hotaks444
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मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है
मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ . दोस्तो मैने सोचा था कि कोई लंबी सी कहानी ही शुरू करूँगा लेकिन तब तक कुछ छोटी छोटी कहानियाँ भी पोस्ट कर देता हूँ जिनसे आपका भी मनोरंजन होता रहेगा और गैप भी नही आएगा . तो दोस्तो लीजिए एक तडकती फड़कती कहानी पेशेखिदमत है मज़ा लीजिए .
दोस्तो यह जो स्टोरी मैं आप की खिदमत मैं पेश कर रहा हूँ. यह उस टाइम की स्टोरी है जब के पाकिस्तान मैं जनरल ज़ीया-उल-हक़ की हकूमत थी.
उन दिनो पाकिस्तान मैं बिजली की सूरते हाल आज कल की तरह नही थी.बल्कि उस टाइम हकूमत की कॉसिश थी कि मुल्क के दौर उफ़तदा गावों और कस्बो मैं भी बिजली फरहाम की जाय.इस लिए उन दिनो टीवी पर ऐक आड़ रोज चला करती थी के,
“मेरे गाओं मे बिजली आई है
मेरे गाओं मे बिजली आई है”
मगर मैं जिस गाओं की इस स्टोरी मैं जिकर कर रहा हूँ. वो गाओं डिस्ट्रेक्ट झुंज का वाकीया है. और हकूमती कोशिशो के बावजूद इस इलाक़े के लोग अभी तक बिजली की नहमत से फ़ैज़्याब नही हुवे थे.
इस गाओं के लोग बोहत ही ग़रीब,अनपढ़ और पसमांदा थे और उन का ज़रिया मात्र खेती बाड़ी था.
बिजली ना होने की वजह से यह लोग रात को लालटेन, मोम बत्ती या मिट्टी के दिए जला कर अपना गुज़ारा करते थे.
इस गाओं मैं दो भाई फ़ैज़ अहमद और अकमल ख़ान अपने बच्चों के साथ ऐक ही हवेली मैं इकट्ठे रहते थे.
बड़े भाई फ़ैज़ अहमद के 5 बच्चे थे .जिन में से बड़े तीन तो शादी शुदा थे और वो अपनी फॅमिली के साथ उसी गाओं में लेकिन अलग अलग घरों मे रहते थे.
फ़ैज़ अहमद का साब का छोटा बेटा गुल नवाज़ अहमद और उस की बेटी नुज़्हत बीबी अभी कंवारे थे.
फ़ैज़ अहमद के छोटे अकमल ख़ान के चार बच्चे थे. जिन मैं से दो बारे बेटे शादी शुदा थे और वो गाओं से बाहर दूसरे शेरू में अपनी अपनी फॅमिली के साथ रहते थे.
अकमल ख़ान के भी दो छोटे बच्चे अभी तक कंवारे थे. उस के बेटे का नाम सुल्तान अहमद और बेटी का नाम रुखसाना बीबी है.
चूँकि यह स्टोरी रुखसाना बीबी की आप बीती है.इस लिए मैं अब यह स्टोरी रुखसाना बीबी की ज़ुबानी ही बयान करता हूँ...............................................
मेरा भाई सुल्तान और मेरा ताया ज़ाद गुल नवाज़ दोनो अब जवान थे और वो सारा दिन खेतों में अपने वालिद और चाचा के साथ काम कर के उन का हाथ बँटाते थे.
जब के में और नुसरत घर में अपनी अम्मियों के काम काज में उन की मदद करती थीं.
एक तो चाचा और ताया ज़ाद भाई होने और फिर उपर से हम उमर होने के नाते गुलफाम और सुल्तान दोनो में बहुत अच्छी दोस्ती थी.
इसी तरह नुसरत और मुझ में भी बहनो की तरह प्यार था. और हम दोनो भी एक दूसरे की बहुत अच्छी सहेलियाँ थीं.
हमारे गाँव में उन दिनो देसी शराब की लानत चल पड़ी थी. गाँव के बड़े बुजुर्गों ने पहले पहल इस बुराई को रोकने की कोशिश की
मगर शराब का धंधा करने वाला माफ़िया बहुत ताकतवर था.जिस ने अपने पैसे और असरो रसूख से सब के मुँह बंद करवा दिए.और फिर रफ़्ता रफ़्ता गाँव के जवान तो जवान बूढ़े लोग भी देसी शराब के सरूर से फेज़ाइब होने लगे.
मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ . दोस्तो मैने सोचा था कि कोई लंबी सी कहानी ही शुरू करूँगा लेकिन तब तक कुछ छोटी छोटी कहानियाँ भी पोस्ट कर देता हूँ जिनसे आपका भी मनोरंजन होता रहेगा और गैप भी नही आएगा . तो दोस्तो लीजिए एक तडकती फड़कती कहानी पेशेखिदमत है मज़ा लीजिए .
दोस्तो यह जो स्टोरी मैं आप की खिदमत मैं पेश कर रहा हूँ. यह उस टाइम की स्टोरी है जब के पाकिस्तान मैं जनरल ज़ीया-उल-हक़ की हकूमत थी.
उन दिनो पाकिस्तान मैं बिजली की सूरते हाल आज कल की तरह नही थी.बल्कि उस टाइम हकूमत की कॉसिश थी कि मुल्क के दौर उफ़तदा गावों और कस्बो मैं भी बिजली फरहाम की जाय.इस लिए उन दिनो टीवी पर ऐक आड़ रोज चला करती थी के,
“मेरे गाओं मे बिजली आई है
मेरे गाओं मे बिजली आई है”
मगर मैं जिस गाओं की इस स्टोरी मैं जिकर कर रहा हूँ. वो गाओं डिस्ट्रेक्ट झुंज का वाकीया है. और हकूमती कोशिशो के बावजूद इस इलाक़े के लोग अभी तक बिजली की नहमत से फ़ैज़्याब नही हुवे थे.
इस गाओं के लोग बोहत ही ग़रीब,अनपढ़ और पसमांदा थे और उन का ज़रिया मात्र खेती बाड़ी था.
बिजली ना होने की वजह से यह लोग रात को लालटेन, मोम बत्ती या मिट्टी के दिए जला कर अपना गुज़ारा करते थे.
इस गाओं मैं दो भाई फ़ैज़ अहमद और अकमल ख़ान अपने बच्चों के साथ ऐक ही हवेली मैं इकट्ठे रहते थे.
बड़े भाई फ़ैज़ अहमद के 5 बच्चे थे .जिन में से बड़े तीन तो शादी शुदा थे और वो अपनी फॅमिली के साथ उसी गाओं में लेकिन अलग अलग घरों मे रहते थे.
फ़ैज़ अहमद का साब का छोटा बेटा गुल नवाज़ अहमद और उस की बेटी नुज़्हत बीबी अभी कंवारे थे.
फ़ैज़ अहमद के छोटे अकमल ख़ान के चार बच्चे थे. जिन मैं से दो बारे बेटे शादी शुदा थे और वो गाओं से बाहर दूसरे शेरू में अपनी अपनी फॅमिली के साथ रहते थे.
अकमल ख़ान के भी दो छोटे बच्चे अभी तक कंवारे थे. उस के बेटे का नाम सुल्तान अहमद और बेटी का नाम रुखसाना बीबी है.
चूँकि यह स्टोरी रुखसाना बीबी की आप बीती है.इस लिए मैं अब यह स्टोरी रुखसाना बीबी की ज़ुबानी ही बयान करता हूँ...............................................
मेरा भाई सुल्तान और मेरा ताया ज़ाद गुल नवाज़ दोनो अब जवान थे और वो सारा दिन खेतों में अपने वालिद और चाचा के साथ काम कर के उन का हाथ बँटाते थे.
जब के में और नुसरत घर में अपनी अम्मियों के काम काज में उन की मदद करती थीं.
एक तो चाचा और ताया ज़ाद भाई होने और फिर उपर से हम उमर होने के नाते गुलफाम और सुल्तान दोनो में बहुत अच्छी दोस्ती थी.
इसी तरह नुसरत और मुझ में भी बहनो की तरह प्यार था. और हम दोनो भी एक दूसरे की बहुत अच्छी सहेलियाँ थीं.
हमारे गाँव में उन दिनो देसी शराब की लानत चल पड़ी थी. गाँव के बड़े बुजुर्गों ने पहले पहल इस बुराई को रोकने की कोशिश की
मगर शराब का धंधा करने वाला माफ़िया बहुत ताकतवर था.जिस ने अपने पैसे और असरो रसूख से सब के मुँह बंद करवा दिए.और फिर रफ़्ता रफ़्ता गाँव के जवान तो जवान बूढ़े लोग भी देसी शराब के सरूर से फेज़ाइब होने लगे.