hotaks444
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हवस की रंगीन दुनियाँ
मेरा नाम अमित है और में आगरा का रहने वाला हु। मेरे परिवार में मेरी मम्मी ऋतू पापा अनिल और छोटी बहन रचना है। मेरी और मेरी बहन की आयु में ६ साल का फर्क है। मेरे पापा का एक डिपार्टमेंटल स्टोर है।
में शुरू से ही पढ़ने में तेज था इसलिए मेरा १२ वि क्लास के बाद ही इन्ज्नीरिंग में एड्मिसन हो गया और में बहार पढ़ने चला गया . मेरा तब घर छुट्टियों में ही आना होता। छुट्टियों में जब भी में घर आता तो ज्यादा तर समय सोने में ही गुजरता। तब रचना काफी छोटी थी तो वो मेरे चारो और भैय्या भैय्या कहकर दौड़ लगाती रहती ,कभी मेरी गोद में आकर बैठ जाती तो कभी मुझे बहार चलकर घुमाने की ज़िद करती ,और में उसे अक्सर बहार ले जाता तो वो खुश हो जाती।
बीटेक करते करते में भी कॉलेज के लड़को के रंग में रंगने लगा था ,आये दिन हम अपने लैपटॉप पर पोर्न मूवी देखते या सेक्स साइट पर जाकर नंगी लड़कियों और ओरतो की तस्वीरें देखते ,कभी अश्लील कहानिया भी पढ़ते। कुछ लड़के जो ज्यादा उत्तेजित हो जाते वो वंही मूठ भी मार लेते पर न जाने क्यू मुझमे एक संकोच हमेशा बना रहता था। सही कहु तो तब तक मेने किसी भी लड़की को नंगी तक नही देखा था मुझे ये तक पता नही था की असल में चूत केसी होती है या गांड केसी होती है या बूब्स कैसे होते है। मेरा मन तो बहुत करता था पर मुझे डर भी बहुत लगता था। में मूठ मारने से भी डरता था की कंही ऐसा कुछ न हो जाये जिसके कारन में आगे परेशानी में फंस ना जाऊं।
मेरे कई दोस्त अक्सर कहा करते थे की सेक्स की शुरुआत घर से ही होती है ,घर पर माँ बहन भाभी चाची मामी सेक्स की शुरआत करने में सबसे ज्यादा मददगार होती है पर मेरी समझ में नही आता था की ये कैसे संभव हो सकता है ?
पर उनमे से कोई कहता यार इस बार तो भाभी की गांड खूब दबाई कोई कहता दीदी की चूत को खूब सहलाया कोई तो और आगे बड़ जाता वो कहता की रात भर मॉम से चिपट कर सोया।तो में सोचता की क्या में मॉम या रचना के साथ ऐसा कुछ कर सकता हु तो मेरा दिल मुझे धिक्कारने लगता की में ऐसा कैसे सोच भी सकता हु। कॉलेज में भी लड़के किसी लड़की को देखते तो उसकी खूब कुछ इस अंदाज़ में कहते,उफ़ क्या माल है,या क्या गांड है,,क्या मस्त फूली चूत है या क्या बोबे है वगेरा वगेरा। कुछ लड़के तो लेडीज टॉयलेट के बाहर खड़े होकर लड़कियों के पेशाब करने की आवाज सुनकर ही खुश हो जाते। फिर से मेरे दिमाग में वो सब चलने लगता की आखिर ऐसा करके क्या मिलता है। मेरा एक दोस्त अनुराग तो मुझे अक्सर ये समझाता रहता की आजकल ये सब बाते आम है और घर से बड़ा चुदाई का कोई सुख नही है ,उसने ये भी कहा की अगर इस बार घर जाने पर में इसके बारे में सोचु और अपनी मॉम या बहन को देख मेरा लिंग खड़ा हो जाये तो में समझ लू की इसमे कुछ भी गलत नही है।
अनुराग ने तो यहाँ तक कहा की दोस्ती में आजकल अपने निकट तम रिश्तेदारो की अदला बदली भी चलती है अगर वो मेरे किसी घर की फीमेल के साथ चुदाई करे या में उसके घर की किसी फीमेल के साथ चुदाई करू तो इसमे गलत कुछ नही होगा बल्कि दोस्ती और मजबूत होती है। और घर की बात घर में रहती है।
मेरी समझ में फिर भी ये सब गलत ही लगता था।
खेर इस बार जब में घर आया तो मेरे दिमाग में कई उलझने थी और सेक्स को लेकर कई सवाल थे। घर में घुसते ही मॉम मिली ,उन्होंने मुझे देखते ही गले लगाया ,उन्होंने मुझे गले कुछ ही सेकण्ड्स के लिए लगाया था लेकिन मुझे उनके बूब्स का दवाब मेरी छाती पर महसूस हो गया। पहली बार मुझे अजीब सा लगा ,मॉम के शरीर से एक भीनी भीनी खुशबु आ रही थी और में उनसे चिपक कर खड़ा हुआ था,उस थोड़े से समय में ही मेरे लंड में हरकत होने लगी और उसमे तनाव आ गया। में जल्दी ही मॉम से अलग हो गया। तभी रचना वंहा भागती हुई आई और भैया आ गए भैया आ गए कहते हुए मेरे गले लग गयी। पहली बार मेने रचना को धयान से देखा। उफ़ मेरी बहन तो क़यामत बन चुकी थी। उसने ब्लैक कलर की केप्री और ब्लैक कलर का टॉप पहन रखा था ,जिसमे उसकी सफ़ेद रंग की ब्रा की लाइन स्पष्ट दिख रही थी ,उस ब्रा के कप ऐसे थे की रचना के दोनों बूब्स ऐसे लग रहै थे जैसे वो दो अलग अलग विभक्त हो ,केप्री के निचे उसकी टांगे बिलकुल चिकनी दिख रही थी। मेरी बहन गोरी चिट्ठी तो थी ही पर उसके शरीर के कटाव और बनावट भी बहुत सेक्सी थी। घर में घुसते ही मॉम और रचना से इस तरह की मुलाकात ने मुझे भौचक कर दिया था ,मेने कभी सोचा भी नही था की मेरे घर में ही दो इतनी सेक्सी फीमेल है। मुझे मेरे दोस्तों की सब बाते याद आने लगी थी और मेरे दिमाग में एक कीड़ा कुलबुलाने लगा की जब तक में घर पर हु तब तक ज्यादा से ज्यादा समय इन दोनों के साथ गुजारूँगा। मॉम ने कहा की में अपने रूम में जाकर रेस्ट कर लू फिर सब टी टाइम पर जाकर मिलते है।
में अपने रूम में आ गया और मेने अपनी ड्रेस चेंज कर ली और बेड पर लेट गया पर पता नही इतना थका होने के बाद भी मुझे नींद नही आई और मेरे दिमाग में केवल मॉम और रचना ही घूमती रही।
मेरा नाम अमित है और में आगरा का रहने वाला हु। मेरे परिवार में मेरी मम्मी ऋतू पापा अनिल और छोटी बहन रचना है। मेरी और मेरी बहन की आयु में ६ साल का फर्क है। मेरे पापा का एक डिपार्टमेंटल स्टोर है।
में शुरू से ही पढ़ने में तेज था इसलिए मेरा १२ वि क्लास के बाद ही इन्ज्नीरिंग में एड्मिसन हो गया और में बहार पढ़ने चला गया . मेरा तब घर छुट्टियों में ही आना होता। छुट्टियों में जब भी में घर आता तो ज्यादा तर समय सोने में ही गुजरता। तब रचना काफी छोटी थी तो वो मेरे चारो और भैय्या भैय्या कहकर दौड़ लगाती रहती ,कभी मेरी गोद में आकर बैठ जाती तो कभी मुझे बहार चलकर घुमाने की ज़िद करती ,और में उसे अक्सर बहार ले जाता तो वो खुश हो जाती।
बीटेक करते करते में भी कॉलेज के लड़को के रंग में रंगने लगा था ,आये दिन हम अपने लैपटॉप पर पोर्न मूवी देखते या सेक्स साइट पर जाकर नंगी लड़कियों और ओरतो की तस्वीरें देखते ,कभी अश्लील कहानिया भी पढ़ते। कुछ लड़के जो ज्यादा उत्तेजित हो जाते वो वंही मूठ भी मार लेते पर न जाने क्यू मुझमे एक संकोच हमेशा बना रहता था। सही कहु तो तब तक मेने किसी भी लड़की को नंगी तक नही देखा था मुझे ये तक पता नही था की असल में चूत केसी होती है या गांड केसी होती है या बूब्स कैसे होते है। मेरा मन तो बहुत करता था पर मुझे डर भी बहुत लगता था। में मूठ मारने से भी डरता था की कंही ऐसा कुछ न हो जाये जिसके कारन में आगे परेशानी में फंस ना जाऊं।
मेरे कई दोस्त अक्सर कहा करते थे की सेक्स की शुरुआत घर से ही होती है ,घर पर माँ बहन भाभी चाची मामी सेक्स की शुरआत करने में सबसे ज्यादा मददगार होती है पर मेरी समझ में नही आता था की ये कैसे संभव हो सकता है ?
पर उनमे से कोई कहता यार इस बार तो भाभी की गांड खूब दबाई कोई कहता दीदी की चूत को खूब सहलाया कोई तो और आगे बड़ जाता वो कहता की रात भर मॉम से चिपट कर सोया।तो में सोचता की क्या में मॉम या रचना के साथ ऐसा कुछ कर सकता हु तो मेरा दिल मुझे धिक्कारने लगता की में ऐसा कैसे सोच भी सकता हु। कॉलेज में भी लड़के किसी लड़की को देखते तो उसकी खूब कुछ इस अंदाज़ में कहते,उफ़ क्या माल है,या क्या गांड है,,क्या मस्त फूली चूत है या क्या बोबे है वगेरा वगेरा। कुछ लड़के तो लेडीज टॉयलेट के बाहर खड़े होकर लड़कियों के पेशाब करने की आवाज सुनकर ही खुश हो जाते। फिर से मेरे दिमाग में वो सब चलने लगता की आखिर ऐसा करके क्या मिलता है। मेरा एक दोस्त अनुराग तो मुझे अक्सर ये समझाता रहता की आजकल ये सब बाते आम है और घर से बड़ा चुदाई का कोई सुख नही है ,उसने ये भी कहा की अगर इस बार घर जाने पर में इसके बारे में सोचु और अपनी मॉम या बहन को देख मेरा लिंग खड़ा हो जाये तो में समझ लू की इसमे कुछ भी गलत नही है।
अनुराग ने तो यहाँ तक कहा की दोस्ती में आजकल अपने निकट तम रिश्तेदारो की अदला बदली भी चलती है अगर वो मेरे किसी घर की फीमेल के साथ चुदाई करे या में उसके घर की किसी फीमेल के साथ चुदाई करू तो इसमे गलत कुछ नही होगा बल्कि दोस्ती और मजबूत होती है। और घर की बात घर में रहती है।
मेरी समझ में फिर भी ये सब गलत ही लगता था।
खेर इस बार जब में घर आया तो मेरे दिमाग में कई उलझने थी और सेक्स को लेकर कई सवाल थे। घर में घुसते ही मॉम मिली ,उन्होंने मुझे देखते ही गले लगाया ,उन्होंने मुझे गले कुछ ही सेकण्ड्स के लिए लगाया था लेकिन मुझे उनके बूब्स का दवाब मेरी छाती पर महसूस हो गया। पहली बार मुझे अजीब सा लगा ,मॉम के शरीर से एक भीनी भीनी खुशबु आ रही थी और में उनसे चिपक कर खड़ा हुआ था,उस थोड़े से समय में ही मेरे लंड में हरकत होने लगी और उसमे तनाव आ गया। में जल्दी ही मॉम से अलग हो गया। तभी रचना वंहा भागती हुई आई और भैया आ गए भैया आ गए कहते हुए मेरे गले लग गयी। पहली बार मेने रचना को धयान से देखा। उफ़ मेरी बहन तो क़यामत बन चुकी थी। उसने ब्लैक कलर की केप्री और ब्लैक कलर का टॉप पहन रखा था ,जिसमे उसकी सफ़ेद रंग की ब्रा की लाइन स्पष्ट दिख रही थी ,उस ब्रा के कप ऐसे थे की रचना के दोनों बूब्स ऐसे लग रहै थे जैसे वो दो अलग अलग विभक्त हो ,केप्री के निचे उसकी टांगे बिलकुल चिकनी दिख रही थी। मेरी बहन गोरी चिट्ठी तो थी ही पर उसके शरीर के कटाव और बनावट भी बहुत सेक्सी थी। घर में घुसते ही मॉम और रचना से इस तरह की मुलाकात ने मुझे भौचक कर दिया था ,मेने कभी सोचा भी नही था की मेरे घर में ही दो इतनी सेक्सी फीमेल है। मुझे मेरे दोस्तों की सब बाते याद आने लगी थी और मेरे दिमाग में एक कीड़ा कुलबुलाने लगा की जब तक में घर पर हु तब तक ज्यादा से ज्यादा समय इन दोनों के साथ गुजारूँगा। मॉम ने कहा की में अपने रूम में जाकर रेस्ट कर लू फिर सब टी टाइम पर जाकर मिलते है।
में अपने रूम में आ गया और मेने अपनी ड्रेस चेंज कर ली और बेड पर लेट गया पर पता नही इतना थका होने के बाद भी मुझे नींद नही आई और मेरे दिमाग में केवल मॉम और रचना ही घूमती रही।