desiaks
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अब में थक गई हूं! ..मगर तुम चल कहां रहे हो? एक मंजिल तो खत्म कर दी। यह खौफनाक जंगल...अब्बा का कहीं पता नहीं। आखिर तुम्हारा इरादा क्या है?" मेहर ने घने जंगल को सशंक नेत्रों से देखते हुए कहा।
“घबराऔं नहीं मेहर!" कहते हुए जहूर ने कसकर घोड़े को एड लगाई। पास के पेड_f पर चिडियों का कलरव सुनाई पड रहा था। जंगल की हवा सांय-सांय
करती बह रही थी।
जहूर दो घंटे तक बराबर घोड़े || दौडता रहा। अन्त में मेहर घबराकर बोली-"मैं आजिज आ गई इस सफर से। घोड़े की हालत देखो—बेचारा हाफ रहा है। रोक दो घोड़े। को।"
"तुम थक गईं, मेहर!..." कहकर जहूर ने मेहर को अंक में जोरों से जकड लिया। मेहर का पारा चढ गया। उसकी सांस जोरों से चलने लगी। वह सक्रोध बोली-"तुम, फिर वही शरारत करने लगे...छोड दो मुझे। आखिर तुम्हारा इरादा क्या है?"
"मेरा इरादा?" जहर हंसता हुआ बोला- मेरा इरादा अब एक दुसरी दुनिया बसाने का है, मेहर! जहां सिर्फ हम, तुम और हमारी मुहब्बत हो—मतलब यह कि अब हम और तुम आजाद है और घर से इतनी दूर आ गये हैं कि कोई हमारा पता भी नहीं पा सकता। आओ इस जंगल में इन सुनसान जगह में हम-तुम मिलकर एक हो जाएं।" कहकर जहूर ने घोड़े | रोक दिया।
- तुम बुजदिल हो, काफिर हो। मुझे घर से इतनी दूर लाकर मुझ पर जुल्म करना चाहते हो।" मेहर ने अधिकारपूर्ण स्वर में कहा।
"तुम घबराओ नहीं, मेहर! आज तक मैंने तुम्हें पाने के लिए क्या-क्या मुसीबतें नहीं उठाई? क्या-क्या झिडकियां नहीं सही? क्या तुम्हें मालूम नहीं? अब अधिक बेताब न बनाओ, मैहर!" जहूर ने उसे और जोर से अपने बाहुपाश में आबद्ध कर लिया_*मेहर ! आज तक जिस चीज को मैं इन्सान बनकर नहीं पा सका। उसे हैवान बनकर हासिल करूंगा।" ____
"मुहब्बत के जोश में न आओ जहूर, अपना धर्म समझने की कोशिश करो। तुम दुश्मन के बेटे हो! मैं तुम्हारी नहीं हो सकती। मैं बगैर अब्बा के हुक्म के कुछ नहीं कर सकती।" मेहर ने झुंझलाकर कहा।
मेहर की विवशता ने जहर को नम्न बना दिया, बोला- "मेरी हालत, मेरी आरजू, मेरी मुरादों की और देखो, मेहर ! मैं बहुत बदनसीब हूं। मैं दिन-रात खून के चूंट पीकर जिंदगी बसिर कर रहा हं और तुम्हें मुझ पर जरा भी तरस नहीं आता?" जहर की आवाज में आजिजी थी—“मेहर मझ पर खफा न हो। इस तरह भवें टेढा न करो...हैं! यह आवाज कैसी? मालूम होता है, कुछ लोग इधर ही आ रहे हैं।"
जहूर और मेहर ने सामने की ओर देखा—कुछ अश्वारोही जिनकी वेशभूषा भले आदमी होने की द्योतक न थी, उन्हीं की और चले आ रहे थे। उन लोगों ने इन दोनों को देख लिया था। उन्हें देखकर जहूर चौंक पड़ा_"ओह! ये तो जंगली डाक मालूम पड़ते हैं, राहगीरों को लूटकर उनका माल-असबाब ले लेना और उन्हें पकड़ कर थोड दाम पर गुलाम की हैसियत से अमीरों के हाथ बेच देना ही इनका काम है। खैर आ जाने दो। घबडाओ नहीं।" कहकर जहूर ने अपनी तलवार संभाली।
मेहर को पीछे कर वह डटकर खड़ा हो गया, एक वीर सिपाही की तरह। डाकुओं का दल पास आकर जहूर पर टूट पड़ा, जहूर की तलवार विजेता की तरह हवा में नाच उठी।
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“घबराऔं नहीं मेहर!" कहते हुए जहूर ने कसकर घोड़े को एड लगाई। पास के पेड_f पर चिडियों का कलरव सुनाई पड रहा था। जंगल की हवा सांय-सांय
करती बह रही थी।
जहूर दो घंटे तक बराबर घोड़े || दौडता रहा। अन्त में मेहर घबराकर बोली-"मैं आजिज आ गई इस सफर से। घोड़े की हालत देखो—बेचारा हाफ रहा है। रोक दो घोड़े। को।"
"तुम थक गईं, मेहर!..." कहकर जहूर ने मेहर को अंक में जोरों से जकड लिया। मेहर का पारा चढ गया। उसकी सांस जोरों से चलने लगी। वह सक्रोध बोली-"तुम, फिर वही शरारत करने लगे...छोड दो मुझे। आखिर तुम्हारा इरादा क्या है?"
"मेरा इरादा?" जहर हंसता हुआ बोला- मेरा इरादा अब एक दुसरी दुनिया बसाने का है, मेहर! जहां सिर्फ हम, तुम और हमारी मुहब्बत हो—मतलब यह कि अब हम और तुम आजाद है और घर से इतनी दूर आ गये हैं कि कोई हमारा पता भी नहीं पा सकता। आओ इस जंगल में इन सुनसान जगह में हम-तुम मिलकर एक हो जाएं।" कहकर जहूर ने घोड़े | रोक दिया।
- तुम बुजदिल हो, काफिर हो। मुझे घर से इतनी दूर लाकर मुझ पर जुल्म करना चाहते हो।" मेहर ने अधिकारपूर्ण स्वर में कहा।
"तुम घबराओ नहीं, मेहर! आज तक मैंने तुम्हें पाने के लिए क्या-क्या मुसीबतें नहीं उठाई? क्या-क्या झिडकियां नहीं सही? क्या तुम्हें मालूम नहीं? अब अधिक बेताब न बनाओ, मैहर!" जहूर ने उसे और जोर से अपने बाहुपाश में आबद्ध कर लिया_*मेहर ! आज तक जिस चीज को मैं इन्सान बनकर नहीं पा सका। उसे हैवान बनकर हासिल करूंगा।" ____
"मुहब्बत के जोश में न आओ जहूर, अपना धर्म समझने की कोशिश करो। तुम दुश्मन के बेटे हो! मैं तुम्हारी नहीं हो सकती। मैं बगैर अब्बा के हुक्म के कुछ नहीं कर सकती।" मेहर ने झुंझलाकर कहा।
मेहर की विवशता ने जहर को नम्न बना दिया, बोला- "मेरी हालत, मेरी आरजू, मेरी मुरादों की और देखो, मेहर ! मैं बहुत बदनसीब हूं। मैं दिन-रात खून के चूंट पीकर जिंदगी बसिर कर रहा हं और तुम्हें मुझ पर जरा भी तरस नहीं आता?" जहर की आवाज में आजिजी थी—“मेहर मझ पर खफा न हो। इस तरह भवें टेढा न करो...हैं! यह आवाज कैसी? मालूम होता है, कुछ लोग इधर ही आ रहे हैं।"
जहूर और मेहर ने सामने की ओर देखा—कुछ अश्वारोही जिनकी वेशभूषा भले आदमी होने की द्योतक न थी, उन्हीं की और चले आ रहे थे। उन लोगों ने इन दोनों को देख लिया था। उन्हें देखकर जहूर चौंक पड़ा_"ओह! ये तो जंगली डाक मालूम पड़ते हैं, राहगीरों को लूटकर उनका माल-असबाब ले लेना और उन्हें पकड़ कर थोड दाम पर गुलाम की हैसियत से अमीरों के हाथ बेच देना ही इनका काम है। खैर आ जाने दो। घबडाओ नहीं।" कहकर जहूर ने अपनी तलवार संभाली।
मेहर को पीछे कर वह डटकर खड़ा हो गया, एक वीर सिपाही की तरह। डाकुओं का दल पास आकर जहूर पर टूट पड़ा, जहूर की तलवार विजेता की तरह हवा में नाच उठी।
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