Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा - SexBaba
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Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा

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hotaks444

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Nov 15, 2016
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जालिम है बेटा तेरा


वैसे तो हर कीसी मां का सपना होता है , की उसका बेटा अच्छा हो, कभी कोइ गलत काम ना करे, और दुनीया वाले उसे इज्जत दे, और वो खुश रहे ,

तो यही कहानी है, जिसमे एक मां जो अपने शादी के करीब 5 साल बाद एक बच्चे को जन्म देती है, और उसका नाम रखती है, (सोनू)

सुनीता......(40) साल, सोनू की मां
सुनीता की शादी 17 साल की उम्र में हो गयी थी, 17 साल की उम्र में सुनीता की लम्बाइ करीब 5.6 की थी, लेकीन थोड़ी पतली, खुबसुरत तो वो थी ही, क्यूकीं पूरा गांव जो उसके पिछे मडराता रहता था, तो उसके घरवालो ने उसकी शादी करना ठीक समझा....करीब 5 साल तक सुनीता को कोइ बच्चा नही पैदा हुआ.... उसकी दो देवरानी और एक जेठानी थी, जो उसे सान्तांवना देती रहती, आखीर वो दिन आ ही गया जब सुनीता की भी गोद भरी पुरे 5 साल बाद उसे एक लड़का पैदा हुआ...नाम (सोनू)

राजेश.....(29) साल सुनीता का पति

उस दिन राजेश बहुत खुश था क्युकीं वो बाप जो बना था, राजेश एक बहुत ही इमानदार और होनहार आदमी था, दिन भर खेतो में अपने भाइयो के साथ काम करता , सोनू के पैदा होने के 3 साल के बाद ही राजेश की मौत हो गयी....घर की बिजली खराब होने पर राजेश उसे बना रहा था और अचानक से बिजली आइ और राजेश उस बिजली के तार से लटका रह गया,

सुनेहरी.....(45) सुनीता की जेठानी
मदमस्त हथीनी जैसी चाल, बड़ी बड़ी चुचीयां और गांड तो ऐसी उठी हुइ की गावं वालो का लंड उसके गांड ने ही खड़ा कीया रहता है,

कस्तुरी....(38)....सुनीता की छोटी देवरानी
रंग सांवला लेकीन मोहीत कर देने वाली गजब की अदाए थी उसके पास, उसे चुदाई जैसे खेलो में बहुत दिलचस्पी थी,

अनीता.......(35) सुनीता की सबसे छोटी देवरानी,
एकदाम शांत स्वभाव वाली औरत , घर में सबकी चहेती थी,

अनन्या...(21) सुनेहरी की बेटी,
राजू.....(18) सुनेहरी का बेटा,

आरती....(21) कस्तुरी की बेटी,
कीरन....(17) कस्तुरी की दुसरी बेटी,

सोनू......(19) सुनीता का बेटा,
सोनू के पिता की मौत के बाद पुरे घर की जिम्मेदारी उसके हाथो में थी, उसके एक चाचा लखन जो हमेशा शराब मे डुबे रहते है, और दुसरे चाचा सोसन जो शहर कमाने गये थे 3 साल पहले तो आज तक नही लौटे ढुढने की बहुत कोशीश की पुलीस मे रपट भी कीया लेकीन कुछ पता नही चला,
सोनू के बड़े पापा रजीन्दर कस्तुरी का मरद ही सोनू के साथ काम मे लगा रहता है.......,
 
तो चलीये कहानी की शुरुआत करते है.......

सोनू रात के 9 बजे खेत के बने झोपड़े मे पंपुसेट मे पानी की पाइप लगा कर, खेतो में फैला रहा था....जाड़े के दिन दथे और गेहु के खेत की पहली सीचांइ थी, सोनू खेत में पाइप फैला चुका था, और वो वापस झोपड़े में आया तो देखा उसके बड़े पापा रजिंदर खाट पर बैठे थे,

रजिंदर-- सोनू बेटा जा तू घर पर खाना खा ले, और आज वही रुक जा, ठंडी बहुत है, मै खेत की सिचाइ कर लूगां
सोनू-- ठीक है, बड़े पापा और सोनू खेत पर बने मेड़ पर अपने कदम चलाने लगता है, वो अपने घर के पिछवाड़े पहुचा ही था की उसे एक औरत दिखाइ दी जो अपनी साड़ी उपर कर के शायद मुत रही थी,
सोनू घर के पिछे झाड़ीयो में छिप गया और देखने लगा, वो औरत अपनी बड़ी बड़ी गांड लिये अपने बुर से बड़ी मोटी धार निकाल कर मुत रही थी, सोनू के घर के आंगन मे लगा बल्ब की रौशनी उस औरत की गांड पर पड़ रहा था, उसकी चौड़ी और गोल गांड देखकर सोनू का लंड खड़ा होने लगता है,

सोनू मन मे-- आय हाय क्या गांड है, कसम से मिल जाये तो मार मार के फाड़ दू, लेकीन ये औरत है कौन? थोड़ी देर रुकता हू पता चल जायेगा,
वो औरत मुतने के बाद खड़ी हो जाती है और जैसे ही जाने के लिये घुमती है, सोनू उस औरत का चेहरा देख सकपका जाता है,

सोनू मन मे-- अरे बाप रे ये तो सुनहरी (बड़ी मां) है, बाप रे बड़ी मां की गांड तो जबरदस्त है, तो बुर कैसा होगा....यही सब सोचते हुए सोनू झाड़ीयो से उठा और घर पर आ जाता है.....और वैसे भी सोनू सब का चहेता था.....,

घर के अंदर जैसे ही सोनू जाता है,
सुनहरी-- अरे आ गया मेरा बेटा, आजा मेरे पास
सोनू जा कर सुनहरी के बगल खाट पर बैठ जाता है,
सुनहरी-- अरे मेरा बेटा बैठा क्यूं है, इतना काम करता है, थक गया होगा आजा मेरी गोद में सर रख कर थोड़ा लेट जा,
सोनू खाट पर लेटे लेटे अपना सर सुनहरी की गोद में रख देता है,
सोनू अपना सर बड़ी मां के गोद मे रखे उस दृश्य को याद करने लगता है जो आज उसने घर के पिछवाड़े अपनी बड़ी की बड़ी गांड को देखा था, सोनू का लंड बेकाबू होने लगा और अपनी औकात पर खड़ा हो गया....॥

सुनहरी--हाय रे मेरा बेटा, दिन भर काम करता रहता है, अगर तू ना होता तो हमारा पता नही क्या होता,
सोनू-- मैं ना होता तो क्या होता बड़ी मां,
सुनहरी-- तब क्या होता बेटा, सारा काम हम औरतो को करना पड़ता,

सोनू-- जबतक मै हू बड़ी मां तुम लोग को कोइ दिक्कत नही होने दुगां॥
सुनहरी-- हाय रे मेरा बेटा, और झुक कर एक चुम्बन सोनू के गाल पर दे देती है, झुकने की वजह से सुनहरी की बड़ी बड़ी चुचींया सोनू के छाती पे दब जाती है, जिससे सोनू को एक अलग ही आनंद का अनुभव होता है,
सुनहरी जैसे ही चुम्बन दे के सामान्य अवस्था मे होती है....
सुनीता-- अरे दिदी अब वो बच्चा नही रहा, जो तुम उसे चुम्मीया दे रही हो,
सुनहरी-- अरे ये कीतना भी बड़ा हो जाये लेकीन हमारे लिये तो बच्चा ही रहेगा,
तभी अंदर से कस्तुरी आवाज लगाती है, दिदी खाना ले कर आती हू,

सुनहरी-- हां ले के आजा , चल सोनू बेटा खाना खा ले,

कस्तुरी खाना ले के आती है, और सब खाना खाते है, खाना खाने के बाद सोनू बिस्तरे पर चला जाता है,

कस्तुरी-- आरती तू चल मेरे कमये में सो जा ,
सुनहरी-- क्यूं खाट बनी नही क्यां?

कस्तुरी- नही दिदी, सोनू बेटा खाली ही नही था, तो कौन बनायेगा खाट ऐसे ही टुटी पड़ी है, सुनीता दिदी अनन्या के कमरे में गयी सोने, अब एक खाट है मेरे साथ आरती सो लेगी तूम सोनू के खाट पर सो जाओ आज...

सुनहरी-- चल ठीक है,

और फिर आरती के साथ कस्तुरी अपने कमरे में चली जाती है,
 
सुनहरी सोनू के बगल में लेट जाती है, और रज़ाइ ओढ़ लेती है,

सुनहरी-- सो गया क्या सोनू बेटा?
सोनू सुनहरी को अपनी बाहों में भरता हुआ-- नही बड़ी मां बस ठंड लग रही है,

सुनहरी भी सोनू के कमर पर हाथ रखकर सोनू को अपने से चिपका लेती है,

सुनहरी-- अरे मेरे बेटे को ठंड लग रही है, अब नही लगेगी,

सुनहरी सोनू को ऐसे चिपकाइ थी अपने से जैसे चंदन के पेड़ पर सांप चिपका हो,
सोनु और सुनहरी के होठो के बिच कुछ इंचो का फर्क था, सुनहरी की बड़ी बड़ी चुचींया सोनू के छाती से दबी हुइ थी,
जिसके वज़ह से, उसमें जोश भरने लगा था, और उसका सोया हुआ लंड खड़ा होने लगता है,

सोनू का लंड खड़ा होकर सुनहरी के बुर पर दस्तक देने लगता है, अगर सुनहरी ने कपड़े नहि पहने होती तो सोनु का लंड सुनहरी के बुर में होता,

सुनहरी को तब अहसास होता है जब सोनू का लंड इकदम टाइट होकर उसके बुर पर गड़ने लगता है,

सुनहरी(मन में)-- हे भगवान जो मैं सोच रही हूं क्या ये सोनू का वही हैं, सुनहरी के सोचने मात्र से ही उसकी सांसे तेच होने लगती है, और उसकी गरम सांसे सोनू को महसुस होता है,

सोनू अपनी बड़ी मां से और चिपक जाता है, जिससे उसका लंड सुनहरी के बुर पर सीधा महसुस होने लगता है, सुनहरी की हालत खराब होने लगती है, वो चाह कर भी सोनू से अलग नही हो पा रही थी,

सोनू (मन में)-- आह, बड़ी मां तेरी बुर की गर्मी से मेरे लंड की हालत खराब हो रही है, और सोचते सोचते अपना इक हाथ सुनहरी के बड़ी चुचीं पर रख देता है,

सुनहरी को जैसे ही सोनू का हाथ अपनी चुचींयो पर महसुस होता है, उसका शरीर और गरम होने लगता है, इतनी ठंडी में भी रज़ाइ के अंदर जुन और जुलाई की गरमी पड़ रही थी,

सुनहरी को लगा शायद सोनू अभी जवान हो रहा है, तो इस उमर में लंड का खड़ा होना लाज़मी है, ये तो अभी इस मामले में बच्चा है , और गलती से इसका हाथ मेरी चुचींयो पर आ गया होगा, लेकीन सुनहरी को झटका तब लगता है, जब सोनू के हाथेली उसकी चुचीयों को कसती जाती है,

सुनहरी के तो मानो होश उड़ जाते है, और मन में हे भगवान ये सोनू क्या कर रहा है, मेरे साथ, और वो सबसे ज्यादा हैरान तो वो अब हो रही थी, क्यूकीं सोनू की हथेली उसकी चुचीयों को लगातार कसती चली जा रही थी,

सोनू अपने होश में नही था, उसके उपर हवस सवार था, उसने अपनी बड़ी मां की चुची को अपने अंदाज में दबा रहा था, उसकी हथेली मे एक चुचीं का जितना हिस्सा आ सकता था वो पकड़ कर दबाता चला जा रहा था,

सोनू अब अपनी बड़ी मां की चुची को इकदम जोर से अपने हथेली में पकड़ लिया था, जिसकी वजह से सुनहरी को दर्द होने लगा था, और वो धिरे धिरे सिसक रही थी,

सुनहरी-- आइ...अम्मा...रे और सोनू के कान में कहती है, सो....नू बेटा दर्द हो रहा है,

सोनू-- होने दे,

सुनहरी-- आइ....सोनू इतनी बेरहमी से क्यू दबा रहा है... मेरी चुचीं..आ....आ मैं तेरी बड़ी मां हूं,

सोनू-- अपनी बड़ी अम्मा की चुचीयों को अब और जोर जोर से मसलते हुए-- तू बड़ी अम्मा हो चाहे छोटी अम्मा मुझे तो तेरी चुचीं मसलने में मज़ा आ रहा है,
 
सुनहरी को दर्द तो हो रहा था लेकीन उसे मज़ा भी बहुत आ रहा था, वो सोनू को उकसाते हुए-- हाय राम, कोई इस तरह...आह मसलता है क्या रे,

सोनू-- आह बड़ी अम्मा तेरी जैसी चुचीं हो तो ऐसे ही मसलते है...,

सुनहरी-- मसल ले बेटा...आह...जितना चाहे, मसलना है, कल सुबह तेरी मां को बताउगीं...आह अम्मा धिरे कर थोड़ा,

सोनू-- ठीक है बता दे, मेरी बड़ी अम्मा है मुझे बचा लेगी,

सुनहरी को ये सुनकर अच्छा लगता है की सोनू मुझे कीतना मानता है,

सुनहरी-- अपनी बड़ी अम्मा की ही चुचीं मसल रहा है भला वो क्यू..आह..आह बचायेगी,

सोनू-- क्यूकीं मेरी बड़ी अम्मा अब मेरा ही लंड लेगी जिदंगी भर इस लिये,
ये बात सुनकर सुनहरी की बुर फुदकने लगती है, और उसके अंदर इक अलग ही ख़ुमार छा जाता है,

सुनहरी-- आह तुझे शरम नही आ रही है ना ऐसी बाते..करते हुए..,
सोनू-- साली जब से तेरी गांड देखी है, शरम वरम भुल गया हु मैं,

सुनहरी-- हाय रे.. तूने कब देख ली मेंरी?
सोनू-- गांड
सुनहरी-- हां वही मेरी गांड

सोनू-- आज रात को जब तू घर के पिछवाड़े मुत रही थी,
सुनहरी-- हाय राम...तू छुप कर मेरी गांड देख रहा था,

सोनू--कुछ भी हो, साली तेरी गांड लाजवाब है,
सुनहरी आज पुरा मज़ा लूट रही थी, जिस तरह सोनू के मजबुत हाथ उसकी चुचीयों को मसल रहे थे, रजिंदर ने कभी ऐसा नही मसला था, रजिंदर उसका मरद होने के बाद भी कभी उसे गाली नही दिया था, और सोनू जबकी उसका बेटा उसे गालीयां दे दे के मसल रहा था, जिससे वो और भी गरम हो जाती...,

सुनहरी--हाय रे बेरहम....धिरे दबा...आ....इ................सोनू,

सुनहरी इतनी जोर से चिल्लाइ की, सुनीता, कस्तुरी और आरती उठ गये और भागते हुए सीधा सुनहरी के पास आते है,

सुनीता-- क्यां हुआ दिदी?
सुनहरी-- कुछ नही बुरा सपना देख लिया,

सुनीता-- आरती जरा पानी ले के आ,
आरती पानी लाने चली जाती है, और एक ग्लास पानी लेके सुनहरी को देती है,

सुनहरी उठ कर बैठती है, और पानी पिने लगती है लेकीन तभी उसे अपने साड़ीयो के अंदर कुछ महसुस होता है, सुनहरी को समझते देर नही लगती की ये सोनू ही है,

सुनहरी मन में-- अरे बेरहम थोड़ा सब्र रख तेरी मां यहा है, तब तक सुनहरी की बुर में सोनू का एक उगलीं घुस चुका था,

सुनहरी अपना मुह दबा लेती है, और अंदर रज़ाइ में एक हाथ डालकर सोनू का हाथ पकड़ लेती है,

सोनू रुक जाता है, और अपने होठो से सुनहरी की जांघे चुमने चाटने लगता है, सोनू सुनहरी को इकदम गरम कर चुका था,

सुनीता-- कस्तुरी तू दिदी को अपने कमरे में लेकर जा, मैं यहा सो जाती हू, और आरती तू अनन्या के पास जाकर सो जा,

ये सुनते ही सुनहरी और सोनू दोनो का मुह लटक जाता है,

सुनहरी-- अरे नही ठीक है, सुनीता थोड़ा बुरा सपना था, बस

सुनीता-- अरे दिदी बुरा सपना आने पर जगह बदल कर सोना चाहिए, जाइए आप कस्तुरी के साथ सो जाइए,

सुनहरी मन मे-- ले बेरहम और जोर से दबा ले, और मुह लटका कर चली जाती है,

सुनीता अपने बेटे के बगल में लेट जाती है....और सोनू भी मन मारकर लेटे लेटे निंद की आगोश में चला जाता है......................
 
सुबह सुनीता की नींद खुलती है, और वो खाट पर से उठ कर कमरे जाती है , और सुनहरी को उठाती है॥

सुनीता-- उठो दिदी,

सुनहरी की नींद खुलती है, उठते ही सुनीता और सुनहरी घर के कामो में लग जाते है, सुनहरी घर के आंगन में झाड़ू लगाते लगाते कल रात के बारे में ही सोच रही थी, उसकी एक तरफ़ की चुचीं अभी दर्द कर रही थी,

सुनहरी मन मे-- मुए ने ऐसा मसला है की अभी तक दर्द कर रहा है, और हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर दौड़ जाती है,

दिन का सुरज निकलता है , लेकीन सोनू अभी तक सो रहा था,

सुनीता-- कस्तुरी....जरा सोनू को उठा दे, कब तक सोयेगा॥

कस्तुरी सोनू को उठाने जाती है,

कस्तुरी-- उठ जा सोनू बेटा, सुरज चढ़ गया तू अभी तक सो रहा है,

सोनू अपनी आंख मिजते हुए उठ जाता है, उठते ही उसकी नज़र बड़ी अम्मा को ढुंढ़ने लगती है,

सुनीता-- अब बैठा ही रहेगा या, उठेगा भी खेत नही जाना है क्या? तेरे बड़े पापा तेरा इंतजार करते होगें,

तब तक आवाज़ आती है अरे क्यूं परेशान कर रही है मेरे बेटे को, सोनू नज़र घुमा कर देखता है, ये और कोइ नही उसकी बड़ी अम्मा थी,

सोनू की नज़र जैसे ही सुनहरी से ट्कराती है, सुनहरी का चेहरा शरम से लाल हो जाती है,

सुनीता-- देखो ना दिदी वहा बड़े भैया इसकी राह देख रहे होगें और ये अभी तक खाट पर से भी नही उठा,

सुनहरी-- अरे तू भी ना, उठ तो गया है, क्या उठते ही भागा जाये क्या?

सुनहरी-- चल बेटा, हाथ मुह धो ले, फीर खेत जाना,

सोनू उठकर बाहर हैडपंप पर मुह हाथ धोने चला जाता है।


भैया आज मैं भी खेत मे चलूंगा आप के साथ, सोनू जैसे ही नज़र घुमाता है उसके सामने राजू खड़ा था,

सोनू-- ठीक है चल,

हाथ मुह धोने के बाद दोनो खेत की तरफ नीकल देते है,

दोनो जैसे ही खेत में पहुचतें है, रजिंदर अपने दोस्त सोहन के साथ चिलम सुलगा कर बैठा था,

सोहन-- अरे बेटा, आ गये हम लोग तेरा ही इतंजार कर रहे थे,



रजिदंर-- अच्छा सोहन मैं घर चलता हू,
सोहन-- ठीक है,
रजिदंर-- अरे राजू तू यहां क्या कर रहा है, तुझे आज तेरे मामा के यहा जाना है,

राजू-- पापा मेरा मन नही कर रहा तुम चले जाओ,

रजिदंर-- अरे बेटा आज मुझे शहर जाना है, खेतो में खाद छिटना है, तू ही चला जा,

सोनू-- हा राजू चला जा तू ही,

राजू-- ठीक है भैया, और कहकर अपने पापा के साथ वापस घर की तरफ चला जाता है,

खेत के बिच बने झोपड़े में सोहन और सोनू खाट पर बैठे थे,



सोनू-- और बताओ काका कैसे हो,
सोहन-- ठीक हू बेटा, तूम कैसे हो।

सोनू-- मैं तो ठीक हू काका, लेकीन आपसे कुछ बात पुछनी थी!

सोहन-- हा पुछों बेटा।

सोनू-- काका आपने शादी क्यूं नही की लगभग 35 साल की उमर होगी आपकी,
 
सोहन कुछ नही बोलता, सोनू एक बार फीर पुछ्ता है लेकीन सोसन फिर कुछ नही बोलता,

सोनू--ठीक है काका, अगर आपको नही बताना है तो मत बताओ, मै भी पागल था जो पुछ लिया॥

सोहन-- अरे नही बेटा, ठीक है अब कितना दिन छुपाउगां, आज तुझसे बता रहा हु किसी से बताना मत बेटा....,

सोनु थोड़ा हकपका गया की ऐसी क्यां बात है जो काका इतने दिनो से छुपा रहे थे, और कीसीको बताने से मना कर रहे है,

सोनू-- ह...हां ठीक है नही बताउगां, क्यां बात है बोलो,

सोहन-- बेटा मेरा मन तो हमेंशा से हि करता था की मैं भी शादी करुं लेकिन,

सोनू-- लेकीन क्यां काका?

सोहन-- अरे बेटा वो मेँ,
सोनू-- वो क्या काका?
सोहन-- वो मैं हिजंड़ा हू,

सोनू सुनकर चौंक जाता है, ये क्यां बोल रहे हो काका,

सोहन-- हां बेटा, ये सच है मैने ये बात आज तक कीसी को नही बताइ थी॥
सोनू-- तो आपने मुझे ही क्यूं बताया?
सोहन शर्माते हुए-- वो बेटा मैं तुझे पसंद करता हू।

सोनू-- एक ही बार में भाप गया की काका क्या चाहते है, सोनू कमीना था ही, कमीनापन उससे ही होकर गुजरता है, वो सोचने लगा यार दिन भर खेत में काम कर के थक जाता हू , ये साले को सेट कर लिया तो इसी से काम करवांउगा और...

सोनू अपना कमीनापन दिखाते हुए-- मै समझा नही काका, आप मुझे पसंद करते है मतलब,

सोहन-- तू सब समझता है, नादान मत बन,

सोनू सोहन की आंखो में आख डाले-- समझता तो हू काका, लेकीन शुरुआत कहां से करु॥

सोहन-- जहां से तेरा मन करे,

फिर क्या था, सोनू ने उठकर झोपड़े के बाहर इधर उधर झांका और फ़िर फटकी बंद कर दी,

सोहन शरम के मारे अपना सर निचे किये था, तभी सोनू ने उसे खाट पर लिटा दिया, और उसके उपर चढ़ गया,

सोनू को उसके छाती पर कुछ मुलायम मुलायम सा लगा, उसने सोहन के शर्ट का बटन खोला तो अवाक रह गया , सोहन की छातीया तो औरत जैसी थी, उसके भी छोटी छोटी मगर टाइट चुचींया थी,

सोनू-- काका तू तो साला सच में हिंजड़ा है,
सोहन-- मैं सिर्फ तेरी हू सोनू॥

सोनू -- हां तू सिर्फ मेरा है, और आज से तेरा नाम, सोनी है,
सोहन शरमा जाता है, उसे नही पता था की वो एक बेरहम इसांन के निचे लेटा है,

सोनू सोहन की आंखो में देखता हुआ-- तूझे शादी करने का बड़ा मन था ना, आज से तू मेरा औरत बन कर रहेगा,

सोहन-- हा मै हूं आपकी औरत।
सोनू-- आज अपनी सुहागरात होगी, बड़े पापा शहर गये है अब कल ही आयेगें गांव यहां से बहुत दुर है, इसी झोपड़े में आज रात मैं तरे गांड का सुराख खोलूगां॥

सोहन शरमा जाता है और हां मे सर हिला देता है,

सोनू-- लेकीन मैं तेरे साथ सुहागरात मनाउगां तो तू दुल्हन के जोड़े मे सज कर आना,

सोहन-- ठीक है, मेरे राजा, जैसी आपकी मर्जी॥ तो अभी मैं जाती हूं मुझे कपड़े भी तो लेने है,

सोनू-- इतनी भी क्या जल्दी है, मादरचोद जरा अपने मर्द को खुश तो करता जा,

सोहन उठता है और शरमा कर बाहर भाग जाता है, और बाहर से कहता है जो भी करना सुहागरात में, और चला जाता है।
 
धिरे धिरे दिन बितता है, दोपहर को सुनीता खाना ले कर आती है,
सुनीता-- सिर्फ बैठा है या खेत का पानी भी देख रहा है,

सोनू- देख तो रहा हूं मा...
सुनीता-- चल ठीक है मै जा रही हू रात को खाना ले कर आउगीं तो ये थाली ये कर जाउगीं

सोनू-- ठीक है मां,

सुनीता चली जाती है, सोनू खाना खा कर ऐक बिड़ी सुलगाता है और पिने लगता है, उसे बस रात का इतंजार था, क्यूकीं आज वो सोहन की हालत पतली करने वाला था, सोनू एक नम्बर का वहसी जो था...

धिरे धिरे दिन निकलता है और रात अपनी चादर ओढ़ने लगती है, ठंडी भी तुफान पे था, कोहरे की वजह से हाथ तक नही दिख रहा था,
सोनू उठता है और खेत की तरफ बढ़ चलता है, ऐक खेत से दुसरे खेत मे पानी का पाइप लगा कर वो वापस आता है तो उसकी मां सुनीता खाना लेकर आइ थी।

सुनीता--हे भगवान कितनी ठंडी है, तू भी खाना खाकर चुपचाप सो जाना बाहर मत निकलना वरना ठंड लग जायेगी,

सोनू--ठीक है मां॥
सुनीता-- चल मै जाती हूं, जाते जाते समय लग जायेगा।
सोनू-- ठीक है मां,

फीर सुनीता चली जाती है........


सोनू खाना खाकर जैसे ही उठता है सोहन आ जाता है,
सोनू-- आ गया मेरी जान,

सोहन -- आप बाहर जाओ मुझे तैयार होना है,

सोनू झोपड़े के बाहर चला जाता है, और एक बिड़ी सुलगा कर पिने लगता है, करीब आधे घंटे बाद सोहन झोपड़े में जाता है तो देखता है सोहन दुल्हन के जोड़े में खाट पर बैढी थी, सोनू का लंड झटका मारने लगता है,

सोनू झोपड़े की फटकी अंदर से बंद कर के सिधा खाट पर चढ़ जाता है,

सोनू सोहन का घुंघट उठाता है, वो वैसे सजा था जैसे कोई दुल्हन सजती है,

सोनू-- क्या बात है सोनी कयामत लग रही है,
सोहन शरमा जाता है, सोनू उसे बाहो में लेकर खाट पर लेट जाता है,

सोनू सोहन के होठो को चुसने लगता है, सोहन भी उसका साथ देने लगता है, सोनू के उपर हवस सवार होने लगा था, वो सोहन के मुह मे अपना पुरा जुबान डाल देता, जिससे सोहन भी मस्त हो जाता,

सोनू सोहन के होठो को निचोड़ निचोड़ कर चुस रहा था, फिर सोनू उसके होठो छोड़ देता है,

सोनू सोहन की साड़ी उतार देता है, सोनू लाल कलर की पेटीं और ब्रा पहने हुए था, उसकी छोटी मगर कसी चुचीयां देख कर वो पागल हो जाता है, वो उठ कर कोने मे पड़ी छोटी छोटी रस्सीया ले कर आता है, और सोहन के हाथ पावं खाट से बांध देता है,

सोहन-- खाट मे बंधा, क्या इरादा है जी,
सोनू-- तूझे हिंजड़े से औरत बनाने का इरादा है,

सोहन-- आप बहुत बेरहम है,

सोनू अपने कपड़े उतार देता है, उसका 9 इचं का बहुत मोटा लंड ही देखने में भयानक लग रहा था, उसके लंड की नसे इतनी मेटी थी की देखने में आकर्षक लग रहा था,

सोहन-- हे भगवान, इसांन का है की घोड़े का,
सोनू अपने लंड को आगे पिछे करते हुए, जब तेरी गांड का सुराख खुलेगा तो तू ही बताना मादरचोद, और सोहन के उपर चड़ जाता है,

वो सोहन के होठो को अपने मुह में भर लेता है, लेकीन इस बार चुसने के लिये नही बल्की काटने के लिये,
वो सोहन के होठो को अपने दातो से पकड़ कर काटने लगता है,
सोहन छटपटाने लगता है, लेकीन उसके हाथं पांव तो बधें हुए थे,

सोहन--उ...उ...उ की आवाज़ निकलने लगती है, उसे नही पता था की वो सच में एक बेरहम इसांन के निचे है,

सोहन के होठो से अब खुन निकलने लगा था,
सोनू सोहन के होठो को जैसे ही छोड़ता है,

सोहन-- आह मां, दर्द हो रहा है...
सोनू सोहन की ब्रा ऐक झटके में फ़ाड़ देता है, और उसकी चुचीयो को अपने मुह में लेकर जोर जोर से चुसने लगता है, जिससे सोहन को मज़ा आने लगता है....,

सोनू सोहन के छोटे से निप्पल को अपने दातो से कस कर दबा लेता है और उसे अपर की तरह खीचनें लगता है,

सोहन--आ......आ......इ.......इ.....या...दर....द...हो....रहा...है,

लेकीन सोनू अपनी मस्ती में मस्त उसके निप्पल को काट कर खुन निकाल ही देता है,

सोनू-- आह साले मज़ा आ गया,
सोहन अभी भी रो रहा था...।

सोनू उसके हाथ पांव खोल देता है,
सोनू-- चल उठ जा भोसड़ी,
सोहन उठ जाता है, और सोनू खाट पर लेट जाता है,

सोनू अपना लंड खड़े हुऐ-- देख क्या रहा है, चल चुस..साले

सोहन खाट पर आ जाता है, और सोनू का लंड हाथ मे पकड़ कर मुह मे डालता है, देखने लायक नज़ारा था सोहन अपना मुह पुरा फाड़ कर सोनू का लंड चूस रहा था, चुस क्या रहा था मुह में आगे पिछे कर रहा था,

सोनू-- हां हां हां हसने लगता है, क्यूं बहुत मोटा है क्यां
सोहन हां में सर हिलाता है,
 
सोहन के मुह की गरमी सोनू के लंड को और फुला रही थी, और सोनू को मजा भी आने लगा था.।

सोनू-- चुस साले..आह तेरी मां का भोसड़ा मारु साले ऐसे ही चुस..।

सोहन सोनू का आधा लंड भी नही ले पा रहा था,

सोनू मजे से अपना लंड चुसवाने का मजा ले रहा था,
सोनू चल बस कर सोनी रानी अब तेरी गाडं की सुराख खोलता हू,

सोहन उठ कर खड़ा हो जाता है,
सोनू-- चल अपना दोनो पैर खाट के पैरो में सटा ले,
सोहन-- हाय रे राजा तेरे सुहाग रात मनाने के अदांज से मैं पागल ना हो जाउं,

सोहन अपने पैर चौड़े कर लेता है, ऐक पैर खाट के दुसरे हिस्से से सटा लेता है और दुसरा पैर खाट के दुसरे हिस्से से,

सोनू रस्सीयों से उसका पैर बाधं देता है, सोहन की टागें इतना बाहर खुला हुआ था की उसकी गांड बिच में तनतनाती सोनू के लंड को दावत दे रहा था,

सोनू उसे खाट से ऐसे बांधा था जैसे गांव मे भैस गरम होने पर सांड के पास ले जाते है, और भैस को बांध देते है,

सोहन का सांड उसके पिछे अपना लंड खड़े कीये इधर उधर घुम रहा था,

सोहन-- आजा मेरे बेरहम सांड चढ़ जा अपनी भैसं पर,

सोनू उसके गांड पर जोर का थप्पड़ मारता है,

सोहन-- आह...
सोनू--तू अकेला ही हिजंड़ा है पुरे गावं मे या कोइ और है, और फिर उसके गांड पर जोर का थप्पड़ जमा देता है,
सोहन-- आह एक और है,

सोनू--कौन है?
सोहन-- पहले इस हिजड़ें की तो प्यास बुझाओ राजा,

सोनू पहले उसके गाड में अपनी उगलीं डाल देता है, और जोर जोर अंदर बाहर करने लगता है,

सोहन-- आ..आह, मेरा मरद उह मेरी गांड आप की है, चोदो आह चोदो,
सोनू-- तेरी गांड , मेरी है साले,
और रामू अपना मोटा लंड सोहन के गांड के सुराख पर रख कर उसे धिरे धिरे अंदर डालने लगता है,

सोनू इतना कमीना था की जब तक उसके कानो में चिखने चिल्लाने की आवाज ना आये तब तक उसे अपने मर्द होने पर घमडं नही होता

सोनू का मोटा लंड सोहन की गांड के सुराख को चौड़ा करता अंदर घुस रहा था, और सोहन की चिखे उस झोपड़े के साथ साथ बाहर खुली खेतो मे भी गुज् रही थी,

सोनू का लंड लगभग आधा घुस चुक था, सोहन की गांड खुन से लतफत उसके जाघों से होते उसके पैर की एड़ीयो तक पहुच गया था, और सोनू का लंड तो खुन से सना ही था, उसके लंड से होते हुए खुन उसके अंडकोश से निचे टपक रहा था, सोहन अपना मुह फाड़े भैस की तरह चिल्ला रहा था,

सोहन-- अरे....मेरी...गां........ड......फटी...इ........इ.........इ....,
सोनू-- फटी नही ये माधरचोद फट गयी, और एक जोर का धक्का मार पुरा लंड उसकी गांड की आखरी छोर तक पहुचां देता है, ईसी धक्के के साथ सोहन जोर से चिल्लाया और फिर बेहोश हो जाता है,

सोनू वैसे ही अपना लंड डाले खड़ा रहता है, और सोहन के होश मे आने का इतंजार करने लगता है, करीब 5 मिनट के बाद सोहन को होश आता है उसकी गांड में बहुत तेज जलन हो रही थी,

सोनू अपना लंड सटाक से बाहर खीच लेता है, सोहन के गांड से खुन के साथ साथ गंदगी भी बाहर निकलने लगता है,

सोनू-- अरे भोसड़ी के तू तो हग दीया रे,
सोहन-- आ.इ...इ रोते हुए इतनी बेरहमी से गांड मारोगे तो कोइ भी हग मुत देगा,

सोहन की गांड खुल चुकी थी, सोनू ने फिर से अपना लंड उसके गांड के सिरहाने लगाया और जोर जोर से पेलने लगा,

सोहन फिर चिल्लाने लगा, लेकीन सोनू उसका दोनो पिछे की तरफ़ पकड़ कर ऐसे झटके देने लगा की सोहन का दर्द के मारे आंखे बाहर निकलने लगी,

सोनू-- आह साले, तेरी गांड मेरे लंड को जकड़ी है, बहुत मज़ा दे रहा है,
और सोहन तो जैसे मुह खोले भैस की तरह चिल्लाये जा रहा था,

सोनू-- आह ले मेरा घोड़े जैसा लंड अपनी गांड मे,
सोनू करीब 15 मिनट तक उसकी तुफानी चुदाइ कर के उसके गांड मे झड़ जाता है,

सोनू अपना लंड निकाल खाट पर लेट जाता है, उसके लंड के सिधे उपर सोहन का मुह था,
सोहन उसके लंड को अपने हाथो में पकड़ कर चाटने लगता है,
 
सोहन-- अभी भी रो रहा था, क्यूकीं उसकी गांड दर्द और जलन अभी भी था,

सोनू-- क्यूं सोनी रानी, तेरे गांड ने तो मेरे लंड को मस्त कर दिया।

सोहन-- आह मेरी गांड क्या है, जिस दीन उस डाक्टर की गांड मारोगे, मस्ती मे पागल हो जाओगे,

सोनू-- कौन रे?
सोहन-- कल ही आई है, मुबंइ से सरकारी डक्टराइन है, तबादला हुआ है,

सोनू-- कैसी है,
सोहन-- अरे इकदम दुध की तरह सफेद, गांड ऐसी की देख ले कोइ तो खड़े खड़े पानी निकल जाये, चुचीयां तो तेरी मां के जैसी बड़े बड़े और इकदम कसी,

सोनू-- क्या बात कर रहा है, उसका लंड फिर से खड़ा होने लगता है,

सोहन-- उसकी एक बेटी भी है, परी जैसी,

सोनू-- किसके घर में रुके है,

सोहन--सरपंच जी के यहा, सरकार के तरफ से जो सरपंच ने नया घर बनवाया है, उसी में॥

सोनू का लंड फिर से तनतनाया और वो फिर सोहन के पिछे आ जाता है, और सांड के जैसा उसकी गांड मारने लगता है,
पुरी रात सोहन वैसे ही खाट में बंधा रहा और सोनू का जब मन करता वो सोहन के पिछे खड़ा हो जाता और फिर तुफ़ान मचा देता,

पता नही सोनू ने कीतनी बार उसकी गांड मारी....

सुबह सोनू ने उसे खाट से खोला, फिर सोहन लगंड़ाते लगंड़ाते घर चला गया......,


सोनू रात भर सोहन का गांड मार मार कर थक चुका था, तो वह झोपड़े मे ही खाट पर लेट

कर सो गया, सुबह जब रजिदंर आया तो सोनू को जगाया, सोनू समय देखा तो करीब 11 बजे थे,


सोनू उठकर सिधा घर की तरफ़ चल देता है.....





डाक्टर साहिबा, अरे वो डाक्टर साहीबा एक आदमी आवाज लगाता है,

अंदर से एक खुबसुरत औरत ने दरवाजा खोला, जी कहीये क्या बात है,

डाक्टर साहिबा मेरी पत्नी की हालत बहुत खराब है, अस्पताल गया तो पता चला आप नयी

आयी है,


डाक्टर साहीबा-- जी हा मैं कल से अस्पताल आने वाली हू, लेकीन चलीये आपकी पत्नी की

हालत खराब है तो मेरा तो काम ही यही है, आप रुकीये मै अभी आती हू,



डाक्टर साहिबा अंदर से अपना मेडीकल का सामान ले के आती है, और अपने कार मे उस

आदमी को बिठा कर चल देती है,


बहुत जल्द ही कार गांव मे आके रुकती है, डाक्टर साहीबा उस आदमी के घर में

जाती है,


डाक्टर साहिबा-- अरे इन्हे तो ठंड लग गयी है, डरने की कोइ बात नही है, मैं

इन्हे इजेंक्शन दे देती हु, और ये दवाइया सुबह शाम देते रहना जल्द ही ठीक हो जायेगीं


डाक्टर साहिबा औरत को इजेंक्शन लाकने के बाद दवाइया देती है और औरत से.


डाक्टर साहिबा-- आपका नाम क्या है?

औरत-- मेरा नाम झुभरी है,

डाक्टर साहिबा-- और मेरा नाम पारुल है, मै आपके गांव की नयी डाक्टर हूं, अच्छा तो अब

मै चलती हू, इनको ठंड से बचाना और कल एक बार अस्पताल जरुर ले आना,


झुमरी का पती-- ठीक है मैडम, और पारुल का मेडीसीन बाक्स उठा कर बाहर आता है,
 
बाहर गांव वालो की भीड़ लगी थी, सब गांव वाले पारुल को नमस्ते करते है,


पारुल-- जी नमस्ते मेरा नाम पारुल है, और मै इस गांव की नयी डाक्टर हूं॥

पारुल-- अच्छा तो , आपका नाम

झुमरी का पती-- जी मेरा नाम बेचन है,

पारुल-- अच्छा तो बेचन जी मै चलती हू,

बेचन-- जी डाक्टर साहीबा कीतना पैसा हुआ॥

पारुल-- अरे बेचन जी मै सरकारी डाक्टर हूं, और ये दवाइया ,इलाज ये सब मुफ्त है, हमे सरकार से तनख्वाह मिलती है,


बेचन--लेकीन डाक्टर साहिबा इससे पहले जो डाक्टर था वो तो बिना पैसे का इलाज ही नही करता था॥


पारुल-- तो आप लोगो ने कंम्पलेन नही की॥

बेचन-- अब ये झंझट मे कौन पड़े, लेकीन अच्छा हुआ भगवान ने आपको हमारे गांव

मे भेजा, नही तो हम गरीब उसे पैसे देते देते बरबाद हो जाते,

पारुल-- अच्छा ठीक है, बेचन जी मैं चलती हू और हा कल झुमरी को अस्पताल लाना मत भुलना,

बेचन -- ठीक है डाक्टर साहीबा,

पारुल जाने लगती है तो उसकी कमर कभी इधर कभी उधर डोलती, गांव के पुरे जवान मर्द उसकी कमर ही देख रहे थे,

पारूल कार मैं बैठती है और कार चल देती है....




सोनू घर पहुचं जाता है, और सिधा खाट पर लेट जाता है...

सुनीता-- आ गया बेटा, रुक मैं खाना लाती हू,

सोनू-- अभी नही मां मै नहाने जा रहा हूं,

सुनीता-- ठीक है बेटा,

सोनू नहाने चला जाता है, नहाने के बाद सीधा खाना खाता है और सो जाता है....



सुनीता-- अरे मालती कहां है आज कल तू दिखाइ नही दे रही है,

मालती गांव की धोबन थी,

मालती-- अरे दिदी कपड़े धोने और सुखाने में पुरा वक्त निकल जाता है, कुछ कपड़े है धोने के लिये क्या?


सुनीता-- हा ठहर मैं देखती हू, और सुनीता अंदर से कुछ कपड़े ला कर मालती को देती है,

मालती-- अच्छा दिदी मैं चलती हू...और मालती अपने घर की तरफ़ निकल देती है,


सोनू उठ बेटा शाम हो गयी, सुनीता उसे जगाती है, सोनू सो कर उठता है और हैडंपम्प पर जा कर मुह हाथ धोने लगता है,


तभी सुनहरी वहां आ जाती है...

सुनहरी-- आ गया बेटा,

सुनीता-- हां दिदी वो तो कब का आया है,

सोनू सुनहरी को उसके पिछे आने का इशारा करता है, और वो घर की छत पर चला जाता है,

कुछ देर बाद सुनहरी भी छत पर आ जाती है,

सुनहरी के छत पे आते ही, सोनू उसे छत के कमरे ले के जाता है,

सुनहरी--तू मुझे छत पे क्यूं बुलाय ?
सोनू अपनी बड़ी अम्मा को अपनी बाहों मे भर लेता है,

सोनू-- तेरी लेने बड़ी अम्मा,
सुनहरी--क्या लेने बुलाया है,
सोनू-- तेरी बुर,
सुनहरी-- हे भगवान , तुझे शरम नही आती, अपनी बड़ी मां से ऐसे बात करते हुए,
 
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