desiaks
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तिलक अब अपने शयनकक्ष में लेटा हुआ था।
दर्द के निशान अभी भी उसके चेहरे पर थे।
होटल का मैनेजर और दोनों बैल ब्वॉय भी उस समय वहीं मौजूद थे। वह थोड़ी देर पहले ही नीचे से ऊपर आये थे।
“आज तो बस बाल—बाल बचे हैं।” मैनेजर अपने कोट का ऊपर वाला बटन लगाता हुआ बोला।
वह हड़बड़ाया हुआ था।
“क्या हो गया?” तिलक ने पूछा।
“होटल के ग्राहकों के बीच यह बात पूरी तरह फैल गयी थी कि वह गोली की आवाज थी। मैं बड़ी मुश्किल से उन्हें इस बात का यकीन दिला सका कि ऐसा सोचना उनकी गलती थी। वह गोली की आवाज नहीं थी।”
“फिर किस चीज की आवाज थी वो?”
“मैंने उन्हें समझाया कि कार के बैक फायर की आवाज भी बिल्कुल ऐसी ही होती है, जैसे कोई गोली चली हो। जैसे कोई बड़ा धमामा हुआ हो। तब कहीं जाकर उन्हें यकीन हुआ। अलबत्ता एक ग्राहक तो फिर भी हंगामा करने पर तुला था।”
“क्या?”
“वो कहता था कि उसने एक आदमी के चीखने की आवाज सुनी थी। वो बड़े पुख्ता अंदाज में कह रहा था कि अगर वो कार के बैक फायर की आवाज थी, तो उसे किसी आदमी के बुरी तरह चिल्लाने की आवाज क्यों सुनाई पड़ी?”
“उससे क्या कहा तुमने?”
“मैंने उसे समझाया कि वह जरूर उसका वहम था।”
“मान गया वो इस बात को?” मैं अचरजपूर्वक बोली।
“पहले तो नहीं माना। लेकिन जब मैंने उसे यह दलील दी कि अगर होटल में सचमुच कोई गोली चली होती या वहां कोई हादसा घटा होता- तो वह नजर तो आता। दिखाई तो पड़ता। तब कहीं जाकर वह शांत हुआ। तब कहीं उसकी बोलती बंद हुई।”
“ओह!”
वाकई एक बड़ा हंगामा होने से बचा था।
होटल का मैनेजर कुर्सी खींचकर वहीं तिलक के करीब बैठ गया।
“गोली निकालने के लिए किसी डॉक्टर को बुलाया?”
“हां।” मैं बोली—”मैं एक डॉक्टर को फोन कर चुकी हूं, वह बस आता ही होगा।”
“ठीक किया।”
फिर मैनेजर बहुत गौर से तिलक राजकोटिया के कंधे के जख्म को देखने लगा।
उसमें से खून अभी भी रिस रहा था।
“हाथ तो सही हिल रहा है?”
“हां।” तिलक ने अपना हाथ हिलाया—डुलाया—”हाथ तो सही हिल रहा है, बस थोड़ा दर्द है।”
“सब ठीक हो जाएगा। शुक्र है- जो गोली सिर्फ मांस में जाकर धंसी है, अगर उसने किसी हड्डी को ब्रेक कर दिया होता, तो फिर हाथ महीनों के लिए बेकार हो जाता।”
मैंने भी आगे बढ़कर जख्म का मुआयना किया।
गोली कंधे में धंसी हुई बिल्कुल साफ नजर आ रही थी।
वह कोई एक इंच अंदर थी।
“मैं अभी आती हूं।” एकाएक मैं कुछ सोचकर बोली।
“तुम कहां जा रही हो?”
“बस अभी आयी।”
मैं शयनकक्ष से बाहर निकल गयी।
जल्द ही जब मैं वापस लौटी- तो मेरे हाथ में कोई एक मीटर लम्बी रस्सी थी।
रस्सी काफी मजबूत थी।
“इस रस्सी का आप क्या करेंगी मैडम?” मैनेजर ने पूछा।
“इसे मैं इनके कंधे पर ऊपर की तरफ कसकर बांध दूंगी।” मैं बोली—”इससे गोली का जहर पूरे शरीर में नहीं फैल पाएगा और खून का प्रवाह भी रुकेगा। जब तक डॉक्टर नहीं आ जाता- तब तक मैं समझती हूँ कि ऐसा करना बेहतर है।”
“वैरी गुड- सचमुच आपने अच्छा तरीका सोचा है।”
मैनेजर ने प्रशंसनीय नेत्रों से मेरी तरफ देखा।
जबकि मैं रस्सी लेकर तिलक की तरफ बढ़ गयी।
“आप अपना हाथ थोड़ा ऊपर उठाइए।”
तिलक ने अपना वह हाथ ऊपर उठा लिया- जिसमें गोली लगी हुई थी।
मैंने फौरन कंधे से ऊपर रस्सी कसकर बांध दी।
रस्सी कसने का फायदा भी फौरन ही सामने आया। तत्काल खून बहना बंद हो गया।
मैंने डस्टर से तिलक के कंधे पर मौजूद बाकी खून भी साफ कर दिया।
उस समय मेरी एक्टीविटी देखकर कोई नहीं कह सकता था कि मैंने ही वह गोली चलाई है।
मैंने ही तिलक राजकोटिया को उस हालत में पहुंचाया है।
•••
दर्द के निशान अभी भी उसके चेहरे पर थे।
होटल का मैनेजर और दोनों बैल ब्वॉय भी उस समय वहीं मौजूद थे। वह थोड़ी देर पहले ही नीचे से ऊपर आये थे।
“आज तो बस बाल—बाल बचे हैं।” मैनेजर अपने कोट का ऊपर वाला बटन लगाता हुआ बोला।
वह हड़बड़ाया हुआ था।
“क्या हो गया?” तिलक ने पूछा।
“होटल के ग्राहकों के बीच यह बात पूरी तरह फैल गयी थी कि वह गोली की आवाज थी। मैं बड़ी मुश्किल से उन्हें इस बात का यकीन दिला सका कि ऐसा सोचना उनकी गलती थी। वह गोली की आवाज नहीं थी।”
“फिर किस चीज की आवाज थी वो?”
“मैंने उन्हें समझाया कि कार के बैक फायर की आवाज भी बिल्कुल ऐसी ही होती है, जैसे कोई गोली चली हो। जैसे कोई बड़ा धमामा हुआ हो। तब कहीं जाकर उन्हें यकीन हुआ। अलबत्ता एक ग्राहक तो फिर भी हंगामा करने पर तुला था।”
“क्या?”
“वो कहता था कि उसने एक आदमी के चीखने की आवाज सुनी थी। वो बड़े पुख्ता अंदाज में कह रहा था कि अगर वो कार के बैक फायर की आवाज थी, तो उसे किसी आदमी के बुरी तरह चिल्लाने की आवाज क्यों सुनाई पड़ी?”
“उससे क्या कहा तुमने?”
“मैंने उसे समझाया कि वह जरूर उसका वहम था।”
“मान गया वो इस बात को?” मैं अचरजपूर्वक बोली।
“पहले तो नहीं माना। लेकिन जब मैंने उसे यह दलील दी कि अगर होटल में सचमुच कोई गोली चली होती या वहां कोई हादसा घटा होता- तो वह नजर तो आता। दिखाई तो पड़ता। तब कहीं जाकर वह शांत हुआ। तब कहीं उसकी बोलती बंद हुई।”
“ओह!”
वाकई एक बड़ा हंगामा होने से बचा था।
होटल का मैनेजर कुर्सी खींचकर वहीं तिलक के करीब बैठ गया।
“गोली निकालने के लिए किसी डॉक्टर को बुलाया?”
“हां।” मैं बोली—”मैं एक डॉक्टर को फोन कर चुकी हूं, वह बस आता ही होगा।”
“ठीक किया।”
फिर मैनेजर बहुत गौर से तिलक राजकोटिया के कंधे के जख्म को देखने लगा।
उसमें से खून अभी भी रिस रहा था।
“हाथ तो सही हिल रहा है?”
“हां।” तिलक ने अपना हाथ हिलाया—डुलाया—”हाथ तो सही हिल रहा है, बस थोड़ा दर्द है।”
“सब ठीक हो जाएगा। शुक्र है- जो गोली सिर्फ मांस में जाकर धंसी है, अगर उसने किसी हड्डी को ब्रेक कर दिया होता, तो फिर हाथ महीनों के लिए बेकार हो जाता।”
मैंने भी आगे बढ़कर जख्म का मुआयना किया।
गोली कंधे में धंसी हुई बिल्कुल साफ नजर आ रही थी।
वह कोई एक इंच अंदर थी।
“मैं अभी आती हूं।” एकाएक मैं कुछ सोचकर बोली।
“तुम कहां जा रही हो?”
“बस अभी आयी।”
मैं शयनकक्ष से बाहर निकल गयी।
जल्द ही जब मैं वापस लौटी- तो मेरे हाथ में कोई एक मीटर लम्बी रस्सी थी।
रस्सी काफी मजबूत थी।
“इस रस्सी का आप क्या करेंगी मैडम?” मैनेजर ने पूछा।
“इसे मैं इनके कंधे पर ऊपर की तरफ कसकर बांध दूंगी।” मैं बोली—”इससे गोली का जहर पूरे शरीर में नहीं फैल पाएगा और खून का प्रवाह भी रुकेगा। जब तक डॉक्टर नहीं आ जाता- तब तक मैं समझती हूँ कि ऐसा करना बेहतर है।”
“वैरी गुड- सचमुच आपने अच्छा तरीका सोचा है।”
मैनेजर ने प्रशंसनीय नेत्रों से मेरी तरफ देखा।
जबकि मैं रस्सी लेकर तिलक की तरफ बढ़ गयी।
“आप अपना हाथ थोड़ा ऊपर उठाइए।”
तिलक ने अपना वह हाथ ऊपर उठा लिया- जिसमें गोली लगी हुई थी।
मैंने फौरन कंधे से ऊपर रस्सी कसकर बांध दी।
रस्सी कसने का फायदा भी फौरन ही सामने आया। तत्काल खून बहना बंद हो गया।
मैंने डस्टर से तिलक के कंधे पर मौजूद बाकी खून भी साफ कर दिया।
उस समय मेरी एक्टीविटी देखकर कोई नहीं कह सकता था कि मैंने ही वह गोली चलाई है।
मैंने ही तिलक राजकोटिया को उस हालत में पहुंचाया है।
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