आज हम कहां कहां घूमे और क्या क्या किया उसी के बारे में बातें होने लगी (टैक्सी में और पार्क में जो कुछ हुआ उसको छोड़ कर)। दूसरे दिन नानाजी और दादाजी लोग वापस गांव लौटने वाले थे, उसके बारे में भी बातें होने लगी।
फिर अचानक नानाजी मुझसे बोले, “बिटिया, अभी तो तुम्हारी छुट्टियां चल रही है, क्यों न कुछ दिनों के लिए हमारे गांव चलती हो। छुट्टियां खत्म होते ही वापस आ जाना” उनकी आंखों में याचना और हवस दोनों परिलक्षित हो रहीं थीं। मैं असमंजस में पड़ गई, हालांकि मेरे पूरे बदन में रोमांचक झुरझुरी सी दौड़ गई, इस कल्पना से कि वहां तो कोई रोकने टोकने वाला होगा नहीं, पूरी आजादी से नानाजी मेरे साथ मनमाने ढंग से वासना का नंगा नाच खेलते हुए निर्विघ्न अपनी हवस मिटाते रहेंगे।
“हां ठीक ही तो कह रहे हैं तेरे नानाजी, पहले कभी गांव तो गयी नहीं, इसी बहाने गांव भी देख लेना।” मम्मी झट से बोल उठी।
“हम भी साथ ही चलेंगे, फिर रांची में दो दिन रुक कर अपने घर हजारीबाग चले जाएंगे।” दादाजी तुरंत बोल उठे, वे भी कहां पीछे रहने वाले थे।
मैं अभी भी द्विधा में थी कि जाऊं कि न जाऊं, “ठीक ही तो है। चली जाओ ना, छुट्टियां बिताने के लिए, एक नया जगह भी है। गौरव, (मेरा छोटा भाई) तुम भी साथ चले जाओ” पापा बोले।
मेरे घरवालों को क्या पता कि मैं उनकी नाक के नीचे इन्हीं हवस के पुजारी बूढ़ों द्वारा नादान कमसिन कली से नुच चुद कर वासना की पुतली, तकरीबन छिनाल औरत बना दी गई हूं।
“नहीं पापा मैं नहीं जा सकता, स्कूल का प्रोजेक्ट खत्म करना है।” झट से गौरव बोला।
मगर मैं, जो कामवासना के मोहपाश में बंधी इन बूढ़ों की मुंहमांगी गुलाम बन चुकी थी, मैंने धड़कते दिल से अपनी सहमति दी “ठीक है, ठीक है, जाऊंगी मगर एक हफ्ते के लिए, क्योंकि 10 दिन बाद मेरा कालेज खुल रहा है।” नानाजी का चेहरा खिल उठा।
रात को ही खाना खाने के बाद मैंने बैग वैग में अपना आवश्यक सामान पैक किया और सोने की तैयारी करने लगी क्योंकि तड़के सवेरे हमें निकलना था कि दरवाजे में दस्तक हुई। मैं झुंझला उठी, “अब कौन आ मरा”। रहीम चाचा की खौफनाक चुदाई से वैसे ही बेहाल, सारा बदन टूट रहा था। रात के करीब 10:30 बज रहे थे। सब अपने कमरों में घुस चुके थे। मैं ने दरवाजा खोला तो देखा दादाजी दरवाजे पर खड़े थे।
“अब क्या?” मैं बोली।
चुप रहने का इशारा करते हुए मेरी बांह पकड़ कर उस कमरे की ओर बढ़े जिसमें तीनों बूढ़े ठहरे हुए थे। मैं ने हल्का विरोध किया मगर फिर उनके साथ खिंची उनके कमरे की ओर चली। ज्यों ही मैं ने कमरे में कदम रखा, दादाजी ने फौरन दरवाजा बंद कर दिया। कमरे में नाईट बल्ब की मद्धिम रोशनी में मैंने देखा कि नानाजी और बड़े दादाजी सिर्फ लुंगी पहने बेसब्री से नीचे फर्श पर बिछे बिस्तर पर हमारा इंतजार कर रहे थे।
“आज दिन में जो न हो सका, वही मेहरबानी अब जरा हम पर कर दे बिटिया,” मेरे कान में दादाजी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। “हाय मैं कहां आ फंसी।” मैं घबराई। रहीम चाचा की कुटाई से अभी संभली ही थी कि यह नई मुसीबत। अब तीनों बूढ़ों को झेलना। “नहीं, आप तीनों के साथ एक साथ? हाय राम नहीं नहीं।” मैं फुसफुसाई।
“अरे अब का मुश्किल है तेरे लिए, आराम से चोदेंगे बिटिया, दिन भर बहुत तरसाई हो। अब मान भी जा रानी।” कहते हुए दादाजी ने मुझे बिस्तर पर ठेल दिया। दोनों बूढ़ों नें मझे दबोच लिया और पागलों की तरह मेरे कपड़ों समेत चूचियां दबाना और चूमना चाटना चालू कर दिया। लुंगी के अन्दर कुछ नहीं पहना था उन्होंने। फटाफट लुंगी खोल कर फेंक दिया और मादरजात नंगे हो गए और उनके लपलपाते खौफनाक लौड़े बड़ी बेशर्मी से मुझे सलाम करने लगे। मैं भी सिर्फ नाईटी में थी, फलस्वरूप तीनों ने बड़ी आसानी से पलक झपकते मुझे नंगी कर दिया और मेरी दपदपाती काया को भंभोड़ डालने को तत्पर हो गये ।
मेरी चूचियां मेरी कामुकता को उकसाने वाले वो बटन थे, जिसके मर्दन से मेरे जिस्म में विद्युत की थारा बहने लगी और मैं चुदवाने के लिए छटपटाने लगी। नानाजी अपने कुत्ते जैसी लंबी खुरदुरी ज़बान से मेरी फकफकाती रहीम चाचा से चुद चुद कर सूजी चूत को चप चप चाटने लगे, बड़े दादाजी नें मेरी चूचियों को मसलना और चूसना चालू किया और दादाजी मेरे होंठों को चूसने लगे। मैं तो पागल हो उठी और दो ही मिनट में छरछरा कर झड़ने लगी, ओह यह कामुकता की पराकाष्ठा थी। मगर ये लगे रहे और दुबारा मैं उत्तेजना के सागर में गोते खाने लगी।
जैसे ही दादाजी ने मेरे होंठों को आजाद किया मैं सिसिया कर एकदम रंडी की तरह बोली, “अब चोद भी डालो हरामियों, तरसा तरसा के मार ही डालोगे क्या? ”
लोहा गरम देख बड़े दादाजी ने अपने लौड़े का सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पर रखा और घप्प से एक करारा झटका मार कर एक ही बार में पूरा का पूरा लंड जड़ तक ठोक दिया, “आ्आ्आह” मेरी कराह निकल पड़ी। फिर मुझे अपने लंड में फंसाकर पलट गये। अब मैं उनके ऊपर थी और मेरे कुत्ते नानाजी को तो लगता है कि इसी पल का इंतज़ार था, आव देखा न ताव तुरंत अपने लंड को थूक से लसेड़ कर मेरे गोल गोल गुदाज गांड़ की संकरी गुफा में कुत्ते की तरह पीछे से हुमच कर जड़ तक ठोक दिया, “ले मेरी कुतिया, उह हुम।”
“आह मेरी गांड़ फटी रे” मैं सिसक उठी। मेरे आगे पीछे के छेदों में दोनों बूढ़ों का लंड घुस चुका था और मैं ने हांफते हुए ज्योंही मुंह खोला दादाजी ने अपने लंड को सटाक से मेरे हलक में उतार दिया, “अग्गह गों गों” मेरी घुटी घुटी आवाज के साथ दादाजी भी बोले, “ले हमार रंडी मां, हमार लौड़ा खा।” अत्यंत ही कामुक माहौल बन चुका था, वासना का बेहद गंदा और नंगा खेल चलने लगा। कामोत्तेजना के आलम में सब अत्यंत ही उत्तेजक गन्दी गन्दी घिनौनी गालियां फुसफुसा रहे थे।