desiaks
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मैंने सहमति में सिर हिलाया और स्टडी के बंद दरवाजे की तरफ देखा ।
तभी मदान वहां से बाहर निकला । मैं लपककर उसके करीब पहुंचा । वो मुझे एक ओर ले गया और भुनभुनाता सा बोला, “लक्ख रुपया मांग रहा है वो इंस्पेक्टर का बच्चा मधु का पीछा छोड़ने का ।”
“दे रहे हो ?” मैं बोला ।
“और क्या न दूं ?”
“जरुर दो । तुम्हारी हसीन बीवी को एक पल भी हवालात में काटना पड़ गया तो जिन्दगी भर वो तुम्हारी दुक्की पीटती रहेगी ।”
“वही तो ।”
“और अब बदले में कई लाखों की बात सुनो ।”
“कौन-सी ?”
मैंने उसे खेतान की ख्वाहिश की बाबत बताया ।
“ऐदी भैन दी ।” सुनते ही मदान भड़का, “ब्लैकमेल करता है मुझे ! माईयंवी मेरी बिल्ली मेरे से म्याऊं !”
“भडको मत ।” मैं बोला, “शांति से फैसला करो । जो तुम्हारा आखिरी मकसद था, उसको निगाह में रखकर, सोचकर फैसला करो । मैं जरा इंस्पेक्टर से बात करके आता हूं ।”
यादव मुझे स्टडी में मिला । उस घड़ी उसके चेहरे पर परम तृप्ति के भाव थे ।
“आधा मेरा ।” मैं बोला ।
“क्या ?” वो हकबकाया ।
“माल । मदान से हासिल होने वाला । उसमें से पचास हजार मुझे ।”
“पागल हुए हो !”
“ये न भूलो कि ये केस मेरी वजह से ही हल हुआ है ।”
“तुम भी ये न भूलो कि तुम और खेतान एक ही हथकड़ी में बंधे हो सकते हो ।”
“कोई बात नहीं । हम दोनों की मंजिल एक नहीं हो सकती । मेरे पर कोई गंभीर चार्ज नहीं है । आराम से छूट जाऊंगा । लेकिन छूटते ही विकास मीनार पर चढ़कर दुहाई दूंगा कि तुमने मदान दादा से लाख रुपए की रिश्वत खाई है । मेरी दुहाई पुलिस हैडक्वार्टर के एक-एक कमरे में सुनाई देगी ।”
“अबे, कमीन...”
“वो तो मैं हूं ही । दो ही चीजों की कीमत है आजकल दिल्ली शहर में । जमीन की और कमीन की ।”
“तुम्हें आधा हिस्सा चाहिए या पचास हजार रूपया ।”
“क्या फर्क हुआ ?”
“अगर आधा चाहिए तो मैं अभी मदान से दो लाख मांगता हूं । पचास हजार चाहिए तो डेढ़ लाख मांगता हूं ।”
“यानी कि तुम्हें तो एक लाख चाहिए ही चाहिए ।”
“बिल्कुल !”
“फिर तो” मैं मरे स्वर में बोला, “मैं खुद ही कर लूंगा मदान से अपना हिसाब-किताब ।”
यादव बड़े कुटिल भाव से मुस्कुराया ।
हजरात, उस हैरान और हलकान कर देने वाले केस का जो असली इनाम आपके खादिम को मिला वो डेढ़ लाख रुपए की फीस नहीं थी जो मैंने अपने दो संपन्न क्लायंटों से कमाई थी, वो मेरे गरीबखाने पर शुक्रगुजार होने को आई एक हसीना की आमद थी जो यूं शुक्रगुजार होना चाहती थी जैसे कोई औरत ही किसी मर्द की हो सकती थी ।
रात को जब मैं ग्रेटर कैलाश पहुंचा तो पिंकी वहां मुझे मेरा इंतजार करती मिली ।
अपने वादे के मुताबिक मुझे ‘सबकुछ’ लाइव दिखाने के लिए ।
तभी मदान वहां से बाहर निकला । मैं लपककर उसके करीब पहुंचा । वो मुझे एक ओर ले गया और भुनभुनाता सा बोला, “लक्ख रुपया मांग रहा है वो इंस्पेक्टर का बच्चा मधु का पीछा छोड़ने का ।”
“दे रहे हो ?” मैं बोला ।
“और क्या न दूं ?”
“जरुर दो । तुम्हारी हसीन बीवी को एक पल भी हवालात में काटना पड़ गया तो जिन्दगी भर वो तुम्हारी दुक्की पीटती रहेगी ।”
“वही तो ।”
“और अब बदले में कई लाखों की बात सुनो ।”
“कौन-सी ?”
मैंने उसे खेतान की ख्वाहिश की बाबत बताया ।
“ऐदी भैन दी ।” सुनते ही मदान भड़का, “ब्लैकमेल करता है मुझे ! माईयंवी मेरी बिल्ली मेरे से म्याऊं !”
“भडको मत ।” मैं बोला, “शांति से फैसला करो । जो तुम्हारा आखिरी मकसद था, उसको निगाह में रखकर, सोचकर फैसला करो । मैं जरा इंस्पेक्टर से बात करके आता हूं ।”
यादव मुझे स्टडी में मिला । उस घड़ी उसके चेहरे पर परम तृप्ति के भाव थे ।
“आधा मेरा ।” मैं बोला ।
“क्या ?” वो हकबकाया ।
“माल । मदान से हासिल होने वाला । उसमें से पचास हजार मुझे ।”
“पागल हुए हो !”
“ये न भूलो कि ये केस मेरी वजह से ही हल हुआ है ।”
“तुम भी ये न भूलो कि तुम और खेतान एक ही हथकड़ी में बंधे हो सकते हो ।”
“कोई बात नहीं । हम दोनों की मंजिल एक नहीं हो सकती । मेरे पर कोई गंभीर चार्ज नहीं है । आराम से छूट जाऊंगा । लेकिन छूटते ही विकास मीनार पर चढ़कर दुहाई दूंगा कि तुमने मदान दादा से लाख रुपए की रिश्वत खाई है । मेरी दुहाई पुलिस हैडक्वार्टर के एक-एक कमरे में सुनाई देगी ।”
“अबे, कमीन...”
“वो तो मैं हूं ही । दो ही चीजों की कीमत है आजकल दिल्ली शहर में । जमीन की और कमीन की ।”
“तुम्हें आधा हिस्सा चाहिए या पचास हजार रूपया ।”
“क्या फर्क हुआ ?”
“अगर आधा चाहिए तो मैं अभी मदान से दो लाख मांगता हूं । पचास हजार चाहिए तो डेढ़ लाख मांगता हूं ।”
“यानी कि तुम्हें तो एक लाख चाहिए ही चाहिए ।”
“बिल्कुल !”
“फिर तो” मैं मरे स्वर में बोला, “मैं खुद ही कर लूंगा मदान से अपना हिसाब-किताब ।”
यादव बड़े कुटिल भाव से मुस्कुराया ।
हजरात, उस हैरान और हलकान कर देने वाले केस का जो असली इनाम आपके खादिम को मिला वो डेढ़ लाख रुपए की फीस नहीं थी जो मैंने अपने दो संपन्न क्लायंटों से कमाई थी, वो मेरे गरीबखाने पर शुक्रगुजार होने को आई एक हसीना की आमद थी जो यूं शुक्रगुजार होना चाहती थी जैसे कोई औरत ही किसी मर्द की हो सकती थी ।
रात को जब मैं ग्रेटर कैलाश पहुंचा तो पिंकी वहां मुझे मेरा इंतजार करती मिली ।
अपने वादे के मुताबिक मुझे ‘सबकुछ’ लाइव दिखाने के लिए ।
समाप्त