desiaks
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मैं ने चौंककर आंखें खोली तो देखा वही गंदा कंडक्टर बड़े भद्दे ढंग से मुस्कुरा रहा था। इससे पहले कि मैं कुछ मैं कुछ बोल पाती, सरदारजी मद्धिम स्वर में बोले, “इसे भी चोद लेने दो कुड़िए, इसी ने पीछे सीट खाली करवा कर चोदने का इंतजाम किया है। इसे भी खुश कर, याद रखना तेरा वीडियो मेरे पास है।।” मैं क्या कहती, उस गन्दे कंडक्टर से चुदने की कल्पना मात्र से ही मुझे घिन आ रही थी। मगर मैं सरदारजी के हाथों ब्लैकमेल होती हुई उस बेहद गन्दे घटिया इंसान को अपना तन सौंपने को मजबूर थी।
मुझे उसी अवस्था में छोड़ कर सरदारजी उठे और अपने पजामे का नाड़ा बांधकर अपनी सीट पर जा बैठे। मैं खामोशी से उसी तरह लेटी रही और उस वहशी कंडक्टर ने बड़ी बेसब्री से अपने पैंट को ढीला कर नीचे सरकाया। ओह भगवान, पूरा लंबें लंबे झांटों से भरा बेहद घिनौना काला खतना किया हुआ करीब 8 इंच का लंड, वितृष्णा से मेरा मन भर गया, मगर मैं मजबूर थी। ज्यों ही वह मेरे ऊपर आया, उसके तन से उठती पसीने और गंदगी की मिली जुली बदबूदार महक मेरे नथुनों से टकराई। मैं ने बड़ी मुश्किल से उबकाई को रोका और अपने मन को कड़ा कर उसके गंदे बदबूदार शरीर के हवस की भूख मिटाने के लिए अपने तन को परोस दिया। उस हरामी ने बड़ी बेताबी से झट से अपना लंड मेरी चुद चुद कर ढीली लसलसी चूत में अपना लंड ठोक दिया और दनादन किसी मशीन की तरह चोदना चालू किया। इसी दौरान वह अपने घिनौने मुंह से मुझे चूमता चाटता रहा और अपने हाथ की उंगली को मेरी चूत से निकलने वाली लसलसे रस से लथेड़ कर मेरी गांड़ में घुसा घुसा कर गांड़ का छेद फिसलन भरा बनाता रहा फिर बिना किसी पूर्वाभास के अपना पूरा लंड निकाल कर चूत से नीचे मेरी गांड़ में भक्क से एक ही बार में पूरा लंड उतार दिया।
“आह नहीं, गांड़ में नहीं,” मैं तड़प उठी और फुसफुसाई।
“चुप बुर चोदी, तेरा गांड़ तो इतना मस्त है, इसे चोदे बिना कैसे छोड़ दें। चुपचाप गांड़ चुदा हरामजादी।” वह फुसफुसाया। वह बड़े घिनौने ढंग से गांड़ का बाजा बजा रहा था और बड़बड़ कर रहा था,”आह साली गांडमरानी रंडी, ले मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में, आह क्या मस्त गांड़ है रे रंडी साली कुतिया।”
“हाय मैं मर गई, आह, ओह, अम्मा, इस्स्स।” मैं सच में आज इस बस में एकदम रंडी बन गई। करीब 20 मिनट तक चोदता रहा और मैं इस बीच इतने गन्दे घटिया इंसान से इतने घिनौने तरीके से चुदती हुई आश्चर्यजनक ढंग से फिर उत्तेजना में भर कर इस कमीने कंडक्टर के संग कामुकतापूर्ण खेल में आनंदमग्न बराबर की हिस्सेदार बन गई और मेरा बड़बड़ाना भी चलता रहा, “चोद साले मादरचोद कंडक्टर, कमीने, अपनी रंडी बना ले कुत्ते, हाय राजा, ओह मेरे गांड़ के रसिया, चोद ले हरामी बेटी चोद।”
करीब 20 मिनट की धक्कमपेल के बाद वह कमीना अपना वीर्य मेरी गांड़ में भरना शुरू किया और इसी समय मैं भी झड़ने लगी। “आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह, मैं गई रे बेटी चोद, आ्आ्आह।” मैं वहीं लस्त पस्त निढाल पड़ गई और वह जालिम कंडक्टर संतुष्टि की मुस्कान के साथ अपने गंदे होंठ चाटता हुआ मेरे ऊपर से उठा, अपना पैंट पहन कर मुस्कुराता हुआ वहां से हट कर सामने चला गया। मैं कुछ देर उसी तरह नुची चुदी थक कर चूर पड़ी रही फिर धीरे धीरे उठी, पैंटी पहनी और भारी कदमों से आकर अपनी सीट पर धम्म से बैठ गई। बस में मेरे तीनों बूढ़े, सरदारजी और कंडक्टर को छोड़ कर किसी को कानों-कान खबर नहीं थी कि सभी यात्रियों के रहते मैं कितनी बड़ी छिनाल बन चुकी थी।मेरे तीनों बूढ़े अपराधियों की तरह मुझसे नज़र चुरा रहे थे, मगर मैं तो एक नये रोमांचक अनुभव से गुजर कर नये ही आनंद में मग्न थी। मेरे तीनों बूढ़े बिनब्याहे पतिदेव गण चुपचाप मेरे छिनाल बनने की घटना के मूक साक्षी, खामोश बैठे रहे, सरदारजी मुझे चोद कर खुश मुस्कुरा रहे थे, उधर हरामी कंडक्टर मेरी मस्त गोल गोल गांड़ का भोग लगा कर खुश मग्न मुस्कुरा रहा था। यह सब होते होते कब हम रांची पहुंचे पता ही नहीं चला। करीब 12 बजे हम रांची पहुंचे।
बस से उतरते समय हरामी कंडक्टर मेरे कान में फुसफुसाया, “बहुत मस्त गांड़ है तेरा रानी, फिर कभी मिलूंगा तो फिर तेरी गांड़ चोदुंगा, मन नहीं भरा।।” मैं गनगना उठी, गन्दा है मगर मस्त चुदक्कड़ है, “ठीक है ठीक है” कहती मैं आगे बढ़ी। सरदारजी भी मेरे कानों में बोलते गये, “बहुत मजा आया कुड़िए, अपना फोन नंबर दो, जब मुझे चोदने का मन होगा मैं फोन करूंगा, याद है ना तुम लोगों का वीडियो मेरे पास है” धमकी भरे शब्दों में कहकर रुके। मैं ने चुपचाप अपना नंबर दिया और अपने प्यारे बूढ़े आशिकों के साथ लुटी पिटी थके हारे कदमों के साथ एक साझी बिनब्याही पत्नी की तरह नानाजी के घर की ओर चल पड़ी।
मुझे उसी अवस्था में छोड़ कर सरदारजी उठे और अपने पजामे का नाड़ा बांधकर अपनी सीट पर जा बैठे। मैं खामोशी से उसी तरह लेटी रही और उस वहशी कंडक्टर ने बड़ी बेसब्री से अपने पैंट को ढीला कर नीचे सरकाया। ओह भगवान, पूरा लंबें लंबे झांटों से भरा बेहद घिनौना काला खतना किया हुआ करीब 8 इंच का लंड, वितृष्णा से मेरा मन भर गया, मगर मैं मजबूर थी। ज्यों ही वह मेरे ऊपर आया, उसके तन से उठती पसीने और गंदगी की मिली जुली बदबूदार महक मेरे नथुनों से टकराई। मैं ने बड़ी मुश्किल से उबकाई को रोका और अपने मन को कड़ा कर उसके गंदे बदबूदार शरीर के हवस की भूख मिटाने के लिए अपने तन को परोस दिया। उस हरामी ने बड़ी बेताबी से झट से अपना लंड मेरी चुद चुद कर ढीली लसलसी चूत में अपना लंड ठोक दिया और दनादन किसी मशीन की तरह चोदना चालू किया। इसी दौरान वह अपने घिनौने मुंह से मुझे चूमता चाटता रहा और अपने हाथ की उंगली को मेरी चूत से निकलने वाली लसलसे रस से लथेड़ कर मेरी गांड़ में घुसा घुसा कर गांड़ का छेद फिसलन भरा बनाता रहा फिर बिना किसी पूर्वाभास के अपना पूरा लंड निकाल कर चूत से नीचे मेरी गांड़ में भक्क से एक ही बार में पूरा लंड उतार दिया।
“आह नहीं, गांड़ में नहीं,” मैं तड़प उठी और फुसफुसाई।
“चुप बुर चोदी, तेरा गांड़ तो इतना मस्त है, इसे चोदे बिना कैसे छोड़ दें। चुपचाप गांड़ चुदा हरामजादी।” वह फुसफुसाया। वह बड़े घिनौने ढंग से गांड़ का बाजा बजा रहा था और बड़बड़ कर रहा था,”आह साली गांडमरानी रंडी, ले मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में, आह क्या मस्त गांड़ है रे रंडी साली कुतिया।”
“हाय मैं मर गई, आह, ओह, अम्मा, इस्स्स।” मैं सच में आज इस बस में एकदम रंडी बन गई। करीब 20 मिनट तक चोदता रहा और मैं इस बीच इतने गन्दे घटिया इंसान से इतने घिनौने तरीके से चुदती हुई आश्चर्यजनक ढंग से फिर उत्तेजना में भर कर इस कमीने कंडक्टर के संग कामुकतापूर्ण खेल में आनंदमग्न बराबर की हिस्सेदार बन गई और मेरा बड़बड़ाना भी चलता रहा, “चोद साले मादरचोद कंडक्टर, कमीने, अपनी रंडी बना ले कुत्ते, हाय राजा, ओह मेरे गांड़ के रसिया, चोद ले हरामी बेटी चोद।”
करीब 20 मिनट की धक्कमपेल के बाद वह कमीना अपना वीर्य मेरी गांड़ में भरना शुरू किया और इसी समय मैं भी झड़ने लगी। “आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह, मैं गई रे बेटी चोद, आ्आ्आह।” मैं वहीं लस्त पस्त निढाल पड़ गई और वह जालिम कंडक्टर संतुष्टि की मुस्कान के साथ अपने गंदे होंठ चाटता हुआ मेरे ऊपर से उठा, अपना पैंट पहन कर मुस्कुराता हुआ वहां से हट कर सामने चला गया। मैं कुछ देर उसी तरह नुची चुदी थक कर चूर पड़ी रही फिर धीरे धीरे उठी, पैंटी पहनी और भारी कदमों से आकर अपनी सीट पर धम्म से बैठ गई। बस में मेरे तीनों बूढ़े, सरदारजी और कंडक्टर को छोड़ कर किसी को कानों-कान खबर नहीं थी कि सभी यात्रियों के रहते मैं कितनी बड़ी छिनाल बन चुकी थी।मेरे तीनों बूढ़े अपराधियों की तरह मुझसे नज़र चुरा रहे थे, मगर मैं तो एक नये रोमांचक अनुभव से गुजर कर नये ही आनंद में मग्न थी। मेरे तीनों बूढ़े बिनब्याहे पतिदेव गण चुपचाप मेरे छिनाल बनने की घटना के मूक साक्षी, खामोश बैठे रहे, सरदारजी मुझे चोद कर खुश मुस्कुरा रहे थे, उधर हरामी कंडक्टर मेरी मस्त गोल गोल गांड़ का भोग लगा कर खुश मग्न मुस्कुरा रहा था। यह सब होते होते कब हम रांची पहुंचे पता ही नहीं चला। करीब 12 बजे हम रांची पहुंचे।
बस से उतरते समय हरामी कंडक्टर मेरे कान में फुसफुसाया, “बहुत मस्त गांड़ है तेरा रानी, फिर कभी मिलूंगा तो फिर तेरी गांड़ चोदुंगा, मन नहीं भरा।।” मैं गनगना उठी, गन्दा है मगर मस्त चुदक्कड़ है, “ठीक है ठीक है” कहती मैं आगे बढ़ी। सरदारजी भी मेरे कानों में बोलते गये, “बहुत मजा आया कुड़िए, अपना फोन नंबर दो, जब मुझे चोदने का मन होगा मैं फोन करूंगा, याद है ना तुम लोगों का वीडियो मेरे पास है” धमकी भरे शब्दों में कहकर रुके। मैं ने चुपचाप अपना नंबर दिया और अपने प्यारे बूढ़े आशिकों के साथ लुटी पिटी थके हारे कदमों के साथ एक साझी बिनब्याही पत्नी की तरह नानाजी के घर की ओर चल पड़ी।