Desi Porn Kahani विधवा का पति - Page 7 - SexBaba
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Desi Porn Kahani विधवा का पति

यह कम हैरत की बात नहीं थी कि वहां युवक के स्थान पर रंगा-बिल्ला की चीखें गूंज रही थी —जीवन में शायद वे पहली ही बार किसी से इतनी मार खा रहे थे।
युवक के सामने एक नहीं चल पा रही थी उसकी—हर दांव निष्फल।
एक बार बिल्ला को मौका लगा तो उसने चेन का आंग्रिम सिरा पकड़ लिया—अब , वे दोनों चेन को अपनी तरफ खींचने लगे—युवक ने सिर्फ एक हाथ से चेन का यह सिरा पकड़ रखा था और बिल्ला ने दोनों हाथों से।
रंगा ने उछलकर युवक पर वार किया।
युवक के लिए उसके वार को बेकार करना और अपना वार करना जरूरी हो गया , इस चक्कर में चेन उसे छोड़नी पड़ी—बिल्ला चेन समेत लड़खड़ाकर फर्श पर गिरा।
रंगा युवक के वार के परिणामस्वरूप दूसरी तरफ पड़ा फर्श चाट रहा था।
युवक ने जम्प लगाकर रुई की गांठ में धंसा चाकू निकाला , उधर बिल्ला चेन हाथ में लिए न केवल उछलकर खड़ा हो गया था , बल्कि युवक पर चेन का वार भी करने वाला था कि युवक ने आनन-फानन में अपने बांये हाथ से चाकू उस पर फेंक मारा।
घप्प से चाकू का फल बिल्ला की गर्दन के एक तरफ से निकलकर दूसरी तरफ पार निकल गया। हृदयविदारक चीख के साथ चेन को छोड़ता हुअर बिल्ला 'धड़ाम ' से फर्श पर गिरा।
फर्श पर गिरने से पहले ही बिल्ला मर चुका था।
पल भर के लिए रंगा हतप्रभ रह गया , जबकि युवक ने इसी क्षण का लाभ उठाते हुए फर्श पर पड़े रिवॉल्वर पर जम्प लगा दी।
रंगा तब चौंका , जब युवक ने रिवॉल्वर उसकी तरफ तानकर कहा—“हाथ ऊपर उठा दो रंगा , वरना इस रिवॉल्वर से निकली गोली तुम्हारे भेजे के चीथड़े उड़ा देगी।"
बिल्ला की लाश पर नजर पड़ते ही उसका चेहरा अत्यन्त वीभत्स हो गया। गोरा चेहरा भभककर लाल-सुर्ख पड़ गया। दांत भींचकर गुर्राया— “त...तूने बिल्ला को मार दिया है हरामजादे , तुझे मैं कच्चा चबा जाऊंगा।"
युवक बड़े प्यार से बोला , “अगर बिल्ला के पास नहीं पहुंचना चाहते हो बेटे , तो हाथ ऊपर उठा तो , आई से हैंड्स अप।"
रंगा ने वस्तुस्थिति को भांपा , हाथ स्वयं ही ऊपर उठते चले गए।
"वैरी गुड—यह हुई न अच्छे बच्चों वाली बात।" युवक ने जहरीली मुस्कान के साथ कहा— "अब जरा ध्यान से मेरी बात सुनो—सच्चाई ये है कि मैं तुममें से किसी को मारना नहीं चाहता था—यह इत्तफाक की बात है कि आनन-फानन में बिल्ला मर गया।"
बेबस रंगा दांत किटकिटाता हुआ सिर्फ हाथ मलकर रह गया।
युवक जानता था कि यदि रंगा का बस चले तो वह उसे कच्चा चबा जाए , उसकी बेबसी का मजा लूटता हुआ बोला—“सर्वेश की हत्या तुम्हारे 'शाही कोबरा ' ने की थी और उस जुर्म की सजा उसे ही मिलेगी , तुमने सर्वेश की लाश को ले जाकर केवल रेल की पटरी पर रखा था , मैं तुम्हें सिर्फ उसी जुर्म की सजा देना चाहता था—और वह सजा मौत नहीं थी , किन्तु संयोग से बिल्ला मर गया है।"
"इस संयोग की बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी तुझे।" रंगा गुर्राया।
“इस बात को अच्छी तरह समझ लो कि यदि तुमने मेरे सभी सवालों का सही जवाब दिया और मेरा बताया हुआ काम बिना-बाधा के किया तो मैं तुम्हें बख्श दूंगा। जिंदा रहे तो सम्भव है कि मौका लगने पर कभी मुझसे बिल्ला की मौत का बदला ले सको , मगर यदि तुमने मेरे सवालों का ठीक जवाब नहीं दिया , या मेरा एक खास काम नहीं किया तो बदला लेने का मौका तुम्हें कभी नहीं मिलेगा , क्योंकि यकीन मानो , उस अवस्था में मैं तुम्हें यहीं , अभी बिल्ला के पास पहुंचा दूंगा। ”
विवश रंगा कसमसाकर रह गया।
युवक ने पूछा— "पहला सवाल—मुझे बताओ कि उस दिन सात बजे तुम सर्वेश को उसकी सीट से उठाकर कहां ले गए थे ?"
"मैं तुम्हारे किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगा।" रंगा ने दृढ़तापूर्वक कहा।
मगर रंगा की यह दृढ़ता बहुत ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी।
इसी ललक ने रंगा को तोड़ दिया—युवक के हर सवाल का जवाब देता चला गया वह। जब युवक अपने सभी सवालों का जवाब पा चुका तो बोला— “थेंक्यू—अब तुम्हें इसी शराफत के साथ मेरा एक काम भी करना होगा।"
"क्या?" जीने के लिए रंगा ने पूछा।
"उस काम को सुनने से पहले जरा तुम एक चीज को ध्यान से देख तो और उसके काम करने के तरीके को गौर से सुन लो।" कहने के साथ ही उसने रिवॉल्वर पट्टियों से बंधे दाएं हाथ में ले लिया , बोला— "निश्चय ही मेरा यह हाथ जला हुआ है , मगर ध्यान रखना , ट्रेगर दबाने जैसा आसान काम यह हाथ यकीनन कर सकेगा। ”
रंगा शान्त रहा।
युवक ने बायां हाथ जेब में डालकर अण्डाकार बम जैसी वस्तु निकाली और उसे रंगा को दिखाता हुआ बोला— “तुम देख रहे हो कि यह एक बम है , देखने में भले ही छोटा लगे , मगर इतना शक्तिशाली जरूर है कि जहां फटेगा , वहां एक गज व्यास के घेरे में जितनी भी चीजें होंगी , उनके परखच्चे उड़ा देगा।"
रंगा की दृष्टि अण्डाकार बम पर जम गई।
"जिस तरह हैँडग्रेनेड में एक पिन होती है , उसी तरह की पिन इसमें भी है और उस पिन के हटते ही कस-से-कम तुम्हारे लिए यह अणुबम से भी कहीं ज्यादा खतरनाक बन जाएगा। ऐ , ये देखो , जरा ध्यान से देखो कि इसे मैंने किस तरह पकड़ रखा है।" कहने के साथ ही युवक ने बम को तर्जनी और अंगूठे के सिरे से पकड़ लिया , बोला—"अब जैसे ही दांतों से इसकी पिन निकालूंगा , वैसे ही यह साक्षात् मौत बन जाएगा—इस बम में किसी इंसानी जिस्म की ऊष्मा मात्र से फट जाने का गुण पैदा हो जाएगा।"
बहुत ही सावधानीपूर्वक युवक ने दांतों से उसमें से एक पिन खींच ली , बोला—“अब यह फटने के लिए तैयार है , किसी के छूने मात्र से फट जाएगा।"
" 'म...मगर यह सब कुछ तुम मुझे क्यों बता रहे हो ?"
"ताकि तुम अनावश्यक रूप से इस बम के साथ छेड़खानी न करो।"
"म...मुझे भला क्या जरूरत पड़ी है ?"
"अभी पता लग जाएगा।" कहते हुए युवक ने अण्डाकार बम आगे बढ़कर धीमें से रूई की एक गांठ के ऊपर रख दिया , जेब से इलेक्ट्रिक स्विच निकाला , अपनी रिस्टवॉच में समय देखने के बाद बोला— “हालांकि तुम कोई तार आदि ऐसा कुछ नहीं देख रहे हो , जिससे समझ सको कि इस बम का सम्बन्ध इस स्विच से भी है।"
"स्विच से ?”
"हां , दरअसल यह स्विच इस बम को फटने से रोकने के लिए बनाया गया है।"
"क्या मतलब ?”
"अगर मैं तकनीकी जानकारी बताने बैठा तो शाम इसी गोदाम में हो जाएगी। फिर भी विश्वासपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि तुम उसे समझ ही जाओगे , इसीलिए मोटी-सी बात यह जान लो कि इस बम में हर पांच मिनट बाद फट पड़ने की तीव्र इच्छा होती है , जैसा कि मैंने बताया , यह स्विच बम को फटने से रोकने के लिए बनाया गया है , प्रत्येक पांच मिनट के अन्दर इस स्विच को दबाना जरूरी है , यदि इस स्विच को नहीं दबाया गया तो समझ तो कि छठे मिनट में बम फट जाएगा।"
"क्या मतलब ?”
"मतलब यह ” रिस्टवॉच में समय देखते ही युवक ने अपने हाथ में दबे स्विच को एक बार दबा दिया। इधर स्विच दबा , उधर बम में 'पिंग-पिंग ' की आवाज़ के साथ एक हरा बल्ब लपलपाया। युवक ने कहा— “इस स्विच के दबते ही बम में छुपा हरा बल्ब पिंग-पिंग की आवाज के साथ ही लपलपाएगा—इसका अर्थ है कि बम को अगले पांच मिनट तक फटने से रोक दिया गया है—जिन पांच मिनट के बीच इस स्विच को नहीं दबाया जाएगा , उनके गुजरते ही बम फट जाएगा।"
"अजीब बम है ?"
युवक ने आगे बढ़कर बम को तर्जनी और अंगूठे के सिरे से सावधानी के साथ उठा लिया और रंगा के नजदीक पहुंचा। रिवाल्वर से कवर किए उसके पीछे पहुंचा और फिर अचानक ही बम को उसने रंगा के कॉलर के अन्दर डाल दिया।
"य...ये क्या कर रहे हो ?" दहशत के कारण रंगा चीख पड़ा।
उसकी पीठ पर से सरसराता हुआ बम पतलून की वेस्ट पर अटक गया। अब वह पीठ के सबसे निचले सिरे पर अटका हुआ था और बम की 'चुभन ' वह स्पष्ट महसूस कर रहा था। युवक अजीब-से अन्दाज में हंसता हुआ उसके सामने आ गया और बोला— “ अब तुम महसूस कर सकते हो कि बम कहां है—इतना भी समझ सकते हो कि तुम्हारी त्वचा से सिर्फ यही 'प्वाइंट ' 'टच ' है जिस पर जिस्म की ऊष्मा से कोई फर्क नहीं पड़ता है , अगर ऐसा न होता तो अब तक बम फट चुका होता और तुम्हारे जिस्म के परखच्चे इस गोदाम में बिखरे पड़े होते।"
रंगा का सफेद चेहरा निचुड़े हुए कपड़े-सा निस्तेज हो गया। आतंकित स्वर में उसने पूछा— "म...मगर यह तुमने यहां क्यों डाल दिया है ?"
युवक ने कहा— "अब , न तो तुम ज्यादा उछल-कूद कर सकते हो—और न ही किसी अन्य की मदद से बम को वहां से निकाल सकते हो—बम वहीं रहेगा—स्विच मेरे पास है—भले ही एक-दूसरे से हम चाहे जितनी दूर चले जाएं , मगर स्विच और बम का सम्बन्ध विच्छेद नहीं होगा—बम में एक माइक्रोफोन भी है , जो मुझे बताता रहेगा कि तुम कहां , किससे , क्या बातें कर रहे हो—जब तक मैं प्रत्येक पांच मिनट के अन्तराल पर स्विच को दबाता रहूंगा , तब तक तुम जीवित रहोगे और जिस अन्तराल में मैँने इसे नहीं दबाया , वह तुम्हारी जिन्दगी का आखिरी अन्तराल होगा।"
रंगा के जिस्म से मानो समूचा खून निचोड़ लिया गया।
"हर अन्तराल पर मैं तब तक इसे दबाता रहूंगा जब तक कि तुम मेरे अनुसार काम करते रहोगे — और अन्त में खुश होकर बम को वहां से हटा दूंगा।"
“त …तुम क्या चाहते हो ?" रंगा को अपनी ही आवाज किसी गहरे कुएं से उभरती-सी महसूस हुई।
 
"बहुत ही दुख और दुख से भी कहीं ज्यादा हैरत की बात है कि उस कल के छोकरे ने बिल्ला को मार डाला—बिल्ला के मर जाने से भी कहीं ज्यादा हैरत की बात ये है रंगा कि तुम यहां जीवित खड़े हो—तुम—जिसका जोड़ीदार मर गया है—रंगा-बिल्ला को जानने वाले यही कहते थे कि वे दो जिस्म एक जान हैं।"
मंच पर मौजूद बॉस अजीब-से रोष में भरा यह सब कह रहा था। एक प्रकार से रंगा को धिक्कार रहा था वह।
पंक्तिबद्ध खड़े कम-से-कम बीस व्यक्तियों में से एक रंगा था। बिना हिले-डुले बिल्कुल सावधान की मुद्रा में खड़ा था वह। चेहरे पर दहशत के अजीब-से भाव लिए।
कुछ देर की खामोशी के बाद मंच से बॉस की आवाज पुन: उभरी— “ जवाब दो रंगा—तुम्हारे सामने बिल्ला को मारकर वह छोकरा जिन्दा कैसे निकल गया ?"
एकाएक ही रंगा गुर्रा उठा— "वह तो तुझे भी मार डालेगा हरामजादे...।"
"क...क्या बकते हो ?" बॉस दहाड़ उठा।
सचमुच रंगा के शब्दों ने वहां अणु बम के फटने से भी कहीं ज्यादा खतरनाक विस्फोट किया था। सभी चौंक पड़े—सनसनी फैल गई—हालांकि दीवारों के सहारे खड़े सैनिकों की गनें तन गई—पंक्ति में खड़े दूसरे लोगों को महसूस हुआ कि रंगा पागल हो गया है।
सभी के चेहरे पीले पड़ गए।
जबकि रंगा गुर्राया—"मैं ठीक कह रहा हूं उल्लू के पट्ठे—वह तुझे ही नहीं—तेरे उस कुत्ते 'शाही कोबरा ' को भी देख लेगा—वह परखच्चे उड़ा देगा तुम्हारे और इस अड्डे को जलाकर राख कर देगा।"
"र...रंगा …होश में तो हो तुम ?"
"होश की दवा तुझे और तेरे 'शाही कोबरा ' को करनी है हरामखोर।"
और हद हो गई थी।
वातावरण इतना तनावपूर्ण बन गया कि जिस शख्स को आज से पहले किसी ने मंच से नीचे नहीं देखा था—वही आपे से बाहर होकर मंच से कूदा।
लिबास के साथ का ही चांदी-सा चमकदार नकाब उसके चेहरे पर था।
एक ही जम्प में वह रंगा के समीप आ गया। आनन-फानन में दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़कर चीखा— “कौन है तू—बोल , कौन है तू ?”
कड़वी मुस्कराहट के साथ कहा रंगा ने— “मुझे नहीं पहचाना बागड़बिल्ले ?"
“न...नहीं—तू....रंगा नहीं हो सकता—अगर तू रंगा होता तो यह सब कुछ कहने की जुर्रत नहीं कर सकता था , या फिर तू पागल हो गया है।"
"पागल तो तू हो गया है हरामजादे। अगर खैरियत चाहता है तो उससे टकराने का ख्याल दिमाग से निकाल दे—वह तेरे सारे खानदान को..।"
"आह!" रंगा के आगे के शब्द एक चीख में बदल गए।
बॉस का फौलादी घूंसा उसके जबड़े पर पड़ा था। घूंसा हालांकि काफी शक्तिशाली था , परन्तु रंगा बम के डर से लड़खड़ाया तक नहीं। सावधान की उसी मुद्रा में खड़ा हुआ बोला— “ अगर जिन्दा रहना चाहता है सूअर तो मुझसे दूर रह।"
“क..क्या बकता है तू ?"
“मेरी पीठ पर एक बम है—अगर मैं जरा भी हिसा-डुला तो यह फट जाएगा—मेरे तो परखच्चे उड़ेंगे ही , साथ ही मेरे आसपास खड़ा कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा।"
रंगा के इर्द-गिर्द खड़े लोग उससे परे सरक गए।
जबकि बॉस दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़कर झिंझोड़ता हुआ चिल्लाया—“क्या बकता है कुत्ते—कैसा बम ?"
रंगा जानता था कि यहां जितनी भी बातें हो रही हैं , युवक वे सब सुन रहा है और अब यदि उसने बॉस को आतंकित नहीं किया तो इस हॉल से नहीं निकल सकेगा , अत: संक्षेप में उसने बॉस को बम के बारे में सब कुछ बता दिया।
सुनकर सचमुच बॉंस भी उससे दूर हट गया। अगले ही पल उसके हाथ में रिवॉल्वर नजर आया। बोला— "तो यहां , यह सब कुछ कहने के लिए तुमसे उसने कहा था और बम के डर से तुम कहते चले गए ?"
रंगा ने अजीब-से स्वर में कहा— “वह बम अगर तेरी पीठ पर होता कुत्ते तो तू भी उसी तरह नाचता जैसे वह नचाता।"
उत्तेजना के कारण निश्चय ही बॉस का हाल बुरा हो रहा था।
रिवॉल्वर तानकर वह गुर्राया— “ अपनी वैल्ट खोलो।"
"म...मैं नहीं खोलूंगा।"
"जिस किस्म के बम की बात तू कह रहा है रंगा , वैसे करामाती बम के बारे में न हमने कभी सुना है-न देखा है और कम-से-कम यह बात तो हमारे कण्ठ से नीचे उतर ही नहीं पा रही है कि ऐसा बम उस बहुरूपिए के पास हो सकता है—सम्भव है कि तुझे आतंकित करने के लिए उसने यह सारी बकवास की हो—अगर सच यही हुआ तो बैल्ट खोलने पर तू जिन्दा भी बच सकता है , लेकिन यदि तूने हमारे इस वाक्य की समाप्ति पर भी बैल्ट नहीं खोली तो हमारे रिवॉल्वर से निकली गोली निश्चय ही तेरा भेजा उड़ा देगी।"
रंगा के दिमाग में बात बैठ गई।
जेहन में विचार उभरा कि मरना तो अब दोनों हालत में निश्चित हो गया है। मरने से पहले क्यों न यह जान ले कि बम में वह करामात है या नहीं। अतः उसने बैल्ट खोल दी।
वेस्ट के ढीली होते ही सरसराता हुआ बम पतलून के एक पांयचे के अन्दर से होता हुआ 'पट ' से हॉल के फर्श पर गिरा। थोड़ी दूर लुढ़का और फिर रुक गया।
बल्कि बॉस समेत प्रत्येक की दृष्टि उसी पर केन्द्रित थी।
रंगा को बम के अभी तक न फटने पर आश्चर्य था।
तभी 'पिंग …पिंग' की आवाज के साथ बम में हरा बल्ब लपलपाया।
"य...ये देखो बॉस—उसने स्विच दबाया होगा।”
“यह बम नहीं कमीने।" बॉस ने आगे बढ़कर बेहिचक उसे उठा लिया और अगले ही पल उसने बम जैसी वस्तु को उछाल दिया—अण्डा दो भागों में विभक्त हो गया।
दूसरे भाग में एक 'चकरी ' धीरे-धीरे घूम रही थी। इस चकरी का एक भाग थोड़ा उभरा हुआ था। एक नन्हें से बल्ब का कनेक्शन दो छोटे तारों के जरिए सेल्स से जुड़ा हुआ था—उसे समझने की कोशिश में पांच मिनट गुजर गए।
'पिंग-पिंग' की आवाज के साथ हरा बल्ब पुन: जला।
"यह बम नहीं कुत्ते , खिलौना मात्र है। ” बॉस गुर्राया—"सेल अपने खांचों में ढीले हैं। घूमती हुई चकरी पांच मिनट में अपना चक्कर पूरा करती है—प्रत्येक पांच मिनट बाद चकरी का उभरा हुआ भाग खांचों को कस देता है और बल्ब जल उठता है। न इसमें कोई माइक्रोफोन है और न ही किसी स्विच से इसका सम्बन्ध है।"
रंगा का मुंह हैरत से फटा रह गया।
"हुं।" उसे एक तरफ़ फेंकते हुए बॉस ने कहा— “इसमें न कोई ऊष्मारहित प्वाइंट है , न ही ऊष्मा से फट पड़ने का कोई गुण—इस खिलौने के डर से तूने हमें...।"
“मु......मुझे माफ कर दो बॉस , मैं समझा कि यह बम...।"
"धांय-धांय।” बांस का रिवॉल्वर दो बार गरजा , उसका न सिर्फ वाक्य अधूरा रह गया , बल्कि हृदयविदारक चीख के साथ वह कटे वृक्ष-सा वहीं गिर गया।
 
"एक प्रकार से यदि यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि मैं सर्वेश की हत्या के सम्पूर्ण रहस्य से परिचित हो चुका हूं—मेरे और उनके बीच जंग भी जारी हो चुकी है।"
"जो तुम जानते हो , वह मुझे भी बताओ।" रश्मि ने सपाट स्वर में पूछा।
युवक ने संक्षेप में गोदाम में घटी घटना उसे सुना दी। सुनने के बाद रश्मि बोली — “अब तुम आगे क्या करने का विचार रखते हो ?"
"मेरा अगला आक्रमण शायद सीधा 'शाही कोबरा ' पर होगा।"
"श... 'शाही कोबरा ' पर। मगर उसे तो तुम अभी जानते भी नहीं हो ?”
युवक की आंखें शून्य में स्थिर हो गईं—बोला— “ भले ही विश्वासपूर्वक न जानता होऊं , मगर एक व्यक्ति पर मुझे शक जरूर है।"
"क...किस पर ?” रश्मि एकदम व्यग्र हो उठी।
"यह मैं तुम्हें शायद आज की रात गुजर जाने के बाद बता सकूंगा।" कहते हुए युवक की दृष्टि रश्मि की गर्दन पर चिपक गई।
बड़े ही विस्फोटक ढंग से युवक के दिमाग में विचार टकराया कि—'अगर वह रश्मि की गर्दन दबा दे तो क्या होगा।'
वह मर जाएगी।
युवक पर जुनून सवार होने लगा।
एकाएक ही वह सोचने लगा कि यदि रश्मि के जिस्म से सारे कपड़े उतार दिए जाएं तो यह बहुत खूबसूरत लगेगी।
उसके दिलो-दिमाग में बैठा कोई चीखा—उतार दे—'इसके जिस्म से कपड़े का एक-एक रेशा नोंचकर फेंक दे—गर्दन दबा दे इसकी—मार डाल—फर्श पर पड़ी इसकी निर्वस्त्र लाश बहुत सुन्दर लगेगी। '
युवक के चेहरे ने अभी वीभत्स होना शुरू किया ही था कि— "हैलो पापा!"
कमरे में दाखिल होते हुए विशेष ने कहा।
युवक के जेहन में मचल रहे भयानक विचार उसी तरह छिन्न-भिन्न हो गए जैसे गोली के दीवार से टकराते ही छर्रे बिखर जाते हैं।
विशेष अभी-अभी स्कूल से आया था।
¶¶
उस वक्त रात के दो बज रहे थे। चारों तरफ अंधेरे और सन्नाटे का साम्राज्य था और अचानक ही अंधेरे में से प्रकट होकर युवक लारेंस रोड पर स्थित न्यादर अली के बंगले के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ता नजर आया—बंगले का लोहे वाला द्वार बन्द था और उसके दूसरी तरफ खड़ा सशस्त्र चौकीदार बीड़ी में कश लगा रहा था।
युवक दरवाजे के नजदीक पहुंचा।
“कौन है ?" चौंकते हुए चौकीदार ने टॉर्च निकालते हुए पूछा।
युवक ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा— "क्या तुम मुझे नहीं पहचानते हो?”
जवाब में नजदीक आते हुए चौकीदार ने टॉर्च आन कर दी—टॉर्च के तीव्र झाग झमाके से युवक के चेहरे पर आ गिरे। युवक की आंखें चुंधिया गईं।
"त......तुम कौन हो भाई ?" बिल्कुल नजदीक जाकर चौकीदार ने पूछा।
"सिकन्दर …।" युवक ने एक झटके से कहा।
"म …मालिक ?” चौकीदार के कण्ठ से चीख-सी निकल गई— “ अ...अरे , आप तो सचमुच मालिक ही हैं …म...मगर इस वक्त—ये आपने क्या हालत बना रखी है, छोटे मालिक ?"
युवक जानता था कि दूसरे नौकरों की तरह यह चौकीदार भी न्यादर अली का पढ़ाया हुआ है। अत: बोला—"ज्यादा चीखने-चिल्लाने की कोशिश मत कर , मेरे पीछे पुलिस पड़ी हुई है—दरवाजा खोलो , मैं डैडी से कुछ बात करने आया हूं।"
हड़बड़ाते हुए चौकीदार ने बीड़ी एक तरफ फेंककर ताला खोल दिया—युवक तेजी के साथ लॉन के बीच बनी सड़क पर से गुजरता हुआ बंगले के द्वार पर पहुंचा। मुख्य द्वार पर ताला लगाने के बाद लपकता हुआ चौकीदार भी उसके नजदीक आ गया था।
युवक ने अपने बाएं हाथ की अंगुली कॉलबेल पर रख दिया।
अन्दर कहीं पियानो-सा बजा।
कई बार की कोशिश के बाद कहीं जाकर दरवाजा खुला। इस बार बंगले के जिस नौकर ने दरवाजा खोला , युवक उसे भी जानता था। आखिर इस बंगले में काफी दिन तक रह चुका था वह—इस नौकर से भी लगभग वैसा ही वार्तालाप हुआ जैसा चीकीदार से हुआ था—फिर यह नौकर और चौकीदार उसे दूसरी मंजिल पर स्थित एक कमरे के दरवाजे पर ले गए।
नौकर ने दस्तक देते हुए न्यादर अली को 'मालिक ' कहकर पुकारा।
अन्दर लाइट ऑन हुई। दरवाजा खुला और नाइट गाउन की डोरी बांधते हुए न्यादर अली ने पूछा— "क्या बात है ?"
अभी उनके सवाल का कोई जवाब भी नहीं दे पाया था कि न्यादर अली युवक को देखकर चौंका और स्वयं ही कह उठा—"य...ये कौन है ?"
“अ...आपने भी मुझे नहीं पहचाना ?” युवक के लहजे में जबरदस्त व्यंग्य था।
“क्या मतलब ?"
“ऐसा बाप मैंने पहले कभी नहीं देखा , जो बेटे दाढ़ी-मूंछ , चश्मे और बदली हुई हेयर स्टाइल में पहचान ही न सके।"
"क...क्या तुम सिकन्दर हो , अरे हां …तुम सिकन्दर ही तो हो।" न्यादर अली एकदम बौखला-सा उठा था— “ मगर तुम इस वक्त यहां—इतने दिन कहां रहे तुम—और तुमने अपनी क्या हालत बना रखी है ?"
"आप तो जानते ही हैं कि पुलिस मुझे तलाश कर रही है।"
"हां।"
"उसी से बचने के लिए यह भेष बदल रखा है।"
"म...मगर तू चिंता क्यों करता है बेटे , मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा—बड़े-से-बड़ा वकील तुझे बचाने के लिए अदालत में खड़ा कर दूंगा—शायद तू जानता नहीं है—जिसकी हत्या तूने की है , वह खुद मुजरिम थी—रूपेश और उसने मिलकर तेरे खिलाफ एक षड्यन्त्र रचा था—तुझे जॉनी बनाने का षड्यन्त्र। वे कमीने हमारे सिकन्दर को हमसे छीनना चाहते थे—तूने जो कुछ किया , अच्छा ही किया—तू इस तरह छुपता क्यों फिर रहा है बेटे , फिक्र मत कर—उस केस में दुनिया का कोई कानून तुझे सजा नहीं दे सकेगा।"
"मैं उसी सम्बन्ध में बातें करने आपके पास आया हूं।"
"आजा बेटे—आ।" कहकर न्यादर अली ने उसे कमरे में खींच लिया। नौकर और चौकीदार से बोला— “तुम दोनों जाओ , सिकन्दर के लौटने का जिक्र किसी से न करना।"
वे चले गए।
युवक ने घूमकर दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।
न्यादर अली इस वक्त बहुत खुश नजर आ रहा था। बोला— “तूने अच्छा ही किया बेटे , जो यहां आ गया—हम तेरे बारे में सोच-सोचकर पागल हुए जा रहे थे। ”
अचानक ही उसकी तरफ़ पलटकर युवक गुर्राया—"अब यह ‘बेटा-बेटा ' की रट लगाने का नाटक बन्द करो मिस्टर 'शाही कोबरा ' और अपनी असलियत पर आ जाओ।"
"क...क्या मतलब ?" न्यादर अली चिहुंक उठा।
"क्यों! ” युवक गुर्राया— “ अपना असली नाम सुनकर पैरों तले से जमीन खिसक गई ?"
"य...ये तू कैसी बात कर रहा है, सिकन्दर बेटे? हमारा नाम 'शाही कोबरा '? य...ये भी भला कोई नाम हुआ और फिर हमारे पैरों के नीचे से जमीन क्यों खिसकेगी ?"
"अच्छी एक्टिंग कर लेते हो।"
"ए....एक्टिंग ?”
युवक ने तुरन्त ही जेब से रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया , गुर्राकर—"अब अगर तुमने जरा भी चूं-पटाक की या पटरी पर नहीं आए तो मैं तुम्हारा भेजा उड़ा दूंगा।"
न्यादर अली विस्फारित नेत्रों से रिवॉल्वर को देखता रह गया। चेहरा एकदम सफेद पड़ गया था उसका , बोला—“त.....तू हमें मार देगा ?"
"हां।"
"लगता है बेटे कि तू किसी बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार है।”
"गलतफहमी के शिकार तो तुम हो मिस्टर 'शाही कोबरा ', तुम अपने दिमाग में यह वहम पाल बैठे हो कि मैं तुम्हारे षड्यन्त्र में फंसकर खुद को सिकन्दर समझने लगूंगा।"
"स...सिकन्दर तो तुम हो ही।”
"मैं बहुत कुछ जान चुका हूं बेटे , और इसीलिए तुम्हारा कोई नाटक मेरे सामने नहीं चलेगा—बाकी बातें तो बाद में होंगी , पहले तुम मुझे यह बताओ कि होटल 'मुगल महल ' के मालिक तुम हो या नहीं ?"
“ह....हां बेशक हम ही हैं।"
"और मैं तुम्हारा बेटा हूं—इसीलिए 'मुगल महल ' का मैनेजर मुझे भी जरूर जानता होगा।"
“हां , जानता है—हालांकि तुम 'मुगल महल ' कभी गए नहीं हो , मगर साठे तुम्हें अच्छी तरह जानता है—तुम्हारे दोस्तों में से है वह।"
"साठे मेरा दोस्त है ?" युवक के लहजे में व्यंग्य-ही-व्यंग्य था।
"हां। ”
"फिर भी वह मुझे नहीं पहचानता—इतना ही नहीं , साठे यह भी कहता है कि तुम्हारा सिकन्दर नाम का बेटा कभी कोई था ही नहीं।"
न्यादर अली चीखता गया— "स...साठे भला ऐसा कैसे कह सकता है ?”
"उसने कहा है बेटे—किसी और से नहीं , सीधे मुझसे कहा है—उसी मुगल होटल में एक कमरा है-कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच।"
"ह...होटल में तो बहुत-से कमरे हैं।"
"वे सब किराए पर दिए जाते हैं , मगर पांच-सौ-पांच कभी नहीं दिया जाता—साल-से-साल तक वह तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे ही नाम से बुक रहता है।"
“हमारे नाम से! भला अपने ही होटल में हम कमरा बुक क्यों कराएंगे ?"
"यानि वह कमरा तुमने बुक नहीं करा रखा है ?"
"बिल्कुल नहीं।"
युवक का चेहरा गुस्से के कारण तमतमा उठा , बोला—"तुम्हें यह जानकर दुख होगा मिस्टर 'शाही कोबरा ' कि तुम्हारे ही गैंग का एक खास सदस्य रंगा इस बारे में मुझे सब कुछ बता चुका है।"
"हमारी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि तुम क्या बक रहे हो ?"
युवक गुर्राकर बोला—"इस रिवॉल्वर से निकली गोली के भेजे से पार होते ही तुम्हारी समझ में सब कुछ आ जाएगा—तुम्हारे होटल के नीचे तहखाना है—रास्ता उस कमरे से होकर जाता है जो तुम बुक रखते हो—उस तहखाने के अन्दर एक गैंग बसता है—और फिर भी तुम उस सबसे अनभिज्ञता प्रकट कर रहे हो—इसी से जाहिर है कि 'शाही कोबरा ' तुम खुद हो—उस गैंग के माध्यम से मादक पदार्थों की तस्करी करते हो।"
"या खुदा , हम क्या सुन रहे हैं ?"
"एक और प्वाइंट भी है मेरे पास।" युवक की आंखें जलने लगी थीं— "क्या तुम बता सकते हो कि अपने ही कथित बेटे सिकन्दर को षड्यंत्र का शिकार बनाने वाले रूपेश की जमानत तुमने क्यों ली ?"
"उससे ऐसा कुछ जानने के लालच में जो कि उसने युवक को न बताया हो। "
"यह झूठ है-रूपेश की जमानत तुमने इसीलिए ली , क्योंकि वह भी तुम्हारे ही गैंग का एक सदस्य है—यह रहस्य भी रंगा से मुझे पता लग चुका है।"
"य...यकीन करो, सिकन्दर , हमारे और तुम्हारे बीच दरार पैदा करने के लिए शायद कोई षड्यंत्र रच रहा है।"
उसकी बात पर ध्यान दिए बिना युवक ने कहा—"मुझे दो प्रमुख सवालों का जवाब चाहिए बेटे—पहला यह कि तुमने सर्वेश की हत्या क्यों की और दूसरा यह कि मुझे सिकन्दर बनाने की कोशिश क्यों कर रहे हो ?”
न्यादर अली ने कुछ कहने के लिए अभी मुंह खोला ही था कि—धांय।"
एक फायर की आवाज ने सारे बंगले को झनझनाकर रख दिया।
न्यादर अली के कण्ठ से चीख निकल गई। गोली उसके सिर के परखच्चे उड़ा गई थी और बौखलाकर युवक ने जब रोशनदान की तरफ देखा तो उसे चांदी के-से चमकदार लिबास की झलक दिखाई दी। केवल एक क्षण के लिए—अगले ही पल वह गायब था।
युवक ने चमकदार लिबास वाले के हाथ में रिवॉल्वर देखा था।
इधर न्यादर अली 'धड़ाम ' से फर्श पर गिरा , उधर रिवॉल्वर संभाले युवक कमरे की एक बन्द खिड़की पर झपटा। अभी वह खिड़की को खोल ही रहा था कि किसी ने दरवाजा जोर से खटखटाया।
उसके जेहन में बड़ी तेजी से यह विचार कौंधा कि नौकर और चौकीदार उसे ही हत्यारा समझेंगे—यह समझते ही वह कुछ और ज्यादा बौखला गया—चमकदार लिबास वाले का पीछा करने के स्थान पर उसके दिमाग में खुद ही वहां से भाग निकलने का विचार उभरा।
 
रश्मि एकदम हड़बड़ाकर उठ बैठी।
कमरे में अंधेरा छाया हुआ था। हर तरफ सांय-सांय करती खामोशी।
पलंग पर बैठी वह आंखें फाड़-फाड़कर अपने चारों तरफ छाए अंधेरे को देखने लगी। किसी वस्तु के गिरने की तेज धमाके जैसी आवाज ने उसकी निद्रा तोड़ दी थी।
एक अजीब-सी दहशत उसे अपने मन-मस्तिष्क पर हावी होती-सी महसूस हुई—टटोलकर उसने देखा—विशेष पलंग पर सोया पड़ा था।
उसे कुछ शान्ति-सी महसूस हुई।
निद्रा टूट जाने की वजह की तलाश में भटक रहे मन-मस्तिष्क को एकाएक ही यह अहसास हुआ कि कमरे में कोई अजनबी है—इस विचार मात्र से रश्मि रोमांचित हो उठी।
कमरे में किसी तीसरे व्यक्ति के सांस लेने की आवाज गूंज रही थी।
रश्मि के मस्तक पर पसीना उभर आया। जिस्म के रोएं खड़े हो गए—उसे यह यकीन होता चला गया कि कमरे में कोई है। डर ने पूरी मजबूती के साथ उसके दिलो-दिमाग को कस लिया। सच बात तो यह है कि आतंक की अधिकता के कारण उसकी हिम्मत पलंग से स्विच तक जाने की न पड़ रही थी।
साहस करके वह फर्श पर खड़ी हो गई। फिर कमरे में छाए अंधेरे को घूरती हुई स्विच की तरफ बढ़ी और अभी मुश्किल से दो या तीन कदम ही चली थी कि दृष्टि कमरे के पीछे की तरफ खुलने वाली खिड़की पर पड़ी।
अनायास ही रश्मि के कण्ठ से एक चीख उबल पड़ी।
बड़ी ही डरावनी और हृदयविदारक इस चीख ने सन्नाटे को झंझोड़कर रख दिया—अगले ही पल अंधेरे में विशेष की आवाज गूंजी— "क...क्या हुआ मम्मी , तुम कहां हो ?"
मगर रश्मि को तो मानो होश ही न था।
विशेष की आवाज जैसे उसने सुनी ही न थी। अपने स्थान पर जड़वत्त्-सी खड़ी वह पथराई-सी आंखों से खिड़की की तरफ देख रही थी। वहां एक भयानक शक्ल नजर आ रही थी।
उसी चेहरे को देखकर रश्मि के कण्ठ से चीख निकली थी।
चेहरा बुरी तरह जला हुआ था। वह अपनी खूंखार आंखों से कमरे में ही देख रहा था। बुरी तरह डरे हुए अन्दाज में रश्मि चीख पड़ी—क....कौन है ?"
आतंकित रश्मि पागलों की तरह स्विच की तरफ भागी और अगले ही पल उसने स्विच ऑन कर दिया—कमरा प्रकाश से भर गया।
खिड़की के उस पार से जला हुआ चेहरा गायब।
हक्का-बक्का-सा विशेष पलंग पर बैठा नजर आया।
रश्मि दौड़कर उसकी तरफ भागी , परन्तु पलंग पर पहुंचते-पहुंचते उसने खिड़की के शीशे का कटा हुआ भाग देख लिया था—शीशा काटने वाले हीरे से काटा गया चार इंच का वर्गाकार भाग—बड़ी तेजी से रश्मि के जेहन में यह विचार कौंधा कि अगर मेरी नींद न खुल जाती तो वह डरावने चेहरे वाला अन्दर से बन्द खिड़की की चिटकनी खोल लेता।
"क...क्या बात है मम्मी , यहां कौन है ?" विशेष की आवाज कांप रही थी।
"प...पता नहीं बेटे! " कहती हुई रश्मि ने विशेष को बांहों में भर लिया और उसी क्षण नजरें कमरे के फर्श पर बिखरे कांच पर पड़ीं—वह खिड़की के कटे टुकड़े का कांच था।
रश्मि समझ गई कि इस टुकड़े के टूटने की खनक से ही उसकी नींद टूटी थी—वह बुरी तरह डर गई थी , बोला— “ चलो....वीशू।"
"क...कहां मम्मी?"
"न...नीचे , मांजी के पास। ” कहने के साथ ही विशेष की कलाई पकड़कर वह दरवाजे की तरफ बढ़ी।
कांपते हाथों से ही उसने दरवाजे की चिटकनी खोली और दरवाजा खोलते ही उसके हलक से पुन: चीख उबली।
इस बार नन्हां विशेष भी बुरी तरह चीख पड़ा था।
विशेष को संभाले रश्मि पीछे हट गई।
भयानक , डरावने , जले हुए और वीभत्स चेहरे का मालिक दरवाजे के बीचो-बीच खड़ा अपनी खूंखार और रक्तिम आंखों से उन्हें घूर रहा था। रश्मि अपने आतंक पर अभी काबू भी नहीं कर पाई थी कि एक लम्बे कदम के साथ यह कमरे में आ गया।
दहशत के कारण विशेष ने अपना चेहरा रश्मि के अंक में छुपा लिया था।
जिस वक्त डरावने चेहरे वाला दरवाजा बन्द करने के बाद अन्दर से चिटकनी चढ़ा रहा था , तब रश्मि चीख पड़ी— क......कौन हो
तुम....क....क्या चाहते हो ?"
चिटकनी बन्द करने के बाद वह घूमता हुआ बोला— “ म.....मेरा नाम रूपेश है।"
"रूपेश ?"
"वही, जिसे उसने जीवित जलाने की कोशिश की थी—देख रही हो यह जला चेहरा—उसी हरामजादे की करतूत है ये—वह तुम्हारा पति बन बैठा है—हुंह—एक विधवा का पति।”
"व...वह मेरा पति नहीं है।" भयभीत रश्मि कह उठी।
"देख रहा हूं।" रूपेश के कण्ठ से गुर्राहट-सी निकली—"तुमने सफेद धोती पहन रखी है—मस्तक पर बिंदी है , न मांग में सिंदूर—न पैरों में बिछुए हैं , न कलाइयों में चूड़ियां—फिर भी पुलिस उसे तुम्हारा पति कहती है और तुम्हारी इस वेशभूषा को देखकर ही मैंने उसे विधवा का पति कहा है।"
"त...तुम यहां क्यों आए हो ?"
रूपेश दांत भींचकर गुर्राया— “ हरामजादे की बोटी-बोटी नोच डालने के लिए।"
"म...मगर" विशेष को लिए पीछे हटती हुई वह बोली— “इस वक्त वह यहां नहीं है।"
"मैं जानता हूं।"
“फ.....फिर तुम यहां? मेरे कमरे में क्यों आए हो ?"
"सुना है कि इस लड़के से वह बहुत प्यार करता है।"
"न...नहीँ।" विशेष को अपने से लिपटाए वह हलक फाड़कर चिल्ला उठी—जबकि उसकी तरफ बढ़ता हुआ रूपेश बड़ी ही खतरनाक मुस्कराहट के साथ कहता चला गया—“मैं इसे यहां से ले जाऊंगा , और फिर जहां मैं उस कुत्ते को बुलाऊंगा , वहां घुटनों के बल रेंगते हुए उसे आना होगा।"
"त...तुम्हें गलतफहमी है। वास्तव में वह वीशू से बिल्कुल प्यार नहीं करता है—इसे प्यार करने का नाटक करके उसने सिर्फ इसे अपने मोहजाल में फंसाया था—केवल इस घर की चारदीवारी में शरण लेने के लिए—वह हत्यारा है , पुलिस से बचने मात्र के लिए वह सर्वेश बना है।"
तभी कमरे के बन्द दरवाजे को किसी ने जोर से खटखटाया।
रूपेश ने बुरी तरह चौंककर पीछे देखा , दरवाजा खटखटाने के साथ ही बूढ़ी मां की आवाज भी सुनाई दी—रश्मि और विशेष की चीखों ने शायद उसे जगा दिया था।
उचित अवसर जानकर रश्मि दरवाजे की तरफ लपकी।
रूपेश ने बिजली की-सी फुर्ती के साथ जेब से रिवॉल्वर निकालकर दस्ते का वार रश्मि की कनपटी पर किया—वार इतना 'सैट ' था कि एक चीख के साथ रश्मि वहीं ढेर हो गई।
"म...मम्मी …मम्मी …।" चिल्लाता हुआ विशेष उसे झंझोड़ने लगा।
हड़बड़ाए-से रूपेश ने एक वार उसकी कनपटी पर भी किया—एक चीख के साथ विशेष भी बेहोश हो गया , दरवाजा पीटने के साथ ही बूढ़ी मां ज्यादा जोर से चिल्लाने लगी थी—बौखलाए हुए रूपेश ने रिवॉल्वर जेब में रखा।
एक कागज निकालकर कमरे के फर्श पर फेंकने के बाद विशेष के बेहोश जिस्म को उठाकर उसने कन्धे पर लादा और खिड़की की तरफ दौड़ा।
अगले कुछ ही पलों बाद वह खिड़की के समीप से गुजर रहे 'रेन वाटर पाइप ' के सहारे तेजी के साथ उतरता चला जा रहा था।
 
"तू...तू हत्यारा है—कमीने....पापी....मैं तुझे कच्चा चबा जाऊंगी।" दोनों हाथों से युवक का गिरेबान पकड़े उसे झंझोड़ती हुई रश्मि चीखे चली जा रही थी— “बहुत बड़ा जालसाज है तू—पुलिस ठीक ही कहती थी—तूने मुझे ठग लिया है—मैं लुट गई , मेरा बच्चा भी तूने मुझसे छीन लिया—मेरा वीशू....मेरा बेटा लौटाकर दे मुझे।"
इस खबर से युवक को भी शॉक-"सा लगा था कि रूपेश विशेष को ले गया है। अवाक् और जड़वत्-सा खड़ा रह गया था वह—बूढ़ी मां एक तरफ पड़ी दहाड़े मार-मारकर रो रही थी।
“बोलता क्यों नहीं हत्यारे—बोल , मैं कहती हूं बोल कि मेरे वीशू को लाएगा या नहीं ?" पागलों की तरह चीखती हुई रश्मि ने उसे झंझोड़ा , मगर तब भी युवक की तंद्रा भंग न हुई।
रश्मि पुन: चीखी—"अब बोलता क्यों नहीं, बहुरूपिए—अब कह कि तूने किसी रूबी की हत्या नहीं की थी—किसी रूपेश को जिन्दा नहीं जलाया था तूने।"
"प्लीज रश्मि , 'शाही कोबरा ' की साजिश को समझने की कोशिश करो—मैंने कहा था कि वह कोई भी चाल चल सकता है , मेरे और तुम्हारे बीच दरार पैदा करने वाली चाल भी—उसने वही किया है—छिड़ी हुई जंग में मेरे द्वारा किए गए हमलों से वह चीखता गया है—मैं उनके बहुत-से रहस्य जान चुका हूं, रश्मि—मुझ पर उनका वश न चला तो अब वीशू को उठा ले गए हैं—केवल इसीलिए कि कहीं मैं सारे राज पुलिस को न बता हूं।"
"म...मैं कुछ नहीं जानती—मुझे वीशू चाहिए—वीशू को वे तभी छोड़ेंगे जब तू खुद को उनके हवाले कर देगा—मगर वीशू तेरा लगता ही कौन है? उसकी जान बचाने के लिए तू भला खुद को उनके हवाले क्यों करने लगा ?"
जाने क्यों युवक की आंखें भर आई थीं , बोला—“मैं मांजी की कसम खाकर कहता हूं रश्मि कि खुद अपनी जान दे दूंगा , मगर वीशू को कुछ नहीं होने दूंगा।"
रश्मि अवाक्-सी युवक को देखती रह गई।
"मैं वापस आ सकूं या न आ सकूं, रश्मि—मगर ये वादा रहा कि वीशू यहां जरूर आएगा—मैं उसका बाल भी बांका नहीं होने दूंगा , मगर...।"
"मगर ?" आग का एक भभका-सा रश्मि ने उसकी तरफ फेंका।
"जरा शांति के साथ रूपेश द्वारा छोड़े गए इस पत्र को पढ़ लो।"
रश्मि ने पत्र लिया , पढ़ा—
"हम विशेष को ले जा रहे हैं—अगर तुमने पुलिस को कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच या 'शाही कोबरा ' के हैडक्वार्टर के बारे में हल्की-सी भी जानकारी देने की कोशिश की तो हम विशेष को मार डालेंगे—अगर तुम्हें विशेष को जीवित पाना है तो तुरन्त 'मुगल महल ' में आ जाओ।
— 'शाही कोबरा '।"
पत्र पढ़कर रश्मि के रोंगटे खड़े हो गए। युवक ने कहा— “अब तुम समझ सकती हो कि रूपेश का सम्बन्ध मेरे द्वारा किए गए किसी हत्याकाण्ड से नहीं , बल्कि 'शाही कोबरा ' से छिड़ी मेरी वर्तमान जंग से है—मेरी तलाश में किसी भी क्षण पुलिस यहां आ सकती है। वीशू की बेहतरी के लिए तुम उससे कुछ नहीं कहोगी।"
 
उसने 'मुगल महल ' में कदम रखा। देखते-ही-देखते चार गुण्डों ने उसे घेर लिया। युवक को यह समझने में देर नहीं लगी कि अब वह कैद है।
चार में से एक ने उसे अपने पीछे चले आने का संकेत किया—विवश युवक चुपचाप पीछे चल दिया—शेष तीनों उसे तीन तरफ से घेरे हुए थे , उनके हाथ जेब में थे और युवक समझ सकता था कि उनकी जेब में रिवॉल्वर पड़े हैं।
कई गैलरियों में से गुजरते हुए वे उसे कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच के सामने ले गए , कमरे का दरवाजा बन्द था।
एक ने विशेष अन्दाज में दस्तक दी।
यहां सन्नाटा था , अत: शेष तीनों भी उसके नजदीक आ गए—दरवाजा सरसराकर स्वयं ही खुल गया—एक साथ तीनों रिवॉल्वरों की नालें उसके जिस्म से चिपक गईं।
दो पसलियों से , एक पीठ पर।
उसे कवर किए वे अन्दर दाखिल हो गए—दरवाजा स्वयं ही बंद।
युवक समझ गया कि गैंग का चीफ अपने बिल में बैठा शायद किसी टी oवी o स्क्रीन पर उन्हें देख रहा था और ये दरवाजे आदि कुछ बटनों के माध्यम से उसकी उंगलियों के इशारे पर ही खुल और बन्द हो रहे थे।
सरसराकर कमरे के बीच का फर्श एक तरफ हट गया।
अब वहां नीचे उतरने के लिए खूबसूरत टायलदार चिकनी सीढ़ियां नजर आने लगीं—रिवॉल्वरों के साए में युवक उन पर उतरता चला गया—घुमावदार सीढ़ियां तय करके वे एक गैलरी में पहुंचे।
हल्की सरसराहट के साथ रास्ता बन्द हो गया।
तहखाने की उस गैलरी में लाइट का समुचित प्रकाश था।
फिर वे उस हॉल में पहुंच गए , जिसका दृश्य पाठक पहले भी कई बार पढ़ चुके हैं। दीवारों के सहारे सशस्त्र गार्ड खड़े थे। हरी वर्दी—लाल बैल्ट—लाल कैप वाले गार्ड।
युवक को मंच के काफी नजदीक ले जाकर खड़ा कर दिया गया।
अचानक ही मंच की छत पर लगा बल्ब लपलपाया और मंच पर नजर आया चमकीले लिबास वाला नकाबपोश—युवक के जेहन में बड़ी तेजी से वह हाथ चकरा उठा , जिसे उसने न्यादर अली पर फायर करते देखा था।
"त...तुम ?" युवक के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा।
“हां , हम।" मंच से बॉस की आवाज उभरी— “ बहुत तूफान उठा रखा है तुमने।"
"क्या तुम वही हो जिसने न्यादर अली का मर्डर किया है ?”
"बूढ़े का मरना जरूरी हो गया था , क्योंकि उसे 'शाही कोबरा ' समझकर तुमने बहुत-से रहस्य बता दिए थे—ऐसे कि हमारा यह हैडक्वार्टर ही खतरे में पड़ जाता।"
"तो 'शाही कोबरा ' तुम हो ?"
" 'शाही कोबरा ' तुम जैसे कुत्तों से बात नहीं किया करते—मैं उनका छोटा-सा खादिम हूं और तुम जैसे लोगों से मैं ही निपट लेता हूं।"
"मैं 'शाही कोबरा ' से बात करना चाहता हूं।"
“ ऐसे खूबसूरत ख्वाब देखने छोड़कर तुम जरा ऊपर देखो बेटे।" बॉस के इस वाक्य के तुरन्त बाद हॉल में विशेष की आवाज गूंजी—"पापा...पापा...।"
युवक ने एक झटके से ऊपर देखा।
हॉल की छत करीब तीस फुट ऊपर थी और वहां उल्टा झूल रहा विशेष उसे नजर आया। युवक के समूचे जिस्म में अजीब-सा तनाव उत्पन्न हो गया।
दो पतले तार हॉल के इस सिरे से उस सिरे तक छत के समानान्तर बंधे हुए थे। उन लोहे के तारों में लोहे का एक-एक छल्ला पड़ा था और इन छल्लों से दो रस्सी के छोटे टुकड़ों द्वारा विशेष के पैर सम्बद्ध थे।
उल्टा लटका हुआ था वह। तारों पर छल्ले फिसल रहे थे।
युवक का चेहरा लाल-सुर्ख हो गया। मुट्ठियां और दांत भिंच गए—गुस्से की अधिकता के कारण अभी वह बुरी तरह कांप ही रहा था कि बॉस की आवाज गूंजी—"हमारे एक इशारे पर वह सिर के बल फर्श पर जा गिरेगा और फिर उसके सिर के अंजाम की कल्पना तुम कर सकते हो।"
“मुझे बचाओ, पापा।" विशेष की आवाज ने युवक की रगें फड़का दीं—वह एकदम मंच की तरफ देखकर गुर्राया—"म...मैंने खुद को तुम्हारे हवाले कर दिया है , वीशू को छोड़ दो।"
"अभी कहां बेटे—तमाशा तो अब शुरू हुआ है।" व्यंग्यात्मक लहजे में कहने के बाद बॉस ने किसी को पुकारा—"गुल्लू।"
"यस बॉस।" पंक्ति से दो कदम आगे निकलकर जो कद्दावर व्यक्ति आया , उसकी बाईं आंख पर हरे रंग की एक 'आई-कैप ' थी।
"इस हरामजादे की जेब में शायद एक रिवॉल्वर है—उसे निकाल लो।"
गुल्लू युवक की तरफ बढ़ा। उसके नजदीक पहुंचने के बीच बॉस ने चेतावनी दी— “अगर तुमने हरकत की तो बच्चा नीचे जा गिरेगा।"
युवक अपने स्थान पर खड़ा कांपता रहा।
विशेष की चीखें हॉल में लगातार गूंज रही थी—युवक कुछ भी न कर सका और गुल्लू ने ना केवल उसकी जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया , बल्कि पूरी तलाशी ले डाली।
बॉस ने पुकारा— “रूपेश!"
"यस बॉस।"
"तुम्हारा शिकार सामने है।"
युवक की दृष्टि रूपेश पर जम गई। रूपेश की आंखों में लहू नाच रहा था—उसके जले हुए चेहरे पर भयानकता को देखकर एक बार को तो युवक भी सिहर उठा—युवक तक पहुंचने से पहले ही रूपेश ने गुल्लू से युवक की जेब से निकला रिवॉल्वर ले लिया।
हॉल में बॉस की आवाज गूंजी— "हमसे पहले तुम रूपेश के मुजरिम हो , अब रूपेश जो चाहेगा , तुम्हें सजा देगा।"
युवक के बहुत नजदीक आकर रूपेश गुर्राया—"उस बच्चे से शायद तू उतना ही प्यार करता है , जितना मैं माला से करता था।"
 
"न..नहीं रूपेश।" युवक गिड़गिड़ा उठा—"व...वीशू ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है—तुम्हारा मुजरिम मैं हूं—बदला लेना है तो मुझसे लो—वीशू मेरा कोई नहीं है—एक विधवा का आखिरी सहारा है वह—उसे छोड़ दो।"
"हुंह।" दिल में भरी घृणा जब रूपेश ने अपने चेहरे पर उड़ेली तो उसका डरावना चेहरा कई गुना ज्यादा वीभत्स हो गया। गुस्से में सुलगता हुआ वह बोला— “उसे छोड़ हूं जिसकी मौत पर तू वैसे ही तड़पेगा जैसा माला की मौत पर रूपेश तड़पा था—मरेगा तू भी कुत्ते , तेरी मौत का मंजर भी मैं अपनी आँखों से देखूंगा , मगर उसमें यह मजा नहीं आएगा , जो बच्चे की मौत पर तेरी तड़प देखने में आएगा।"
“ऐसा मत करो रूपेश—प्लीज।"
"धांय।" एक फायर करने के साथ ही रूपेश ने अट्ठहास लगाया।
युवक पूरी ताकत से चीख पड़ा— "न.....नहीँ।"
विशेष के एक पैर की रस्सी टूट चुकी थी। अब वह एकमात्र पैर पर एक कुन्दे में झूलता चीख रहा था— "मुझे बचा तो पापा....पापा।"
रूपेश हंसा— "हा-हा-हा.....उसे देख कुत्ते …देख उसे।"
"प...प्लीज़ , वीशू को छोड़ दो....उसे जाने दो।" युवक पागलों की तरह रूपेश के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाया , परन्तु रूपेश के मुंह से निकलने वाले खूनी कहकहे बुलन्द और बुलन्द होते चले गए। उसका रिवॉल्वर वाला हाथ दूसरा फायर करने की पोजीशन में आया और—धांय।”
हॉल में फायर की आवाज गूंजी , मगर ऐन वक्त पर दीवाने-से हो गए युवक ने रूपेश के दोनों पैर पकड़कर खींच लिए थे। परिणामस्वरूप न केवल निशाना चूक गया, बल्कि खुद रूपेश चारों खाने चित्त फर्श पर गिरा।
रिवॉल्वर उसके हाथ से निकलकर दूर तक फिसलता चला गया।
जिन्दगी और मौत की परवाह किए बिना युवक ने रूपेश पर जम्प लगा दी—सारे हॉल में सनसनी-सी दौड़ गई। दीवारों के सहारे खड़े सशस्त्र गार्ड्स ने गनें सीधी कर लीं और तभी मंच से बॉस की आवाज गूंजी—"कोई बीच में नहीं आएगा।"
सभी लोग हैरत से मंच की तरफ देखने लगे।
"हम उसका हाथ जरा देखना चाहते हैं , जिसने एक साथ रंगा-बिल्ला का न केवल मुकाबला किया , बल्कि बिल्ला को मार भी डाला—सुनो रूपेश , अपने मुजरिम से निपटने का हम तुम्हें पूरा मौका दे रहे हैं।"
रूपेश और युवक में मल्लयुद्ध तो छिड़ चुका था।
बॉस की उक्त घोषणा से युवक का साहस बढ़ा। छत पर उल्टा लटका हुआ विशेष बुरी तरह चीख रहा था , मगर फिलहाल उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं था।
धड़कते दिल से सभी रूपेश और युवक को देख रहे थे—उन्हें , जो एक-दूसरे के खून के प्यासे हुए जंगली भेड़ियों की तरह भिड़े हुए थे—लड़ने के तरीके निश्चय ही युवक ज्यादा जानता वा , किन्तु कम रूपेश भी नहीं था।
शारीरिक ताकत में युवक से कुछ इक्कीस ही था।
रूपेश का दांव लगा। युवक को उसने अपने दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठा लिया। किसी दांव का इस्तेमाल करने के लिए युवक अभी हाथ-पांव मार ही रहा था कि रूपेश ने उसे पूरी ताकत से फर्श पर दे मारा।
युवक का सिर बहुत ही जोर से फर्श पर टकराया।
रंगबिरंगी चिंगारियों के बाद मस्तिष्क पर गहरे काले रंग की चादर तनती चली गई और बेहोश होकर वह एक तरफ लुढ़क गया।
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Re: Hindi novel विधवा का पति
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Post by Masoom » 01 Mar 2020 18:54

जब चेतना लौट रही थी , तब उसने महसूस किया कि इस वक्त वह ढेर सारी रस्सियों के द्वारा मजबूती से एक थम्ब के साथ बंधा हुआ है—उसके मस्तिष्क पटल पर बेहोश होने से पूर्व के दृश्य उभरने लगे।
एक फियेट की ड्राइविंग सीट पर वह स्वयं था।
बहुत तेज , अंधाधुंध ड्राइविंग कर रहा था वह—तभी सामने से एक ट्रक आया। उससे भी कहीं ज्यादा तेज और अंधाधुंध।
बचने के लिए उसने स्टेयरिंग घुमाया , मगर ट्रक बिल्कुल रांग साइड पर आ गया।
एक पल …सिर्फ एक पल के लिए वह ड्राइवर का चेहरा देख पाया था , क्योंकि अगले ही पल कर्णभेदी विस्फोट के साथ कार और ट्रक
में आमने-सामने की टक्कर हो गई।
बस—उसके बाद उसे अस्पताल में होश आया था।
डॉक्टरों ने उससे नाम पूछा। वह बता नहीं सका—डॉक्टर इस नतीजे पर पहुंचे कि वह अपनी याददाश्त गंवा बैठा है—सचमुच उसे कुछ भी याद नहीं रहा था।
मगर अब उसे सब कुछ याद आ रहा था।
अपना नाम भी।
"आंखें खोलो बेटे।" व्यंग्य में दूबी एक आवाज उसके कानों से टकराई।
युवक की विचार श्रृंखला भंग हो गई—आवाज़ उसे परिचित-सी लगी थी—दर्द से कराहते हुए उसने आंखें खोल लीं—पहले उसे सब कुछ धुंधला-धुंधला-सा नजर आया—युवक को स्थान जाना-पहचाना-सा लगा।
जैसे यहां पहले भी आया हो।
"पापा...पापा।" एक बच्चे की पुकार सुनकर उसने छत की ओर देखा। बच्चे को उसने पहचान लिया—वह विशेष था—अस्पताल में होश आने से लेकर पुन: बेहोश होने तक के सभी दृश्य चलचित्र के समान मस्तिष्क पटल पर तैर गए।
"उधर देखो बेटे , अपने पेट पर।" बॉस की आवाज सारे हॉल में गूंज गई और मंच की तरफ विशेष रूप से बॉस को देखकर उसके चेहरे पर अजीब-से भाव उभर आए—घबराकर उसने अपने पेट की तरफ देखा।
पेट पर कपड़े की एक बैल्ट के साथ बम बंधा हुआ था।
इस बम का पलीता बहुत लम्बा था। हॉल के सबसे दूर वाले किनारे तक—वह इस बम और विशेष रूप से लम्बे पलीते का अर्थ नहीं समझ सका। हाथ-पैर आदि थम्ब के साथ बंधे थे , स्वेच्छा से हिल तक नहीं सकता था।
बॉस की आवाज गूंजी— “तुमने रंगा के माध्यम से एक खिलौने को बम कहकर हमें दूसरा कमाल दिखाया था और उसी के जवाब में अब हम तुम्हें तुम्हारे पेट पर बंधे बम का कमाल दिखाएंगे , मगर यह खिलौना नहीं है।"
युवक के जबड़े अजीब-से अन्दाज में कस गए थे।
“तुम्हारी मौत का यह तरीका 'शाही कोबरा ' ने चुना है—रूपेश अपने हाथ से पलीते के सिरे पर चिंगारी लगाएगा—वह चिंगारी पलीते पर धीरे-धीरे चलती हुई तुम्हारी तरफ बढ़ेगी और तुम्हारे देखते ही देखते बम तक पहुंच जाएगी—एक जबरदस्त विस्फोट होगा—और फिर तुम्हारे जिस्म के चीथड़े बिखर जाएंगे।"
मौत की ठंडी लहर के स्थान पर युवक के जिस्म में क्रोध की लहर दौड़ गई।
इस हॉल को , हॉल में मौजूदा एक-एक व्यक्ति को , यहां तक कि मंच पर मौजूद बॉस को भी जानता था वह। उसे अच्छी तरह याद आ गया कि जिस ट्रक से उसका एक्सीडेंट हुआ था—उसे वही गुल्लू नामक व्हाइट आई कैप वाला व्यक्ति ड्राइव कर रहा था।
युवक के दिमाग की सारी गुत्थियां सुलझती चली गईं। एक के बाद एक सारी वारदातें , सारी बातें उसे याद आती चली गईं। जाने किस बात को याद करके उसका सारा जिस्म असीम क्रोध एवं अत्यधिक उत्तेजनावश कांप उठा।
तभी बॉस ने कहा—"पलीते में आग लगा दो रूपेश।"
पलीते के सिरे के पास खड़े रूपेश ने लाइटर जलाया।
“ठहरो।" युवक के कण्ठ से एक विशेष भर्राटदार आवाज निकली और इस आवाज को सुनकर न सिर्फ रूपेश लड़खड़ा गया , पंक्तिबद्ध खड़े गुण्डे और दीवारों के सहारे खड़े सशस्त्र गार्ड उछल पड़े , बल्कि स्वयं बॉस के पैरों के तले से जमीन खिसक गई।
हॉल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के मुंह से हैरत में डूबा स्वर निकला—"श...शाही कोबरा ?"
"हां।" युवक के मुंह से वही भर्राहटदार आवाज निकली थी— “मैं 'शाही कोबरा ' हूं—ध्यान से मेरी आवाज सुनो— मैं ही 'शाही कोबरा ' हूं।"
बुरी तरह आतंकित और बौखलाया हुआ बॉस चीख पड़ा—"ये झूठ बोलता है।"
"झूठा तू है कुत्ते—गद्दार—नमकहराम।" थम्ब से बंधा युवक दांत भींचकर गुर्रा उठा— “ इसे पकड़ लो रूपेश , यहां से भागने न पाए।"
"बेवकूफी मत करना रूपेश—यह इस हरामजादे की नई चाल है—जाने कहां से इसने 'शाही कोबरा ' की आवाज की नकल करनी सीख ली है। मैं कहता हूं क्विक , पलीते में आग लगा दो।"
"खबरदार रूपेश , यह गद्दार है—हमारी याददाश्त गुम हो गई थी—हमें मारकर यह सारे गैंग पर अपना कब्जा...।"
"धांय। मंच की ओर से एक शोला लपका।
हैरअंगेज ढंग से उछलकर गुल्लू युवक की ढाल बन गया। गोली गुल्लू के सीने में लगी और एक चीख के साथ वह वहीं शहीद हो गया।
गार्ड्स की गनें गरज उठीं।
सबका निशाना मंच पर मौजूद बॉस था , मगर गोलियां उसके चांदी के चमकदार लिबास से टकराकर छितरा गईं और अगले ही पल बॉस मंच के उसी कोने में विलीन हो गया , जिसमें से प्रकट हुआ करता था।
युवक चीख पड़ा— “वह नमकहराम भागने की कोशिश कर रहा है रूपेश , जल्दी से मंच पर पहुंचो—दाईं दीवार में एक स्विच प्लेट है—उस प्लेट का लाल रंग का बटन दबा दो , जल्दी करो।"
और रूपेश के जिस्म में जैसे बिजली भर गई।
एक ही पल पहले वह जिसकी जान का ग्राहक था , उस पल उसके आदेश का गुलाम की तरह पालन करता हुआ एक ही जम्प में मंच पर पहुंच गया।
"हमें मुक्त करो।" युवक ने जोर से कहा।
हॉल में मौजूद सभी व्यक्ति उसके आदेश का पालन करने के लिए लपक पड़े।
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Masoom
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Re: Hindi novel विधवा का पति
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Post by Masoom » 01 Mar 2020 18:54

सबसे पहले एक गार्ड ने उसके जिस्म से बहुत ही सावधानी के साथ बम अलग किया और फिर रस्सियों से मुक्त होते उसे देर नहीं लगी—इस बीच रूपेश उसके हुक्म का पालन कर चुका था। युवक ने आंधी-तूफान की तरह दौड़ लगाई।
"आप सब यहां रहें , मैं उस नमकहराम को आपके सामने ही सजा देना पसन्द करूंगा।"
कहने के तुरन्त बाद युवक ने मंच के उसी भाग में जम्प लगा दी , जिसमें बॉस गुम हुआ था। रूपेश सहित हॉल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति हक्का-बक्का-सा खड़ा रह गया , जबकि मंच के उस दरवाजे को पार करने के बाद युवक एक बहुत ही संकरी गैलरी में दौड़ा चला जा रहा था। तीन मोड़ पार करने के बाद वह खूबसूरती से सजे एक छोटे कमरे में पहुंचा।
वहां एक डैस्क और डैस्क के पीछे दो टी ○ वी ○ रखे थे।
डैस्क पर बहुत-से बटन थे।
युवक ने जल्दी से उनमें से एक बटन दबा दिया , कमरे के बीच का एक छोटा हिस्सा सरसराकर हट गया , अब वहां चक्करदार लोहे की सीढ़ी नजर आ रही थी—आंधी-तूफान की तरह उतरता हुआ वह नीचे पहुंचा।
एक काफी चौड़ी गैलरी में वह भागा चला जा रहा था।
शीघ्र ही गैलरी के अंतिम सिरे पर पहुंच गया—वहीं , जहां चमकीले लिबास वाला बॉस इस्पात के बने एक दरवाजे का हैंडिल पकड़कर उससे जूझ रहा था। गैलरी के इस सिरे से उस सिरे तक शानदार कार्पेट बिछा हुआ था।
बॉस को यूं दरवाजे से जूझता देखकर युवक के होंठों पर पैशाचिक मुस्कान उभरी। अपने स्थान पर खड़ा होकर वह गुर्राया—"सात जन्म तक जोर लगाने के बावजूद वह नहीं खुलेगा साठे , उसका लॉक हॉल के मंच पर है और वह मैं बन्द करा चुका हूं।"
चमकीले लिबास वाले ने अपना नकाब उतारकर एक तरफ फेंक दिया , वह 'मुगल महल ' का मैनेजर साठे ही था। एक झटके से रिवॉल्वर निकालकर तानता हुआ गुर्राया— “वहीं रुक जाओ सिकन्दर , वरना मैं तुम्हें शूट कर दूंगा।"
सिकन्दर इस तरह मुस्कराया , जैसे किसी छोटे-से बच्चे ने खिलौना रिवॉल्वर दिखाकर उसे धमकी दी हो , बोला— "अब मैं याददाश्त खोया हुआ युवक नहीं बेटे , इस सारे 'डैन ' का मालिक हूं— 'शाही कोबरा '—मेरी इजाजत के बिना यहां एक पत्ता भी नहीं हिल सकता—फायर करने से पहले जरा अपने पीछे का नजारा देख लो।"
बौखलाकर साठे ने पीछे देखा और इसी क्षण सिकन्दर ने झुककर फर्श पर बिछे कार्पेट को एक झटका दिया , कार्पेट के उस किनारे पर खड़ा साठे चारों खाने चित्त गिरा।
रिवॉल्वर उसके हाथ से छूट गया था।
सिकन्दर ने किसी जख्मी गोरिल्ले की तरह उस पर जम्प लगाई। हवा में लहराकर वह सीधा साठे के ऊपर जा गिरा।
साठे महसूस कर रहा था कि वह मौत के जबड़े में फंस चुका है।
¶¶
 
उस चौंका देने वाले रहस्य के खुलने पर काफी गहमा-गहमी के बाद हॉल में अब सन्नाटा व्याप्त था और उस वक्त तो सन्नाटा कुछ और ज्यादा बढ़ गया , जब मंच पर हॉल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति को 'शाही कोबरा ' यानि वही युवक नजर आया—कुछ ही देर पहले जिसके मरने की तैयारियों थीं—इस वक्त उसके कन्धों पर बेहोश साठे था। जिस्म पर वही चमकीला लिबास , परन्तु नकाबरहित चेहरा।
मंच ही से पूरी बेरहमी के साथ सिकन्दर ने साठे को हॉल के फर्श पर फेंक दिया , बोला— “इसे उसी थम्ब के साथ बांध दो , जिसके साथ तुम सबको धोखे में डालकर इसने हमें बंधवा दिया था।"
रूपेश के साथ अन्य तीन व्यक्ति इस आदेश का पालन करने में जुट गए।
मंच पर खड़े सिकन्दर ने ऊपर लटक रहे विशेष को देखा , उसी स्थिति में लटका हुआ अब तक यह बेहोश हो चुका था। सिकन्दर की आंखों के सामने रश्मि का चेहरा नाच उठा।
विशेष को यहां से उतारने का हुक्म जारी करते ही चार व्यक्ति उस हुक्म का पालन करने में जुट गए और दस मिनट बाद ही विशेष के बेहोश जिस्म को मंच पर पहुंचा दिया गया। विशेष को लिए सिकन्दर मंच का दरवाजा पार करके संकरी गैलरी से गुजरकर खूबसूरती से सजे कमरे में पहुंचा।
डेस्क का एक बटन दबाते ही कमरे की बाईं दीवार में एक दरवाजा प्रकट हो गया। विशेष को गोद में लिए सिकन्दर उस कमरे में पहुंचा , कमरे में मौजूद बेड पर उसने आहिस्ता से विशेष को लिटा दिया।
विशेष के मासूम चेहरे पर नजर पड़ते ही सिकन्दर के दिल में जाने कैसे अरमान मचले कि उसने झुककर विशेष को चूम लिया—फिर उस मासूम बच्चे को किसी दीवाने के समान सिकन्दर चूमता ही चला गया—आंखें भर आईं उसकी।
फिर तेजी के साथ कमरे से बाहर निकला। डैस्क पर मौजूद बटन को ऑफ करते ही दरवाजा बन्द हो गया—वह तेज कदमों के साथ मंच पर पहुंचा।
साठे को थम्ब के साथ बांधा जा चुका था।
हॉल में मौजूद एक-एक व्यक्ति पर नजर डालने के बाद सिकन्दर ने 'शाही कोबरा ' वाली आवाज़ में कहा— "आप सब लोग चकित होंगे कि यह सब क्या और कैसे हो गया है , 'शाही कोबरा ' होने के बावजूद मैं उस थम्ब तक कैसे पहुंच गया—संयोग से मेरी शक्ल तो आप देख ही चुके हैं , मगर नाम अभी तक नहीं जानते , मैं अपनी एक लम्बी कहानी बहुत संक्षेप में सुनाता हूं, इस कहानी में आप लोगों को उन हर सवालों का जवाब मिल जाएगा जो आप लोगों के जेहन में चकरा रहे हैं।"
हॉल में खामोशी छाई रही , साठे अभी तक बेहोश था।
"मैं बहुत ही विचित्र व्यक्ति हूं—खुद को विचित्र सिर्फ इस मायने में कह रहा हूं कि मैंने एक ही जन्म में दो जिन्दगियां जी हैं—एक अपनी वास्तविक जिन्दगी , दूसरी वह जो याददाश्त खोने के बाद मैंने जी—और दुर्भाग्य की बात यह है कि वे दोनों ही जिन्दगियां गुनाहों से भरी हैं।"
वह सांस लेने के लिए रुका , हॉल में ऐसी खामोशी थी कि चींटी के रेंगने तक की आवाज सब सुन सकें। सिकन्दर ने आगे कहा— "मेरे ख्याल से हर व्यक्ति अपने जन्म के साथ ही कोई खास प्रवृत्ति, गुण या आर्ट लेकर पैदा होता है , उसे हम "गॉड गिफ्ट ' अर्थात प्रकृति द्वारा दिया गया तोहफा कहते हैं—मेरा नाम सिकन्दर है और मैंने इस होटल के मालिक यानि न्यादर अली के घर जन्म लिया—आप सभी जानते हैं कि न्यादर अली एक करोड़पति हस्ती थी और उसके बेटे को कम-से-कम दौलत के लिए कोई गैरकानूनी काम करने की जरूरत नहीं थी , परन्तु 'गॉड गिफ्ट ' के रूप में शायद मुझे 'अपराध प्रवृत्ति ' मिली थी। तभी तो जवान होते ही मैंने इस गैंग का गठन किया।"
सभी धड़कते दिल से 'शाही कोबरा ' का बयान सुन रहे थे।
सिकन्दर ने आगे कहा—"मेरे डैडी का बहुत बड़ा बिजनेस है , इतना ज्यादा फैला हुआ कि यह 'मुगल महल' तो उस बिजनेस का एक जर्रा है—वे साल में यहां मुश्किल से दो या तीन बार ही आते थे—और मुझे यानि अपने मालिक के लड़के को तो 'मुगल महल ' के स्टॉफ ने कभी देखा ही नहीं था—न्यादर अली होटल का बिजनेस नहीं करना चाहते थे—मैंने ही जिद करके इस होटल का निर्माण कराया—होटल का बिजनेस करना मेरा मकसद भी नहीं था—मेरी 'गॉड गिफ्ट ' मुझे जुर्म करने के लिए उकसा रही थी और उसी मकसद से मैंने 'मुगल महल' के नीचे यह तहखाना बनवाया—साठे मेरा कोलिज का दोस्त है , यह भी अपराध प्रवृत्ति का है , अत: डैडी से कहकर मैंने उसे प्रत्यक्ष में 'मुगल महल ' का मैनेजर बनवा दिया —औरों को इस बात की भनक भी नहीं थी कि होटल के नीचे हमने कुछ खिचड़ी पकने के लिए एक तहखाना भी बनवाया है।
"हम दोनों ने मिलकर एक गैंग खड़ा कर लिया , आर्थिक रूप से कमजोर न होते हुए भी मैंने 'गॉड गिफ्ट ' से विवश होकर स्मगलिंग शुरू कर दी—मैँ 'शाही कोबरा ' बन गया—साठे को बॉस यानि गैंग का दूसरे नम्बर का लीडर बना दिया—आप लोग मुझे मेरी आवाज से पहचानते थे—मैं यहां कभी-कभी आया करता था—वह भी छुपकर—एक गुप्त दरवाजे के माध्यम से होटल में मैं कभी नहीं आया—यही डैडी भी समझते थे—आप सब लोग मेरे हुक्म के पाबन्द थे—भले ही वह अक्सर साठे के द्वारा मिलता हो।
"मेरी एक बहन भी थी—सायरा मैं उससे बेइन्तहा प्यार करता था , मगर एक सुबह उसके कमरे में उसकी निर्वस्त्र लाश पाई गई—फर्श पर पड़ी आंखें फाड़े मेरी सायरा कमरे की छत को घूर रही थी—किसी ने गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी थी और मैं उस हत्यारे से बदला लेने के लिए पागल हो उठा—मगर बदला लेता कैसे—किससे—मुझे नहीं मालूम था कि सायरा को क्यों और किसने मारा है—बदला लेने के लिए तड़पता हुआ मैं अपने उद्गार साठे के सामने व्यक्त करता रहता , यह हकीकत तो मुझे काफी समय गुजर जाने के बाद पता लगी कि सायरा का हत्यारा मेरा दोस्त , मेरा विश्वसनीय साठे ही था।"
"स...साठे ?' हॉल में मौजूदा सभी लोगों के मुंह से हैरत में डूबा स्वर निकला और सबकी नजर थम्ब के साथ बंधे साठे की तरफ उठ गई।
“हां—साठे ही ने सायरा की हत्या की थी , खैर।" एक ठण्डी सांस भरते हुए सिकन्दर ने कहा—"इस कहानी का बाकी हिस्सा मैं आप तीनों को एक अन्य छोटी-सी कहानी सुनाने के बाद सुनाऊंगा और यह छोटी-सी कहानी यह है कि एक दिन साठे ने मुझे बताया कि सर्वेश नाम का एक हू-ब-हू मेरी शक्ल का युवक 'मुगल महल ' में निकली कैशियर की वैकेन्सी के लिए इन्टरव्यू देने आया था—साठे ने मुझे उसका फोटो दिखाया तो मैं दंग रह गया—सचमुच सर्वेश और मैं एक ही कार्बन से बने पोजिटिव थे—सर्वेश को नौकरी दे दी गई—धीरे-धीरे हमने उसे इस गैंग में शामिल कर लिया—मैंने और साठे ने सोचा था कि यदि कभी दुर्भाग्य से पुलिस के हाथ " 'शाही कोबरा '' का फोटो लग गया तो हम सर्वेश की लाश कानून तक पहुंचा देंगे—उन हालात में कानून को चकमा देने के लिए मुझे सर्वेश भी बनना पड़ सकता है , इसीलिए मैंने सर्वेश के हाव-भाव , चाल-ढाल और बातचीत करने के अन्दाज को रीड करके उनकी नकल करने की प्रैक्टिस शुरू की—मुझमेँ और सर्वेश में एक बड़ा फर्क यह था कि वह 'राइट हैण्डर ' या और में लैफ्ट हैण्ड , किन्तु प्रैक्टिस के बाद मैं भी सीधे हाथ का उपयोग उतने ही स्वाभाविक ढंग से करने लगा , जितने स्वाभाविक ढंग से बाएं हाथ का करता था—मैँ मुसलमान हूं—किसी मुसीबत के समय मुंह से "खुदा" ही निकलता था और प्रैक्टिस के बाद मेरी जुबान इतनी 'रवां ' हो गई कि स्वाभाविक रूप से मेरे मुंह से हे 'भगवान ' ही निकलने लगा—कहने का मतलब यह कि अब मैं समय पड़ने पर खुद को कभी भी सर्वेश साबित कर सकता था। मगर जैसा सब कुछ सोचकर मैं और साठे सर्वेश को गैंग में लाए थे , वैसा समय कभी आया ही नहीं और उससे पहले ही हुआ यह कि सर्वेश इस भेद को जान गया कि गैंग का बॉस मैनेजर साठे है—हमारे लिए सर्वेश को खत्म कर देना जरूरी हो गया और तब , आप जानते ही हैं कि मैं उसे मंच के पीछे अपने 'सीक्रेट रूम ' में ले गया—उस वक्त मेरे चेहरे पर नकाब था , अत: वह नहीं देख सकता था कि मेरी शक्ल उससे मिलती है—मैंने उसे यह आश्वासन देते हुए बीयर पिलाई कि अगर वह साठे के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगा तो उसे एक करोड़ रुपया दिया जाएगा—यह सौदा उसने स्वीकार कर लिया था , किन्तु किस कम्बख्त को उसे एक करोड देने थे—बीयर में ऐसा जहर था , जिसे पीने के दस मिनट बाद ही वह मर गया और तब मैंने उसकी लाश रंगा-बिल्ला को रेल की पटरी पर डाल आने का हुक्म दिया—उसके चेहरे को क्षत-विक्षत कर देने का उद्देश्य यह था कि कहीं मेरे परिचित उसे मेरी ही लाश न समझ लें।"
 
सिकन्दर ने एक लम्बी सांस लेने के बाद आगे बताया— “हेलेन नाम की एक लड़की थी , जिससे साठे के नाजायज सम्बन्ध थे—आप सभी जानते हैं कि स्मगलिंग का माल इधर-से-उधर करने के लिए हमारा गैंग कभी भी अपनी गाड़ियां प्रयोग नहीं करता है—चोरी की गाड़ियां" इस्तेमाल की जाती हैँ—तुम्हें याद होगा मुकेश कि आज से करीब चार महीने पहले हमने तुम्हें 'हेरोइन ' स्मग्ल करने का हुक्म दिया था ?”
"मुझे याद है 'शाही कोबरा '।" हॉल में मौजूद एक युवक ने कहा।
"उस हेरोइन को स्मग्ल करने के लिए किसकी गाड़ी चुराई थी तुमने ?"
"प्रीत विहार में रहने वाले किसी अमीचन्द जैन की फियेट थी वह—मैंने वह जैन के गैराज का ताला तोड़कर चुराई थी।"
"फिर तुमने क्या किया ?"
"काम पूरा करके लौटने में मुझे सुबह के आठ बज गए—तब 'बॉस ' ने कहा कि दिन में फियेट को कहीं छोड़कर आना खतरनाक है , अत: रात होने पर यह किया जाए कि गाड़ी एक दिन के लिए होटल के सीक्रेट गैराज में खड़ी कर दी जाए।"
"बस , उसी दिन दस बजे के करीब मैं कैडलॉंक लेकर होटल के सीक्रेट गैराज में पहुंचा।" सिकन्दर ने बताया—"गाड़ी गैराज में खड़ी करके गुप्त रास्ते से इस तहखाने में आ रहा था कि तहखाने के एक कमरे से मुझे साठे और हेलेन के बातें करने की आवाज आई—उनकी बातचीत में सायरा का नाम सुनकर मैं चौंक पड़ा और दरवाजे के बाहर ही खड़ा होकर उनकी बातें सुनने लगा—उन बातों से मुझे मालूम हुआ कि साठे नाम का वह कमीना , जिसे मैं अपना दोस्त समझता था , मेरी बहन पर बुरी नजर रखता था , एक रात बलात्कार की नीयत से वह सायरा के कमरे में जा घुसा—सायरा से उसने जबरदस्ती की—मेरी बहन के सारे कपड़े उतारकर फेंक दिए , तब भी अपना मुंह काला करने में सफल न हो सका और इसने गला घोंटकर सायरा को मार डाला।
"यह सब कुछ स्पष्ट हो जाने के बाद मैं गुस्से से पागल हो गया , अपने आपे में न रहा और रिवॉल्वर निकालकर उस कमरे में घुस गया—मैंने साठे पर फायर किया , मगर गोली हैलेन को लगी—हेलेन वहीं ढेर हो गई , परन्तु साठे बौखलाकर भाग निकला—अब मैं साठे को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ सकता था और खुद को बचाने के लिए साठे का मुझे मारना जरूरी हो गया था—साठे गैराज से मेरी कैडलॉक लेकर भागा—मैं उसके पीछे फियेट लेकर—हड़बड़ाहट में मेरे हाथ से जाने कहां रिवॉल्वर छूट गया—मगर भागने से पहले मैँ हेलेन के गले से अपना सोने का नेकलेस निकाल चुका था—उसी दिन स्मग्लिंग का माल लिए गुल्लू एक ट्रक द्वारा हरियाणा से आ रहा था। संयोग से हमारी कारें भी रोहतक रोड पर निकल गईं—अंधाधुन्ध ड्राइविंग करता हुआ मैं कैडलॉक का पीछा कर रहा था—तभी साठे ने एक चाल चली—ट्रासमीटर पर उसने गुल्लू को आदेश दिया कि यह ट्रक को फियेट से टकरा दे—मेरी फियेट का नम्बर उसने गुल्लू को बता दिया और गुल्लू बेचारा क्या जानता था कि फियेट में उसका 'शाही कोबरा ' ही है—अपने 'बॉस ' के हुक्म को 'शाही कोबरा ' का हुक्म जानकर ही उसने ट्रक को फियेट से टकरा दिया।"
सिकन्दर थोड़ा गुस्से में नजर आने लगा था। वह कहता ही चला गया— "हालांकि साठे ने यह एक्सीडेण्ट मुझे खत्म कर देने की मंशा से कराया था , किन्तु मैं जीवित बच गया और यह पता लगने पर कि मैं अपनी याददाश्त गंवा बैठा हूं, साठे कुछ समय के लिए चकरा गया—वह निश्चय नहीं कर सका कि क्या करे , मुझे मारना जरूरी है या नहीं-साठे दुविधा में ही फंसा रहा कि अखवार में दीवान द्वारा दिए गए विज्ञापन के आधार पर डैडी अस्पताल पहुंच गए—मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा था और इसी वजह से मेरा दुर्भाग्य कि सारे सबूतों के बावजूद मैं खुद को न्यादर अली का बेटा सिकन्दर मानने के लिए तैयार नहीं हुआ—याददाश्त गुम होने के बाद सायरा की लाश मेरे अवचेतन मस्तिष्क पर छाई रही और एक हिंसक बीमारी के रूप में मुझ पर हावी हो गई—जुनून-सा सवार होने लगा मुझ पर और इसीलिए डैडी ने मेरी सेवा के लिए 'जेंट्स नर्स ' हेतु विज्ञापन दिया।
“ मुझे कुछ याद नहीं था , जबकि इधर साठे इस दुविधा का शिकार था कि क्या करे—उसे यह शक भी होने लगा कि कहीं मैं याददाश्त गुम हो जाने का नाटक तो नहीं कर रहा हूं—अत: इसकी पुष्टि करने के लिए विज्ञापन की आड़ में इसने रूपेश को वहां भेजा।"
"मुझे हुक्म देते समय इसने कहा था बॉस कि न्यादर अली के लड़के सिकन्दर को चैक करने का आदेश 'शाही कोबरा' ने ही दिया है।" रूपेश ने बताया।
"तुम सब क्योंकि 'शाही कोबरा ' के प्रति ही कर्तव्यनिष्ठ थे—इसीलिए यह प्रत्येक आदेश यही कहकर जारी करता था कि वह 'शाही कोबरा ' का आदेश है—तुम बेचारे क्या जानते थे कि तुम्हारा 'शाही कोबरा ' याददाश्त गंवा बैठा है और जो आदेश यह गद्दार 'शाही कोबरा ' के नाम पर दे रहा है , वह 'शाही कोबरा ' ही के विरुद्ध है—तुमने साठे को रिपोर्ट दी रूपेश कि सिकन्दर वाकई याददाश्त गंवा बैठा है और उसे अपने सिकन्दर होने में संदेह है। अब साठे ने सोचा कि सिकन्दर को मारना जरूरी नहीं है—हां , न्यादर अली और देहली से बहुत दूर निकाल देना अधिक सुरक्षित रहेगा और इस उद्देश्य से उसने मुझे जॉनी बनाने का जो नाटक रचा , वह सब तुम जानते ही हो।"
हाल में सन्नाटा व्याप्त रहा।
“मैं इस नाटक में पूरी तरह फंस चुका था कि बीमारी के रूप में लग गए मेरे जुनून ने साठे की सारी योजना बिखेर दी। मैंने तुम्हारी पत्नी माला की हत्या कर दी रूपेश और तुम्हें भी जीवित जलाने की कोशिश की , मगर सच मानो , वह सब कुछ मैंने जानकर नहीं किया—जुनून के अन्तर्गत कर बैठा—मैं तुम्हारा मुजरिम हूं रूपेश।"
"असली मुजरिम तो ये है 'शाही कोबरा ', जिसने आपकी बहन का मर्डर किया—उसी मर्डर की वजह से आपको यह बीमारी हुई और आपके जुनून का शिकार माला बन गई। ”
"मैं गाजियाबाद से बौखलाकर भागा और संयोग से सर्वेश के घर पहुंच गया , जिस तरह मैं पुलिस की नजरों से गुम हो गया था , उसी तरह साठे भी न जान सका कि मैं हत्याकाण्ड करने के बाद कहां गायब हो गया हूं—इसे यह चिंता सताए जा रही थी कि कहीं मेरी याददाश्त वापस न आ जाए—इस बीच 'शाही कोबरा' के नाम पर ही तुम सबसे काम लेता रहा—उधर पुलिस और साठे की नजरों से छुपा मैं सर्वेश के घर में रहा—विशेष और रश्मि से मुझे प्यार हो गया और उस दरिन्दे के खिलाफ मेरा दिल नफ़रत से भर गया। जिसने विशेष , रश्मि और बूढ़ी मां से उनके सहारे सर्वेश को छीना था।"
 
एक गहरी सांस लेने के बाद सिकन्दर ने कहा—“ऐसी अजीब बात है कि सर्वेश के हत्यारे से बदला लेने की कसम , सर्वेश का हत्यारा ही खा बैठा—विधि का विधान देखो कि सर्वेश बनकर मैं खुद ही अपने द्वारा की गई हत्या की इन्वेस्टिगेशन में जुट गया—अपने ही गैंग से टकराने और इसे नेस्तनाबूद करने मैं खुद निकल पड़ा—सर्वेश बनकर जब मैं 'मुगल महल ' में आया तो मुझे देखते ही साठे चौंक पड़ा—मैँ उसे मिल गया था—यह सोचकर वह भी मुस्करा उठा कि सर्वेश का हत्यारा सर्वेश बनकर , सर्वेश ही के हत्यारे से बदला लेने निकला है...अब साठे को मुझसे छुटकारा पाने के लिए सबसे सरल रास्ता यह जान पड़ा कि वह मुझे माला की हत्या के जुर्म में फांसी पर लटका दे—अपने इसी उद्देश्य में सफल होने के लिए उसने सर्वेश के घर पुलिस भेज दी—अब मेरी समझ में आ रहा है कि पुलिस और रश्मि को चकमा देने की स्कीम मेरे दिमाग में कहां से आ रही थी—आखिर था तो मैँ 'शाही कोबरा ' ही—एक षड्यन्त्रकारी दिमाग।"
"जब साठे का यह हमला भी नाकामयाब हो गया तो मुझे मारने का काम इसने रंगा-बिल्ला को सौंपा—उस मोर्चे पर भी इसे शिकस्त का ही मुंह देखना पड़ा—अब तक मिले सबूतों के आधार पर मुझे 'शाही कोबरा ' होने का शक न्यादर अली पर हो गया—क्या जानता था की कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच मैंने खुद ही अपने पिता के नाम बुक करा रखा है—एक ऐसा बेटा जो खुद 'शाही कोबरा ' था , अनजाने में अपने पिता को 'शाही कोबरा ' होने की गाली देता रहा—साठे ने उसी समय इस डर से कि कहीं न्यादर अली मुझे सिकन्दर होने का यकीन न दिला दे , मेरे डैडी की हत्या कर दी....अब तक मैं इसके लिए काफी परेशानियां खड़ी कर चुका था , अत: विशेष को किडनैप करके यहां लाने का हथकण्डा अपनाया गया—उस बम के द्वारा साठे मुझसे छुटकारा पाना ही चाहता था कि कुदरत ने मुझे मेरी याददाश्त वापस लौटा दी और पासे पलट गए—कैसी अजीब बात थी कि एक गद्दार के कारण , सारा गैंग अपने ही चीफ को बम से उड़ाने जा रहा था—अस्पताल में होश आने से लेकर इस हॉल में बेहोश होने तक की घटनाएं मुझे उसी तरह याद हैं , जैसे कोई स्वप्न देखा हो।"
सिकन्दर चुप हो गया।
हॉल में खामोशी छाई रही , तब सिकन्दर ने ऊंची आवाज में पूछा— "अब मैं आप सब लोगों की राय जानना चाहता हूं—इस नमक हराम , गद्दार और विश्वासघाती साठे को क्या सजा दी जाए ?"
सारा हॉल कह उठा—“इसकी एक ही सजा है—मौत।"
¶¶
 
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