Desi Sex Story रिश्तो पर कालिख - Page 4 - SexBaba
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Desi Sex Story रिश्तो पर कालिख

में दुबई पहुँच चुका था...ऑफीसर अब्दुलह के साथ में मॉर्ग के लिए निकल गया ...

वहाँ पहुँच कर बड़ी मुश्किल से में पापा और भाई की बॉडी को देख पाया मेरे आँसू रुकना भूल गये थे ....बिल्कुल अकेला पड़ गया था में...काश इस वक़्त कोई मेरे साथ होता जिसके कंधे पर सिर रख के में रो सकता...


कुछ ज़रूरी फ़ौरमलिटी के बाद अब्दुलह ने कहा..


अब्दुलह--मिस्टर जय आप अब ये बॉडी वापस ले जा सकते है मुझे बड़ा अफ़सोस है आपके साथ जो हुआ उसका..अभी थोड़ी देर में ही एक फ्लाइट जाने वाली है आपको टिकिट और बॉडीस को भेजने का प्रबंध मैने उसी में कर दिया है....
मुझे जैसे ही कुछ पता चलेगा हत्यारो के बारे में आपको इनफॉर्म कर दूँगा.


में--ठीक है ऑफीसर अब मुझे चलना चाहिए वैसे भी अब कुछ बचा नही है यहाँ पर.


उसके बाद एक आंब्युलेन्स में बैठ कर मैं एयिरपोर्ट की तरफ निकल जाता हूँ...आंब्युलेन्स में मेरे सामने दो ताबूतो में दोनो की बॉडी पड़ी हुई थी....में उस तरफ़ देखने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था....एयिरपोर्ट आने पर वहाँ के स्टाफ ने ताबूतो को आंब्युलेन्स से निकाला और अपने साथ ले गये.


में जा कर अपनी सीट पर बैठ गया और अपनी सीट बेल्ट लगाने के बाद में अपनी आँखे बंद करके सोचने लग जाता हूँ....प्लेन अब आसमान में उड़ने लग गया था और में अपनी सोच के अंधेरे में अंधेरों से गिरता जा रहा था...
तभी एक आवाज़ मुझे उस भंवर में से निकाल देती है ...वहाँ रीना मेरे सामने खड़ी थी... और उसके हाथ में मेरे लिए एक ड्रिंक था...

में--आप इस फ्लाइट में भी...



रीना--सर ये वही प्लेन है जिसमें आप कुछ घंटो पहले आए थे...
अब ये प्लेन वापस भारत जा रहा है तो में भी तो इसी में मिलूंगी ना...ये लीजिए आपका ड्रिंक...क्या में जान सकती हूँ आप इतने परेशान क्यो है...


में--आपके प्लेन में मेरे पापा और भाई भी सफ़र कर रहे है....


रीना--ओह्ह थ्ट्स नाइस अगर आप बोले तो में आप लोगो की सीट्स एक साथ करवा दूं...


में--रीना तुम समझी नही वो उन दो ताबूतो में हैं वो अब मेरे पास नही बैठ सकते...



रीना--ओह्ह्ह माइ गॉड एक्सट्रीम्ली वेरी सॉरी सर...शायद मैने आपकी चोट को और कुरेद दिया..मुझे माफ़ कर देना.



में--आपको सॉरी बोलने की कोई ज़रूरत नही है...क्या आप मेरा एक काम कर सकती है...


रीना --बोलिए सर कौनसा काम करना है...


में--जहाँ वो बॉक्स रखे हुए है में वहाँ जाना चाहता हूँ थोड़ी देर में मेरे भाई और पापा के साथ रहना चाहता हूँ...


रीना--सर में कॅप्टन से पर्मिशन लेने की कोशिश करती हूँ शायद वो मान जाए..


में--ठीक है वैसे कोशिश अक्सर कामयाब हो जाती है आप जाइए.


उसके बाद रीना कॉकपिट में घुस गयी और थोड़ी देर बाद फिर से मेरे पास आई.


रीना--सर कॅप्टन मान गये है बस उन्होने ये कहा है बाकी पॅसेंजर्स को परेशानी नही होनी चाहिए....


में--रीना में किसी को भी परेशान नही करूँगा बस मुझे वहाँ छोड़कर तुम वापस अपना काम संभाल लेना.


रीना-- ठीक है सर आप चलिए मेरे साथ...
 
उधर उदयपूर में एक बोलेरो किशोर गुप्ता के बंगले के सामने रुकती है....और वॉचमन दरवाजा खोल देता है..गाड़ी अंदर लेजाने के बाद रजत और उसकी फॅमिली बंगले की तरफ बढ़ जाते है....






रजत घर की बेल बजाता है और अंदर से नीरा दरवाजा खोल कर बाहर आजाती है



नीरा--जी बोलिए किस से मिलना है आपको.



रजत--बेटी हम किशोर भाई साहब से मिलने आए है....



नीरा--माफ़ करना अंकल आपको पहचाना नही मैने और पापा तो दुबई गये है....


रजत--क्या तुम उनकी बेटी हो...


नीरा--जी अंकल


रजत---बेटा में तुम्हारे पापा का छोटा भाई हूँ तुम्हारा रजत चाचा....



नीरा--चाचा....लेकिन पापा ने तो कभी कुछ बताया नही...एक मिनट आप अंदर आइए फिर बैठ कर बात करते है...


कोमल अपने पिता को इस तरह फँसता देख मुस्कुराने लग गयी थी...


नीरा--अंकल आप यहाँ बैठिए में मम्मी को बुलाकर लाती हूँ...

नीरा भागकर मम्मी के रूम की तरफ़ चली जाती है...


नीरा--मम्मी कोई अंकल आए है अपनी वाइफ और दो लड़कियो को लेकर और वो अपने आप को मेरा चाचा बता रहे है...


मम्मी--चाचा...

और फिर मम्मी लगभग भागते हुए हॉल में बैठे हुए रजत की तरफ़ बढ़ जाती है....



रजत--संध्या भाभी धोक देता हूँ...


मम्मी गौर से रजत के चेहरे को देखने लगती है...


मम्मी--आप रजत भैया है ना.


रजत--जी भाभी में आपका एक्लोता देवर और ये आपकी देवरानी रजनी और ये दोनो शैतान आप ही की है...


मम्मी रजत भैया से मिलकर बहुत खुश हो जाती है वो रजनी से गले मिलती है और कोमल और दीक्षा को आशीर्वाद भी देती है....

और फिर वो सब को आवाज़ लगा लगा कर बोलाने लगती है नेहा....रूही...नीरा जल्दी यहाँ आओ देखो कौन आया है...


नेहा --कौन आया है मम्मी...


मम्मी--कौन क्या आया है ये तुम्हारे चाचा जी... हैं चल पैर छु इनके...

रजत भैया ये राज की पत्नी नेहा है रजनी नेहा भाभी को अपने गले से लगा लेती है...तभी रूही और नीरा भी वहाँ आ जाती है वो दोनो भी सब से बड़े प्यार से मिलती है उसके बाद नेहा और रूही किचन में घुस जाती है...इतने में रजनी भी उठकर उनलोगो की मदद करने के लिए किचन की तरफ जाने लगती है तो मम्मी उनका हाथ पकड़कर उन्हे वही रोक लेती है...


रजनी--भाभी घर का ही तो काम है और हम कौन्से. यहाँ मेहमान बनकर आए है..


मम्मी--नही रजनी तुम यहीं बैठो वो दोनो काम कर लेंगी..


रजनी--कोमल..दीक्षा जाओ अंदर रसोई में भाभी और दीदी की मदद करो ...


मम्मी--रहने दे ना रजनी क्यो बच्चो को परेशान कर रही है


रजनी--नही भाभी जी आप इनको जाने से मत रोको वरना मुझे बुरा लगेगा...


मम्मी--ठीक है नीरा तुम अपनी बहनो को लेकर भाभी के पास ले जाओ अगर ये आराम करना चाहे तो अपने साथ रूम में ले जाना.



नीरा--मेरे पास पहले तंग करने के लिए बस एक बड़ी बहन ही थी अब तो मेरे पास 2 बड़ी बहन है तंग करने के लिए और एक छोटी बहन भी आ गयी.... और फिर वो दोनो का हाथ पकड़कर किचन के अंदर ले जाती है..


मम्मी--बताइए रजत भैया गाँव के हाल कैसे है में तो कभी आ नही पाई गाव आप लोगो को यहाँ देख कर सच में दिल खुश होगया..


रजत--भाभी गाव में सब बढ़िया है मुझे दो दिन से भाई साहब की बहुत याद आरहि थी इसीलिए मैने आज यहाँ आ गया और इन लोगो को भी यहाँ ले आया ...


मम्मी--अब आप यहाँ आगये होंठो अब कुछ दिन जाने का नाम मत लेना मुझे थोड़ी तो सेवा करवाने दो अपनी देवरानी से...आपने तो कभी भाभी का ध्यान रखा नही ...


रजत--नही नही भाभी आप सब तो हम लोगों के दिल में हमेशा रहते हो.....
 
घर में बड़ी खुशी फैली हुई थी....मम्मी अपनी देवरानी से मिलकर फूली नही समा रही थी...

मम्मी नीरा के बर्तडे का फोटो आल्बम उन्हे दिखाते हुए सब के बारे में बता रही थी....

एक चेहरे पर रजनी की नज़र टिक गयी....



रजनी--भाभी ये लड़का कौन है....ये आपकी लगभग सभी तस्वीरों में है...



मम्मी--ओहूऊ में भी कितनी पागल हूँ....ये जय है मेरा बेटा और आपका भतीजा...


रजनी--ये कहाँ है अभी ....बाहर रहता है क्या.


मम्मी--नही बाहर नही उसके किसी दोस्त का आक्सिडेंट हो गया है तो वो वहाँ गया हुआ है...


रजनी--ओह्ह्ह कब तक आएगा मेरा बड़ा मन कर रहा है अपने भतीजे को गले से लगाने का..


तभी....घर की बेल बजती है..

मम्मी उठ कर दरवाजा खोलने के लिए जाती है जैसे ही सामने देखती है...

वहाँ वही ड्राइवर खड़ा होता है जो उन्हे और उनकी गाड़ी को घर तक छोड़ने आता है...


मम्मी--अरे ड्राइवर साहब आप....आप अभी तक उदयपूर में ही हो????आप गये नही वापस..कोई परेशानी है क्या.??


ड्राइवर--मेडम ये चिट्ठी देनी थी आपको इसीलिए यही रुका हुआ था...



मम्मी--कैसी चिट्ठी....?? किसकी है ये चिट्ठि...??


ड्राइवर-- ये मुझे रिजोर्ट वालो ने दी थी आपको देने के लिए....अब में चलता हूँ मेरी ज़िम्मेदारी अब ख्तम हो गयी है...

उसके बाद वो ड्राइवर वहाँ से चला जाता है..

और मम्मी दरवाजा बंद करके जैसे ही उस लेटर को पढ़ने लगती है...उनकी आँखो से आँसुओ की धारा निकलने लगती है जैसे जैसे वो उस लेटर में आगे पढ़ती जाती है...वैसे वैसे उनकी आँखे बस फैलती ही चली जाती है.


तभी अचानक मम्मी लहरा कर ज़मीन पर गिर जाती है...उनको गिरता देखा रजनी और रजत भाग कर उनको संभाल ने पहुँच जाते है



रजनी--भाभी क्या हुआ आँखे खोलो अपनी...नेहा....रूहीी....नीराअ...वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगती है सभी वहाँ भागकर पहुँच जाते है सभी लोग मम्मी को घेर कर खड़े होते है....नीरा मम्मी के हाथ में से वो लेटर निकाल कर उसे पढ़ने लगती है....


और ज़ोर ज़ोर से रोते हुए सब को उस लेटर की सच्चाई बता देती है...


नेहा ज़ोर ज़ोर से चीखने लग जाती है वो नीरा से वो लेटर छीन कर नीरा को एक थप्पड़ तक मार देती है...और नीरा नेहा से चिपक्कर रोने रोने लग जाती है...


नेहा को तो जैसे कोई होश ही नही रहता वो एक पत्थर की तरह हो जाती है उस लेटर को पढ़ने के बाद...


तभी...................................
 
तभी घर के बाहर आंब्युलेन्स की आवाज़ गूंजने लग जाती है और चाचा जी और नीरा और रूही भाग कर घर का दरवाजा खोल कर बाहर आजाते है ...उस आंब्युलेन्स में से जय को निकलता देख सब की रुलाई फूट जाती है...


में अपने आँसू किसी तरह संभाले हुए वो दोनो ताबूत घर के अंदर रखवा देता हूँ...उसके बाद नीरा मेरे सीने से लग कर रोने लग जाती है....और अपने हाथो से मेरे सीने पर मारने लग जाती है....



नीरा--ये क्या हो गया भैया....सब कुछ ख्तम हो गया भैया....अब कैसे जियेंगे हम सभी...और बेसूध होकर मेरी बाहो में झूल जाती है ....

अंदर भाभी अभी भी वैसे ही खड़ी थी...उनके हाथो ने अभी भी मेरा लिखा हुआ लेटर पकड़ रखा था...उधर रूही उन दोनो ताबूतो को खोल चुकी थी और वो कभी भैया से कभी पापा की बॉडी से लिपट लिपट के रोने लग गयी थी...


एक औरत रोते रोते अभी माँ को संभालने की कोशिश कर रही थी.

और वहाँ खड़ा एक आदमी रूही को उन ताबूतो से दूर हटाने की कोशिश करते करते खुद भी रोने लग गया था......

घर का महॉल पूरी तरह से बदल चुका था...जहाँ थोड़ी देर पहले पूरा घर खुशियो से भरा हुआ था....वहाँ अब मातम का सन्नाटा छाया हुआ था....कोई किसी से कुछ नही कह पा रहा था...कोई किसी के आँसू पोछ नही पा रहा था....ये कैसी मनहूसियत सी छाइ है मेरे घर के उपर...कैसे में सब का दर्द बाटू...कैसे में संभालू अपने आप को....कैसे सम्भालू...अपने परिवार को...


वो आदमी मेरे पास आकर बोलता है.


रजत--जय बेटा में तेरा चाचा हूँ...देख ना किसकी नज़र लग गयी मेरे भाई को ...और राज तो अभी बच्चा था....कैसे जिएगी नेहा उसके बिना...


उनके मुँह से चाचा शब्द सुनते ही में उनके गले लग कर रोने लगता हूँ अपने सारे बाँध में उनसे गले लगने के बाद तोड़ देता हूँ...वो खुद भी मेरे साथ रोए जा रहे थे...और कहे जा रहे थे...


चाचा--बेटा अपनी माँ और भाभी को संभाल...उनको दूसरे कमरे में लेकर जा और होश में लाने की कोशिश कर ...जब तक में इन दोनो की अंतिम यात्रा की तैयारी करता हूँ...

में--चाचा जी कुछ देर मुझे अपने सीने से लग कर रोने दो इन दो दिनो में दिल खोल कर रोना चाहता था लेकिन मुझे सहारा देने वाला कोई कंधा मुझे नही मिला जहाँ में सिर रख के रो सकूँ...


चाचा--बेटा हम मर्द है...और हम लोगो की ये बदक़िस्मती है कि हम अपनो के जाने पर रो भी नही सकते...क्योकि पूरे परिवार का ध्यान हमे ही रखना होता है...कुदरत ने इसीलिए आदमी का दिल सख़्त बनाया है और औरत का दिल इतना नाज़ुक क्योकि वो औरत भी हमारे दिल के आँसू अपनी आँखो से बहा देती है...


में--पर चाचा में कैसे संभालू इन सब को कैसे दे पाउन्गा में इन लोगो को वो खुशिया जो सिर्फ़ पापा और भैया ही दे सकते थे.


चाचा--बेटा अब तुम घर के सब से बड़े मर्द हो यानी इस परिवार के मुखिया...और परिवार के मुखिया का बस एक ही फ़र्ज़ होता है...अपने परिवार को हमेशा हँसता खेलता वो रख पाए...अब अपने आँसू पोछो और सम्भालो उन सभी को जिन्हे तुम्हारे पापा और भाई तुम्हारे भरोसे छोड़ कर गये है...


इतना कह कर वो घर से बाहर अपनी गाड़ी लेकर निकल जाते है...अब कुछ पड़ोसी भी हमारे घर में आ चुके थे जो मम्मी भाभी और रूही को संभाल रहे थे....तभी अचानक....नीराअ कहाँ गयी...

ये सोचते ही मेरा कलेजा धाड़ धाड़ बजने लगता है...में पूरे घर में बदहवासों की तरह उसे भागते हुए ढूँढने लग जाता हूँ..किसी को उसके बारे में कुछ पता नही होता.....


में बाहर गार्डन में आजाता हूँ लेकिन नीरा यहाँ भी नज़र नही आती...तभी मेरी नज़र गार्डन के एक पेड़ पर बने ट्री हाउस पर पड़ती है...नीरा जब भी बिना बताए गायब होती थी तब वो हम लोगो को इसी ट्री हाउस में मिलती थी...
मुझे लगा शायड होश में आने के बाद वो उस ट्री हाउस में चली गयी हो....


में तुरंत उस ट्री हाउस पर चढ़ जाता हूँ और अंदर जाकर देखता हू वहाँ नीरा अपना सिर अपने घुटनो पर रख कर लगातार रोए जा रही थी.....उसको इस तरह से रोता देख....मुझे अपनी खाई हुई वो कसम याद आ गई.... तेरी कसम... में तेरे सारे दर्द अपने उपर ले लूँगा...........,

में नीरा के पास जाकर बैठ गया और उसको अपनी बाहो में भर लिया...वो मुझ से किसी लता की तरह बिल्कुल चिपक गयी और उसके रोने की रफ़्तार लगातार बढ़ती ही जा रही थी में प्यार से उसको चुप करने की कोशिश करने लग गया...लेकिन वो तो बस रोए ही जा रही थी.

रोते रोते उसकी साँस भी उखड़ने लग गयी थी...उसको हिचकिया भी आने लग गयी थी रोते रोते...

मुझे समझ में नही आया कैसे में नीरा को चुप कराऊ....तभी मुझे याद आ गया भाभी ने मुझे किस तरह नदी के पास चुप करवाया था...


मैने अपने होंठ नीरा के होंठो से जोड़ दिए और उसे कस कर अपनी बाहो में भर कर उसके होंठ चूसने लगा .....नीरा मेरे इस तरह से करने से एक दम से हड़बड़ा जाती है और मुझ से दूर हट जाती है..



नीरा--भैया ये क्या कर रहे हो आप...



में--तू रोना बंद नही कर रही थी तो मुझे ऐसा करना पड़ गया...मुझे माफ़ कर देना नीरा.


नीरा--नही भैया आप माफी मत माँगो...में ही रोते रोते कैसे यहाँ पहुँच गयी मुझे खुद भी परा नही चला...आपने बल्कि अच्छा किया जो मुझे उस अंधेरे से निकाल दिया...

और उसके बाद वो मेरे सीने से लग कर सूबकने लगती है...


नीरा--भैया अब क्या होगा??कैसे इस परिवार में फिर से खुशिया वापस आएँगी...


में--तू चिंता मत कर तेरा भाई अभी ज़िंदा है में अपने परिवार की खुशी के लिए कुछ भी कर जाउन्गा...चल अब घर में चल और सबको संभालने में मेरी मदद कर....


नीरा--भैया मुझे यहीं रहने दो में वहाँ किसी का सामना नही कर पाउन्गि ....कैसे देखूँगी में माँ की आँखो में आँसू और भाभी तो बस पत्थर की तरह हो गयी है...कैसे संभालूगी में उन सब को....कैसे???

में--यही सवाल मेरे मन मे भी था जब में दुबई गया था, पापा और भैया को लेकर आने के लिए....अब तू खुद को मजबूत कर और चल मेरे साथ हम दोनो को मिलकर इस घर की खुशिया वापस लानी है...


नीरा--ठीक है भैया अब में नही रोउंगी ....



उसके बाद हम दोनो वहाँ से उतर कर घर के अंदर आ जाते है...माँ होश में आ चुकी थी और आस पास की औरतों के साथ वही बैठ कर रोने लग गयी थी...
 
उसके बाद हम दोनो वहाँ से उतर कर घर के अंदर आ जाते है...माँ होश में आ चुकी थी और आस पास की औरतों के साथ वही बैठ कर रोने लग गयी थी...

वो मुझे देखते ही उठ के मेरे पास आकर खड़ी हो जाती है और एक टक मुझे बस घुरे ही जा रही थी...और तभी वो मेरे सीने पर मुक्के बरसाते हुए रोने लग जाती और मेरे सीने से लगते हुए कहने लगती है...


मम्मी--तूने खुद को कैसे अकेला कर लिया इस दर्द में....कैसे सह गया तू अपने आँसू क्यो नही बताया हम लोगो को....क्यो बिना बताए चला गया हम लोगो को वहाँ हँसता बोलता हुआ छोड़कर....कैसे सांभाला तूने अपने पापा और भाई की जुदाई का दर्द...


में--मम्मी में कैसे सामना करता आप सभी का....कैसे. में अपने हँसते खेलते परिवार में खुद ही दुख की आग लगा देता ...और में भी अब रोने लगता हूँ...

हम दोनो माँ बेटे एक दूसरे के सीने से ऐसे ही काफ़ी देर तक रोते रहे तभी वहाँ किसी औरत ने मम्मी से कहा...


रजनी--भाभी....नेहा के आँसू नही निकल रहे...उसका रोना बहुत ज़रूरी है वो इस दर्द को अपने दिल से बाहर नही आने दे रही...


मम्मी मुझे छोड़ कर तेज़ी से भाभी के रूम की तरफ़ बढ़ जाती है और भाभी को इस हालत से निकालने की कोशिश करने लगती है ...


भाभी की आँखे बिल्कुल पथरा गयी थी वो बिल्कुल उस समय एक ज़िंदा लाश की तरह उस कुर्सी पर बैठी थी और एक टक दरवाजे को घुरे जा रही थी....


मम्मी से उनकी ये हालत बर्दास्त नाही हुई और वो उनके गालो पर चान्टे मारने लग जाती है लेकिन शायद चान्टो का दर्द कुछ भी नही था उनके दिल में दबे उस दर्द के आगे...


में मम्मी को इस तरह से मारता देख भाभी से लिपट जाता हूँ...और मम्मी को उन्हे मारने से मना करता हूँ.


मम्मी--जय तू हट जा यहाँ से...इसका रोना बहुत ज़रूरी है वरना ये ऐसे ही पागल हो जाएगी...


में--मम्मी आप लोग यहाँ से जाओ में भाभी को होश में लाने की कोशिश करता हूँ...आप मुझ पर भरोसा रखो में इन्हे किसी भी कीमत पर होश में ले आउन्गा...


मम्मी--बेटा अब तू ही कुछ कर इसका होश में आना बहुत ज़रूरी है...


उसके बाद वो लोग वहाँ से चले जाते है...


में भाभी से कहता हूँ..


में--भाभी आपको याद है उस दिन जब आपने मुझे नदी पर किस किया था तो उसके बाद आपने क्या कहा था....

आपने कहा था में तेरे भैया से अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती हूँ...
आपका वो प्यार मर गया है उठो और होश में आओ ....
मर चुका है आपका वो प्यार जो आपको आपको जान से भी प्यारा था....
मर चुका है आपकी माँग का सिंदूर....
तोड़ डालो अपने हाथ की ये चूड़िया...(मैने भाभी की चूड़िया अपने हाथो से दबाकर तोड़ दी)

तोड़ डालो ये मंगलसूत्र जिसकी याद में आपने पहन रखा है...

मैने जैसे ही भाभी के मंगलसूत्र की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया .....टदाअक्कक ......एक ज़ोर दार थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ गया...


भाभी--हा .....हा....हा..... मर चुका है मेरा प्यार मर चुका है मेरी माँग का सिंदूर....लेकिन मेरे मंगलसूत्र को हाथ मत लगाना कभी भी वारना में जान ले लूँगी तेरी...

और इसी के साथ वो फूट फूट कर रोने लगती है उनका रोने की आवाज़ इतनी तेज थी कि घर की दीवारे भी थर्रा उठी थी उनको रोता हुआ देख कर मैने उनको अपनी बाहो में भर लिया...तब तक मम्मी भी भाभी के रोने की आवाज़ सुनकर रूम में आ चुकी थी......

भाभी को मम्मी के साथ छोड़कर में रूम से बाहर निकल जाता हूँ...


बाहर नीरा और उसके साथ 2 और लड़किया खड़ी थी ...नीरा मुझे देखते ही मेरे गले से लिपट गयी...


नीरा--भैया अगर आज आप ना होते तो पता नही भाभी कैसे अपने दर्द से बाहर आती ....


में--नीरा रूही कहाँ है...और ये दोनो लड़किया कौन है जो तेरे साथ खड़ी है...



नीरा--भैया ये चाचा जी की लड़कियाँ है हमारी बहने है. बड़ी वाली दीदी दीक्षा और छोटी का नाम कोमल है....और जो वहाँ ब्लू साड़ी में आंटी बैठी है वो हमारी सग़ी चाची है....आपके यहाँ आने से थोड़ी ही देर पहले ये सब यहाँ आए थे...और रूही दीदी शायद किचन में है.....


में --अच्छा तू इन सब का ख्याल रख में रूही से मिलकर आता हूँ .,,,



में किचन में पहुँच कर देखता हूँ रूही खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश का रही थी....पता नही कैसे वो अपनी आँखो से आँसू बहने से रोक पा रही थी...में लगातार उसको वहाँ काम करते हुए देख रहा था....लेकिन उसने मुझे देख कर भी अनदेखा कर दिया....


लेकिन जब में काफ़ी देर तक ऐसे ही उसे देखता रहा तो वो सारे काम छोड़कर भागती हुई मेरे गले से लग गयी और रोना शुरू कर दिया....
 
रूही--भैया ये कैसी विपदा आ गयी इस घर पर...क्या हो गया ये सब...और आप भी अकेले ही इस तूफान का सामना करने निकल पड़े...कम से कम मुझे तो बता देते भैया.....



में--रूही अपने आप को संभाल सब ठीक हो जाएगा...अब हम लोगो को ही इस घर को फिर से हँसता खेलता घर बनाना है...


उसके बाद में रूही के आँसू पोछ कर उसके माथे पर एक किस कर देता हूँ तभी वहाँ कोमल और दीक्षा भी आजाती है और एक तरफ खड़ी हो जाती है हम दोनो का एक दूसरे के प्रति प्यार देख कर उनकी रुलाई फूट जाती है...में उन दोनो की तरफ़ अपनी बाहे फैला देता हूँ और वो दोनो किसी मासूम बच्ची की तरह मुझ से लिपट जाती है...


दीक्षा--भैया हम दोनो बहने हमेशा एक भाई के प्यार के लिए तरसती रही...हमे तो ये पता ही नही था कि हमारा कोई भाई भी है...और में अपने भाई से मिली भी तो ऐसे समय जब वो खुद टूटा हुआ है...


में--मेरी बहना अगर मुझे पता होता कि मेरी और भी कोई बहन है तो में कब का तुम लोगो से मिल चुका होता....तुम लोगो ने कुछ खाया या अभी तक बिना खाए पिए ही हो...


कोमल--भैया हम लोगो को अभी भूक नही लगी है लेकिन आपको देख कर लगता है आपने काफ़ी दिनो से कुछ नही खाया है...



में--नही कोमल मुझे भी भूक नही है...अब में थोड़ा काम कर लेता हूँ चाचा जी अकेले कितना काम संभालेंगे.
और ये कह कर में वहाँ से बाहर निकल जाता हूँ....बाहर मुझे चाचा जी भी मिल जाते है



चाचा--बेटा अब हम लोगो को थोड़ा जल्दी करना पड़ेगा पंडित जी भी आ गये है और अंतिम यात्रा के लिए अर्थी भी तैयार हो चुकी है...अब तुम ही इस घर के बड़े बेटे हो इसलिए तुम्हे ही इजाज़त देनी होगी किशोर और राज की अंतिम यात्रा के लिए...


में--चाचा जी इस घर के बड़े आप है में तो आपके नाख़ून के बराबर भी नही हूँ...आप जैसा उचित समझे वेसा करे...मुझे आप बस ये बता दीजिए कि मुझे क्या करना है...


चाचा--बेटा तुम्हारी माँ और भाभी के पास भी जाकर इस अंतिम यात्रा के लिए इजाज़त ले लो...


में--चाचा में कैसे सामना कर पाउन्गा उन दोनो का ....कैसे मुझे वो इजाज़त दे देंगी .


चाचा--वो दोनो समझदार है उन्हे इस बात की पूरी समझ है...बस तू वहाँ जा और उनसे बात कर...



में फिर भाभी के रूम की तरफ़ चल देता हूँ और वहाँ मम्मी के सामने बैठ जाता हूँ...अपना सिर नीचे झुकाए हुए ...


में---मम्मी में आपसे और भाभी से ...पापा और भैया की अंतिम यात्रा की इजाज़त माँगने आया हूँ...


भाभी--लेजाओ राज को में नही रोकूंगी तुझे...मुझे मेरा राज हँसता बोलता हुआ पसंद था...मम्मी देखो ना कैसे रूठ गये है अब मुझ से बात भी नही कर रहे....कैसे जियूंगी में इनके बिना इन्होने ज़रा भी फिकर नही करी मेरी....सब कुछ ख्तम हो गया लेजा जय इस लाश को मेरी आँखो के सामने से...


मम्मी--जय बेटा जो होना था वो हो गया अब हम तेरे पापा और भाई की अंतिम यात्रा में बाधक बनके उनकी आत्मा को शांति नही दे सकते...इसीलिए जैसा परंपरा कहती है सारे काम वैसे ही होंगे...ले जा तू में इजाज़त देती हूँ...



उसके बाद मैने बाहर आकर चाचा जी को इजाज़त दे दी...चाचा जी और कॉलोनी के कुछ अनुभवी लोगो ने आर्थिया पहले ही बाँध दी थी फिर ...पूरे विधि विधान के हिसाब से अंतिम यात्रा शुरू हो गयी....उस समय घर में एक कोलाहल मच चुका था माँ और भाभी किसी के संभाले नही सम्भल रही थी और में अपने दोनो कंधो पर अपने भाई और अपने पापा की आर्थियो को ढो रहा था.....

हम वापस घर आ गये थे अंतिम संस्कार करके.
में अब एकांत चाहता था...मैने चाचा से बात करी.


में--चाचा जी में थोड़ी देर बाहर जाना चाहता हूँ ...क्या अभी मेरी कोई ज़रूरत है यहाँ.


चाचा--बेटा वैसे तो कोई काम नही है लेकिन पहले कुछ खा ले फिर चले जाना .


में--चाचा जी भूक नही है मुझे...में वापस आकर कुछ खा लूँगा.


उसके बाद मैने अपनी कार बाहर निकाली और आगे बढ़ गया....में लगातार कार चलाए जा रहा था..तभी मुझे एक दुकान दिखी जिस पर लिखा था इंग्लीश वाइन शॉप...

मैने अपनी कार वहाँ रोकी और शॉप की तरफ़ आगे बढ़ गया ...मुझे नही पता था कौनसी शराब कैसी होती है ....मैने बस इन दो तीन दिनो में ही पी थी आज तक उस से पहले कभी नही...हाँ पापा को ज़रूर पीते हुए देखा था एक दो बार....पापा कौनसी शराब पीते थे ये मुझे याद नही आ रहा था...बस उसका कलर याद था कुछ रेड रेड सा...और बोतल का डिज़ाइन याद था...


दुकान पर जाकर....


में--भैया शराब की बोतल चाहिए...


दुकानदार--कौनसी बोतल चाहिए सर आपको...



में--भैया वो जिस में रेड कलर की शराब आती है और जिसकी बीटल थोड़ी मोटी और चौकोर होती है...


दुकानदार--सर आपको उसका नाम नही पता है क्या...


में--नही भैया बस इतना ही पता है .....और हाँ उसकी बोतल पर एक खुरदूरी सी उभरी हुई डिज़ाइन बनी होती है जैसे कोई पत्थर की दीवार हो...




तभी उसका एक साथी दुकान दार बोल पड़ता है....ये ओल्ड मॉंक की बोतल माँग रहा है इसको वो दे दे...
लेकिन वो दुकानदार दूसरे वाले को बोलता है ये बीएमडब्ल्यू कार लेकर आया है ये ओल्ड मॉंक कैसे झेलेगा...

दूसरा दुकानदार--तू इसको एक बार ओल्ड मॉंक की बोतल निकाल कर तो दिखा हो सकता है ये उसे पहचान जाए.


वो दोनो आपस में जिस भाषा में बात कर रहे थे वो एक आदिवासी भाषा थी जो नोर्मली बांसवाड़ा और डूंगरपुर आँचल के लोग बोला करते थे इस भाषा को बागड़ी कहा जाता है जोकि मुझे समझ में नही आती...
 
दुकानदार मुझे एक बोतल निकाल कर देता है और बोलता है सर इसी बोतल के बारे में बात कर रहे हो क्या आप...


में वो बोतल देखते ही पहचान जाता हूँ ...


में--हाँ भैया यही वाली ....कितने पैसे दूं...


दुकानदार--भैया 310 र्स...


में--कितने...310र्स...बस


इन दिनो जो मैने शराब पी थी उसका एक पेग 2000 से कम का नही था और 310 रुपये की बात ने मुझे सचमुच चौका दिया था...


मैने दुकानदार को वो पैसे दे दिए और उसने खुले पैसे के बदले मुझे एक ग्लास और पानी की बोतल और एक नमकीन का पाउच पकड़ा दिया...


में--भैया ये अच्छी तो है ना


दुकानदार--ये सिर्फ़ मजबूत दिल वालो के लिए है...इसको अधिकतर आर्मी वाले ही यूज़ करते है...

उसके बाद में वहाँ से निकल कर अपनी कार के पास पहुँच गया और बोतल को और सारे सामान को मेरी बगल वाली सीट पर रख दिया...


कार में बैठ के सब से पहले उस पानी की बोतल को खोल कर उसमें से थोड़ा पानी पिया और फिर इस शराब की बोतल को उठा कर देखने लग गया...फिर उसका ढक्कन खोल कर साथ में लाए हुए ग्लास में आधा भर देता हूँ और उपर से थोड़ा सा पानी मिला देता हूँ...



पहला सीप लेते ही मेरे पूरे बदन में झुरजुरी आ जाती है...में उस में थोड़ा पानी और मिला देता हूँ...और फिर पीने लगता हूँ अब उसका टेस्ट मुझे थोड़ा मीठा मीठा लग रहा था. उसके बाद में वो ग्लास ख्तम करके कार आगे बढ़ा देता हूँ....में काफ़ी आगे निकल कर एक गाँव को क्रॉस करता हुआ एक तालाब के किनारे पहुँच जाता हूँ अंधेरा हो चुका था लेकिन चाँद की चाँदनी में वो झील चमक रही होती है.

सामने हरे भरे पहाड़ इस हल्के से उजाले में बिल्कुल सॉफ दिखाई दे रहे थे...में अपनी गाड़ी वही लगा देता हूँ और कार के बोनट पर बैठ कर ग्लास में शराब भरने लग जाता हूँ...तभी एक ग्रामीण वहाँ पहुँच कर मुझे बोलता है....बेटा यहाँ ज़्यादा देर मत रहना यहाँ पानी पीने के लिए पन्थेर आते रहते है...इस लिए जल्दी ही यहाँ से निकल जाना......

में उस ग्रामीण की बातो से घबराया नही क्योकि अगर कोई बाहर का आदमी होता तो तुरंत वहाँ से चला जाता....उसने सच बोला था वहाँ पेंथर्स आते है लेकिन वो इंसानो पर आम तौर पर हमला नही करते...


में कार के बोनट पर बैठा बैठा शराब पीने लग गया .....और सोचता जा रहा था अब कैसे क्या करना है....कैसे इस परिवार को संभालना है...लेकिन मुझे कोई रास्ता दिखाई नही दे रहा था...तभी मेरे मन में पता नही क्यो सुहानी की याद आ गयी...मैने तुरंत उसे फोन लगा दिया...


सुहानी--हेलो सर कैसे है आप अब...


में--सुहानी में ठीक हूँ लेकिन किन्ही बातो से थोड़ा परेशान भी हूँ...



सुहानी--सर आपकी आवाज़ से ऐसा लग रहा है जैसे आपने काफ़ी ड्रिंक कर ली है....



में--तुमने सही पहचाना सुहानी ....मैने आज काफ़ी ड्रिंक कर ली है...


सुहानी--ठीक है सर पी लीजिए लेकिन अपने होश में रहो तब तक ही पीना...क्योकि आपको इस हाल में देख कर आपके घर वाले दुखी हो जाएँगे...


में--सुहानी मुझे कुछ समझ नही आ रहा में अब क्या करूँ....कैसे अपने परिवार को खुश रखू...कैसे उन लोगो के चेहरो पर मुस्कुराहट फिर से ले आउ...


सुहानी--जवाब बड़ा सिंपल है सर....सब से पहले आपको खुश रहना सीखना होगा उसके बाद ही आप किसी को खुश रख सकते है...


में सुहानी की इस बात से प्रभावित हुए बिना नही रह सका ...


में--सुहानी तुमने बिल्कुल ठीक कहा अब से में खुद को पूरी तरह से बदल लूँगा....


सुहानी--सर आपको बदलने की कोई ज़रूरत नही है...आपको आपके परिवार वाले इसी रूप में पसंद करते है...खुद को बदल लेने से आप उनको और दुख पहुचाओगे...


में--सुहानी तुम्हारी इन्ही बातो के कारण मैने तुम्हे फोन लगा दिया...तुम मेरे सारे सवालो का जवाब बड़ी आसानी से दे देती हो....


सुहानी--ठीक है सर आप अपना ख्याल रखिए मेरा भाई और बहन आने ही वाले है में उनके लिए कुछ बना रही थी....


में--लेकिन तुमने तो बताया था कि तुम्हारा बस छोटा भाई है...


सुहानी--मेरे पापा ने दो शादिया करी थी उनकी दूसरी शादी से उनको एक बेटी भी थी...लेकिन उस दुर्घटना में पापा और उनकी दूसरी वाइफ की डॅत हो गयी थी और रीना बच गयी थी...



में--क्या नाम लिया तुनने रीना???


सुहानी--हाँ सर क्या आप उसे जानते है....



में--कल ही एक रीना से मिला था जो एर होस्टेस्स थी...वो बिल्कुल तुम्हारी तरह बाते किया करती है....



सुहानी--सर आप उसी रीना से मिले थे जो मेरी बहन है में आपको बताना भूल गयी थी जिस फ्लाइट से आप जा रहे थे उसकी जानकारी मैने रीना से ही ली थी...


में--देखो ना सुहानी ये दुनिया भी कितनी अजीब है जब भी मुझे किसी की ज़रूरत पड़ी तुम किसी ना किसी रूप में मुझे सम्भालने के लिए मिल ही गयी....पहले रिजोर्ट में...फिर फ्लाइट में...और अब फोन पर...पता नही तुम्हारा ये क़र्ज़ में कैसे चुका पाउन्गा....रीना आए तो उसको मेरी तरफ़ से शुक्रिया कहना क्योकि में उसको कुछ बोल भी नही पाया...


सुहानी--सर आप अपना ध्यान रखिए और आप जहाँ भी है वहाँ से घर जाइए आप का वेट कर रहे होंगे सभी...
और उसके बाद सुहानी ने दुबारा कॉल करने का बोलकर फोन काट दिया.


मैने अपने हाथ में रखा हुआ ग्लास एक साँस में ख्तम किया.

वो बोतल अब ख्तम हो गयी थी में उस बोतल को हाथ में लेकर देख ही रहा था के मेरी नज़र मुझ से कुछ ही दूर खड़े एक पेंथर से टकरा गयी.

उसकी आँखे किसी छोटे बल्ब की तरह चमक रही थी मैने हाथ में पकड़ी हुई बोतल उसके उपर फेकि और फुर्ती से कार का दरवाजा खोल कर कार के अंदर घुस गया.,.,,,
 
में वहाँ से अपनी कार लेकर तुरंत निकल गया ....पेंथर को देखते ही मेरा नशा काफूर हो गया था...में अब सीधा घर आ चुका था वहाँ सब लोग मेरा ही वेट कर रहे थे....मम्मी और भाभी बस वहाँ नही थी वो लोग शायद अपने रूम में थे ....नीरा आते ही मुझ से लिपट गयी....


नीरा--भैया आप कहाँ चले गये थे....हम लोग कब से आपका वेट कर रहे थे.
भैया आपने........

शायद नीरा को मुझ में से शराब की स्मेल आ गयी थी...


नीरा--भैया आप अपने रूम में चलिए में आपके लिए कुछ खाने के लिए वही ले आती हूँ....


में--मैने धीरे से कहा--नीरा मुझे भूक नही है...


नीरा--पहले आप रूम में चलिए उसके बाद बात करते है...


वहाँ बैठे सभी लोग बस हम दोनो को ही देखे जा रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे कि क्या हो रहा है...


में अपने रूम में चला गया और अपने कपड़े खोल कर एक बारमोडा डाल कर बिस्तर पर लेट गया.


थोड़ी देर बाद नीरा आ गयी वो अपने साथ खाना लेकर आई थी...


मुझे उठाते हुए...


नीरा--भैया पहले कुछ खा लो फिर सो जाना..


में--नीरा मुझे भूक नही है...तू मुझे यहाँ सोने दे..

नीरा--भैया प्ल्ज़ कुछ खा लो आपको मेरी कसम है...देखो आपका इंतजार करते करते मैने भी कुछ नही खाया....


नीरा की ये बात सुनकर में तुरंत बेड पर बैठ गया...


में--तूने अभी तक क्यो कुछ नही खाया... मेरा इंतजार क्यो कर रही थी तू...


नीरा--मुझे बड़ी घबराहट हो रही थी भैया आप जब काफ़ी देर तक नही आए...


में--चल अब खाना लगा हम दोनो साथ में खाएँगे...


नीरा--भैया आप कभी भी मुझे ऐसे छोड़कर मत जाया करो...


में --नही जाउन्गा अब कभी भी तुझ से दूर....चल अब खाना लगा ....


फिर हम दोनो खाना खाने लगते है ....में नीरा को अपने हाथो से खाना खिला रहा थे..... और नीरा मुझे अपने हाथो से....


थोड़ी देर में हम लोग खाना खा चुके थे...और नीरा खाली प्लॅट्स उठा कर ले गयी...

उधर किचन में रूही नीरा से बोलती है...


रूही--नीरा तू कोमल के साथ तेरे रूम में सो जाना ....दीक्षा और चाची मेरे रूम में सो रहे है...और चाचा जी बाहर वाले हॉल में...


नीरा--दीदी आप कहाँ सोने वाली हो...


रूही--में जय के रूम में सो जाउन्गि...चल अब जल्दी जल्दी सारा काम निपटा लेते है...


नीरा को रूही की ये बात बड़ी अटपटी लगती है...क्योकि उसने जो रिजोर्ट में देखा था उस से उसका विश्वास पूरी तरह से रूही से टूट गया था....


नीरा--दीदी आप भी हम लोगो के साथ ही सो जाना ....भैया को क्यो परेशान करती हो .....


रूही--नीरा मुझ से बहस मत कर....जो मैने कह दिया उसको मान...


और उसके बाद रूही वहाँ से बाहर चली जाती है...


नीरा को अब ये डर सता रहा था कि कहीं रूही .भैया के नशे में होने का फ़ायदा ना उठा ले...लेकिन नीरा इस हालत में कुछ कर भी नही सकती थी. वो अपना मन मसोस कर किचन सॉफ करने लग जाती है.......

कोमल और नीरा कमरे में आ चुके थे कुछ देर उन्होने इधर उधर की बाते करी और फिर कोमल को नींद आ गयी...शायद सारे दिन की थकान वो बच्ची ज़्यादा देर बर्दाश्त नही कर सकी...


लेकिन नीरा की आँखो में नींद नही थी...

उसे बस एक ही डर सता रहा था कहीं रूही भैया के साथ कुछ ग़लत ना कर दे...


और फिर वो इन सवालो के झन्झावटो से खुद को ज़्यादा देर रोक नही पाई और भैया के रूम...की तरफ बढ़ गयी....


इस घर में अभी एक शक्श और जाग रहा था जो अपनी पुरानी यादों में खोया हुआ था...वो शक्श थी रजनी....


रजनी पुरानी बातो के बारे में सोचे जा रही थी जब वो शादी करके अपने घर आई थी तब वो किशोर के बारे में जानती तक नही थी...एक दिन जब वो किसी काम से उदयपुर आए हुए थे तब जाकर किशोर से मुलाकात हुई थी...रजनी को उस समय 4 साल होगये थे शादी करे हुए...लेकिन अभी तक उसकी गोद हरी नही हुई थी....
 
जब रजनी ने पहली बार किशोर को देखा था वो उसी वक़्त उस पर आसक्त हो गयी थी....उसे बस हर समय किशोर ही नज़र आता था...रजत वैसे तो सेक्स में ठीक था लेकिन रजनी को बच्चा चाहिए था हर कीमत पर....

वो अपने मायके जाने के बहाने से किशोर से मिलने लगी....और पहली बार मिलने के बाद हे कुछ दिनो बाद उसकी गोद हरी हो गयी थी...

पहली लड़की हुई जिसका नाम दीक्षा रखा गया....लेकिन रजनी को एक बेटा भी चाहिए था वो कुछ साल सबर रख कर .....फिर से किशोर से मिलने लगी उसको किसी बात से मतलब नही था ....बस उसको एक लड़का चाहिए था...


जब दूसरी भी लड़की ही पैदा हुई जिसका नाम कोमल रखा गया तो एक दिन रजनी ने किशोर को फोन किया. और जैसलमेर मिलने के लिए बुला लिया...



किशौर--क्या हुआ रजनी...तुमने मुझे इतनी जल्दी में क्यो बुलाया है...


रजनी--गुस्से से किशोर का गिरेबान पकड़ लेती है....मैने तुमसे बेटा माँगा था. और तुमने मेरी गोद बेटियों से भर दी...


किशौर--ये क्या गँवारों की तरह बेटा बेटा लगा रखा है...जमाना बदल गया है रजनी आज बेटियाँ भी बेटो के बराबर हक़ रखती है...


रजनी--में वो सब नही जानती मुझे एक बेटा चाहिए...


किशौर --रजनी ज़िद्द मत कर ....मेरे कह देने और तेरे माँग लेने से बेटा कोई आसमान से नही टपक पड़ेगा जो मिला है...उस से संतोष कर...


रजनी--गुस्से से चिल्ला कर.... तो फिर ठीक है मिस्टर. किशोर गुप्ता...तूने मुझे बेटा नही दिया...
ठीक है अब से में मेरी बेटियों को बेटा बना कर ही पालूंगी....
तूने मेरी लाचारी का फ़ायदा उठाया...तू मेरे जिस्मा को नोचता रहा...
और मेने बेटा पाने के चक्कर में तुझे अपना सब कुछ दे दिया...

तेरी कसम...किशोर गुप्ता तेरे खानदान में ऐसी आग लगाउन्गी जो बुझाने से भी नही बुझेगी...

ये ख्याल आते ही...रजनी उठ के बैठ जाती है...


रजनी--है भगवान ये कैसी कसम खा ली थी मैने उस वक़्त... में कैसे भूल गयी जिस आदमी के परिवार को बर्बाद करने की मैने कसम खाई थी... उसी की वजह से मेरा परिवार आज आबाद है...
उसी के कारण मेरी गोद भरी...और मेने उसी को तबाह करने की कसम कैसे खा ली...मेरा दिल जानता है मैने कभी किशोर और उसके परिवार का कभी बुरा नही चाहा.... बस उस दिन पता नही बेटे की चाह में क्या क्या बोल गयी...है भगवान मुझे माफ़ करना....


और उसके बाद रजनी अपनी आँखे बंद कर के सो जाती है....


उधर नीरा जय के रूम के बाहर खड़ी थी...


उसके मन में आने वाला पल एक भयानक सपने की तरह लग रहा था .

वो खुद को दौराहे पर खड़ा महसूस कर रही थी....तभी अचानक वो कुछ निश्चय करके दरवाजा खोल देती है....


और जो वो देखती है उसकी आँखो में से झार झार आँसू बहने लगते है...


सामने बेड पर रूही और जय बिल्कुल आराम से सो रहे थे...

नीरा के मन का बोझ अब हल्का होने लगा था...वो जय की तरफ़ बढ़ जाती है जय का मासूम चेहरा देख कर उसका मन उस चेहरे को चूमने का करता है लेकिन शायद ये सही वक़्त नही था...फिर वो रूही की तरफ़ देखती है...रूही इस समय किसी मासूम बच्ची की तरह...एक टेडी बियर अपनी बाहो में भर कर सो रही थी...नीरा कुछ पल जय और रूही को निहारती है...और अपने रूम में वापस आकर सो जाती है.....

अब उसके मन में कोई ग़लत फ़हमी नही थी अपनी प्यारी बहन रूही के लिए....और मेरे रीडर्स से भी निवेदन है रजनी के लिए भी आप वही प्यार अपने मन में ले आए जो नीरा के मन में जय के प्रति है.....
एक बार फिर सूरज अपने प्रकाश से रात के घने अंधेरे को भगा देता है...
यही तो प्रकृति का नियम है...जहा प्रकृति अंधेरा फैलाती है...वही उसे दूर भी करती है...
इसी तरह जीवन में सुख और दुख निरंतर चलते रहते है....
उसी तरह जैसे सर्दी के बाद बसंत..बसंत के बाद पतझढ़..पतझड़ के बाद सावन ....जो . अपने चक्र में गतिमान रहते है...
इनको देखने वालो के लिए ये बस मौसम है...लेकिन महसूस करने वाले के लिए ज़िंदगी.....

सवेरे सवेरे....


भैया उठो सवेरा हो गया है आज काफ़ी काम करने है ....जल्दी उठो भैया.,.


ये आवाज़ में पहचानता था लेकिन ये आवाज़ वो नही थी जो मुझे रोज़ सवेरे नींद में से जगा देती थी ...ये आवाज़ नीरा की थी...


में--क्या हुआ नीरा आज तू मुझ से पहले उठ गयी...


नीरा--हाँ उठ गयी और आपको उठाने भी आ गई...जैसे आपके उपर पूरे परिवार को संभालने की ज़िम्मेदारी है...वैसे ही मैने भी आपको संभालने की ज़िम्मेदारी ले ली है...


में--क्या बात है...तू अपने छोटे छोटे कंधो पर मुझे उठा लेगी...


नीरा--हाँ में आपको उठा भी लूँगी और ज़्यादा मुँह खोला तो नीचे पटक भी दूँगी चलो अब जल्दी से फ्रेश हो जाओ पंडित जी आने वाले है...


उसके बाद नीरा वहाँ से चली जाती है..

मुझे ऐसा लग रहा था जैसे इस घर पे जो दुख के बादल छा गये थे...वो अब दूर हो गये है ...सब कुछ बिल्कुल नौरमल सा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो...

में उठ कर नहा धो कर बाहर हॉल में आजाता हूँ वहाँ चाचा जी अख़बार पढ़ रहे थे...


मैने जाते ही उनके पेर छुए...और उन्होने भी स्नेह से मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा ...


चाचा...बेटा आज हम लोगो को तीसरे की बैठक करनी है और दिन में जाकर अस्थिया भी लेकर आनी है...उसके बाद में और तेरी चाची और रूही हम तीनो अस्थिया लेकर हरिद्वार के लिए निकल जाएँगे...


में--जैसा आप ठीक समझो चाचा जी.,,पता नही अगर आप यहाँ ना होते तो में कैसे ये सब ज़िम्मेदारियाँ उठा पता ...


चाचा--बेटा मेरे होने या ना होने से कोई फ़र्क नही पड़ता...ये सब काम अपने आप आजाते है इनको सीखना नही पड़ता ...ये बिल्कुल उसी तरह है जैसे एक बछड़े को उसकी माँ का दूध पीना सीखना नही पड़ता... वो अपने आप ही उस जगह को ढूँढ लेता है जहा से उसकी भूक मिट सकती हो...


में--आप बिल्कुल पापा की तरह बात करते है चाचा जी...


चाचा--अब ये सारी बाते छोड़ और लग जा काम पर...बाज़ार से में एक लिस्ट दे रहा हूँ वो सामान जाकर ले आ और बाजार जाने से पहले तेरी मम्मी और भाभी से मिलकर जाना..


मम्मी और भाभी का नाम सुनते ही मेरे माथे पर चिंता की लकीरे उभर आई...जिसे चाचा जी ने तुरंत पहचान लिया.


चाचा--बेटा तू उन दोनो से छुप नही सकता उनसे छुप कर तू उन्हे और अकेला कर रहा है
अपनी सारी चिन्ताओ को छोड़ और उन्हे वापस इस संसार में लाने की कोशिश कर...


उसके बाद में मम्मी के रूम में चला गया वहाँ चाची भी बैठी हुई थी...


मम्मी मुझे बड़ी आस भरी नज़रो से देख रही थी....शायद वो कुछ कहना चाहती थी मुझ से ....शायद कुछ ऐसा कहना चाहती थी जो में सह ना सकूँ....शायद एक और तूफान मेरे दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था.....,
 
मम्मी मुझे बड़ी आस भरी नज़रो से देख रही थी....शायद वो कुछ कहना चाहती थी मुझ से ....शायद कुछ ऐसा कहना चाहती थी जो में सह ना सकूँ....शायद एक और तूफान मेरे दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था.....,

में मम्मी के पास जाकर बैठ गया...और मम्मी मेरे सिर पर हाथ फिराने लगी...


मम्मी--तू तेरी भाभी से नही मिला क्या अभी तक...


में--नही मम्मी ....में अब जाउन्गा उनके पास..


मम्मी--मैने तो अपनी आधी से ज़्यादा जिंदगी सुख से निकाल दी...लेकिन वो बेचारी तो अभी बच्ची है.....उसने तो अभी तक कुछ देखा ही नही है...


में--हाँ मम्मी आप सही कह रही हो भाभी...कैसे रहेगी ये सोच सोच कर मेरा दिनग फटे जा रहा है...


मम्मी--तू तेरी भाभी से बात कर अगर वो अपने मायके जाना चाहे तो जा सकती है...और वैसे भी अब वो इस घर में रह कर करेगी भी क्या ....अपने माँ बाप के साथ रहेगी तो हो सकता है उसकी दूसरी शादी भी करवा दे...



में--मम्मी ये कैसे पासिबल होगा भाभी के जीवन में इतना भारी तूफान आ गया और उनके मम्मी पापा ने यहाँ आना तो दूर एक फोन तक नही किया....वो कैसे भाभी का ख्याल रख पाएँगे...


मम्मी--बात तो तेरी सही है ...लेकिन कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा ...


में--मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा..,आप हे सलाह दो में क्या करूँ ऐसा जिस से उनकी लाइफ में फिर से खुशियाँ आ सके.



मम्मी--यही बात में भी सोच रही हूँ कब से...कैसे में उस बच्ची को दर्द की दुनिया से बाहर निकालु...क्या करूँ कुछ भी कहने की हिम्मत नही है मुझमे...

में कुछ कहना भी चाहूं तो मेरी ज़बान लड़खड़ा जाती है


में--मम्मी अब आप ज़्यादा मत सोचो में भाभी से मिलकर बाज़ार जा रहा हूँ कुछ ज़रूरी सामान लेने...

और में उठकर रूम से बाहर निकालने लगता हूँ...
में रूम के दरवाजे तक ही पहुचा होता हूँ. तभी मेरे कानो में मम्मी की आवाज़ सुनाई पड़ती है...

जो तूफान मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक देता हुआ महसूस हो रहा था वो अब मेरे सामने एक सवाल के रूप में आकर खड़ा हो गया था...


मम्मी--तू क्यो नही कर लेता नेहा से शादी.....??????

ये बात सुनते ही में मम्मी की तरफ पलट कर देखता हूँ....मम्मी मेरी आँखो में सुलगते हुए अंगारे देख के बिल्कुल खामोश हो जाती है.....और में बिना कुछ कहे वहाँ से भाभी के रूम की तरफ चला जाता हूँ...


में--भाभी घर से किसी का फोन आया क्या...अग्र आप बुरा ना माने तो में एक बात कहना. चाहता हूँ...



भाभी--नही जय किसी का फोन नही आया....में उनलोगो के लिए उसी दिन मर गई थी जब मैने तुम्हारे भैया से शादी की थी...तुम बोलो क्या कहना चाहते हो...


में--हिचक्कता हुआ ये बात कहता हूँ....भाभी अगर आप वापस जाना चाहो तो घर जा सकती हो....वैसे भी आपके लिए यहाँ कुछ भी बचा नही है....आप चाहो तो दूसरी शादी के बारे में सोच सकती हो....



भाभी--ये बात तुझे मम्मी ने कही या....तो खुद अपने मन से ये बात कह रहा हैं....


में--भाभी जो इस हालत में सही है...,में वही बात कर रहा हूँ...,



भाभी--तो फिर मेरा एक फ़ैसला तू भी सुन ले ...,,ये मेरा घर है....ये मेरे प्यार का घर है...क्या हुआ जो आज वो मेरे साथ नही है...लेकिन में ये घर कही भी छोड़ कर नही जाउन्गि......आइ थिंक तुझे तेरा जवाब मिल गया होगा .......इसलिए मुझे अब अकेला छोड़ दे और बोल दे सभी से मेरे बारे में चिंता करने की ज़रूरत नही है....



में--पर भाभी....



भाभी--मैने कहा ना अब किसी पर की गुंजाइश नही है....बस मुझे अकेला छोड़ दो तुम सब .....में अपने घर में ही रहना चाहती हो यहाँ से अगर में जाउन्गि तो एक लाश के रूप में ही जाउन्गि....



में--भाभी अगर आप यहाँ रहना चाहती हो तो में कौन होता हूँ आपको रोकने वाला.... लेकिन ऐसा ना हो कि एक दिन आप अपने फ़ैसले पर पछताओ....



भाभी--जिस दिन मुझे इस फ़ैसले पर पछ्ताना पड़ा ये मान लेना वो मेरे जीवन का आख़िरी दिन होगा.



में--लेकिन भाभी आप मेरी बात समझ ने की कोशिश करो....



भाभी--में तेरी बात अच्छे से समझ रही हूँ...लेकिन तेरी नियत को नही समझ पा रही...अगर तू चाहता है...तेरा मेरा रिश्ता ऐसे ही बना रहे तो यहाँ से चुप चाप उठकर बाहर चला जा......

में वहाँ से बिना कुछ कहे निकल गया...बाहर निकलते ही मुझे चाचा जी ने वो लिस्ट वाला काम पूरा करने के लिए कह दिया.

इस बीच चाचा जी श्मशान से अस्थिया भी लेकर आ गये थे...
 
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