Desi Porn Kahani संगसार - Page 2 - SexBaba
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वह अपने बहकते कदम पर पहरा लगाती और खुद को तलाश करती हुई यह बात समझने की कोशिश करती कि कहीं दो जगह बंटी जिंदगी उसे समझा तो नहीं रही है कि दुनियावी जिंदगी से हटकर एक रूहानी जिंदगी भी होती है और इन दोनों के बीच तालमेल बिठाकर, अपनी पहली जिंदगी का विस्तार मानक दूसरी जिंदगी को जीना होगा. एक का संबंध समाज में होगा और दूसरे का उसके निज से?
आसिया के दिमाग ने दिल को समझाया मगर दिल तन को न समझा सका. यह कोशिश भी जब बेकार गई तो हिम्मत करके आसिया ने तय किया कि वह अफ़ज़ल को सब कुछ बता देगी, कुछ नहीं छिपाएगी. इस तरह तनाव में हर रातबसर करना उसके बस की बात नहीं है. उसके सारे तंतु टूट रहे हैं. वह अफ़ज़ल को सुख देने की जगह एक जिंता में डुबो देती है. फैसला कर वह उस रात आराम से सोई मग सुबह उठते ही उसे दूसरी फिक्र लग गई
"दुनिया क्या कहेगी? उसे बुरी औरत का नाम देगी, मगर उसने तो कभी अपने को अच्छी औरत कहलाने का सपना नीं देखा. सच्ची ईमानदारी ज़रूरत की बात करना बेईमानी है क्या? अच्छी औरत के परदे में वह दोहरी जिंदगी कब तक जिएगी? वह खराब औरत है, हाँ वह बदकार और आवारा औरत है." आसिया सिर पकड़कर बैठ जाती और उसे लगता कि अब इस घर में पल-भर भी ठहरना उसके लिए मुश्किल है. जब वह उठक अफ़ज़ल से बात करने जाती तो रास्ता रोककर आसमा खड़ी होती.
"इस तन की खातिर सब कुछ दांव पर लगा दिया?
"हाँ, कौन, इससे बचा हुआ है? तुम भी नहीं तुम तन को आबादी मानक घर का बहाना बनाती हो और तन को रूह से अलग देखती हो मगर मैं किसी बहाने की ज़रूरत महसूस नहीं करती हूं. मेरे लिए तन ही सब कुछ है, वही जिंदगी की हकीकत और वही मेरे जीने का लक्ष्य"
आसमन से जाने क्या-क्या वार्तालाप ख़यालों में कर जाती आसिया. अंत में उसने फैसला ले लिया कि अफ़ज़ल को अभी आराम से जाने दे मगर जिस दिन वह वापस जाएगा उसे वह अपना यह फैसला सुना देगी. इस छा: महीने के अरसे में तीनों को एका-दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास हो जाएगा और वे परख भी लीं कि खुद वे कितने पानी में हैं.
अफ़ज़ल चला गया. घर सूना और दिल उदास हो गया. कई दिन सोते-जागते, थकान उतारते गुजर गए. मां और आसमा ने बहुत जोर दिया मगर वह उनके साथ नहीं गई उन्हीं यह जानकर खुशी हुई कि बेटा माना-मर्यादा का अर्थ समझने लगी है.
अब आसिया को उसके टेलीफोन का इंतजार था, खुद फोन करना उसे पसंद न था क्योंकि वह बड़े आराम से अब एक दूर खड़े दर्श्क की तरह अपने साथ होनेवाली घटनाओं और दुर्घटनाओं का अवलोकन कर सकती है. वह अंदर से इतनी बड़ी और पुख्ता हो चुकी है कि दूसरे के किए गए फैसले का केवल कारण ही नीं समझ सकती है, बल्कि उसको सम्मान देना भी जान गई है.
एक दिन दोपहर को फोन की घँटी बज उठी. बेख़याली में उसने फोन उठाया. आवाज सुनकर धक से रह गई इतने दिनों के इंतजार ने उससे उम्मीद छीन ली थी. उन खूबसूरत गुजरे क्षणें को महज एक इत्तफाक समझकर, उसकी हसीन यादों को संजोकर रखने का मन बना चुकी थी, मगर अब वह आसमा को कैसे समझाए कि उसका तजुर्बा किसी और का सच नहीं हो सकता है और कसी दूसरे का सच उसका अपना तजुर्बा नहीं बन सकता है.
"कुछ देर के लिए हो आओ न, आज महीना भर हो गया है घर से निकले, न कहीं आई-गई" सास ने पीछे से बहू की मुनहार की.
"फिर कभी", कहकर आसिया ने फोन रख दिया. वह घबरा गई थी. इन्हें क्या पता यह किसका फोन था और वे उसे कहाँ भेजने का इस तरह इसरार कर रही हैं.
दो महीने के इस लंबे बिरहा ने मिलन की इस घड़ी को नया अर्थ दे दिया था. मेंह टूटकर बरसा, प्यासी नदी उबलने लगी, आबशार दोगुने वेग से गै मगर न तपिश ठंडी पड़ी न प्यास बुझी. दोनों अपनी शक्ता, इ अपनी मजबूरी और अपनी-अपनी ज़रूरत समझ चुके थे. दोनों में से कसी ने कुछ कहने पूछने और सफाई देने की ज़रूरत नहीं नहीं महसूस की, जहाँ से बिछुड़े थे वहीं आकर फिर मिल गये थे. जैसे साथ-साथ बहना ही उनकी तकदीर हो.
"तुम्हारे इस पाक जिस्म पर आज मैं नमाज अदा करूँगा ताकि यह एबादतगाह मेरे लिए और मैं उसके लिए सदा महफूज रहूँ." कहकर वह आसिया के पहलू से उठा और उसके पैरों के पास आकर खड़ा हो गया. सीने पर हाथ रखकर नियत बांधी, फिर दोनों हाथ उठाकर खामोशी से उस खुदा को याद किया जिसका दूसरा नाम मोहब्बत है फिर रूकू में झुका और उस नंगी छाती के बीच सिजदे में गिरा.
दोनों संगमरमरी गुंबदों के बीच बालों से भरा सिर आस्ताने पर टिका, अपनी निष्ठा और वफ़ादारी की कसम आता रहा. सूरज ढलने लगा. चारों तरफ से उड़ते परिंदे थके-हारे-से इन गुंबदों में पनाह लेने लगे ताकि नई सुबह के नमूदार होने पर वे और ऊँची उड़ान भर सकें.
 
आदम-हव्वा के इस खामोश समर्पण में किसी तीसे के वजूद की कोई गुंजाइश नहीं बची थी. तन एक हो गए. धड़कन एक हो गई अपने को देखने, इस दुनिया को पहचानने और खुदा तक पहुंचने का रास्ता एक होकर बदन में पेवस्त हो गया, जिसको वे बेतहाशा चूम रहे थे.
शाम ढले जब आसिया घर नहीं लौटी तो सास बेचैन हो उठी. ससुर जब दतर से लौटे तो अपने साथ खबर भी लाए कि किसी जवाना-मर्द औरत को जानकारी के जुर्म में पकड़ा गया हैअइ. सुनकर सास की जान निकल गई शहर में बम फटने से फिर हंगामा, ऐसी हालत में आसिया कहाँ अटक गई
"लगता है जिधर कर्फ्यू लगा है उसी इलाके में गई होगी", ससुर ने कहा.
"अगली दफा से घर का पता और फोन नंबर लिख लूँगी, बेचारी को आज जाना नसीब हुआ तो यह आफत आ पड़ी." सास ने हाथ मलते हुए कहा
रात आँखों-आंखों में कट गई कहाँ फोन करें? मां और आसमा मन्नत बढ़ाने शहर गई हैं सहेलियों का न नाम पता है, न टेलीफोन नंबर. जब कर्फ्यू हटने का ऐलान हो गया और दोपहर तक आसिया नहीं लौटी तो दोनों परेशान हो उठे.
"अफ़ज़ल को क्या जवाब दूँगी? कहेगा कि अम्मा आसिया की हिफाजत न कर सकीं?" सास ने आँखें पोंछी.
"समधिन भी क्या सोचेंगी कि बहू का ख़याल न किया, अकेले जाने दिया." ससुर लस्ता-से पड़ गए.
दोनों ने मुशकिलकुश की तस्वीह घुमाना शुरू कर दिया. आए गए के सामने मुंह नहीं खोला. फिक्र ने उन्हें चंद घण्टों में अधमा बना दिया था.
दोस्तों ने उसे किसी तरह जेल जाने से पहले ही छुड़ा लिया था मगर वह इस बात से उन सबसे खफा था. जब वह बका-झककर खामोश हुआ तो सादिक ने कमरे की खामोशी तोड़ी.
"उसका और तुम्हारा रिश्ता मैं मानता हूं, तुम्हारी अपनी निजी जिंदगी से ताल्लुक रखता है मगर जो कुछ तुम लोगों के साथ आज घटा वह अब तुम्हारा मामला नहीं रह गया बल्कि उसका ताल्लुक हम से और इस समाज से है. इसलिए अभी तक हम चुप थे, मगर इस मामले में अब तुम चुप होगे और हम अपना फर्ज निभाएँगे."
"कुछ सोचो तो, गुनाहगार तो बराबर का मैं भी हुआ, सजा सिर्फ उसे क्यों मिले? वह तड़पा.
"तुम्हें छुड़ाना आसान थ, तुम छूट गए. अब हम उसे छुड़ाने की कोशिश करेंगे, इतमीनान रखो. असलम ने समझाया.
"एक बार फिर मर्द दगाबाज साबित हो गया." उसने दोनों हाथों से कान के पास फड़कती रग पकड़ी.
"यार! बोर मत करो, बात को समझो. यहाँ साथ-साथ लैला-मजनूँ की कहानी नहीं दोहरानी, यहाँ ज़रूरत है उसे बचाने की, आज एक की शामत आई है, कल हजारों पकड़ी जाएँगी." नुईम ने झुँझलाकर कहा.
"इसको तनाव बहुत है, कहीं दिमाग की रग न फट जाए, कहो तो इंजेक्शन देकर सुला दूँ ताकि हम बैठक चैन से सलाहा-मशविरा कर सकें. "फारूख ने सादिक के कान में कहा.
दोस्तों ने जबरदस्ती उसे बिस्त पर लिटाया. फारूख ने अपना दवा का बैग खोला, इंजेक्शन तैयार किया और यह कहते हुए उसके बाजू में घोंप दिया, "बात तुम्हारी नहीं है बल्कि हम जो निजाम लाना चाहते हैं, आसिया जो पाना चाहती है या औरतें अपनी तरह जीना चाहती हैं, यह उसकी है. उनकी तिलमिलाहट इसलिए है कि आसिया अब उनके लिए चुनौती बन गई है और हमारे संघर्ष की मशाला"
"मगर मैं तो अपने को उन्हीं जाहिलों की पंक्ति में खड़ा पा रहा हूं." वह बैन करता सा चीखा.
"यकीन रखो, उसे सजा नहीं होने देंगे. हाँ, जब मुकदमा चलेगा और बहस शुरू होगी तो हम अपना नजरिया इस जोरदार तरीके से सामने रोंगे कि इन जालिमों को बराल झाँकने के अलावा कुछ समझ में नहीं आएगा. "सादिक ने तल्खी से कहा.
 
इधर वह गहरी नींद में डूब गया. उधर शहला और सादिया नाकाम लौटीं. अपने प्रभाव, जाना-पहान और रिश्वत की पेश्कश के बावजूद वे इस हकीकत से बुरी तह टकाई कि एक ही समाज में दो मापदंड हैं. मर्द के लिए क्षमा और औरत के लिए कड़ा दंडा सबके सिर झुक गए. आसिया कोतवाली से जेल पहुंचा दी गई थी. मामला अब संगीन हो चुका था.
ये सारे लोग समाज के उस वर्ग से हैं जो पढ़ा-लाइ प्रगतिशील कहलाता है. इनके सामने आज इतने गूढ़ सवाल आ खड़े हुए हैं कि उनसे बचकर भाग नहीं सकते हैं. ये डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, लेखक, अध्यापक, पत्रकार अपने पेशे के बाद का वक्त समाज को गलत सियासत और धर्म के शिकंजे से निकालने में खर्च करते हैं ताकि आनेवाले दिनों में इनसान सेहतमंत जिंदगी जी सके.
बुद्धिजीवियों की चीखा-पुकार से सोये लोग जागने लगे. उनके सामने प्रश्न था कि यह कैसे मुमकिन है कि मर्द औरत के आकर्षण को नजरांदाज कर सारे दिन आमने-सामने बैठे सिर्र्फ कुअन की तलवत किया करें? इस रस्साकशी में संगसार की तारीख आगे बढ़ गई संसद में, समाचारा-पत्रों में, धार्मिक स्थानों में जमकर बहस शुरू हो गई मोलवियों के बीच गरम और नरम दिल बन गए. गम दल का पलड़ा भारी था क्योंकि सत्ता उनके हाथ में थी. नरम दलवालों के साथ पढ़ा-लिखा वर्ग और जनता का एक बहुत बड़ा हिस्सा था, इसलिए गरम दलवालों की दाल नहीं गल पा रही थी. लोगों में अजीब तनतनाहट थी. जैसे वे पूछना चाह रहे हों कि वे आगे जा रहे हैं या पीछे लौट रहे हैं?
जेल की कोठरी में बैठी आसिया दिन गिनना भूल गई है. शहतूत के ढेरों पेड़ उसकी कोठरी के पस हैं. इसलिए अकसर जेल की कर्मचारी औरतें और लड़कियाँ वहीं शहतूत बीनने पहुंच जाती हैं कभी-कभी कोई लड़की हाथ सलाखों में डाल उसकी तरफ शहतूत से भरी मुट्ठी बढ़ाती है. कभीआसिया शहतूत का एक दाना मुंह में डाल लेती है, कभी इंकार कर देती है.
"हरजाई है?" लड़कियाँ आपस में फुसफुसातीं.
"नहीं, फाहिशा है!" शंका भरी अधेड़ आवाजें टकातीं.
"नहीं, वह भी नहीं, यह तो आयश है." बूढ़ी औरतें फैसला सुनातीं.
"आयशा, आयश, आयशा???"
पेड़ों पर चहचहाती चिड़िया उड़ जाती है. पके शहतूत डालों से झर जाते हैं और सन्नाटे में बैठी वह दिला-ही-दिल में उन हैरतजदा आवाजों को अपने से दूर जाता सुनती है.
"क्या मैं आसिया नहीं आयशा हूं? अगर सचमुच आयशा होती तो मेरा अंजाम यह होता?"
आसमान का रंग लाल हो जात, आसिया की आँखें अंगारे बन जातीं और रात की सियाही फैलते ही अंगारे धीरे-धीरे करके राख में बदल जाते.
सारी दौड़ा-धूप के बावजूद कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया. मां और आसमा की तरफ से रहम की अपील हुई सासा-ससुर ने इस सजा को आरोप मानकर उसके खिलाफ अपील दायर की. नरम दिलवाले मौलवियों ने शरीयत की सारी किताबें चाट डालीं. सबूत पेश किए गए कि संगसार का जिक्र कहीं नहीं है मगर कोर्ट ने अपना जल्दबाजी में लिया फैसला वापस नहीं लिया. उन्हें डर था कि इस तरह उनके हर कदम पर रोक लग जाएगी और हरकत पर सवाल उठेंगे. उनकी सत्ता की बुनियाद जिस खौफ और दशहत पर टिकी हएअइ वह खत्म हो जाएगी. इसलिए बिना किसी झिझक के एलान हुआ कि मौका-ए-वारदात पर आसिया के पकडे जाने की वजह से उसे कल संसार कर दिया जाएगा. उसका साथी फरार है और लाख कोशिशों के बावजूद भी अब तक पकड़ा नहीं जा सका है. मगर उसनकी तलाश जारी है.
कागज तैयार थे. देर करने की गुंजाइश नहीं थी. वरना बगावत अपने डैने फैला लेती. इसलिए उसी रोज, जब दिन शाम से गले मिलने के लिए आतुर था, कब्र में पैर लटकाए एक बुजुर्ग कोर्ट में आखिरी खानापूरी के लिए जेल पहुंचे.
"अपना गुनाह कबूल करो." काले जूते एकाएक आसिया के पास आकर ठहर गए और भारी आवाज की चोट ने खामोशी तोडत्री.
आसैय ने चौंककर नजरें उठाई और लरजती-सी उठ खड़ी हुई. सामने खड़े बुजुर्ग ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरा और दाहिने हाथ में पकड़ी तस्वीह घुमाई उनकी आँखों में आश्चर्या-भरा कुतुहल कौंधा, जैसे वे अपने को यकीन दिलाना चाह रहे हों कि सामने खड़ी कुंवारी मरियम मां जैसी पाका-मासूम चेहरेवाली यह कमसिन लड़की भी गुनाहगार हो सकती है जिसको खुदा ने सब कुछ दिया है?
"तुम्हें शैतान ने बहकाया है, और तुमने खुदा का रास्ता छोड़कर शैतान के कामों में हाथ बंटाया, खुदा का कहर तुम पर है, बेहतर है कि तुम खुद गुनाह का एतराफ कर लो."नसीहत में डूबी उनकी आवाज उभरी और बुजुर्गों ने आँखें बंद कर लीं.
आसिया के माथे और होठों के उपर पसीने की बूंदें छलकीं और फिर वह पूरी की पूरी पसीने में नहा गई बचपन का खौफ उसके सामने खड़ा था, मगर उसकी आँखें अब भी बुजुर्ग के चेहरे को ताक रही थी, जैसे उनकी कही बातों का सिरा-पैर उसकी समझ में न आ रहा हो.
आसिया के मासूम चेहरे पर फैली भोली आँखों को बुजुर्ग ने एक बार नजर भरकर देखा, मगर जल्दी ही नजरें हटा लीं. यह वजूद आखिर किस जज्बे से सरशार है? उनके अंदर से सवाल उभरा, मगर अपनी कही बात का जवाब न मिलने को वे अपनी तौहीन समझ ज्यादा देर ठहर न सके और मुड़ गए. साथ आए लोग भी लौट गए. उनका फर्ज पूरा हो गया.
आसिया घुटनों पर सिर रखकर बैठ गई जैसे सिजदे में माथा टेका हो. अगर यह गुनाह था तो फिर उपरवाले ने इस बदन में यह प्यास भरी क्यों? शाम को धुंधलका बड़े मैदान में दौड़ने लगा, शहतूत के पेड़ों ने अपनी डालियाँ झुका दीं और आसिया के चारों तरफ रात पसरक बैठ गई
बंद आँखों के सामने उसका चेहरा उभरा, आसिया के पपड़ी पड़े होठों पर मुसकान फैल गई फिर आसमा की आँसू-भरी आँखें, मां का छाती पीटते हुए बैन करना, सासा-ससुर का बेकरारी से रोना, अफ़ज़ल का हैरत से उसको ताकना, बचपन, जवानी - सारी जिदंगी रील की तरह खुलकर सामने आ खड़ी हुई आँखों में कुछ गरमा-गरम बहकर घुटनों के कपड़ों में जज्ब हुआ.
पौ फट गई कोठरी के बाहर शहतूत की नंगी डालियाँ हवा में लहराई और आसिया ने अपनी आँखें उठाक उस सवाल पूछनेवाले को ताज्जुब से देखा. पतझड़ की हवा सूखे पत्तों को उड़ाती गुजर गई
"कोई आखरी ख्वाहिशा"?
सुनकर हँस पड़ी आसिया और हँसती ही चली गई जब जीना चाहती थी तब सबने तन पर सौ-सौ पहरे लगाए, किसी ने पूछा कि औरत तेरी ख्वाहिश क्या है? और आज जब मौत सिरहाने खड़ी है तो उससे पूछा जा रहा है कि बता तेरी आखिरी तमन्ना क्या है?
"आखिरी इच्छा, किसी को देखना, मिलना, कुछ कहना, जो चाहो बिना झिण्झक कहो." सवाल फिर दोहराया गया.
"हाँ." एकाएक हँसते-हँसते आसिया रूक गई चेहरे पर गंभीरता फैल गई आँखों में जिंदगी की चमक लौट आईसलाखों पर कसी मुट्ठी ढीली पड़ी और आरजू की गहरी घुलाहट में दिल की अवाज, आखिरी ख्वाहिश में महक उठी.
"मेरी जन्नत, एक पल के लिए ही मुझे वापस कर दो."
......
उस रात औरतों ने चूल्हे नहीं जलाए, मर्दों ने खाना नहीं
खाया, सब एक दूसरे से आँखें चुराते रहे. यदि आसिया गुनहगार थी तो फिर उसके संगसार होने पर यह दर्द, यह कसक उनके दिलों को क्यों मथ रही थी.


samaapt
 
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