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"न...नहीँ सिकन्दर।" थम्ब के साथ बंधा साठे गिड़गिड़ा उठा—"मुझे बख्श दो , माफ कर दो—मैं पागल हो गया था।"
"जो बम तुमने कुछ ही देर पहले मेरे पेट पर बांधा था , अब वही तुम्हरे पेट पर बंधा है और देखो , उस बम से सम्बद्ध पलीते का यह सिरा मेरे हाथ में है—सभी लोगों की राय है कि इस सिरे को मैं खुद चिंगारी दूं।"
"ऐ...ऐसा मत करना सिकन्दर प.....प्लीज , ऐसा न करना।" अपने पेट पर बंधे बम को देखकर साठे पीला पड़ गया , बोला—"मुझे माफ कर दो।"
"क्यों साथियों , क्या इसका जुर्म माफ कर देने लायक है ?" सिकन्दर ने ऊंची आवाज में पूछा।
एक साथ सभी ने कहा—"नहीं....नहीं।"
सिकन्दर ने लाइटर जलाया , पलीते के सिरे पर आग लगाते वक्त सिकन्दर के चेहरे पर पत्थर की-सी कठोरता थी , चिंगारी पलीते पर दौड़ी।
"न...नहीं...नहीं।" चिल्ताते हुए साठे के चेहरे पर साक्षात् मौत ताण्डव कर रही थी।
साठे के अलावा सिकन्दर समेत सभी खामोश खड़े थे , आंखों में दहशत-सी लिए वे सभी पलीते पर अपनी यात्रा पूरी करती हुई चिंगारी को देख रहे थे—वह ज्यों-ज्यों साठे की तरफ सरकती जा रही थी , त्यों-त्यों सभी के दिलों की धड़कनें बढ़ती चली गईं—चीखते हुए साठे की जुबान लड़खड़ाने लगी।
चिंगारी बम तक पहुंची।
सिकन्दर समेत सभी ने अपनी आंखें बन्द कर लीं।
'धड़ाम' एक कर्णभेदी विस्फोट।
साठे की चीख उसी विस्फोट में कहीं दबकर रह गई।
¶¶
विस्फोट के तीस मिनट बाद मंच पर खड़ा सिकन्दर कह रहा था— "मैँने साठे को क्यों मारा है—इसीलिए न कि उसने जिसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की , वह मेरी बहन थी—जिनकी उसने हत्या की , वे मेरे अपने थे—और जब कोई मुजरिम हमारे किसी अपने को मारता है तो हम उससे बदला लेना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं—यह नहीं सोचते कि जिन्हें हमने मारा है …वे भी किसी के अपने थे।"
सभी चकित भाव से सिकन्दर को देखते रह गए।
और एक बहुत ही घिनौने सच को सिकन्दर कहता चला गया— “हम सब भी उतने ही दोषी हैं , जितना साठे था और तुम सबसे बड़ा दोषी मैं हूं।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं 'शाही कोबरा '?"
"वही , जो सच है—और यह सच मुझे सर्वेश के घर से पता लगा है—उसके घर से , जिसे बीयर में जहर मिलाकर मैंने कीड़े-मकोड़े की तरह मार डाला—जिसे हम अपनी उंगलियों के एक इशारे पर मार डालते हैं—नहीं सोच पाते कि उसके पीछे वे कितने लोग हैं , जिन्हें हमने जीते-जी मार डाला है।"
गहरा सन्नाटा व्याप्त हो गया।
"उस छोटे-से परिवार में केवल एक महीना गुजारकर मुझे यह महसूस हुआ कि जिसने वीशू से उसका पिता , देवी-सी मासूम रश्मि से उसका पति और बूढ़ी मां से बुढ़ापे का सहारा छीना है , वह इंसान कभी नहीं हो सकता—पशु होगा , दरिन्दा होगा और इसीलिए मैंने सर्वेश के हत्यारे से बदला लेने की कसम खाई थी। आज पता लगा है कि वह पशु , यह दरिन्दा मैं खुद हूं—यह अहसास करके ही मुझे गुनाह की अपनी इस जिन्दगी से नफरत हो गई है, मैं 'शाही कोबरा ' नाम के इस गैंग को हमेशा के लिए तोड़ता हूं।"
"श...शाही कोबरा! ”
सिकन्दर के होंठों पर बड़ी ही जहरीली मुस्कान उभर आई , बोला— "फिक्र मत करो, दोस्तों—मैं न खुद को पुलिस के हवाले करने की सोच रहा हूं और न ही तुम्हें ऐसा करने की सलाह दे रहा हूं—बस , यह गैंग खत्म कर रहा हूं—गैंग के पास जितनी भी दौलत है , वह सभी में तुम लोगों में बराबर-बराबर बांट दूंगा , इस विश्वास के साथ कि जहां तुम अपने परिवार के साथ आज रहते हो , कल वहां से बहुत दूर निकल जाओगे—मिले हुए पैसे से नई और शराफत की जिन्दगी शुरू करोगे , भूल जाओगे कि तुम किसी आपराधिक गैंग के सदस्य थे , कोई 'शाही कोबरा ' तुम्हारा चीफ था।"
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"जो बम तुमने कुछ ही देर पहले मेरे पेट पर बांधा था , अब वही तुम्हरे पेट पर बंधा है और देखो , उस बम से सम्बद्ध पलीते का यह सिरा मेरे हाथ में है—सभी लोगों की राय है कि इस सिरे को मैं खुद चिंगारी दूं।"
"ऐ...ऐसा मत करना सिकन्दर प.....प्लीज , ऐसा न करना।" अपने पेट पर बंधे बम को देखकर साठे पीला पड़ गया , बोला—"मुझे माफ कर दो।"
"क्यों साथियों , क्या इसका जुर्म माफ कर देने लायक है ?" सिकन्दर ने ऊंची आवाज में पूछा।
एक साथ सभी ने कहा—"नहीं....नहीं।"
सिकन्दर ने लाइटर जलाया , पलीते के सिरे पर आग लगाते वक्त सिकन्दर के चेहरे पर पत्थर की-सी कठोरता थी , चिंगारी पलीते पर दौड़ी।
"न...नहीं...नहीं।" चिल्ताते हुए साठे के चेहरे पर साक्षात् मौत ताण्डव कर रही थी।
साठे के अलावा सिकन्दर समेत सभी खामोश खड़े थे , आंखों में दहशत-सी लिए वे सभी पलीते पर अपनी यात्रा पूरी करती हुई चिंगारी को देख रहे थे—वह ज्यों-ज्यों साठे की तरफ सरकती जा रही थी , त्यों-त्यों सभी के दिलों की धड़कनें बढ़ती चली गईं—चीखते हुए साठे की जुबान लड़खड़ाने लगी।
चिंगारी बम तक पहुंची।
सिकन्दर समेत सभी ने अपनी आंखें बन्द कर लीं।
'धड़ाम' एक कर्णभेदी विस्फोट।
साठे की चीख उसी विस्फोट में कहीं दबकर रह गई।
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विस्फोट के तीस मिनट बाद मंच पर खड़ा सिकन्दर कह रहा था— "मैँने साठे को क्यों मारा है—इसीलिए न कि उसने जिसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की , वह मेरी बहन थी—जिनकी उसने हत्या की , वे मेरे अपने थे—और जब कोई मुजरिम हमारे किसी अपने को मारता है तो हम उससे बदला लेना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं—यह नहीं सोचते कि जिन्हें हमने मारा है …वे भी किसी के अपने थे।"
सभी चकित भाव से सिकन्दर को देखते रह गए।
और एक बहुत ही घिनौने सच को सिकन्दर कहता चला गया— “हम सब भी उतने ही दोषी हैं , जितना साठे था और तुम सबसे बड़ा दोषी मैं हूं।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं 'शाही कोबरा '?"
"वही , जो सच है—और यह सच मुझे सर्वेश के घर से पता लगा है—उसके घर से , जिसे बीयर में जहर मिलाकर मैंने कीड़े-मकोड़े की तरह मार डाला—जिसे हम अपनी उंगलियों के एक इशारे पर मार डालते हैं—नहीं सोच पाते कि उसके पीछे वे कितने लोग हैं , जिन्हें हमने जीते-जी मार डाला है।"
गहरा सन्नाटा व्याप्त हो गया।
"उस छोटे-से परिवार में केवल एक महीना गुजारकर मुझे यह महसूस हुआ कि जिसने वीशू से उसका पिता , देवी-सी मासूम रश्मि से उसका पति और बूढ़ी मां से बुढ़ापे का सहारा छीना है , वह इंसान कभी नहीं हो सकता—पशु होगा , दरिन्दा होगा और इसीलिए मैंने सर्वेश के हत्यारे से बदला लेने की कसम खाई थी। आज पता लगा है कि वह पशु , यह दरिन्दा मैं खुद हूं—यह अहसास करके ही मुझे गुनाह की अपनी इस जिन्दगी से नफरत हो गई है, मैं 'शाही कोबरा ' नाम के इस गैंग को हमेशा के लिए तोड़ता हूं।"
"श...शाही कोबरा! ”
सिकन्दर के होंठों पर बड़ी ही जहरीली मुस्कान उभर आई , बोला— "फिक्र मत करो, दोस्तों—मैं न खुद को पुलिस के हवाले करने की सोच रहा हूं और न ही तुम्हें ऐसा करने की सलाह दे रहा हूं—बस , यह गैंग खत्म कर रहा हूं—गैंग के पास जितनी भी दौलत है , वह सभी में तुम लोगों में बराबर-बराबर बांट दूंगा , इस विश्वास के साथ कि जहां तुम अपने परिवार के साथ आज रहते हो , कल वहां से बहुत दूर निकल जाओगे—मिले हुए पैसे से नई और शराफत की जिन्दगी शुरू करोगे , भूल जाओगे कि तुम किसी आपराधिक गैंग के सदस्य थे , कोई 'शाही कोबरा ' तुम्हारा चीफ था।"
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