desiaks
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“आया साली कुतिया, अभी आया, बुड्ढा बोलती है बुरचोदी, मां की लौड़ी।” मेरी बात उसकी मरदानगी को लग गयी, चिढ़ गया वह। मेरी बातों में उसके बुढ़ापे को चुनौती थी, मरदानगी पर तंज था। खूंखार दृष्टि से मुझे देखते हुए भंभोड़ डालने को आतुर अपने कपड़े उतार कर मादरजात नंगा हो गया और किसी बूढ़े किंतु भीमकाय बनमानुष की तरह मेरी नग्न देह पर झपटा वह बूढ़ा चुदक्कड़ भेड़िया। उसका शरीर अवश्य बूढ़ा था किंतु उसका आठ इंच लंबा लिंग फन उठा कर मुझे डंसने को उतावला हो रहा था। मुझे नोचने, निचोड़ने, झिंझोड़ने, कूद ही तो पड़ा मुझ पर और मुझे पटक कर मुझ पर चढ़ बैठा। मैं खुद भी तो इस वक्त यही चाहती थी, कोई मुझे नोच डाले, निचोड़ डाले, भंभोड़ डाले, रगड़ डाले, मेरी वासना की भभकती ज्वालामुखी को शांत कर दे। उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा था, चुद जाने को बेहाल, बदहवासी के आलम में, नुचने को ललायित, पगलाई हुई कुतिया की मानिंद। चाहती तो उसी वक्त हरिया का हुलिया दुरुस्त कर सकती थी, उसका सारा आक्रोश भरा जोश उसकी गांड़ में घुस जाता, लेकिन उस वक्त तो मुझे अपने तन की अगन बुझाने हेतु एक मर्द की बेकरारी से तलब हो रही थी। अभी इस भड़की कामुकता की ज्वाला में धधकती, अंधी हो चुकी अवस्था में मुझे कोई भी चोद सकता था, बूढ़ा, जवान, लंगड़ा, लूला, पागल, भिखमंगा, कोई भी लंड वाला मर्द।
उधर रश्मि की ना नुकुर और चीख पुकार की परवाह किए बिना मेरा आज्ञाकारी पुत्र चढ़ बैठा रश्मि के ऊपर और इधर मुझ पर कहर बरपाने हरिया चढ़ दौड़ा था।
“ओह्ह्ह्ह्, आह्ह्ह्ह्ह्,” मैं हरिया की देह से पिसती सिसक उठी। उस कमीने ने मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को अपने पंजों में दबोच लिया औल मसलते हुए चुचुकों को मुह में भर भर कर चूसना, काटना आरंभ कर दिया। दर्द मिश्रित आनंद से कसमसा उठी मैं, “उई मा्ंंआ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।”
उधर रश्मि चीख रही थी, “आह्ह्ह्ह्ह्, न्न्न्न्ह्ह्ह्ही्हीं्ही्हींईंईंईं।”
क्षितिज अब कहां रुकने वाला था, “आह्ह्ह्ह्ह्, हां्हां्आं्आं्आं।”
“ओह मां्मां्आ्आ्आ्आ।”
“हां्हां्आं्आं्आं मां्मां्आ्आ्आ्आ।” उसके दोनों पैरों को फैला कर तैयार, लंड डालने को उसकी चिकनी चमचमाती चूत में।
“आह ना्न्न्न्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह।”
“आह हां्हां्आं्आं्आं।” चूत के द्वार पर अपने लंड को सटा चुका था।
“हाय आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।”
“चू्ऊऊ््ऊऊ््ऊऊप्प्प्प्प्प,” क्षितिज अब गुर्रा उठा।
“मर्र्र्र्र्र जाऊंगी बाबा।”
“ले बुरचोदी मर।” गुस्से में एक करारा ठाप मार दिया।
“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, फट्ट्ट्ट्ट गयी” दर्द से चीख उठी रश्मि।
“और ले हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्।” एक और करारा ठाप। उतार दिया पूरा का पूरा नौ इंच का लिंग, ककड़ी की तरह चीरता हुआ उसकी चूत में।
“ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह बाबा, मोरी जाबो गो, चीड़े दिलो मां गो्ओ्ओ्ओ्ओ।” (मर जाऊंगी, फाड़ दिया।)
“गया, आह पूरा घुस गया, उफ्फ्फ्फ मस्त टाईट चूत, ओह रश्मि रानी, आह।” क्षितिज ने किला फतह कर लिया था। रश्मि की चीख पुकार की परवाह किए बगैर दनादन दनादन उसकी गांड़ को दबोचे मशीनी अंदाज में लगातार कई
ठाप लगा बैठा वह, जानता था कि अब रुकना बेकार है, इसी तरह वह न न करती रहेगी और मैं मुह बाये देखता रहुंगा, जो कि इस वक्त उसे गंवारा नहीं था।
“ओ बाबा््आआ, ओ मां््आआ” चीखती रही चिल्लाती रही रश्मि, लेकिन अब क्षितिज के लंड को तो मिल गया था रश्मि की टाईट चूत का स्वाद, बाघ को खून का स्वाद मिल गया था। लगा रहा धकाधक, भकाभक, खचाखच, गचागच, ठाप पर ठाप लगाने। उसकी ठापों की वजह से और रश्मि की चूत से निकलते लसलसे रस की वजह से क्षितिज के लिए चोदना सुगम हो गया था, वहीं खुद रश्मि भी आरंभिक पीड़ा से निजात पा चुकी थी। वही रश्मि जो कुछ पलों पहले चीख चिल्ला रही थी, अब आंखें बंद किए सिसकियां ले रही थी, “आह ओह आह ओह इस्स्स्स्स्स, हाय, उफ्फ्फ्फ उफ्फ्फ्फ, आह।” उसकी आंखों की अश्रु धारा सूख चुकी थी। अपने दोनों पैरों से क्षितिज की कमर को लपेटे मगन, चुदी जा रही दी। “ओह मां ओह मां एतो दारून, एतो आनोंदो, ओह्ह्ह्ह् बाबा, चोद बाबा चोद।” कमर उछाल उछाल कर चुदे जा रही थी।
उधर रश्मि की ना नुकुर और चीख पुकार की परवाह किए बिना मेरा आज्ञाकारी पुत्र चढ़ बैठा रश्मि के ऊपर और इधर मुझ पर कहर बरपाने हरिया चढ़ दौड़ा था।
“ओह्ह्ह्ह्, आह्ह्ह्ह्ह्,” मैं हरिया की देह से पिसती सिसक उठी। उस कमीने ने मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को अपने पंजों में दबोच लिया औल मसलते हुए चुचुकों को मुह में भर भर कर चूसना, काटना आरंभ कर दिया। दर्द मिश्रित आनंद से कसमसा उठी मैं, “उई मा्ंंआ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।”
उधर रश्मि चीख रही थी, “आह्ह्ह्ह्ह्, न्न्न्न्ह्ह्ह्ही्हीं्ही्हींईंईंईं।”
क्षितिज अब कहां रुकने वाला था, “आह्ह्ह्ह्ह्, हां्हां्आं्आं्आं।”
“ओह मां्मां्आ्आ्आ्आ।”
“हां्हां्आं्आं्आं मां्मां्आ्आ्आ्आ।” उसके दोनों पैरों को फैला कर तैयार, लंड डालने को उसकी चिकनी चमचमाती चूत में।
“आह ना्न्न्न्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह।”
“आह हां्हां्आं्आं्आं।” चूत के द्वार पर अपने लंड को सटा चुका था।
“हाय आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।”
“चू्ऊऊ््ऊऊ््ऊऊप्प्प्प्प्प,” क्षितिज अब गुर्रा उठा।
“मर्र्र्र्र्र जाऊंगी बाबा।”
“ले बुरचोदी मर।” गुस्से में एक करारा ठाप मार दिया।
“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, फट्ट्ट्ट्ट गयी” दर्द से चीख उठी रश्मि।
“और ले हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्।” एक और करारा ठाप। उतार दिया पूरा का पूरा नौ इंच का लिंग, ककड़ी की तरह चीरता हुआ उसकी चूत में।
“ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह बाबा, मोरी जाबो गो, चीड़े दिलो मां गो्ओ्ओ्ओ्ओ।” (मर जाऊंगी, फाड़ दिया।)
“गया, आह पूरा घुस गया, उफ्फ्फ्फ मस्त टाईट चूत, ओह रश्मि रानी, आह।” क्षितिज ने किला फतह कर लिया था। रश्मि की चीख पुकार की परवाह किए बगैर दनादन दनादन उसकी गांड़ को दबोचे मशीनी अंदाज में लगातार कई
ठाप लगा बैठा वह, जानता था कि अब रुकना बेकार है, इसी तरह वह न न करती रहेगी और मैं मुह बाये देखता रहुंगा, जो कि इस वक्त उसे गंवारा नहीं था।
“ओ बाबा््आआ, ओ मां््आआ” चीखती रही चिल्लाती रही रश्मि, लेकिन अब क्षितिज के लंड को तो मिल गया था रश्मि की टाईट चूत का स्वाद, बाघ को खून का स्वाद मिल गया था। लगा रहा धकाधक, भकाभक, खचाखच, गचागच, ठाप पर ठाप लगाने। उसकी ठापों की वजह से और रश्मि की चूत से निकलते लसलसे रस की वजह से क्षितिज के लिए चोदना सुगम हो गया था, वहीं खुद रश्मि भी आरंभिक पीड़ा से निजात पा चुकी थी। वही रश्मि जो कुछ पलों पहले चीख चिल्ला रही थी, अब आंखें बंद किए सिसकियां ले रही थी, “आह ओह आह ओह इस्स्स्स्स्स, हाय, उफ्फ्फ्फ उफ्फ्फ्फ, आह।” उसकी आंखों की अश्रु धारा सूख चुकी थी। अपने दोनों पैरों से क्षितिज की कमर को लपेटे मगन, चुदी जा रही दी। “ओह मां ओह मां एतो दारून, एतो आनोंदो, ओह्ह्ह्ह् बाबा, चोद बाबा चोद।” कमर उछाल उछाल कर चुदे जा रही थी।