ी बड़ी 40 अककड़ की चूचियाँ बार बार अजय के हाथों से जा टकराती और अजय का लंड तन कर गर्म लोहा हुआ जा रहा था ..अचानक से चिकनी ज़मीन होने की वजेह से भाभिजी का पैर फिसल गया और वो वहीं ज़मीन पर "फ़च्छक" की आवाज़ के साथ फिसल गयी..अजय ने वहीं बाल्टी फेकि और भाभिजी को सम्हालते हुए"अरे अरे भाभिजी आप तो गिर गई आपको चोट तो नहीं लगी "

राधिका भाभिजी"अरे राम ...अरे हम का उठा तो सही कमर टेडी तो नहीं हो गई ..हे भगवान अब का होगा तनिक ले तो चलो हामका कमरे में....आयीयीयियैयियीयियी री "

अजय भाभिजी को उठाकेर कमरे में आया और उन्हे बिस्तेर पर लेटा दिया..


सामने भाभिजी दर्द से कराह रही थी और अजय का दिल ,दिमाग़ और लंड तीनो में खलबली मची थी..और ऐसा होता भी क्यूँ नहीं भाभिजी आधी भीगी हुई थी ..आधा ब्लाउस उनका गीला था और आधी साड़ी भीगी थी...भाभिजी दर्द से पागल हुई जा रही थी...राधिका भाभिजी"अर्रे राम ............भीया जी थोड़ा पीठ मल देंगे बोहोत दर्द हो रहा है.."

अजय"ह हां क्यूँ नही आप मूड कर पेट के बल लेट जाइए"

भाभिजी अपने पेट के बल लेट गयी ...राधिका"भीया जी वहाँ वो तेल की सीसी (बॉटल)जो रखी हैईना उसको उठाकेर मालिश कर दीजिए हमारी पीठ की..अजय उठ कर शीशी लेने गया तो वहाँ अलग अलग तेल की शीशियाँ रखीं हुई थी...अजय सरसो का तेल ले आया और वहीं बाहर आँगन मे जल रहे चूल्‍हे के अंगारों मे थोड़ी देर तक तेल गरम करा और भाभिजी के पास आकर बैठ गया ..भाभिजी दर्द से कराह रही थी..आह आहह की आवाज़े भाभिजी के मूह से सुनाई दे रही थी..भाभिजी का पल्लू उनके सीने के नीचे ही दबा हुआ था ... अजय को पीछे से सुर्ख लाल बौल्स दिख रहा था..क्लीवीज बड़ा था..नीचे चोट खाई कमर और फिर गंद की शुरूवात..अजय ने हाथों मे हल्का सा तेल ले लिया और भाभिजी की कमर की ज़ोर से मालिश केरने लगा...भाभिजी वहाँ की ठेठ औरत थी ..शहेर के लोग आ जाने की वजेह से वो अपने अभद्रा शब्दो और गंदी गालियों का उपयोग नहीं केरती थी..लेकिन आज भाभिजी को तकलीफ़ थी इसलिए वो कुछ भी बोल सकती थी..अजय धीरे धीरे पीठ की मालिश कर रहा था...राधिका भाभिजी"आब्ब्ब्बे बहेन के लोड्‍े ऐसे मलेगा तब तो हो गया मेरा सत्कार ...ढंग से मालिश केरना ..ज़ोर ज़ोर से..."

अजय उसके मूह से 'बहेन के लोड्‍े' सुनकेर घबरा गया ...साली कल तक तो भैईयाज़ी भैईयाज़ी कर रही अचानक कैसे इतना गंदा बोल रही है..अजय समझ गया था कि भाभिजी आज चुदे बिना नहीं मानेगी आज इसकी चूत को लंड खिला ना दिया तो अजय नहीं हैं मेरा नाम...अजय को टॉक चुदाई और गंदी बातों के साथ चोदने में सच मे बोहोत मज़ा आता था...

अजय"अर्रे भाभिजी रुक तो जाइए अभी ऐसी मालिश करूँगा ना कि बोलॉगी छ्चोड़ दो छ्चोड़ दो"

भाभिजी"डींगे मत हांक और चालू रख अपनी मालिश...आज देखती हूँ कि कितनी ज़ोर से मालिश कर सकता है तू मेरी.."

अजय ने दोनो हाथ से से चढ़ कर भाभिजी की पीठ पर मालिश केरना शुरू करा..
 
अजय पूरी ताक़त से भाभिजी की पीठ पर चढ़ चढ़ कर तेल से मालिश कर रहा था ..अजय के हाथ और भाभी की पीठ तेल से चिकनी हो गयी थी ..अजय ने पीछे से भाभी के पेटीकोआट से सारी को ढीला करा अब अजय के हाथ भाभी क़ी गांद के अंदर जाने लगे अजय ने और तेल लेकर गांद मे हाथ घुसाकर कर मालिश केरनी शुरू करी ..."कैसा लग रहा है पीछे ज़ोर ज़ोर से मालिश कर रहा हूँ?"अजय ने कहा

भाभिजी"ययए पीछे क्या होता है..भेन्चोद ,बहेन के लोड्‍े मालूम नहीं है क्या इसे गांद कहते हैं..अब ज़रा और ज़ोर ज़ोर से मल एक एक गांद को दबा दबा कर मल.."अजय को भाभी के मूह से ऐसी बातें सुनने मे खूब मज़ा आ रहा था..जो भाभी बोलती जा रही थी अजय वेसा ही कर रहा था..

अजय गांद पेर तेल मल रहा था और गंद को उपेर नीचे तक मालिश कर रहा था..ऐसा केरने से उसके हाथ भाभी की जांगों तक जा रहे थे और उपेर कमर तक आ रहे थे..अजय भाभिजी की गोरी और गदराई गंद को देखना चाहता था..

अजय ने अब भाभी बोलना छ्चोड़ दिया था.."तेरी गंद नंगी कर दूँ क्या ..?"

भाभी"गांद को नंगा कर दे और चढ़ चढ़ कर मालिश कर दे..आज निहाल कर दे इस गांद को कभी किसी ने इसे नही मला...आज तू मल दे मेरे मदर्चोद सेहरी हरामी.."

अजय को अब हैरानी नही हो रही थी..वो समझ गया कि भाभी को ऐसे ही मज़ा आता है

"अर्रे मेरी रांड़ आज तो पूरे जिस्म की मालिश कर दूँगा ..तेरे जिस्म के पूरे दर्द को कम कर दूँगा..बस तू देखती जा मेरी बहेन की लोंड़िया"अजय ने भाभिजी के पेटीकोआट आगे हाथ ले जाकेर खोल दिया और इसके साथ ही पूरा पेटीकोआट नीचे सरका दिया ...अब भाभी अजय के सामने पेट के बल लेती थी बस उपेर एक ब्लाउस था और पीछे से नंगी भाभी अजय के सामने थी..अजय ने दोनो पैरो के बीच आकर उसकी गांद की मालिश करनी शुरू करी.."मेरी रंडी आज देखले कैसे फाड़ देता हूँ में तेरी ..."अजय ने कहा

भाभी"अब्बे भोसड़ी से उगे हुए लंड ,तू क्या फाड़ेगा मेरी ,फेक मत ....आज देखती हूँ कि शहेर के लंड और देसी लंड मे क्या फ़र्क होता है..अर्रे कर के तो बता ....मदर्चोद"

अजय उसकी बातें सुन कर हस्ता भी जा रहा था उसे बोहोत सेक्सी फील हो रहा था.


भाभी"अब क्या गांद पर ही हाथ माल्ता रहेगा और ययए ...ये चूचिया मेरे इतने बड़े बड़े मम्मो का क्या होगा ..इसे अपने हाथों मे लेकर मल ,मा के लोड्‍े ,तेरे लंड मे ज़्यादा खुजाल चल रही है तो इसका दूध निकाल कर बता सहेर के भदुये.."

अजय ने फॉरन उसके ब्लाउस को फाड़ कर अलग करा और अपने हाथों मे तेल लेकेर उसके चूचियो को मसल्ने लगा .. भाभिजी का दूध अजय की मुट्ठी में फसे हुए थे..भाभी"अर्रे और कर ना..अहह अहह आज इन्हे और बड़ा कर दे ..चूस चूस कर मेरी चूची के दाने को बड़ा कर दे..! हयी अया और दबा हरम्खोर लंड के सूपदे...ही अपनी ज़बानी की कसम बोहोत अच्छा लग रहा है रज्जा.......मेरे भोसड़ी के ..मेरी चूत के दीवाने"

भाभिजी लगातार चूचियों के मसले जाने से अपनी सुध बुध खोती जा रही थी..

भाभी"अर्ररे ज़रा लंड तो बता कहाँ है में भी तो देखु कितना बड़ा लॉडा है तेरा...................हययययए तेरी लुल्ली को आज चूस चूस कर सूपड़ा का हाल बहाल ना कर दिया तो देख...आज में तेरी रांड़ हूँ हराम के जाए ...भोसड़ी से उगे हुए लंड , मेरे साजन"
 
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