Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा - Page 3 - SexBaba
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Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा

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सोनू-- क्या हुआ काकी लगता है तू सच में झूठ बोल रही थी।

फातीमा(हकलाते हुए)-- न...नही बेटा ॥ अच्छा ठीक है तू कर ले लेकीन कीसी को भी बताना मत।

सोनू-- ठीक है काकी, नही बताउगां॥

॥ अंदर कमरे में खीड़की के पास खड़ी सुनीता बोली नही कस्तुरी ये गलत है। मुझे इसे रोकना पड़ेगा, और जैसे ही वो जाने को होती है, कस्तुरी उसका हाथ पकड़ लेती है।

कस्तुरी-- रहने दो दीदी, सोनू सीखने आया था। अब कर के सीखेगा,

सुनीता-- लेकीन!

कस्तुरी-- लेकीन वेकीन कुछ नही। आप ही चाहती थी ना की कम से कम उसे ये सब पता हो। तो आप क्यूं खेल बीगाड़ रही हो,
अब आप खड़ी रहो और अपने अनाड़ी बेटे को देखो कैसे खेलता है।

सुनीता-- अनाड़ी मत बोल मेरे बेटे को।
कस्तुरी-- अनाड़ी को अनाड़ी नही तो क्या बोलू। दुसरा कोइ होता तो अब तक फातीमा के उपर चढ़ चुका होता। और वैसे भी ये खेल के बाद पता चल ही जायेगा की सोनू बेटा अनाड़ी है या खीलाड़ी॥

सुनीता कुछ नही बोलती और चुप चाप खड़ी रहती थी क्यूकीं कहीं ना कहीं उसके बेटे की हरकते एक अनाड़ी के जैसे ही थी। वो इसी लीये कमरे मे जा रही थी ताकी वो इस खेल को रोक सके नही तो कल को यही औरतें ताना मारेगीं की तेरे बेटे को कुछ नही आता।

अंदर कमरे में खाट पर फातीमा लेटी हुइ थी।

फातीमा-- देख क्या रहा है बेटा चढ़ जा मेरे उपर।
सोनू फातीमा के उपर लेट जाता है, जैसे ही सोनू फातीमा के उपर चढ़ता है, दोनो के तन बदन में सीहरन होने लगती है।

फातीमा की तो आंखे बंद हो जाती है...लेकीन जब काफी समय से सोनू के तरफ से कोइ प्रतीक्रीया नही होती तो वो अपनी आंखे खोलती है।

फातीमा-- अब चढ़ा ही रहेगा या कुछ करेगा भी।

सोनू-- सोच रहा हूं कि कहा से शुरु करुं।

फातीमा-- या अल्लाह! इस लड़के को क्या बताउं मैं॥ बेटा तेरा जहा से मन करे वहा से शुरु कर।

सोनू की हालत तो फातीमा की चुचीयां देख कर ही खराब हो चुकी थी लेकीन वो ये अनाड़ी वाला खेल थोड़ा और देर तक खेलना चाहता था।

सोनू अपना हाथ धिरे से फातीमा की चुचीयों पर रख हल्के हल्के दबाने लगता है।

फातीमा-- आह...बेटा थोड़ा जोर से दबा...आह,
सोनू-- काकी तूझे दर्द होगा।

ये सुनकर कस्तुरी और अनीता हसं पड़ती है। सुनीता को थोड़ा भी अच्छा नही लग रहा था उसके बेटे के उपर हसंना।

फातीमा-- बेटा मर्द औरत के दर्द की परवाह नही करते, क्यूकीं औरत को दर्द में भी मजा है।

सोनू थोड़ा और तेज तेज दबाने लगता।

फातीमा-- हां....बेटा....ऐसे ही आह...दबा ,
सोनू-- काकी तेरी चुचीयां तो बड़ी बड़ी है।

फातीमा-- आह...बेटा तू..उझे...मेरी चुचीयां अच्छी....आह नही लगी क्या?
सोनू-- अच्छी है काकी। अपना ये कपड़े उतारो ना।

फातीमा-- आह बेटा तू ...उही उतार दे ना।

सोनू फातीमा का कमीज निकाल देता है, फातीमा की बड़ी बड़ी गोरी चुचीयां उसकी ब्रा मे से नीकलने को हो रही थी।

ये देख सोनू बेसब्र हो जाता है, और ब्रा के उपर से ही दबाने लगता है।

फातीमा-- आ....ह सोनू मेरी चुचीयां....ह दबाने में मजा आ रहा है तूझे।

सोनू-- हा काकी, लेकीन मुझे वो छेंद देखना है। जीसमे डालते है।

फातीमा-- आह बेटा मेरे नीचे ही है, देख ले मेरी सलवार उतार के।

सोनू के हाथ की उंगलीयो को ज्यादा देर नही लगी उसके सलवार के नाड़े को खोलने में॥

॥ अब फातीमा एक लाल कलर की चडढी में थी, फातीमा खाट पर नंगी लेटी बहुत गजब ढा रही थी। सोनू का लंड ना चाहते हुए भी पैटं मे खड़ा होने लगता है। लेकीन पैटं मे ज्यादा जगह ना होने के वजह से उसे लंड मे दर्द महसुस होने लगता है।
 
सोनू ने फातीमा की चडढी भी उतार दी जीससे उसकी गोरी और फुली बुर दीख जाती है।

फातीमा-- क्यूं बेटा दीखा छेदं॥
सोनू उसके बुर की फ़ाके खोलते हुए- हां काकी अब दीखा

फातीमा और अंदर से नजारा देखने वालो की हंसी नीकल पड़ती है।

फातीमा-- तूने मेरा तो देख लीया तेरा कब दिखायेगा?

फातीमा के मुह से ये शब्द सुनकर सुनीता की धड़कन तेज हो जाती है, क्यूकी एक मां के लीये कुछ अलग ही अहेसास होता है, अपने बेटे का लंड देखना।
॥ शायद इसका एक वजह ये भी हो सकता है की समाज इसकी इजाजत नही देता। और एक मां के मन में इस प्रकार का खयाल जो ना के बराबर है।


सोनू-- काकी मै तो दीखा दूगां लेकीन कुछ और तो बता की, और क्या क्या करते है औरत के साथ।

फातीमा-- बस बेटा इतना ही करते है। और अंत मे ये छेंद मे डालकर धक्के लगा लगा कर खेल को खत्म करते है।

सोनू-- हसंते हुए) - बहुत खुब काकी , तूने तो मुझे बहुत कुछ सीखा दीया। "चल अप थोड़ा बहुत मैं भी तुझे कुछ सीखा देता हूं।

फातीमा (हसंते हुए)- अले ले, अब मेरा अनाड़ी बेटा मुझे सीखायेगा।

सोनू (मन मे)- चल बेटा अब बहुत हो गया अनाड़ी पन, अब जरा कमीनापन दीखा, यही सोचते सोचते उसने अपना पैंट उतार फेकां॥

सोनू अपनी चडढी जैसे ही नीकालता है, फातीमा की आंखे फटी रह जाती है, और उधर कस्तुरी, अनीता और सुनीता का भी यही हाल था।

सुनीता मन में)-- हाय रे दइया, ये इसका लंड है की घोड़े का। लेकीन फीर, ये मै क्या सोच रही हू, और मुझे पसीना क्यू आ रहा है।

फातिमा-- हाय रब्बा, ये...ये तेरा तो बहुत बड़ा है।
सोनू-- क्यूं सच में बड़ा है।
फातीमा-- हां बेटा। कसम से मैने अपनी जींदगी में ऐसा लंड कभी नही देखा।

सोनू-- तो अब देख ले।
फातीमा-- हट जा बेशरम, मुझे शरम आ रही है।

सोनू-- शरम आ रही है सा....ली।
फातीमा-- सोनू अपनी काकी से ऐसे बात करते है?

सोनू--तो कैसे बात करते है, मादरचोद। अनाड़ी समझी थी मुझे कुतीया। चल मुह में ले और चुस इसे ,

अंदर खड़ी सुनीता, कस्तुरी और अनिता की आंखे फटी की फटी रह जाती है।

फातीमा-- छी भला इसे कोइ मुह में लेता है क्या?
सोनू झटके में फातीमा का बाल खीचकर उसे खाट पर से नीचे अपने घुटने के नीचे बीठा देता है।
फातीमा जोर से चील्लाती है-- आ....आ.. न...नही सोनू दर्द हो रहा है। छोड़ मेरा बाल......।

सोनू-- मुह खोल साली और चुस इसे।

फातीमा मरती क्या ना करती अपना मुह खोल कर सोनू का लंड मुह में लेने लगती है।

सोनू-- ले साली जल्दी।

फातीमा(रोते हुए)-- हां तो मैं क्या करु, इतना मोटा है जा ही नही रहा है।

सोनू-- कुतीया के जैसा मुह खोल, फीर जायेगा।

सुनीता सोनू का ये रुप देख कर दंग रह जाती है, वो सोचने लग जाती है...
 
फातीमा सोनू का लंड मुह में भर लेती है, और चुसने लगती है।

सोनू-- आह साली, ऐसे ही चुस आह तेरा मुह कीतन गरम है।

अंदर से देख रही कस्तुरी और अनीता का हाथ भी अब उनकी बुर पर था। सुनीता का भी मन मचलने लगा था।

सोनू के घुटने के निचे बैठी फातीमा कुतीया की तरह मुह खोले उसका लंड चुस रही थी।

ये देख कस्तुरी-- हाय दीदी क्या कुतीया की तरह अपना घोड़े जैसा लंड चुसा रहा है। काश मैं फातीमा की जगह होती।

कमरे में अंधेरा होने की वजह से वो लोग एक दुसरे को देख नही पा रहे थे। कस्तुरी अपनी एक उगंलीया बुर में डाल चुकी थी।

सोनू -- थोड़ा और अंदर डाल मुह मेआह ।
फातीमा अपना मुह और अंदर लेती है। और आगे पिछे करने लगती है।

कुछ देर ऐसे ही चुसने के बाद सोनू अपना लंड निकाल लेता है। और फातीमा को खाट पर लीटा देता है।

सोनू उसकी एक चुची को अपने हाथ से जोर जोर मसलने लगता है।

फातीमा-- आ...............आ...........सोनू धिरे......दर्द हो रहा है।
सोनू-- चुप साली कुतीया इतनी बड़ी बड़ी चुचीयां ली है। इसको तो मैं ऐसे ही मसलूगां॥

फातीमा-- आह........बे रहम तूझे तो मै...कल देख लूगीं तेरी मां से बता दूगीं॥

सोनू अपना मुह उसकी चुचीयों में लगा कर जोर जोर से चुसने लगता है।

अब फातीमा को भी मजा आने लगता है।

फातीमा-- आह , बेरहम ऐसे ही चुस नीचोड़ ले अपनी काकी की चुचींया आह बेटा इतना मजा मुझे कभी न...हइ........इ..........जोर से चील्लाती है।

सोनू ने उसका निप्पल दात में लेकर काट जो लीया था। फातीमा के कटे निप्पल से खुन नीकल जाता है।

सोनू-- चल मेरी रांड कुतीया बन जा। तेरा बुर फाड़ता हू।

फातीमा अपनी गांड खीड़की की तरफ कीये कुतीया बन जाती है।

फातीमा-- बेटा आराम से डालना, तेरा बहुत बड़ा है।
 
सोनू उसके गांड पर जोर का थप्पड़ मारता है। और उसकी बुर पर अपना लंड टीकाये जोर के धक्के के साथ अपना लंड जड़ तक घुसा देता है।

फातीमा-- आ............मां..........मर गयी.........नीकाल इ.......से........मुझे नही लेनां......मेरी......बुर।

सुनीता , कस्तुरी और अनीता की नजर सीधा फातीमा के बुर पर पड़ती है। सोनू का लंड उसके बुर को फैला चुका था, और उसके बुर से होते हुए सोनू के लंड से उसका खुन टपक रहा था।

सुनीता के मुह से आवाज ही नीकल रही थी, वो बस आखे फाड़े वो नजारा देख रही थी।

और इधर फातीमा का बुरा हाल हो गया था, पुरे कमरे में उसकी चिखे गुंज रही थी, और सोनू बेरहमी से उसे चोदे जा रहा था।

फातीमा-- हाय रे...........सुनी.......ता मुझे......बचा.......अपने आह बे.........रहम बेटे से......मेरी बुर फाड़ दे........गा।

कस्तुरी-- आह फातीमा फाड़ेगा नही फाड़ दी मेरे सोनू ने।

सोनू-- छटपटा मत मादरचोद कुतीया बनी रही।
फातीमा अपनी गांड उठाये सोनू के लंड से जोर जोर से चुद रही थी, उसे बहुत दर्द हो रहा था, और वो बस चील्लाये जा रही थी,

आखीर वो समय आया जब दर्द का मजंर थमा और फातीमा की पुरी खुल चुकी बुर सोनू के लंड को पच्च पच्च की आवाजो के साथ अपने बुर में ले रही थी।

अब फातीमा की आवाजे सीसकीयो में बदल चुकी थी। उसकी सीसकीया ये बंया कर रहीं थी की अब उसे मजा आ रहा है।

फातीमा-- आह सोनू...मजा आ रहा है...अपनी फातीमा काकी को आ....ह बेरहमी से क्यूं चोदा रे...

सोनू-- चुप कर साली और मेरा लंड ले।

फातीमा-- आह....सोनू तेरा ये लंड आह मुझे ब....हुत मजा दे रहा है। चोद आह बेटा, आज से मै तेरी रखैल हू, बे....रहम और फातीमा झड़ने लगती है,

सोनू भी झड़ने वाला था वो भी फातीमा की गांड पर जोर का थप्पड़ मारता है, और खाट पर चढ़ फातीमा की कमर पकड़ हवा मे उठा कर एक जोर जोर से पेलने लगता है।

फातीमा दर्द से तीलमीला जाती है, अपना हाथ खाट पर टीकाये अपनी बुर का दर्द बरदाशत नही कर पा रही थी, और वो इधर उधर छटपटाने लगती है, लेकीन सोनू उसकी कमर पकड़े हवा में उढाये बस चोदे जा रहा था।

सोनू-- आह ले साली कुतीया, मेरा पानी अपने बुर में और एक जोर का धक्का मार अपना लंड सीधा उसके बुर की गहराइ में उतार देता है।

फातीमा दर्द के मारे अपना मुह कीसी कुतीया की तरह खोल जोर से चील्लाती है, और सोनू के लंड का पानी अपने बच्चेदानी के मुह पर गिरता साफ महसुस कर रही थी।

सोनू अपना पुरा पानी छोड़ उसके गांड पर जोर का थप्पड़ मारा-- आह साली मजा आ गया तेरा बुर चोद कर, और खाट पर लेट जाता है।

फातीमा वैसे ही पड़ी दर्द से अब भी रो रही थी, और सोनू लेटे लेटे वैस ही निंद मे चला जाता है।

ये चुदाइ का मजंर देख कस्तुरी और अनीता के बुर ने बहुत ज्यादा पानी छोड़ा।

सुनीता-- बेरहम कीसी कुतीया की तरह चोद चोद कर फातीमा की हालत क्या कर दी है।

कस्तूरी-- हा दीदी फातीमा की बुर तो देखो कैसे चौड़ी हो कर दी है, तेरे बेरहम बेटे के लंड ने, और खुद आराम से सो रहा है।

सुनीता चल अब चलते है,
कस्तुरी-- थोड़ा फातीमा से मील कर चलते है।

सुनीता-- नही, उसकी जीस तरह से चुदाइ हुई है, वो रात भर रोयेगी...।

अनीता-- बेचारी...दीदी अनाड़ी समझ अपनी बुर फड़वा ली,

और तीनो हंसते हुए घर से बाहर नीकल अपने घर की तरफ चल देती है,

फातीमा रोते रोते आधी रात बित गयी, फीर वो रोते रोते सोनू के सीने पर अपना सर रखी लेट जाती है, और उसे बांहो मे भर कुछ समय बाद वो भी निंद की आगोश में चली जाती है.......।
 
सुबह सोनू की निंद तब खुलती है जब उसे कोइ जगाता है,

सोनू की आंख खुली तो पाया उसके सामने उसकी मां ,कस्तुरी और अनिता खड़ी थी, उसके बगल में फातीमा काकी भी नही थी।

सुनीता-- सोता ही रहेगा, की घर भी चलेगा।

सोनू की हालत खराब हो जाती है, क्यूकीं वो पुरी तरह नंगा था।

और ये बात सब को पता था,
॥ तभी फातीमा वहां हाथ में चाय लिये आती है, वो बहुत मुश्कील से चल पा रही थी।

कस्तुरी-- अरे काकी तुम भचक भचक कर क्यूं चल रही हो, और मुस्कूरा देती है।

फातीमा-- मुझसे क्या पुछ रही है, तेरे भतीजे से पुछ उसने ही ये हालत की है।

सोनू का सुनते ही गांड फट जाती है..

सुनीता-- क्यूं बेटा क्या कीया तूने फातीमा के साथ?

सोनू को कुछ समझ नही आ रहा था की क्या बोले तभी

फातीमा-- अरे सोनू ने कल मुझे धक्का गलती से धक्का मारा और मै निजे उस लकड़ी पर गीर गयी तो थोड़ा चोट आ गयी।

ये सुनकर सोनू के जान में जान आता है,

सुनीता-- चल बेटा अब घर जा, और जरा देख कर धक्का मारा कर लगने पर दर्द होता है, और हल्का सा मुस्कुराते हुए दुसरे कमरे में सब चली जाती है।

सोनू भी फटाफट अपने कपड़े पहन बाहर निकलता है। और घर की ओर चल देता है।


दुसरे कमरे मे बैठी कस्तुरी जोर जोर से हसंने लगती है।

सुनीता-- क्यूं हसं रही है?

कस्तुरी-- अरे कल रात फातीमा दिदी की ऐसी हालत थी, उसी पर। कैसे कुतीया की तरह चिल्ला रही थी।

फातीमा-- हस ले, अगर तू उसके निचे होती और जब अपना मुसल लंड तेरी बुर में डालकर चोदता तब समझ में आता।

कस्तुरी-- अरे सोनू के निचे आने के लीये तो मैं हर दर्द सह लूगीं दिदी।

सुनीता-- चुप कर तुम लोग मेरे बेटे की जान लोगे क्या?

फातीमा-- अरे सुनीता जान तो तेरा बेरहम बेटा निकाल देता है, ऐसे चोदता है की, बुर के साथ साथ पुरा बदन कांप उठता है।

सुनीता-- मेरे बेटे ने तेरी ऐसी हालत कर दी है, फीर भी तू उसका बखान कर रही है।
 
फातीमा-- तू भी एक औरत है, और एक औरत से बेहतर कोई नही समझ पाता की असली मर्द ऐसा ही होता है।

सुनीता शरमा जाती है, -- तूने तो कल मेरे बेटे को थका दीया।

फातीमा-- ओ हो, और जो तेरा बेटा मुझे कुतीया बना कर गंदी गंदी गालीया दे रहा था। और मेरी बुर का बैडं बजा रहा था उसका कुछ नही।

सुनीता-- तू भी तो उसको भड़का रही थी, की आज से मैं तेरी रखैल हूं फलाना ढेकाना।

फातीमा(शरमाते हुए)-- हा तो मैं हू उसकी रखैल।

कस्तुरी-- तेरा तो हो गया दीदी, हम लोग का नसीब ही खराब है।

फातीमा-- अरे मेरी मान तो सोनू को पटा ले, और जिंदगी भर मजे लुटना।

अनिता-- अरे दिदी हम उनकी चाचींया है, और भला?

फातीमा-- अरे तुम्हारे हिंदुओ में एक कहावत है।

कस्तुरी-- कैसी कहावत?

फातीमा-- बता जरा सुनीता।
"सुनीता शरमा जाती है,

कस्तुरी अब शरमाना बंद करो और बताओ दिदी।

सुनीता-- अरे वो..कहावत है.....(वो पुत ही क्या जो 'चोदे' ना चाची की 'चुत')

कस्तुरी-- आय हाय दिदी दील खुश कर दीया, अब तो मै सोनू को अपना बना कर ही रहुगीं॥

सुनीता-- शरम कर वो तेरे बेटा है।
कस्तुरी-- बेटा वो तुम्हारा है, मेरा तो भतीजा है।

फातीमा-- वैसे मां बेटे के लिये भी कोइ कहावत है क्या?

सुनीता-- चुप कर छिनाल, और सब हसंने लगते है॥



बारीश के हल्की हल्की फव्वारे गीर रही थी, और बेचन अपने खाट पर लेटा था। और उसके आंखो में उसकी बेटी की बड़ी बड़ी चुचीयों का तस्वीर सामने आ जाता.....।

"बेचन खाट पर लेटा यही सच रहा था की. सीमा की चुचींया कीतनी मस्त है। अगर उस रात अम्मा नही आयी हैती तो उसकी चुचीयां तो मैं मसल चुका होता,
 
दीन के 12 बजे थे, और बेचन झुमरी के बगल वाली खाट पर लेटा था। तभी उसकी मां सुगना आ जाती है।

सुगना-- बेटा, ये गेहूं की बोरी जरा छत पर पहुचां दे।

बेचन खाट पर से उठ जाता है, और गेंहू की बोरीया लेके छत पर जाने लगता है। उसके पीछे पीछे सुगना भी छत पर आ जाती है।

बेचन गेहुं की बोरीया रखते हुए)-- अम्मा सीमा कहा रह गयी?

सुगना(गुस्से में)- क्यूं क्या काम था तुझे उससे?

बेचन-- कुछ काम नही था अम्मा, मैं तो बस ऐसे ही!

सुगना-- अरे थोड़ी तो शरम कर, तूझे अपनी बेटी की शादी करने के वजाय तू खुद उसके साथ....छी।

बाचन-- कलती हो गयी अम्मा, वो उस रात सीमा को खाट पर बीठाने के चक्कर में उसे गोद में उठाया तो मैं थोड़ा बहक गया।

सुगना-- अच्छा , अच्छा ठीक है। आगे से कुछ ऐसा वैसा मत करना॥

बेचन-- मेरी प्यारी अम्मा, ठीक है। नही करुगां,

सुगना-- अच्छा जरा ये गेंहू की बोरी खोल और गेंहू पानी की बाल्टी में भीगो।

बेचन फटाफट गेंहू की बोरी खोल गेहूं को पानी के बाल्टी में डाल देता है।
की बाल्टी में डाल देता है।

सुगना गेंहू को हाथ डाल कर साफ करने लगती है, बेचन वही एक तरफ बैठ जाता है,

सुगना-- क्यूं करता है रे तू ऐसा? घर तेरी औरत है फीर भी तू अपनी बेटी पर।

बेचन-- अरे अम्मा हो गयी गलती, आगे से नही होगी।

सुगना-- चल ठीक है, तू जा झुमरी के पास बैठ उसे पानी वानी की जरुरत पड़ी तो।

बेचन- ठीक है अम्मा, और उठकर नीचे चला आता है।

बेचन जैसे ही निचे आता है, उसे उसकी बेटी सीमा नजर आती है। जो झुमरी के खाट के पास बैठी थी और उसके साथ उसकी सहेली रीता थी।

बेचन- अरे रीता बिटीया तुम?
रीता-- हां काका वो सीमा को छोड़ने आयी थी। (रीता एक 23 साल की भरे बदन वाली लड़की थी, थोड़ी सावलीं मगर बदन में कसावट कमाल की थी। उसकी चुचीयां सीमा से थोड़ी बड़ी थी, लेकीन गांड के मामले में सीमा का कोइ जवाब नही था)

रीता-- अच्छा सीमा मैं चलती हूं॥
सीमा-- ठीक है रीता।
रीता के जाते ही, बेचन सीमा के खाट की तरफ बढ़ा तभी बाहर से आवाज आती है....बेचन वो बेचन घर पर है क्या?

बेचन आवाज सुनते ही बाहर आ जाता है, बाहर उसका बड़ा भाइ शेसन खड़ा था।

बेचन-- क्या हुआ भैय्या?
शेसन-- मेरा खेत का पानी हो गया है, जा जाके तू लगा ले पानी॥
 
बेचन-- ठीक है, और कहते हुए खेत की तरफ निकल देता है।

सोनू खेत के झोपड़े में बैढा था, और उसे भुख भी लग रही थी रोज की तरह उसकी मां खाना लेकर आ जाती है।

सोनू-- बहुत सही टाइम पर आयी है, मा चल खोल जल्दी और दे मुझे।

ये सुनकर सुनीता हकपका जाती है।

सुनीता-- क....क्या खोलू। और क्या दू?
सोनू-- अरे खाना दे मां, मुझे भुख लगी है।

सुनीता ठंडी सास भरते हुए मन में-- हे भगवान इस लड़के ने तो मुझे डरा ही दीया, मुझे लगा ये कुछ और ही मांग रहा है, और फीर सुनीता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ठहर जाती है।

सुनीता खाने की थाली सोनू के तरफ बढ़ा देती है।और वही सोनू के बगल में बैठ जाती है।

सोनू खाना खाने लगता है।

सुनीता-- सोच रही हूं अब तेरी शादी करा दू।
सोनू-- क्यूं मां इतनी जल्दी क्या है?
सुनीता-- अरे घर में बहु होगी तो तेरे लीये खाना बनायेगी, तेरी सेवा करेगी।

सोनू-- मां मै बुडढा नही हुआ हूं जो मेरी सेवा करेगी, और रही बात खाना की तो उसके लीये तू है ना।

सुनीता-- हां अब तू मुझे ही परेशान कर, उतनी दुर से तुझे खाना लाने में मेरा पांव दुखने लगता है।

सोनू-- अब तू मत लाया कर मां , मै खुद ही आ जाया करुगां॥ और वैसे भी अब तेरी उमर हो चली है, तू आराम कीया कर।

सुनीता-- क्यूं रे मैं तूझे बुडढी दीखती हूं?
सोनू-- नही, मां मेरे कहने का मतलब ये नही था।

सुनीता का चेहरा उतर गया था जो सोनू साफ साफ देख सकता था।

सुनीता-- सही है तेरे कहने का मतलब एक बुडढी को बुडढी नही तो और क्या बोलेगा?
 
सोनू इतना तो जानता था की, उसकी मा बहुत खुबसुरत है। वो तो बस उसके मुह से 'पांव दुखने की बात' पर नीकल गया की तेरी उमर हो चुकी है।

सोनू -- वैसे मेरी बुडढी मां कयामत लगती है।

सुनीता ये सुनकर शरमा जाती है, और बोली।

सुनीता-- बाते बनाने में आगे है, तू वैसे बहुत भोला बनता है। अपनी मां को कयामत बोलता है. शरम नही आती तूझे जरा सा भी।

सोनू-- अपनी मां से कैसी शरम, जो बात है तुझमे वो बात बोल दी मैने।

सुनीता-- मैं तुझे कहां से कयामत लगती हू भला।

सोनू-- बताऊं,
सुनीता-- बता जरा।

सोनू-- तू सुन पायेगी क्या मां॥

सुनीता(शरमाते हुए)-- नही रहने दे बेशरम।

सोनू-- जब तू शरमाती है, तो आधा से ज्यादा कत्ल तो ऐसे ही हो जाता है। अगर तू मेरी मां नही होती तो।

सुनीता-- मां नही होती तो क्या?
सोनू-- फीर तो मेरे मजे थे।

सुनीता ये सुन कर बुरी तरह शरमा जाती है, और सोनू के गाल पर थपकी लगाती हुए.....बेशरम.......मैं तेरी मां हू।

सोनू-- वही तो रोना है।
सुनीता-- अच्छा मतलब मैं तेरी मां हू तो तुझे अच्छा नही लगता।

सोनू-- अरे नही मां तू मेरी मां है, ये मेरा सौभाग्य है, और वैसे भी दुनीया में खुबसुरत औरतो की कमी थोड़ी है, जो मैं अपनी मां पर ही बुरी नज़र डालूगां॥

सुनीता ये सुनकर उसे साफ हो गया था की उसके बेटे की नज़र में मै सीर्फ उसकी मां हू और कुछ नही, लेकीन उसे एक बात अंदर ही अंदर खाये जा रही थी जो सोनू ने बोला ' की दुनीया में औरतो की कमी थोड़ी है, जो वो अपने मां पर ही'

पता नही क्यूं आज सुनीता को उन सारी औरतो से नफरत सी हो रही थी।

सोनू खाना खा चूका था। और हाथ मुह धो के वापस आ कर खाट पर बैठ गया।

सुनीता-- उस दीन भोला बनने की नाटक क्यूं कर रहा था?

सोनू--कीस दीन मां?
सुनीता-- जीस दीन भैंस ले के जाने का था, पता तेरे उपर सब हसं रहे थे की तू अनाड़ी है।

सोनू-- लगता है मेरी प्यारी मां को रास नही आया की कोइ मुझे अनाड़ी बोले।

सुनीता-- हा तो...दुनीया की कोइ मां नही सह सकती की कोइ भी उसके बेटे को अनाड़ी बोले।

सोनू-- वैसे कौन बोल रहा था अनाड़ी?
सुनीता-- तेरी चाचीयां और फातीमा।

सोनू-- और तू?
सुनीता-- हां तो तेरी हरकते वैसी ही थी, तो मुझे भी वैसा ही लगा।

सोनू-- तू बोले अनाड़ी मुझे कोइ फर्क नही मां॥
सुनीता-- क्यूं मेरे बोलने पर फर्क क्यूं नही होता तूझे?

सोनू-- क्यूकीं मैं तुझे साबीत नही कर सकता ना मां॥
 
सुनीता ये बात समझ गयी की सोनू क्या बोलना चाहता है, वो बुरी तरह शरमा गयी, सोनू की बाते उसके रोम रोम में हलचल मचा देता।

सुनीता-- और बाकी लोगो को कैसे साबीत करेगा।
सोनू-- फातीमा काकी को साबीत कर दीया है, अब जा कर पुछ लेना की मैं अनाड़ी हू यां खीलाड़ी।

सोनू को ये नही पता की वो जो बोल रहा है, वो सुनीता ने पुरा खेल देखा था। फीर भी सुनीता बोली।

सुनीता-- ऐसा क्या कीया तूने फातीमा के साथ।

सोनू-- काकी तेरी सहेली है, तू खुद पुछ लेना।

सुनीता-- अच्छा बाबा पुछ लूगीं , अब तू आराम कर मैं चलती हू ॥ रात को तेरा पसदींदा आलू का पराठा बना कर रखुगीं॥

सोनू-- ठीक है मेरी प्यारी मां और अनायास ही उसके होठ सुनीता के गाल को चुम लेते है, सुनीता के बदन में सीरहन सी उठ जाती है,

सुनीता-- बदमाश. और उठ कर थाली लेकर जैसे ही कुछ दुर जाती है, सोनू उसे आवाज देता है॥

सोनू -- मां,
सुनीता(पीछे घुमते हुए)-- हां क्या हुआ?

सोनू-- कुछ नही, बस आज बहुत अच्छा लगा , तुने पहली बार मेरे साथ इतना प्यार से बात की। ऐसे ही कभी कभी करते रहना।

सुनीता ये सुनकर उसकी आंख भर आती है, और वो झट से सोनू के पास आकर उसे सीने से लगा लेती है।

सुनीता-- मुझे माफ कर दे बेटा, आज के बाद मैं तुझे कभी नही डाटुगीं॥

सोनू-- सोनू, अलग होते हुए- ऐसा मत करना मां॥ मुझे कभी कभी डाटते रहना।

सुनीता-- क्यूं?
सोनू-- नही तो मुझे तुझसे प्यार हो जायेगा, मां बेटे वाला नही।
सुनीता-- तो कैसा प्यार?

सोनू-- जैसा तू पापा से करती थी। वो वाला,

सुनीता-- धत बेशरम और वहा से शरमाते हुए भाग जाती है...।


"घर में मालती खाट पर लेटी, साड़ी के उपर से ही अपनी बुर रगड़ रही थी।और उसके ज़हन में सिर्फ सोनू का वो घोड़े जैसा लंड नज़र आ रहा था।

मालीती(मन में ही)-- अरे कीतना बड़ा था सोनू का लंड , मैने तो आज तक इतना मोटा लंड देखा ही नही था। कैसे सोहन की गांड फाड़ रहा था...बेरहम
यही सोचते सोचते उसको मस्ती चढ़ जाती है....तभी अँदर कोइ आ जाता है। जीसे देख मालती चौंक जाती है, और अपने बुर पर से हाथ हटा खाट पर से खड़ी हो जाती है।

मालती-- कल्लू ब.....बेटा तू!

कल्लू-- हां मां तू बाहर कपड़े डाल कर भूल जाती है, क्या ? बाहर बारीश होने जैसा मौसम बन रहा है, जो भी कपड़े सुखे थे सब फीर से गीले हो जाते।

मालती-- अरे हा बेटा ध्यान ही नही रहा। अच्छा हुआ तू लाया, अब चल मैं खाना लाती हूं तू खा ले।
और फीर मालती रसोइ घर में जाने लगती है, तभी उसके दीमाग में पता नही कहा से सोनू की कही हुइ बात याद आती है, की उसने तो अपनी बड़ी मा को भी चोद दीया है,
 
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