desiaks
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- Aug 28, 2015
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#10
अगले दिन से ही मैं काम पर लग गया……मैने सारे हिन्दुस्तान से , और ज़रूरत पड़ी तो ओवरसीस से प्रॉफ्षनल्स की टीम को इकट्ठा किया ………….सारे टेक्नीशियन्स और इंजिनीयर्स की टीम ने मिलकर मेरे प्लान पर काम करना शुरू कर दिया …….मैं और मिस्टर.चौधरी इस
काम पर दिन रात एक करके लगे हुए थे ………हमारा प्लान था कि हम यह काम 3 साल में पूरा कर लेंगे , पर हमारी अथक मेहनत का ही नतीजा था कि यह काम हम लोगो ने 2 साल में ही पूरा कर लिया
जी हां , 2 साल के अंदर राज नगर में लक्ष्मी बॅंक की पहली ब्रांच बन कर तय्यार हो गयी ……..एक ऐसा बॅंक जो अपने आप में अनूठा था , जिसकी मिसाल कम से कम हिन्दुस्तान में तो नही थी
यह अपने आप में एक फुल्ली ऑटो ऑपरेटेड बॅंक था……जैसे कि एटीएम मशीन्स होती हैं , कस्टमर्स को सब कुछ अपने आप करना होता था…….अकाउंट्स खोलते समय कस्टमर्स के सिगनेचर्स के अलावा उनके फिंगर प्रिंट्स, वाय्स सॅंपल्स और आइ-मॅप के सॅंपल्स लिए जाते थे
…………… उनको कस्टमर्स की डीटेल्स के साथ स्टोर किया जाता था और इन सब चीज़ो का इस्तेमाल वो अपने अकाउंट्स को ऑपरेट करने में कर सकता था ……….
बॅंक के मेन गेट पर 4 गार्ड्स की एक टीम रहती थी , जो हर आने वाले कस्टमर्स को चेक करती थी …….सारे कस्टमर्स को एक स्पेशल आइ कार्ड दिया गया था जिसको दिखाकर वो बॅंक के अंदर जा सकता था ………..अंदर पूरे बॅंक में सारे काउंटर्स ऑटोमॅटिक कंट्रोल्ड थे ………कस्टमर्स अपने फिंगर प्रिंट्स या दूसरे तरीक़ो से वेरिफिकेशन करवा कर अपना अकाउंट ऑपरेट कर सकता था …..एटीएम मशीन्स की
तरह ही हर काउंटर पर अलग अलग मशीन्स रखी हुई थी , जो वो सारे काम करती थी , जो दूसरे बॅंक में मनुअल होते थे …… जैसे कि कॅश का ट्रॅन्सॅक्षन , चेक्स को कॅश करवाना , ड्रॅफ्ट्स बनवाना एट्सेटरा एट्सेटरा
इसके अलावा एक बड़ा लॉकर रूम भी था………जो वैसे ही ऑपरेट होता था , जैसे कि बॅंक के अन्य काउंटर्स …………कुछ स्टाफ भी बॅंक के अंदर रहता था , पर उसका काम सिर्फ़ इतना था कि जो चेक्स और स्लिप्स मशीन्स के अंदर जाती हैं , उनको कलेक्ट कर के फाइलिंग
करते रहना ….
अभी 1 महीने पहले ही इस ब्रांच की ओपनिंग हम लोगो ने की थी …………..एक महीने के अंदर ही बॅंक के पास कस्टमर्स की लाइन लग गयी थी ….स्पेशली लॉकर्स लेने वालो की …………राज नगर एक तेज़ी के साथ डेवेलप हो रहा शहर था , इसलिए यहाँ अमीर लोगो की कमी
नही थी , जो हमारे इस बॅंक के कस्टमर्स बन-ना चाहते थे ………..
\कुल-मिलकर हमारा यह प्रयास सफल रहा था ……….मिस्टर.चौधरी का सपना सच हो चुका था ………….उस का यह इनाम मुझे मिला था कि मुझे आज लक्ष्मी बॅंक का वाइस चेर्मन बना दिया गया था …………
मेरा यह सफ़र , जिसमे मैं राजू से राजीव चौधरी बन गया था, एक लंबा और थका देने वाला साबित हुआ था…………जी हां दोस्तो , मेरा यह नया नाम और सरनेम मुझे मिस्टर.चौधरी ने तब दिया था जब मैं पुणे के स्कूल में अड्मिशन ले रहा था……..मैं जानता था कि , यह भी उनके दूसरे एहसानो की तरह ही था ……..जिसका क़र्ज़ मैं शायद ता-जिंदगी भी नही उतार सकता था………..
सोचता सोचता कब मैं नींद में डूबता चला गया मुझे खुद भी मालूम नही पड़ा……….यहाँ बाल्कनी पर ठंडी हवा मेरे शरीर पर लग रही थी , रात में मालूम नही कब मेरी आँख खुली तब मुझे एहसास हुआ कि मैं बाल्कनी में ही चेयर पर बैठ बैठा सो गया हूँ ………..मैं अंदर उठकर
अपने बेड पर आकर लेट गया और फिर से सो गया ………मुझे मालूम था कि कल से मुझे ज़िंदगी के एक और नये सफ़र की शुरुआत करनी है
[/b]
अगले दिन से ही मैं काम पर लग गया……मैने सारे हिन्दुस्तान से , और ज़रूरत पड़ी तो ओवरसीस से प्रॉफ्षनल्स की टीम को इकट्ठा किया ………….सारे टेक्नीशियन्स और इंजिनीयर्स की टीम ने मिलकर मेरे प्लान पर काम करना शुरू कर दिया …….मैं और मिस्टर.चौधरी इस
काम पर दिन रात एक करके लगे हुए थे ………हमारा प्लान था कि हम यह काम 3 साल में पूरा कर लेंगे , पर हमारी अथक मेहनत का ही नतीजा था कि यह काम हम लोगो ने 2 साल में ही पूरा कर लिया
जी हां , 2 साल के अंदर राज नगर में लक्ष्मी बॅंक की पहली ब्रांच बन कर तय्यार हो गयी ……..एक ऐसा बॅंक जो अपने आप में अनूठा था , जिसकी मिसाल कम से कम हिन्दुस्तान में तो नही थी
यह अपने आप में एक फुल्ली ऑटो ऑपरेटेड बॅंक था……जैसे कि एटीएम मशीन्स होती हैं , कस्टमर्स को सब कुछ अपने आप करना होता था…….अकाउंट्स खोलते समय कस्टमर्स के सिगनेचर्स के अलावा उनके फिंगर प्रिंट्स, वाय्स सॅंपल्स और आइ-मॅप के सॅंपल्स लिए जाते थे
…………… उनको कस्टमर्स की डीटेल्स के साथ स्टोर किया जाता था और इन सब चीज़ो का इस्तेमाल वो अपने अकाउंट्स को ऑपरेट करने में कर सकता था ……….
बॅंक के मेन गेट पर 4 गार्ड्स की एक टीम रहती थी , जो हर आने वाले कस्टमर्स को चेक करती थी …….सारे कस्टमर्स को एक स्पेशल आइ कार्ड दिया गया था जिसको दिखाकर वो बॅंक के अंदर जा सकता था ………..अंदर पूरे बॅंक में सारे काउंटर्स ऑटोमॅटिक कंट्रोल्ड थे ………कस्टमर्स अपने फिंगर प्रिंट्स या दूसरे तरीक़ो से वेरिफिकेशन करवा कर अपना अकाउंट ऑपरेट कर सकता था …..एटीएम मशीन्स की
तरह ही हर काउंटर पर अलग अलग मशीन्स रखी हुई थी , जो वो सारे काम करती थी , जो दूसरे बॅंक में मनुअल होते थे …… जैसे कि कॅश का ट्रॅन्सॅक्षन , चेक्स को कॅश करवाना , ड्रॅफ्ट्स बनवाना एट्सेटरा एट्सेटरा
इसके अलावा एक बड़ा लॉकर रूम भी था………जो वैसे ही ऑपरेट होता था , जैसे कि बॅंक के अन्य काउंटर्स …………कुछ स्टाफ भी बॅंक के अंदर रहता था , पर उसका काम सिर्फ़ इतना था कि जो चेक्स और स्लिप्स मशीन्स के अंदर जाती हैं , उनको कलेक्ट कर के फाइलिंग
करते रहना ….
अभी 1 महीने पहले ही इस ब्रांच की ओपनिंग हम लोगो ने की थी …………..एक महीने के अंदर ही बॅंक के पास कस्टमर्स की लाइन लग गयी थी ….स्पेशली लॉकर्स लेने वालो की …………राज नगर एक तेज़ी के साथ डेवेलप हो रहा शहर था , इसलिए यहाँ अमीर लोगो की कमी
नही थी , जो हमारे इस बॅंक के कस्टमर्स बन-ना चाहते थे ………..
\कुल-मिलकर हमारा यह प्रयास सफल रहा था ……….मिस्टर.चौधरी का सपना सच हो चुका था ………….उस का यह इनाम मुझे मिला था कि मुझे आज लक्ष्मी बॅंक का वाइस चेर्मन बना दिया गया था …………
मेरा यह सफ़र , जिसमे मैं राजू से राजीव चौधरी बन गया था, एक लंबा और थका देने वाला साबित हुआ था…………जी हां दोस्तो , मेरा यह नया नाम और सरनेम मुझे मिस्टर.चौधरी ने तब दिया था जब मैं पुणे के स्कूल में अड्मिशन ले रहा था……..मैं जानता था कि , यह भी उनके दूसरे एहसानो की तरह ही था ……..जिसका क़र्ज़ मैं शायद ता-जिंदगी भी नही उतार सकता था………..
सोचता सोचता कब मैं नींद में डूबता चला गया मुझे खुद भी मालूम नही पड़ा……….यहाँ बाल्कनी पर ठंडी हवा मेरे शरीर पर लग रही थी , रात में मालूम नही कब मेरी आँख खुली तब मुझे एहसास हुआ कि मैं बाल्कनी में ही चेयर पर बैठ बैठा सो गया हूँ ………..मैं अंदर उठकर
अपने बेड पर आकर लेट गया और फिर से सो गया ………मुझे मालूम था कि कल से मुझे ज़िंदगी के एक और नये सफ़र की शुरुआत करनी है
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