hotaks444
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ट्रेन में अगली सुबह
सुबह चाय वाले के शोर से मेरी नींद खुल गई और मैंने कम्बल हटा कर देखा तो सभी लोग लगभग जाग चुके थे। घड़ी में देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे। आंटी, मामा जी, नेहा दीदी और मेरी प्राणप्रिय प्रिया रानी अपने अपने कम्बलों में घुस कर बैठे हुए थे और उन सबके हाथों में चाय का प्याला था। बस रिंकी अब भी सो रही थी। मैं रात की बात याद करके मुस्कुरा उठा, सोचा शायद कल के मुखचोदन से इतनी तृप्ति मिली है उसे कि समय का ख्याल ही नहीं रहा होगा।
“चाय पियोगे बेटा…?” आंटी की खनकती आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा।
मैं एक पल के लिए उनकी आँखों में देखने लगा और सोचने लगा कि क्या यह वही औरत है जिसने कल रात मेरे पैरो से अपनी चूत को मसलवाया था… उन्हें देख कर कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि उन्हें कल रात वाली बात का कुछ पता है और या फिर अगर पता है तो उसका कोई मलाल है।
मैं थोड़ा हैरान था, लेकिन फिर गौर से उनकी आँखों में देखने से पता चला कि उन्हें भी इस बात का एहसास है कि मैं क्या समझने की कोशिश कर रहा हूँ।
“अरे किस ख्यालों में खो गया…अभी तो मंजिल थोड़ी दूर है…!” आंटी ने बड़े ही अजीब तरीके से कहा, मानो वो कहना कुछ और चाह रही हों और कह कुछ और रहीं हों।
“हाँ आंटी, मंजिल तो दूर ही है लेकिन पहुँचना तो पक्का ही है!” पता नहीं मेरे मुँह से यह कैसे निकल गया। मेरे हिसाब से तो यह बात आंटी की उस बात का जवाब था जो उन्होंने शायद किसी और ही मतलब से कही थी लेकिन उन्होंने मेरी बात को अपने तरीके से ही समझा और अपने होंठों को अपने दांतों से काट कर मेरी तरफ देखा और एकदम से अपना चेहरा घुमा लिया और चाय का प्याला भरने लगीं।
मैंने भी अपना ध्यान उनकी तरफ से हटा कर दूसरी तरफ किया और उनके हाथों से चाय का कप ले लिया।
थोड़ी देर में हम सब फ्रेश हो गए और एक दूसरे से बातें करते हुए पटना स्टेशन के आने से कुछ पहले तक हमने अपने अपने सामान को ठीक कर लिया। हमें पटना उतर कर वहाँ से बस लेनी थी।
ट्रेन लगभग अपने सही टाइम से करीब पौनें सात बजे पटना स्टेशन पहुँच गई। हम सब उतर गए और स्टेशन से बाहर आ गए। सामने ही एक भव्य और मशहूर मंदिर है, पटना मैं पहली बार आया था लेकिन इस मंदिर के बारे में मैनें सुना बहुत था। महावीर स्थान को देखते ही मैंने प्रणाम किया और बजरंगबली से अपने और अपने पूरे परिवार की सुख और शांति की कामना की। साथ ही मैंने उन्हें प्रिया को मेरी ज़िन्दगी में भेजने के लिए धन्यवाद भी किया।
उस वक़्त मुझे सच में इस बात का एहसास हुआ कि मैं प्रिया से कितना प्यार करने लगा था… यूँ तो मैंने रिंकी को भी अपनी बाहों में भरा था और कहीं न कहीं आंटी के लिए भी मेरे मन में वासना के भाव थे लेकिन भगवान के सामने सर झुकाते ही मुझे सिर्फ और सिर्फ प्रिया का ही ख्याल आया।
खैर, हम सब वहाँ से हार्डिंग पार्क पहुँचे जो पटना का मुख्य बस अड्डा था खचाखच भीड़ से भरा हुआ…
बस का सफर और प्रिया के नाना जी का घर
मामा जी ने जल्दी से एक बढ़िया सी बस की तरफ हम सबका ध्यान आकर्षित किया और हमें उसमें चढ़ जाने के लिए कहा। शायद हमारी सीट पहले से ही बुक थी। हम सब बस में चढ़ गए और मामा जी के कहे अनुसार अपनी अपनी सीट पर बैठ गए। बस 2/2 सीट की थी तो नेहा दीदी और रिंकी एक साथ बैठ गईं। प्रिया अपने मामा जी की बड़ी लाडली थी सो वो उनके साथ बैठ गई…
वैसे मैं चाहता था कि प्रिया मेरे साथ बैठे लेकिन मामा जी के साथ साथ होने पर प्रिया के चेहरे पर जो ख़ुशी और मुस्कराहट दिखाई दे रही थी मैं उस ख़ुशी के बीच में नहीं आना चाहता था। अब मैं और आंटी ही बचे थे तो हम फिर से एक बार और साथ साथ बैठ गए।
मेरा दिल धड़कने लगा और मेरी आँखों में बस कल रात का दृश्य घूमने लगा… सच बताऊँ तो मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा पैर अब भी आंटी की साड़ी के अन्दर से उनकी चूत को मसल रहा है और उनका घुटना मेरे लंड को। मैं थोड़ा सा असहज होकर उनके साथ बैठ गया।
सुबह का वक़्त था और थोड़ी-थोड़ी ठंड थी, मैं बैठा भी था खिड़की की तरफ। मैंने अपने हाथ मलने शुरू किये तो आंटी ने बैग से एक शॉल निकाली और दोनों के ऊपर डाल ली। मेरी नींद पूरी नहीं हुई थी इसलिए मैं बस के चलते ही ऊँघने सा लगा। पटना से दरभंगा की दूरी 4 से 5 घंटे की थी। मैं खुश था कि अपनी आधी नींद मैं पूरी कर लूँगा। वैसे भी प्रिया तो मेरे साथ थी नहीं कि मैं जगता… लेकिन एक कौतूहल तो अब भी था मन में.. स्मिता आंटी थीं मेरे साथ, और जो कुछ कल रात हुआ था वो काफी था मेरी नींद उड़ाने के लिए। मैं अपने आपको रोकना चाहता था इसलिए मैंने सो जाना ही बेहतर समझा और अपना सर सीट पे टिका कर सोने की कोशिश करने लगा। स्मिता आंटी के साथ किसी भी नई अनहोनी से बचने का यह सबसे अच्छा तरीका नज़र आया मुझे।
15 से 20 मिनट के अन्दर ही मैं गहरी नींद में सो गया। बस की खिड़की से आती हुई ठंडी ठंडी हवा मुझे और भी सुकून दे रही थी।
“चलो अब उठ भी जाओ… सोनू… ओ सोनू… उठ जाओ, हम पहुँच गए हैं..” स्मिता आंटी ने धीरे धीरे मेरे कन्धों को हिलाकर मुझे उठाया तो मैंने अपनी आँखें खोलीं।
दिन पूरी तरह चढ़ आया था और सूरज की रोशनी में मेरी आँखें चुन्धियाँ सी गईं। करीब 12 बज चुके थे.. पता ही नहीं चला… मैं पूरे रास्ते सोता रहा !!
मैं खुश हुआ कि हम आखिरकार पहुँच ही गए… लेकिन मैं थोड़ा हैरान भी था, यह सोच कर कि पूरे रास्ते आंटी ने कुछ भी नहीं किया… या शायद कुछ किया हो और मैं नींद में समझ नहीं पाया… क्या आंटी ने कल रात जैसी उत्तेजना दिखाई थी…. वैसी उत्तेजना उन्होंने बस में भी महसूस नहीं करी…? या फिर वो जानबूझ कर शांत रहीं…?
मन में हजारों सवाल लिए मैं बस से नीचे उतरा। उतर कर देखा तो प्रिया के छोटे वाले मामा अपनी बेटी के साथ हमें लेने बस अड्डे आये हुए थे। प्रिया भाग कर अपने छोटे मामा की बेटी यानी अपनी ममेरी बहन के गले लग गई और वो दोनों उछल उछल कर एक दूसरे से मिलने लगे… उन्हें देख कर मुझे हंसी आ गई… बिल्कुल बच्चों की तरह मिल रही थीं दोनों।
हम सबने एक दूसरे को राम सलाम किया और उनके जीप में बैठ कर लगभग आधे घंटे के अन्दर प्रिया के नाना जी के घर पहुँच गए। मैंने चैन की सांस ली।
सुबह चाय वाले के शोर से मेरी नींद खुल गई और मैंने कम्बल हटा कर देखा तो सभी लोग लगभग जाग चुके थे। घड़ी में देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे। आंटी, मामा जी, नेहा दीदी और मेरी प्राणप्रिय प्रिया रानी अपने अपने कम्बलों में घुस कर बैठे हुए थे और उन सबके हाथों में चाय का प्याला था। बस रिंकी अब भी सो रही थी। मैं रात की बात याद करके मुस्कुरा उठा, सोचा शायद कल के मुखचोदन से इतनी तृप्ति मिली है उसे कि समय का ख्याल ही नहीं रहा होगा।
“चाय पियोगे बेटा…?” आंटी की खनकती आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा।
मैं एक पल के लिए उनकी आँखों में देखने लगा और सोचने लगा कि क्या यह वही औरत है जिसने कल रात मेरे पैरो से अपनी चूत को मसलवाया था… उन्हें देख कर कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि उन्हें कल रात वाली बात का कुछ पता है और या फिर अगर पता है तो उसका कोई मलाल है।
मैं थोड़ा हैरान था, लेकिन फिर गौर से उनकी आँखों में देखने से पता चला कि उन्हें भी इस बात का एहसास है कि मैं क्या समझने की कोशिश कर रहा हूँ।
“अरे किस ख्यालों में खो गया…अभी तो मंजिल थोड़ी दूर है…!” आंटी ने बड़े ही अजीब तरीके से कहा, मानो वो कहना कुछ और चाह रही हों और कह कुछ और रहीं हों।
“हाँ आंटी, मंजिल तो दूर ही है लेकिन पहुँचना तो पक्का ही है!” पता नहीं मेरे मुँह से यह कैसे निकल गया। मेरे हिसाब से तो यह बात आंटी की उस बात का जवाब था जो उन्होंने शायद किसी और ही मतलब से कही थी लेकिन उन्होंने मेरी बात को अपने तरीके से ही समझा और अपने होंठों को अपने दांतों से काट कर मेरी तरफ देखा और एकदम से अपना चेहरा घुमा लिया और चाय का प्याला भरने लगीं।
मैंने भी अपना ध्यान उनकी तरफ से हटा कर दूसरी तरफ किया और उनके हाथों से चाय का कप ले लिया।
थोड़ी देर में हम सब फ्रेश हो गए और एक दूसरे से बातें करते हुए पटना स्टेशन के आने से कुछ पहले तक हमने अपने अपने सामान को ठीक कर लिया। हमें पटना उतर कर वहाँ से बस लेनी थी।
ट्रेन लगभग अपने सही टाइम से करीब पौनें सात बजे पटना स्टेशन पहुँच गई। हम सब उतर गए और स्टेशन से बाहर आ गए। सामने ही एक भव्य और मशहूर मंदिर है, पटना मैं पहली बार आया था लेकिन इस मंदिर के बारे में मैनें सुना बहुत था। महावीर स्थान को देखते ही मैंने प्रणाम किया और बजरंगबली से अपने और अपने पूरे परिवार की सुख और शांति की कामना की। साथ ही मैंने उन्हें प्रिया को मेरी ज़िन्दगी में भेजने के लिए धन्यवाद भी किया।
उस वक़्त मुझे सच में इस बात का एहसास हुआ कि मैं प्रिया से कितना प्यार करने लगा था… यूँ तो मैंने रिंकी को भी अपनी बाहों में भरा था और कहीं न कहीं आंटी के लिए भी मेरे मन में वासना के भाव थे लेकिन भगवान के सामने सर झुकाते ही मुझे सिर्फ और सिर्फ प्रिया का ही ख्याल आया।
खैर, हम सब वहाँ से हार्डिंग पार्क पहुँचे जो पटना का मुख्य बस अड्डा था खचाखच भीड़ से भरा हुआ…
बस का सफर और प्रिया के नाना जी का घर
मामा जी ने जल्दी से एक बढ़िया सी बस की तरफ हम सबका ध्यान आकर्षित किया और हमें उसमें चढ़ जाने के लिए कहा। शायद हमारी सीट पहले से ही बुक थी। हम सब बस में चढ़ गए और मामा जी के कहे अनुसार अपनी अपनी सीट पर बैठ गए। बस 2/2 सीट की थी तो नेहा दीदी और रिंकी एक साथ बैठ गईं। प्रिया अपने मामा जी की बड़ी लाडली थी सो वो उनके साथ बैठ गई…
वैसे मैं चाहता था कि प्रिया मेरे साथ बैठे लेकिन मामा जी के साथ साथ होने पर प्रिया के चेहरे पर जो ख़ुशी और मुस्कराहट दिखाई दे रही थी मैं उस ख़ुशी के बीच में नहीं आना चाहता था। अब मैं और आंटी ही बचे थे तो हम फिर से एक बार और साथ साथ बैठ गए।
मेरा दिल धड़कने लगा और मेरी आँखों में बस कल रात का दृश्य घूमने लगा… सच बताऊँ तो मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा पैर अब भी आंटी की साड़ी के अन्दर से उनकी चूत को मसल रहा है और उनका घुटना मेरे लंड को। मैं थोड़ा सा असहज होकर उनके साथ बैठ गया।
सुबह का वक़्त था और थोड़ी-थोड़ी ठंड थी, मैं बैठा भी था खिड़की की तरफ। मैंने अपने हाथ मलने शुरू किये तो आंटी ने बैग से एक शॉल निकाली और दोनों के ऊपर डाल ली। मेरी नींद पूरी नहीं हुई थी इसलिए मैं बस के चलते ही ऊँघने सा लगा। पटना से दरभंगा की दूरी 4 से 5 घंटे की थी। मैं खुश था कि अपनी आधी नींद मैं पूरी कर लूँगा। वैसे भी प्रिया तो मेरे साथ थी नहीं कि मैं जगता… लेकिन एक कौतूहल तो अब भी था मन में.. स्मिता आंटी थीं मेरे साथ, और जो कुछ कल रात हुआ था वो काफी था मेरी नींद उड़ाने के लिए। मैं अपने आपको रोकना चाहता था इसलिए मैंने सो जाना ही बेहतर समझा और अपना सर सीट पे टिका कर सोने की कोशिश करने लगा। स्मिता आंटी के साथ किसी भी नई अनहोनी से बचने का यह सबसे अच्छा तरीका नज़र आया मुझे।
15 से 20 मिनट के अन्दर ही मैं गहरी नींद में सो गया। बस की खिड़की से आती हुई ठंडी ठंडी हवा मुझे और भी सुकून दे रही थी।
“चलो अब उठ भी जाओ… सोनू… ओ सोनू… उठ जाओ, हम पहुँच गए हैं..” स्मिता आंटी ने धीरे धीरे मेरे कन्धों को हिलाकर मुझे उठाया तो मैंने अपनी आँखें खोलीं।
दिन पूरी तरह चढ़ आया था और सूरज की रोशनी में मेरी आँखें चुन्धियाँ सी गईं। करीब 12 बज चुके थे.. पता ही नहीं चला… मैं पूरे रास्ते सोता रहा !!
मैं खुश हुआ कि हम आखिरकार पहुँच ही गए… लेकिन मैं थोड़ा हैरान भी था, यह सोच कर कि पूरे रास्ते आंटी ने कुछ भी नहीं किया… या शायद कुछ किया हो और मैं नींद में समझ नहीं पाया… क्या आंटी ने कल रात जैसी उत्तेजना दिखाई थी…. वैसी उत्तेजना उन्होंने बस में भी महसूस नहीं करी…? या फिर वो जानबूझ कर शांत रहीं…?
मन में हजारों सवाल लिए मैं बस से नीचे उतरा। उतर कर देखा तो प्रिया के छोटे वाले मामा अपनी बेटी के साथ हमें लेने बस अड्डे आये हुए थे। प्रिया भाग कर अपने छोटे मामा की बेटी यानी अपनी ममेरी बहन के गले लग गई और वो दोनों उछल उछल कर एक दूसरे से मिलने लगे… उन्हें देख कर मुझे हंसी आ गई… बिल्कुल बच्चों की तरह मिल रही थीं दोनों।
हम सबने एक दूसरे को राम सलाम किया और उनके जीप में बैठ कर लगभग आधे घंटे के अन्दर प्रिया के नाना जी के घर पहुँच गए। मैंने चैन की सांस ली।