Desi Sex Kahani वेवफा थी वो - SexBaba
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Desi Sex Kahani वेवफा थी वो

desiaks

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Aug 28, 2015
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वेवफा थी वो  :heart:

“लॅडीस आंड जेंटल्मेन , प्लीज़ वेलकम ..मिस्टर. विजय चौधरी…चेर्मन ऑफ लक्ष्मी ग्रूप ऑफ कंपनीज़…….प्लीज़ गिव आ बिग राउंड ऑफ
अपलॉज़ फॉर हिम ”

तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हाल गूँज उठा, जिसमें से एक आवाज़ मेरी तालियों की भी थी…मिस्टर.विजय चौधरी अपनी सीट से उठे और सामने स्टेज की तरफ बढ़ गये …स्टेज पर पहुँच कर वो माइक के पास पहुँचे और फिर पीछे को मूड कर एक बार हवा में हाथ हिला कर
सबका अभिवादन किया ………और फिर टेबल के पीछे जाकर माइक के सामने खड़े होकर बोलना शुरू किया….

“थॅंक यू फ्रेंड्स… ऐज चेर्मन ऑफ लक्ष्मी ग्रूप्स , फर्स्ट आइ वुड लाइक टू डिक्लेर हाफ यियर्ली रिज़ल्ट्स ऑफ और कंपनीज़…. लक्ष्मी होटेल्स,
टोटल टर्नओवर ईज़ रूपीज. 415.88 करोड़ , टोटल सेल 213.45 करोड़...एक्सपेंडिचरर्स 123.76 करोड़……..................”

वो बोलते जा रहे थे …और मैं उनके सामने , सबसे आगे की सीट पर बैठा उनकी तरफ देख रहा था …..जो कुछ भी वो कह रहे थे , वो सब मैं पूरे ध्यान से सुन रहा था , मेरे लिए यह पहला मौका था जब मैं किसी कंपनी की जनरल मीटिंग में पार्टिसिपेट कर रहा था….चौधरी साब
बोले जा रहे थे और मैं उनके बोलने के अंदाज और आवाज़ से मन्त्र-मुग्ध होकर उनकी तरफ देखे जा रहा था ….

अचानक बोलते बोलते उन्होने वो किया जिसकी मैने और शायद वहाँ बैठे सभी लोगो ने कल्पना भी नही की थी …..

“ नाउ लॅडीस आंड जेंटल्मेन , आइ वुड लाइक टू इंट्रोड्यूस यू वित माइ सन आंड न्यू वाइस चेर्मन ऑफ लक्ष्मी फाइनान्स कंपनी , मिस्टर.
राजीव चौधरी …..प्लीज़ वेलकम हिम …..”

मैं सुन कर पहले तो अपने कानो पर विश्वास नही कर पाया….फिर तालियों की तेज़ आवाज़ से मैं वापस होश में आया और अपनी जगह पर खड़ा हो गया और फिर पीछे को घूम कर , हाथ हिलाकर सबका अभिवादन करने लगा…..मैं यकीन नही कर पा रहा था कि मैं जो सुन रहा हूँ वही हक़ीकत है…..

मैं अपनी जगह पर वापस बैठ गया , मेरे आस-पास बैठे लोगो ने हाथ मिलाकर मुझे मुबारक-बाद दी ….मिस्टर.चौधरी भी स्टेज से उतर कर वापस अपनी सीट पर , मेरे बगल में आकर बैठ गये…सीट पर बैठ कर उन्होने मेरे कंधे पर अपना हाथ रख कर थप-थपाया और फिर दूसरी तरफ बैठे किसी और आदमी से बातों में लग गये ………..

स्टेज पर अब एक लड़की माइक पर कोई और रिपोर्ट सुना रही थी …..मेरे लिए तो पहले भी यह सब बातें समझ से बाहर थी , और फिर अभी जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो मेरा दिमाग़ मेरा साथ नही दे रहा था ………………..मैं उन सब लोगो से हाथ मिलाने में व्यस्त हो गया जो मेरी सीट के पास आकर मुझे बधाई दे रहे थे ..और मैं बार बार अपनी सीट से उठ कर, उन सभी से हाथ मिलाकर उनकी मुबारकबाद कबूल कर रहा था....
 
सबकी मुबारक बाद स्वीकार करने के बाद मैं वापस सीट पर बैठ गया… सामने स्टेज पर और पूरे हाल में जो कुछ भी हो रहा था..उस से
बेख़बर , मेरा दिमाग़ मुझे बहुत पीछे, सालो पीछे ले गया…..

फ्लॅशबॅक.......................

मिस्टर.विजय चौधरी, जिन्होने अभी मुझे अपना बेटा कहकर संबोधित किया था…यह उनका बड़प्पन ही था जो वो मुझे अपना बेटा मानते थे..पर यह बात मैं, वो और लगभग सभी को मालूम थी कि मेरा और उनका कोई भी खून का रिश्ता नही था… मुझे अभी तक याद है … जब मैने होश संभाला तो अपने आप को इस दुनिया में बिल्कुल अकेला पाया …मैं करीब 7-8 साल का था जब मैने दिल्ली (देल्ही) की सड़को पर खुद को जिंदगी के लिए संघर्ष करते हुए देखा …….मेरे माँ बाप कौन थे , मैं कहाँ पैदा हुआ , कहाँ से आया था …कोई नही जानता था

…….कभी में गाड़ियों को सॉफ करता , कभी सिग्नल पर भीख माँगता और कभी स्टेशन पर जाकर बूट पोलिश करने लगता ……..कुछ यूँ ही मेरी जिंदगी बीत रही थी ….. फिर जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ …यही कोई 10 साल के आस-पास का, मुझे रेलवे स्टेशन के सामने एक ढाबे पर काम मिल गया …….फिर अगले 4 साल तक मैं वहीं पर काम करता रहा ..वहाँ काम करते करते मैने पढ़ाई करने की सोची और रात के स्कूल में अड्मिशन ले लिया ……..मेरा मालिक एक सरदार था जिसे मेरे से बहुत मोहब्बत थी , वो मेरा साथ देता रहा और मैं अपनी पढ़ाई और नौकरी दोनो साथ साथ करता रहा………. , मेरा दिमाग़ सही मायनो में औरो से कुछ अलग ही था,….4 साल ही में मैं वो सब सीख गया
जो दूसरे बच्चे 8-10 साल में भी नही सीख पाते…. फिर किस्मत ने एक और मोड़ खाया….सरदार जी को अपना होटेल वहाँ से शिफ्ट करना पड़ गया…….जहाँ पर होटेल बना हुआ था , वो ज़मीन इल्लीगल थी ……सरदार जी अपना सारा समान ले कर करोल बाग पहुँच गये और वहाँ अपना काम शुरू कर दिया…रेलवे स्टेशन की तरह ये होटेल बहुत बड़ा तो नही था , पर यहाँ आने वाले ग्राहक कुछ दूसरे किस्म के थे ,
यह काम भी चल निकाला …….एक ख़ास बात यह थी कि सरदार जी ने यहाँ सिर्फ़ कुछ ही पुराने लोगो को काम पर रखा था , और उनमें से एक मैं भी था …….......
______________________________
 
#3

एक बार फिर , तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूँज उठा, और साथ ही मैं भी अपनी यादों के सफ़र से वापस आ गया ….मीटिंग ख़तम हो चुकी थी ……सभी लोग अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गये थे….सबसे पहले मिस्टर.चौधरी को हाल से बाहर निकलना था …वो हाल के बीच में से होते हुए पीछे की तरफ चल दिए , और उनके पीछे पीछे मैं और कुछ और लोग भी …सभी लोग खड़े होकर उनका अभिवादन कर रहे थे , साथ ही सभी लोग जो हमारे पास में थे , मुझे मुबारकबाद भी दिए जा रहे थे ….मुझे याद नही कि इस से पहले मैने पहले कभी इतने सारे लोगो से एक दिन में , एक जगह पर हाथ मिलाया हो ……….

हम लोग हाल से बाहर निकल गये ….मिस्टर.चौधरी की गाड़ी BMW बिल्कुल हाल के बाहर उनका वेट कर रही थी …वो गाड़ी की तरफ बढ़े और फिर पीछे मूड कर मेरे से बोले … “ राजीव …तुम मेरे साथ घर चलना चाहोगे ? “

“ सॉरी सर ….इफ़ यू डॉन’ट माइंड , मैं अभी अपने फ्लॅट पर जाना चाहता हूँ …कल सुबह आपसे ऑफीस में मिलता हूँ “

“ इट्स ओके ……….ऐज यू लाइक …..” कह कर वो मुस्कुराए और अपनी गाड़ी में बैठ गये …………साथ ही उनके 2 बॉडी गार्ड्स भी
………फिर गाड़ी आगे बढ़ गयी ….

उनकी गाड़ी वहाँ से हट-ते ही मेरी गाड़ी , होंडा सिटी …..उसकी जगह पर आकर रुकी …ड्राइवर ने उतर कर दरवाज़ा खोला ..मैं गाड़ी में
बैठ गया और गाड़ी आगे को बढ़ गयी……..

गाड़ी में बैठ-ते ही मैं सीट पर पीछे को टेक लगा कर बैठ गया …….गाड़ी बहुत तेज़ स्पीड से आगे की तरफ बढ़ती जा रही थी ……….शहर के बीच में से होती हुई ….दोनो तरफ ऊँची ऊँची बिल्डिंग्स थी…जिनकी रोशनी में पूरा शहर मानो नहाया हुआ था …………बाहर देखते देखते मैं फिर से अतीत में वापस चला गया ………..
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सरदार जी के होटेल की एक और ख़ास बात थी ……. जैसा कि और रेस्टोरेंट्स में भी होता है , ज़्यादा रश केवल सुबह, दो-पहर और रात को होता था…….बाकी समय मैं और बाकी के कुछ और लोग यहाँ-वहाँ टाइम पास करते थे….. सरदार जी के होटेल के बगल में ही एक एलेक्ट्रॉनिक्स की शॉप थी ……जहाँ कम्यूटर्स और मोबाइल रिपेर का काम होता था….आज की तरह , उस समय मोबाइल्स कोई कामन चीज़ नही थी , और इतने सस्ते मोबाइल्स भी उस समय अवेलबल नही थे …….इसलिए बहुत कम , और बहुत ख़ास ग्राहक ही वहाँ आते थे

……….. दुकान का मालिक एक लड़का था , कोई 24-25 साल की उमर का , उसका नाम तो मुझे याद नही , पर सब लोग प्यार से उसको हॅपी कह कर बुलाते थे …और मेरी उस से अच्छि बनती थी ……..मैं अपना ज़्यादा-तर खाली टाइम उसके पास ही बैठ कर काट-ता था ………और धीरे धीरे मेरा इंटेरेस्ट उसके काम में बढ़ने लगा ………उसको देख देख कर ही मुझे मोबाइल्स और कंप्यूटर्स के बारे में काफ़ी कुछ समझ में आने लगा था …………. दिन बीत-ते जा रहे थे ……………सुबह से शाम तक होटेल की नौकरी , बीच बीच में हॅपी के पास
बैठ कर टाइम पास और फिर रात को स्कूल की पढ़ाई ……..फिर एक दिन अचानक ऐसा कुछ हुआ जिस ने मेरी तकदीर बदल कर रख दी ……….. दोपहर का टाइम था ………मैं हॅपी की दुकान पर बैठ हुआ था और वो अपना काम कर रहा था ………….अचानक एक आदमी , शानदार सूट पहने हुए , हॅपी की दुकान पर आ पहुँचा , उसके साथ साथ 2 और भी आदमी थे , शायद उसके बॉडी गार्ड्स थे …………मुझे
बाद में मालूम पड़ा कि उस आदमी का नाम मिस्टर. विजय चौधरी था………
 
हॅपी ने मिस्टर. चौधरी को आते देखा तो उठ कर उनको नमस्ते की ……मिस्टर.चौधरी उसकी दुकान के अंदर आकर बैठ गये ……. “ जी सर ………..कहिए , कैसे आना हुआ आज ………..मुझे से कहा होता तो मैं ही आ जाता ………..” हॅपी अपनी आवाज़ में चाशनी घोलता
हुआ बोल रहा था …..उसके चेहरे से ही मालूम पड़ रहा था कि वो इस आदमी की कितनी इज़्ज़त करता है , या कहिए उनसे डरता है ……….

“ काम ही कुछ ऐसा था , मुझे खुद ही आना पड़ा ……” मिस्टर.चौधरी ने कहा और फिर अपनी जेब से एक मोबाइल फोन निकाल कर हॅपी की तरफ बढ़ा दिया …………..उन दिनो जो हॅंडसेट चलते थे , उन सब से अलग , एक चौड़ा सा और बहुत सारी कीस वाला एक शानदार सा मोबाइल फोन था………… “ मेरा यह हॅंडसेट चलते-चलते अचानक बंद हो गया है हॅपी ………..देख अगर तू कुछ कर सकता है तो ? “
मिस्टर. चौधरी कुछ परेशान सी आवाज़ में बोले ……..

हॅपी ने हॅंडसेट हाथ में लिया……….उसको 2-3 बार उलट पलट कर देखा और फिर उसका बॅक कवर खोल कर चेक करने में जुट गया ………करीब 10 मिनिट तक वो हॅंडसेट में लगा रहा और फिर बोला ………….

“ कहाँ से लिया आपने यह मोबाइल साब ? “

“ यूएस से ………………लास्ट मंत में न्यू यॉर्क गया था , तभी लेकर आया था ………क्यों ? क्या हुआ ? “ मिस्टर.चौधरी बोले

हॅपी एक फीकी से हँसी हंसता हुआ बोला “ फिर तो साब आपको यह हॅंडसेट वहीं से ठीक करवाना पड़ेगा ………….मेरी तो कुछ भी समझ में नही आया “

मिस्टर.चौड़री ने हॅपी को ऐसे देखा जैसे उनको उसका यह मज़ाक पसंद ना आया हो , फिर बोले “ यार , तू एक बार और कोशिश कर के
देख ……….मेरे बहुत सारे इंपॉर्टेंट नंबर्स इस फोन में हैं ……….इसके बगैर तो मेरा बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा “

“ मैने कहा ना साब , यह बिल्कुल लेटेस्ट हॅंडसेट है ……..मैं ही क्या , पूरी दिल्ली में कोई इसको सही नही कर सकता……..” उसके चेहरे पर मायूसी के निशान थे , और उसके साथ ही मिस्टर.चौधरी के चेहरे पर भी ……….

पता नही अचानक मुझे क्या हुआ………मैने दोनो की तरफ एक-एक बार देखा और फिर बोला “ सर…….आप अगर कहें तो , मैं इस मोबाइल को सही कर सकता हूँ “

हापी ने चौंक कर मेरी तरफ देखा और मिस्टर.चौधरी कभी मेरी तरफ और कभी उसकी तरफ देख रहे थे ……….फिर हॅपी बोला “ क्या मज़ाक कर रहा है राजू ? तूने कभी मोबाइल हाथ में भी पकड़ा है ? “

“ नही पकड़ा हॅपी भाई ……….पर आपको सही करते हुए तो बहुत बार देखा है “ मैं पूरे आत्म-विश्वास से बोला……….ना जाने क्यों मुझे
ऐसा लग रहा था कि कुछ ऐसा है जो हॅपी नही पकड़ पा रहा है ………

“ कौन है यह ? “ इस बार मिस्टर.चौधरी बोले …………….उनकी आवाज़ बता रही थी कि वो कितने गंभीर हैं

“ कोई नही है साब ………..यहीं , बगल वाले ढाबे में काम करता है , राजू नाम है इसका “ हॅपी एक अजीब सी हँसी के साथ बोला , मानो मेरा कोई वजूद ही उसकी निगाह में ना हो
 
चौधरी साब सीट से उठ कर मेरे पास आए और फिर नीचे को झुक कर मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोले “ क्यों ? तुमको ऐसा क्यों लगता
है कि तुम इस मोबाइल को सही कर सकते हो “

“ मालूम नही साब , पर मुझे यकीन है कि मैं ऐसा कर सकता हूँ “ मैने उनकी आँखों में आँखें डाल कर बोला…….मुझे खुद भी यकीन नही हो रहा था कि उस समय मेरे अंदर इतना आत्म-विश्वास कहाँ से आ गया था……..

मिस्टर.चौधरी ने कुछ सेकेंड्स तक मेरी तरफ देखा फिर मूड कर हॅपी से बोले “ हॅपी, मोबाइल इस लड़के को ठीक करने दे “

हॅपी ने ऐसे मिस्टर.चौधरी की तरफ देखा जैसे उसे अपने कानो पर यकीन ना हुआ हो “ पर………….साब यह लड़का तो ……” उसकी बात अधूरी ही रह गयी , चौधरी साब ने उसको चुप करते हुए कहा ……..” कोई बात नही , मोबाइल खराब ही तो हो जाएगा ….. एक बार इस को भी कोशिश कर लेने दे “ कह कर वो सामने कुछ दूरी पर पड़ी एक कुर्सी पर जाकर बैठ गये …………

हापी कुछ सेकेंड्स तक मुझे घूरता रहा और फिर अपनी सीट से उठे गया और मुझे वहाँ बैठने का इशारा किया ……..मैं उसकी खाली की हुई कुर्सी पर बैठ गया और वो दुकान से बाहर निकल कर वहीं पहुँच गया जहाँ मिस्टर.चौधरी बैठे हुए थे …………..

मैने मोबाइल को हाथ में लिया , उसको एक बार फिर उलट –पलट कर देखा और फिर उसका बॅक कवर खोल दिया ………….अगले 5 मिनिट तक मैं अपना सर नीचे कर के मोबाइल के 1-1 पार्ट को चेक करता रहा …………..दोस्तो , कभी कभी ऐसा ही होता है कि कोई बड़े से बड़ा एक्सपर्ट किसी ऐसी चीज़ को अनदेखा कर देता है , जिसको कोई अनाड़ी भी पकड़ सकता है ………वही मेरे साथ भी हुआ
…………5 मिनिट बाद ही मेरी समझ में आ गया कि एक बहुत छोटा सा मेकॅनिकल फॉल्ट था जिसकी वजह से मोबाइल काम नही कर रहा था ………एक छोटी सी मेटल स्ट्रीप , जो बॅटरी का करेंट हॅंडसेट तक पहुँचा रही थी , टूट गयी थी ………पर बहुत गौर से देखने पर ही
मालूम पड़ रहा था कि वो मेटल स्ट्रीप टूटी हुई है……………..

मैने एक छोटी सी मेटल स्ट्रीप काटी ………..उसको मोबाइल में फिट किया ………बॅटरी को लगाया ….बॅक कवर फिट किया ………….और धड़कते दिल के साथ मोबाइल को ऑन करने के लिए की को पुश किया …………2 सेकेंड्स बीते , और फिर एक आवाज़
के साथ मोबाइल की स्क्रीन रोशन हो गयी ………….मोबाइल ऑन हो चुका था ……..मोबाइल के ऑन होने की आवाज़ इतनी तो थी ही कि वो उन दोनो के कान तक पहुँच सके .........वो दोनो एक साथ अपनी जगह पर खड़े हो गये , और फिर तेज़ी के साथ मेरी तरफ झपटे .............
 
हम तीनो ही उस समय हैरान थे…………हॅपी इसलिए कि जो काम वो खुद एक एक्सपर्ट होकर नही कर पाया , मैने कैसे कर दिया ……मैं इसलिए कि यह चमत्कार मेरे साथ ही कैसे हुआ ….और मिस्टर.चौधरी इसलिए कि एक ** _** साल के लड़के ने उनका वो मोबाइल सही कर दिया , जिसके सही होने की कोई गुंजाइश नही थी …….

मैने मोबाइल उनकी तरफ बढ़ा दिया ……..वो अगले 2 मिनिट्स तक अपने मोबाइल में उलझे रहे ………..हॅपी मेरे पास आ गया और मेरे कंधे को थप-थपा कर मुझे अपने आप से सटा लिया ………अब वो भी खुश दिखाई दे रहा था …..फिर मिस्टर.चौधरी ने मोबाइल को जेब में रखा और मुझ से बोले …….

“ शाबाश बेटा ……..क्या नाम है तुम्हारा ?”

“ जी ..राजू “

“ कहाँ रहते हो ? “ उन्होने आगे पूच्छा

“ कहीं नही सर , यहीं साथ वाले ढाबे पर काम करता हूँ …रात को वहीं पर ही सो जाता हूँ “ मैने बताया

“ और तुम्हारे माँ-बाप ?” वो मेरे पास आकर बोले

“ नही हैं सर ………….जब से होश संभाला है , अपने आप को अकेला ही पाया है ?” मैं कुछ उदास से स्वर में बोला…

उन्होने एक बार मेरी तरफ देखा ………फिर एक बार हॅपी की तरफ ……और फिर अपना वॉलेट खोला ……..100-100 के कुछ नोट्स निकाले और मेरी तरफ बढ़ा दिए ……..
“ लो …यह रख लो “

मैने चौंक कर उनकी तरफ देखा ………….. फिर बोला “ यह तो बहुत ज़्यादा हैं सर ?“

“ रख लो राजू ………यह पैसे तुम्हारे काम के लिए नही हैं ….. बल्कि मेरा काम खराब नही हुआ , इसके लिए हैं “ कहते हुए उन्होने फिर से
पैसे मेरी तरफ बढ़ाए , पर मैने हाथ आगे नही किया और एक बार हॅपी की तरफ देखा ………….

अब हॅपी ने चौधरी साब से कहा “ राजू सही कह रहा है साब …………..यह काम इतने पैसे का नही है …….” फिर उसने चौधरी साब के हाथ से एक नोट 100 र्स का लेकर अपनी जेब में रख लिया……..

मिस्टर.चौधरी आगे बढ़े और फिर मेरे पास आकर मेरे सर पर एक बार सहलाया ……फिर बोले “ राजू ….बड़ी बात यह नही है कि तुमने यह मोबाइल सही कर दिया……..मैं भी जानता हूँ कि कोई ऐसी चीज़ होगी जो हॅपी की नज़र से चूक गयी होगी …….. और तुमने उस को पकड़
लिया……….बड़ी बात यह है कि तुम्हारे पास तेज़ दिमाग़ और एक आत्म-विश्वास है ……… तुम जानते हो कि तुम क्या कर सकते हो ……और यह खूबी हर किसी में नही होती………”

फिर उन्होने अपना वॉलेट खोल कर एक कार्ड निकाला और मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोले “ यह लो ………..यह मेरा कार्ड है ……आज रात को
मैं बाहर जा रहा हूँ ……शायद 4-5 दिन में वापस आ जाउन्गा …….तुम मुझ से आकर मिलना ….”

फिर वो पलटे और तेज़ी से एक तरफ को चल दिए ……..साथ ही उनके बॉडी गार्ड्स भी …..मैं और हॅपी उनको जाते हुए देखते रहे
…….जब तक वो आगे एक मोड मूड कर हुमारी आँखों से ओझल नही हो गये ………फिर हॅपी ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराने लगा
…………..मैं अभी भी समझ नही पा रहा था कि आज की यह घटना मेरी जिंदगी में क्या बदलाव लाने वाली है …………..
______________________________
 

गाड़ी ने ब्रेक लगाए और मैं फिर से अतीत से वापस लौट कर आ गया……ड्राइवर ने उतर कर दरवाज़ा खोला और मैं गाड़ी से बाहर आकर सामने बनी बड़ी सी बिल्डिंग की तरफ बढ़ गया …….

राज नगर ( काल्पनिक नाम)…..भारत के पश्चिमी तट पर बसा हुआ एक तेज़ी से विकसित हो रहा शहर था…….. यह बिल्डिंग – संजय अपार्टमेंट , जिस में मैं रहता था , राज नगर के साउत सिविल लाइन्स इलाक़े में थी ………… यह काफ़ी पॉश इलाक़ा था ….मेरा फ्लॅट
बिल्डिंग के 5थ फ्लोर पर था …..मैं बिल्डिंग की लॉबी में आया और लिफ्ट से अपने फ्लॅट की तरफ चल दिया………..

5थ फ्लोर पर आकर मैं अपने फ्लॅट के सामने पहुँचा, डोर को अनलॉक किया , और अंदर दाखिल हो गया …….. अगले 15 मिनिट्स मैं कपड़े चेंज करने और फ्रेश होने में लगा दिए …….. फिर फ्रेश होकर मैं बाल्कनी में आकर खड़ा हो गया …….यह बिल्डिंग बीच के बहुत नज़दीक
थी ….कोई 1 किमी दूरी पर……..बाल्कनी पर खड़े होकर दूर नज़र दौड़ाने पर समंदर सॉफ सॉफ दिखाई पड़ रहा था…….

मैं कुछ देर ऐसे ही खड़ा रहा और फिर कमरे के अंदर आकर फोन उठा कर एक नंबर लगाया………..इस बिल्डिंग के सामने एक रेस्टोरेंट था……..मैने रेस्टोरेंट में खाने का ऑर्डर दिया और फिर बाहर बाल्कनी में आ गया ………..इस बार मैं वहाँ पड़ी एक चेयर पर बैठ गया और फिर सामने समंदर की लहरो को देखने लगा …… ऊँची-ऊँची बिल्डिंग्स की रोशिनी समंदर केपानी में पड़ रही थी ….जिस-से ऐसा लग रहा था जैसे काले आसमान में रंग-बिरंगे सितारे चमक रहे हो ……………..समंदर की लहरो को देखते देखते मैं फिर से पुरानी यादों में खो गया …………..

फ्लशबॅक

उस दिन जब सरदार जी वापस आए तो मैने और हॅपी ने उनको सारी बात बताई …….सरदार जी सुनकर बहुत खुश हुए……और बोले “
बेटा..जब भी मौका लगे इस आदमी से मिल कर ज़रूर आना……..क्या मालूम तुझे अपने यहाँ किसी नौकरी पर ही रख ले ….”

मैने सर हिलाया और फिर अपने काम में लग गया …………फिर से वही रुटीन वर्क शुरू हो गये …….टेबल्स की सफाई , बरतनो का इंतेज़ाम ….और ग्राहको के आते ही उनकी फरमाइश को पूरा करना …………..कब रात हो गयी मालूम ही नही पड़ा ….

उस रात को मैं स्कूल नही जा पाया ….. दिन भर बहुत ज़्यादा काम की वजह से थक गया था ….इसलिए जल्दी ही सो गया …..

सुबह उठा तो मेरे लिए कोई भी नयी बात नही थी …..वही रोज मर्रा के काम काज , दोपहर में हॅपी के साथ बैठ कर टाइम पास और फिर शाम का रुटीन वर्क ……

इस ही तरह 7-8 दिन निकल गये ……..मैं लग-भग भूल भी चुका था कि मैने किसी आदमी का मोबाइल सही किया था और उन्होने मुझे अपना कार्ड दिया था ……..

फिर एक दिन ……..मैं हमेशा की तरह दोपहर का काम निपटा कर खाना खा रहा था …तभी ढाबे पर एक आदमी आया …….उसके कपड़े देख कर ही पहचाना जा सकता था कि वो एक ड्राइवर था ……….बिल्कुल सफेद वर्दी और सर पर सफेद कॅप….वो मेरे पास आया और बोला ……….

“ यहाँ पर राजू कौन हैं ? “

मैने खाना खाते खाते कहा “ मैं हूँ राजू ……….बताओ , क्या काम है “

उसने एक बार ऊपर से नीचे तक मुझे देखा और फिर बोला “ तुम्हे चौधरी साब ने बुलवाया है ……….वो तुमसे अभी मिलना चाहते हैं ………”

उसकी बात ढाबे के अंदर बैठे सरदार जी के पास तक भी पहुँच गयी थी …वो भी बाहर आ गये और उस आदमी से बोले “ क्या काम है चौधरी साब को राजू से ?“

“ मुझे क्या मालूम पापा जी …………..मैं तो नौकर आदमी हूँ…….जैसा साब का हुकुम हुआ …….वैसा ही आपको बोल दिया ……….अब आप बताओ क्या करना है ? “

सरदार जी कुछ सेकेंड्स मेरी तरफ देखकर कुछ सोचते रहे और फिर बोले “ तुम रूको ……राजू अभी तुम्हारे साथ चलेगा “

मैने उनकी तरफ देखा ………..उन्होने सर हिलाकर मुझे जैसे एक इशारा किया ………मैं जल्दी जल्दी खाना ख़तम करने लगा…..

5 मिनिट बाद ही मैं एक लंबी सी गाड़ी में बैठ हुआ था……….वो आदमी गाड़ी को चला रहा था और मुझे नही मालूम था कि मैं कहाँ जा रहा
हूँ ……..बस अपने आप पर एक विश्वास था कि जो कुछ भी मेरे साथ होगा , अच्च्छा ही होगा....
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#7

अगले 1 घंटे तक हमारी गाड़ी दिल्ली की सड़को पर दौड़ती रही ….मुझे इतना तो पता चल ही रहा था कि हम लोग साउत देल्ही की तरफ जा रहे हैं….फिर 1 घंटे के बाद गाड़ी एक बड़ी सी बिल्डिंग के कॉंपाउंड में दाखिल हुई और बिल्डिंग के सामने आकर रुक गयी

मैं गाड़ी से उतरा और साथ में ही ड्राइवर भी …. वो बिल्डिंग के अंदर की तरफ बढ़ा और साथ में मैं भी …हम दोनो आगे-पीछे चलते हुए अंदर पहुँचे और फिर एक लिफ्ट में सवार हो गये….ड्राइवर ने 14थ फ्लोर का बटन दबाया और अगले 1 मिनिट में ही हम दोनो 14थ फ्लोर पर खड़े थे……

लिफ्ट से निकलते ही सामने एक बड़ी सी लॉबी थी , जहाँ एक बड़े से दरवाज़े के पास , एक काउंटर के पीछे एक लड़की बैठी हुई थी ….ड्राइवर मुझे साथ लेकर उस लड़की के पास गया और कुछ बोला…लड़की ने इंटरकम उठा कर किसी से बात की और फिर ड्राइवर को
अंदर जाने के इशारा कर दिया ड्राइवर ने उसके पीछे बने हुए कमरे के दरवाज़े को नॉक किया और फिर थोड़ा सा खोला और कहा “ सर, राजू को ले आया हूँ “

“ अंदर भेज दो “ कमरे के अंदर से एक आवाज़ आई

ड्राइवर ने मुझे इशारा किया और मैं उस कमरे के अंदर चला गया

मेरी जिंदगी में यह पहला मौका था जब मेने इतना बड़ा और शानदार कमरा देखा ..इतने बड़े तो शायद ग़रीब लोगो के पूरे घर भी नही होते होंगे , जितना बड़ा वो अकेला ऑफीस था

मिस्टर.चौधरी कमरे के बीच में के बड़ी सी टेबल के पीछे बैठे हुए थे…टेबल के दूसरी तरफ कुछ चेर्स रखी थी , जिनमे से एक पर कोई आदमी बैठ हुआ था …कमरे में एक साइड में एक 7 सीटर सोफा और एक कॉफी टेबल भी पड़ी हुई थी ………मेरे अंदर आते ही मिस्टर.चौधरी ने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर सोफे की तरफ इशारा कर दिया …मैं सोफे पर जाकर बैठ गया… अगले 5 मिनिट तक
मैं चुप-चाप बैठा रहा ….वो दोनो किसी काम में लगे हुए थे…कुछ बात हो रही थी , जो मेरे कानो तक नही आ रही थी …फिर वो दूसरा आदमी अपनी कुर्सी से उठा और कुछ फाइल्स लेकर कमरे से बाहर निकल गया मिस्टर.चौधरी अपनी चेयर से उठे और मेरे पास आकर मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गये…..

मिस्टर. विजय चौधरी , उस समय उनकी उम्र करीब 35-38 के आस-पास होगी…वो एक आवरेज कद के – यही कोई 5’8” के – थोड़े से भारी शरीर के आदमी हैं …रंग थोड़ा सा दबा हुआ और आँखों पर एक चश्मा….कुल मिलाकर एक बिज़्नेस मॅन का पर्फेक्ट लुक है उनका……. उन्होने मेरी तरफ देखा और फिर बोलना शुरू किया …” कैसे हो राजू ?”

“ अच्छा हूँ सर …” मैं धीरे से बोला

“ मैने तुमसे कहा था , आकर मिलने के लिए ! तुम आए क्यों नही ? “ मैं खामोश रह गया …उनके इस सवाल का कोई माकूल जवाब मेरे पास नही था

फिर उन्होने ही बात शुरू की “ देखो राजू !! मैं समझ रहा हूँ कि तुम्हारे मन में कयि सारे सवाल होंगे …मैने तुम्हे यहाँ क्यों बुलाया है ? क्या चाहता हूँ मैं तुमसे ? ……..अगर तुम्हारी जगह , तुम्हारी ही उमर का कोई और लड़का होता ..तो शायद आज यहाँ मेरे सामने ना बैठा होता
…पर तुम बैठे हो ….जानते हो क्यों ? क्यों कि तुम आम लोगो से अलग हो “ मैने बे-चैनी से पहलू बदला….और उनके चेहरे की तरफ देखता रहा …

उन्होने फिर आगे बोलना शुरू किया “ मैं तुमसे बहुत ज़्यादा इंप्रेस हुआ हूँ …….इसलिए नही कि तुमने मेरा मोबाइल सही कर दिया था………मैं भी जानता हूँ कि वो कोई बड़ी बात नही थी , वो जो एक बात तुमने पकड़ ली …हो सकता है दोबारा चेक करने पर हॅपी भी उसे पकड़ लेता …या अगर में किसी और को दिखाता तो वो भी उसको सही कर सकता था …………पर जो एक चीज़ तुम्हारे अंदर है वो है तुम्हारा आत्म-विश्वास……और तुम्हारा दिमाग़ , जो तुम्हे और लोगो से अलग करता है” कहते कहते वो अपनी टेबल तक गये…वहाँ से पानी का गिलास उठा कर पानी पिया और फिर वापस आकर सोफे पर बैठ गये

“राजू…मेरी नज़र में तुम एक हीरा हो …….एक ऐसा हीरा जिसको अगर सही से तराशा जाए तो वो बेश-कीमती हो सकता है ……मैं चाहता हूँ की मैं तुमको तुम्हारी सही जगह तक पहुँचा सकूँ “

मैं हैरान सा उनकी तरफ देखता रहा………समझ नही आ रहा था कि वो मुझ से क्या चाहते हैं …..उन्होने भी मेरे मन की बात शायद समझ ली थी ……उन्होने आगे बोलना शुरू किया

“ मैं अब सीधी सीधी बात करता हूँ ……..मैं चाहता हूँ कि तुम अपने दिमाग़ को सही जगह इस्तेमाल करो ……..इसके लिए तुम्हे पहले पढ़ाई करनी होगी ……….तुम अपनी पढ़ाई करो ………..जो भी खर्चा होगा, मैं करूँगा “

“ पर….पढ़ाई तो मैं कर ही रहा हूँ ? “

“ यह वो पढ़ाई नही है राजू , जो तुम डिज़र्व करते हो …. दिन भर काम कर के तुम सही तरह से पढ़ाई नही कर सकते हो बेटा ………….मैं चाहता हूँ कि तुम सिर्फ़ पढ़ाई में ध्यान लगाओ , बाकी और कुछ नही ……..जहाँ तक तुम पढ़ना चाहते हो , पढ़ो ..……और सब कुछ भूल कर “

मैं सवालिया निगाह से उनकी तरफ देखता रहा ……वो शायद मेरे मन की बात समझ गये ….आगे बोले “ तुम सोच रहे होंगे कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ …………राजू, तुम पहले नही हो जिसके लिए मैं कुछ कर रहा हूँ ….तुमसे पहले भी बहुत सारे ग़रीब और यतीम बच्चो को मैने
पढ़वाया है ……….यूँ समझो कि जो कुछ भी मुझे ऊपर वाले ने दिया है , उसका क़र्ज़ मैं उतारने की कोशिश कर रहा हूँ ……..तुम अगर पढ़-लिख कर किसी काबिल बन गये तो शायद मेरे ही किसी काम आ जाओ “

फिर उन्होने इंटरकम पर किसी को बुलाया ………..1 मिनिट बाद ही वही ड्राइवर अंदर आया जो मुझे लेकर यहाँ आया था …….. “ सुरेश …राजू को वहीं पर छोड़ आओ जहाँ से इनको लेकर आए थे……और राजू... तुम मुझे सोच-समझ कर 1-2 दिन में जवाब दे दो ….यह ध्यान
रखना बेटा , कि इस सब में तुम्हारी ही भलाई है …” कह कर वो वहाँ से उठ कर अपनी सीट पर जाकर बैठ गये और मैं ड्राइवर के साथ बाहर निकल आया …………..

5 मिनिट बाद ही मैं फिर से उस ही गाड़ी में बैठा हुआ वापस कारोल बाग की तरफ जा रहा था………दिमाग़ में बहुत सारे सवाल लिए हुए
……. मैने सुना था कि किस्मत कभी कभी कुछ ख़ास लोगो पर मेहरबान होती है…….और शायद मैं भी उनमें से एक था
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दरवाज़े की घंटी बजने की आवाज़ आई और मैं फिर से पुरानी यादों से वापस लौट आया…मैं उठ कर दरवाज़े पर गया और उसको खोल कर देखा … रेस्टोरेंट से एक आदमी खाना लेकर आया था ……उसने अंदर आकर खाना टेबल पर लगाया और फिर वापस चला गया …. मैने अपने हाथ धोए और फिर खाना खाने बैठ गया …….

10 मिनिट बाद में अपना खाना खा कर निपट चुका था ……मैं वापस बाल्कनी में आकर बैठ गया …..नीचे सड़को पर गाड़ियाँ जा रही थी ….रोड के साइड में कुछ लोग पैदल चल रहे थे …….पर हर कोई किसी ना किसी के साथ था…….मुझे लगा कि शायद एक मैं ही हूँ जो इतना तन्हा हूँ ……….वो सब कुछ जो एक इंसान पाना चाहता है , आज मेरे पास थी….फिर भी मैं कितना अकेला सा था …..सोचते सोचते मैं फिर से अपनी पुरानी यादों के सफ़र पर निकल पड़ा …….

फ्लश बॅक

उस दिन मिस्टर.चौधरी से मिलने के बाद मैं वापस ढाबे पर आ गया था , पर मैने किसी से कोई ज़िक्र नही किया कि वहाँ क्या क्या बात हुई
…….रात बीत गयी और फिर सुबह हो गयी….सब लोग अपने रुटीन के कामो में व्यस्त हो गये और साथ में मैं भी……

दो-पहर में , जब मैं हमेशा की तरह अपना काम निपटा कर आराम कर रहा था…मुझे अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ…मैं गर्दन घुमा कर देखा, सरदार जी थे……

मैने मुस्कुरा कर उनकी तरफ देखा…..वो मेरे पास कुर्सी पर बैठ गये …फिर मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोले “ क्या हुआ पुत्तर………किस सोच में डूबा है ? “

“ कुछ नही दार जी ………कोई ख़ास बात नही है “ मैने बात को टालने की कोशिश की ..

“ अच्च्छा यह बता….कल वहाँ क्या हुआ था ?” वो बोले

मैं कुछ सेकेंड्स तक चुप रहा फिर सारी बात उनको बता दी …सुनकर उनके चेहरे पर एक चमक सी आ गयी ….पूरी बात ख़तम होते ही वो बोले “ तो इसमे इतना सोचने वाली क्या बात है पुत्तर …………वाहे गुरु का नाम लेकर शुरू कर दे अपनी पढ़ाई “

“पर दार जी ……….मैं अभी भी समझ नही पा रहा हूँ की वो मेरे पर इतने मेहरबान क्यों हैं ? “ मैने उलझन भरी आवाज़ में कहा….

“ तेरे ऊपर चौधरी साब ही नही….ऊपर वाला भी मेहरबान है पुत्तर….तू सारे सवालो को दिमाग़ से निकाल कर , बस यहाँ से जाने की तय्यारी कर “ कह कर उन्होने हॅपी को आवाज़ लगा कर बुला लिया और फिर दोनो ने मिलकर अगले 1 घंटे तक मुझे समझाया……मैने भी अपनी डोर अब ऊपर वाले के हाथ में देने का फ़ैसला कर लिया था….

1 दिन के बाद ही मैं फिर से मिस्टर.चौधरी के ऑफीस में बैठा हुआ था….सरदार जी और हॅपी दोनो मेरे साथ में ही थे ….. वहाँ करीब 1 घंटे तक हम चारो की बातचीत हुई …….फिर चौधरी साब ने यह डिसाइड किया कि वो मुझे पुणे के एक बोरडिंग स्कूल में पढ़ने के लिए भेजेंगे…….. फिर उन्होने एक आदमी को बुलाया और मेरे लिए वहीं ऑफीस के गेस्ट हाउस में रहने का इंतेज़ाम करने के लिए कहा
….सरदार जी और हॅपी को वापस जाना था ……..मुझे भी मालूम था कि पता नही फिर कभी मेरी उन लोगो से मुलाकात हो या ना
हो….उदास मन से मैं वहाँ से गेस्ट हाउस में चला आया ……….

2 दिन तक मैं वहीं पर रहा…….उसके बाद मुझे पुणे भेज दिया गया ……पढ़ाई करने के लिए ……..

उसके बाद तो मानो वक़्त मेरे आगे आगे दौड़ता रहा ….और में उसको पकड़ने की कोशिश करता रहा………क्यों कि जो कुछ भी मैने अभी तक पढ़ा था , वो ना के ही बराबर था ….पहले एक साल मुझे इतनी पढ़ाई करनी पढ़ी , जितनी की शायद मैं 4 साल में भी नही कर सकता था …….1 साल के बाद मैने 10थ के एग्ज़ॅम्स दिए और अच्छे नंबर्स के साथ पास हुआ….फिर 2 साल के लिए मुझे रेग्युलर स्कूल में अड्मिशन
करा दिया गया…12थ के एग्ज़ॅम्स में मैं मेरिट के साथ पास हुआ ……

मेरी ज़िंदगी तेज़ी के साथ बदल रही थी ……….इन 3 सालो में मिस्टर चौधरी मेरे से केवल 4-5 बार ही मिलने आए थे…मैं भी जानता था कि
इस समय मेहनत कर ली तो आगे बहुत काम आने वाली है…

12थ पास करने के बाद मिस्टर. चौधरी ने मुझे अपने पास बुलवाया और बताया कि वो मुझे इंजिनियरिंग पढ़ना चाहते हैं ….मैने तो पहले ही अपनी ज़िंदगी उनके और ऊपर वाले के हवाले कर चुका था……मैने उनको बताया कि जो वो चाहते हैं, मैं वैसा ही करूँगा…..और 1 महीने
के बाद ही मैं ऑस्ट्रेलिया पहुँच गया….इंजिनियरिंग (आइटी) की पढ़ाई करने के लिए……………
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#9

ऑस्ट्रेलिया पहुँच कर मैने अपनी पढ़ाई शुरूर कर दी ……मेरा सिर्फ़ एक ही टारगेट था , जो मौका ऊपर वाले ने मुझे दिया है , उसका सही तरह से उपयोग करूँ और जो सपने मैने देखे हैं , उनको पूरा करूँ ….

मिस्टर.चौधरी हर 2-3 महीने बाद मेरे से फोन पर बात कर लेते थे और मेरा हाल चाल पूछ्ते थे ………मेरे खर्चे के लिए हर महीने एक चेक मेरे पास आ जाता था...........यहाँ मेरे साथ कुछ और भी स्टूडेंट्स थे जो इंडिया से आए थे …… मेरी उमर अब बढ़ती जा रही थी , साथ ही ज़रूरते भी ….. मेरे कुछ साथियों की तरह , मेरा भी कभी कभी दिल करता था कि मैं भी वही सब करूँ जो वो करते हैं………मौज-मस्ती ,
लड़कियों से दोस्ती और सब कुछ जो मेरा दिल चाहता है …………….पर मेरा दिमाग़ इन सब चीज़ो से दूर रहने की सलाह देता था ………….मैं भी फालतू की बातों में अपना ध्यान ना लगा कर , सिर्फ़ पढ़ाई में ही ध्यान देना चाहता था………..

समय बीत-ता जा रहा था …….2 सेमेस्टर्स के बाद मुझे इन्स्टिट्यूट की तरफ से स्कॉलरशिप भी मिलनी शुरू हो गयी ………अब हालाँकि मुझे मिस्टर.चौधरी के भेजे हुए पैसो की ज़रूरत नही थी , पर मैं उनको मना कर के उनको दुख नही पहुँचाना चाहता था……….जो कुछ भी हो रहा था, सब कुछ वैसे ही चलता रहा…

ज़िंदगी बहुत तेज़ी के साथ दौड़ती रही और मैं उसके साथ साथ … समय नही मिल पा रहा था कि मैं कुछ और कर सकूँ…… धीरे धीरे 4 ½
साल बीत गये , मैने आइटी इंजिनियरिंग में मास्टर डिग्री ले ली और मैं वापस हिन्दुस्तान आ गया……..

हिन्दुस्तान पहुँच कर मुझे मालूम पड़ा कि लक्ष्मी ग्रूप्स का हेडक्वॉर्टर अब राज नगर ट्रान्स्फर हो गया है , देल्ही का ऑफीस अभी भी वैसा ही था पर वो अब सिर्फ़ एरिया ऑफीस के तौर पर यूज़ होता था ……….मैं उस ही शाम की फ्लाइट से राज नगर पहुँच गया ..

मिस्टर.चौधरी मुझे वापस देख कर बहुत खुश हुए , उन्होने कहा कि जो उम्मीद उन्होने मुझ से की थी , मैं उन पर बिल्कुल खरा उतरा हूँ …….मैने उनका आशीर्वाद लिया और पूछा कि अब मेरे लिए उनका क्या आदेश है ……..मिस्टर.चौधरी ने मुझे कुछ दिन आराम करने के लिए कहा और मैने उनकी बात मान ली

4-5 दिन मैने जम कर आराम किया ………यह जो फ्लॅट मेरे पास था वो उन्होने पहले से ही मेरे लिए तय्यार करवा लिया था……. 4-5 दिन के आराम के बाद मैं एक सुबह उनके ऑफीस में पहुँच गया ..

मिस्टर.चौधरी ने काफ़ी देर तक मुझ से बाते की ………उन्होने मुझ को साफ साफ बता दिया कि अगर मैं चाहूं तो कहीं भी , किसी भी शहर में जाकर बस सकता हूँ , किसी भी बड़ी कंपनी में नौकरी कर सकता हूँ , उन्होने इस का फ़ैसला मेरे ऊपर ही छोड़ दिया …….

पर मैं ऐसा नही चाहता था …………जो कुछ भी मिस्टर.चौधरी ने मेरे लिए किया था, उसका एहसान तो मैं नही उतार सकता था , पर कुछ करना चाहता था मैं उनके लिए………

फिर मिस्टर.चौधरी ने मुझे अपने एक सपने के बारे में बताया ……..उनके कुछ बिज़्नेस जो काफ़ी अच्छि तरह चल रहे थे जैसे कि शुगर , स्टील , कन्स्ट्रक्षन & फाइनान्स एट्सेटरा , पर उनका एक सपना था ……..एक ऐसा बॅंक बनाने का जो कम से कम हिन्दुस्तान में तो अपने
आप में अनूठा हो …………..वो चाहते थे कि लोग उन्हे उनके जाने के बाद भी कुछ ऐसे याद रखे , और वो उनके इस सपने के पूरा होने
पर हो सकता था ……उन्होने मुझे से कहा कि क्या मैं कुछ सुझाव उनको दे सकता हूँ

मैं उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुनता रहा …………फिर मैने उनसे एक दिन का टाइम माँगा और वापस अपने फ्लॅट पर आ गया…

मैने उस पूरे दिन और पूरी रात इस ही बारे में सोचता रहा …….फिर मेरे दिमाग़ में कुछ आइडियास आने शुरू हो गये …………सुबह तक
मैं उन सारे प्लॅन्स पर काम करता रहा और फिर अगले दिन दोपहर में फिर से मिस्टर.चौधरी के सामने बैठा हुआ था ………….

मैने उनको अपने प्लॅन्स के बारे में बताना शुरू किया, सुनते सुनते उनकी आँखों में चमक आती चली गयी ………….सारा प्लान उनको बहुत पसंद आया …..बस उनको एक यही संदेह था कि जो कुछ भी मैं उनको समझा रहा हूँ , वो हक़ीकत में भी तब्दील हो सकता है या नही
………मैने उनको बताया कि जो कुछ मैने प्लान किया है , वो आज के जमाने में हक़ीकत में भी बदल सकता है…………

उस शाम तक ही यह डिसाइड हो गया कि हम लोग उस प्रॉजेक्ट पर काम करेंगे …….जो भी चीज़ मुझे चाहिए होगी , उसको देने का प्रॉमिस उन्होने मुझ से किया ……मैने भी उनसे वादा किया कि चाहे जो हो जाए , उनका यह सपना मैं अवश्य पूरा करूँगा ………………

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