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- Dec 5, 2013
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“हूं।" सब सुनने के बाद रश्मि के हलक से वैसी ही गुर्राहट उभरी जैसी भूख और हिंसक सिंहनी के कण्ठ से निकलती है। चेहरा विकृत-सा हो गया उसका , आंखों से चिंगारियां निकलने लगीं। मुंह से निकली गुर्राहट—"तो उन हरामजादों ने मेरे सर्वेश को जहर देकर मार था।"
“फिलहाल डॉली के बयान से तो ऐसा ही लगता है।" युवक ने कहा—“और ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं है कि डॉली झूठ बोल रही होगी।"
"बीयर उनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी—मेरे लाख मना करने पर भी बीयर नहीं छोड़ सके थे वे और यही बीयर उन्हें ले डूबी—शायद 'शाही कोबरा' कहलाने वाले हत्यारे को भी उनकी इस कमजोरी की जानकारी थी।"
युवक ने सोचने की कोशिश की कि क्या बीयर मुझे पसंद है ?
ठीक से निश्चय नहीं कर सका वह।
बोला—"मैं न कहता था रश्मि कि रंगा-बिल्ला को एकदम से शूट कर देना उचित नहीं होगा—अब देखो , स्पष्ट होकर यही बात सामने आ रही है कि वे दोनों तो सिर्फ हत्यारे के सहायक थे—असली हत्यारा कोई 'शाही कोबरा ' नामक व्यक्ति है।"
“मुझे वही चाहिए।"
"उस तक हमें रंगा-बिल्ला पहुंचा सकते हैं—सुना है कि वे 'मुगल महल ' में आते रहते हैं—डॉली को मैंने समझा दिया है—अब जिस दिन भी वहां रंगा-बिल्ला आएंगे , वह किसी भी माध्यम से मुझे सूचित कर देगी और जिस दिन वे मेरे हत्थे चढ़ गए , उस दिन मुझे पता लग जाएगा कि वे सर्वेश को कहां ले गए थे और ये 'शाही कोबरा ' का क्या चक्कर है।”
उनकी बातें अभी तक चुपचाप सुन रहे विशेष ने भोलेपन से पूछा—"ये रंगा-बिल्ला कौन हैं पापा? और आपको कब , कहां ले गए थे ?"
"कहीं नहीं, बेटे।" नजदीक बैठकर युवक ने उसे बांहों में भर लिया और प्यार करता हुआ बोला— "अच्छे बच्चे मम्मी-पापा की बातें ध्यान से नहीं सुना करते हैं।"
युवक ने रश्मि के चेहरे पर मौजूद भाव देखे , उसे शायद युवक का 'मम्मी-पापा ' कहना अच्छा नहीं लगा था। प्रतिशोधस्वरूप शायद अभी यह कुछ कहने ही वाली थी कि मकान के मुख्य द्वार के पार से टायरों की चीख-चिल्लाहट उभरी।
शायद कोई चार पहियों वाला वाहन रुका था।
तीनों का ध्यान उसी तरफ चला गया और पुलिस के भारी बूटों की आवाज सुनकर युवक दहल उठा। यह विचार बिजली की तरह उसके मस्तिष्क में कौंधा था कि पुलिस आ गई है।
'क्या वे जान चुके हैं कि रूबी का हत्यारा यहां सर्वेश बनकर रह रहा है ?'
'इस चारदीवारी में तो यह साबित करने के लिए कि मैं सर्वेश नहीं हूं, रश्मि के जिस्म पर मौजूदा लिबास ही काफी है। सूनी मांग ही काफी है।'
यही सोचकर उसे पसीना आ गया।
यह सारे विचार उसके जेहन में एक क्षण मात्र में ही कौंध गए थे और अगले ही क्षण मकान के मुख्य द्वार पर दस्तक हुई।
आतंकित स्वर में युवक ने वहीं से पूछा— "कौन है ?"
"पुलिस।" इस आवाज और शब्द ने युवक के जेहन में सनसनी फैला दी।
रश्मि सवालिया नजरों से उसकी तरफ देख रही थी।
युवक ने बौखलाए-से स्वर में कहा—"त.....तुम ऊपर जाओ रश्मि …प्लीज—पुलिस के सामने आने की कोशिश मत करना।"
कहने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया। रश्मि का जवाब सुनने का दरअसल उसके पास समय ही नहीं था—रश्मि तेजी के साथ सीढ़ियों पर चढ़ती चली गई और युवक ने दरवाजा तभी खोला जब वह अपने कमरे में जा चुकी थी।
दरवाजा खोलते ही जिन चेहरों पर युवक की दृष्टि पड़ी , उन्हें यहां देखते ही उसके होश उड़ गए—'उफ्फ—ये यहां ?'
इंस्पेक्टर दीवान और चटर्जी।
बड़ी तेजी से उसके जेहन में सवाल कौंधा था कि चटर्जी यहां कैसे ?
आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
चकराकर स्वयं को वहीं गिरने से रोकने में युवक को जबरदस्त मानसिक श्रम करना पड़ा। उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी।
होश फाख्ता।
दिमाग में एक ही शब्द गूंजा— 'बन्टाधार। '
चटर्जी की वहां मौजूदगी से ही जाहिर था कि वे वहां यह जांच करने नहीं आए थे कि वह सर्वेश है या नहीं , बल्कि उसे सिकन्दर साबित करने आए थे निश्चय ही वह तीसरा इंस्पेक्टर आंग्रे था और किसी 'क्लू ' से उन्हें यह पता लग चुका था कि रूबी का हत्यारा उस मकान में रह रहा था—कम-से-कम उन तीनों का सामना करने के लिए वह मानसिक रूप से बिल्कुल तैयार नहीं था। उसने तो कल्पना भी नहीं की थी कि यू.पी. पुलिस के चटर्जी और आंग्रे यहां आ धमकेंगे।
न चाहते हुए भी युवक का चेहरा पसीने से भरभरा उठा।
वे तीनों ही इंस्पेक्टर बड़ी पैनी दृष्टि से उसका निरीक्षण कर रहे थे। चटर्जी और दीवान की दृष्टि उसे ऐसी लगी , जैसे वे उसकी दाढ़ी-मूंछ और चश्मे के पीछे छुपे चेहरे को देख रहे हों।
किसी मूर्ति के समान वहीं खड़ा रह गया था युवक।
"हैलो, मिस्टर सिकन्दर।" एकाएक चटर्जी ने कहा।
युवक ने एकदम चौंककर पूछा— "क...कौन सिकन्दर , किसे पुकार रहे हैं आप?"
"आपको।"
"म...मुझे , लेकिन मेरा नाम सर्वेश है।"
जवाब में चटर्जी के होंठों पर एक धूर्त और जहर में बुझी-सी मुस्कान उभरी थी। चटर्जी ने उसी मुस्कान के साथ कहा— "अगर हम आपको सर्वेश मान लें तो क्या तब भी आप हमें अन्दर आने के लिए नहीं कहेंगे ?"
"अ.....आइए।" बौखलाकर युवक दरवाजे के बीच से हट गया।
तीनों इंस्पेक्टर और उनके साथ आए पांच सिपाही दरवाजा पार करके आंगन में आ गए। उनकी अगवानी करते हुए युवक ने विशेष से कहा— “ जरा अपनी मम्मी से चाय बनवा दो वीशू।"
"उसकी कोई जरूरत नहीं है।" दीवान ने कहा , परन्तु उसकी बात सुने बिना ही विशेष अपने 'पापा ' के आदेश का पालन करने सीढ़ियों की तरफ बढ़ चुका था।
आंगन पार करके वे कमरे में पहुंच गए।
यह वही कमरा था , जो युवक को मिला हुआ था , एक ड्राइंगरूम जैसा—युवक ने उन सबको सेण्टर टेबल के चारों तरफ पड़े सोफों पर बैठाया , तीनों इंस्पेक्टर उसके ठीक सामने एक पंक्ति में बैठे थे। एकाएक ही युवक को घूरते हुए चटर्जी ने पूछा— "क्या तुम मुझे जानते हो ?"
"ज...जी नहीं।"
चटर्जी ने व्यंग्यपूर्वक कहा— “मेरा नाम इंस्पेक्टर चटर्जी है और तुम भूल रहे हो कि मैं तुम्हें उस रोज हरिद्वार पैसेंजर में मिला था , जब तुम गाजियाबाद से जा रहे थे।"
"क...कमाल कर रहे हैं आप , मैं तो गाजियाबाद कभी गया ही नहीं।"
उसके वाक्य पर कोई ध्यान दिए बिना चटर्जी ने कहा— "इनसे मिलो , उम्मीद है कि तुम इन्हें जरूर जानते होंगे—ये इंस्पेक्टर दीवान हैं , चाहते हैं कि यदि तुम्हारी याददाश्त वापस लौट आई हो तो तुम इन्हें स्मगलर्स के ट्रक ड्राइवर के बारे में कुछ बताओ।"
बुरी तरह आतंकित युवक ने कहा था— “ मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है , जाने आप क्या कह रहे हैं ?"
“फिलहाल डॉली के बयान से तो ऐसा ही लगता है।" युवक ने कहा—“और ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं है कि डॉली झूठ बोल रही होगी।"
"बीयर उनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी—मेरे लाख मना करने पर भी बीयर नहीं छोड़ सके थे वे और यही बीयर उन्हें ले डूबी—शायद 'शाही कोबरा' कहलाने वाले हत्यारे को भी उनकी इस कमजोरी की जानकारी थी।"
युवक ने सोचने की कोशिश की कि क्या बीयर मुझे पसंद है ?
ठीक से निश्चय नहीं कर सका वह।
बोला—"मैं न कहता था रश्मि कि रंगा-बिल्ला को एकदम से शूट कर देना उचित नहीं होगा—अब देखो , स्पष्ट होकर यही बात सामने आ रही है कि वे दोनों तो सिर्फ हत्यारे के सहायक थे—असली हत्यारा कोई 'शाही कोबरा ' नामक व्यक्ति है।"
“मुझे वही चाहिए।"
"उस तक हमें रंगा-बिल्ला पहुंचा सकते हैं—सुना है कि वे 'मुगल महल ' में आते रहते हैं—डॉली को मैंने समझा दिया है—अब जिस दिन भी वहां रंगा-बिल्ला आएंगे , वह किसी भी माध्यम से मुझे सूचित कर देगी और जिस दिन वे मेरे हत्थे चढ़ गए , उस दिन मुझे पता लग जाएगा कि वे सर्वेश को कहां ले गए थे और ये 'शाही कोबरा ' का क्या चक्कर है।”
उनकी बातें अभी तक चुपचाप सुन रहे विशेष ने भोलेपन से पूछा—"ये रंगा-बिल्ला कौन हैं पापा? और आपको कब , कहां ले गए थे ?"
"कहीं नहीं, बेटे।" नजदीक बैठकर युवक ने उसे बांहों में भर लिया और प्यार करता हुआ बोला— "अच्छे बच्चे मम्मी-पापा की बातें ध्यान से नहीं सुना करते हैं।"
युवक ने रश्मि के चेहरे पर मौजूद भाव देखे , उसे शायद युवक का 'मम्मी-पापा ' कहना अच्छा नहीं लगा था। प्रतिशोधस्वरूप शायद अभी यह कुछ कहने ही वाली थी कि मकान के मुख्य द्वार के पार से टायरों की चीख-चिल्लाहट उभरी।
शायद कोई चार पहियों वाला वाहन रुका था।
तीनों का ध्यान उसी तरफ चला गया और पुलिस के भारी बूटों की आवाज सुनकर युवक दहल उठा। यह विचार बिजली की तरह उसके मस्तिष्क में कौंधा था कि पुलिस आ गई है।
'क्या वे जान चुके हैं कि रूबी का हत्यारा यहां सर्वेश बनकर रह रहा है ?'
'इस चारदीवारी में तो यह साबित करने के लिए कि मैं सर्वेश नहीं हूं, रश्मि के जिस्म पर मौजूदा लिबास ही काफी है। सूनी मांग ही काफी है।'
यही सोचकर उसे पसीना आ गया।
यह सारे विचार उसके जेहन में एक क्षण मात्र में ही कौंध गए थे और अगले ही क्षण मकान के मुख्य द्वार पर दस्तक हुई।
आतंकित स्वर में युवक ने वहीं से पूछा— "कौन है ?"
"पुलिस।" इस आवाज और शब्द ने युवक के जेहन में सनसनी फैला दी।
रश्मि सवालिया नजरों से उसकी तरफ देख रही थी।
युवक ने बौखलाए-से स्वर में कहा—"त.....तुम ऊपर जाओ रश्मि …प्लीज—पुलिस के सामने आने की कोशिश मत करना।"
कहने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया। रश्मि का जवाब सुनने का दरअसल उसके पास समय ही नहीं था—रश्मि तेजी के साथ सीढ़ियों पर चढ़ती चली गई और युवक ने दरवाजा तभी खोला जब वह अपने कमरे में जा चुकी थी।
दरवाजा खोलते ही जिन चेहरों पर युवक की दृष्टि पड़ी , उन्हें यहां देखते ही उसके होश उड़ गए—'उफ्फ—ये यहां ?'
इंस्पेक्टर दीवान और चटर्जी।
बड़ी तेजी से उसके जेहन में सवाल कौंधा था कि चटर्जी यहां कैसे ?
आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
चकराकर स्वयं को वहीं गिरने से रोकने में युवक को जबरदस्त मानसिक श्रम करना पड़ा। उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी।
होश फाख्ता।
दिमाग में एक ही शब्द गूंजा— 'बन्टाधार। '
चटर्जी की वहां मौजूदगी से ही जाहिर था कि वे वहां यह जांच करने नहीं आए थे कि वह सर्वेश है या नहीं , बल्कि उसे सिकन्दर साबित करने आए थे निश्चय ही वह तीसरा इंस्पेक्टर आंग्रे था और किसी 'क्लू ' से उन्हें यह पता लग चुका था कि रूबी का हत्यारा उस मकान में रह रहा था—कम-से-कम उन तीनों का सामना करने के लिए वह मानसिक रूप से बिल्कुल तैयार नहीं था। उसने तो कल्पना भी नहीं की थी कि यू.पी. पुलिस के चटर्जी और आंग्रे यहां आ धमकेंगे।
न चाहते हुए भी युवक का चेहरा पसीने से भरभरा उठा।
वे तीनों ही इंस्पेक्टर बड़ी पैनी दृष्टि से उसका निरीक्षण कर रहे थे। चटर्जी और दीवान की दृष्टि उसे ऐसी लगी , जैसे वे उसकी दाढ़ी-मूंछ और चश्मे के पीछे छुपे चेहरे को देख रहे हों।
किसी मूर्ति के समान वहीं खड़ा रह गया था युवक।
"हैलो, मिस्टर सिकन्दर।" एकाएक चटर्जी ने कहा।
युवक ने एकदम चौंककर पूछा— "क...कौन सिकन्दर , किसे पुकार रहे हैं आप?"
"आपको।"
"म...मुझे , लेकिन मेरा नाम सर्वेश है।"
जवाब में चटर्जी के होंठों पर एक धूर्त और जहर में बुझी-सी मुस्कान उभरी थी। चटर्जी ने उसी मुस्कान के साथ कहा— "अगर हम आपको सर्वेश मान लें तो क्या तब भी आप हमें अन्दर आने के लिए नहीं कहेंगे ?"
"अ.....आइए।" बौखलाकर युवक दरवाजे के बीच से हट गया।
तीनों इंस्पेक्टर और उनके साथ आए पांच सिपाही दरवाजा पार करके आंगन में आ गए। उनकी अगवानी करते हुए युवक ने विशेष से कहा— “ जरा अपनी मम्मी से चाय बनवा दो वीशू।"
"उसकी कोई जरूरत नहीं है।" दीवान ने कहा , परन्तु उसकी बात सुने बिना ही विशेष अपने 'पापा ' के आदेश का पालन करने सीढ़ियों की तरफ बढ़ चुका था।
आंगन पार करके वे कमरे में पहुंच गए।
यह वही कमरा था , जो युवक को मिला हुआ था , एक ड्राइंगरूम जैसा—युवक ने उन सबको सेण्टर टेबल के चारों तरफ पड़े सोफों पर बैठाया , तीनों इंस्पेक्टर उसके ठीक सामने एक पंक्ति में बैठे थे। एकाएक ही युवक को घूरते हुए चटर्जी ने पूछा— "क्या तुम मुझे जानते हो ?"
"ज...जी नहीं।"
चटर्जी ने व्यंग्यपूर्वक कहा— “मेरा नाम इंस्पेक्टर चटर्जी है और तुम भूल रहे हो कि मैं तुम्हें उस रोज हरिद्वार पैसेंजर में मिला था , जब तुम गाजियाबाद से जा रहे थे।"
"क...कमाल कर रहे हैं आप , मैं तो गाजियाबाद कभी गया ही नहीं।"
उसके वाक्य पर कोई ध्यान दिए बिना चटर्जी ने कहा— "इनसे मिलो , उम्मीद है कि तुम इन्हें जरूर जानते होंगे—ये इंस्पेक्टर दीवान हैं , चाहते हैं कि यदि तुम्हारी याददाश्त वापस लौट आई हो तो तुम इन्हें स्मगलर्स के ट्रक ड्राइवर के बारे में कुछ बताओ।"
बुरी तरह आतंकित युवक ने कहा था— “ मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है , जाने आप क्या कह रहे हैं ?"