desiaks
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- Aug 28, 2015
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मैं अब्बा पहुंचा ।
वो मेरी जानी-पहचानी जगह थी । उसकी आधी ग्रीक आधी हिंदोस्तानी हसीनतरीन बेली डांसर, पार्टनर सिल्विया ग्रेको से मेरी पुरानी वाकफियत थी । हजरात भूले न हों तो सिल्विया ग्रेको वही मेमसाहब हैं आप के खादिम इस पंजाबी पुत्तर ने मलिका के ताज वाले केस के दौरान जिन्हें बाकायदा चैलेंज करके उनकी मर्जी के खिलाफ उन्हें हासिल करके दिखाया था । उस केस में यूअर्स ट्रूली ने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि सिल्विया ग्रेको खुद चलकर मेरे साथ सोने आई थी । तब खाकसार ने अपने फ्लैट के बैडरूम में उसका जैसा निर्वसन बैली डांस देखा था, वैसा शायद ही कभी किसी को देखना नसीब हुआ होगा ।
अब्बा का दूसरा पार्टनर नरेंद्र कुमार भी मेरा जिगरी यार था लेकिन वो साइलेंट पार्टनर था और वहां कभी-कभार ही आता था ।
अब्बा डिफेंस कालोनी की एक दोमंजिला इमारत में स्थापित था जिसके ग्राउंड फ्लोर पर डिस्कोथेक था और पहली मंजिल पर सिल्विया का आवास था ।
अब्बा में आपके खादिम की कितनी पूछ थी, उसका ये भी सबूत था कि खुद फ्लोर मैनेजर ने आकर मुझे रिसीव किया ।
“मैडम कहां है ?” मैंने पूछा ।
“'ऊपर हैं ।” मैनेजर बोला, “मैं खबर कर देता हूं ।”
“कोई जल्दी नहीं । आराम से करना । मैं यहां ठहरूंगा थोड़ी देर ।”
“यू आर वैलकम, सर ।”
“मनोज माथुर को जानते हो ? वो फ्लैग स्टाफ रोड वाले के बी माथुर साहब का लड़का और .....”
“मैं जानता हूं सर ।”
“पहचानते भी हो ?”
“यस, रेगुलर पैट्रन है यहां का ।”
“इस वक्त है यहां ?”
“यस, सर । है ।”
“मैं नहीं पहचानता उसे । चुपचाप बताओ कहां है !”
उसने डांस फ्लोर के एक कोने के साथ लगी एक मेज की ओर इशारा किया जहां कि वो दो निहायत खूबवसूरत, नौजवान, जींसधारी हसीनाओं के साथ बैठा बतिया रहा था और ठहाके लगा रहा था ।
“सर” मैनेजर बोला, “कोई ड्रिंक...”
“अभी नहीं । बाद में । थैंक्यू सो मच फॉर नाओ ।”
वो अभिवादन करके परे हट गया ।
सीधे मनोज की टेबल पर पहुंचने की जगह मैंने रंगं-बिरंगी रोशनियों से जगमगाते, धुएं और शोर से भरे हॉल में एक चक्कर लगाया ।
मुझे दो और परिचित चेहरे दिखाई दिए ।
पुनीत खेतान डांस फ्लोर से थोड़ा परे बिछी टेबल पर एक सुंदर युवती से घुट-घुटकर बातें कर रहा था । दोनों के सामने ड्रिंक्स के गिलास थे ।
हॉल के एक बिल्कुल ही अलग-थलग कोने में एक मेज पर माथुर का प्राइवेट सैक्रेट्री नायर अकेला बैठा था । वो खामोशी से व्हिस्की चुसक रहा था और सिगरेट पी रहा था । डांस फ्लोर पर विलायती बैंड की धुनों पर थिरकते नोजवान जोड़ों में उसकी कोई दिलचस्पी मालूम नहीं होती थी ।
अब्बा वास्तव में एक थ्री-इन-वन जगह थी । वो डिस्को भी था, नाइट क्लब भी था और कैबरे जायंट भी था । यही वजह थी कि वहां के पैट्रन मनोज माथुर जैसे नौजवान भी थे, नायर जैसे उम्रदराज व्यक्ति भी थे और दोनों के बीच की उम्र वाले पुनीत खेतान जैसे व्यक्ति भी थे ।
मैंने घड़ी पर निगाह डाली । पौने नौ बजे थे । मुझे मालूम था कि नौ बजे डिस्को प्रेमी युवक युवतियों से डांस फ्लोर खाली करा लिया जाता था और फिर वहां एक घंटे के लिए कैब्रे कलाकारों की परफारमेंस चलती थी जिसे सिल्विया ग्रेको खुद इंट्रोड्यूस करती थी । दस से साढ़े ग्यारह बजे तक फिर डिस्को का शोर-शराबा चलता था और फिर कैब्रे की रात की आखिरी परफारमेंस होती थी । सिल्विया ग्रेको का बैली डांस देखना हर किसी को नसीब नहीं होता था । वो केवल आमंत्रित मेहमानों के सामने आधी रात के बाद होता था, पहले होता था तो पहली मंजिल पर होता था जहां हर किसी का आना-जाना संभव नहीं था ।
फ्लोर मैनेजर फिर मेरे करीब आया ।
“मैंने आपके लिए टेबल अरेंज कर दी है ।” वो बोला ।
“मैंने सहमति में सिर हिलाया और उसके साथ हो लिया । मैं नायर की टेबल के करीब से गुजरा तो मैंने एक गुप्त इशारा उसकी ओर किया ।
“इसे भी जानते हो ?” मैं दबे स्वर में बोला ।
“इसका नाम नायर है ।” मैनेजर ने बताया, “माथुर इंडस्ट्रीज में किसी ऊंचे औहदे पर बताता है अपने आपको ।”
“मालिक का प्राइवेट सैक्रेट्री है ।”
“आप भी जानते हैं इसे ?”
“हां । रोज आता है यहां ?”
“रोज तो नहीं, अलबत्ता हफ्ते में तीन-चार बार तो आता ही है ।”
“डिस्को में फिट बैठने वाली तो इसकी उम्र नहीं । कैब्रे का शौकीन होगा ।”
“डांस का नहीं” मैनेजर बड़े रहस्यपूर्ण स्वर में बोला, “डांसरों का । उनके नंगे जिस्मों के दर्शनों का ।”
“वो क्या प्राब्लम है ?”
“डांस फ्लोर पर नहीं, सर ।”
“तो ?”
“डांसरों के ड्रैसिंग रूम्स में । पता नहीं कैसा आदमी है ! कपड़े उतारती और कपड़े पहनती औरत का नजारा करके खुश हो जाता है । नाममात्र के तो कपड़े पहनकर कैब्रे डांसर फ्लोर पर आती है । लेकिन उसे देखकर इसको मजा नहीं आता है । इसको मजा आता है ये देखकर कि वो अपनी रोजमर्रा की पोशाक उतारकर उस कास्ट्यूम वाली स्टेज तक कैसे पहुंचती है और उस कास्ट्यूम को उतारकर अपनी रोजमर्रा की पोशाक कैसे पहनती है !”
“कमाल है !”
“मेंटल मालूम होता है, सर । लड़की फ्लोर पर कैब्रे कर रही होती है तो उसकी तरफ आंख नहीं उठाता । वो अपने ड्रेसिंग रूम में चेंज के लिए जाती है तो उससे पहले जाकर वहां छुप के बैठ जाता है ।”
“लड़की को पता नहीं लगता ?”
“आज तक तो लगा नहीं ।”
“लेकिन वो लेडीज के ड्रेसिंग कम में पहुंच कैसे जाता है ?”
“यहां के किसी वेटर की मेहरबानी से । सौ रुपए वेटर को देता है । पचास रुपए अटेंडेंट को । उसका काम बन जाता है ।”
“और तुम्हें ये बात मालूम है ।”
“हार्मलेस गेम है सर, किसी का कुछ नहीं बिगड़ता । स्टाफ चार पैसे कमा लेता है ।”
“लेकिन....”
“सर, जितने पैसे वेटरों को देता है, उतने वो कैब्रे डांसर को दे तो वो वैसे ही उसके सामने नंगी खड़ी हो जाए ।”
“फिर भी किसी को एतराज हो सकता है । कोई ऐसी तांक-झांक को नापंसद कर सकती है ।”
“पता लगेगा तो वो नौबत आएगी न, सर !”
“कभी आ गई वो नौबत तो ?”
“तो पकड़ के इसकी खातिर कर देंगे ।”
“बहुत बेइज्जती होगी बेचारे की ।”
“हमें क्या ! वैसे ऐसी नौबत न ही आए तो अच्छा है ।”
“आज आएगी ।”
“जी !”
“ये जब ड्रेसिंग रूम में जा छुपे तो मुझे खबर करना ।”
“सर !”
“डू ऐज आई से ।”
“यस, सर ।”
मैं एक टेबल पर पहुंचा । टेबल पर रिजर्वड की तख्ती रखी हुई थी जिसे मेरे बैठते ही मैंनेजर ने वहां से उठा लिया ।
“मैं बैठ गया । मैंने डनहिल का एक सिगरेट सुलगा लिया ।
फिर जैसे जादू के जोर से । ड्रिंक का एक गिलास मेरी कोहनी के करीब प्रकट हुआ ।
“मनोज माथुर के पास मेरा कार्ड ले जाओ ।” मैंने अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर मैनेजर को सौंपा, “उसे बोलो मैं एक मिनट के लिए उससे मिलना चाहता हूं । पूछो वो यहां आता है य मैं उसकी टेबल पर आऊं ?”
मैनेजर सहमति में सिर हिलाता चला गया ।
दो मिनट बाद वो वापस लौटा ।
“आपको बुला रहा है ।” उसने बताया ।
मैंने सहमति में सिर हिलाया और सिगरेट और ड्रिंक संभाले उठ खड़ा हुआ ।
तत्काल वेटर ने रिजर्वड वाली तख्ती वापस मेरी मेज पर रख दी ।
मैं मनोज माथुर की मेज पर पहुंचा ।
“हल्लो !” जींसधारी बालाओं को नजरअंदाज करके मैं उससे संबोधित हुआ, “बंदे को सुधीर कोहली कहते हैं ।”
“प्लीज सिट डाउन, मिस्टर कोहली ।” वो सुसंयत स्वर में बोला ।
“थैंक्यू ।” मैं चौथी, खाली कुर्सी पर बैठ गया ।
“वाट डु वांट, मिस्टर कोहली ?”
“मैं आज आपके पापा से मिला था । उन्होंने आपसे मेरा जिक्र किया होगा ।”
“मेरी आज डैडी से मलाकात नहीं हुई ।”
“दैट्स टू बैड । बहरहाल मेरा पेशा क्या है, ये आपने मेरे कार्ड पर पढ़ा ही होगा । आगे मैं बता देता हूं कि उन्होंने मुझे रिटेन किया है ।”
“अच्छा ! उन्हें प्राइवेट डिटेक्टिव का सेवाओं की क्या जरुरत पड़ गई ?”
“ये सवाल जरा नाजुक है ।” मैं एक उड़ती निगाह युवतियों पर डालता हुआ बोला, “मिक्सड कम्पनी में इसका जवाब देना मुनासिब नहीं होगा ।”
“नैवर माइंड । आई विल आस्क डैडी ।”
“जरूर ।”
“मेरे से क्या बात करना चाहत थे आप ?”
“मैं आपसे सिर्फ एक सवाल पूछना चाहता हूं ।”
“पूछिए ।”
“आपको शशिकांत के कत्ल की खबर है ?”
“है ।” वो नि:संकोच बोला ।
“कैसे ?”
“इसका जवाब” वो मुस्कराया और उसने अपनी सहेलियों की तरफ हाथ हिलाया, “मिक्स्ड कम्पनी में देना मुनासिब न होगा ।”
“आप शशिकांत को जानते थे ?”
“सिर्फ नाम से वाकिफ था ।”
“नाम से कैसे वाकिफ थे ?”
“वो मेरी सौतेली मां का कोई दूरदराज का रिश्तेदार होता था ।”
“कभी मुलाकात हुई आपकी उससे ?”
“न । कभी नहीं ।”
“कल शाम को भी नहीं ?”
वो मेरी जानी-पहचानी जगह थी । उसकी आधी ग्रीक आधी हिंदोस्तानी हसीनतरीन बेली डांसर, पार्टनर सिल्विया ग्रेको से मेरी पुरानी वाकफियत थी । हजरात भूले न हों तो सिल्विया ग्रेको वही मेमसाहब हैं आप के खादिम इस पंजाबी पुत्तर ने मलिका के ताज वाले केस के दौरान जिन्हें बाकायदा चैलेंज करके उनकी मर्जी के खिलाफ उन्हें हासिल करके दिखाया था । उस केस में यूअर्स ट्रूली ने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि सिल्विया ग्रेको खुद चलकर मेरे साथ सोने आई थी । तब खाकसार ने अपने फ्लैट के बैडरूम में उसका जैसा निर्वसन बैली डांस देखा था, वैसा शायद ही कभी किसी को देखना नसीब हुआ होगा ।
अब्बा का दूसरा पार्टनर नरेंद्र कुमार भी मेरा जिगरी यार था लेकिन वो साइलेंट पार्टनर था और वहां कभी-कभार ही आता था ।
अब्बा डिफेंस कालोनी की एक दोमंजिला इमारत में स्थापित था जिसके ग्राउंड फ्लोर पर डिस्कोथेक था और पहली मंजिल पर सिल्विया का आवास था ।
अब्बा में आपके खादिम की कितनी पूछ थी, उसका ये भी सबूत था कि खुद फ्लोर मैनेजर ने आकर मुझे रिसीव किया ।
“मैडम कहां है ?” मैंने पूछा ।
“'ऊपर हैं ।” मैनेजर बोला, “मैं खबर कर देता हूं ।”
“कोई जल्दी नहीं । आराम से करना । मैं यहां ठहरूंगा थोड़ी देर ।”
“यू आर वैलकम, सर ।”
“मनोज माथुर को जानते हो ? वो फ्लैग स्टाफ रोड वाले के बी माथुर साहब का लड़का और .....”
“मैं जानता हूं सर ।”
“पहचानते भी हो ?”
“यस, रेगुलर पैट्रन है यहां का ।”
“इस वक्त है यहां ?”
“यस, सर । है ।”
“मैं नहीं पहचानता उसे । चुपचाप बताओ कहां है !”
उसने डांस फ्लोर के एक कोने के साथ लगी एक मेज की ओर इशारा किया जहां कि वो दो निहायत खूबवसूरत, नौजवान, जींसधारी हसीनाओं के साथ बैठा बतिया रहा था और ठहाके लगा रहा था ।
“सर” मैनेजर बोला, “कोई ड्रिंक...”
“अभी नहीं । बाद में । थैंक्यू सो मच फॉर नाओ ।”
वो अभिवादन करके परे हट गया ।
सीधे मनोज की टेबल पर पहुंचने की जगह मैंने रंगं-बिरंगी रोशनियों से जगमगाते, धुएं और शोर से भरे हॉल में एक चक्कर लगाया ।
मुझे दो और परिचित चेहरे दिखाई दिए ।
पुनीत खेतान डांस फ्लोर से थोड़ा परे बिछी टेबल पर एक सुंदर युवती से घुट-घुटकर बातें कर रहा था । दोनों के सामने ड्रिंक्स के गिलास थे ।
हॉल के एक बिल्कुल ही अलग-थलग कोने में एक मेज पर माथुर का प्राइवेट सैक्रेट्री नायर अकेला बैठा था । वो खामोशी से व्हिस्की चुसक रहा था और सिगरेट पी रहा था । डांस फ्लोर पर विलायती बैंड की धुनों पर थिरकते नोजवान जोड़ों में उसकी कोई दिलचस्पी मालूम नहीं होती थी ।
अब्बा वास्तव में एक थ्री-इन-वन जगह थी । वो डिस्को भी था, नाइट क्लब भी था और कैबरे जायंट भी था । यही वजह थी कि वहां के पैट्रन मनोज माथुर जैसे नौजवान भी थे, नायर जैसे उम्रदराज व्यक्ति भी थे और दोनों के बीच की उम्र वाले पुनीत खेतान जैसे व्यक्ति भी थे ।
मैंने घड़ी पर निगाह डाली । पौने नौ बजे थे । मुझे मालूम था कि नौ बजे डिस्को प्रेमी युवक युवतियों से डांस फ्लोर खाली करा लिया जाता था और फिर वहां एक घंटे के लिए कैब्रे कलाकारों की परफारमेंस चलती थी जिसे सिल्विया ग्रेको खुद इंट्रोड्यूस करती थी । दस से साढ़े ग्यारह बजे तक फिर डिस्को का शोर-शराबा चलता था और फिर कैब्रे की रात की आखिरी परफारमेंस होती थी । सिल्विया ग्रेको का बैली डांस देखना हर किसी को नसीब नहीं होता था । वो केवल आमंत्रित मेहमानों के सामने आधी रात के बाद होता था, पहले होता था तो पहली मंजिल पर होता था जहां हर किसी का आना-जाना संभव नहीं था ।
फ्लोर मैनेजर फिर मेरे करीब आया ।
“मैंने आपके लिए टेबल अरेंज कर दी है ।” वो बोला ।
“मैंने सहमति में सिर हिलाया और उसके साथ हो लिया । मैं नायर की टेबल के करीब से गुजरा तो मैंने एक गुप्त इशारा उसकी ओर किया ।
“इसे भी जानते हो ?” मैं दबे स्वर में बोला ।
“इसका नाम नायर है ।” मैनेजर ने बताया, “माथुर इंडस्ट्रीज में किसी ऊंचे औहदे पर बताता है अपने आपको ।”
“मालिक का प्राइवेट सैक्रेट्री है ।”
“आप भी जानते हैं इसे ?”
“हां । रोज आता है यहां ?”
“रोज तो नहीं, अलबत्ता हफ्ते में तीन-चार बार तो आता ही है ।”
“डिस्को में फिट बैठने वाली तो इसकी उम्र नहीं । कैब्रे का शौकीन होगा ।”
“डांस का नहीं” मैनेजर बड़े रहस्यपूर्ण स्वर में बोला, “डांसरों का । उनके नंगे जिस्मों के दर्शनों का ।”
“वो क्या प्राब्लम है ?”
“डांस फ्लोर पर नहीं, सर ।”
“तो ?”
“डांसरों के ड्रैसिंग रूम्स में । पता नहीं कैसा आदमी है ! कपड़े उतारती और कपड़े पहनती औरत का नजारा करके खुश हो जाता है । नाममात्र के तो कपड़े पहनकर कैब्रे डांसर फ्लोर पर आती है । लेकिन उसे देखकर इसको मजा नहीं आता है । इसको मजा आता है ये देखकर कि वो अपनी रोजमर्रा की पोशाक उतारकर उस कास्ट्यूम वाली स्टेज तक कैसे पहुंचती है और उस कास्ट्यूम को उतारकर अपनी रोजमर्रा की पोशाक कैसे पहनती है !”
“कमाल है !”
“मेंटल मालूम होता है, सर । लड़की फ्लोर पर कैब्रे कर रही होती है तो उसकी तरफ आंख नहीं उठाता । वो अपने ड्रेसिंग रूम में चेंज के लिए जाती है तो उससे पहले जाकर वहां छुप के बैठ जाता है ।”
“लड़की को पता नहीं लगता ?”
“आज तक तो लगा नहीं ।”
“लेकिन वो लेडीज के ड्रेसिंग कम में पहुंच कैसे जाता है ?”
“यहां के किसी वेटर की मेहरबानी से । सौ रुपए वेटर को देता है । पचास रुपए अटेंडेंट को । उसका काम बन जाता है ।”
“और तुम्हें ये बात मालूम है ।”
“हार्मलेस गेम है सर, किसी का कुछ नहीं बिगड़ता । स्टाफ चार पैसे कमा लेता है ।”
“लेकिन....”
“सर, जितने पैसे वेटरों को देता है, उतने वो कैब्रे डांसर को दे तो वो वैसे ही उसके सामने नंगी खड़ी हो जाए ।”
“फिर भी किसी को एतराज हो सकता है । कोई ऐसी तांक-झांक को नापंसद कर सकती है ।”
“पता लगेगा तो वो नौबत आएगी न, सर !”
“कभी आ गई वो नौबत तो ?”
“तो पकड़ के इसकी खातिर कर देंगे ।”
“बहुत बेइज्जती होगी बेचारे की ।”
“हमें क्या ! वैसे ऐसी नौबत न ही आए तो अच्छा है ।”
“आज आएगी ।”
“जी !”
“ये जब ड्रेसिंग रूम में जा छुपे तो मुझे खबर करना ।”
“सर !”
“डू ऐज आई से ।”
“यस, सर ।”
मैं एक टेबल पर पहुंचा । टेबल पर रिजर्वड की तख्ती रखी हुई थी जिसे मेरे बैठते ही मैंनेजर ने वहां से उठा लिया ।
“मैं बैठ गया । मैंने डनहिल का एक सिगरेट सुलगा लिया ।
फिर जैसे जादू के जोर से । ड्रिंक का एक गिलास मेरी कोहनी के करीब प्रकट हुआ ।
“मनोज माथुर के पास मेरा कार्ड ले जाओ ।” मैंने अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर मैनेजर को सौंपा, “उसे बोलो मैं एक मिनट के लिए उससे मिलना चाहता हूं । पूछो वो यहां आता है य मैं उसकी टेबल पर आऊं ?”
मैनेजर सहमति में सिर हिलाता चला गया ।
दो मिनट बाद वो वापस लौटा ।
“आपको बुला रहा है ।” उसने बताया ।
मैंने सहमति में सिर हिलाया और सिगरेट और ड्रिंक संभाले उठ खड़ा हुआ ।
तत्काल वेटर ने रिजर्वड वाली तख्ती वापस मेरी मेज पर रख दी ।
मैं मनोज माथुर की मेज पर पहुंचा ।
“हल्लो !” जींसधारी बालाओं को नजरअंदाज करके मैं उससे संबोधित हुआ, “बंदे को सुधीर कोहली कहते हैं ।”
“प्लीज सिट डाउन, मिस्टर कोहली ।” वो सुसंयत स्वर में बोला ।
“थैंक्यू ।” मैं चौथी, खाली कुर्सी पर बैठ गया ।
“वाट डु वांट, मिस्टर कोहली ?”
“मैं आज आपके पापा से मिला था । उन्होंने आपसे मेरा जिक्र किया होगा ।”
“मेरी आज डैडी से मलाकात नहीं हुई ।”
“दैट्स टू बैड । बहरहाल मेरा पेशा क्या है, ये आपने मेरे कार्ड पर पढ़ा ही होगा । आगे मैं बता देता हूं कि उन्होंने मुझे रिटेन किया है ।”
“अच्छा ! उन्हें प्राइवेट डिटेक्टिव का सेवाओं की क्या जरुरत पड़ गई ?”
“ये सवाल जरा नाजुक है ।” मैं एक उड़ती निगाह युवतियों पर डालता हुआ बोला, “मिक्सड कम्पनी में इसका जवाब देना मुनासिब नहीं होगा ।”
“नैवर माइंड । आई विल आस्क डैडी ।”
“जरूर ।”
“मेरे से क्या बात करना चाहत थे आप ?”
“मैं आपसे सिर्फ एक सवाल पूछना चाहता हूं ।”
“पूछिए ।”
“आपको शशिकांत के कत्ल की खबर है ?”
“है ।” वो नि:संकोच बोला ।
“कैसे ?”
“इसका जवाब” वो मुस्कराया और उसने अपनी सहेलियों की तरफ हाथ हिलाया, “मिक्स्ड कम्पनी में देना मुनासिब न होगा ।”
“आप शशिकांत को जानते थे ?”
“सिर्फ नाम से वाकिफ था ।”
“नाम से कैसे वाकिफ थे ?”
“वो मेरी सौतेली मां का कोई दूरदराज का रिश्तेदार होता था ।”
“कभी मुलाकात हुई आपकी उससे ?”
“न । कभी नहीं ।”
“कल शाम को भी नहीं ?”