desiaks
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“आपको अन्देशा था कि क्लब महाडिक के हाथ से निकल गयी तो आपकी शादी नहीं होगी ।” - इन्स्पेक्टर बोला - “इसलिये आपने बाकायदा योजना बनाकर देवसरे का कत्ल कर दिया ।”
“क्या मुश्किल काम था ? मैं उसे उसकी कार पर रिजॉर्ट में लायी और यहां भीतर उसके साथ आयी । मैंने उससे पहले दरख्वास्त की कि वो क्लब को बेचने का इरादा छोड़ दे क्योंकि उसमें मिस्टर महाडिक की बर्बादी छुपी थी । उसने मेरी दरख्वास्त को हंसी में उड़ा दिया । फिर मैंने अपने बैग में से गन निकाल कर उस पर तान दी । वो डर गया । गुहार करने लगा कि मैं गोली न चलाऊं । मैंने फिर कहा कि वो क्लब बेचने का अपना इरादा नहीं छोड़ेगा तो उसकी मौत निश्चित थी । वो बोला वो क्लब को महाडिक को ही ऐसी शर्तों पर बेच देगा कि उसे कीमत अदा करने में कोई दिक्कत पेश नहीं आयेगी । बोला, उसकी वाल सेफ में सेल डीड मौजूद था जिस पर वो उसी वक्त साइन करने को तैयार था । बोला, वो खुद साइन करके सेल डीड मुझे सौंप देगा और मैं बाद में उस पर महाडिक के साइन करा के ला सकती थी । मैं बहुत खुश हुई कि बूढे को आखिरकार अक्ल आ गयी थी लेकिन वो तो मेरे साथ चाल चल रहा था । वो तो मुझे बातों में भरमा के अपनी जान बचाने का मौका तलाशना चाहता था । मिस्टर महाडिक के हक में सेल डीड साइन करने का उसका कोई इरादा असल में था ही नहीं । बार बार यही कहता कि वो अभी सेल डीड साइन करता था वो वाल सेफ पर पहुंचा, पुश बटन डायल पर कोई कोड पंच करके उसने बाहर का दरवाजा खोला । तब मैं ऐन उसके पीछे खड़ी थी...”
“मीनू !” - महाडिक ने फरियाद की - “चुप हो जा ।”
लेकिन वो तो जैसे तब तक किसी सम्मोहन में जकड़ी जा चुकी थी ।
“फिर वो बोला” - वो कहती रही - “कि सेफ का दूसरा दरवाजा चाबी लगाने से खुलता था और चाबी उसकी जेब में थी । मैंने बोला वो जेब से चाबी निकाल सकता था । उसने एक्शन तो जेब से चाबी निकालने का किया लेकिन एकाएक मेरे रिवॉल्वर वाले हाथ पर झपट पड़ा । लकिन वो बूढा था, वो मेरे जितनी तेजी और फुर्ती नहीं दिखा सकता था । मैंने उसे जोर का धक्का दिया तो वो लड़खड़ाता हुआ टेलीविजन के सामने पड़ी कुर्सी पर जाकर ढेर हुआ । उसके उस एक्शन से मैं पक्का समझ गयी कि बूढे का अपनी जिद छोड़ कर मिस्टर महाडिक को फेवर करने का कोई इरादा नहीं था और अब उसकी मौत ही हमारी समस्या का हल था । मैंने टी.वी. ऑन किया और उसके पीछे पहुंच गयी । जब टी.वी. की आवाज कमरे में गूंजने लगी तो मैंने उसे शूट कर दिया ।”
वो खामोश हो गयी ।
कमरे में तब मरघट का सा सन्नाटा था ।
“घिमिरे ने तुम्हें यहां से निकलते देखा था ।” - फिर इन्स्पेक्टर यूं बोला जैसे उसे प्रॉम्प्ट कर रहा हो ।
मुकेश को उस घड़ी लग रहा था कि उसने इसी बात में बचाव की कोई सूरत तलाश करनी थी कि मीनू के हाथ में थमी गन की नाल का रुख तो उसकी तरफ था लेकिन उसकी तवज्जो तब इन्स्पेक्टर की तरफ थी ।
“हां ।” - वो कह रही थी - “टेलीविजन चलता होने की वजह से गोली चलने की आवाज उसने नहीं सुनी हो सकती थी लेकिन बाद में उसे मालूम हो के रहना था कि पीछे क्या हुआ था और किसके किये हुआ था ! वो भीतर घुसा आया होता तो मैं उसे यकीनन जान से मार डालती लेकिन सरेराह मैं उसे शूट नहीं कर सकती थी । मैं उसे नजरअन्दाज करके चली जाती, मेरे पीछे वो भीतर जाता, देवसरे को भीतर मरा पड़ा पाता तो वो फौरन पुलिस को फोन करता कि अभी अभी मैंने देवसरे को शूट कर दिया था । उस घड़ी उस शख्स को कैसे भी सम्भालना मेरे लिये जरूरी था । बाद में कुछ भी होता लेकिन उस घड़ी उसका मुंह बन्द करने के लिये कुछ करना मेरे लिये निहायत जरूरी था ।”
“क्या किया आपने ?” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“मैं उसके सामने जा खड़ी हुई और बोली - ‘मिस्टर घिमिरे, मैंने अभी तुम्हारे एम्पलायर को शूट कर दिया है और महसूस करो तो मैंने तुम्हारे पर बहुत बड़ा अहसान किया है । अब बरायमेहरबानी इस बाबत पुलिस को तब तक कुछ न बताना जब तक मेरा तुम्हारे से विस्तृत वार्तालाप न हो जाये’ । उसके बाद मैं कार पर सवार हुई और क्लब लौट आयी । कितनी आसानी से बूढे का खेल खत्म हो गया । विघ्न भी पड़ा तो उसका हल अपने आप ही निकल आया । फिर रात को जब पुलिस मुझे गिरफ्तार करने न पहुंची तो मुझे बिलकुल ही यकीन हो गया कि घिमिरे ने मेरी बाबत अपनी जुबान नहीं खोली थी ।”
“फिर उसका कत्ल क्यों किया ?”
“क्योंकि वो बहुत दब्बू और डरपोक आदमी था । उसने जुबान बन्द रखी थी लेकिन किसी को उस पर जरा भी शक हो जाने पर उसकी जुबान जबरन खुलवाई जा सकती थी । यानी कि वो खतरा तलवार बन कर हमेशा मेरे सिर पर लटका रहता ।”
“आपने उससे विस्तृत वार्तालाप के लिये कहा था । किया तो होगा ऐसा वार्तालाप ?”
“अगले दिन मैं उससे मिली थी । तब वो मुझे बहुत टेंस लगा था । अपने एम्पलायर की मौत का उसे बहुत सदमा लगा हो ऐसी बात चाहे नहीं थी लेकिन गिल्टी कांशस का मारा वो साफ लग रहा था । उसकी कांशस पर ये बोझ भी था कि वो कातिल को जानता था फिर भी उसकी बाबत खामोश था और ये अहसास भी था कि अहसान तो मेरा सच में ही था उस पर । बोला कि उसे संतोष था कि अब वो बहार विला खरीद सकता था । मेरे कुरेदने पर अपनी कांशस पर बोझ की बात उसने कुबूल की लेकिन साथ ही ये भी कहा कि थोड़े किये वो अपनी जुबान नहीं खोलेगा ।”
“थोड़े किये ?”
“हां । इस बात से मेरा भी माथा ठनका था लेकिन उसे थोड़ी और ढील देने का फैसला मैंने फिर भी किया था ।”
“फिर ?”
“फिर आज उसने मुझे फोन किया और बोला कि उसे अपनी गिरफ्तारी का अन्देशा था । वो आवाज से ही ऐसा खौफजदा लग रहा था कि मुझे यकीन हो गया कि गिरफ्तार वो किसी और वजह से होगा और बक वो कुछ और देगा । मैंने उसे हौसला रखने को कहा और समझाया कि मेरे पास एक तरकीब थी जिस पर वो अमल करता तो उसकी गिरफ्तारी का अन्देशा खत्म हो सकता था । मेरी उस बात से वो आश्वस्त हुआ । तब मैंने मुलाकात के लिये उसे उस जगह पहुंचने के लिये राजी किया जहां कि उसकी कार खड़ी पायी थी । खुद मैंने स्विमिंग कास्ट्यूम पहना, अपने बीच बैग में गन रखी, यहां के बीच से टहलती हुई पब्लिक बीच पर पहुंची, वहां से मौकायवारदात पर पहुंची, जाकर घिमिरे की कार में उसकी बगल में बैठी, उसे शूट किया और बैग झुलाती, टहलती वापिस लौट आयी । ईजी ।”
“लिहाजा मच्छर मसलना और आदमजात की जान लेना एक ही मसला हुआ आपके लिये ।”
“जो शख्स एक कत्ल कर चुका हो, उसके लिये ये है ही एक ही मसला । अभी यहां आगे जो होगा वो भी इसीलिये होगा ।”
“आप तीन खून और करेंगी ?”
“मुझे अहसास था कि आगे ऐसी कोई जरूरत सामने आयेगी इसीलिये मैंने इस गन को सम्भाल के रखा हुआ था ।”
“इतने कत्ल करने के बाद - जिसमें एक पुलिस ऑफिसर का कत्ल भी शामिल होगा - फांसी के तख्ते पर झूलने से आपको भगवान भी नहीं बचा सकेगा ।”
“फांसी के तख्ते पर तो मैं पहुंचते पहुंचते पहुंचूंगी, अभी तो मैंने जेल जाने से बचना है जिसकी कि मुझे दहशत है ।”
“आप नहीं बच पायेंगी ।”
तब तक मीनू के गन वाले हाथ पर झपटने की मुकेश पूरी तैयारी कर चुका था, पूरी हिम्मत संजो चुका था लेकिन पहले ही कुछ और हो गया ।
मीनू की बगल में बैठा महाडिक ही बाज की तरह उसके गन वाले हाथ पर झपट पड़ा । पलक झपकते गन मीनू की गिरफ्त से निकल कर महाडिक के हाथ में पहुंच गयी ।
“वैलडन, मिस्टर महाडिक ।” - उठने का उपक्रम करता इन्स्पेक्टर प्रशंसात्मक स्वर में बोला ।
“खबरदार !” - महाडिक हिंसक भाव से बोला ।
इन्स्पेक्टर जैसे हवा में ही फ्रीज हो गया ।
महाडिक ने अपनी जेब में हाथ डाला और उसमें से एक नन्हीं सी रिवॉल्वर बरामद की । उसने रिवॉल्वर इन्स्पेक्टर की तरफ तान दी ।
“वहीं बैठे रहो चुपचाप ।” - उसने आदेश दिया ।
असहाय भाव से गर्दन हिलाते हुए इन्स्पेक्टर ने अपना शरीर कुर्सी पर वापिस ढीला छोड़ दिया ।
मीनू अपने बायें हाथ से अपनी दायीं कलाई मसल रही थी और आश्चर्य और असमंजसपूर्ण भाव से महाडिक की तरफ देख रही थी ।
महाडिक ने मीनू की गन में से गोलियों के क्लिप को लूज किया और अंगूठे के एक्शन से एक एक गोली बाहर गिराने लगा । क्लिप खाली होने तक चार गोलियां नीचे फर्श पर गिर चुकी थीं । उसने खाली क्लिप को वापिस गन में लगाया और गन वापिस मीनू को थमा दी ।
“क्यों किया ?” - वो गुस्से से बोली ।
“क्या क्यों किया ?” - महाडिक शान्ति से बोला - “गोलियां क्यों निकालीं ?”
“गन क्यों छीनी ?”
“क्योंकि इसी में तुम्हारी भलाई थी । जो खूनखराबा करने को तुम आमादा थीं वो तुम्हें बिल्कुल ही खत्म कर देता ।”
“अभी कुछ बाकी दिखाई देता है ?”
“हां । सब कुछ बाकी दिखाई देता है ।”
“क्या ?”
“यहां जो कुछ हुआ, सब जुबानी जमा खर्च हुआ । तुम्हारे खिलाफ थ्योरी के आर्कीटैक्ट माथुर ने खुद अपनी जुबानी कुबूल किया कि ये साबित कुछ नहां कर सकता । तुम्हारे खिलाफ जो वाहिद सबूत है वो ये गन है जिसे तुमने पहले अपने पास रखे रहने की और अब इन पर तानने की हिमाकत की ।”
“और वो जो मैंने सब कुबूल किया ?”
“नहीं साबित किया जा सकता कि तुमने कुछ कुबूल किया, इसलिये समझ लो कि तुमने कुछ कुबूल नहीं किया ।”
“लेकिन...”
“पुलिस तुम्हे गिरफ्तार कर सकती है - किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है शक के बिना पर, ऐसे अख्तियारात है पुलिस को - लेकिन तुम्हारे खिलाफ कोई केस खड़ा नहीं कर सकती इसलिये गिरफ्तार किये नहीं रह सकती । पहले ही पेशी में तुम्हारी जमानत हो जायेगी और फिर तुम्हारा सन्देह लाभ पाकर बरी हो जाना महज वक्त की बात होगा । माथुर को देखो - ये वकील है - इसके मुंह पर लिखा है कि जो मैं कह रहा हूं, सच कह रहा हूं ।”
मीनू ने मुकेश की तरफ देखा और सहमति में सिर हिलाया ।
“तुम्हारे खिलाफ पुख्ता कुछ है तो यो गन है जिसको अभी भी गायब कर देगी तो पीछे कुछ बाकी नहीं बचेगा ।”
“गायब ! गायब कर दूं ?”
“जो कि कोई मुश्किल काम नहीं । सामने इतना बड़ा समुद्र है, वहां से गन इन्हें ढूंढे नहीं मिलेगी ।”
“मैं... मैं क्या करूं ?”
“अभी भी पूछ रही हो क्या करूं ? इस गन के साथ यहां से निकल जाओ । मैं गारन्टी करता हूं कोई तुम्हारे पीछे नहीं आयेगा ।”
“गन... समुद्र में फेंक दूं ?”
“ज्यादा से ज्यादा दूर । इतनी दूर कि गहरे समुद्र में ये रेत के नीचे दब के रह जाये । समझीं ।”
सहमति में सिर हिलाती वो उठ खड़ी हुई ।
“महाडिक” - इन्सपेक्टर सख्ती से बोला - “तुम इसे गलत सलाह दे रहे हो ।”
महाडिक खामोश रहा ।
“ये नहीं बच सकती । कायदे कानून के सात इतनी दीदादिलेरी न कभी चली है, न चलेगी । कोई फर्क पड़ेगा तो ये कि कातिल के मददगार के तौर पर तुम भी लम्बे नपोगे ।”
“टु एड एण्ड अबैट ए क्रिमिनल इज आलसो ए सीरियस क्राइम ।” - मुकेश बोला ।
“सुना तुमने ! इसलिये अगर तुम्हारे में जरा भी अक्ल है और अगर तुम इसके हितचिन्तक हो तो इसे अपने जुर्म की लीपापोती की नहीं, अपने आपको कानून के हवाले करने की सलाह दो । अभी तुमने इसे एक माकूल सलाह दी थी जब ये कहा था कि खूनखराबा करने को ये आमादा थी, वो इसे बिलकुल ही खत्म कर देता । अब ऐसी ही माकूल और नेक सलाह इसे ये दो कि ये आलायकत्ल को मेरे हवाले करने दे और मुल्क के कानून को अपना रास्ता अख्तियार करने दे । बदले में मैं वादा करता हूं कि जो किरदार अभी तुमने निभाया है, मैं उसे भूल जाऊंगा और अदालत में इसके लिये कम से कम सजा की सिफारिश करूंगा ।”
“क्या मुश्किल काम था ? मैं उसे उसकी कार पर रिजॉर्ट में लायी और यहां भीतर उसके साथ आयी । मैंने उससे पहले दरख्वास्त की कि वो क्लब को बेचने का इरादा छोड़ दे क्योंकि उसमें मिस्टर महाडिक की बर्बादी छुपी थी । उसने मेरी दरख्वास्त को हंसी में उड़ा दिया । फिर मैंने अपने बैग में से गन निकाल कर उस पर तान दी । वो डर गया । गुहार करने लगा कि मैं गोली न चलाऊं । मैंने फिर कहा कि वो क्लब बेचने का अपना इरादा नहीं छोड़ेगा तो उसकी मौत निश्चित थी । वो बोला वो क्लब को महाडिक को ही ऐसी शर्तों पर बेच देगा कि उसे कीमत अदा करने में कोई दिक्कत पेश नहीं आयेगी । बोला, उसकी वाल सेफ में सेल डीड मौजूद था जिस पर वो उसी वक्त साइन करने को तैयार था । बोला, वो खुद साइन करके सेल डीड मुझे सौंप देगा और मैं बाद में उस पर महाडिक के साइन करा के ला सकती थी । मैं बहुत खुश हुई कि बूढे को आखिरकार अक्ल आ गयी थी लेकिन वो तो मेरे साथ चाल चल रहा था । वो तो मुझे बातों में भरमा के अपनी जान बचाने का मौका तलाशना चाहता था । मिस्टर महाडिक के हक में सेल डीड साइन करने का उसका कोई इरादा असल में था ही नहीं । बार बार यही कहता कि वो अभी सेल डीड साइन करता था वो वाल सेफ पर पहुंचा, पुश बटन डायल पर कोई कोड पंच करके उसने बाहर का दरवाजा खोला । तब मैं ऐन उसके पीछे खड़ी थी...”
“मीनू !” - महाडिक ने फरियाद की - “चुप हो जा ।”
लेकिन वो तो जैसे तब तक किसी सम्मोहन में जकड़ी जा चुकी थी ।
“फिर वो बोला” - वो कहती रही - “कि सेफ का दूसरा दरवाजा चाबी लगाने से खुलता था और चाबी उसकी जेब में थी । मैंने बोला वो जेब से चाबी निकाल सकता था । उसने एक्शन तो जेब से चाबी निकालने का किया लेकिन एकाएक मेरे रिवॉल्वर वाले हाथ पर झपट पड़ा । लकिन वो बूढा था, वो मेरे जितनी तेजी और फुर्ती नहीं दिखा सकता था । मैंने उसे जोर का धक्का दिया तो वो लड़खड़ाता हुआ टेलीविजन के सामने पड़ी कुर्सी पर जाकर ढेर हुआ । उसके उस एक्शन से मैं पक्का समझ गयी कि बूढे का अपनी जिद छोड़ कर मिस्टर महाडिक को फेवर करने का कोई इरादा नहीं था और अब उसकी मौत ही हमारी समस्या का हल था । मैंने टी.वी. ऑन किया और उसके पीछे पहुंच गयी । जब टी.वी. की आवाज कमरे में गूंजने लगी तो मैंने उसे शूट कर दिया ।”
वो खामोश हो गयी ।
कमरे में तब मरघट का सा सन्नाटा था ।
“घिमिरे ने तुम्हें यहां से निकलते देखा था ।” - फिर इन्स्पेक्टर यूं बोला जैसे उसे प्रॉम्प्ट कर रहा हो ।
मुकेश को उस घड़ी लग रहा था कि उसने इसी बात में बचाव की कोई सूरत तलाश करनी थी कि मीनू के हाथ में थमी गन की नाल का रुख तो उसकी तरफ था लेकिन उसकी तवज्जो तब इन्स्पेक्टर की तरफ थी ।
“हां ।” - वो कह रही थी - “टेलीविजन चलता होने की वजह से गोली चलने की आवाज उसने नहीं सुनी हो सकती थी लेकिन बाद में उसे मालूम हो के रहना था कि पीछे क्या हुआ था और किसके किये हुआ था ! वो भीतर घुसा आया होता तो मैं उसे यकीनन जान से मार डालती लेकिन सरेराह मैं उसे शूट नहीं कर सकती थी । मैं उसे नजरअन्दाज करके चली जाती, मेरे पीछे वो भीतर जाता, देवसरे को भीतर मरा पड़ा पाता तो वो फौरन पुलिस को फोन करता कि अभी अभी मैंने देवसरे को शूट कर दिया था । उस घड़ी उस शख्स को कैसे भी सम्भालना मेरे लिये जरूरी था । बाद में कुछ भी होता लेकिन उस घड़ी उसका मुंह बन्द करने के लिये कुछ करना मेरे लिये निहायत जरूरी था ।”
“क्या किया आपने ?” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“मैं उसके सामने जा खड़ी हुई और बोली - ‘मिस्टर घिमिरे, मैंने अभी तुम्हारे एम्पलायर को शूट कर दिया है और महसूस करो तो मैंने तुम्हारे पर बहुत बड़ा अहसान किया है । अब बरायमेहरबानी इस बाबत पुलिस को तब तक कुछ न बताना जब तक मेरा तुम्हारे से विस्तृत वार्तालाप न हो जाये’ । उसके बाद मैं कार पर सवार हुई और क्लब लौट आयी । कितनी आसानी से बूढे का खेल खत्म हो गया । विघ्न भी पड़ा तो उसका हल अपने आप ही निकल आया । फिर रात को जब पुलिस मुझे गिरफ्तार करने न पहुंची तो मुझे बिलकुल ही यकीन हो गया कि घिमिरे ने मेरी बाबत अपनी जुबान नहीं खोली थी ।”
“फिर उसका कत्ल क्यों किया ?”
“क्योंकि वो बहुत दब्बू और डरपोक आदमी था । उसने जुबान बन्द रखी थी लेकिन किसी को उस पर जरा भी शक हो जाने पर उसकी जुबान जबरन खुलवाई जा सकती थी । यानी कि वो खतरा तलवार बन कर हमेशा मेरे सिर पर लटका रहता ।”
“आपने उससे विस्तृत वार्तालाप के लिये कहा था । किया तो होगा ऐसा वार्तालाप ?”
“अगले दिन मैं उससे मिली थी । तब वो मुझे बहुत टेंस लगा था । अपने एम्पलायर की मौत का उसे बहुत सदमा लगा हो ऐसी बात चाहे नहीं थी लेकिन गिल्टी कांशस का मारा वो साफ लग रहा था । उसकी कांशस पर ये बोझ भी था कि वो कातिल को जानता था फिर भी उसकी बाबत खामोश था और ये अहसास भी था कि अहसान तो मेरा सच में ही था उस पर । बोला कि उसे संतोष था कि अब वो बहार विला खरीद सकता था । मेरे कुरेदने पर अपनी कांशस पर बोझ की बात उसने कुबूल की लेकिन साथ ही ये भी कहा कि थोड़े किये वो अपनी जुबान नहीं खोलेगा ।”
“थोड़े किये ?”
“हां । इस बात से मेरा भी माथा ठनका था लेकिन उसे थोड़ी और ढील देने का फैसला मैंने फिर भी किया था ।”
“फिर ?”
“फिर आज उसने मुझे फोन किया और बोला कि उसे अपनी गिरफ्तारी का अन्देशा था । वो आवाज से ही ऐसा खौफजदा लग रहा था कि मुझे यकीन हो गया कि गिरफ्तार वो किसी और वजह से होगा और बक वो कुछ और देगा । मैंने उसे हौसला रखने को कहा और समझाया कि मेरे पास एक तरकीब थी जिस पर वो अमल करता तो उसकी गिरफ्तारी का अन्देशा खत्म हो सकता था । मेरी उस बात से वो आश्वस्त हुआ । तब मैंने मुलाकात के लिये उसे उस जगह पहुंचने के लिये राजी किया जहां कि उसकी कार खड़ी पायी थी । खुद मैंने स्विमिंग कास्ट्यूम पहना, अपने बीच बैग में गन रखी, यहां के बीच से टहलती हुई पब्लिक बीच पर पहुंची, वहां से मौकायवारदात पर पहुंची, जाकर घिमिरे की कार में उसकी बगल में बैठी, उसे शूट किया और बैग झुलाती, टहलती वापिस लौट आयी । ईजी ।”
“लिहाजा मच्छर मसलना और आदमजात की जान लेना एक ही मसला हुआ आपके लिये ।”
“जो शख्स एक कत्ल कर चुका हो, उसके लिये ये है ही एक ही मसला । अभी यहां आगे जो होगा वो भी इसीलिये होगा ।”
“आप तीन खून और करेंगी ?”
“मुझे अहसास था कि आगे ऐसी कोई जरूरत सामने आयेगी इसीलिये मैंने इस गन को सम्भाल के रखा हुआ था ।”
“इतने कत्ल करने के बाद - जिसमें एक पुलिस ऑफिसर का कत्ल भी शामिल होगा - फांसी के तख्ते पर झूलने से आपको भगवान भी नहीं बचा सकेगा ।”
“फांसी के तख्ते पर तो मैं पहुंचते पहुंचते पहुंचूंगी, अभी तो मैंने जेल जाने से बचना है जिसकी कि मुझे दहशत है ।”
“आप नहीं बच पायेंगी ।”
तब तक मीनू के गन वाले हाथ पर झपटने की मुकेश पूरी तैयारी कर चुका था, पूरी हिम्मत संजो चुका था लेकिन पहले ही कुछ और हो गया ।
मीनू की बगल में बैठा महाडिक ही बाज की तरह उसके गन वाले हाथ पर झपट पड़ा । पलक झपकते गन मीनू की गिरफ्त से निकल कर महाडिक के हाथ में पहुंच गयी ।
“वैलडन, मिस्टर महाडिक ।” - उठने का उपक्रम करता इन्स्पेक्टर प्रशंसात्मक स्वर में बोला ।
“खबरदार !” - महाडिक हिंसक भाव से बोला ।
इन्स्पेक्टर जैसे हवा में ही फ्रीज हो गया ।
महाडिक ने अपनी जेब में हाथ डाला और उसमें से एक नन्हीं सी रिवॉल्वर बरामद की । उसने रिवॉल्वर इन्स्पेक्टर की तरफ तान दी ।
“वहीं बैठे रहो चुपचाप ।” - उसने आदेश दिया ।
असहाय भाव से गर्दन हिलाते हुए इन्स्पेक्टर ने अपना शरीर कुर्सी पर वापिस ढीला छोड़ दिया ।
मीनू अपने बायें हाथ से अपनी दायीं कलाई मसल रही थी और आश्चर्य और असमंजसपूर्ण भाव से महाडिक की तरफ देख रही थी ।
महाडिक ने मीनू की गन में से गोलियों के क्लिप को लूज किया और अंगूठे के एक्शन से एक एक गोली बाहर गिराने लगा । क्लिप खाली होने तक चार गोलियां नीचे फर्श पर गिर चुकी थीं । उसने खाली क्लिप को वापिस गन में लगाया और गन वापिस मीनू को थमा दी ।
“क्यों किया ?” - वो गुस्से से बोली ।
“क्या क्यों किया ?” - महाडिक शान्ति से बोला - “गोलियां क्यों निकालीं ?”
“गन क्यों छीनी ?”
“क्योंकि इसी में तुम्हारी भलाई थी । जो खूनखराबा करने को तुम आमादा थीं वो तुम्हें बिल्कुल ही खत्म कर देता ।”
“अभी कुछ बाकी दिखाई देता है ?”
“हां । सब कुछ बाकी दिखाई देता है ।”
“क्या ?”
“यहां जो कुछ हुआ, सब जुबानी जमा खर्च हुआ । तुम्हारे खिलाफ थ्योरी के आर्कीटैक्ट माथुर ने खुद अपनी जुबानी कुबूल किया कि ये साबित कुछ नहां कर सकता । तुम्हारे खिलाफ जो वाहिद सबूत है वो ये गन है जिसे तुमने पहले अपने पास रखे रहने की और अब इन पर तानने की हिमाकत की ।”
“और वो जो मैंने सब कुबूल किया ?”
“नहीं साबित किया जा सकता कि तुमने कुछ कुबूल किया, इसलिये समझ लो कि तुमने कुछ कुबूल नहीं किया ।”
“लेकिन...”
“पुलिस तुम्हे गिरफ्तार कर सकती है - किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है शक के बिना पर, ऐसे अख्तियारात है पुलिस को - लेकिन तुम्हारे खिलाफ कोई केस खड़ा नहीं कर सकती इसलिये गिरफ्तार किये नहीं रह सकती । पहले ही पेशी में तुम्हारी जमानत हो जायेगी और फिर तुम्हारा सन्देह लाभ पाकर बरी हो जाना महज वक्त की बात होगा । माथुर को देखो - ये वकील है - इसके मुंह पर लिखा है कि जो मैं कह रहा हूं, सच कह रहा हूं ।”
मीनू ने मुकेश की तरफ देखा और सहमति में सिर हिलाया ।
“तुम्हारे खिलाफ पुख्ता कुछ है तो यो गन है जिसको अभी भी गायब कर देगी तो पीछे कुछ बाकी नहीं बचेगा ।”
“गायब ! गायब कर दूं ?”
“जो कि कोई मुश्किल काम नहीं । सामने इतना बड़ा समुद्र है, वहां से गन इन्हें ढूंढे नहीं मिलेगी ।”
“मैं... मैं क्या करूं ?”
“अभी भी पूछ रही हो क्या करूं ? इस गन के साथ यहां से निकल जाओ । मैं गारन्टी करता हूं कोई तुम्हारे पीछे नहीं आयेगा ।”
“गन... समुद्र में फेंक दूं ?”
“ज्यादा से ज्यादा दूर । इतनी दूर कि गहरे समुद्र में ये रेत के नीचे दब के रह जाये । समझीं ।”
सहमति में सिर हिलाती वो उठ खड़ी हुई ।
“महाडिक” - इन्सपेक्टर सख्ती से बोला - “तुम इसे गलत सलाह दे रहे हो ।”
महाडिक खामोश रहा ।
“ये नहीं बच सकती । कायदे कानून के सात इतनी दीदादिलेरी न कभी चली है, न चलेगी । कोई फर्क पड़ेगा तो ये कि कातिल के मददगार के तौर पर तुम भी लम्बे नपोगे ।”
“टु एड एण्ड अबैट ए क्रिमिनल इज आलसो ए सीरियस क्राइम ।” - मुकेश बोला ।
“सुना तुमने ! इसलिये अगर तुम्हारे में जरा भी अक्ल है और अगर तुम इसके हितचिन्तक हो तो इसे अपने जुर्म की लीपापोती की नहीं, अपने आपको कानून के हवाले करने की सलाह दो । अभी तुमने इसे एक माकूल सलाह दी थी जब ये कहा था कि खूनखराबा करने को ये आमादा थी, वो इसे बिलकुल ही खत्म कर देता । अब ऐसी ही माकूल और नेक सलाह इसे ये दो कि ये आलायकत्ल को मेरे हवाले करने दे और मुल्क के कानून को अपना रास्ता अख्तियार करने दे । बदले में मैं वादा करता हूं कि जो किरदार अभी तुमने निभाया है, मैं उसे भूल जाऊंगा और अदालत में इसके लिये कम से कम सजा की सिफारिश करूंगा ।”