Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 17 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि अपने ऑफिस में अपने कम के सिलसिले में मुझे कई ऐसे क्लाइंट्स से पाला पड़ता था जिन्हें मेरी खूबसूरती मोह लेती थी और वे मेरे साथ हमबिस्तर होने की ख्वहिश रखते थे। अपने पेशे में सफलतापूर्वक आगे बढ़ने के लिए मैंने कई ऐसे क्लाईंट्स की मनोकामना को पूर्ण भी किया। इसकी शुरुआत एक क्लाईंट मेहता जी से हुई। उनके प्रोजेक्ट पर विचार विमर्श के लिए उन्हीं के होटल में मैं अकेली गई और नतीजा यह हुआ कि अब मैं नग्न अवस्था में उनके बिस्तर पर थी। अब आगे:-

“वाह मेहता जी क्या माल है। तेरी पसंद की दाद देता हूँ। कसम से मजा आएगा आज।” कहते हुए राधेश्याम जी ने मेरी पैंटी भी खींच ली। उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था लेकिन मैं ने बनावटी लज्जा से अपनी जांघें सटा लीं। राधेश्याम जी ने जबर्दस्ती मेरी जांघों को अलग किया और मेरी चिकनी फकफकाती और पनिया उठी योनी को देख कर मुस्कुरा उठा। “अहा, मेहता जी, इसकी चूत तो चुदने के लिए पहले से पानी छोड़ने लगी है। साली रंडी, झूठ मूठ के नखरे कर रही थी मां की लौड़ी।” राधेश्याम जी लार टपकाती आवाज में बोले। मेरी हालत बहुत बुरी थी। अपनी उत्तेजना को छिपाने की सारी कोशिशें बेकार हो गयी थीं। मेरी गीली योनी मेरी दशा की चुगली कर रही थी। इधर मेरे उन्नत उरोजों को भी अब तक मेहता जी ब्रा के बंधन से मुक्त कर चुके थे। अब मैं पूर्णतया नग्न हो चुकी थी। इधर ये दोनों कामुक भेड़िये भी अपने वस्त्रों से मुक्त हो चुके थे। गजब का नजारा था। जहां ठिंगने कद के मोटे ताजे, गोरे चिट्टे मेहता जी की जुबान से लार टपक रही थी वहीं उनका छ: इंच लंबा किंतु तीन इंच मोटा लिंग फनफना कर मेरी योनी में तहलका मचाने को बेताब लार टपका रहा था। उधर राधेश्याम जी तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई कई दिनों का भूखा काला भुजंग दानव अपने स्वादिष्ट भोजन को अपने सम्मुख पा कर नोच डालने को बेताब हो। उनका काला मोटा ताजा किसी सुमो पहलवान की तरह विशाल तोंद वाला भयावह शरीर और सामने झूलते अपने 10″ लंबे और चार इंच मोटे टनटन करते लिंग का दर्शन करके मेरी तो घिग्घी बंध गई थी। बहुत बुरी फंसी थी मैं। हालांकि मैं इससे पहले मैं कई अलग अलग लोगों के साथ अकेले या सामुहिक रुप से संभोग का लुत्फ ले चुकी थी लेकिन इस समय इस तरह की परिस्थिति में मैं खुद को पहली बार पा रही थी जब अपने व्यवसाय से सम्बंधित मुलाकात में क्लाईंट्स की कुत्सित इच्छा की पूर्ति के लिए मुझे मजबूर होकर यह करना पड़ रहा था। अब जब बात यहां तक बढ़ चुकी थी तो खैर उन्हें तो अपनी मनमानी करनी ही थी, मैं तनिक आतंकित होते हुए भी खुद को अंदर ही अंदर तैयार कर रही थी, अपने साथ होने वाले इस वासनात्मक खेल के लिए। सशंकित भी थी कि पता नहीं वे किस तरह से मेरे शरीर का उपभोग करेंगे।

मेरी नग्न देह की छटा को वे कुछ पलों के लिए अपलक देखते रह गए। “वाह क्या माल है मेहता जी, इसकी चूची तो देखिए, कितनी बड़ी बड़ी, चिकनी और सख्त” अपने विशाल पंजों से मेरे उरोजों को दबाते हुए राधेश्याम जी बोले। “ठीक कहा, राधे, इसकी गांड़ जरा देखिए, इसके शरीर के अनुपात में इतनी मस्त चिकनी, बड़ी बड़ी और गोल गोल गांड़, वाह, सच में आज तो हमारी किस्मत खुल गई है। मैं तो इसकी गांड़ मारूंगा।” मेरे नितंब पर चपत लगाते हुए मेहता जी बोले।
 
“हाय राम, आपलोग मुझे कहीं की नहीं छोड़िएगा। मैं कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी। प्लीज मुझे खराब मत कीजिए।” यह प्रात्यक्षतः एक प्रकार से अंतिम आर्त निवेदन था। मैं भी कम ड्रामेबाज नहीं थी। मैं ने रोना शुरू कर दिया और मेरी आंखों से झर झर आंसुओं की धार बहने लगी। आंतरिक रूप से तो अब तक मैं चुदने के लिए पूर्ण तैयार हो चुकी थी।

“नखरे मत कर साली हरामजादी। देख तेरी चूत, इतनी बड़ी और फूली हुई। पता नहीं कितने लोगों से चुद चुकी है बुरचोदी। हम तुम्हें क्या खराब करेंगे। तेरी चूत तो चुदने के लिए पहले ही गीली हो चुकी है” राधेश्याम जी खौफनाक लहजे में बोल पड़े। इतना कह कर उन्होंने मेरे पैरों को फैला दिया और अपना लपलपाता लिंग मेरी योनी द्वार पर टिका दिया। अब विरोध का नाटक व्यर्थ था। मैं गनगना उठी। “ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में, हुम्म्म।” कह कर एक करारा जल्लादी प्रहार कर दिया।

“हाय मर गई मां, उफ्फ्फ” मेरी हाय निकल गई। उनका पूरा लिंग एक ही धक्के में पूरा का पूरा मेरी योनी में ठुंक गया। मुझे उसी अवस्था में किसी खिलौने की तरह उठा कर खड़ा हो गया और तभी पीछे से मेहता जी मेरी गुदा पर हमला बोल बैठे। पहले उन्होंने मेरी गुदा का द्वार अपनी जीभ से जी भर कर चप चप चाटा।

“छि:, यह क्या कर रहे हैं मेहता जी” मैं राधेश्याम जी की बांहों में छटपटाती हुई बोली।

अभी मैं ने इतना ही कहा था कि “अब ले मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में साली रंडी, हुम्म्म आह्ह्ह्ह्ह,” दन से मेहता जी ने अपना लिंग मेरी लसलसाई गुदा में उतार दिया।

“आह्ह्ह्ह्ह” मेरी आह निकल पड़ी। मेहता जी अपने पैरों के नीचे दो कुशन को रख कर खड़े थे। बस अब शुरू हो गया मेेेरे शरीर के साथ उनकी मनमानी। पीछे से मेहता जी मेरी गुदा के मैथुन में लीन हो गए और अपने हाथों से मेरी चूचियों को बुरी तरह नोच खसोट रहे थे, दबा रहे थे और मेरी गर्दन और कंधों को चूम रहे थे।

“उफ्फ्फ साली की गांड़ कितनी मस्त है राधे, ओह्ह्ह्ह बहुत मजा आ रहा है भाई” कहते हुए धकाधक चोदने लगे।

“अरे यार मेहता जी, इसकी इतनी बड़ी चूत भी सिर्फ देखने में बड़ी है, साली कुतिया की चूत है बड़ी टाईट। ओह्ह्ह्ह ऐसा लग रहा है जैसे इसकी चूत मेरा लौड़ा चूस रही है।” कहते हुए राधेश्याम जी भी अपनी पूरी शक्ति से जकड़े मुझे हवा में उठाए हुए ही फचाफच चोदने लगे। करीब पांच ही मिनट में मैं एक लंबी आह के साथ झड़ गई। मेरे ढीले पड़ते शरीर को अपनी पकड़ से ढीला नहीं होने दिया कमीनों ने। लगे रहे भूखे भेड़ियों की तरह नोचने खसोटने। करीब उसके दस मिनट बाद मैं फिर भयानक थरथराहट के साथ झड़ने लगी। मेरी स्थति से अनभिज्ञ नहीं थे वे माहिर चुदक्कड़। लगे रहे। करीब पच्चीस मिनट बाद जाकर पहले मेहता जी फचफचा कर अपना वीर्य मेरी गुदा में भरने लगे और खलास होते ही सोफे पर धम से गिर कर लंबी लंबी सांसे लेने लगे। मेहता जी के अलग होते ही राधेश्याम जी मुझे लिए दिए बिस्तर पर चले गए और पूरे जोश खरोश और पूरी निर्ममतापूर्वक मेरे नग्न देह का मर्दन करने लगे। मैं अपनी पूरी क्षमता से उनके मोटे कमर के ईर्दगिर्द अपने पैरों को लपेटे उनकी कामक्षुधा को शांत करने का भरपूर प्रयास करती रही।ठाप का जवाब ठाप से देने लगी। मस्ती में मैं भी सराबोर हो चुकी थी अब। पागलपन मुझपर भी सवार हो चुका था।
 
“हाय ओह्ह्ह्ह राजा, उफ्फ्फ मेरी मां, आह आह,” बरबस मेरे मुह से आनंदमयी सिसकारियां निकल रही थीं।

“हुम्म्म्म्मा्ह्ह्ह्ह आह, देखा साली रंडी, आ रहा है न मजा, बोल रही थी खराब मत कीजिए, बुरचोदी, अब बता, छोड़ दें तुझे अभी।” कमीना बोला।

तड़प कर मैं पूरी बेशर्मी के साथ बोली, “हाय नहीं, अभी नहीं मादरचोद, अभी नहीं, प्लीज चोदिए राजा ओह्ह्ह्ह मेरे चोदूजी, मेरे लंडराजा आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह।”

चोद चोद कर निढाल थका मांदा मेहता भी हमारी बात सुनकर ठठाकर हंसने लगा। इसके कुछ ही पलों के बाद, यानी कुल मिला कर आधे घंटे तक धुआंधार चुदाई के पश्चात राधेश्याम जी ने मुझे कस कर अपने राक्षसी शरीर से चिपका लिया और फचफचा कर करीब डेढ़ मिनट तक स्खलित होते रहे। “आह्ह्ह्ह्ह मेरी रानी, ओह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह” उसी दौरान मैं भी तीसरी बार झड़ने लगी, “आह उऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ मा्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह” अद्भूत, अनिर्वचनीय।

जो भी हुआ, जैसा भी हुआ, उन्होंने मेरे तन से जी भर के आनंद उठाया और मुझे भी खूब आनंदित किया। दो घंटे में दो बार दोनों ने संभोग किया। वीर्य से लिथड़े लिंग को मेेेरे मुह से साफ करवाया। मैं ने भी बड़े प्यार से चाट चाट कर उनके लिंग को साफ किया। उसी नंग धडंग अवस्था में मुझे अपनी गोद में बिठाकर उन्होंने अनुबंध पर हस्ताक्षर किया। वे मेरी कमनीय काया का भोग लगा कर पूरी तरह संतुष्ट हुए और मेरा तो कहना ही क्या। उन्होंने मुझे अपनी कामपिपासा शांत करने का एक और रास्ता दिखा दिया। नौकरी का नौकरी और मजा का मजा। उस चुदाई क्रिया से निवृत्त हो कर हमने अपनी हुलिया दुरुस्त की, फिर मुझसे फिर मिलते रहने का वादा ले कर मुझे विदा किया। उस समय रात का नौ बज रहा था।

 
उस दिन होटल अशोका में हरीश मेहता और राधेश्याम जी से जो डील फाईनल करके मैं आई थी वह पच्चीस लाख का था। वह डील उनके ट्रांसपोर्ट बिजनेस को बढ़ाने के संबंध में था। हमने उसकी पूरी रूपरेखा, आर्थिक सहायता के लिए ऋण उपलब्ध कराने एवं कार्य में किसी प्रकार की कानूनी अड़चनों से महफूज रखने संबंधी सारा प्रवधान शामिल किया था। उस डील से उन्हें जो लाभ होना था वह अलग बात थी, इधर जो तत्कालिक ‘लाभ’ मेहता जी और राधेश्याम जी हासिल किया, उससे ही वे बेहद खुश थे। मैं भी अपनी सफलता पर बेहद खुश थी। डील हासिल करने की खुशी के साथ साथ अपनी वासना की भूख मिटाने का नया मार्ग पाने की खुशी और इस तरीक़े से अपने कार्य के नये मनोरंजक ढंग से सफलतापूर्वक अंजाम देने की अपनी क्षमता पर गर्व भी था। इससे मेरे आत्मविश्वास में भी वृद्धि हुई।

दूसरे दिन जब मैं ऑफिस गई तो मेरी सफलता पर बॉस बेहद खुश हुए कि मैं ने कुशलता पूर्वक क्लाईंट्स को हमारे प्लान पर सहमत किया और यह अनुबंध हासिल किया। “Congratulations baby. You deserve a treat for this success. (बधाई हो बेबी। इस सफलता के लिए तुम्हें एक पार्टी बनती है)” उन्होंने मुझे बधाई दी और अपनी ओर से होटल सनशाइन में डिनर पार्टी का आयोजन किया, जिसमें ऑफिस का मेरा एक सहयोगी कमलेश और एक मैनेजर शेखर सिन्हा जी शामिल थे। उन्हें क्या पता था कि इस सफलता के लिए मैं ने क्या कीमत अदा की। खैर यह और बात है कि जो भी कीमत मैं ने अदा की उसका मुझे तनिक भी मलाल नहीं था बल्कि इसके उलट मैं ने खुद भी इस पूरी प्रक्रिया के दौरान सुखद अनुभव और आनंद प्राप्त किया। यह तो शुरुआत थी। इसके बाद फिर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कई डील मैं ने इस तरह सम्पन्न करने में अपना योगदान दिया। मेरी मुलाकात अक्सर मेहता जी एवं राधेश्याम जैसे क्लाईंट्स से होती थी। मैं आज तक कई क्लाईंट्स के साथ हमबिस्तर हुई और डील फाईनल करने में सफल रही। मैं हमेशा इस बात का ख्याल रखती थी कि क्लाईंट्स को यह अहसास न हो कि मैं सस्ती किस्म की औरत हूं। प्रथम भेंट में मैं ने हमेशा यही जाहिर किया कि मैं एक शरीफ औरत हूं और सिर्फ क्लाईंट्स की खुशी के लिए मजबूरी में उनकी अंकशायिनी बनने को विवश हूं। अपने व्यवसायिक कार्य के सिलसिले में क्लाईंट्स की हवस पूर्ति हेतु अब अपने को समर्पित करने में मुझे अंदर से कोई झिझक नहीं होती थी। इसी तरह दिन प्रतिदिन सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गई। हां, किंतु प्राथमिकता मैं व्यसायिक लाभ को ही देती थी, क्लाईंट्स की कुत्सित कामक्षुधा शांत करते हुए अपनी देह की भूख मिटा लेना मेरे लिए अतिरिक्त लाभ था। मैं धीरे धीरे इस फन में माहिर होती जा रही थी। जो क्लाईंट्स रूप के रसिया थे, उनमें विभिन्न प्रकार के लोग थे। रूप रंग, शारीरिक बनावट और रुचि में भी भिन्न। कुछ तो विकृत सेक्स पसंद करने वाले भी थे। ऐसे लोगों से भी निपटना मैं सीख गई थी।

ऐसा ही एक वाकया मेरे साथ जब पहली बार हुआ तो मैं तनिक घबरा गई थी। उस मेहता जी वाले एपिसोड के बाद कुछ ऐसे ही क्लाईंट्स से मेरा सामना हुआ जिन्हें सामान्य रतिक्रिया पसंद था। लेकिन उस मेहता वाले एपिसोड के करीब तीन महीने पश्चात एक डील होने वाला था जो एक करोड़ का था। उस दिन किसी आवश्यक कार्य से बॉस ऑफिस देर से आने वाले थे, अतः उस डील के संबंध में मुझे अकेले ही क्लाईंट के साथ मीटिंग करना था। वह क्लाईंट था टाटानगर का एक उद्योगपति। नाम था उसका रूपचंद, नाम के विपरीत कुरूप, सांवला किंतु पूरा चेहरा चेचक के दाग धब्बों से भरा हुआ, करीब पचास साल का मोटा तोंदू, ठिंगना सा करीब साढ़े चार फुट का। वह अपने एक सहयोगी के साथ आया हुआ था। उसका सहयोगी अपेक्षाकृत स्मार्ट, लंबा कद, करीब छः फुट का छरहरे शरीर वाला और देखने में शालीन था। उम्र लगभग तीस पैंतीस के बीच रही होगी। हमारे ऑफिस में जैसे ही रूपचंद जी की नजर मुझ पर पड़ी, वे मुझे अपलक देखते ही रह गए। उस घटिया इंसान की आंखों में किसी भूखे भेड़िये की कामलोलुप चमक और उनके काले काले मोटे होंठों पर वासनापूर्ण मुस्कुराहट देख कर मेरा मन एक बार तो वितृष्णा से भर उठा, लेकिन वे ठहरे एक उद्योगपति क्लाईंट, सो प्रत्यक्षतः मैं ने अपने चेहरे पर व्यसायिक मुस्कुराहट चिपका कर पूछा, “गुड मॉर्निंग सर, कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूं?”

मेरी आवाज सुनकर जैसे उनका ध्यान भंग हुआ और उसी तरह मुस्कुराते हुए घरघराती आवाज मेंं बोले, “गुडमॉर्निंग मैडम। मेरा नाम रूपचंद है।”

यह सुनते ही मैं समझ गयी कि ये ही वे क्लाईंट हैं जिनके साथ मुझे मीटिंग करनी है। तपाक से मैं उठ खड़ी हुई और विनम्रता से बोली, “ओह आईए, यहां आपका स्वागत है।”

वे बोले, “मैं अपने इंडस्ट्री के एक्सपैंशन के सिलसिले में आपकी सेवा लेना चाहता हूं। सुना है आप का ऑर्गानाईजेशन इस मामले में काफी एक्सपर्ट है।”

 
मैं अब थोड़ी सामान्य हो गई और उनकी कामलोलुप नजरों और घटिया मुस्कान को नजरअंदाज कर पूरे पेशेवर अंदाज में बोली, “आपने बिल्कुल सही सुना है। हमारी संस्था इस प्रकार के मामलों में हर संभव मदद करती है और हमारा रेकॉर्ड है कि हमारे किसी भी क्लाईंट को आज तक हमसे कोई निराशा नहीं हुई। आईए बैठिए।” मैं ने अपने सामने की कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। मेरी टेबल के दूसरी ओर तीन कुर्सियां खाली थीं, जिसमें से दो पर रूपचंद जी और उनके सहयोगी आसीन हो गए।

“हां तो अब अपने एक्सपैंशन प्लान के बारे में बताईये। प्रोडक्ट, कस्टमर्स, डिमांड बढ़ने की संभावनाओं के बारे में विस्तार से। जरूरत पड़ी तो हम साईट विजिट भी करेंगे।” मैं ने कहा।

इसपर उन्होंने अपने सहयोगी की ओर मुखातिब हो कर कहा, “ऋतेश, मैडम को हमारी कंपनी के बारे मेंं बताओ।” ऋतेश भी मेरे व्यक्तित्व के आकर्षण से अछूता नहीं था। इतनी ही देर में मैं ने महसूस किया कि उसकी तीक्ष्ण दृष्टि मेरे अंग प्रत्यंग को मेरे कपड़ों के ऊपर से ही भेदती हुई मुआयना कर रही है। उसकी दृष्टि की ताब न ला सकी मैं और तनिक संकोच का अनुभव करने लगी। उसने जब बोलना आरंभ किया तो उसकी धीर गंभीर आवाज ने मुझे सम्मोहित कर लिया। एक तो उसका आकर्षक व्यक्तित्व, उसपर उसकी ठहरी हुई गंभीर आवाज और बोलने का अंदाज मुझे प्रभावित कर गया। उसकी आवाज में गजब का आकर्षण था। बोलते वक्त उसकी नजरें मेरे चेहरे पर ही टिकी हुई थीं। ऐसा लग रहा था मैं भीतर ही भीतर पिघल रही हूं। उसकी नजरों में पता नहीं ऐसा क्या था या ऐसी अपील थी कि मेरे शरीर में रक्त संचार की गति बढ़ने लगी। वही आदमजात शरीर की प्राकृतिक भूख, पुरुष संसर्ग की, मेरे अंदर जागने लगी। मैं उस दिन स्कर्ट ब्लाऊज में थी। मेरे उरोज लो कट बिना बांहों के ब्लाऊज में सख्त होने लगे, चुचुक खड़े हो गए। ऐसा लग रहा था मानो दो कबूतरियां कसे हुए ब्रा और ब्लाऊज के पिंजरे से तड़प कर बाहर निकल पड़ने को बेताब हों। मैं ने अपनी दोनों जांघों को कस कर सटा लिया लेकिन कुछ ही मिनट बाद मैं अपनी कुर्सी पर ही कसमसा कर जांघ पर जांघ चढ़ा कर बैठने को मजबूर हो गई। मेरी योनी पैंटी के अंदर फकफक करती हुई लसलसा पानी छोड़ने लगी, नतीजतन मेरी पैंटी के सामने का हिस्सा भीग गया। मेरी स्थिति से धूर्त रूपचंद और ऋतेश अनभिज्ञ नहीं थे। रूपचंद जी के हाव भाव से ऐसा लग रहा था मानो अगर उनका वश चलता तो वहीं पटक कर मुझे भोगने लग जाते। ऋतेश काफी धैर्यवान लग रहा था, सबकुछ समझते हुए भी सिर्फ हौले हौले मुस्कुराते हुए अपनी बात रखता जा रहा था। बीच बीच में मैं रोक कर कुछ सवालों द्वारा जानकारी लेती जा रही थी लेकिन मेरी आवाज मेंं मेरी जुबान की हल्की लड़खड़ाहट मेरी स्थिति की चुगली कर रही थी। जब ऋतेश अपनी बात पूरी करने ही वाला था कि उसी वक्त मेरे बॉस आ गये।

“Sorry Mr. Roopchand, I’m joining late in this meeting (माफ कीजिएगा रूपचंद जी, मैं इस मीटिंग में देर से शामिल हो रहा हूँ)” उन्होंने कहा।

“It’s OK. We are about to finish describing about our expansion plan. If you wish, I can explain again, (कोई बात नहीं। हम अपने औद्योगिक विस्तारीकरण योजना के बारे में बताना समाप्त करने ही वाले थे। अगर आप चाहें तो मैं दुबारा बता सकता हूँ।)” ऋतेश ने कहा।

“No need to repeat again. Kamini is competent enough to handle any project. Anyway if I feel necessary, I can get details from Kamini. You carry on. (दुहराने की कोई आवश्यकता नहीं। कामिनी किसी भी प्रोजेक्ट को संभालने के लिए सक्षम है। फिर भी अगर मुझे आवश्यक लगा तो मैं कामिनी से जानकारी ले लूंगा। आप जारी रखिए।)” उन्होंने कहा।

पूरी बातें तो करीब करीब हो ही चुकी थीं और बॉस के आ जाने के बाद माहौल भी तनिक बदल गया था अतः मैं भी सहजता पूर्वक बोली, “रूपचंद जी, वैसे तो मैं आपके उद्योग के बारे मेंं काफी अच्छी तरह जान चुकी हूं और उसे किस तरह से आगे बढ़ाना है इसके बारे में मैं बॉस और हमारी टीम की एक मीटिंग करना चाहती हूं ताकि एक्सपैंशन के सम्बंध में हम एक अच्छी योजना तैयार कर सकें।” कहकर मैं ने बॉस की ओर समर्थन के लिए देखा।”

“Yes Kamini, you are right. Fix a meeting at 3:00 O’clock evening. We will discuss and finalize the plan. Mr. Roopchand, we will let you know about our plan today evening itself. If you like it then we will work on it and our final lay out of the plan will be ready by the end of this week. (हां कामिनी, तुम सही हो। आज शाम तीन बजे एक मीटिंग बुलाओ। हम उस पर विचार विमर्श करके योजना को अंतिम रूप देंगे। मि. रूपचन्द जी, हम आज ही शाम तक आपको योजना के बारे में जानकारी दे देंगे। अगर आपको हमारी योजना पसंद आई तो हम उसपर काम करेंगे और योजना की अंतिम रूपरेखा इसी सप्ताह के अंत तक तैयार हो जाएगा)”
 
“ठीक है हमें मंजूर है” रूपचंद जी ने कहा, फिर मेरी ओर अर्थपूर्ण नजरों से देखते हुए कहा, “योजना की अंतिम रूपरेखा के बारे में हमें विश्वास है कि आप जो भी तैयार करेंगे वह बढ़िया ही होगा लेकिन आज आप का जो मोटा मोटी प्रारूप तैयार होगा वह कामिनी के हाथों होटल राज में भेज दीजिएगा। हम वहीं देख भी लेंगे और समझ भी लेंगे।”

“Will you get some time to do this Kamini? You can explain better. (क्या तुम समय निकाल कर यह काम कर दोगी कामिनी? तुम अच्छी तरह समझा सकती हो)” बॉस ने मुझसे पूछा।

“It’s ok sir” मैं बोली। हालांकि मुझे आभास था कि मेेेरे साथ क्या होने वाला है लेकिन ऋतेश के सम्मोहन में बंधी हां कर बैठी। शाम को पूर्व निर्धारित समय के अनुसार 6:00 बजे मैं ने, हमारी मीटिंग में हमने जो निर्णय किया था, उसकी फाईल ले कर होटल राज के कमरा नं 5 (जैसा कि उन्होंने बताया था) के दरवाजे पर दस्तक दी। तुरंत ही दरवाजा खुला और ऋतेश ने, जो कि पजामे और कुर्ते में था, मुझे देखकर अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ मेरा स्वागत किया और सामने सोफे की ओर इंगित करते हुए बैठने का आग्रह किया। उसकी भेदती नजरों ने मेेेरे दिल की धड़कन बढ़ा दी। मैं धड़कते दिल के साथ सोफे पर बैठ गई। कमरे में मुझे ऋतेश अकेला ही दिखा। मेेेरे अंदर आते ही ऋतेश ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। अभी मैं सोफे पर बैठी ही थी कि ऋतेश भी आ कर मेेेरे बगल में बैठ गया और मेरे हाथों से फाईल ले कर देखने लगा। मैं योजना की रूपरेखा के बारे में बताती गई जिसे ऋतेश सुनता जा रहा था और बीच बीच में सवाल भी करता जा रहा था। मैं उसके हरेक सवाल का जवाब देती गई और अंततः ऋतेश संतुष्ट हुआ। इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई और दरवाजा खुलने पर रूपचंद जी का चौखटा नजर आया।

“ऋतेश, तूने सब कुछ देख लिया ना?” आते ही रूपचंद जी ने सवाल किया।

“हां सर, वैसे तो इनकी योजना काफी प्रभावशाली है, देखते हैं योजना की अंतिम रूपरेखा क्या होती है।” ऋतेश ने कहा।

“अंतिम रूपरेखा कैसी होगी वह बाद की बात है। फिलहाल तो हमें इसकी रूपरेखा ही दिखा दे।” अभी रूपचंद जी की बात खत्म हुई ही थी कि ऋतेश बिना किसी पूर्वाभास दिए ही मुझे अपनी बांहों में दबोच लिया और मुझ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा, बिल्कुल मशीनी अंदाज में। मैं इस आकस्मिक हमले के लिए तैयार नहीं थी। उसके मजबूत बांहों में कैद हो कर रह गई और छटपटाने लगी।

“छोड़ो मुझे छोड़ो, यह क्या करते हो?” मैं छटपटते हुए बोली।

“छोड़ देंगे मेरी जान, लेकिन पहले तेरी रूपरेखा तो देख लें। रूपरेखा देखने के बाद तेरी जवानी का रस भी चख लें। देखें तो तू हमें खुश कर सकती है कि नहीं।” कहते हुए रूपचंद जी का भोंड़ा चेहरा और भी वीभत्स हो उठा।

“देखिए मैं उस तरह की औरत नहीं हूं। प्लीज मुझे छोड़ दीजिए।” अंदर ही अंदर ऋतेश की बांहों में पिघलती हुई मेरा विरोध जारी रहा।

“बंद कर अपनी बकवास। हमें खूब पता है तू किस किस्म की औरत है। ऑफिस में ही हमने तेरी हालत देख ली थी साली छिनाल। खुशी खुशी मान जा वरना वैसे भी तू यहां से बिना चुदे तो जाने से रही।” रूपचंद जी अब खुंखार हो उठे थे। ऋतेश तो लगा हुआ था मुझे हर तरह से उत्तेजित करने के लिए। वह मुझे चूमते हुए ब्लाऊज के ऊपर से ही मेरे उरोजों को मसलना चालू कर दिया था।

आगे की घटना अगली कड़ी में।

तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
 
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि अपने क्लाईंट्स के साथ डील फाईनल करते करते किस तरह क्लाईंट्स की कामपिपासा शांत करने में भी महारत हासिल करती जा रही थी। इसी दौरान टाटानगर के व्यवसायी कुरूप और बदशक्ल रूपचंद और ज्ञानचंद के चंगुल में जा फंसी जो रूप के रसिया और विकृत सेक्स के दीवाने थे। उनके सहयोगी हिजड़े ऋतेश के आकर्षण में बंध कर इन कामलोलुप दरिंदों के जाल में मैं फंस चुकी थी। ऋतेश जहां मुझे अपनी मजबूत बांहों में जकड़े हुए कपड़ों के ऊपर से ही मेरे अंग प्रत्यंग से खिलवाड़ करता जा रहा था वहीं रूपचंद जी सामने बेड पर बैठ कर ऋतेश का उत्साह वर्धन कर रहे थे। “अच्छी तरह से गरम कर साली को ऋतेश, फिर इसे ऐसे चोदेंगे कि यह भी क्या याद करेगी।”

“आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह मां, छोड़िए ना मुझे प्लीज। देखिए मुझे खराब मत कीजिए, मैं आप लोगों के पांव पड़ती हूं। मैं बरबाद हो जाऊंगी। प्लीज मुझे जाने दीजिए।” मैं अब तक गरम हो चुकी थी लेकिन मुझे भी शराफत का ढोंग तो करना ही था। मेरी योनी पानी छोड़ने लगी थी और पैंटी योनी के लसलसे द्रव्य से भीग चुकी थी। मेरे उरोज उत्तेजना के मारे सख्त हो कर तन गए थे।

“तुझे कौन बरबाद कर रहा है पगली। हम तो तुझे आबाद करने की फिराक में हैं। जब से तुझे ऑफिस में देखा है, तेरी इस खूबसूरत काया से खेलने के लिए तड़प रहे हैं। जल्दी उतार इसके सारे कपड़े ऋतेश। जरा हम भी इसकी जवानी का दीदार कर लें। इसके नंगे जिस्म को देखने के लिए मैं कब से तड़प रहा हूँ। तुझे तो पता है मेरा लंड इतनी जल्दी खड़ा नहीं होता है।” रूपचंद जी उतावले हो कर बोले। इसके बाद ऋतेश को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया मेरे लिए। वह एक आज्ञाकारी गुलाम की तरह आनन फानन में मेरे सारे कपड़ों को केले के छिलके की तरह उतारता चला गया। मैं बनावटी असहाय भाव और बनावटी बेबसी का नाटक करती हुई छटपटाती रही और एक एक करके मेरा ब्लाऊज, ब्रा, स्कर्ट, पैंटी, सब मेरे तन का साथ छोड़ते चले गए और यह सब कुछ हो रहा था सिर्फ ऋतेश के आकर्षण में। अब मैं पूर्ण रूप से नंगी हो चुकी थी। अब ऋतेश मुझे और अधिक उत्तेजित करने के लिए मेेेरे होठों को चूमने लगा, मेरे मुह में अपनी जीभ डालकर चुभलाने लगा। उसके मजबूत पंजे मेरे उरोजों को सहला रहे थे, हल्के हल्के दबा रहे थे। मेरा विरोध फिर भी जारी था लेकिन ऋतेश भी माहिर खिलाड़ी था, उसे आभास हो गया था कि मैं उत्तेजित हो चुकी हूं क्योंकि अनजाने में उत्तेजना के आवेग में मैं ऋतेश के जीभ को चूसने लग गई थी। इधर मेरे मदमस्त नंगे जिस्म को देख कर दोनों की आंखें फटी की फटी रह गयीं। धीरे धीरे ऋतेश का एक हाथ मेरी योनी तक पहुंच गया और अपनी हथेली से मेरी योनी को सहलाने लगा। उसकी उंगलियां मेरी योनी के भगांकुर को छेड़ने लगीं तो ऐसा लग रहा था जैसे मेरी वासना की भूख अपने चरम पर पहुंच गई, कामुकता की तरंगें मेरे शरीर में बिजली बन कर दौड़ने लगीं। मैं तो पागल ही हो गई थी। मेरी आंखें बंद हो गयी थीं।

“आह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, मार ही डालोगे क्या? अब …..” मैं बेसाख्ता बोल पड़ी।
 
अभी मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि रूपचंद जी बोल पड़े, “अब क्या? तू तो अभी से मरने की बात कर रही है, पहले मेरा लौड़ा खड़ा तो होने दे फिर दिखाता हूं तुझे चुदाई का जलवा। ले साली मेरा लंड अपने मुह में और चूस चूस कर खड़ा कर दे।” इतनी देर में रूपचंद पूरे निर्वस्त्र हो कर कब हमारे पास आ पहुंचे थे मुझे पता ही नहीं चला। मैं ने चौंक कर सामने देखा, उनका जिस्म उनके चेहरे की तरह ही बेढब और बेडौल था। ठिंगना होने के साथ ही साथ विकराल तोंद और पूरा शरीर रीछ की तरह बालों से भरा हुआ। जहां ऋतेश के गठे हुए कसरती शरीर और उसके मजबूत बांहों के बंधन में मुझे अद्वितीय सुख का अहसास हो रहा था वहीं रूपचंद के नग्न शरीर को देखकर किसी का भी मन वितृष्णा से भर जाता, किंतु मेरी स्थिति ऋतेश ने ऐसी कर दी थी कि अब मैं सिर्फ पुरुष संसर्ग के लिए मरी जा रही थी। वह पुरुष, कैसा है, मोटा, पतला, सुंदर, कुरूप, बेढब या लंगड़ा लूला, मुझे परवाह नहीं था। सामने से रूपचंद का लिंग सोई हुई अवस्था में ही करीब छ: इंच लंबा झूल रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप सोया हुआ है और उसके ऊपर झुर्रियों भरा चमड़े का आवरण ऐसा लग रहा था मानो कोई सांप अपनी केंचुली छोड़ने वाला हो। उनका अंडकोश भी काफी बड़ा था करीब आधा किलो के जैसा। इसके विपरीत ऋतेश अब तक पूरे वस्त्रों में था। वह मेेेरे साथ जो कुछ कर रहा था वह बिल्कुल मशीनी अंदाज में था, बिल्कुल भावहीन, एकदम किसी हुक्म के गुलाम रोबोट की तरह। अब मुझे ऋतेश से खीझ होने लगी थी। इतनी देर में तो कोई भी पुरुष अपना संयम खो कर मेरी मदमाती काया पर टूट पड़ता। पता नहीं किस मिट्टी का बना था वह, मर्द भी था कि नहीं। तब उस समय ऋतेश के आश्चर्य का पारावार न रहा जब उतावलेपन में मैं ने एक झटके से अपने को उसके मजबूत बंधन से आजाद किया और किसी भूखी कुतिया की तरह रूपचंद जी के सोये हुए छ: इंच लिंग पर टूट पड़ी और गप्प से अपने मुंह में ले लिया। फिर मैं लग गई जी जान से उनके लिंग को चपाचप चूसने ताकि वह जल्द से जल्द खड़ा हो सके और मेरी प्यासी योनी की धधकती ज्वाला को बुझा सके।

मेरे उतावलेपन को देख कर रूपचंद जी खुशी के मारे बोले, “वाह रे साली सती सावित्री की औलाद, आ गई ना रास्ते में। साली शरीफ औरत की चूत। चूस मेरा लौड़ा, मजे से चूस, फिर मैं दिखाता हूँ तुझे इस लौड़े का कमाल। आह ओह कितनी मस्त है रे तू। सच में तुझे चोदने में बड़ा ही मजा आएगा” कहते हुए एक हाथ से मेरी चूचियां सहलाने लगे और दूसरे हाथ से मेरे गुदाज चिकने नितंबों को सहलाने लगे। करीब दो मिनट बाद ही मैंने महसूस किया कि रूपचंद जी का लिंग सख्त हो रहा है, बड़ा हो रहा है, लंबा हो रहा है और मोटा भी। अगले एक मिनट बाद तो मैं उनके लिंग को मुंह में रखने में असमर्थ हो गई। जैसे ही मैं ने उनके लिंग को चूसना छोड़ कर मुह से निकाला मैं चौंक उठी। हे भगवान! इतना भयावह और दहशतनाक मंजर था। मेरे चेहरे के सामने करीब साढ़े ग्यारह इंच लंबा और करीब चार इंच मोटा किसी काले सांप की तरह फनफनाता रूपचंद जी का अमानवीय लिंग मेरे मुह के लार से लिथड़ा, अपने पूरे जलाल के साथ झूम रहा था। कोई कितनी भी बड़ी छिनाल हो, ऐसे लिंग का दीदार ही काफी था भयभीत करने के लिए। मैं कोई अपवाद तो थी नहीं, उस दहशतनाक मंजर को देख कर मेरी भी घिग्घी बंध गई।

“हाय राम, इत्ता बड़ा!” मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा। मैं दो कदम पीछे हट गई।

“डर मत पगली, बाकी औरतों की बात और है, मेरा लंड देख कर ही भाग जाती हैं। जिन्हें मैं ने चोदा, उनकी चूत फट गई, फिर कभी मेेेरे पास दुबारा नहीं आई कोई। मगर तू घबरा मत, तुझमें दम है। तेरी चूत ठीक मेरे लौड़े के लिए ही बनी है। तेरे जैसी चूत को मेरे जैसे लौड़े की ही जरूरत है। तू एक बार चुद के देख, कसम से बार बार चुदवाना चाहोगी।” रूपचंद जी मुझे डरा रहे थे कि हौसला बढ़ा रहे थे, मुझे समझ नहीं आ रहा था।

“नहीं नहीं प्लीज मैं मर जाऊंगी।” मैं घबरा कर बोली।
 
तभी, “चल साली कुतिया, सामने जा रूपचंद जी के, खूब मजा करेगी” कहते हुए अचानक पीछे से ऋतेश ने मुझे एक धक्का दिया और मैं अपना संतुलन खो कर सामने गिरने लगी कि रूपचंद जी ने मुझे थाम लिया।

मैं ऋतेश पर विफर पड़ी, “साले नामर्द, खाली औरत को गरम करना जानते हो। मर्द हो खाली देखने में ही। मुझ पर ताकत दिखा रहे हो हिजड़े कहीं के।”

“अरे उस पर क्यों बिगड़ती हो मेरी जान, वह सही में हिजड़ा है। हट्ठा कट्ठा खूबसूरत हिजड़ा। मेरे लिए माल पटाता है। जिस दिन कोई माल नहीं मिला उस दिन मैं उसकी गांड़ चोद कर काम चला लेता हूँ। तुम औरतों से बढ़िया गांड़ है इसका। लंड भी बहुत बढ़िया चूसता है साला। अभी देख लेना, जब मेरा भाई आएगा तब इसकी करामात।” रूपचंद जी मुझे सख्ती से थामे हूए मुझे बोल ही रहे थे कि कॉल बेल बज उठा। ऋतेश तपाक से दरवाजे की ओर लपका। कुछ ही पलों में मेरे सामने एक और रूपचंद खड़ा मुस्कुरा रहा था। दो दो रूपचंद। कद में रूपचंद जी से थोड़ा कम करीब सवा चार फुट का था, चेहरे की बनावट एक ही तरह की थी किंतु रंग बिल्कुल काला। हां उनके चेहरे पर रूपचंद जी की तरह चेचक का दाग नहीं था। मैं हैरान, अवाक देखती रह गई।

“वाह भाई, इतना मस्त माल मिली कहाँ से? लगता है आसमान से कोई हूर उतर आई हो।” ज्ञानचंद बोला। बोलने का अंदाज भी रूपचंद की तरह ही था।

“किस्मत से भाई किस्मत से। आजा भाई तू भी शामिल हो जा। कामिनी मेरी जान, यह है मेरा जुड़वा भाई ज्ञानचंद। यूं ताज्जुब से मत देख। हम दोनों भाई जिस तरह से बिजनेस पार्टनर हैं उसी तरह कोई भी चीज हम दोनों भाई मिल बांट कर खाते हैं। आज भी हम दोनों भाई मिलकर तुझे जन्नत की सैर कराएंगे।” रूपचंद जी मुस्कुराते हुए बोले। ज्ञानचंद अपने भाई का आमंत्रण भला कैसे ठुकरा सकता था। उसका स्वभाव अपने भाई से अलग थोड़ी ही था। उसका मुझे देखने का अंदाज ठीक अपने भाई की तरह ही था, आंखों में वही वासना की भूख, शिकारी कुत्ते की तरह आंखों में चमक, मुह से लार टपकती। आनन फानन में वह भी मादरजात नंगा हो गया। ओह भगवान, बदन बिल्कुल अपने भाई की तरह गोल मटोल, रीछ की तरह बालों से भरा हुआ। लिंग का आकर प्रकार एक जैसा। ऋतेश के चक्कर में कहाँ फंस गई मैं। दो गोलमटोल बौने चुदक्कड़। मन ही मन भगवान से दुआ मांग रही थी कि मुझे इतनी शक्ति दे कि मैं इन कामुक भेड़ियों को झेल सकूं। भगवान मेरी आर्त निवेदन क्यों सुनते भला, वे भी, लगता है, आज मेरी दुर्दशा अपनी आंखों से दीदार को ललायित थे। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था। इन दोनों की आंखों में मैं ने वहशीपन को स्पष्ट पढ़ लिया था। लेकिन अब तो मेरा सिर ओखल में जा चुका था और मूसल का प्रहार बाकी था।

ज्ञानचंद भी ठीक मेरे सामने आ खड़ा हुआ और अपने 6″ लंबे सोए हुए सांप की तरह झूलते काले लिंग को मेरे मुह के पास ला कर बोला, “चल री लौंडिया, चूस मेरा लौड़ा, खड़ा कर दे इसे भी मेरे भाई की तरह।” पता नहीं मुझे क्या हो गया था उस वक्त, शायद पुरुष संसर्ग की पुरजोर तलब का ही थी कि मैं ने आव देखा न ताव, हिम्मत बांधा और लपक कर ज्ञानचंद जी का भी लिंग अपने मुह में ले कर गपागप चूसने लग गई। मेरी बेताबी देख कर रूपचंद जी ठहाका मार कर हंसने लगे।
 
“साली कुतिया कुछ देर पहले कैसे कह रही थी मर जाऊंगी, अब देख कैसे गपागप ज्ञान का लंड चूस रही है। चल ऋतेश तू भी आ जा और जब तक यह लौंडिया ज्ञान का लौड़ा चूस कर खड़ा करती है तबतक तू भी मेरा लौड़ा चूसता रह, लेकिन पहले तू भी अपने कपड़े उतार ले गांडू।” रूपचंद जी बोले। आज्ञाकारी गुलाम की तरह ऋतेश आनन फानन में नंगा हो गया। गोरा चिट्टा, हृष्टपुष्ट शरीर वाला ऋतेश सचमुच में हिजड़ा ही था। सीना आम पुरुषों की तुलना में कुछ अधिक ही उभरा हुआ। ऐसा लग रहा था मानो किसी जवान होती लड़की की अर्द्धविकसित चूचियां हों। उसका लिंग था ही नहीं, सिर्फ एक छेद नजर आ रहा था जो मूत्र विसर्जन का मार्ग था। अंडकोश नदारद। लेकिन उसके नितंब! ओह बेहद खूबसूरत, गोल गोल और चिकने। पूरे शरीर में एक भी बाल नहीं था। सच ही कहा था रूपचंद जी ने, उसके शरीर को देख कर और खास कर उसके नितंबों की खूबसूरती देख कर लड़कियां भी शर्मा जाएं। वह भी किसी रोबोट की तरह रूपचंद जी का विशाल लिंग को हाथों में ले कर किसी लॉलीपॉप की तरह चाटने और चूसने लगा। अजीब समां था। इधर मैं ज्ञानचंद के लिंग को चूस चूस कर लिंग में तनाव लाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी और उधर ऋतेश रूपचंद जी के लिंग को चाटने चूसने में लिप्त था। कुछ ही मिनटों में ज्ञानचंद का लिंग भी अपने भाई की तरह ही तनतना उठा। उफ्फ्फ, कितना भयानक था वह मंजर। अपने भाई के लिंग से थोड़ा छोटा, करीब करीब ग्यारह इंच का और वैसा ही मोटा। अब मैं सचमुच में दहशत में थी। ये जालिम तो आज मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ थी।

आगे की कहानी अगली कड़ी में।
 
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